भगवान् गंगाधर आरती


Bhagwan Gangadhar Aarti

Shiv Aarti Stotra List

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥

हर हर हर महादेव॥१॥


कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रुमविपिने।
गुञ्जति मधुकरपुञ्जे कुञ्जवने गहने॥

कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता॥

हर हर हर महादेव॥२॥


तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥

क्रीडा रचयति भूषारञ्जित निजमीशम्।
इन्द्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्॥

हर हर हर महादेव॥३॥


बिबुधबधू बहु नृत्यत हृदये मुदसहिता।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥

धिनकत थै थै धिनकत मृदङ्ग वादयते।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते॥

हर हर हर महादेव॥४॥


रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥

तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते॥

हर हर हर महादेव॥५॥


कर्पूरद्युतिगौरं पञ्चाननसहितम्।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्॥

सुन्दरजटाकलापं पावकयुतभालम्।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्॥

हर हर हर महादेव॥६॥


मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्॥

सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणम्॥

हर हर हर महादेव॥७॥


शङ्खनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥

अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥

हर हर हर महादेव॥८॥


ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥

संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं य: कुरुते।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या य: श्रृणुते॥

हर हर हर महादेव॥९॥


Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan

List

Sheesh Gang Ardhang Parvati – Shiv Aarti – Lyrics in Hindi


शीश गंग अर्धांग पार्वती – शिव आरती

शीश गंग अर्धांग पार्वती,
सदा विराजत कैलासी।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं,
धरत ध्यान सुर सुखरासी॥

शिव अर्धनारीश्वर – (Shiv – Ardhnarishwar)

अर्धांग पार्वती – सृष्टि के निर्माण हेतु भगवान् शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक (अलग) किया। इसलिए, अर्धनारीश्वर रूप में, आधे शरीर में वे शिव थे तथा आधे में शिवा (पार्वती)।

शीश गंग अर्धांग पार्वती,
सदा विराजत कैलासी।

नंदी भृंगी नृत्य करत हैं,
धरत ध्यान सुर सुखरासी॥


शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह
बैठे हैं शिव अविनाशी।

करत गान-गन्धर्व सप्त स्वर
राग रागिनी मधुरासी॥


यक्ष-रक्ष-भैरव जहां डोलत,
बोलत हैं वनके वासी।

कोयल शब्द सुनावत सुन्दर,
भ्रमर करत हैं गुंजा-सी॥


कल्पद्रुम (कल्पवृक्ष) अरु पारिजात तरु
लाग रहे हैं लक्षासी।

कामधेनु कोटिन जहां डोलत
करत दुग्ध की वर्षा-सी॥


सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित,
चन्द्रकान्त सम हिमराशी।

नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित
सेवत सदा प्रकृति दासी॥


ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत,
गान करत श्रुति गुणराशी।

ब्रह्मा, विष्णु निहारत निसिदिन,
कछु शिव हम को फरमासी॥


ऋद्धि-सिद्धि के दाता शंकर
नित सत् चित् आनन्दराशी।

जिनके सुमिरत ही कट जाती
कठिन काल यमकी फांसी॥


त्रिशूलधरजी का नाम निरन्तर
प्रेम सहित जो नर गासी।

दूर होय विपदा उस नर की
जन्म-जन्म शिवपद पासी॥


कैलासी काशी के वासी
अविनाशी मेरी सुध लीजो।

सेवक जान सदा चरनन को
अपनो जान कृपा कीजो॥


तुम तो प्रभुजी सदा दयामय
अवगुण मेरे सब ढकियो।

सब अपराध क्षमाकर शंकर
किंकर की विनती सुनियो ॥


शीश गंग अर्धांग पार्वती,
सदा विराजत कैलासी।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं,
धरत ध्यान सुर सुखरासी॥

ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय


Shiv Aarti – Sheesh Gang Ardhang Parvati

Rajendra Jain


Shiv Bhajan



Sheesh Gang Ardhang Parvati – Shiv Aarti – Lyrics in English


Shiv Aarti – Sheesh Gang Ardhang Parvati

शिव अर्धनारीश्वर – (Shiv – Ardhnarishwar)

Sheesh gang ardhang Parvati,
sada viraajat kailaasi.
Nandi bhringi nritya karat hain,
dharat dhyan sur sukhraasi.

अर्धांग पार्वती – सृष्टि के निर्माण हेतु भगवान् शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक (अलग) किया। इसलिए, अर्धनारीश्वर रूप में, आधे शरीर में वे शिव थे तथा आधे में शिवा (पार्वती)।

Sheesh gang ardhang Parvati,
sada viraajat kailaasi.

Nandi bhringi nritya karat hain,
dharat dhyan sur sukhraasi.


Sheetal mand sugandh pavan bahe
(Jahaan) baithe hain Shiv avinaashi .

Karat gaan gandharv sapt swar
raag raagini madhuraasi.


Yaksh raksh bhairav jahan dolat,
bolat hain van ke vaasi.

Koyal shabd sunaavat sundar,
bhramar karat hain gunja si.


Kalp-vriksh aru paarijaat taru
laag rahe hain lakshaasi.

Kam-dhenu kotin jahan dolat
karat dugdh ki varsha-si.


Surya-kant sam parvat shobhit,
chandrakaant sam himaraashi.

Nitya chhahon ritu rahat sushobhit
sevat sada prakriti daasi.


Rushi muni dev danuj nit sevat,
gaan karat shruti gunaraashi.

Brahma, vishnu nihaarat nisidin,
kachhu Shiv hum ko pharamaasi.


Riddhi-Siddhi ke daata Shankar
nit sat chit anandraashi.

Jinke sumirat hi kat jaati
kathin kaal yam ki phaansi.


Trishuldhar ji ka naam nirantar
prem sahit jo nar gaasi.

Door hoya vipada us nar ki
janm-janma Shivpad paasi.


Kailaasi Kashi ke vaasi
avinaashi meri sudh lijo.

Sevak jaan sada charanan ko
apano jaan kripa kijo.


Tum to prabhuji sada dayaamay
avagun mere sab dhakiyo.

Sab aparaadh kshamaa kar Shankar
kinkar ki vinati suniyo .


Sheesh gang ardhang Parvati ,
sada viraajat kailaasi.

Nandi bhrungi nritya karat hain,
dharat dhyaan sur sukharaasi.

Om Namah Shivay
Om Namah Shivay
Om Namah Shivay


Shiv Aarti – Sheesh Gang Ardhang Parvati

Rajendra Jain


Shiv Bhajan



Shri Badrinath Stuti – Badrinath Aarti – Lyrics in English


Shri Badrinath Stuti – Shri Badrinath Aarti

Pavan mand sugandh shital,
hem mandir shobhitam.

Nikat Ganga bahat nirmal,
Shri Badrinath Vishvambharam.

Shesh sumiran, karat nishidin,
dharat dhyaan Maheshvaram.

Ved Brahma karat stuti
Shri Badrinath Vishvambharam.

Indra Chandra Kuber Dinakar,
dhoop dip niveditam.

Siddh munijan karat jai jai
Shri Badrinaath Vishvambharam.

Shakti Gauri Ganesh Shaarad,
Naarad muni uchchaaranam.

Yog dhyaan apaar lila
Shri Badrinath Vishvambharam.

Yaksh kinnar karat kautuk,
gaan gandharv prakaashitam.

Lakshmi devi chanvar dole
(Shri Bhoomi Laxmi chanvar dole)
Shri Badrinath Vishvambharam.

Kailash mein ek dev niranjan,
shail shikhar Maheshwaram.

Raja Yudhishtir karat stuti,
Shri Badrinath Vishvmbharam.

Yah badrinaath panch ratna,
pathan paap vinaashanam.

Nara-narayan tap nirat
Shri Badrinath Vishvambharam.

Or

(Shri Badrinaath (ji) ki param stuti,
yah padhat paap vinaashanam.

Koti tirth supunya sunder,
sahaj ati phaladaayakam.)

॥Shri Badrinath Vishvambharam॥

Pavan mand sugandh shital,
hem mandir shobhitam.
Nikat Ganga bahat nirmal,
Shri Badrinath Vishvambharam.


Shri Badrinath Stuti – Shri Badrinath Aarti

Anuradha Paudwal


Shiv Bhajan



Shri Badrinath Stuti – Badrinath Aarti – Lyrics in Hindi


श्री बद्रीनाथजी की आरती

पवन मंद सुगंध शीतल,
हेम मन्दिर शोभितम्।
निकट गंगा बहत निर्मल,
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्॥

शेष सुमिरन, करत निशदिन,
धरत ध्यान महेश्वरम्।
वेद ब्रह्मा करत स्तुति
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्॥


इन्द्र चन्द्र कुबेर दिनकर,
धूप दीप निवेदितम्।
सिद्ध मुनिजन करत जय जय
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्॥


शक्ति गौरी गणेश शारद,
नारद मुनि उच्चारणम्।
योग ध्यान अपार लीला
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्॥


यक्ष किन्नर करत कौतुक,
गान गंधर्व प्रकाशितम्।

लक्ष्मी देवी चंवर डोले
(श्री भूमि लक्ष्मी चँवर डोले)
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्॥


कैलाशमे एक देव निरंजन,
शैल शिखर महेश्वरम।
राजा युधिष्टिर करत स्तुती,
श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम्॥


यह बद्रीनाथ पंच रत्न,
पठन पाप विनाशनम्।
नरनारायण तप निरत
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्॥

Or

(श्री बद्रीनाथ (जी) की परम स्तुति,
यह पढत पाप विनाशनम्।
कोटि-तीर्थ सुपुण्य सुन्दर,
सहज अति फलदायकम्॥)

पवन मंद सुगंध शीतल,
हेम मन्दिर शोभितम्।
निकट गंगा बहत निर्मल,
श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम्॥


Shri Badrinath Stuti – Shri Badrinath Aarti

Anuradha Paudwal


Shiv Bhajan



सृष्टि के कण कण में ईश्वर भक्ति

प्रभु की महिमा महान् है। अनु अनु में उसकी सत्ता विद्यमान है। ये सूर्य, चन्द्र, तारे तथा संसारके सारे पदार्थ उसकी सर्वव्यापकताके साक्षी है।

सुबहकी लालिमा जब चारों ओर छा जाती है, भांति भांति के पक्षी अपने विविध कलरवसे उसीकी भक्तिके गीत गाते हैं। पहाड़ी झरनोंमे उसी का संगीत है ।

जिस प्रकार समाधिकी अवस्थामे एक योगी बिल्कुल निश्चेष्ट होकर ईश्वरके ध्यान में स्थिर हो जाता है, उसी प्रकार ये ऊँचे-ऊँचे पहाड़ अपने सिरोंको हिम की सफेद चादरसे ढककर ध्यानावस्थित होकर अपने निर्माताकी भक्तिमें मौन भावसे खड़े हैं।

कभी-कभी भक्तिके आवेशमें भक्तकी ऑखोंसे प्रेमके अश्रु छलक पड़ते है। उसी प्रकार पर्वतोंके अंदरसे जो नदियाँ प्रवाहित हो रही है, वे ऐसी लगती है, मानो उन पर्वतोंके हृदयसे जलधाराएँ भक्तिके रूपमें निकल पड़ी हें।

जब ईश्वर-भक्त परमात्माका साक्षात्कार कर लेता है, उसका हदय भी गद्‌गद होकर उसकी ओर आकर्षित हो जाता है।

प्रकृति देवी परमात्मा की भक्तिमें दिनरात लगी रहती है। एक वाटिकाके खिले फूल अपनी आकर्षक सुरभिके साथ मूक स्वरसे ईश्वरका स्मरण करते रहते है।

सूर्यकी प्रचण्डता, चन्द्र का शीतल प्रकाश, तारोंका झिलमिल प्रकाश, हिमाच्छादित पर्वतमालाएँ, कलकल करती हुई सरिताएँ, झरझर झरते हुए झरने मानो अपने निर्माताकी अर्थात ईश्वरकी भक्तिके गीत सदा गाते रहते है।

धर्मग्रन्थोंमें और वेदोंमें ईश्वर-भक्तिके विषयमें जो मन्त्र विद्यमान है, वे सारगर्भित तथा भक्तिके रससे भरे पड़े हैं।

ईश्वर-भक्तिके सुगन्धित पुष्प वेदोंके कई मन्त्रोमें विराजमान है, जो अपने प्राणकी सुगन्धसे पढ़नेवाले व्यक्तिके हृदयको सुवासित कर देते हैं।

वेदमें एक मन्त्र आता है –
यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहुः।
यस्येमाः प्रदिशो यस्य बाहु कस्मै देवाय हविषा विधेम॥

जिसकी महिमाका गान हिमसे ढके हुए पहाड कर रहे है, जिसकी भक्तिका राग समुद्र अपनी सहायक नदियोंके साथ सुना रहा है, और ये विशाल दिशाएँ जिसके बाज़ुओंके सदृश हैं, उस आनन्दस्वरूप प्रभुको मेरा नमस्कार है।

इसलिए वेद और धर्मग्रंथ हमें आदेश देते हैं कि, वह ईश्वर जिसकी महिमा का वर्णन ये सब पदार्थ कर रहे है, जिसकी भक्तिका राग यह सकल ब्रह्माण्ड गा रहा है – हे मनुष्य, यदि दुःखोंसे छूटना चाहता है, तो तू भी उसीकी भक्ति कर। इसके अतिरिक्त दुःखोंसे छूटनेका कोई दूसरा मार्ग नहीं।


Shiv Bhajan