शिव मानस पूजा स्तोत्र – अर्थ सहित
शिव मानस पूजा एक सुंदर भावनात्मक स्तुति है, जिसमे मनुष्य अपने मनके द्वारा
भगवान् शिव की पूजा कर सकता है। शिव मानस पूजा स्तोत्र के जरिये कोई भी व्यक्ति बिना किसी साधन और सामग्री के भगवान् शिव की पूजा संपन्न कर सकता हैं। शास्त्रों में मानसिक पूजा अर्थात मनसे की गयी पूजा, श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वर्णित है।
शिव मानस पूजा स्तोत्र भगवान शिव के प्रति भक्ति और प्रेम को व्यक्त करता है, जिन्हें पशुपति (सभी प्राणियों यानी की जीवों के स्वामी) और दयानिधि (करुणा का खजाना) के रूप में भी जाना जाता है।
शिव मानस पूजा में, भक्त अपने मन में कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करते हुए, भगवान शिव को पूजा की विभिन्न वस्तुओं को अर्पित करने की कल्पना करता है।
इस स्तोत्र का तात्पर्य यह भी है कि भगवान शिव की सच्ची पूजा बाहरी अनुष्ठानों या सामग्रियों पर निर्भर नहीं है, बल्कि भक्त के आंतरिक दृष्टिकोण और भावनाओं पर निर्भर है। इस स्तोत्र का पाठ अक्सर हिंदुओं द्वारा उनकी दैनिक प्रार्थना या ध्यान के समय किया जाता है।
शिव मानस पूजा स्तोत्र – अर्थ और भावार्थ सहित
1. भगवान् शिव के लिए धूप, दीप, आसन
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः
स्नानं च दिव्याम्बरं,
नानारत्नविभूषितं मृगमदा
मोदाङ्कितं चन्दनम्।
जाती-चम्पक-बिल्व-पत्र-रचितं
पुष्पं च धूपं तथा,
दीपं देव दयानिधे पशुपते
हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥
- रत्नैः कल्पितम-आसनं – यह रत्ननिर्मित सिंहासन,
- हिमजलैः स्नानं – शीतल जल से स्नान,
- च दिव्याम्बरं – तथा दिव्य वस्त्र,
- नानारत्नविभूषितं – अनेक प्रकार के रत्नों से विभूषित,
- मृगमदा मोदाङ्कितं चन्दनम् – कस्तूरि गन्ध समन्वित चन्दन,
- जाती-चम्पक – जूही, चम्पा और
- बिल्वपत्र-रचितं पुष्पं – बिल्वपत्रसे रचित पुष्पांजलि
- च धूपं तथा दीपं – तथा धूप और दीप
- देव दयानिधे पशुपते – हे देव, हे दयानिधे, हे पशुपते,
- हृत्कल्पितं गृह्यताम् – यह सब मानसिक (मनके द्वारा) पूजोपहार ग्रहण कीजिये
भावार्थ: –
हे देव, हे दयानिधे, हे पशुपते,
यह रत्ननिर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्न से विभूषित दिव्य वस्त्र,
कस्तूरि आदि गन्ध से समन्वित चन्दन,
जूही, चम्पा और बिल्वपत्रसे रचित पुष्पांजलि तथा
धूप और दीप
– यह सब मानसिक [पूजोपहार] ग्रहण कीजिये।
हे भगवान, मैं आपको बहुमूल्य रत्नों से बना आसन, ठंडे जल से स्नान, विभिन्न रत्नों से सुशोभित दिव्य वस्त्र, इंद्रियों को आनंदित करने वाला कस्तूरी मिश्रित चंदन का लेप, चमेली के फूल, चंपक और बिल्व पत्र, धूप और दीपक प्रदान करता हूं।
हे भगवान, हे दया के सागर, हे सभी प्राणियों के भगवान, कृपया इन प्रसादों को स्वीकार करें जिनकी मैंने अपने हृदय में कल्पना की है।
2. शंकरजी के लिए नैवेद्य, जल, शरबत
सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते
पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं
रम्भाफलं पानकम्।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं
कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं
भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥
- सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते पात्रे – नवीन रत्नखण्डोंसे जडित सुवर्णपात्र में
- घृतं पायसं – घृतयुक्त खीर, (घृत – घी)
- भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं – दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन,
- रम्भाफलं पानकम् – कदलीफल, शरबत,
- शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं – अनेकों शाक, कपूरसे सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल
- ताम्बूलं – तथा ताम्बूल (पान)
- मनसा मया विरचितं – ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं
- भक्त्या प्रभो स्वीकुरु – हे प्रभो, कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये
भावार्थ: –
मैंने नवीन रत्नखण्डोंसे जड़ित सुवर्णपात्र में घृतयुक्त खीर, दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन,
कदलीफल, शरबत, अनेकों शाक,
कपूरसे सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल तथा ताम्बूल
– ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं।
हे प्रभो, कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये।
3. भोलेनाथ के स्तुति के लिए वाद्य
छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं
चादर्शकं निर्मलम्
वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला
गीतं च नृत्यं तथा।
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा
ह्येतत्समस्तं मया
संकल्पेन समर्पितं तव विभो
पूजां गृहाण प्रभो॥
- छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं – छत्र, दो चँवर, पंखा,
- चादर्शकं निर्मलम् – निर्मल दर्पण,
- वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला – वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य,
- गीतं च नृत्यं तथा – गान और नृत्य तथा
- साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा – साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति
- ह्येतत्समस्तं मया संकल्पेन – ये सब मैं संकल्पसे ही
- समर्पितं तव विभो – आपको समर्पण करता हूँ
- पूजां गृहाण प्रभो – हे प्रभो, मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये
भावार्थ: –
छत्र, दो चँवर, पंखा, निर्मल दर्पण,
वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य,
गान और नृत्य,
साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति
– ये सब मैं संकल्पसे ही आपको समर्पण करता हूँ।
हे प्रभु, मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये।
4. तन, मन, बुद्धि, कर्म, निद्रा – सब कुछ शिवजी के चरणों में
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः
प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोग-रचना
निद्रा समाधि-स्थितिः।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः
स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं
शम्भो तवाराधनम्॥
- आत्मा त्वं – मेरी आत्मा तुम हो,
- गिरिजा मतिः – बुद्धि पार्वतीजी हैं,
- सहचराः प्राणाः – प्राण आपके गण हैं,
- शरीरं गृहं – शरीर आपका मन्दिर है
- पूजा ते विषयोपभोग-रचना – सम्पूर्ण विषयभोगकी रचना आपकी पूजा है,
- निद्रा समाधि-स्थितिः – निद्रा समाधि है,
- सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः – मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा
- स्तोत्राणि सर्वा गिरो – सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं
- यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं – इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ,
- शम्भो तवाराधनम् – हे शम्भो, वह सब आपकी आराधना ही है
भावार्थ: –
हे शम्भो, मेरी आत्मा तुम हो,
बुद्धि पार्वतीजी हैं,
प्राण आपके गण हैं,
शरीर आपका मन्दिर है,
सम्पूर्ण विषयभोगकी रचना आपकी पूजा है,
निद्रा समाधि है,
मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा
सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं।
इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है।
5. भगवान से अपने अपराध और गलतियों के लिए माफ़ी माँगना
कर-चरण-कृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
श्रवण-नयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्-क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥
- कर-चरण-कृतं वाक् – हाथोंसे, पैरोंसे, वाणीसे,
- कायजं कर्मजं वा – शरीरसे, कर्मसे,
- श्रवण-नयनजं वा – कर्णोंसे, नेत्रोंसे अथवा
- मानसं वापराधम् – मनसे भी जो अपराध किये हों,
- विहितमविहितं वा – वे विहित हों अथवा अविहित,
- सर्वमेतत्-क्षमस्व – उन सबको हे शम्भो आप क्षमा कीजिये
- जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो – हे करुणासागर, हे महादेव शम्भो, आपकी जय हो, जय हो
भावार्थ: – हाथोंसे, पैरोंसे, वाणीसे, शरीरसे, कर्मसे, कर्णोंसे, नेत्रोंसे अथवा मनसे भी जो अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणासागर महादेव शम्भो। आप क्षमा कीजिये।
हे महादेव शम्भो, आपकी जय हो, जय हो।
शिव मानस पूजा स्तोत्र
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः
स्नानं च दिव्याम्बरं,
नानारत्नविभूषितं मृगमदा
मोदाङ्कितं चन्दनम्।
जाती-चम्पक-बिल्व-पत्र-रचितं
पुष्पं च धूपं तथा,
दीपं देव दयानिधे पशुपते
हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥
सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते
पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं
रम्भाफलं पानकम्।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं
कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं
भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥
छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं
चादर्शकं निर्मलम्
वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला
गीतं च नृत्यं तथा।
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा
ह्येतत्समस्तं मया
संकल्पेन समर्पितं तव विभो
पूजां गृहाण प्रभो॥
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः
प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोग-रचना
निद्रा समाधि-स्थितिः।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः
स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं
शम्भो तवाराधनम्॥
कर-चरण-कृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
श्रवण-नयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्-क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥
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