ईश्वर या परब्रह्मका प्रतीक ॐ है
(ॐ इति एतद् अक्षरं इदं सर्वं – ओम् इति एक अक्षरं ब्रह्म)
- वेदान्तमें जिसे परब्रह्मके नामसे पुकारा गया है,
- जो सर्वोपरि परम पुरुष है,
- जो चराचर सभी जीवोंका अधिष्ठान है,
- वह (परब्रह्म) नाम, जाति वा श्रेणीविभागके अन्तर्गत नहीं है।
- उस परब्रह्मको जानने के लिए (उसके सम्यक् ज्ञानके लिये) तथा
- उसे किसी न किसी रूपमें पुकारनेके लिये
- वेदोंने प्रतीक रूपसे नामका आश्रय लिया है।
नवजात शिशुका कोई भी नाम नहीं होता, पर जब उसका नामकरण हो जाता है, तब उस नामसे पुकारनेपर वह किसी न किसी रूपमें उत्तर भी देता ही है। वह हमारी ध्वनि-को पहचानता है और हम भी उसके भावोंको किसी ध्वनि, शब्द वा नामके आधारपर ही समझ लेते है।
- जो सांसारिक तापोसे सन्तप्त होकर व्याकुल हो जाते है वह अपनी विकलता वा संताप दूर करनेके लिये अपने “इष्टदेव” की ही शरणमें जाते है और अपने “उपास्यदेव” को किसी नामसे ही पुकारते है।
- वह नाम उस देवका प्रतीक होता है और उस नामका ध्यान व जप किया जाता है।
इसी प्रकार वह ”परबह्म” भी किसी नामसे पुकारा जाता है, तब साधकके किसी भी नामसे संबोधित करनेपर जो गुप्त और अव्यक्त है वह भी प्रकट और व्यक्त होता है।
सबके परे जो सत्ता है वह ब्रह्म ही है, उससे परे कोई नहीं हैं। वेदोंमें वही ॐ नामसे पुकारा गया है। अतएव (एकाक्षर ब्रह्म) ॐ की उपासना की जाती हैं। ॐ सव कुछ है।
“सर्व तस्वोपव्याख्यानम” – यह सब प्रपंच ॐ का ही है।
- ईश्वर वा ब्रह्मका प्रतीक अथवा नाम ॐ ही है। तुम्हारा आदि नाम ॐ ही है।
- मनुष्यकी त्रिगुणात्मक प्रकृति (“त्रिपुरी” रूपसे) सर्वत्र ॐ से ही परिव्याप्त है।
- अनन्त कोटि ब्राह्मणोंका अधिष्ठान ॐ से ही हुई है।
- इस भौतिक जगत्की उत्पत्ति ॐ से ही हुई है।
यह विश्व ॐ में ही स्थित हैं और ॐ में ही लीन हो जाता है। इसकी सृष्टि स्थिति और लय भी ॐ में है।
ॐ के तीन अक्षर – अ, उ, म
ॐ ध्वनि-का निर्माण तीन अक्षरोंसे हुआ है – अ, उ और म
- “अ” – इस भूलोक वा स्थूल दृश्य जगतका प्रतिक हैं।
- “उ” – सुक्ष्म जगतका प्रतिक है।
- उ अक्षर मनोमय जगतका, नक्षत्र जगतका, भुव लोक और स्वर्गलोकका परिचय देता है।
- “म” – जाग्रत अवस्थामें भी जिसका ज्ञान इन्द्रियोंसे नहीं हो सकता और जहां बुद्धि की भी पहुंच नहीं है उसका प्रतिक है।
- म अक्षर मन, बुद्धि और वाणीके भी परे जो सत्ता है उसका परिचय देता है।
ॐ सर्व का ही प्रतिरूप है। ॐ ही आपके प्राण, बुद्धि और विवेकका आधार स्तम्भ है। संसारमें जितने भी पदार्थ है वह सव ॐ में प्रतिष्ठित हैं।
अखिल विश्व ही ॐ से उत्पन्न हुआ है, ॐ में स्थित है और ॐ में ही लय को प्राप्त होता है।