Dwadash Jyotirling Stotra – with Meaning


Dwadash Jyotirling Stotra with Meaning in Hindi

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में 13 श्लोक है और
इस स्तोत्र में भारत में स्थित
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का
वर्णन किया गया है।

हर एक श्लोक में
एक ज्योतिर्लिंग का वर्णन है और
अंतिम श्लोक में इस स्तोत्र के पाठ का लाभ बताया गया है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के इस पोस्ट में –

पहले स्तोत्र अर्थसहित दिया गया है, बाद में
शिवपुराण से द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगोंका वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा दी गयी है और अंत में
सम्पूर्ण ज्योतिर्लिंग स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है।


द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – अर्थसहित

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥1॥

जो अपनी भक्ति प्रदान करनेके लिये
अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में
दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं,
चन्द्रमा जिनके मस्तकका आभूषण है,
उन ज्योतिर्लिंगस्वरूप भगवान् श्रीसोमनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥1॥


श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥2॥

जो ऊँचाईके आदर्शभूत पर्वतोंसे भी बढ़कर ऊँचे श्रीशैलके शिखरपर,
जहाँ देवताओंका अत्यन्त समागम होता रहता है,
प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा
जो संसार-सागरसे पार करानेके लिये पुलके समान हैं,
उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुनको मैं नमस्कार करता हूँ॥2॥


श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

अवन्तिकायां विहितावतारं
मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकालमहासुरेशम्॥3॥

संतजनोंको मोक्ष देनेके लिये
जिन्होंने अवन्तिपुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है,
उन महाकाल नामसे विख्यात महादेवजीको
मैं अकालमृत्युसे बचनेके लिये नमस्कार करता हूँ॥3॥


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे
समागमे सज्जनतारणाय।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्त-
मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे॥4॥

जो सत्पुरुषोंको संसार-सागरसे पार उतारनेके लिये
कावेरी और नर्मदाके पवित्र संगमके निकट
मान्धाताके पुरमें सदा निवास करते हैं,
उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान् ॐकारेश्वरका मैं स्तवन करता हूँ॥4॥


श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने
सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि॥5॥

जो पूर्वोत्तर दिशामें चिताभूमि (वैद्यनाथ-धाम) के भीतर
सदा ही गिरिजाके साथ वास करते हैं,
देवता और असुर जिनके चरण कमलोंकी आराधना करते हैं,
उन श्रीवैद्यनाथको मैं प्रणाम करता हूँ॥5॥


श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये॥6॥

जो दक्षिणके अत्यन्त रमणीय सदंग नगरमें
विविध भोगोंसे सम्पन्न होकर
सुन्दर आभूषणोंसे भूषित हो रहे हैं,
जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्तिको देनेवाले हैं,
उन प्रभु श्रीनागनाथकी मैं शरणमें जाता हूँ॥6॥


श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः
केदारमीशं शिवमेकमीडे॥7॥

जो महागिरि हिमालयके पास केदारशृंगके तटपर
सदा निवास करते हुए मुनीश्वरोंद्वारा पूजित होते हैं
तथा देवता, असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं,
उन एक कल्याणकारक भगवान् केदारनाथका मैं स्तवन करता हूँ॥7॥


श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरितीरपवित्रदेशे।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे॥8॥

जो गोदावरीतटके पवित्र देशमें
सह्यपर्वतके विमल शिखरपर वास करते हैं,
जिनके दर्शनसे तुरंत ही पातक नष्ट हो जाता है,
उन श्रीत्र्यम्बकेश्वरका मैं स्तवन करता हूँ॥8॥


श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि॥9॥

जो भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके द्वारा ताम्रपर्णी और सागरके संगमपर
अनेक बाणोंद्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गये हैं,
उन श्रीरामेश्वरको मैं नियमसे प्रणाम करता हूँ॥9॥


श्री भीमांशंकर ज्योतिर्लिंग

यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं
शङ्करं भक्तहितं नमामि॥10॥

जो डाकिनी और शाकिनीवृन्दमें प्रेतोंद्वारा सदैव सेवित होते हैं,
उन भक्तहितकारी भगवान् भीमशंकरको मैं प्रणाम करता हूँ॥10॥


श्री विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

सानन्दमानन्दवने वसन्त-
मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥11॥

जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनन्दपूर्वक
आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं,
जो पापसमूहके नाश करनेवाले हैं,
उन अनाथोंके नाथ काशीपति श्रीविश्वनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥11॥


श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरस्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये॥12॥

जो इलापुरके सुरम्य मन्दिरमें विराजमान होकर
समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं,
जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है,
उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान् शिवकी शरणमें मैं जाता हूँ॥12॥


द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के पाठ का महत्व

ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां
शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या
फलं तदालोक्य निजं भजेच्च॥13॥

यदि मनुष्य क्रमशः कहे गये
इन बारहों ज्योतिर्मय शिवलिंगोंके स्तोत्रका
भक्तिपूर्वक पाठ करे,
तो इनके दर्शनसे होनेवाले फलको प्राप्त कर सकता है॥13॥



द्वादश ज्योतिर्लिंगों का वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा – शिवपुराण से

Dwadash Jyotirling Stotra with Meaning
Dwadash Jyotirling Stotra

शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता खंड के अध्याय 1 में
द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगोंका वर्णन
एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा दी गयी है।

यो धत्ते निजमाययैव भुवनाकारं विकारोज्झितो
यस्याहुः करुणाकटाक्षविभवौ स्वर्गापवर्गाभिधौ।
प्रत्यग्बोधसुखाद्वयं हृदि सदा पश्यन्ति यं
योगिन- स्तस्मै शैलसुताञ्चितार्द्धवपुषे शश्वन्नमस्तेजसे॥१॥

अर्थ
जो निर्विकार होते हुए भी
अपनी मायासे ही विराट् विश्वका आकार धारण कर लेते हैं,
स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष) जिनके कृपा-कटाक्षके ही वैभव बताये जाते हैं
तथा योगीजन जिन्हें सदा अपने हृदयके भीतर
अद्वितीय आत्मज्ञानानन्द-स्वरूपमें ही देखते हैं,
उन तेजोमय भगवान् शंकरको,
जिनका आधा शरीर शैलराजकुमारी पार्वतीसे सुशोभित है,
निरन्तर मेरा नमस्कार है॥१॥

कृपाललितवीक्षणं स्मितमनोज्ञवक्त्राम्बुजं
शशाङ्ककलयोज्ज्वलं शमितघोरतापत्रयम् ।
करोतु किमपि स्फुरत्परमसौख्यसच्चिद्वपु-
र्धराधरसुताभुजोद्वलयितं महो मङ्गलम् ॥२॥

अर्थ
जिसकी कृपापूर्ण चितवन बड़ी ही सुन्दर है,
जिसका मुखारविन्द मन्द मुसकानकी छटासे अत्यन्त मनोहर दिखायी देता है,
जो चन्द्रमाकी कलासे परम उज्ज्वल है,
जो आध्यात्मिक आदि तीनों तापोंको शान्त कर देनेमें समर्थ है,
जिसका स्वरूप सच्चिन्मय एवं परमानन्दरूपसे प्रकाशित होता है
तथा जो गिरिराजनन्दिनी पार्वतीके भुजपाशसे आवेष्टित है,
वह शिव नामक कोई अनिर्वचनीय तेजःपुंज सबका मंगल करे ॥ २ ॥

ऋषि बोले –

सूतजी! आपने सम्पूर्ण लोकोंके हितकी कामनासे नाना प्रकारके आख्यानोंसे युक्त जो शिवावतारका माहात्म्य बताया है, वह बहुत ही उत्तम है।

तात! आप पुनः शिवके परम उत्तम माहात्म्यका तथा शिवलिंगकी महिमाका प्रसन्नतापूर्वक वर्णन कीजिये।

आप शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ हैं, अतः धन्य हैं।

प्रभो! आपके मुखारविन्दसे निकले हुए भगवान् शिवके सुरम्य यशरूपी अमृतका अपने कर्णपुटोंद्वारा पान करके हम तृप्त नहीं हो रहे हैं, अतः फिर उसीका वर्णन कीजिये।

व्यासशिष्य! भूमण्डलमें, तीर्थ-तीर्थमें जो-जो शुभ लिंग हैं अथवा अन्य स्थलोंमें भी जो-जो प्रसिद्ध शिवलिंग विराजमान हैं, परमेश्वर शिवके उन सभी दिव्य लिंगोंका समस्त लोकोंके हितकी इच्छासे आप वर्णन कीजिये।

सूतजीने कहा –

महर्षियो! सम्पूर्ण तीर्थ लिंगमय हैं।

सब कुछ लिंगमें ही प्रतिष्ठित है।

उन शिवलिंगोंकी कोई गणना नहीं है, तथापि मैं उनका किंचित् वर्णन करता हूँ।

जो कोई भी दृश्य देखा जाता है तथा जिसका वर्णन एवं स्मरण किया जाता है, वह सब भगवान् शिवका ही रूप है; कोई भी वस्तु शिवके स्वरूपसे भिन्न नहीं है।

साधुशिरोमणियो! भगवान् शम्भुने सब लोगोंपर अनुग्रह करनेके लिये ही देवता, असुर और मनुष्योंसहित तीनों लोकोंको लिंगरूपसे व्याप्त कर रखा है।

समस्त लोकोंपर कृपा करनेके उद्देश्यसे ही भगवान् महेश्वर तीर्थ-तीर्थमें और अन्य स्थलोंमें भी नाना प्रकारके लिंग धारण करते हैं।

जहाँ-जहाँ जब-जब भक्तोंने भक्तिपूर्वक भगवान् शम्भुका स्मरण किया, तहाँ-तहाँ तब-तब अवतार ले कार्य करके वे स्थित हो गये; लोकोंका उपकार करनेके लिये उन्होंने स्वयं अपने स्वरूपभूत लिंगकी कल्पना की।

उस लिंगकी पूजा करके शिवभक्त पुरुष अवश्य सिद्धि प्राप्त कर लेता है।

ब्राह्मणो! भूमण्डलमें जो लिंग हैं, उनकी गणना नहीं हो सकती; तथापि मैं प्रधान-प्रधान शिवलिंगोंका परिचय देता हूँ।

मुनिश्रेष्ठ शौनक! इस भूतलपर जो मुख्य-मुख्य ज्योतिर्लिंग हैं, उनका आज मैं वर्णन करता हूँ।

उनका नाम सुननेमात्रसे पाप दूर हो जाता है।

सौराष्ट्रमें सोमनाथ, श्रीशैलपर मल्लिकार्जुन, उज्जैनीमें महाकाल, ओंकारतीर्थमें परमेश्वर, हिमालयके शिखरपर केदार, डाकिनीमें भीमशंकर, वाराणसीमें विश्वनाथ, गोदावरीके तटपर त्र्यम्बक, चिताभूमिमें वैद्यनाथ, दारुकावनमें नागेश, सेतुबन्धमें रामेश्वर तथा शिवालयमें घुश्मेश्वरका स्मरण करे।

जो प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर इन बारह नामोंका पाठ करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो सम्पूर्ण सिद्धियोंका फल प्राप्त कर लेता है।

मुनीश्वरो! जिस-जिस मनोरथको पानेकी इच्छा रखकर श्रेष्ठ मनुष्य इन बारह नामोंका पाठ करेंगे, वे इस लोक और परलोकमें उस मनोरथको अवश्य प्राप्त करेंगे।

जो शुद्ध अन्तःकरणवाले पुरुष निष्कामभावसे इन नामोंका पाठ करेंगे, उन्हें कभी माताके गर्भमें निवास नहीं करना पड़ेगा।

इन सबके पूजनमात्रसे ही इहलोकमें समस्त वर्णोंके लोगोंके दुःखोंका नाश हो जाता है और परलोकमें उन्हें अवश्य मोक्ष प्राप्त होता है।

इन बारह ज्योतिर्लिंगोंका नैवेद्य यत्नपूर्वक ग्रहण करना (खाना) चाहिये।

ऐसा करनेवाले पुरुषके सारे पाप उसी क्षण जलकर भस्म हो जाते हैं।

यह मैंने ज्योतिर्लिंगोंके दर्शन और पूजनका फल बताया।

अब ज्योतिर्लिंगोंके उपलिंग बताये जाते हैं।

मुनीश्वरो! ध्यान देकर सुनो।

सोमनाथका जो उपलिंग है, उसका नाम अन्तकेश्वर है।

वह उपलिंग मही नदी और समुद्रके संगमपर स्थित है।

मल्लिकार्जुनसे प्रकट उपलिंग रुद्रेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है।

वह भृगुकक्षमें स्थित है और उपासकोंको सुख देनेवाला है।

महाकालसम्बन्धी उपलिंग दुग्धेश्वर या दूधनाथके नामसे प्रसिद्ध है।

वह नर्मदाके तटपर है तथा समस्त पापोंका निवारण करनेवाला कहा गया है।

ओंकारेश्वर-सम्बन्धी उपलिंग कर्दमेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है।

वह बिन्दु सरोवरके तटपर है और उपासकको सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करता है।

केदारेश्वरसम्बन्धी उपलिंग भूतेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है और यमुनातटपर स्थित है।

जो लोग उसका दर्शन और पूजन करते हैं, उनके बड़े-से-बड़े पापोंका वह निवारण करनेवाला बताया गया है।

भीमशंकरसम्बन्धी उपलिंग भीमेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है।

वह भी सह्य पर्वतपर ही स्थित है और महान् बलकी वृद्धि करनेवाला है।

नागेश्वरसम्बन्धी उपलिंगका नाम भी भूतेश्वर ही है, वह मल्लिका सरस्वतीके तटपर स्थित है और दर्शन करनेमात्रसे सब पापोंको हर लेता है।

रामेश्वरसे प्रकट हुए उपलिंगको गुप्तेश्वर और घुश्मेश्वरसे प्रकट हुए उपलिंगको व्याघ्रेश्वर कहा गया है।

ब्राह्मणो! इस प्रकार यहाँ मैंने ज्योतिर्लिंगोंके उपलिंगोंका परिचय दिया।

ये दर्शनमात्रसे पापहारी तथा सम्पूर्ण अभीष्टके दाता होते हैं।

मुनिवरो! ये मुख्यताको प्राप्त हुए प्रधान-प्रधान शिवलिंग बताये गये।

अब अन्य प्रमुख शिवलिंगोंका वर्णन सुनो।


द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥1॥

श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥2॥

अवन्तिकायां विहितावतारं
मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकालमहासुरेशम्॥3॥

कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे
समागमे सज्जनतारणाय।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्त-
मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे॥4॥

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने
सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि॥5॥

याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये॥6॥

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः
केदारमीशं शिवमेकमीडे॥7॥

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरितीरपवित्रदेशे।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे॥8॥

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि॥9॥

यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं
शङ्करं भक्तहितं नमामि॥10॥

सानन्दमानन्दवने वसन्त-
मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥11॥

इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरस्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये॥12॥

ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां
शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या
फलं तदालोक्य निजं भजेच्च॥13॥


Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan


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