Importance of Good Thoughts in Life – 2


…Continued from 1

भारतकी तो यह प्राचीन पद्धति है कि पहिले वैद्य लोग रोगीपर अपना विश्वास उत्पन्न करते हैं। पीछे औषधि देते हैं तब कहीं उनपर औषधि कार्यकारी होती है। रोगीमें धैर्य, साहस, उत्साह आदि उत्पन्न करनेका कारण भी यही है कि उनसे रोगके परिणामपर अप्रत्यक्ष न दिखाई देनेवाला लाभ होता है। अमेरीका आदि देशोमें तो कई डाक्टर मानसिक पवित्रतासे ही रोगीको आराम करते हैं। यदि रोगके घटनेपर भी रोगीको यह विश्वास हो कि मेरी बीमारी घट नहीं रही तो यह निःसंशय है कि वह रोग नहीं घटेगा? इसी तरह यदि वह दृढ़ निश्चय करले कि रोग कम हो रहा है तो एक दिन वह नि:शेष हो जायगा। इन दो बातोंसे यह साफ तौरसे प्रगट होता है कि मनके विचारोंका परिणाम शरीरिक स्वास्थपर अवश्य पड़ता है।
किसी धटनाके उपस्थित होनेपर यदि मनमें दुःख किया जाय तो मन दुखी होता है शरीर निर्बल और उत्साह विहीन हो जाता है। और बड़ा दुःख होता है। किसी कार्यमें चित्त नहीं लगेगा। और ऐसा मालूम ही होता है मानो बड़े भारी बोझसे दबे हों। इसीतरह यदि उस घटनापर विशेष लक्ष्य न देकर मनमें उस संबंधी विचार उपेक्षासे किये जाय, कुछ अधिक दुःख न किया जाय, दुःख होनेपर उसके विरोधी विचारोंसे मन परिपक्व किया जाय तो वह घटना विशेष दुःखकारी न. होकर एक साधारणसी प्रतीत होती है और किसी प्राकरका भी दुःख नहीं होता। खोटे विचारोंसे मनमें अशांति होती है। एक प्रकारकी अग्नि जलती है जिससे स्वास्थ्यसंपत्तिका हवन करना पड़ता है। क्योंकि आत्मा उन खोटे विचारोंको सहन नहीं करती वह उनकी प्रतिपालना करनेमें आनाकानी करती है और यह जाननेके कारण कि मेरे विचार अपवित्र है उनके मुताबिक कार्य करनेसे जगतमें अपयश होगा अतएव उन्हें छुपानेका प्रयत्न करनेमें व्यग्र होना पड़ता है, प्रगट हो जानेपर उनसे अपनेको प्रथक सिद्ध करनेकी चिंता करना पड़ती है। दिन फिक्रमें ही व्यतीत होते हैं। इस तरह बुरे विचारोंकी अग्नि शरीरका नाश कर देती है। स्वस्थ्य बिगड़ जाता है। रोग घरकर बैठते हैं।
इसके विरुद्ध पवित्र विचार प्रगट करनेमें, प्रगट हो जानैमें किसी प्रकारका भय नहीं
होता प्रस्तुत आत्माभिमान होता है। मन प्रफुल्लित होता है। मनके प्रफुल्लित होनेसे शारीरिक स्वास्थ्यकी वृद्धि होती है। अतएव सदा शुद्ध-पवित्र-भले विचारोंसे मनकी स्वच्छता रखना चाहिये।