Hey Shiv Shankar Param Manohar – Lyrics in Hindi


हे शिव शंकर परम मनोहर

हे शिव शंकर परम मनोहर
सुख बरसाने वाले।
दुःख टालते, भव से तार ते
शम्भू भोले भाले, शम्भू भोले भाले॥

हे शिव शंकर परम मनोहर
सुख बरसाने वाले।
दुःख टालते, भव से तार ते
शम्भू भोले भाले, शम्भू भोले भाले॥

लो प्रणाम हे मंगलकारी,
जगदीश्वर त्रिपुरारी।
सच्चा वर दो दीनजनो को
हे भोला भंडारी॥

आज तिहारी (तुम्हारी) शरण आये,
दाता मोहे बचा ले।
दुःख टालते, भव से तार ते
शम्भू भोले भाले, शम्भू भोले भाले॥

हे शिव शंकर परम मनोहर
सुख बरसाने वाले।
दुःख टालते, भव से तार ते
शम्भू भोले भाले, शम्भू भोले भाले॥


मृत्यु तेरे चरण दबाए,
विष भर कंठ में खेले।
भुत और प्रेत निकट नहीं आये,
शिव शिव नाम जो ले ले॥

उसका मन फिर क्या भरमाये,
जिसको तू ही संभाले।
दुःख टालते, भव से तार ते,
शम्भू भोले भाले, शम्भू भोले भाले॥

हे शिव शंकर परम मनोहर
सुख बरसाने वाले।
दुःख टालते, भव से तार ते
शम्भू भोले भाले, शम्भू भोले भाले॥


हे ज्ञानेश्वर शक्तिशाली,
अर्जी करे सवाली।
हम है फूल तेरी बगियाँ के,
तू है बाग़ का माली॥

पूजा लायक करले हम को,
अपनी शरण लगा ले।
दुःख टालते, भव से तार ते,
शम्भू भोले भाले, शम्भू भोले भाले॥

हे शिव शंकर परम मनोहर
सुख बरसाने वाले।
दुःख टालते, भव से तार ते
शम्भू भोले भाले, शम्भू भोले भाले॥

हे शिव शंकर परम मनोहर
सुख बरसाने वाले।


Hey Shiv Shankar Param Manohar

Hari Om Sharan


Shiv Bhajan



Mallikarjuna Jyotirling Katha


Shiv Bhajan

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा


श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥
जय मल्लिकार्जुन, जय मल्लिकार्जुन॥

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग – द्वितीय ज्योतिर्लिंग

शिवपुराण के अनुसार श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, 12 ज्योतिर्लिंगों में से द्वितीय ज्योतिर्लिंग है।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर स्थित हैं। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं।

प्राचीन समय में इसी प्रदेश में भगवान श्रीशंकर आते थे। इसी स्थान पर उन्हानें दिव्य ज्योतिर्लिग के रूप में स्थायी निवास किया। इस स्थान को कैलाश निवास कहते हैं।

Mallikarjuna Jyotirling Temple

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा – 1

शिव पार्वती के पुत्र स्वामी कार्तिकेय और गणेश दोनों भाई विवाह के लिए आपस में कलह करने लगे।

कार्तिकेय का कहना था कि वे बड़े हैं, इसलिए उनका विवाह पहले होना चाहिए, किन्तु श्री गणेश अपना विवाह पहले करना चाहते थे।

इस झगड़े पर फैसला देने के लिए दोनों अपने माता-पिता भवानी और शंकर के पास पहुँचे।

उनके माता-पिता ने कहा कि तुम दोनों में जो कोई इस पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहाँ आ जाएगा, उसी का विवाह पहले होगा।

शर्त सुनते ही कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े।

इधर स्थूलकाय श्री गणेश जी और उनका वाहन भी चूहा, भला इतनी शीघ्रता से वे परिक्रमा कैसे कर सकते थे। गणेश जी के सामने भारी समस्या उपस्थित थी।

श्रीगणेश जी शरीर से ज़रूर स्थूल हैं, किन्तु वे बुद्धि के सागर हैं।

उन्होंने कुछ सोच-विचार किया और अपनी माता पार्वती तथा पिता देवाधिदेव महेश्वर से एक आसन पर बैठने का आग्रह किया। उन दोनों के आसन पर बैठ जाने के बाद श्रीगणेश ने उनकी सात परिक्रमा की, फिर विधिवत् पूजन किया।

इस प्रकार श्रीगणेश माता-पिता की परिक्रमा करके पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गये।

उनकी चतुर बुद्धि को देख कर शिव और पार्वती दोनों बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीगणेश का विवाह भी करा दिया।

कुमार कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा करके कैलाश पर लौटे, तो नारदजी से गणेश के विवाह का वृतांत सुनकर रूष्ट हो गए, और माता पिता के मना करने पर भी उन्हें प्रणाम कर क्रोच पर्वत पर चले गए।

पार्वती के दुखित होने पर, और समझाने पर भी धैर्य न धारण करने पर, शंकर जी ने देवर्षियो को कुमार को समझाने के लिए भेजा, परंतु वे निराश हो लौट आए।

इस पर पुत्र वियोग से व्याकुल पार्वती के अनुरोध पर, पार्वती के साथ, शिवजी स्वयं वहां गए। पंरतु वह अपने माता पिता का आगमन सुनकर क्रोच पर्वत को छोडकर तीन योजन और दूर चले गये।

वहा पुत्र के न मिलने पर वात्सल्य से व्याकुल शिव-पार्वती ने उसकी खोज में अन्य पर्वतों पर जाने से पहले उन्होनें वहां अपनी ज्योति स्थापित कर दी। उसी दिन से मल्लिकार्जुन क्षेत्र के नाम से वह ज्योतिलिंग मल्लिकार्जुन कहलाया।

मल्लिकार्जुन – मल्लिका – माता पार्वती, अर्जुन – भगवान शंकर

मल्लिका, माता पार्वती का नाम है, जबकि, अर्जुन, भगवान शंकर को कहा जाता है। इस प्रकार सम्मिलित रूप से मल्लिकार्जुन नाम उक्त ज्योतिर्लिंग का जगत् में प्रसिद्ध हुआ।

अमावस्या के दिन शिवजी और पूर्णिमा के दिन पार्वतीजी आज भी वहां आते रहते है। इस ज्योतिर्लिग के दर्शन से धन-धान्य की वृद्धि के साथ, प्रतिष्ठा आारोग्य और अन्य मनोरथों की भी प्राप्ति होती है।

शिव पार्वती

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा – 2

चंद्रावती नाम की एक राजकन्या वन-निवासी बनकर इस कदली वन में तप कर रही थी।

एक दिन उसने एक चमत्कार देखा की एक कपिला गाय बिल्व वृक्ष के नीचे खडी होकर अपने चारों स्तनों से दूध की धाराएँ जमीन पर गिरा रही है। गाय का यह नित्यक्रम था।

चंद्रवती ने उस स्थान पर खोदा तो आश्चर्य से दंग रह गई। वही एक स्वयंभू शिवलिंग दिखाई दिया। वह सूर्य जैसा प्रकाशमान दिखाई दिया, जिससे अग्निज्वालाएँ निकलती थी।

भगवान शंकर के उस दिव्य ज्योतिर्लिंग की चंद्रावती ने आराधना की। उसने वहाँ अतिविशाल शिमंदिर का निर्माण किया।

श्री शैल मल्लिकार्जुन

भगवान शंकर चंद्रावती पर प्रसन्न हुए। वायुयान में बैठकर वह कैलाश पहुंची। उसे मुक्ति किली।

मंदिर की एक शिल्पपट्टी पर चंद्रावती की कथा खोदकर रखी है।

शैल मल्लिकार्जुन के इस पवित्र स्थान की तलहटी में कृष्णा नदी ने पाताल गंगा का रूप लिया है। लाखों भक्तगण यहाँ पवित्र स्नान करके ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए जाते है।

अनेक धर्मग्रन्थों में इस स्थान की महिमा बतायी गई है।

महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है।

कुछ ग्रन्थों में तो यहाँ तक लिखा है कि श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से दर्शको के सभी प्रकार के कष्ट दूर भाग जाते हैं, उसे अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है और आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाता है।

Mallikarjuna Jyotirling Katha
Mallikarjuna Jyotirling Katha

Jyotirling Katha

Shiv Bhajans

Mallikarjuna Jyotirling Katha

Shiv Bhajans

Shankar Teri Jatao Se, Behti Hai – Lyrics in Hindi


शंकर तेरी जटाओं से, बहती है गंगधारा

शंकर तेरी जटाओं से,
बहती है गंगधारा।
है जोगी अगम अपारा।
है जोगी अगम अपारा॥


है तन में भस्म रमाए,
मस्तक पर चन्द्र सुहाए।
उठे ध्वनि शब्द ओंकारा,
है जोगी अगम अपारा॥

शंकर तेरी जटाओं से,
बहती है गंगधारा।


तुम नील कंठ कहलाये,
तेरे अंग भुजंग सुहाए।
कर में त्रिशूल उजियारा,
है जोगी अगम अपारा॥

शंकर तेरी जटाओं से,
बहती है गंगधारा।


बाघम्बर आसन पाए,
गौरी वामांग सुहाए।
डमरू ध्वनि होत अपारा,
है जोगी अगम अपारा॥

शंकर तेरी जटाओं से,
बहती है गंगधारा।


सुर महि-सुर नर मुनि राइ,
सब तेरे ध्यान लगाए।
विश्वम्भर अगम अपरा,
है जोगी अगम अपारा॥

शंकर तेरी जटाओं से,
बहती है गंगधारा।


ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय

शंकर तेरी जटाओं से,
बहती है गंगधारा।
है जोगी अगम अपारा।
है जोगी अगम अपारा॥

शंकर तेरी जटाओं से,
बहती है गंगधारा।


Shankar Teri Jatao Se

Shri Mridul Krishna Shastri


Shiv Bhajan



Ganga Kinare Chale Jana – Lyrics in Hindi


गंगा किनारे चले जाना

कह गए साधु, कह गए कबीरा
कह गए साधु, कह गए फकीरा

क्या तेरा क्या मेरा कबीरा
सारा ये खेल है तक़दीरों का
सारा ये खेल है तक़दीरों का
क्या तूने ले जाणा, सब यही रह जाणा


मिटदी ये मूरत, ज़िन्द वो वाणी है
गंगा किनारे चले जाणा
मुड़के फिर नहीं आना


ये जीवन तेरा लकड़ी का पुतला
ये जीवन तेरा लकड़ी का पुतला
आग लगे जल जाना, मुड़के फिर नहीं आना

मिटदि है मूरत, जिवन वो वाणी है
गंगा किनारे चले जाणा
मुड़के फिर नहीं जाणा


ये जीवन तेरा माटी का पुतला
ये जीवन तेरा माटी का पुतला
माटी में ही मिल जाना
गंगा किनारे चले जाणा

मिटदी ये मूरत, ज़िन्द वो वाणी है
गंगा किनारे चले जाना
मुड़के फिर नहीं आना


ये जीवन तेरा मोह के धागे
ये जीवन तेरा मोह के धागे
गांठ लगे टूट जाना, मुड़के फिर नहीं आना

मिटदी ये मूरत, ज़िन्द वो वाणी है
गंगा किनारे चले जाना
मुड़के फिर नहीं आना


तेरे अपने ही तुझको जलाएंगे
कुछ दिन रोयेंगे, फिर भूल जायेंगे
फिर भूल जायेंगे, फिर भूल जायेंगे

मिटदी ये मूरत, ज़िन्द वो वाणी है
गंगा किनारे चले जाणा
मुड़के फिर नहीं आना

गंगा किनारे चले जाणा
मुड़के फिर नहीं आना


Ganga Kinare Chale Jana

Hansraj Raghuwanshi (हंसराज रघुवंशी)


Shiv Bhajan



Hey Bhole Shankar Padharo – Lyrics in Hindi


हे भोले शंकर पधारो

हे भोले शंकर पधारो, हे भोले शम्भू पधारो,
बैठे छिप के कहाँ।
जटाधारी पधारो, बैठे छिप के कहाँ।
गंगा जटा में तुम्हारी, हम प्यासे यहाँ॥


महा सती के पति, मेरी सुनो वंदना।
हे भोले शंकर पधारो, बैठे छिप के कहाँ।
आओ मुक्ति के दाता, पड़ा संकट यहाँ॥

भगीरथ को गंगा, प्रभु तुमने दी थी।
सगर जी के पुत्रों को, मुक्ति मिली थी॥
नील कंठ महादेव, हमें है भरोसा।
इच्छा तुम्हारी बिन,कुछ भी न होता॥

हे भोले शम्भू पधारो, हे गौरीशंकर पधारो,
किस ने रोके वहां।
आयो भसम रमइया, सब को तज के यहाँ॥
हे भोले….


मेरी तपस्या का फल चाहे लेलो।
गंगा जल अब अपने भक्तो को दे दो॥
प्राण पखेरू कहीं प्यासा उड़ जाए ना।
कोई तेरी करुना पे उंगली उठाए ना॥

भिक्षा मैं मांगू जन कल्याण की।
इच्छा करो पूरी गंगा स्नान की॥
अब ना देर करो, आ के कष्ट हरो।
मेरी बात रख लो, मेरी लाज रख लो॥

हे भोले गिरीधर पधारो, हे भोले विशधर पधारो,
डोरी टूट जाए ना।
मेरा जग में नहीं, कोई तुम्हारे बिना॥
हे भोले….


नंदी की सौगंध तुम्हे, वास्ता कैलाश का।
बुझ ने ना देना दीया, मेरे विशवास का॥
पूरी यदि आज ना हुई मनोकामना।
फिर दीनबंधू होगा तेरा नाम ना॥

भोले नाथ पधारो, तुमने तारा जहां।
आओ महा सन्यासी, अब तो आ जाओ ना॥
हे भोले….


Hey Bhole Shankar Padharo

Hariharan


Shiv Bhajan



Jai Girijapati Deen Dayala – Shiv Chalisa – Lyrics in Hindi


जय गिरिजा पति दीन दयाला – शिव चालीसा

श्री गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देख नाग मुनि मोहे॥


मैना मातु की ह्वै दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहैत हैं कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥


देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥


त्रिपुरासुर संग युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥


प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।
जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहं करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥


एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।
भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥


त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट से मोहि आन उबारो॥

मातु पिता भ्राता सब कोई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु अब संकट भारी॥


धन निर्धन को देत सदाहीं।
जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
स्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
नारद शारद शीश नवावैं॥


नमो नमो जय नमो शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पार होत है शम्भु सहाई॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥


पंडित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।
तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जनम जनम के पाप नसावे।
अंतवास शिवपुर में पावैं॥


कहे अयोध्या आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान।

स्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन्ह कल्याण॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥


Jai Girijapati Deen Dayala – Shiv Chalisa


Shiv Bhajan



Nirvana Shatakam – Atma Shatakam


Shiv Bhajan

निर्वाण षट्कम – आत्म षट्कम


मनो, बुद्ध्यहंकार, चित्तानि नाहम्
न च श्रोत्र जिह्वे, न च घ्राण नेत्रे।

मनो, बुद्ध्यहंकार, चित्तानि नाहम्
न च श्रोत्र जिह्वे, न च घ्राण नेत्रे।

न च व्योम भूमिर्, न तेजॊ न वायु:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥

Nirvana Shatakam - Atma Shatakam
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्

न च प्राण संज्ञो, न वै पञ्चवायु:,
न वा सप्तधातुर्, न वा पञ्चकोश:।

न वाक्पाणिपादौ, न चोपस्थपायू,
चिदानन्द रूप:, शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥


न मे द्वेष रागौ, न मे लोभ मोहौ,
मदो नैव मे, नैव मात्सर्य भाव:।

न धर्मो, न चार्थो, न कामो, ना मोक्ष:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥

निर्वाण षट्कम – शिवोऽहम् शिवॊऽहम्

न पुण्यं, न पापं, न सौख्यं, न दु:खम्,
न मन्त्रो, न तीर्थं, न वेदा:, न यज्ञा:।

अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥


न मृत्युर्, न शंका, न मे जातिभेद:,
पिता नैव मे, नैव माता, न जन्म:।

न बन्धुर्, न मित्रं, गुरुर्नैव शिष्य:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥

न पुण्यं, न पापं, न सौख्यं, न दु:खम् – चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्

अहं निर्विकल्पॊ, निराकार रूपॊ,
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।

न चासंगतं नैव मुक्तिर्, न मेय:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥


मनो, बुद्ध्यहंकार, चित्तानि नाहम्
न च श्रोत्र जिह्वे, न च घ्राण नेत्रे।

न च व्योम भूमिर्, न तेजॊ न वायु:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥

Blessings of Lord Shiv
Nirvana Shatakam – Atma Shatakam

मनो, बुद्ध्यहंकार, चित्तानि नाहम्
न च श्रोत्र जिह्वे, न च घ्राण नेत्रे।
न च व्योम भूमिर्, न तेजॊ न वायु:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥

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Shiv Bhajans

Nirvana Shatakam – Atma Shatakam

Shri Rameshbhai Oza

Sounds Of Isha

Nirvana Shatakam – Atma Shatakam


Mano, buddhi, ahankara, chittani naham.
Na cha shrotravjihve, na cha ghraana netre.

Na cha vyoma bhumir, na tejo, na vayuhu
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Na cha prana sangyo, na vai pancha vayuhu
Na va sapta dhatur, na va pancha koshah.

Na vak pani padam na chopastha payu.
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Na me dvesha ragau, na me lobha mohau,
mado naiv me, naiv matsarya bhavaha.

Na dharmo, na chartho, na kamo, na mokshaha.
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Na punyam na papam na saukhyam na duhkham
Na mantro na tirtham na vedah na yajnah

Aham bhojanam naiva bhojyam na bhotka
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Na me mrityu shanka, na me jati bhedaha,
Pita naiv me, naiv mataa, na janmaha

Na bandhur, na mitram, gurur naiva shishyaha.
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Aham nirvikalpo, nirakara rupo,
Vibhut-vatcha sarvatra, sarvendriyanam.

Na cha sangatham, na muktir, na meyaha.
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Mano buddhi ahankara, chittani naham,
Na cha shrotravjihve, na cha ghraana netre.

Na cha vyoma bhumir, na tejo na vayuhu.
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Nirvana Shatakam - Atma Shatakam
Nirvana Shatakam – Atma Shatakam

Mano, buddhi, ahankara, chittani naham.
Na cha shrotravjihve, na cha ghraana netre.

Na cha vyoma bhumir, na tejo, na vayuhu
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Shiv Bhajans

Man Mera Mandir Shiv Meri Puja – Lyrics in Hindi


मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा

ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय
सत्य है ईश्वर, शिव है जीवन,
सुन्दर यह संसार है।
तीनो लोक हैं तुझमे,
तेरी माया अपरम्पार है॥

ॐ नमः शिवाय नमो,
ॐ नमः शिवाय नमो


मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा,
शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा।
बोल सत्यम शिवम्, बोल तू सुंदरम,
मन मेरे शिव की महिमा के गुण गाए जा॥


पार्वती जब सीता बन कर,
जब श्री राम के सन्मुख आयी।
राम ने उनको माता कह कर,
शिव शंकर की महिमा गायी॥

शिव भक्ति में सब कुछ सुझा,
शिव से बढ़कर नहीं कोई दूजा।
बोल सत्यम शिवम्, बोल तू सुंदरम,
मन मेरे शिव की महिमा के गुण गए जा॥

मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा,
शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा।


तेरी जटा से निकली गंगा
और गंगा ने भीष्म दिया है।
तेरे भक्तो की शक्ति ने
सारे जगत को जीत लिया है॥

तुझको सब देवों ने पूजा,
शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा।
बोल सत्यम शिवम्, बोल तू सुंदरम,
मन मेरे शिव की महिमा के गुण गाए जा॥

मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा,
शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा।

मन मेरा मंदिर, शिव मेरी पूजा,
शिव से बड़ा नहीं कोई दूजा।
बोल सत्यम शिवम्, बोल तू सुंदरम,
मन मेरे शिव की महिमा के गुण गाए जा॥


Man Mera Mandir Shiv Meri Puja

Anuradha Paudwal


Shiv Bhajan



Shiv Tandav Stotra


Shiv Bhajan

शिव ताण्डव स्तोत्र


॥शिव ताण्डव स्तोत्रम्॥

जटाटवीगलज्जल प्रवाह पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥


जटाकटाह सम्भ्रम भ्रमन्नि लिम्प निर्झरी
विलोल वीचि वल्लरी विराज मान मूर्धनि।

धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके
(धगद्धगद्धगज्ज्वललललाटपट्टपावके)
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥


धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुर
स्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मान मानसे।

कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि
क्वचिद् दिगम्बरे (क्वचिद्दिगम्बरे)
मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥


जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणिप्रभा
कदम्ब कुङ्कुमद्रव प्रलिप्त दिग्वधूमुखे।

मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे
(मदान्ध सिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे)
मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥


सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर
प्रसून धूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रि पीठभूः।

भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः॥


ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जय स्फुलिङ्गभा
निपीत पञ्चसायकं नमन्नि लिम्पनायकम्।

सुधा मयूख लेखया विराजमान शेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरोजटालमस्तु नः॥


कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृत प्रचण्डपञ्चसायके।

धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक
प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥


नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः।

निलिम्प निर्झरी धरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधान बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥


प्रफुल्ल नील पङ्कज प्रपञ्च कालिमप्रभा
वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम्।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांध कच्छिदं तमन्त कच्छिदं भजे॥


अखर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी
रस प्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधुव्रतम्।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्तकं भजे॥


जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस
(जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस)
द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट्
(द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्)।

धिमिद्धिमिद्धिमि ध्वनन् मृदङ्ग तुङ्ग मङ्गल
ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥


स्पृषद्वि चित्रतल्पयो: भुजङ्ग मौक्ति कस्रजोर्
गरिष्ठ रत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि पक्ष पक्षयोः।

तृणारविन्द चक्षुषोः प्रजामही महेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम॥


कदा निलिम्प निर्झरी निकुञ्ज कोटरे वसन्
विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन्।

विलोल लोल लोचनो ललाम भाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥


इमं हि नित्यमेव मुक्त मुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्॥


पूजावसान समये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः॥


इति श्रीरावण-कृतम् शिव-ताण्डव-स्तोत्रम् सम्पूर्णम्

Shiv Tandav Stotra
Shiv Tandav Stotra

Shiv Bhajans

Shiv Tandav Stotra

Shankar Mahadevan

Uma Mohan

Shiv Tandav Stotra

Jatata vigalajjala pravaha pavita sthale
galeva lambya lambitam bhujanga tunga malikam

Damad damad damad daman ninada vadda marvayam
chakara chanda tandavam tanotu nah Shivah Sivam

Jata kataha sambhrama bhramanni limpa nirjhari
vilola vici vallari viraja mana murdhani

Dhagad dhagad dhagaj jvalal lalata patta pavake
kisora chandra shekhare ratih pratiksanam mama

Dharadharendra nandini vilas bandhu bandhura
sphurad diganta santati pramod maan maanase

Kripa kataksha dhorani niruddha durdharapadi
kvachid digambare mano vinoda metu vastuni

Jata bhujanga pingala sphurat phana maniprabha
kadamba kunkuma drava pralipta digvadhu mukhe

Madandha sindhurasphurat tvagutta riyame dure
mano vinod madbhutam vibhartu bhuta bhartari

Sahasralochana prabhritya sesh lekh shekhar
prasun dhuli dhorani vidhusaranghri pithabhuh

Bhujang rajamalaya nibaddha jatajutaka
sriyai ciraya jayatam chakora bandhu shekharah

Lalata cha tvara jvalad dhananjaya sphulingabha
nipitapanca sayakam namanni limpanayakam

Sudha mayukh lekhaya viraja manasekharam
mahakapali sampade shirojatala mastu nah

Karala bhala pattika dhagad dhagad dhagaj jvalad
dhananjaya huti krita prachanda pancha sayake

Dhara dharendra nandini kuchagra chitra patraka
prakalp naika silpini trilochane ratirmama

Navina megha mandali niruddha durdhara sphurat
kuhu nisithi nitamah prabandha baddha kandharah

Nilimpa nirjhari dharas-tanotu krutti sindhurah
kala nidhan bandhurah sriyam jagad dhuram dharah

Praphulla nilapankaja prapancha kalimaprabha-
-valam bikantha kandali ruci prabaddha kandharam

Smaracchidam puracchidam bhavacchidam makhacchidam
gajacchi daandh kachidam tamamta kacchidam bhaje

Akharva sarva mangala kala kadamba manjari
rasa prava hama dhuri vijrnbhana madhu vratam

Smarantakam purantakam bhavantakam makhantakam
gajanta kandha kantakam tamanta kantakam bhaje

Jaya tvada bhravi bhrama bhramad bhujanga masvasa
dvinir gamat kramasphurat kara labhala havya vat

Dhimid dhimid dhimi dhvanan mridanga tung mangala
dhvani krama pravartita prachanda tandavah Sivah

Sprushadhi chitra talpayo bhujanga mauktikasrajor-
garistha ratna losthayoh suhr dvi paksa paksayoh

Trnara vinda caksusoh praja mahi mahendrayoh
sama pravrtikah kada sadasivam bhajamyaham

Kada nilimpa nirjhari nikunja kotare vasan
vimukta durmatih sada sirahstha manjalim vahan

Vilola lola lochano lalama bhala lagna kah
siveti mantra muccharan kada sukhi bhava myaham

Imam hi nitya mevamukta muttamottamam stavam
pathan smaran bruvannaro visuddhi meti samtatam

Hare gurau subhaktimasu yati nanyatha gatim
vimohanam hi dehinam susankarasya cimtanam

Pujavasana samaye Dasavaktra gitam
yah shambhu pujana param pathati pradose

Tasya sthiram rathagajendra turangayuktam
Laksmim sadaiva sumukhim pradadati shambhu

iti Sri Ravana-krtam,
Shiv Tandav Stotram, sampurnam

Shiv Tandav Stotra
Shiv Tandav Stotra

Shiv Manas Puja – Meaning – Hindi


शिव मानस पूजा स्तोत्र – अर्थ सहित

शिव मानस पूजा एक सुंदर भावनात्मक स्तुति है, जिसमे मनुष्य अपने मनके द्वारा
भगवान् शिव की पूजा कर सकता है। शिव मानस पूजा स्तोत्र के जरिये कोई भी व्यक्ति बिना किसी साधन और सामग्री के भगवान् शिव की पूजा संपन्न कर सकता हैं। शास्त्रों में मानसिक पूजा अर्थात मनसे की गयी पूजा, श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वर्णित है।

शिव मानस पूजा स्तोत्र भगवान शिव के प्रति भक्ति और प्रेम को व्यक्त करता है, जिन्हें पशुपति (सभी प्राणियों यानी की जीवों के स्वामी) और दयानिधि (करुणा का खजाना) के रूप में भी जाना जाता है।

शिव मानस पूजा में, भक्त अपने मन में कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करते हुए, भगवान शिव को पूजा की विभिन्न वस्तुओं को अर्पित करने की कल्पना करता है।

इस स्तोत्र का तात्पर्य यह भी है कि भगवान शिव की सच्ची पूजा बाहरी अनुष्ठानों या सामग्रियों पर निर्भर नहीं है, बल्कि भक्त के आंतरिक दृष्टिकोण और भावनाओं पर निर्भर है। इस स्तोत्र का पाठ अक्सर हिंदुओं द्वारा उनकी दैनिक प्रार्थना या ध्यान के समय किया जाता है।


शिव मानस पूजा स्तोत्र – अर्थ और भावार्थ सहित

1. भगवान् शिव के लिए धूप, दीप, आसन

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः
स्नानं च दिव्याम्बरं,
नानारत्नविभूषितं मृगमदा
मोदाङ्कितं चन्दनम्।

जाती-चम्पक-बिल्व-पत्र-रचितं
पुष्पं च धूपं तथा,
दीपं देव दयानिधे पशुपते
हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥

  • रत्नैः कल्पितम-आसनं – यह रत्ननिर्मित सिंहासन,
  • हिमजलैः स्नानं – शीतल जल से स्नान,
  • च दिव्याम्बरं – तथा दिव्य वस्त्र,
  • नानारत्नविभूषितं – अनेक प्रकार के रत्नों से विभूषित,
  • मृगमदा मोदाङ्कितं चन्दनम् – कस्तूरि गन्ध समन्वित चन्दन,
  • जाती-चम्पक – जूही, चम्पा और
  • बिल्वपत्र-रचितं पुष्पं – बिल्वपत्रसे रचित पुष्पांजलि
  • च धूपं तथा दीपं – तथा धूप और दीप
  • देव दयानिधे पशुपते – हे देव, हे दयानिधे, हे पशुपते,
  • हृत्कल्पितं गृह्यताम् – यह सब मानसिक (मनके द्वारा) पूजोपहार ग्रहण कीजिये

भावार्थ:
हे देव, हे दयानिधे, हे पशुपते,
यह रत्ननिर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्न से विभूषित दिव्य वस्त्र,
कस्तूरि आदि गन्ध से समन्वित चन्दन,
जूही, चम्पा और बिल्वपत्रसे रचित पुष्पांजलि तथा
धूप और दीप
– यह सब मानसिक [पूजोपहार] ग्रहण कीजिये।

हे भगवान, मैं आपको बहुमूल्य रत्नों से बना आसन, ठंडे जल से स्नान, विभिन्न रत्नों से सुशोभित दिव्य वस्त्र, इंद्रियों को आनंदित करने वाला कस्तूरी मिश्रित चंदन का लेप, चमेली के फूल, चंपक और बिल्व पत्र, धूप और दीपक प्रदान करता हूं।

हे भगवान, हे दया के सागर, हे सभी प्राणियों के भगवान, कृपया इन प्रसादों को स्वीकार करें जिनकी मैंने अपने हृदय में कल्पना की है।


2. शंकरजी के लिए नैवेद्य, जल, शरबत

सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते
पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं
रम्भाफलं पानकम्।

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं
कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं
भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥

  • सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते पात्रे – नवीन रत्नखण्डोंसे जडित सुवर्णपात्र में
  • घृतं पायसं – घृतयुक्त खीर, (घृत – घी)
  • भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं – दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन,
  • रम्भाफलं पानकम् – कदलीफल, शरबत,
  • शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं – अनेकों शाक, कपूरसे सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल
  • ताम्बूलं – तथा ताम्बूल (पान)
  • मनसा मया विरचितं – ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं
  • भक्त्या प्रभो स्वीकुरु – हे प्रभो, कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये

भावार्थ:
मैंने नवीन रत्नखण्डोंसे जड़ित सुवर्णपात्र में घृतयुक्त खीर, दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन,
कदलीफल, शरबत, अनेकों शाक,
कपूरसे सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल तथा ताम्बूल
– ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं।
हे प्रभो, कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये।


3. भोलेनाथ के स्तुति के लिए वाद्य

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं
चादर्शकं निर्मलम्
वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला
गीतं च नृत्यं तथा।

साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा
ह्येतत्समस्तं मया
संकल्पेन समर्पितं तव विभो
पूजां गृहाण प्रभो॥

  • छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं – छत्र, दो चँवर, पंखा,
  • चादर्शकं निर्मलम् – निर्मल दर्पण,
  • वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला – वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य,
  • गीतं च नृत्यं तथा – गान और नृत्य तथा
  • साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा – साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति
  • ह्येतत्समस्तं मया संकल्पेन – ये सब मैं संकल्पसे ही
  • समर्पितं तव विभो – आपको समर्पण करता हूँ
  • पूजां गृहाण प्रभो – हे प्रभो, मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये

भावार्थ:
छत्र, दो चँवर, पंखा, निर्मल दर्पण,
वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य,
गान और नृत्य,
साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति
– ये सब मैं संकल्पसे ही आपको समर्पण करता हूँ।
हे प्रभु, मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये।


4. तन, मन, बुद्धि, कर्म, निद्रा – सब कुछ शिवजी के चरणों में

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः
प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोग-रचना
निद्रा समाधि-स्थितिः।

सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः
स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं
शम्भो तवाराधनम्॥

  • आत्मा त्वं – मेरी आत्मा तुम हो,
  • गिरिजा मतिः – बुद्धि पार्वतीजी हैं,
  • सहचराः प्राणाः – प्राण आपके गण हैं,
  • शरीरं गृहं – शरीर आपका मन्दिर है
  • पूजा ते विषयोपभोग-रचना – सम्पूर्ण विषयभोगकी रचना आपकी पूजा है,
  • निद्रा समाधि-स्थितिः – निद्रा समाधि है,
  • सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः – मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा
  • स्तोत्राणि सर्वा गिरो – सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं
  • यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं – इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ,
  • शम्भो तवाराधनम् – हे शम्भो, वह सब आपकी आराधना ही है

भावार्थ:
हे शम्भो, मेरी आत्मा तुम हो,
बुद्धि पार्वतीजी हैं,
प्राण आपके गण हैं,
शरीर आपका मन्दिर है,
सम्पूर्ण विषयभोगकी रचना आपकी पूजा है,
निद्रा समाधि है,
मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा
सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं।

इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है।


5. भगवान से अपने अपराध और गलतियों के लिए माफ़ी माँगना

कर-चरण-कृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
श्रवण-नयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्-क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥

  • कर-चरण-कृतं वाक् – हाथोंसे, पैरोंसे, वाणीसे,
  • कायजं कर्मजं वा – शरीरसे, कर्मसे,
  • श्रवण-नयनजं वा – कर्णोंसे, नेत्रोंसे अथवा
  • मानसं वापराधम् – मनसे भी जो अपराध किये हों,
  • विहितमविहितं वा – वे विहित हों अथवा अविहित,
  • सर्वमेतत्-क्षमस्व – उन सबको हे शम्भो आप क्षमा कीजिये
  • जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो – हे करुणासागर, हे महादेव शम्भो, आपकी जय हो, जय हो

भावार्थ: – हाथोंसे, पैरोंसे, वाणीसे, शरीरसे, कर्मसे, कर्णोंसे, नेत्रोंसे अथवा मनसे भी जो अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणासागर महादेव शम्भो। आप क्षमा कीजिये।

हे महादेव शम्भो, आपकी जय हो, जय हो।


शिव मानस पूजा स्तोत्र

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः
स्नानं च दिव्याम्बरं,
नानारत्नविभूषितं मृगमदा
मोदाङ्कितं चन्दनम्।

जाती-चम्पक-बिल्व-पत्र-रचितं
पुष्पं च धूपं तथा,
दीपं देव दयानिधे पशुपते
हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥

सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते
पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं
रम्भाफलं पानकम्।

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं
कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं
भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं
चादर्शकं निर्मलम्
वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला
गीतं च नृत्यं तथा।

साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा
ह्येतत्समस्तं मया
संकल्पेन समर्पितं तव विभो
पूजां गृहाण प्रभो॥

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः
प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोग-रचना
निद्रा समाधि-स्थितिः।

सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः
स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं
शम्भो तवाराधनम्॥

कर-चरण-कृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
श्रवण-नयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्-क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥


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