दुःख की परिस्थिति से लाभ


दुःख क्यों

तुम्हारे पास धन नहीं, बुद्धि नहीं,
स्वस्थ तन नहीं और
जगत्‌में अपमान मिल रहा है।

इसीलिये सुख नहीं हैं – ऐसी तुम्हारी धारणा है।

यदि वस्तुत: तुम्हारी ऐसी ही परिस्थिति है,
तो तुम्हे प्रसन्न होना चाहिये।

क्योंकि, इसी अवस्थामें
मनुष्य जगत्‌की ओरसे मोह ममता हटाकर,
भगवानकी ओर बढ़ता है।


ईश्वर चाहते है की –

भगवान् जिस पर बड़ी दया करते हैं,
उसीके सामने ऐसी परिस्थिति लाकर रखते हैं।

निश्चय ही भगवान् तुम पर कृपादृष्टि डाल रहे है,
और तुम्हे अपनी शरणमें लेनेको उत्सुक है।


दुःख की स्थिति से लाभ उठाये

अब तुम्हारा काम है कि
इस परिस्थिति से लाभ उठाये।

संसारके मनुष्य,
संसारसे दुःख और अपमान पाकर भी,
उसीमें रचे-पचे रहते हैं।

सोभाग्यकी बात है कि
तुम्हे जगत्‌के स्वरूपका वास्तविक अनुभव हुआ।

अब तुम यह निश्चय करो कि
दीनबंधु भगवान के सिवा कोई भी अपना नहीं।

अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम।

यह जगत्, यह शरीर, अनित्य और
दुःख-रूप है –
इसे पाकर भगवान का स्मरण करो।

ईश्वर के प्रति समर्पण ही जीवनका सार है।


भगवान का स्मरण

आप सुख,अच्छी सेहत, धन, मान
या अपना उद्धार, जो कुछ भी चाहो,
उसकी प्राप्तिका एकमात्र उपाय है,
भगवानका भजन।

भजन करने में कोई कठिनाई नही है।


ईश्वर का भजन कैसा हो

अपना तन, मन, धन –
जो कुछ भी अपना कहा जानेवाला हो,
सब कुछ मनसे भगवानको अर्पण कर दें।

आप भगवान के हो जाए।

सोयें भगवान‌ के लिये,
जागे भगवान के लिये।

सब कार्य, सारी चेष्टा,
भगवान्‌के लिये हो।

अपने लक्ष्य, अपने प्राणोंके भगवान् ही आराध्य बन जायें।

ऐसी अवस्थामें जो सुख मिलेगा,
उसकी कहीं तुलना नहीं है ।


काम और घर छोड़ने की जरूरत नहीं

आप घर न छोड़ें, काम न छोड़ें,
केवल भगवान्‌से नाता जोड़ लें।
उनके ही हो जाएं।

सब कार्य करते हुए भगवानका चिन्तन करें।

तो समझो बेड़ा पार है। शेष प्रभुकी कृपा ।