शिव पुराण - रुद्र संहिता - पार्वती खण्ड - 16


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शिव पुराण संहिता लिंकविद्येश्वर | रुद्र संहिता | शतरुद्र | कोटिरुद्र | उमा | कैलास | वायवीय


पार्वतीकी तपस्याविषयक दृढ़ता, उनका पहलेसे भी उग्र तप, उससे त्रिलोकीका संतप्त होना तथा समस्त देवताओंके साथ ब्रह्मा और विष्णुका भगवान् शिवके स्थानपर जाना

ब्रह्माजी कहते हैं—मुनीश्वर! शिवकी प्राप्तिके लिये इस प्रकार तपस्या करती हुई पार्वतीके बहुत वर्ष बीत गये, तो भी भगवान् शंकर प्रकट नहीं हुए।

तब हिमाचल, मेना, मेरु और मन्दराचल आदिने आकर पार्वतीको समझाया और शिवकी प्राप्तिको अत्यन्त दुष्कर बताकर उनसे यह अनुरोध किया कि तुम तपस्या छोड़कर घरको लौट चलो।

तब उन सबकी बात सुनकर पार्वतीने कहा—पिताजी! माताजी! तथा मेरे सभी बान्धव! मैंने पहले जो बात कही थी, उसे क्या आपलोगोंने भुला दिया है? अस्तु, इस समय भी मेरी जो प्रतिज्ञा है, उसे आपलोग सुन लें।

जिन्होंने रोषसे कामदेवको जलाकर भस्म कर दिया है वे महादेवजी यद्यपि विरक्त हैं, तो भी मैं अपनी तपस्यासे उन भक्तवत्सल भगवान् शंकरको अवश्य संतुष्ट करूँगी।

आप सब लोग प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने घरको जायँ; महादेवजी संतुष्ट होंगे ही, इसमें अन्यथा विचारकी आवश्यकता नहीं है।

जिन्होंने कामदेवको जलाया है, जिन्होंने इस पर्वतके वनको भी जलाकर भस्म कर दिया है, उन भगवान् शंकरको मैं केवल तपस्यासे यहीं बुलाऊँगी।

महाभागगण! आप यह जान लें कि महान् तपोबलसे ही भगवान् सदाशिवकी सेवा सुलभ हो सकती है।

यह मैं आपलोगोंसे सत्य, सत्य कहती हूँ।

सुमधुर भाषण करनेवाली पर्वतराज-कुमारी शिवा माता मेनका, भाई मैनाक, पिता हिमालय और मन्दराचल आदिसे उपर्युक्त बात कहकर शीघ्र ही चुप हो गयीं।

शिवाके ऐसा कहनेपर वे चतुर-चालाक पर्वत, गिरिराज सुमेरु आदि गिरिजाकी बारंबार प्रशंसा करते हुए अत्यन्त विस्मित हो जैसे आये थे, वैसे ही लौट गये।

उन सबके चले जानेपर सखियोंसे घिरी हुई पार्वती मनमें यथार्थ निश्चय करके पहलेसे भी अधिक उग्र तपस्या करने लगीं।

मुनिश्रेष्ठ! देवताओं, असुरों, मनुष्यों और चराचर प्राणियोंसहित समस्त त्रिलोकी उस महती तपस्यासे संतप्त हो उठी।

उस समय समस्त देवता, असुर, यक्ष, किंनर, चारण, सिद्ध, साध्य, मुनि, विद्याधर, बड़े-बड़े नाग, प्रजापति, गुह्यक तथा अन्य लोग महान्-से-महान् कष्टमें पड़ गये।

परंतु इसका कोई कारण उनकी समझमें नहीं आया।

तब इन्द्र आदि सब देवता मिलकर गुरु बृहस्पतिसे सलाह ले बड़ी विह्वलताके साथ सुमेरु पर्वतपर मुझ विधाताकी शरणमें आये।

उस समय उनके सारे अंग संतप्त हो रहे थे।

वहाँ आ मुझे प्रणामकर उन सभी व्याकुल और कान्तिहीन देवताओंने मेरी स्तुति करके एक साथ ही मुझसे पूछा—‘प्रभो! जगत् के संतप्त होनेका क्या कारण है?’ उनका यह प्रश्न सुनकर मन-ही-मन शिवका स्मरण करके विचारपूर्वक मैंने सब कुछ जान लिया।

इस समय विश्वमें जो दाह उत्पन्न हो गया है, वह गिरिजाकी तपस्याका फल है—यह जानकर मैं उन सबके साथ शीघ्र ही क्षीरसागरको गया।

वहाँ जानेका उद्देश्य भगवान् विष्णुसे सब कुछ बताना था।

वहाँ पहुँचकर देखा, भगवान् श्रीहरि सुखद आसनपर विराजमान हैं।

देवताओंके साथ मैंने हाथ जोड़कर प्रणामपूर्वक उनकी स्तुति की और कहा—‘महाविष्णो! तपस्यामें लगी हुई पार्वतीके परम उग्र तपसे संतप्त हो हम सब लोग आपकी शरणमें आये हैं।

आप हमें बचाइये, बचाइये।’ हम सब देवताओंकी यह बात सुनकर शेषशय्यापर बैठे हुए भगवान् लक्ष्मीपति हमसे बोले।

श्रीविष्णुने कहा—देवताओ! मैंने आज पार्वतीजीकी तपस्याका सारा कारण जान लिया है।

अतः तुमलोगोंके साथ अब परमेश्वर शिवके समीप चलता हूँ।

हम सब लोग मिलकर यह प्रार्थना करेंगे कि वे गिरिजाको ब्याहकर अपने यहाँ ले आवें।

अमरो! इस समय समस्त संसारके कल्याणके लिये भगवान् से शिवाके पाणिग्रहणके लिये अनुरोध करना है।

देवाधिदेव पिनाकधारी भगवान् शिव शिवाको वर देनेके लिये जैसे भी वहीं उनके आश्रमपर जायँ, इस समय हम वैसा ही प्रयत्न करेंगे।

अतः परम मंगलमय महाप्रभु रुद्र जहाँ उग्र तपस्यामें लगे हुए हैं, वहीं हम सब लोग चलें।

भगवान् विष्णुकी यह बात सुनकर समस्त देवता आदि हठी, क्रोधी और जलानेके लिये उद्यत रहनेवाले प्रलयंकर रुद्रसे अत्यन्त भयभीत हो बोले।

देवताओंने कहा—भगवन्! जो महा-भयंकर, कालाग्निके समान दीप्तिमान् और भयानक नेत्रोंसे युक्त हैं, उन रोषभरे महाप्रभु रुद्रके पास हमलोग नहीं जा सकेंगे; क्योंकि जैसे पहले उन्होंने कुपित हो दुर्जय कामको भी जला दिया था, उसी प्रकार वे हमें भी दग्ध कर डालेंगे—इसमें संशय नहीं है।

मुने! इन्द्रादि देवताओंकी बात सुनकर लक्ष्मीपति श्रीहरिने उन सबको सान्त्वना देते हुए कहा।

श्रीहरि बोले—हे देवताओ! तुम सब लोग प्रेम और आदरके साथ मेरी बात सुनो।

भगवान् शिव देवताओंके स्वामी तथा उनके भयका नाश करनेवाले हैं।

वे तुम्हें नहीं दग्ध करेंगे।

तुम सब लोग बड़े चतुर हो।

अतः तुम्हें शम्भुको कल्याणकारी मानकर हमारे साथ सबके उत्तम प्रभु उन महादेवजीकी शरणमें चलना चाहिये।

भगवान् शिव पुराणपुरुष, सर्वेश्वर, वरणीय, परात्पर, तपस्वी और परमात्मस्वरूप हैं; अतः हमें उनकी शरणमें अवश्य चलना चाहिये।

प्रभावशाली विष्णुके ऐसा कहनेपर सब देवता उनके साथ पिनाकपाणि शिवका दर्शन करनेके लिये गये।

मार्गमें पार्वतीका आश्रम पहले पड़ता था।

अतः उन गिरिराजनन्दिनीकी तपस्या देखनेके लिये विष्णु आदि सब देवता कौतूहलपूर्वक उनके आश्रमपर गये।

पार्वतीके श्रेष्ठ तपको देखकर सब देवता उनके उत्तम तेजसे व्याप्त हो गये।

उन्होंने तपस्यामें लगी हुई उन तेजोमयी जगदम्बाको नमस्कार किया और साक्षात् सिद्धिस्वरूपा शिवादेवीके तपकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए वे सब देवता उस स्थानपर गये, जहाँ भगवान् वृषभध्वज विराजमान थे।

मुने! वहाँ पहुँचकर सब देवताओंने पहले तुम्हें उनके पास भेजा और स्वयं वे मदनदहनकारी भगवान् हरसे दूर ही खड़े रहे।

वे वहींसे यह देखते रहे कि भगवान् शिव कुपित हैं या प्रसन्न।

नारद! तुम तो सदा निर्भय रहनेवाले और विशेषतः शिवके भक्त हो।

अतः तुमने भगवान् शिवके स्थानपर जाकर उन्हें सर्वथा प्रसन्न देखा।

फिर वहाँसे लौटकर तुम श्रीविष्णु आदि सब देवताओंको भगवान् शिवके स्थानपर ले गये।

वहाँ पहुँचकर विष्णु आदि सब देवताओंने देखा, भक्तवत्सल भगवान् शिव सुखपूर्वक प्रसन्न मुद्रामें बैठे हैं।

अपने गणोंसे घिरे हुए शम्भु तपस्वीका रूप धारण किये योगपट्टपर आसीन थे।

उन परमेश्वररूपी शंकरका दर्शन करके मेरे सहित श्रीविष्णु तथा अन्य देवताओं, सिद्धों और मुनीश्वरोंने उन्हें प्रणाम करके वेदों और उपनिषदोंके सूत्रोंद्वारा उनका स्तवन किया।

(अध्याय २३)


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