Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari – Lyrics in Hindi with Meanings


मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी

मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी भजन के इस पेज में मैं आरती तेरी गाउँ के हिंदी लिरिक्स दिए गए है।

बाद में भजन का आध्यात्मिक महत्व दिया गया है, और भजन से हमें कौन कौन सी आध्यात्मिक बातें सिखने को मिलती है यह बताया गया है।


मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।
मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥


है तेरी छबि अनोखी, ऐसी ना दूजी देखी।
तुझ सा ना सुन्दर कोई, ओ मोर मुकुटधारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


जो आए शरण तिहारी, विपदा मिट जाए सारी।
हम सब पर कृपा रखना, ओ जगत के पालनहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


राधा संग प्रीत लगाई, और प्रीत की रीत चलायी।
तुम राधा रानी के प्रेमी, जय राधे रास बिहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


माखन की मटकी फोड़ी, गोपीन संग अखियाँ जोड़ी।
ओ नटखट रसिया तुझपे, जाऊं मैं तो बलिहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


जब जब तू बंसी बजाये, सब अपनी सुध खो जाएँ।
तू सबका सब तेरे प्रेमी, ओ कृष्ण प्रेम अवतारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।
मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥


Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari


Krishna Bhajan



मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी भजन का आध्यात्मिक महत्व

मैं आरती तेरी गाउँ भजन भगवान श्रीकृष्ण की आरती है, जिसमें उनकी सुंदरता, लीलाएं, प्रेम, कृपा और महिमा का गुणगान किया गया हैं।

इस भजन के माध्यम से हमें भक्ति, समर्पण, ईश्वर की शरण, और उनकी कृपा जैसी आध्यात्मिक बातों का संदेश मिलता है, जो हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकता हैं।

इस भजन में भगवान कृष्ण को अलग-अलग नामों से भी संबोधित किया गया है, जो उनके स्वरूप और स्वभाव का वर्णन करते हैं।

इस भजन की पंक्तियों से हमें कई आध्यात्मिक सन्देश मिलते हैं। तो आइए, इस भजन का आध्यात्मिक अर्थ समझकर ईश्वर की आराधना और भक्ति में लीन हो जाये।


हम भगवान की आरती क्यों करते है?

मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।

जब हम कृष्ण की आरती करते है और उनके सामने सिर झुकाते है, तो हम अपने आराध्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और अपना समर्पण व्यक्त करते है।

यह हमारे मन में भगवान के प्रति गहरी श्रद्धा और विश्वास को जगाता है।

  • केशव कुंज बिहारी – यह नाम भगवान कृष्ण को संदर्भित करता है, जो उनके विशेष भव्य रूप और वृंदावन में विहार करने की लीलाएं बयां करता हैं।

मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥

हे ईश्वर, मैं हर पल आपके सामने अपना सिर झुकाता हूं।

जब हम नियमित रूप से भगवान कृष्ण के सामने झुकाकर उनसे प्रार्थना करते है तो हमारे मन में उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना प्रबल होती है। इससे क्या लाभ होता है, आगे की पंक्तियों में दिया गया है।

  • मोहन कृष्ण मुरारी – भगवान कृष्ण का प्यारा नाम है, जो उनके मनोरम और मनमोहक स्वभाव को दर्शाता है।

हम अपनी विपदाओं को कैसे दूर करें?

जो आए शरण तिहारी, विपदा मिट जाए सारी।

कृष्ण वह हैं जो कठिनाइयों को दूर करते हैं और सुरक्षा प्रदान करते हैं। जो जो भगवान् की शरण जाता है, भगवान उन सब पर कृपा करते हैं।

इसलिए जब हम भगवान् की शरण में जाते हैं,
उनके सामने अपने आप को समर्पित करते है,
तो हमारी सारी परेशानियां और प्रतिकूलताएं दूर हो जाती हैं,
सारी विपदाएँ मिट जाती हैं।

ईश्वर की कृपा से हमें सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है, और हम जीवन में सुख और आनंद का अनुभव करते हैं।

यह पंक्ति हमारे मन में भगवान के प्रति पूर्ण विश्वास और भरोसे को दर्शाती है।

हम सब पर कृपा रखना, ओ जगत के पालनहारी॥

इसलिए हमें ईश्वर से अपने और सभी पर कृपा करने की प्रार्थना करनी चाहिए।

हे ईश्वर, हम सभी पर अपना आशीर्वाद और कृपा बनाए रखना।

  • जगत के पालन-हारी – कृष्ण को संपूर्ण विश्व के पालनकर्ता और रक्षक के रूप में संदर्भित करता है।

इस प्रकार भजन की पंक्तियों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने आराध्य भगवान के प्रति भक्ति और समर्पण रखना चाहिए। हमें ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और भरोसा करना चाहिए। ईश्वर की कृपा से हम अपनी सभी विपदाओं से मुक्त हो सकते हैं।

यह भजन हमें यह भी बताता है कि हमें अपने जीवन में ईश्वर के सामने आत्म-समर्पण करना चाहिए, अपने आप को ईश्वर के हाथों में सौंप देना चाहिए। ईश्वर की कृपा से हम अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।


Krishna Bhajan



मैं आरती तेरी गाउँ भजन की पंक्तियों का आध्यात्मिक अर्थ

है तेरी छबि अनोखी, ऐसी ना दूजी देखी।

“है तेरी छवि अनोखी” अर्थात “तुम्हारा रूप निराला है।” भक्त ने भगवान कृष्ण के दिव्य रूप को किसी अन्य के विपरीत, अतुलनीय रूप से विशेष बताया है। उनके जैसा खूबसूरत कोई नहीं है। भक्त, भगवान कृष्ण की विशिष्ट और अद्वितीय सुंदरता की प्रशंसा करते हुए कहता है कि उनके जैसा कोई और नहीं है।

तुझ सा ना सुन्दर कोई, ओ मोर मुकुटधारी॥

“तुझ सा ना सुंदर कोई” बताता है “तुम्हारे जैसा सुंदर कोई नहीं है।” “ओ मोर मुकुट-धारी” भगवान कृष्ण को संदर्भित करता है, जो अपने सिर पर मोर पंख (मोर मुकुट) पहनते हैं। यह श्लोक भगवान कृष्ण की अद्वितीय सुंदरता का गुणगान करता है।

राधा संग प्रीत लगाई, और प्रीत की रीत चलायी।

यह श्लोक राधा के साथ गहरा और प्रेमपूर्ण रिश्ता (प्रीत) स्थापित करने के लिए भगवान कृष्ण की प्रशंसा करता है, जो उनके बीच दिव्य बंधन का प्रतीक है।

तुम राधा रानी के प्रेमी, जय राधे रास बिहारी॥

“तुम राधा रानी के प्रेमी” का अर्थ है “तुम राधा रानी के प्रेमी हो।” यह श्लोक राधा के साथ कृष्ण के विशेष और अंतरंग बंधन को स्वीकार करता है। “जय राधे रास बिहारी” एक उत्सवपूर्ण उद्घोष है, जिसमें कृष्ण को राधा और गोपियों के साथ रास के दिव्य नृत्य में संलग्न बताया जाता है।

माखन की मटकी फोड़ी, गोपीन संग अखियाँ जोड़ी।

इस श्लोक में भगवान कृष्ण द्वारा मक्खन की मटकी (माखन की मटकी) को तोड़ने और गोपियों के साथ रास का वर्णन किया गया है, जो उनके साथ उनके प्रेमपूर्ण और आनंदमय संबंधों को दर्शाता है।

ओ नटखट रसिया तुझपे, जाऊं मैं तो बलिहारी॥

“ओ नटखट रसिया तुझपे” कृष्ण को शरारती और आकर्षक के रूप में संदर्भित करता है। भक्त अपनी गहरी भक्ति व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वे ऐसे चंचल और मनोरम कृष्ण के लिए खुद को बलिहारी कर देंगे।

जब जब तू बंसी बजाये, सब अपनी सुध खो जाएँ।

“जब जब तू बंसी बजाएं” का अर्थ है “जब भी आप बांसुरी बजाएं।” यह कविता कृष्ण की बांसुरी वादन के मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्रभाव पर प्रकाश डालती है, जिससे सभी प्राणी उनके दिव्य संगीत में खो जाते हैं।

तू सबका सब तेरे प्रेमी, ओ कृष्ण प्रेम अवतारी॥

“तू सबका सब तेरे प्रेमी” बताता है “तुम सबके प्रेमी हो; हर कोई तुम्हारा है।” “हे कृष्ण प्रेम अवतारी” कृष्ण को दिव्य प्रेम के अवतार के रूप में संदर्भित करता है। यह श्लोक कृष्ण के असीम और सार्वभौमिक प्रेम, सभी प्राणियों को गले लगाने पर जोर देता है।

संक्षेप में, भजन के बोल भगवान कृष्ण की अद्वितीय सुंदरता और प्रेमपूर्ण प्रकृति व्यक्त करते हैं। भक्त कृष्ण की सुरक्षा चाहता है, राधा के साथ अपने दिव्य प्रेम का जश्न मनाता है, और उनके प्रति पूर्ण समर्पण करने की इच्छा व्यक्त करता है। इस भावपूर्ण भजन में कृष्ण की बांसुरी की मनमोहक धुन और उनके सार्वभौमिक प्रेम का जश्न मनाया जाता है।

यह भजन भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और प्रशंसा व्यक्त करता है। गायक कृष्ण के दिव्य रूप की विशिष्टता और सुंदरता की प्रशंसा करता है, उन्हें सभी परेशानियों से सुरक्षा और राहत के स्रोत के रूप में स्वीकार करता है। वे उनके सामने झुककर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं और अपने और सभी जीवित प्राणियों के लिए उनकी उदार कृपा और आशीर्वाद मांगते हैं।


Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari – Lyrics in English with Meanings


Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari

Main aarti teri gaaun, O Keshav Kunj Bihari
Main nit nit shish navaoon, O Mohan Krishna Murari


Hai teri chhabi anokhi, Aisi na dooji dekhi
Tujh sa na sundar koi, O Mor Mukut-dhaari
Main aarti teri gaun….


Jo aaye sharan tihaari, Vipadaa mit jaye saari
Hum sab par kirpa rakhana, O jagat ke paalan-haari
Main aarti teri gaun….


Radha sang preet lagaai, aur prit ki rit chalaai
Tum Radha rani ke premi, Jai Radhe raas bihari
Main aarti teri gaun….


Maakhan ki matki phodi, gopin sang akhiyaan jodi
O natkhat rasiya tujhpe, jaau main to balihaari
Main aarti teri gaun….


Jab jab tu bansi bajaaye, sab apni sudh kho jaye
Tu sabka sab tere premi, O Krishna prem avataari
Main aarti teri gaun….


Main aarti teri gaoo, O Keshav Kunj Bihari
Main nit nit shish navaoon, O Mohan Krishna Murari


Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari


Krishna Bhajan



Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari – Spiritual Meanings

Main aarti teri gaaun, O Keshav Kunj Bihari

In this sentence, devotees praise Lord Krishna and take a vow to sing his aarti. “Keshav Kunj Bihari” refers to Lord Krishna, using “O Keshav Kunj Bihari” to describe Krishna’s special grand appearance and his times in Vrindavan. Devotees worship Lord Krishna at his favorite place Keshav Kunj and worship him with devotion at his feet.

Main nit nit shish navaoon, O Mohan Krishna Murari

“Main nit nit shish navaoon” means “I bow my head every moment.” The devotee expresses their constant reverence and surrender to Lord Krishna by bowing down before him regularly. “O Mohan Krishna Murari” further addresses Lord Krishna with endearing names, emphasizing his captivating and enchanting nature.

Hai teri chhabi anokhi, Aisi na dooji dekhi

“Hai teri chhabi anokhi” means “Your appearance is unique.” The devotee describes Lord Krishna’s divine form as incomparably special, unlike any other. There is none as beautiful as him. The devotee praises the distinctive and unparalleled beauty of Lord Krishna, stating that there is no one else like him.

Tujh sa na sundar koi, O Mor Mukut-dhaari

“Tujh sa na sundar koi” conveys “There is no one as beautiful as you.” “O Mor Mukut-dhaari” refers to Lord Krishna, who wears a peacock feather (Mor Mukut) on his head. The verse glorifies the unparalleled beauty of Lord Krishna.

Jo aaye sharan tihaari, Vipadaa mit jaye saari

“Jo aaye sharan tihaari” means “Those who seek refuge in you.” The devotee acknowledges that those who take shelter in Lord Krishna find their troubles vanishing. “Vipadaa mit jaye saari” indicates that all adversities are dispelled by the grace of the Lord. Krishna is the one who dispels difficulties and provides protection.

Hum sab par kirpa rakhana, O jagat ke paalan-haari

“Hum sab par kirpa rakhana” is a plea to Lord Krishna to bestow his blessings and grace upon everyone. “O jagat ke paalan-haari” refers to Krishna as the sustainer and protector of the entire world. The devotee seeks divine protection and care from Lord Krishna for all beings.

Radha sang preet lagaai, aur prit ki rit chalaai

This verse praises Lord Krishna for establishing a deep and loving relationship (preet) with Radha, symbolizing the divine bond between them.

Tum Radha Rani ke premi, Jai Radhe Raas Bihari

“Tum Radha Rani ke premi” means “You are the lover of Radha Rani.” The verse acknowledges Krishna’s special and intimate bond with Radha. “Jai Radhe Raas Bihari” is a celebratory exclamation, hailing Krishna as the one who engages in the divine dance of Raas with Radha and the gopis.

Maakhan ki matki phodi, gopin sang akhiyaan jodi

This verse describes Lord Krishna playfully breaking the pot of butter (maakhan ki matki) and raas with the gopis, indicating his loving and joyful interactions with them.

O natkhat rasiya tujhpe, jaau main to balihaari

“O natkhat rasiya tujhpe” refers to Krishna as the mischievous and charming one. The devotee expresses their deep devotion, stating that they would sacrifice themselves (balihaari) for such a playful and captivating Krishna.

Jab jab tu bansi bajaaye, sab apni sudh kho jaye

“Jab jab tu bansi bajaaye” means “Whenever you play the flute.” The verse highlights the enchanting effect of Krishna’s flute playing, causing all beings to lose themselves in his divine music.

Tu sabka sab tere premi, O Krishna prem avataari

“Tu sabka sab tere premi” conveys “You are the lover of everyone; everyone is yours.” “O Krishna prem avataari” refers to Krishna as the incarnation of divine love. This verse emphasizes Krishna’s boundless and universal love, embracing all beings.

In summary, the bhajan lyrics express deep devotion and praise for Lord Krishna’s unparalleled beauty, loving nature, and playful interactions with his devotees. The devotee seeks Krishna’s protection, celebrates his divine love with Radha, and expresses their willingness to surrender completely to him. The enchanting melody of Krishna’s flute and his universal love are celebrated in this soul-stirring bhajan.

This bhajan expresses deep devotion and admiration for Lord Krishna. The devotee praises the uniqueness and beauty of Krishna’s divine form, acknowledging him as the source of protection and relief from all troubles. They offer their reverence by bowing before him and seek his benevolent grace and blessings for themselves and all living beings.


Krishna Bhajan



Shanta Karam Bhujaga Shayanam – Hindi + Meaning


Krishna Bhajan

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं – अर्थ सहित


शान्ताकारं भुजग-शयनं
पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन-सदृशं
मेघवर्ण शुभाङ्गम्।


लक्ष्मीकान्तं कमल-नयनं
योगिभिर्ध्यानगम्यम्
(योगिभिर – ध्यान – गम्यम्)

वन्दे विष्णुं भवभय-हरं
सर्वलोकैक-नाथम्॥

Shanta karam Bhujaga shayanam – Meaning in Hindi

शान्ताकारं भुजग-शयनं
पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं
मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
  • शान्ताकारं – जिनकी आकृति अतिशय शांत है, वह जो धीर क्षीर गंभीर हैं,
  • भुजग-शयनं – जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं (विराजमान हैं),
  • पद्मनाभं – जिनकी नाभि में कमल है,
  • सुरेशं जो ‍देवताओं के भी ईश्वर और
  • विश्वाधारं जो संपूर्ण जगत के आधार हैं, संपूर्ण विश्व जिनकी रचना है,
  • गगन-सदृशं जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं,
  • मेघवर्ण नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है,
  • शुभाङ्गम् अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो अति मनभावन एवं सुंदर है

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं
योगिभिर्ध्यानगम्यम्
(योगिभिर – ध्यान – गम्यम्)वन्दे विष्णुं भवभयहरं
सर्वलोकैकनाथम्॥
  • लक्ष्मीकान्तं ऐसे लक्ष्मीपति,
  • कमल-नयनं कमलनेत्र (जिनके नयन कमल के समान सुंदर हैं)
  • योगिभिर्ध्यानगम्यम् – (योगिभिर – ध्यान – गम्यम्) – जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, (योगी जिनको प्राप्त करने के लिया हमेशा ध्यानमग्न रहते हैं)
  • वन्दे विष्णुं – भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ (ऐसे परमब्रम्ह श्री विष्णु को मेरा नमन है)
  • भवभय-हरं जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, जो सभी भय को नाश करने वाले हैं
  • सर्वलोकैक-नाथम् – जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, सभी चराचर जगत के ईश्वर हैं

Krishna Bhajans

Shanta Karam Bhujaga Shayanam

Anuradha Paudwal

Shantakaram Bhujaga Shayanam – Prayer to Lord Vishnu

Shanta-karam Bhujaga-shayanam,
Padmanabham Suresham.
Vishva-dharam Gagana-sadrusham,
Megha-varnam Shubhangam.


Lakshmi-kantam Kamala nayanam,
Yogibhir Dhyana Gamyam.
Vande Vishnum Bhava Bhaya Haram,
Sarva Lokaikanatham.

Chhoti Chhoti Gaiya, Chhote Chhote Gwal – Lyrics in Hindi


छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल

छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल
छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल
छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल।
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥


आगे आगे गैया पीछे पीछे ग्वाल।
आगे आगे गैया पीछे पीछे ग्वाल।
बीच में मेरो मदन गोपाल॥

छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल।
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥


कारी कारी गैया, गोरे गोरे ग्वाल।
कारी कारी गैया, गोरे गोरे ग्वाल।
श्याम वरण मेरो मदन गोपाल॥

छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल
छोटो सो मेरो मदन गोपाल


घास खावे गैया, दूध पीवे ग्वाल।
घास खावे गैया, दूध पीवे ग्वाल।
माखन खावे मेरो मदन गोपाल॥

छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल।
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥


छोटी छोटी लकुटी, छोटे छोटे हाथ।
छोटी छोटी लकुटी, छोटे छोटे हाथ।
बंसी बजावे मेरो मदन गोपाल॥

छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल।
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥


छोटी छोटी सखियाँ, मधुबन बाग़।
छोटी छोटी सखियाँ, मधुबन बाग़।
रास रचावे मेरो मदन गोपाल॥

छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल।
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥

छोटी छोटी गैया, छोटे छोटे ग्वाल।
छोटो सो मेरो मदन गोपाल॥


Chhoti Chhoti Gaiya, Chhote Chhote Gwal

Shri Mridul Krishna Shastri


Krishna Bhajan



Chhoti Chhoti Gaiya, Chhote Chhote Gwal – Lyrics in English


Chhoti Chhoti Gaiya, Chhote Chhote Gwal

Chhoti chhoti gaiya, chhote chhote gwal
Chhoti chhoti gaiya, chhote chhote gwal

Chhoto so mero Madan Gopal
Chhoto so mero Madan Gopal

Chhoti chhoti gaiya, chhote chhote gwal
Chhoto so mero Madan Gopal

Aage aage gaiyaa, peechhe peechhe gwal
Aage aage gaiyaa, peechhe peechhe gwal
Beech me mero Madan Gopal

Chhoti chhoti gaiya, chhote chhote gwal
Chhoto so mero Madan Gopal

Kaari kaari gaiya, gore goray gwaal
Kaari kaari gaiya, gore goray gwaal
Shyam baran mero Madan Gopal

Chhoti chhoti gaiya, chhote chhote gwal
Chhoto so mero Madan Gopal

Ghaas khaave gaiyaa, doodh peeve gwaal
Ghaas khaave gaiyaa, doodh peeve gwaal
Maakhan khaavay mero Madan Gopal

Chhoti chhoti gaiya, chhote chhote gwal
Chhoto so mero Madan Gopal

Chhoti chhoti lakuti, chhotay chhotay haath
Chhoti chhoti lakuti, chhotay chhotay haath
Bansi bajaawe mero, Madan Gopal

Chhoti chhoti gaiyaa, chhotey chhotey gwal
Chhoto so mero Madan Gopal

Choti choti sakhiyaan, madhuban baag
Choti choti sakhiyaan, madhuban baag
Raas rachaawe mero Madan Gopal

Chhoti chhoti gaiyaa, chhote chhote gwaal
Chhoto so mero Madan Gopal

Chhoti chhoti gaiya, chhote chhote gwal
Chhoto so mero Madan Gopal


Chhoti Chhoti Gaiya, Chhote Chhote Gwal

Shri Mridul Krishna Shastri


Krishna Bhajan


Aaj Khushi Hai Bhari, Shyam Janma Ri


Krishna Bhajan

आज ख़ुशी है भारी, श्याम जन्मा री

आज ख़ुशी है भारी,
श्याम जन्मा री
की शुभ दिन आया है

आज ख़ुशी है भारी,
श्याम जन्मा री
की शुभ दिन आया है


गोकुल की छवि न्यारी
गोकुल की छवि न्यारी
श्याम जन्मा री
की शुभ दिन आया है

आज ख़ुशी है भारी,
श्याम जन्मा री
की शुभ दिन आया है


वंदन वारो तोरण है न्यारे
(तोरण है न्यारे)
साजे रंगोली नन्द जी के द्वारे
(नन्द जी के द्वारे)

वंदन वारो तोरण है न्यारे
साजे रंगोली नन्द जी के द्वारे

साज श्रृंगार मनभावन
महक रहा मधुबन
की शुभ दिन आया है

आज ख़ुशी है भारी,
श्याम जन्मा री
की शुभ दिन आया है


सोने चांदी के दीपक जलाओ
(दीपक जलाओ)
सब मिल आओ मंगल गाओ
(मंगल गाओ)

सोने चांदी के दीपक जलाओ
सब मिल आओ मंगल गाओ

जाये यशोदा बलिहारी
ख़ुशी से मतवारी
की शुभ दिन आया है

आज ख़ुशी है भारी,
श्याम जन्मा री
की शुभ दिन आया है


नन्द के आंगन का है उजाला
वो है उजाला
ब्रज का बनेगा ये रखवाला
ये रखवाला

नन्द के आंगन का है उजाला
ब्रज का बनेगा ये रखवाला

अँखिया है कजरारी,
है चितवन प्यारी
की शुभ दिन आया है

आज ख़ुशी है भारी,
श्याम जन्मा री
की शुभ दिन आया है


गोकुल की छवि न्यारी
गोकुल की छवि न्यारी
श्याम जन्मा री
की शुभ दिन आया है

आज ख़ुशी है भारी,
श्याम जन्मा री
की शुभ दिन आया है

शुभ दिन आया है
शुभ दिन आया है

Aaj Khushi Hai Bhari, Shyam Janma Ri

Lalitya Munshaw

Krishna Bhajan List

Aaj Khushi Hai Bhari, Shyam Janma Ri

Aaj khushi hai bhari,
Shyam janma ri
Ki shubh din aaya hai

Aaj khushi hai bhari,
Shyam janma ri
Ki shubh din aaya hai


Gokul ki chhavi nyaari
Gokul ki chhavi nyaari
Shyam janma ri
Ki shubh din aaya hai

Aaj khushi hai bhari,
Shyam janma ri
Ki shubh din aaya hai


Vandan vaaro toran hai nyaare
(toran hai nyaare)
Saaje rangoli nand ji ke dvaare
(nand ji ke dvaare)

Vandan vaaro toran hai nyaare
Saaje rangoli nand ji ke dvaare

Saaj shringaar mana-bhawan
Mahak raha madhuban
Ki shubh din aaya hai

Aaj khushi hai bhari,
Shyaam janma ree
Ki shubh din aaya hai


Sone chaandi ke deepak jalao,
deepak jalao
Sab mil aao mangal gao,
mangal gao

Sone chaandi ke dipak jalao
Sab mil aao mangal gao

Jaaye Yashoda balihaari
Khushi se matavaari
Ki shubh din aaya hai

Aaj khushi hai bhari,
Shyaam janma ri
Ki shubh din aaya hai


Nand ke aangan ka hai ye ujaala,
woh hai ujaala.
Braj ka banega ye rakhavaala,
ye rakhavaala

Nand ke aangan ka hai ujaala
Braj ka banega ye rakhavaala

Ankhiya hai kajaraari,
Hai chitavan pyaari
Ki shubh din aaya hai

Aaj khushi hai bhari,
Shyaam janma ri
Ki shubh din aaya hai


Gokul ki chhavi nyaari
Gokul ki chhavi nyaari
Shyam janma ri
Ki shubh din aaya hai

Aaj khushi hai bhari,
Shyaam janma ri
Ki shubh din aaya hai

Shubh din aaya hai
Shubh din aaya hai

Aaj Khushiyon Ka Din Aaya – Lyrics in English


Aaj Khushiyon Ka Din Aaya

Aaj khushiyon ka din aaya,
naachenge ji bhar ke

Ho, aaj khushiyon ka din aaya
naachenge ji bhar ke

Mere Shyam ka darbaar rangeela,
hoti hai yahaan nit nayi lila

Bhakto ne khoob sajaaya,
naachenge ji bhar ke

Aaj khushiyon ka din aaya
naachenge ji bhar ke

Mand muskaan gale phoolo ki maala
Mera Shyam saare jag se niraala

Bhakto ko aap bulaaya,
naachenge ji bhar ke

Aaj khushiyon ka din aaya,
naachenge ji bhar ke

Apni kripa se ham sab ko bula le
Apni kripa ham sab pe barasa de

Bhakto ne mangal gaaya,
naachenge ji bhar ke

Aaj khushiyon ka din aaya
naachenge ji bhar ke

Chandra sakhi aaj tan man vaare
apne Shyam ka roop nihaare

Aaj sabne mangal gaya,
naachenge ji bhar ke

Aaj khushiyon ka din aaya,
naachenge ji bhar ke

Ho, aaj naachenge ji bhar ke
Aaj naachenge ji bhar ke

Jai Jai Shri Radhe
Bol Baanke Bihaari Laal ki Jai

Aaj khushiyon ka din aaya,
naachenge ji bhar ke


Aaj Khushiyon Ka Din Aaya

Alka Goyal


Krishna Bhajan



Aaj Khushiyon Ka Din Aaya – Lyrics in Hindi


आज खुशियों का दिन आया

आज खुशियों का दिन आया,
नाचेंगे जी भर के

हो, आज खुशियों का दिन आया,
नाचेंगे जी भर के


मेरे श्याम का दरबार रंगीला
होती है यहाँ नित नयी लीला

भक्तो ने खूब सजाया,
नाचेंगे जी भर के

आज खुशियों का दिन आया,
नाचेंगे जी भर के


मंद मुस्कान गले फूलो की माला
मेरा श्याम सारे जग से निराला

भक्तो को आप बुलाया,
नाचेंगे जी भर के

आज खुशियों का दिन आया,
नाचेंगे जी भर के


अपनी कृपा से हम सब को बुला ले
अपनी कृपा हम सब पे बरसा दे

भक्तो ने मंगल गाया,
नाचेंगे जी भर के

आज खुशियों का दिन आया,
नाचेंगे जी भर के


चन्द्र सखी आज तन मन वारे
अपने श्याम का रूप निहारे

आज सबने मंगल गाया,
नाचेंगे जी भर के

आज खुशियों का दिन आया,
नाचेंगे जी भर के


हो, आज नाचेंगे जी भर के
आज नाचेंगे जी भर के

जय जय श्री राधे
बोल बांकेबिहारी लाल की जय

आज खुशियों का दिन आया,
नाचेंगे जी भर के


Aaj Khushiyon Ka Din Aaya

Alka Goyal


Krishna Bhajan



Shri Krishna Janmashtami Katha


जन्माष्टमी व्रत कथा – भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा


इंद्र ने नारदजी से पूछा –
हे ब्रह्मपुत्र, हे मुनियों में श्रेष्ठ, सभी शास्त्रों के ज्ञाता, हे देव, व्रतों में उत्तम उस व्रत को बताएँ, जिस व्रतसे मनुष्यों को मुक्ति और लाभ प्राप्त हो। तथा हे ब्रह्मन्‌! उस व्रत से प्राणियों को भोग व मोक्ष भी प्राप्त हो जाए।

इंद्र की बातों को सुनकर नारदजी ने कहा –
त्रेतायुग के अन्त में और द्वापर युग के प्रारंभ समय में निन्दितकर्म को करने वाला कंस नाम का एक अत्यंत पापी दैत्य हुआ। उस दुष्ट व नीच कर्मी दुराचारी कंस की देवकी नाम की एक सुंदर बहन थी और उसके गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र कंस का वध करेगा।

मधुसूदन मनमोहन माधव मुरलीमनोहर

नारदजी की बातें सुनकर इंद्र ने कहा –
हे महामते! उस दुराचारी कंस की कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। क्या यह संभव है कि देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र अपने मामा कंस की हत्या करेगा।

ज्योतिष ने कंस को कृष्ण के बारे में बताया

इंद्र की सन्देहभरी बातों को सुनकर नारदजी ने कहा –
हे अदितिपुत्र इंद्र! एक समय की बात है। उस दुष्ट कंस ने एक ज्योतिषी से पूछा कि ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ज्योतिर्विद! मेरी मृत्यु किस प्रकार और किसके द्वारा होगी।

ज्योतिषी बोले –
हे दानवों में श्रेष्ठ कंस! वसुदेव की धर्मपत्नी देवकी जो वाक्‌पटु है और आपकी बहन भी है। उसी के गर्भ से उत्पन्न उसका आठवां पुत्र जो कि शत्रुओं को भी पराजित कर इस संसार में ‘कृष्ण’ के नाम से विख्यात होगा, वही एक समय सूर्योदयकाल में आपका वध करेगा।


ज्योतिषी की बातें सुनकर कंस ने कहा –
हे दैवज, बुद्धिमानों में अग्रण्य अब आप यह बताएं कि देवकी का आठवां पुत्र किस मास में किस दिन मेरा वध करेगा।

ज्योतिषी बोले –
हे महाराज! माघ मास की शुक्ल पक्ष की तिथि को सोलह कलाओं से पूर्ण श्रीकृष्ण से आपका युद्ध होगा। उसी युद्ध में वे आपका वध करेंगे। इसलिए हे महाराज! आप अपनी रक्षा यत्नपूर्वक करें।

इतना बताने के पश्चात नारदजी ने इंद्र से कहा –
ज्योतिषी द्वारा बताए गए समय पर ही कंस की मृत्यु कृष्ण के हाथ निःसंदेह होगी।

तब इंद्र ने कहा –
हे मुनि! उस दुराचारी कंस की कथा का वर्णन कीजिए और बताइए कि कृष्ण का जन्म कैसे होगा तथा कंस की मृत्यु कृष्ण द्वारा किस प्रकार होगी।


इंद्र की बातों को सुनकर नारदजी ने पुनः कहना प्रारंभ किया –
उस दुराचारी कंस ने अपने एक द्वारपाल से कहा – मेरी इस प्राणों से प्रिय बहन की पूर्ण सुरक्षा करना।

द्वारपाल ने कहा – ऐसा ही होगा।

कंस के जाने के पश्चात उसकी छोटी बहन दुःखित होते हुए जल लेने के बहाने घड़ा लेकर तालाब पर गई। उस तालाब के किनारे एक घनघोर वृक्ष के नीचे बैठकर देवकी रोने लगी।


यशोदा और देवकी

उसी समय एक सुंदर स्त्री जिसका नाम यशोदा था, उसने आकर देवकी से प्रिय वाणी में कहा – हे कान्ते! इस प्रकार तुम क्यों विलाप कर रही हो। अपने रोने का कारण मुझसे बताओ।

तब देवकी ने यशोदा से कहा –
हे बहन! नीच कर्मों में आसक्त दुराचारी मेरा ज्येष्ठ भ्राता कंस है। उस दुष्ट भ्राता ने मेरे कई पुत्रों का वध कर दिया। इस समय मेरे गर्भ में आठवाँ पुत्र है। वह इसका भी वध कर डालेगा। इस बात में किसी प्रकार का संशय या संदेह नहीं है, क्योंकि मेरे ज्येष्ठ भ्राता को यह भय है कि मेरे अष्टम पुत्र से उसकी मृत्यु अवश्य होगी।


देवकी की बातें सुनकर यशोदा ने कहा –
हे बहन! विलाप मत करो। मैं भी गर्भवती हूँ। यदि मुझे कन्या हुई तो तुम अपने पुत्र के बदले उस कन्या को ले लेना। इस प्रकार तुम्हारा पुत्र कंस के हाथों मारा नहीं जाएगा।

तदनन्तर कंस ने अपने द्वारपाल से पूछा –
देवकी कहाँ है? इस समय वह दिखाई नहीं दे रही है।

तब द्वारपाल ने कंस से नम्रवाणी में कहा –
हे महाराज! आपकी बहन जल लेने तालाब पर गई हुई हैं।

यह सुनते ही कंस क्रोधित हो उठा और उसने द्वारपाल को उसी स्थान पर जाने को कहा जहां वह गई हुई है।

द्वारपाल की दृष्टि तालाब के पास देवकी पर पड़ी। तब उसने कहा कि आप किस कारण से यहां आई हैं।

उसकी बातें सुनकर देवकी ने कहा कि मेरे गृह में जल नहीं था, जिसे लेने मैं जलाशय पर आई हूँ। इसके पश्चात देवकी अपने गृह की ओर चली गई।


कंस ने पुनः द्वारपाल से कहा कि इस गृह में मेरी बहन की तुम पूर्णतः रक्षा करो।

अब कंस को इतना भय लगने लगा कि गृह के भीतर दरवाजों में विशाल ताले बंद करवा दिए और दरवाजे के बाहर दैत्यों और राक्षसों को पहरेदारी के लिए नियुक्त कर दिया।

कंस हर प्रकार से अपने प्राणों को बचाने के प्रयास कर रहा था।

कृष्ण जन्म का शुभ मुहूर्त

एक समय सिंह राशि के सूर्य में आकाश मंडल में जलाधारी मेघों ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया।

भादो मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को घनघोर अर्द्धरात्रि थी।

उस समय चंद्रमा भी वृष राशि में था, रोहिणी नक्षत्र बुधवार के दिन सौभाग्ययोग से संयुक्त चंद्रमा के आधी रात में उदय होने पर आधी रात के उत्तर एक घड़ी जब हो जाए तो श्रुति-स्मृति पुराणोक्त फल निःसंदेह प्राप्त होता है।

इस प्रकार बताते हुए नारदजी ने इंद्र से कहा –
ऐसे विजय नामक शुभ मुहूर्त में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और श्रीकृष्ण के प्रभाव से ही उसी क्षण बन्दीगृह के दरवाजे स्वयं खुल गए।

द्वार पर पहरा देने वाले पहरेदार राक्षस सभी मूर्च्छित हो गए।

देवकी ने उसी क्षण अपने पति वसुदेव से कहा –
हे स्वामी! आप निद्रा का त्याग करें और मेरे इस अष्टम पुत्र को गोकुल में ले जाएँ, वहाँ इस पुत्र को नंद गोप की धर्मपत्नी यशोदा को दे दें।

उस समय यमुनाजी पूर्णरूपसे बाढ़ग्रस्त थीं, किन्तु जब वसुदेवजी बालक कृष्ण को सूप में लेकर यमुनाजी को पार करने के लिए उतरे उसी क्षण बालक के चरणों का स्पर्श होते ही यमुनाजी अपने पूर्व स्थिर रूप में आ गईं।

देवकीनंदन देवेश द्वारकाधीश गोविंदा

किसी प्रकार वसुदेवजी गोकुल पहुँचे और नंद के गृह में प्रवेश कर उन्होंने अपना पुत्र तत्काल उन्हें दे दिया और उसके बदले में उनकी कन्या ले ली।

वे तत्क्षण वहां से वापस आकर कंस के बंदी गृह में पहुँच गए।

प्रातःकाल जब सभी राक्षस पहरेदार निद्रा से जागे तो कंस ने द्वारपाल से पूछा कि अब देवकी के गर्भ से क्या हुआ? इस बात का पता लगाकर मुझे बताओ।

द्वारपालों ने महाराज की आज्ञा को मानते हुए कारागार में जाकर देखा तो वहाँ देवकी की गोद में एक कन्या थी। जिसे देखकर द्वारपालों ने कंस को सूचित किया, किन्तु कंस को तो उस कन्या से भय होने लगा।

अतः वह स्वयं कारागार में गया और उसने देवकी की गोद से कन्या को झपट लिया और उसे एक पत्थर की चट्टान पर पटक दिया किन्तु वह कन्या विष्णु की माया से आकाश की ओर चली गई और अंतरिक्ष में जाकर विद्युत के रूप में परिणित हो गई।

उसने कंस से कहा कि हे दुष्ट! तुझे मारने वाला गोकुल में नंद के गृह में उत्पन्न हो चुका है और उसी से तेरी मृत्यु सुनिश्चित है।


मेरा नाम तो वैष्णवी है, मैं संसार के कर्ता भगवान विष्णु की माया से उत्पन्न हुई हूँ, इतना कहकर वह स्वर्ग की ओर चली गई।

उस आकाशवाणी को सुनकर कंस क्रोधित हो उठा।

उसने नंदजी के गृह में पूतना राक्षसी को कृष्ण का वध करने के लिए भेजा किन्तु जब वह राक्षसी कृष्ण को स्तनपान कराने लगी तो कृष्ण ने उसके स्तन से उसके प्राणों को खींच लिया और वह राक्षसी कृष्ण-कृष्ण कहते हुए मृत्यु को प्राप्त हुई।

जब कंस को पूतना की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ तो उसने कृष्ण का वध करने के लिए क्रमशः केशी नामक दैत्य को अश्व के रूप में उसके पश्चात अरिष्ठ नामक दैत्य को बैल के रूप में भेजा, किन्तु ये दोनों भी कृष्ण के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए।

इसके पश्चात कंस ने काल्याख्य नामक दैत्य को कौवे के रूप में भेजा, किन्तु वह भी कृष्ण के हाथों मारा गया।

अपने बलवान राक्षसों की मृत्यु के आघात से कंस अत्यधिक भयभीत हो गया।

कृष्ण का कालिया नाग मर्दन

उसने द्वारपालों को आज्ञा दी कि नंद को तत्काल मेरे समक्ष उपस्थित करो।

द्वारपाल नंद को लेकर जब उपस्थित हुए तब कंस ने नंदजी से कहा कि यदि तुम्हें अपने प्राणों को बचाना है तो पारिजात के पुष्प ले आओ। यदि तुम नहीं ला पाए तो तुम्हारा वध निश्चित है।

कंस की बातों को सुनकर नंद ने ‘ऐसा ही होगा’ कहा और अपने गृह की ओर चले गए।

घर आकर उन्होंने संपूर्ण वृत्तांत अपनी पत्नी यशोदा को सुनाया, जिसे श्रीकृष्ण भी सुन रहे थे।

एक दिन श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद खेल रहे थे और अचानक स्वयं ने ही गेंद को यमुना में फेंक दिया। यमुना में गेंद फेंकने का मुख्य उद्देश्य यही था कि वे किसी प्रकार पारिजात पुष्पों को ले आएँ। अतः वे कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर यमुना में कूद पड़े।

कृष्ण के यमुना में कूदने का समाचार श्रीधर नामक गोपाल ने यशोदा को सुनाया। यह सुनकर यशोदा भागती हुई यमुना नदी के किनारे आ पहुँचीं और उसने यमुना नदी की प्रार्थना करते हुए कहा – हे यमुना! यदि मैं बालक को देखूँगी तो भाद्रपद मास की रोहिणी युक्त अष्टमी का व्रत अवश्य करूंगी क्योंकि दया, दान, सज्जन प्राणी, ब्राह्मण कुल में जन्म, रोहिणियुक्त अष्टमी, गंगाजल, एकादशी, गया श्राद्ध और रोहिणी व्रत ये सभी दुर्लभ हैं।

हजारों अश्वमेध यज्ञ, सहस्रों राजसूय यज्ञ, दान तीर्थ और व्रत करने से जो फल प्राप्त होता है, वह सब कृष्णाष्टमी के व्रत को करने से प्राप्त हो जाता है।


यह बात नारद ऋषि ने इंद्र से कही।

इंद्र ने कहा- हे मुनियों में श्रेष्ठ नारद! यमुना नदी में कूदने के बाद उस बालरूपी कृष्ण ने पाताल में जाकर क्या किया? यह संपूर्ण वृत्तांत भी बताएँ।

नारद ने कहा- हे इंद्र! पाताल में उस बालक से नागराज की पत्नी ने कहा कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो, कहाँ से आए हो और यहाँ आने का क्या प्रयोजन है?

नागपत्नी बोलीं- हे कृष्ण! क्या तूने द्यूतक्रीड़ा की है, जिसमें अपना समस्त धन हार गया है। यदि यह बात ठीक है तो कंकड़, मुकुट और मणियों का हार लेकर अपने गृह में चले जाओ क्योंकि इस समय मेरे स्वामी शयन कर रहे हैं। यदि वे उठ गए तो वे तुम्हारा भक्षण कर जाएँगे।

नागपत्नी की बातें सुनकर कृष्ण ने कहा- ‘हे कान्ते! मैं किस प्रयोजन से यहाँ आया हूँ, वह वृत्तांत मैं तुम्हें बताता हूँ। समझ लो मैं कालियानाग के मस्तक को कंस के साथ द्यूत में हार चुका हूं और वही लेने मैं यहाँ आया हूँ।

चतुर्भुज गोविंदा देवकीनंदन द्वारकाधीश

बालक कृष्ण की इस बात को सुनकर नागपत्नी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और अपने सोए हुए पति को उठाते हुए उसने कहा – हे स्वामी! आपके घर यह शत्रु आया है। अतः आप इसका हनन कीजिए।

अपनी स्वामिनी की बातों को सुनकर कालियानाग निन्द्रावस्था से जाग पड़ा और बालक कृष्ण से युद्ध करने लगा।

इस युद्ध में कृष्ण को मूर्च्छा आ गई, उसी मूर्छा को दूर करने के लिए उन्होंने गरुड़ का स्मरण किया। स्मरण होते ही गरुड़ वहाँ आ गए। श्रीकृष्ण अब गरुड़ पर चढ़कर कालियानाग से युद्ध करने लगे और उन्होंने कालियनाग को युद्ध में पराजित कर दिया।

अब कलियानाग ने भलीभांति जान लिया था कि मैं जिनसे युद्ध कर रहा हूँ, वे भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ही हैं।

अतः उन्होंने कृष्ण के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया और पारिजात से उत्पन्न बहुत से पुष्पों को मुकुट में रखकर कृष्ण को भेंट किया।

जब कृष्ण चलने को हुए तब कालियानाग की पत्नी ने कहा हे स्वामी! मैं कृष्ण को नहीं जान पाई। हे जनार्दन मंत्र रहित, क्रिया रहित, भक्तिभाव रहित मेरी रक्षा कीजिए। हे प्रभु! मेरे स्वामी मुझे वापस दे दें।

तब श्रीकृष्ण ने कहा- हे सर्पिणी! दैत्यों में जो सबसे बलवान है, उस कंस के सामने मैं तेरे पति को ले जाकर छोड़ दूँगा अन्यथा तुम अपने गृह को चली जाओ। अब श्रीकृष्ण कालियानाग के फन पर नृत्य करते हुए यमुना के ऊपर आ गए।

तदनन्तर कालिया की फुंकार से तीनों लोक कम्पायमान हो गए। अब कृष्ण कंस की मथुरा नगरी को चल दिए। वहां कमलपुष्पों को देखकर यमुनाके मध्य जलाशय में वह कालिया सर्प भी चला गया।


इधर कंस भी विस्मित हो गया तथा कृष्ण प्रसन्नचित्त होकर गोकुल लौट आए।

उनके गोकुल आने पर उनकी माता यशोदा ने विभिन्न प्रकार के उत्सव किए।

अब इंद्र ने नारदजी से पूछा- हे महामुने! संसार के प्राणी बालक श्रीकृष्ण के आने पर अत्यधिक आनंदित हुए। आखिर श्रीकृष्ण ने क्या-क्या चरित्र किया? वह सभी आप मुझे बताने की कृपा करें।

कृष्ण एवं चाणूर का मल्लयुद्ध

नारद ने इंद्र से कहा- मन को हरने वाला मथुरा नगर यमुना नदी के दक्षिण भाग में स्थित है। वहां कंस का महाबलशायी भाई चाणूर रहता था। उस चाणूर से श्रीकृष्ण के मल्लयुद्ध की घोषणा की गई।

हे इंद्र! कृष्ण एवं चाणूर का मल्लयुद्ध अत्यंत आश्चर्यजनक था। चाणूर की अपेक्षा कृष्ण बालरूप में थे। भेरी शंख और मृदंग के शब्दों के साथ कंस और केशी इस युद्ध को मथुरा की जनसभा के मध्य में देख रहे थे। श्रीकृष्ण ने अपने पैरों को चाणूर के गले में फँसाकर उसका वध कर दिया। चाणूर की मृत्यु के पश्चात उनका मल्लयुद्ध केशी के साथ हुआ।

अंत में केशी भी युद्ध में कृष्ण के द्वारा मारा गया। केशी के मृत्युपरांत मल्लयुद्ध देख रहे सभी प्राणी श्रीकृष्ण की जय-जयकार करने लगे।

बालक कृष्ण द्वारा चाणूर और केशी का वध होना कंस के लिए अत्यंत हृदय विदारक था।

अतः उसने सैनिकों को बुलाकर उन्हें आज्ञा दी कि तुम सभी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर कृष्ण से युद्ध करो।

हे इंद्र! उसी क्षण श्रीकृष्ण ने गरुड़, बलराम तथा सुदर्शन चक्र का ध्यान किया, जिसके परिणामस्वरूप बलदेवजी सुदर्शन चक्र लेकर गरुड़ पर आरूढ़ होकर आए। उन्हें आता देख बालक कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को उनसे लेकर स्वयं गरुड़ की पीठ पर बैठकर न जाने कितने ही राक्षसों और दैत्यों का वध कर दिया, कितनों के शरीर अंग-भंग कर दिए।

इस युद्ध में श्रीकृष्ण और बलदेव ने असंख्य दैत्यों का वध किया। बलरामजी ने अपने आयुध शस्त्र हल से और कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को विशाल दैत्यों के समूह का सर्वनाश किया।

दुराचारी कंस का वध

जब अन्त में केवल दुराचारी कंस ही बच गया तो कृष्ण ने कहा- हे दुष्ट, अधर्मी, दुराचारी अब मैं इस महायुद्ध स्थल पर तुझसे युद्ध कर तथा तेरा वध कर इस संसार को तुझसे मुक्त कराऊँगा।

यह कहते हुए श्रीकृष्ण ने उसके केशों को पकड़ लिया और कंस को घुमाकर पृथ्वी पर पटक दिया, जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। कंस के मरने पर देवताओं ने शंखघोष व पुष्पवृष्टि की।

वहां उपस्थित समुदाय श्रीकृष्ण की जय-जयकार कर रहा था। कंस की मृत्यु पर नंद, देवकी, वसुदेव, यशोदा और इस संसार के सभी प्राणियों ने हर्ष पर्व मनाया।


Krishna Bhajan



Shri Krishna Janmashtami Katha

Rakesh Kala


Krishna Bhajan



Shri Banke Bihari Teri Aarti – Lyrics in Hindi with Meanings


श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
(हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ)

आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ॥
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ


मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे,
प्यारी बंसी मेरो मन मोहे।
देख छवि बलिहारी मैं जाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


चरणों से निकली गंगा प्यारी,
जिसने सारी दुनिया तारी।
मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


दास अनाथ के नाथ आप हो,
दुःख सुख जीवन प्यारे साथ आप हो।
हरी चरणों में शीश झुकाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


श्री हरीदास के प्यारे तुम हो,
मेरे मोहन जीवन धन हो।
देख युगल छवि बलि बलि जाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ,
हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ,
आरती गाऊं प्यारे तुमको रिझाऊं।

कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


Shri Banke Bihari Teri Aarti

Shri Mridul Krishna Shastri


Krishna Bhajan



श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ भजन का आध्यात्मिक अर्थ

ये भजन गीत भगवान कृष्ण की स्तुति में हैं, विशेष रूप से उनके विभिन्न दिव्य गुणों पर प्रकाश डालता हैं और उनके प्रति भक्ति व्यक्त करता हैं।

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ, कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ, आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ॥

मैं आपके लिए आरती गाता हूं, भगवान कृष्ण। बांके बिहारी, कुंज बिहारी भगवान् कृष्ण के नाम है, जिन्हे शांत और सुंदर उपवन (कुंज) पसंद हैं। मैं आपकी दिव्य उपस्थिति में लीन होने के लिए प्रेम और भक्ति के साथ यह आरती प्रस्तुत करता हूं।

यह पंक्तिया भक्त की भगवान कृष्ण की पूजा और भक्ति के रूप में आरती गाने की इच्छा व्यक्त करती है, जिन्हें प्यार से बांके बिहारी और कुंज बिहारी के नाम से जाना जाता है।

मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे, प्यारी बंसी मेरो मन मोहे। देख छवि बलिहारी मैं जाऊँ।

हे भगवान, मोर का पंख आपके सिर पर बहुत सुंदर रूप से सुशोभित है, और आपकी बांसुरी की मधुर ध्वनि मेरे दिल को मोहित कर लेती है। आपके दिव्य रूप को देखकर, मैं पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो गया हूं और खुद को समर्पित कर रहा हूं।

इन पंक्तियों में, गायक ने भगवान कृष्ण के स्वरूप के कुछ आकर्षक पहलुओं का वर्णन किया है, जैसे उनके मुकुट पर मोर पंख और उनकी बांसुरी की मधुर धुन। भक्त उनकी दिव्य उपस्थिति से मुग्ध और अभिभूत होने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

चरणों से निकली गंगा प्यारी, जिसने सारी दुनिया तारी। मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ।

हे प्रभु, प्रिय नदी गंगा आपके चरणों से निकलती है। आप ही संपूर्ण जगत का पालन-पोषण करने वाले हैं। मैं आपके चरणकमलों को देखने का सौभाग्यशाली अवसर पाने के लिए उत्सुक हूँ।

यह श्लोक पवित्र नदी गंगा के स्रोत के रूप में भगवान कृष्ण की प्रशंसा करता है, और संपूर्ण ब्रह्मांड के निर्वाहक के रूप में उनकी सर्वोच्च शक्ति और अधिकार पर जोर देता है। भक्त कृष्ण के दिव्य चरणों के दर्शन की हार्दिक इच्छा व्यक्त करते हैं, जिन्हें बेहद पवित्र और पवित्र करने वाला माना जाता है।

दास अनाथ के नाथ आप हो, दुःख सुख जीवन प्यारे साथ आप हो। हरी चरणों में शीश झुकाऊँ।

तुम ही असहायों और अनाथों के स्वामी हो, और तुम ही जीवन में दुःख और सुख दोनों के साथी हो। मैं विनम्रतापूर्वक भगवान हरि (कृष्ण का दूसरा नाम) के चरणों में झुकता हूं।

इन पंक्तियों में, भक्त उन लोगों के रक्षक और देखभालकर्ता के रूप में भगवान कृष्ण में अपनी गहरी आस्था व्यक्त करते हैं जो असहाय हैं और जिनके पास भरोसा करने के लिए कोई और नहीं है। वे स्वीकार करते हैं कि कृष्ण उनके निरंतर साथी हैं, जो जीवन के सभी उतार-चढ़ाव में उनका साथ देते हैं। भक्त विनम्रतापूर्वक अपने आप को भगवान हरि के कमल चरणों में समर्पित कर देते हैं, उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन चाहते हैं।

श्री हरीदास के प्यारे तुम हो, मेरे मोहन जीवन धन हो। देख युगल छवि बलि बलि जाऊँ।

आप श्री हरिदास (कृष्ण के भक्त) के प्रिय हैं, और आप मेरे जीवन की सच्ची संपत्ति हैं, मेरे प्रिय। मैं दिव्य जोड़े (कृष्ण और राधा) की दिव्य छवि से पूरी तरह मंत्रमुग्ध हूं, और मैं भक्ति में अपना सब कुछ अर्पित करने के लिए तैयार हूं।

इन पंक्तियों में, भक्त भगवान कृष्ण को उनके भक्त श्री हरिदास के प्रिय के रूप में संबोधित करते हैं। वे कृष्ण को अपने जीवन का सबसे मूल्यवान और पोषित खजाना मानते हैं। भक्त कृष्ण और राधा की एक साथ दिव्य छवि (युगल छवि) से मोहित हो जाता है, जो आत्माओं के दिव्य मिलन का प्रतीक है। वे दिव्य जोड़े की भक्ति में खुद को पूरी तरह से समर्पित करने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

कुल मिलाकर, ये भजन गीत भगवान कृष्ण के प्रति भक्त के गहरे प्रेम, समर्पण और श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। भक्त कृष्ण को जरूरत के समय दयालु और देखभाल करने वाले रक्षक और जीवन में खुशी और सांत्वना के अंतिम स्रोत के रूप में देखते हैं। उनकी भक्ति हार्दिक और वास्तविक है, और उन्हें श्री बांके बिहारी की आरती गाने में अत्यधिक आनंद मिलता है।

इस तरह यह भजन भक्तों के लिए अपने देवता के प्रति आराधना और श्रद्धा की भावनाओं को व्यक्त करने, उनके आध्यात्मिक संबंध को मजबूत करने और भक्ति और शांति की भावना को बढ़ावा देने का एक तरीका है।


Krishna Bhajan