माता शैलपुत्री – माँ दुर्गा का पहला स्वरूप
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्॥
माँ दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नाम शैलपुत्री पड़ा था।
शैल का अर्थ होता है – पहाड़, पर्वत।
शैलपुत्री – पर्वतराज हिमालय की पुत्री
यही नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।
माता शैलपुत्री की कथा
देवी शैलपुत्री पूर्वजन्म में प्रजापति दक्षकी कन्या सती
देवी शैलपुत्री सती के नाम से भी जानी जाती हैं। अपने पूर्वजन्म मे ये प्रजापति दक्षकी कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था।
एक बार प्रजापति दक्षने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। यज्ञमें उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया। किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञमें निमंत्रित नहीं किया।
सती ने जब सुना कि उनके पिता एक विशाल यज्ञ कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।
अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकर जी को बतायी।
सारी बातों पर विचार करने के बाद शंकरजी ने कहा कि – सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।
किन्तु सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी।
सती ने पिताके घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने ही स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।
उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमान जनक वचन भी कहे। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उनका हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से सन्तप्त हो उठा।
उन्होंने सोचा भगवान् शंकरजी की बात न मानकर, यहाँ आकर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है। वह अपने पति भगवान् शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया।
इस दारुण दुःखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणोंको भेजकर दक्षके उस यज्ञका पूर्णतः विध्वंस करा दिया।
सतीने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्मकर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वह शैलपुत्री नाम से विख्यात हुईं।
देवी शैलपुत्री
सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वह शिवजी की अर्धांगिनी बनीं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं।
उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्हीं हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।
माँ शैलपुत्री का स्वरुप
देवी शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल सुशोभित है।
इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं।
माँ शैलपुत्री की उपासना
नवरात्र पूजनमें प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थिर करते हैं। यहीं से उनकी योगसाधना का प्रारम्भ होता है।
नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और उनकी शक्तियाँ अनन्त हैं।
Shailputri Devi Mantra (माँ शैलपुत्री का मंत्र)
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्॥
माता शैलपुत्री की स्तुति
जय माँ शैलपुत्री प्रथम,
दक्ष की हो संतान।
नवरात्री के पहले दिन,
करे आपका ध्यान॥
अग्नि कुण्ड में जा कूदी,
पति का हुआ अपमान।
अगले जनम में पा लिया,
शिव के पास स्थान॥
जय माँ शैलपुत्री,
जय माँ शैलपुत्री॥
राजा हिमाचल से मिला,
पुत्री बन सम्मान।
उमा नाम से पा लिया,
देवों का वरदान॥
सजा है दाये हाथ में,
संहारक त्रिशूल।
बाए हाथ में ले लिया,
खिला कमल का फूल॥
जय माँ शैलपुत्री,
जय माँ शैलपुत्री॥
बैल है वाहन आपका,
जपती हो शिव नाम।
दर्शन से आनंद मिले,
अम्बे तुम्हे प्रणाम॥
नवरात्रों की माँ,
कृपा कर दो माँ।
जय माँ शैलपुत्री,
जय माँ शैलपुत्री॥
जय माँ शैलपुत्री प्रथम,
दक्ष की हो संतान।
Durga Bhajans
- अम्बे तू है जगदम्बे काली - दुर्गा माँ की आरती
- या देवी सर्वभूतेषु मंत्र - दुर्गा मंत्र - अर्थ सहित
- अयि गिरिनंदिनि - महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र
- जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
- दुर्गा चालीसा - नमो नमो दुर्गे सुख करनी
- जगजननी जय जय माँ - अर्थसहित
- जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय
- आरती जगजननी मैं तेरी गाऊं
- आये तेरे भवन, देदे अपनी शरण
- भोर भई दिन चढ़ गया, मेरी अम्बे
Navdurga – Maa Shailputri
Anuradha Paudwal
Navdurga – Maa Shailputri
Jai Maa Shailputri pratham,
daksh ki ho santaan.
Navratri ke pahale din,
kare aapka dhyaan.
Agni kund mein ja koodi,
pati ka hua apmaan.
Agale janam mein pa liya
Shiv ke paas sthaan.
Jai Maa Shailaputri,
Jai Maa Shailaputri.
Raja Himaachal se mila,
putri ban sammaan.
Uma naam se pa liya,
devon ka varadaan.
Saja hai daaye haath mein,
sanhaarak trishul.
Baaye haath mein le liya,
khila kamal ka phool.
Jai Maa Shailaputri,
Jai Maa Shailaputri.
Bail hai wahan aapka,
japati ho Shiv naam.
darshan se anand mile,
Ambe tumhe pranaam.
Navaratro ki maan,
krpa kar do maa.
Jai Maa Shailputri,
Jai Maa Shailputri.
Jai Maa Shailputri pratham,
daksh ki ho santaan.
Durga Bhajans
- मन लेके आया मातारानी के भवन में
- माँ जगदम्बा की करो आरती
- आरती माँ आरती, नवदुर्गा तेरी आरती
- मंगल की सेवा सुन मेरी देवा - कालीमाता की आरती
- मात अंग चोला साजे, हर एक रंग चोला साजे
- धरती गगन में होती है, तेरी जय जयकार
- अयि गिरिनन्दिनि अर्थसहित - महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र अर्थ सहित
- दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी
- कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे
- तेरे दरबार में मैया ख़ुशी मिलती है
- सच्ची है तू सच्चा तेरा दरबार
- मन तेरा मंदिर आखेँ दिया बाती
- चलो बुलावा आया है, माता ने बुलाया है
- तुने मुझे बुलाया, शेरावालिये