शिव पुराण - रुद्र संहिता - पार्वती खण्ड - 13


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शिव पुराण संहिता लिंकविद्येश्वर | रुद्र संहिता | शतरुद्र | कोटिरुद्र | उमा | कैलास | वायवीय


रुद्रकी नेत्राग्निसे कामका भस्म होना, रतिका विलाप, देवताओंकी प्रार्थनासे शिवका कामको द्वापरमें प्रद्युम्नरूपसे नूतन शरीरकी प्राप्तिके लिये वर देना और रतिका शम्बर-नगरमें जाना

ब्रह्माजी कहते हैं—मुने! काम अपने साथी वसन्त आदिको लेकर वहाँ पहुँचा।

उसने भगवान् शिवपर अपने बाण चलाये।

तब शंकरजीके मनमें पार्वतीके प्रति आकर्षण होने लगा और उनका धैर्य छूटने लगा।

अपने धैर्यका ह्रास होता देख महायोगी महेश्वर अत्यन्त विस्मित हो मन-ही-मन इस प्रकार चिन्तन करने लगे।

शिव बोले—मैं तो उत्तम तपस्या कर रहा था, उसमें विघ्न कैसे आ गये? किस कुकर्मीने यहाँ मेरे चित्तमें विकार पैदा कर दिया? इस तरह विचार करके सत्पुरुषोंके आश्रयदाता महायोगी परमेश्वर शिव शंकायुक्त हो सम्पूर्ण दिशाओंकी ओर देखने लगे।

इसी समय वामभागमें बाण खींचे खड़े हुए कामपर उनकी दृष्टि पड़ी।

वह मूढचित्त मदन अपनी शक्तिके घमंडमें आकर पुनः अपना बाण छोड़ना ही चाहता था।

नारद! इस अवस्थामें कामपर दृष्टि पड़ते ही परमात्मा गिरीशको तत्काल रोष चढ़ आया।

मुने! उधर आकाशमें बाणसहित धनुष लिये खड़े हुए कामने भगवान् शंकरपर अपना अमोघ अस्त्र छोड़ दिया, जिसका निवारण करना बहुत कठिन था।

परंतु परमात्मा शिवपर वह अमोघ अस्त्र भी मोघ (व्यर्थ) हो गया, कुपित हुए परमेश्वरके पास जाते ही शान्त हो गया।

भगवान् शिवपर अपने अस्त्रके व्यर्थ हो जानेपर मन्मथ (काम)-को बड़ा भय हुआ।

भगवान् मृत्युंजयको सामने देखकर वह काँप उठा और इन्द्र आदि समस्त देवताओंका स्मरण करने लगा।

मुनिश्रेष्ठ! अपना प्रयास निष्फल हो जानेपर काम भयसे व्याकुल हो उठा था।

मुनीश्वर! कामदेवके स्मरण करनेपर वे इन्द्र आदि सब देवता वहाँ आ पहुँचे और शम्भुको प्रणाम करके उनकी स्तुति करने लगे।

देवता स्तुति कर ही रहे थे कि कुपित हुए भगवान् हरके ललाटके मध्यभागमें स्थित तृतीय नेत्रसे बड़ी भारी आग तत्काल प्रकट होकर निकली।

उसकी ज्वालाएँ ऊपरकी ओर उठ रही थीं।

वह आग धू-धू करके जलने लगी।

उसकी प्रभा प्रलयाग्निके समान जान पड़ती थी।

वह आग तुरंत ही आकाशमें उछली और पृथ्वीपर गिर पड़ी।

फिर अपने चारों ओर चक्कर काटती हुई धराशायिनी हो गयी।

साधो! ‘भगवन्! क्षमा कीजिये, क्षमा कीजिये’ यह बात जबतक देवताओंके मुखसे निकले, तबतक ही उस आगने कामदेवको जलाकर भस्म कर दिया।

उस वीर कामदेवके मारे जानेपर देवताओंको बड़ा दुःख हुआ।

वे व्याकुल हो ‘हाय! यह क्या हुआ?’ ऐसा कह-कहकर जोर-जोरसे चीत्कार करते हुए रोने-बिलखने लगे।

उस समय विकृतचित्त हुई पार्वतीका सारा शरीर सफेद पड़ गया—काटो तो खून नहीं।

वे सखियोंको साथ ले अपने भवनको चली गयीं।

कामदेवके जल जानेपर रति वहाँ एक क्षणतक अचेत पड़ी रही।

पतिकी मृत्युके दुःखसे वह इस तरह पड़ी थी, मानो मर गयी हो।

थोड़ी देरमें जब होश हुआ, तब अत्यन्त व्याकुल हो रति उस समय तरह-तरहकी बातें कहकर विलाप करने लगी।

रति बोली—हाय! मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? देवताओंने यह क्या किया।

मेरे उद्दण्ड स्वामीको बुलाकर नष्ट करा दिया।

हाय! हाय! नाथ! स्मर! स्वामिन्! प्राणप्रिय! हा मुझे सुख देनेवाले प्रियतम! हा प्राणनाथ! यह यहाँ क्या हो गया? ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! इस प्रकार रोती, बिलखती और अनेक प्रकारकी बातें कहती हुई रति हाथ-पैर पटकने और अपने सिरके बालोंको नोचने लगी।

उस समय उसका विलाप सुनकर वहाँ रहनेवाले समस्त वनवासी जीव तथा वृक्ष आदि स्थावर प्राणी भी बहुत दुःखी हो गये।

इसी बीचमें इन्द्र आदि सम्पूर्ण देवता महादेवजीका स्मरण करते हुए रतिको आश्वासन दे इस प्रकार बोले।

देवताओंने कहा—तुम कामके शरीरका थोड़ा-सा भस्म लेकर उसे यत्नपूर्वक रखो और भय छोड़ो।

हम सबके स्वामी महादेवजी कामदेवको पुनः जीवित कर देंगे और तुम फिर अपने प्रियतमको प्राप्त कर लोगी।

कोई किसीको न तो सुख देनेवाला है और न कोई दुःख ही देनेवाला है।

सब लोग अपनी-अपनी करनीका फल भोगते हैं।

तुम देवताओंको दोष देकर व्यर्थ ही शोक करती हो।

इस प्रकार रतिको आश्वासन दे सब देवता भगवान् शिवके पास आये और उन्हें भक्तिभावसे प्रसन्न करके यों बोले।

देवताओंने कहा—भगवन्! शरणागत-वत्सल महेश्वर! आप कृपा करके हमारे इस शुभ वचनको सुनिये।

शंकर! आप कामदेवकी करतूतपर भलीभाँति प्रसन्न्ता-पूर्वक विचार कीजिये।

महेश्वर! कामने जो यह कार्य किया है, इसमें इसका कोई स्वार्थ नहीं था।

दुष्ट तारकासुरसे पीड़ित हुए हम सब देवताओंने मिलकर उससे यह काम कराया है।

नाथ! शंकर! इसे आप अन्यथा न समझें।

सब कुछ देनेवाले देव! गिरीश! सती-साध्वी रति अकेली अति दुःखी होकर विलाप कर रही है।

आप उसे सान्त्वना प्रदान करें।

शंकर! यदि इस क्रोधके द्वारा आपने कामदेवको मार डाला तो हम यही समझेंगे कि आप देवताओंसहित समस्त प्राणियोंका अभी संहार कर डालना चाहते हैं।

रतिका दुःख देखकर देवता नष्टप्राय हो रहे हैं; इसलिये आपको रतिका शोक दूर कर देना चाहिये।

ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! सम्पूर्ण देवताओंका यह वचन सुनकर भगवान् शिव प्रसन्न हो उनसे इस प्रकार बोले।

शिवने कहा—देवताओ और ऋषियो! तुम सब आदरपूर्वक मेरी बात सुनो।

मेरे क्रोधसे जो कुछ हो गया है, वह तो अन्यथा नहीं हो सकता, तथापि रतिका शक्तिशाली पति कामदेव तभीतक अनंग (शरीररहित) रहेगा, जबतक रुक्मिणीपति श्रीकृष्णका धरतीपर अवतार नहीं हो जाता।

जब श्रीकृष्ण द्वारकामें रहकर पुत्रोंको उत्पन्न करेंगे; तब वे रुक्मिणीके गर्भसे कामको भी जन्म देंगे।

उस कामका ही नाम उस समय ‘प्रद्युम्न’ होगा—इसमें संशय नहीं है।

उस पुत्रके जन्म लेते ही शम्बरासुर उसे हर लेगा।

हरणके पश्चात् दानवशिरोमणि शम्बर उस शिशुको समुद्रमें डाल देगा।

फिर वह मूढ़ उसे मरा हुआ समझकर अपने नगरको लौट जायगा।

रते! उस समयतक तुम्हें शम्बरासुरके नगरमें सुखपूर्वक निवास करना चाहिये।

वहीं तुम्हें अपने पति प्रद्युम्नकी प्राप्ति होगी।

वहाँ तुमसे मिलकर काम युद्धमें शम्बरासुरका वध करेगा और सुखी होगा।

देवताओ! प्रद्युम्ननामधारी काम अपनी कामिनी रतिको तथा शम्बरासुरके धनको लेकर उसके साथ पुनः नगरमें जायगा।

मेरा यह कथन सर्वथा सत्य होगा।

ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! भगवान् शिवकी यह बात सुनकर देवताओंके चित्तमें कुछ उल्लास हुआ और वे उन्हें प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़ विनीतभावसे बोले।

देवताओंने कहा—देवदेव! महादेव! करुणासागर! प्रभो! आप कामदेवको शीघ्र जीवन-दान दें तथा रतिके प्राणोंकी रक्षा करें।

देवताओंकी यह बात सुनकर सबके स्वामी करुणासागर परमेश्वर शिव पुनः प्रसन्न होकर बोले—‘देवताओ! मैं बहुत प्रसन्न हूँ।

मैं कामको सबके हृदयमें जीवित कर दूँगा।

वह सदा मेरा गण होकर विहार करेगा।

अब अपने स्थानको जाओ।

मैं तुम्हारे दुःखका सर्वथा नाश करूँगा।’ ऐसा कहकर रुद्रदेव उस समय स्तुति करनेवाले देवताओंके देखते-देखते अन्तर्धान हो गये।

देवताओंका विस्मय दूर हो गया और वे सब-के-सब प्रसन्न हो गये।

मुने! तदनन्तर रुद्रकी बातपर भरोसा करके स्थिर रहनेवाले देवता रतिको उनका कथन सुनाकर आश्वासन दे अपने-अपने स्थानको चले गये।

मुनीश्वर! कामपत्नी रति शिवके बताये हुए शम्बरनगरको चली गयी तथा रुद्रदेवने जो समय बताया था, उसकी प्रतीक्षा करने लगी।

(अध्याय १८-१९)


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