शिव पुराण - रुद्र संहिता - सृष्टि खण्ड - 13


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विभिन्न पुष्पों, अन्नों तथा जलादिकी धाराओंसे शिवजीकी पूजाका माहात्म्य

ब्रह्माजी बोले—नारद! जो लक्ष्मी-प्राप्तिकी इच्छा करता हो, वह कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शंखपुष्पसे भगवान् शिवकी पूजा करे।

ब्रह्मन्! यदि एक लाखकी संख्यामें इन पुष्पोंद्वारा भगवान् शिवकी पूजा सम्पन्न हो जाय तो सारे पापोंका नाश होता है और लक्ष्मीकी भी प्राप्ति हो जाती है, इसमें संशय नहीं है।

प्राचीन पुरुषोंने बीस कमलोंका एक प्रस्थ बताया है।

एक सहस्र बिल्वपत्रोंको भी एक प्रस्थ कहा गया है।

एक सहस्र शतपत्रसे आधे प्रस्थकी परिभाषा की गयी है।

सोलह पलोंका एक प्रस्थ होता है और दस टंकोंका एक पल।

इस मानसे पत्र, पुष्प आदिको तौलना चाहिये।

जब पूर्वोक्त संख्यावाले पुष्पोंसे शिवकी पूजा हो जाती है, तब सकाम पुरुष अपने सम्पूर्ण अभीष्टको प्राप्त कर लेता है।

यदि उपासकके मनमें कोई कामना न हो तो वह पूर्वोक्त पूजनसे शिवस्वरूप हो जाता है।

मृत्युंजय-मन्त्रका जब पाँच लाख जप पूरा हो जाता है, तब भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं।

एक लाखके जपसे शरीरकी शुद्धि होती है, दूसरे लाखके जपसे पूर्वजन्मकी बातोंका स्मरण होता है, तीसरे लाख पूर्ण होनेपर सम्पूर्ण काम्य वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।

चौथे लाखका जप होनेपर स्वप्नमें भगवान् शिवका दर्शन होता है और पाँचवें लाखका जप ज्यों ही पूरा होता है, भगवान् शिव उपासकके सम्मुख तत्काल प्रकट हो जाते हैं।

इसी मन्त्रका दस लाख जप हो जाय तो सम्पूर्ण फलकी सिद्धि होती है।

जो मोक्षकी अभिलाषा रखता है, वह (एक लाख) दर्भोंद्वारा शिवका पूजन करे।

मुनिश्रेष्ठ! सर्वत्र लाखकी ही संख्या समझनी चाहिये।

आयुकी इच्छावाला पुरुष एक लाख दूर्वाओंद्वारा पूजन करे।

जिसे पुत्रकी अभिलाषा हो, वह धतूरेके एक लाख फूलोंसे पूजा करे।

लाल डंठलवाला धतूरा पूजनमें शुभदायक माना गया है।

अगस्त्यके एक लाख फूलोंसे पूजा करनेवाले पुरुषको महान् यशकी प्राप्ति होती है।

यदि तुलसीदलसे शिवकी पूजा करे तो उपासकको भोग और मोक्ष दोनों सुलभ होते हैं।

लाल और सफेद आक, अपामार्ग और श्वेत कमलके एक लाख फूलोंद्वारा पूजा करनेसे भी उसी फल (भोग और मोक्ष)-की प्राप्ति होती है।

जपा (अड़हुल)-के एक लाख फूलोंसे की हुई पूजा शत्रुओंको मृत्यु देनेवाली होती है।

करवीरके एक लाख फूल यदि शिवपूजनके उपयोगमें लाये जायँ तो वे यहाँ रोगोंका उच्चाटन करनेवाले होते हैं।

बन्धूक (दुपहरिया)-के फूलोंद्वारा पूजन करनेसे आभूषणकी प्राप्ति होती है।

चमेलीसे शिवकी पूजा करके मनुष्य वाहनोंको उपलब्ध करता है, इसमें संशय नहीं है।

अलसीके फूलोंसे महादेवजीका पूजन करनेवाला पुरुष भगवान् विष्णुको प्रिय होता है।

शमीपत्रोंसे पूजा करके मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

बेलाके फूल चढ़ानेपर भगवान् शिव अत्यन्त शुभलक्षणा पत्नी प्रदान करते हैं।

जूहीके फूलोंसे पूजा की जाय तो घरमें कभी अन्नकी कमी नहीं होती।

कनेरके फूलोंसे पूजा करनेपर मनुष्योंको वस्त्रकी प्राप्ति होती है।

सेदुआरि या शेफालिकाके फूलोंसे शिवका पूजन किया जाय तो मन निर्मल होता है।

एक लाख बिल्वपत्र चढ़ानेपर मनुष्य अपनी सारी काम्य वस्तुएँ प्राप्त कर लेता है।

शृंगारहार (हरसिंगार)-के फूलोंसे पूजा करनेपर सुख-सम्पत्तिकी वृद्धि होती है।

वर्तमान ऋतुमें पैदा होनेवाले फूल यदि शिवकी सेवामें समर्पित किये जायँ तो वे मोक्ष देनेवाले होते हैं, इसमें संशय नहीं है।

राईके फूल शत्रुओंको मृत्यु प्रदान करनेवाले होते हैं।

इन फूलोंको एक-एक लाखकी संख्यामें शिवके ऊपर चढ़ाया जाय तो भगवान् शिव प्रचुर फल प्रदान करते हैं।

चम्पा और केवड़ेको छोड़कर शेष सभी फूल भगवान् शिवको चढ़ाये जा सकते हैं।

विप्रवर! महादेवजीके ऊपर चावल चढ़ानेसे मनुष्योंकी लक्ष्मी बढ़ती है।

ये चावल अखण्डित होने चाहिये और इन्हें उत्तम भक्तिभावसे शिवके ऊपर चढ़ाना चाहिये।

रुद्रप्रधान मन्त्रसे पूजा करके भगवान् शिवके ऊपर बहुत सुन्दर वस्त्र चढ़ाये और उसीपर चावल रखकर समर्पित करे तो उत्तम है।

भगवान् शिवके ऊपर गन्ध, पुष्प आदिके साथ एक श्रीफल चढ़ाकर धूप आदि निवेदन करे तो पूजाका पूरा-पूरा फल प्राप्त होता है।

वहाँ शिवके समीप बारह ब्राह्मणोंको भोजन कराये।

इससे मन्त्रपूर्वक सांगोपांग लक्ष पूजा सम्पन्न होती है।

जहाँ सौ मन्त्र जपनेकी विधि हो, वहाँ एक सौ आठ मन्त्र जपनेका विधान किया गया है।

तिलोंद्वारा शिवजीको एक लाख आहुतियाँ दी जायँ अथवा एक लाख तिलोंसे शिवकी पूजा की जाय तो वह बड़े-बड़े पातकोंका नाश करनेवाली होती है।

जौद्वारा की हुई शिवकी पूजा स्वर्गीय सुखकी वृद्धि करनेवाली है, ऐसा ऋषियोंका कथन है।

गेहूँके बने हुए पकवानसे की हुई शंकरजीकी पूजा निश्चय ही बहुत उत्तम मानी गयी है।

यदि उससे लाख बार पूजा हो तो उससे संतानकी वृद्धि होती है।

यदि मूँगसे पूजा की जाय तो भगवान् शिव सुख प्रदान करते हैं।

प्रियंगु (कँगनी)-द्वारा सर्वाध्यक्ष परमात्मा शिवका पूजन करनेमात्रसे उपासकके धर्म, अर्थ और काम-भोगकी वृद्धि होती है तथा वह पूजा समस्त सुखोंको देनेवाली होती है।

अरहरके पत्तोंसे शृंगार करके भगवान् शिवकी पूजा करे।

यह पूजा नाना प्रकारके सुखों और सम्पूर्ण फलोंको देनेवाली है।

मुनिश्रेष्ठ! अब फूलोंकी लक्ष संख्याका तौल बताया जा रहा है।

प्रसन्नतापूर्वक सुनो।

सूक्ष्म मानका प्रदर्शन करनेवाले व्यासजीने एक प्रस्थ शंखपुष्पको एक लाख बताया है।

ग्यारह प्रस्थ चमेलीके फूल हों तो वही एक लाख फूलोंका मान कहा गया है।

जूहीके एक लाख फूलोंका भी वही मान है।

राईके एक लाख फूलोंका मान साढ़े पाँच प्रस्थ है।

उपासकको चाहिये कि वह निष्काम होकर मोक्षके लिये भगवान् शिवकी पूजा करे।

भक्तिभावसे विधिपूर्वक शिवकी पूजा करके भक्तोंको पीछे जलधारा समर्पित करनी चाहिये।

ज्वरमें जो मनुष्य प्रलाप करने लगता है, उसकी शान्तिके लिये जलधारा शुभकारक बतायी गयी है।

शत-रुद्रिय मन्त्रसे, रुद्रीके ग्यारह पाठोंसे, रुद्रमन्त्रोंके जपसे, पुरुषसूक्तसे, छः ऋचावाले रुद्रसूक्तसे, महामृत्युंजयमन्त्रसे, गायत्री-मन्त्रसे अथवा शिवके शास्त्रोक्त नामोंके आदिमें प्रणव और अन्तमें ‘नमः’ पद जोड़कर बने हुए मन्त्रोंद्वारा जलधारा आदि अर्पित करनी चाहिये।

सुख और संतानकी वृद्धिके लिये जलधाराद्वारा पूजन उत्तम बताया गया है।

उत्तम भस्म धारण करके उपासकको प्रेमपूर्वक नाना प्रकारके शुभ एवं दिव्य द्रव्योंद्वारा शिवकी पूजा करनी चाहिये और शिवपर उनके सहस्रनाम मन्त्रोंसे घीकी धारा चढ़ानी चाहिये।

ऐसा करनेपर वंशका विस्तार होता है, इसमें संशय नहीं है।

इसी प्रकार यदि दस हजार मन्त्रोंद्वारा शिवजीकी पूजा की जाय तो प्रमेह रोगकी शान्ति होती है और उपासकको मनोवांछित फलकी प्राप्ति हो जाती है।

यदि कोई नपुंसकताको प्राप्त हो तो वह घीसे शिवजीकी भलीभाँति पूजा करे तथा ब्राह्मणोंको भोजन कराये।

साथ ही उसके लिये मुनीश्वरोंने प्राजापत्य व्रतका भी विधान किया है।

यदि बुद्धि जड हो जाय तो उस अवस्थामें पूजकको केवल शर्करामिश्रित दुग्धकी धारा चढ़ानी चाहिये।

ऐसा करनेपर उसे बृहस्पतिके समान उत्तम बुद्धि प्राप्त हो जाती है।

जबतक दस हजार मन्त्रोंका जप पूरा न हो जाय, तबतक पूर्वोक्त दूग्धधारा-द्वारा भगवान् शिवका उत्कृष्ट पूजन चालू रखना चाहिये।

जब तन-मनमें अकारण ही उच्चाटन होने लगे—जी उचट जाय, कहीं भी प्रेम न रहे, दुःख बढ़ जाय और अपने घरमें सदा कलह रहने लगे, तब पूर्वोक्त-रूपसे दूधकी धारा चढ़ानेसे सारा दुःख नष्ट हो जाता है।

सुवासित तेलसे पूजा करनेपर भोगोंकी वृद्धि होती है।

यदि मधुसे शिवकी पूजा की जाय तो राज-यक्ष्माका रोग दूर हो जाता है।

यदि शिवपर ईखके रसकी धारा चढ़ायी जाय तो वह भी सम्पूर्ण आनन्दकी प्राप्ति करानेवाली होती है।

गंगाजलकी धारा तो भोग और मोक्ष दोनों फलोंको देनेवाली है।

ये सब जो-जो धाराएँ बतायी गयी हैं, इन सबको मृत्युंजयमन्त्रसे चढ़ाना चाहिये, उसमें भी उक्त मन्त्रका विधानतः दस हजार जप करना चाहिये और ग्यारह ब्राह्मणोंको भोजन कराना चाहिये। (अध्याय १४)


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