Sunderkand Path – Sunderkand Chaupai – 03


Sunderkand Path – Sunderkand Chaupai – 03

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सुंदरकांड सरल अर्थ सहित


सुंदरकांड पाठ – 03 (दोहा 30 से आगे)

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हनुमान ने रामचन्द्रजी को सीताजी का सन्देश दिया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही।
रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही॥
नाथ जुगल लोचन भरि बारी।
बचन कहे कछु जनककुमारी॥


अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना।
दीन बंधु प्रनतारति हरना॥
मन क्रम बचन चरन अनुरागी।
केहिं अपराध नाथ हौं त्यागी॥


अवगुन एक मोर मैं माना।
बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना॥
नाथ सो नयनन्हि को अपराधा।
निसरत प्रान करहिं हठि बाधा॥


बिरह अगिनि तनु तूल समीरा।
स्वास जरइ छन माहिं सरीरा॥
नयन स्रवहिं जलु निज हित लागी।
जरैं न पाव देह बिरहागी॥


सीता कै अति बिपति बिसाला।
बिनहिं कहें भलि दीनदयाला॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।
बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति ॥31॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

रामचन्द्रजी और हनुमान का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना।
भरि आए जल राजिव नयना॥
बचन कायँ मन मम गति जाही।
सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही॥


कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई।
जब तव सुमिरन भजन न होई॥
केतिक बात प्रभु जातुधान की।
रिपुहि जीति आनिबी जानकी॥


सुनु कपि तोहि समान उपकारी।
नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥
प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥


सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं।
देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता।
लोचन नीर पुलक अति गाता॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत ॥32॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

श्री राम और हनुमानजी का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

बार बार प्रभु चहइ उठावा।
प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा।
सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥


सावधान मन करि पुनि संकर।
लागे कहन कथा अति सुंदर॥
कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा।
कर गहि परम निकट बैठावा॥


कहु कपि रावन पालित लंका।
केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना।
बोला बचन बिगत अभिमाना॥


साखामग कै बड़ि मनुसाई।
साखा तें साखा पर जाई॥
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा।
निसिचर गन बधि बिपिन उजारा॥


सो सब तव प्रताप रघुराई।
नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।
तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल ॥33॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

श्री राम और हनुमानजी का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

नाथ भगति अति सुखदायनी।
देहु कृपा करि अनपायनी॥
सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी।
एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥


उमा राम सुभाउ जेहिं जाना।
ताहि भजनु तजि भाव न आना॥
यह संबाद जासु उर आवा।
रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥


सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा।
जय जय जय कृपाल सुखकंदा॥
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा।
कहा चलैं कर करहु बनावा॥


अब बिलंबु केह कारन कीजे।
तुरंत कपिन्ह कहँ आयसु दीजे॥
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी।
नभ तें भवन चले सुर हरषी॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ।
नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ ॥34॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

श्री राम का वानरों की सेना के साथ समुद्र तट पर जाना

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा।
गर्जहिं भालु महाबल कीसा॥
देखी राम सकल कपि सेना।
चितइ कृपा करि राजिव नैना॥


राम कृपा बल पाइ कपिंदा।
भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा॥
हरषि राम तब कीन्ह पयाना।
सगुन भए सुंदर सुभ नाना॥


जासु सकल मंगलमय कीती।
तासु पयान सगुन यह नीती॥
प्रभु पयान जाना बैदेहीं।
फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं॥


जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई।
असगुन भयउ रावनहिं सोई॥
चला कटकु को बरनैं पारा।
गर्जहिं बानर भालु अपारा॥


नख आयुध गिरि पादपधारी।
चले गगन महि इच्छाचारी॥
केहरिनाद भालु कपि करहीं।
डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं॥


छंद – Sunderkand

चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे।
मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दुख टरे॥
कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं।
जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं॥


छंद – Sunderkand

सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई।
गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ठ कठोर सो किमि सोहई॥
रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी।
जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर।
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर ॥35॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मंदोदरी और रावण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

उहाँ निसाचर रहहिं ससंका।
जब तें जारि गयउ कपि लंका॥
निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा।
नहिं निसिचर कुल केर उवारा॥


जासु दूत बल बरनि न जाई।
तेहि आएँ पुर कवन भलाई॥
दूतिन्ह सन सुनि पुरजन बानी।
मंदोदरी अधिक अकुलानी॥


रहसि जोरि कर पति पग लागी।
बोली बचन नीति रस पागी॥
कंत करष हरि सन परिहरहू।
मोर कहा अति हित हियँ धरहू॥


समुझत जासु दूत कइ करनी।
स्रवहिं गर्भ रजनीचर घरनी॥
तासु नारि निज सचिव बोलाई।
पठवहु कंत जो चहहु भलाई॥


तव कुल कमल बिपिन दुखदाई।
सीता सीत निसा सम आई॥
सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें।
हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक।
जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक ॥36॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

रावण और मंदोदरी का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

श्रवन सुनी सठ ता करि बानी।
बिहसा जगत बिदित अभिमानी॥
सभय सुभाउ नारि कर साचा।
मंगल महुँ भय मन अति काचा॥


जौं आवइ मर्कट कटकाई।
जिअहिं बिचारे निसिचर खाई॥
कंपहिं लोकप जाकीं त्रासा।
तासु नारि सभीत बड़ि हासा॥


अस कहि बिहसि ताहि उर लाई।
चलेउ सभाँ ममता अधिकाई॥
मंदोदरी हृदयँ कर चिंता।
भयउ कंत पर बिधि बिपरीता॥


बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई।
सिंधु पार सेना सब आई॥
बूझेसि सचिव उचित मत कहहू।
ते सब हँसे मष्ट करि रहहू॥


जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं।
नर बानर केहि लेखे माहीं॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ॥37॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

विभीषण का रावण को समझाना

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सोइ रावन कहुँ बनी सहाई।
अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥
अवसर जानि बिभीषनु आवा।
भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥


पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन।
बोला बचन पाइ अनुसासन॥
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता।
मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥


जो आपन चाहै कल्याना।
सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥
सो परनारि लिलार गोसाईं।
तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥


चौदह भुवन एक पति होई।
भूतद्रोह तिष्टइ नहिं सोई॥
गुन सागर नागर नर जोऊ।
अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत ॥38॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

विभीषण का रावण को समझाना

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

तात राम नहिं नर भूपाला।
भुवनेस्वर कालहु कर काला॥
ब्रह्म अनामय अज भगवंता।
ब्यापक अजित अनादि अनंता॥


गो द्विज धेनु देव हितकारी।
कृपा सिंधु मानुष तनुधारी॥
जन रंजन भंजन खल ब्राता।
बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता॥


ताहि बयरु तजि नाइअ माथा।
प्रनतारति भंजन रघुनाथा॥
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही।
भजहु राम बिनु हेतु सनेही॥


सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा।
बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा॥
जासु नाम त्रय ताप नसावन।
सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस ॥39(क)॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात।
तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात ॥39(ख)॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

विभीषण और माल्यावान का रावण को समझाना

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

माल्यवंत अति सचिव सयाना।
तासु बचन सुनि अति सुख माना॥
तात अनुज तव नीति बिभूषन।
सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥


रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ।
दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ॥
माल्यवंत गह गयउ बहोरी।
कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥


सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥


तव उर कुमति बसी बिपरीता।
हित अनहित मानहु रिपु प्रीता॥
कालराति निसिचर कुल केरी।
तेहि सीता पर प्रीति घनेरी॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार।
सीता देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार ॥40॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

विभीषण का अपमान

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

बुध पुरान श्रुति संमत बानी।
कही बिभीषन नीति बखानी॥
सुनत दसानन उठा रिसाई।
खल तोहि निकट मृत्यु अब आई॥


जिअसि सदा सठ मोर जिआवा।
रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा॥
कहसि न खल अस को जग माहीं।
भुज बल जाहि जिता मैं नाहीं॥


मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती।
सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती॥
अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा।
अनुज गहे पद बारहिं बारा॥


उमा संत कइ इहइ बड़ाई।
मंद करत जो करइ भलाई॥
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा।
रामु भजें हित नाथ तुम्हारा॥


सचिव संग लै नभ पथ गयऊ।
सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि ॥41॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

विभीषण का प्रभु श्रीरामकी शरण के लिए प्रस्थान

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

अस कहि चला बिभीषनु जबहीं।
आयूहीन भए सब तबहीं॥
साधु अवग्या तुरत भवानी।
कर कल्यान अखिल कै हानी॥


रावन जबहिं बिभीषन त्यागा।
भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा॥
चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं।
करत मनोरथ बहु मन माहीं॥


देखिहउँ जाइ चरन जलजाता।
अरुन मृदुल सेवक सुखदाता॥
जे पद परसि तरी रिषनारी।
दंडक कानन पावनकारी॥


जे पद जनकसुताँ उर लाए।
कपट कुरंग संग धर धाए॥
हर उर सर सरोज पद जेई।
अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ।
ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ ॥42॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

विभीषण का प्रभु श्रीरामकी शरण के लिए प्रस्थान

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

ऐहि बिधि करत सप्रेम बिचारा।
आयउ सपदि सिंदु एहिं पारा॥
कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा।
जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा॥


ताहि राखि कपीस पहिं आए।
समाचार सब ताहि सुनाए॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई।
आवा मिलन दसानन भाई॥


कह प्रभु सखा बूझिऐ काहा।
कहइ कपीस सुनहु नरनाहा॥
जानि न जाइ निसाचर माया।
कामरूप केहि कारन आया॥


भेद हमार लेन सठ आवा।
राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी।
मम पन सरनागत भयहारी॥


सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना।
सरनागत बच्छल भगवाना॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ॥43॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

विभीषण को भगवान रामकी शरण प्राप्ति

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू।
आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू॥
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं।
जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥


पापवंत कर सहज सुभाऊ।
भजनु मोर तेहि भाव न काऊ॥
जौं पै दुष्ट हृदय सोइ होई।
मोरें सनमुख आव कि सोई॥


निर्मल मन जन सो मोहि पावा।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
भेद लेन पठवा दससीसा।
तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा॥


जग महुँ सखा निसाचर जेते।
लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते॥
जौं सभीत आवा सरनाईं।
रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।
जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत ॥44॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

विभीषण को भगवान रामकी शरण प्राप्ति

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सादर तेहि आगें करि बानर।
चले जहाँ रघुपति करुनाकर॥
दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता।
नयनानंद दान के दाता॥


बहुरि राम छबिधाम बिलोकी।
रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी॥
भुज प्रलंब कंजारुन लोचन।
स्यामल गात प्रनत भय मोचन॥


सघ कंध आयत उर सोहा।
आनन अमित मदन मन मोहा॥
नयन नीर पुलकित अति गाता।
मन धरि धीर कही मृदु बाता॥


नाथ दसानन कर मैं भ्राता।
निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥
सहज पापप्रिय तामस देहा।
जथा उलूकहि तम पर नेहा॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥45॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम


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