बोलो बोलो सब मिल बोलो, ओम नमः शिवाय भजन का आद्यात्मिक अर्थ
बोलो बोलो सब मिल बोलो, ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय वाक्यांश एक पवित्र मंत्र है – अर्थात – भगवान शिव को नमस्कार है, मैं शिव को नमन करता हूं या मैं शिव का सम्मान करता हूं। इस मंत्र का जाप करने से भगवान शिव का आशीर्वाद और उपस्थिति प्राप्त होती है।
जुट जटा में गंगाधारी, त्रिशूल धारी डमरू बजावे इस पंक्ति में भक्त भगवान शिव के स्वरूप और गुणों का वर्णन करते हैं। “जुट जटा में गंगाधारी” भगवान शिव को संदर्भित करता है, जो गंगा नदी को अपने जटा पर धारण करते हैं। “त्रिशूल धारी” का अर्थ है कि वह अपने एक हाथ में त्रिशूल रखते है, जो उनकी शक्ति का प्रतीक है। “डमरू बजावे” का अर्थ है कि वह डमरू बजाते है, जो सृजन और लय से जुड़ा संगीत वाद्ययंत्र है।
डम डम, डम डम डमरू बजावे यह पंक्ति भगवान शिव द्वारा बजाए जा रहे डमरू की ध्वनि दर्शाती है।
गूँज उठा ओम नमः शिवाय॥ “गूंज उठा” का अर्थ है “ध्वनि को गूंजने दो।” यह पंक्ति “ओम नमः शिवाय” मंत्र का जाप करने और उसके कंपन को गूंजने देने के महत्व पर जोर देती है।
प्रेम से बोलो, भाव से बोलो, जोर से बोलो, नमः शिवाय यह श्लोक भक्तों को प्रेम और भक्ति के साथ मंत्र का जाप करने के लिए प्रोत्साहित करता है “प्रेम से बोलो”, “भाव से बोलो” का अर्थ है गहरी भावना और अनुभूति के साथ कहना। यह सब “ओम नमः शिवाय” का जाप करते हुए किया जाता है।
कुल मिलाकर यह भजन भगवान शिव की भक्ति और स्तुति की अभिव्यक्ति है। भक्त उनके दिव्य गुणों को स्वीकार करते हुए और उनका आशीर्वाद मांगते हुए, प्रेम, श्रद्धा और तीव्रता के साथ उनके पवित्र मंत्र का जाप करने के लिए एक साथ आते हैं। यह परमात्मा से जुड़ने और आध्यात्मिक उत्थान का अनुभव करने का एक तरीका है।
शंकर भगवान के बारह ज्योतिर्लिंग में से श्रीकेदारनाथ का ज्योतिर्लिग हिमाच्छादित प्रदेश का एक दिव्य ज्योतिर्लिग है। श्री केदारनाथ हिमालय के केदार नामक श्रृंगपर स्थित हैं।
शिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं।
गौरीकुंड से दो-चार कोस की दूरी पर ऊंचे हिमशिखरों के परिसर में, मंदाकिनी नदी की घाटी में भगवान शंकरजी का दिव्य ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ का मंदिर दिखाई देता है।
यही कैलाश है जो भगवान शंकरजी का आद्य निवास स्थान है। लेकिन वहाँ शंकरजी की मूर्ति या लिंग नहीं है। केवल त्रिकोन के आकार का ऊँचाई वाला स्थान है।
कहते हैं वह महेश का (भैंसे का) पृष्ठभाग है। इस ज्योतिर्लिग का जो इस तरह का आकर बना है उसकी कथा इस प्रकार है –
श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिग की कथा
कौरव-पांडवों के युद्ध में अपने ही लोगों की हत्या हुई। पापलाक्षन करने के लिए पांडव तीर्थस्थान काशी पहुँचे।
परन्तु भगवान विश्वेश्वरजी उस समय हिमालय के कैलास पर गए हुए है, यह समाचार मिला।
पांडव काशी से निकले और हरिद्वार होकर हिमालय की गोद मे पहुँचे।
दूर से ही उन्हें भगवान शकरजी के दर्शन हुए। लेकिन पांडवों को देखकर शंकर भगवान लुप्त हो गए।
यह देखकर धर्मराज ने कहा – हे देव, हम पापियों को देखकर आप लुप्त हुए। ठीक है, हम आप को ढूँढ निकालेंगे। आपके दर्शन से हमारे सारे पाप धुल जाने वाले हैं।
जहाँ आप लुप्त हुए है वह स्थान अब गुप्तकाशी के रूप में पवित्र तीर्थ बनेगा।
गुप्तकाशी से (रुद्रप्रयाग) पांडव आगे निकलकर हिमालय के कैलास, गौरीकुंड के प्रदेश में घूमते रहे। शंकर भगवान को ढूँढते रहे।
इतने में नकुल-सह्देव को एक भैंसा दिखाई दिया।
उसका अनोखा रूप देखकर धर्मराज ने कहा- भगवान् शंकरजी ने हो यह भैंसे का अवतार धारण किया हुआ हे। वै हमें परख रहे हैं।
फिर क्या! गदाधारी भीम उस भैंसे के पीछे लगे।
भैंसा उछल पड़ा और भीम के हाथ नहीं आया। आखिर भीम थक गया।
फिर भी भीम ने गदा-प्रहार से भैंसे को घायल किया।
फिर वह भैंसा एक दर्रे के पास जमीन में मुँह दबाकर बैठ गया।
भीम ने उसकी पूँछ पकड़कर खींचा।
भैंसे का मुँह इस खिंचाव से सीधे नेपाल में जा पहुंचा। नेपाल में वह पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाने लगा।
भैंसे का पार्श्व भाग केदार धाम में ही रहा।
महेश के उस पार्श्व भाग से एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई।
दिव्य ज्योति में से शंकर भगवान प्रकट हुए। पांडवों को उन्होंने दर्शन दिए।
शंकर भगवान के दर्शन से पांडवों का पापक्षालन हुआ।
भगवान शंकरजी ने पांडवों से कहा – मै अभी यहाँ इसी त्रिकोणाकार में ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा के लिए रहूँगा। केदारनाथ के दर्शन से भक्तगण पावन होंगे।
महेशरूप लिए हुए शंकरजी को भीम ने गदा का प्रहार किया था। अत: भीम को बहुत पछतावा हुआ. बुरा लगा। वह महेश का शरीर घी से मलने लगा। उस बात की यादगार के रूप में आज भी उस त्रिकोणाकार दिव्य ज्योतिर्लिग केदारनाथ को घी से मलते है।
जिस स्थान से पांडव स्वर्ग सिधारे उस ऊँची चोटी को स्वर्गरोहिणी कहते है।
नर-नारायण जब बद्रिका ग्राम में जाकर पार्थिक पूजा करने लगे तो उनसे पार्थिव शिवजी वहां प्रकट हो गए।
कुछ समय पश्चात् एक दिन शिवजी ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो नर-नारायण लोक-कल्याण की कामना से उनसे स्वयं अपने स्वरूप से पूजा के निमित्त इस स्थान पर सर्वदा स्थित रहने की प्रार्थना की।
उन दोनों की इस प्रार्थना पर हिमाश्रित केदार नामक स्थान पर साक्षात महेश्वर ज्योति स्वरूप हो स्वयं स्थित हुए और वहां उनका केदारेश्वर नाम पड़ा।
केदारेश्वर के दर्शन से स्वप्न में भी दुःख प्राप्त नहीं होता। शंकर (केदारेश्वर) का पूजन कर पांडवों का सब दुःख जाता रहा।
हिमालय की देवभूमि में बसे इस तीर्थस्थान के दर्शन केवल छ: माह के काल में ही होते हैं।
वैशाख से लेकर आश्विन महीने तक के कालाविधि में इस ज्योतिर्लिग की यात्रा लोग कर सकते हैं।
वर्ष के अन्य महीनों में कड़ी सर्दी होने से, हिमालय पर्वत का यह प्रदेश बर्फाच्छादित रहने के कारण, श्रीकेदारनाथ का मंदिर दर्शनार्थी भक्तों के लिए बंद रहते है।
कार्तिक महीने में बर्फवृष्टी तेज होने पर इस मंदिर में घी का नंदादीप जलाकर श्रीकेदारेश्वर का भोग सिंहासन बाहर लाया जाता है। और मंदिर के द्वार बंद किये जाते हैं।
कार्तिक से चैत्र तक श्रीकेदारेश्वरजी का निवास नीचे जोशीमठ में रहता है।
वैशाख में जब बर्फ पिघल जाती है तब केदारधाम फिर से खोल दिया जाता है। इस दिव्य ज्योति के दर्शन कर लेने मे शिवभक्त अपने आपको धन्य मानते हैं।
हरिद्वार या हरद्वार को मोक्षदायिनी मायापुरी मानते हैं। इस हरिद्वार के आगे ऋषीकेश, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, सोनप्रयाग और त्रियुगी नारायण, गौरीकुंड इस मार्ग से केदारनाथ जा सकते हैं। कुछ प्रवास मोटर से और कुछ पैदल से करना पडता है। हिमालय का यह रास्ता अति दुर्गम और खतरा पैदा करने वाला होता है। परंतु अटल श्रद्धा के कारण यह कठिन रास्ता भक्त-यात्री पार करते हैं। श्रद्धा के बलपर इस प्रकार संकटों पर मात की जाती है।
चढान का मार्ग कुछ लोग घोडे पर बैठकर, टोकरी में बैठकर या झोली की सहायता से पार करते हैं। इस तरह का प्रबंध वही किया जाता है। विश्राम के लिए बीच-बीच में धर्मशालाएँ मठ तथा आश्रम खोले गए हैं।
यात्री गौरीकुंड स्थान पर पहुँचने के बाद वहाँ के गरम कुंड के पानी से स्नान करते हैं और गणेशजी के दर्शन करते हैं। गौरीकुंड का स्थान गणेशजी का जन्मस्थान माना गया है।
इस स्थानपर पार्वती-पुत्र गणेशजी को शंकरजीने त्रिशूल के प्रहार से मस्तकहीन बनाया था और बाद में गजमुख लगाकर जिंदा किया था।
शिव शंकर डमरू वाले – है धन्य तेरी माया जग में भजन का आध्यात्मिक अर्थ
है धन्य तेरी माया जग में, ओ दुनिया के रखवाले। “है धन्य तेरी माया जग में” का अर्थ है “इस दुनिया में आपकी उपस्थिति और आपकी माया धन्य है।” भजन भगवान शिव की दिव्य उपस्थिति को स्वीकार करता है और उनके अस्तित्व के लिए आभार व्यक्त करता है। “ओ दुनिया के रखवाले” का अर्थ है “हे दुनिया के रक्षक।” यह पंक्ति भगवान शिव को ब्रह्मांड के संरक्षक और संरक्षक के रूप में प्रतिष्ठित करती है।
शिव शंकर डमरू वाले, शिव शंकर भोले भाले॥ इस श्लोक में भगवान शिव की विभिन्न विशेषताओं से स्तुति की गई है। “शिव शंकर डमरू वाले” उन्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं जो अपने हाथ में डमरू रखते है, जो अक्सर ब्रह्मांडीय सृजन और लय से जुड़ा होता है। “शिव शंकर भोले भाले” उन्हें दयालु व्यक्ति के रूप में सम्मान देता है।
जो ध्यान तेरा धर ले मन में,वो जग से मुक्ति पाए। यह पंक्ति भगवान शिव के ध्यान और चिंतन के महत्व पर जोर देती है। इसमें कहा गया है कि जो लोग उनके स्मरण को अपने हृदय में रखते हैं वे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
भव सागर से उसकी नैया,तू पल में पार लगाए। यह श्लोक सांसारिक अस्तित्व (भव सागर) के पार भक्त की यात्रा दर्शाने के लिए एक नाव के रूपक का उपयोग करता है। भगवान शिव के प्रति समर्पण करके, भक्त आसानी से इस महासागर को पार कर दूसरे किनारे तक पहुंच सकता है।
संकट में भक्तो को बढ कर तू भोले आप संभाले॥ यहां, भगवान शिव की पूजा संकट के समय अपने भक्तों का विशेष ध्यान रखने वाले के रूप में की जाती है। भजन उनके दयालु स्वभाव में विश्वास व्यक्त करता है, क्योंकि वे स्वयं अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
है कोई नहीं इस दुनिया में तेरे जैसा वरदानी। यह पंक्ति बताती है कि इस दुनिया में भगवान शिव जैसा कोई नहीं है, और वह सबसे दयालु वरदानी हैं।
नित्त सुमरिन करते नाम तेरा सब संत ऋषि और ग्यानी। भक्त को लगातार ध्यान करने और भगवान शिव के नाम का जाप करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि साधु-संत और ज्ञानी भी इनके नाम का निरंतर स्मरण करते रहते हैं।
ना जाने किस पर खुश हो कर तू क्या से क्या दे डाले॥ यह अंतिम श्लोक भगवान शिव के आशीर्वाद और कृपा पर विस्मय और आश्चर्य व्यक्त करता है। यह दर्शाता है कि कैसे, बिना किसी स्पष्ट कारण के, वह अकल्पनीय उपहार और वरदान देकर किसी का जीवन बदल सकता है।
त्रिलोक के स्वामी हो कर भी क्या औघड़ रूप बनाए। “त्रिलोक के स्वामी हो कर भी” अर्थात “भले ही आप तीनों लोकों (त्रिलोक) के स्वामी हैं, फिर भी आपने विकराल (औघड़) रूप क्यों धारण किया?” भक्त को आश्चर्य होता है कि भगवान शिव ने उग्र और विस्मयकारी रूप क्यों धारण किया।
कर में डमरू त्रिशूल लिए और नाग गले लिपटाये। यह श्लोक भगवान शिव के दिव्य स्वरूप का वर्णन करता है। “कर में डमरू त्रिशूल लिए” भगवान शिव को अपने हाथों में डमरू और त्रिशूल धारण करने के लिए संदर्भित करता है। “और नाग गले लिपटाये” का अर्थ है एक नागराज उनकी गर्दन के चारों ओर लिपटा हुआ है, जो यह दर्शाता है की किस प्रकार भगवान् शिव अहंकार और कामनाओं को अपने वश में करके रखते है।
तुम त्याग के अमृत, पीते हो नित् प्रेम से विष के प्याले॥ यह लाइन भगवान शिव के अद्वितीय स्वभाव को दर्शाती है। भगवान शिव को समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को पीने के लिए जाना जाता है, जो प्रेम और करुणा के साथ ब्रह्मांड के बोझ को सहन करने की उनकी इच्छा को दर्शाता है।
तप खंडित करने काम देव जब इन्द्र लोक से आया। यह श्लोक उस घटना को संदर्भित करता है जहां प्रेम के देवता कामदेव ने इंद्र के स्वर्ग में भगवान शिव के ध्यान को भंग कर दिया था। “तप खंडित करने काम देव” का अर्थ है जब कामदेव ने आपके ध्यान को बाधित करने का साहस किया। इसके परिणामस्वरूप भगवान शिव की उग्र तीसरी आंख से कामदेव भस्म हो गए।
और साध के अपना काम बाण तुम पर वो मूरख चलाया। यहां, भजन में उल्लेख किया गया है कि कैसे अहंकारी कामदेव ने भगवान शिव की भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए अपने तीरों यानी की काम बाण का इस्तेमाल किया।
तब खोल तीसरा नयन भसम उसको पल में कर डाले॥ “जब आपने अपनी तीसरी आंख खोली,” भगवान शिव ने कामदेव को एक पल में राख (भस्म) में बदल दिया। तीसरी आंख, जो उनकी दिव्य चेतना की शक्ति का प्रतीक था।
जब चली कालिका क्रोधित हो खप्पर और खडग उठाए। “जब चली कालिका क्रोधित हो” देवी काली, पार्वती का अवतार, को संदर्भित करता है, जो उग्र और क्रोधित हो जाती है। “खप्पर और खड़ग उठाये” का अर्थ है “खोपड़ी का कटोरा और तलवार पकड़ना।” यह पंक्ति काली को उसके विकराल रूप में चित्रित करती है।
तब हाहाकार मचा जग में सब सुर और नर घबराए। जब काली ने अपने उग्र रूप धारण किया, तो सभी प्राणियों और मनुष्यों के बीच उथल-पुथल और भय था।
तुम बीच डगर में सो कर शक्ति देवी की हर डाले॥ इस श्लोक में, भगवान शिव उस पथ (डगर) में लेटे हुए हैं जहाँ काली भयंकर रूप से विचरण कर रही हैं। ऐसा करके, वह उसके गुस्से को शांत करते है और उसे शांतिपूर्ण स्थिति में वापस लाते है।
अब दृष्टि दया की भक्तो पर हे डमरू-धर कर देना। अब, हे डमरू धारक (भगवान्), अपने भक्तों पर अपनी दयालु दृष्टि बरसाओ। भक्त, सभी भक्तों के लिए, भगवान शिव से आशीर्वाद चाहता है।
भक्तों की झोली गौरी शंकर भर देना। “हे गौरी शंकर (भगवान शिव और पार्वती का एक प्रतीक), भक्तों के दिलों को अपने दिव्य आशीर्वाद से भरें।” यह भजन भगवान शिव और पार्वती से भक्तों के लिए आशीर्वाद की कामना करता है।
अपना ही सेवक जान हमे भी चरणों में अपनाले। भजन का समापन भक्त द्वारा भगवान शिव के स्वयं सेवक के रूप में पहचाने जाने और उनके चरणों में स्थान प्राप्त करने, उनकी दिव्य कृपा और मार्गदर्शन प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करने के साथ होता है।
यह भजन भगवान शिव के अद्वितीय गुणों, उनकी सुरक्षात्मक और दयालु प्रकृति और ब्रह्मांड के सर्वोच्च देवता के रूप में उनकी भूमिका की प्रशंसा करता है। इसमें भगवान शिव की अपार शक्ति और अपने भक्तों के प्रति उनकी स्नेहपूर्ण देखभाल को दर्शाने के लिए कामदेव और काली की कहानी का भी संदर्भ दिया गया है।
कुल मिलाकर, यह भजन भगवान शिव की महानता, उनके दयालु स्वभाव और उनके प्रति भक्ति की शक्ति का गुणगान करता है। यह भक्त को लगातार उनका ध्यान करने और उनकी दिव्य इच्छा के प्रति समर्पण करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
बम भोले, बम भोले – यही वो तंत्र है भजन का आध्यात्मिक अर्थ
यही वो तंत्र है, यही वो मंत्र है, प्रेम से जपोगे तो मिटेंगे सारे गम यह तंत्र (साधना) है, यह मंत्र (पवित्र मंत्र) है। प्रेमपूर्वक इसका जाप करो तो सारे दुख दूर हो जाते हैं।
बम भोले, बम भोले, बम बम बम “बम भोले” भगवान शिव को समर्पित भक्ति गीतों के दौरान कहे जाने वाले शब्दों को संदर्भित करता है।
यह श्लोक भक्ति की शक्ति और भगवान शिव के पवित्र मंत्र के जाप पर जोर देता है। यह सुझाव देता है कि भगवान शिव के नाम का ईमानदारी से और प्रेमपूर्वक जाप करने से व्यक्ति सभी दुखों और चुनौतियों से राहत पा सकता है।
कभी योगी, कभी भोगी, कभी बाल ब्रह्मचारी, कभी आदिदेव, महादेव त्रिपुरारी कभी-कभी, भगवान शिव एक योगी (तपस्वी) का रूप धारण करते हैं, कभी-कभी वे सांसारिक सुखों (भोगी) का आनंद लेते हैं। वह एक युवा ब्रह्मचारी (बाल ब्रह्मचारी) या आदिदेव, देवताओं के महान देवता (महादेव), और राक्षस त्रिपुरासुर (त्रिपुरारी) के विनाशक के रूप में प्रकट होते हैं।
कभी शंकर, कभी शम्भू, कभी भोले भंडारी, नाम है अनंत तेरे जग बलिहारी उन्हें शंकर, शंभू और पवित्र गंगा (भोले भंडारी) के दयालु धारक के रूप में भी जाना जाता है। हे शिव, आपका नाम अनंत है, और दुनिया आपकी भक्त है।
यह श्लोक भगवान शिव की विभिन्न अभिव्यक्तियों और पहलुओं का वर्णन करता है। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि वह कैसे अलग-अलग भूमिकाएँ और रूप धारण कर सकते है, एक ध्यानमग्न संन्यासी से लेकर जीवन का एक चंचल आनंद लेने वाला, एक युवा ब्रह्मचारी से लेकर परम दिव्य शक्ति और बुराई का नाश करने वाला। यह उनके दिव्य अस्तित्व की असीमित प्रकृति पर जोर देते हुए उनके कई नामों और विशेषताओं को स्वीकार करता है।
शिव का नाम हो, सुबह शाम हो, जपते रहो जब तक दम में है दम सुबह-शाम शिव का नाम आपके साथ रहे। जब तक आपके शरीर में सांस है तब तक उनका नाम गाते रहें। दूसरे शब्दों में, जीवन भर भगवान शिव का नाम जपते और गाते रहें।
यह श्लोक भगवान शिव के प्रति निरंतर भक्ति को प्रोत्साहित करता है, भक्त से सुबह से शाम तक और जब तक वे जीवित हैं, भक्ति और समर्पण के साथ उनके नाम का जप करने का आग्रह करता है। यह भक्ति की शाश्वत प्रकृति और परमात्मा की निरंतर याद की शक्ति पर जोर देता है।
दक्ष प्रजापति जब अहंकारा, त्रिशूल से शीश उतारा माफ़ी मांगी होश में आयो, बकरे का तब शीश लगायो आशुतोष भोले बाबा भए प्रसन्न, बकरे ने मुख से जो बोली बम बम
जब दक्ष प्रजापति (हिंदू धर्म में एक पौराणिक व्यक्ति) अहंकारी हो गए, तो भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उनका सिर काट दिया। दक्ष को होश आ गया और उसने क्षमा मांगी। दक्ष के अनुरोध पर, भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने एक बकरे का सिर लगा दिया। दयालु और शीघ्र प्रसन्न होने वाले भगवान शिव प्रसन्न हो गये। तभी बकरे ने अपने मुँह से “बम बम” का नारा लगाया।
यह श्लोक दक्ष प्रजापति के अहंकार और भगवान शिव द्वारा उनकी क्षमा की घटना का वर्णन करता है। यह शिव की परोपकारिता और उनसे क्षमा चाहने वालों को क्षमा करने और आशीर्वाद देने की तत्परता पर प्रकाश डालता है।
यह पंक्तियाँ शिव रुद्राष्टकम से है – कलातीत कल्याण कल्पान्त कारी, सदा सज्जनानन्द दाता पुरारी॥ चिदानन्द संदोह मोहा पहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥ भगवान शिव समय (कलातीत) की सीमाओं से परे हैं, जो शुभता (कल्याण) प्रदान करते हैं, समय के अंत (कल्पांत) के निर्माता हैं। वह सदैव प्रसन्न रहने वाला, सज्जनों को आनंद देने वाला (सज्जानंद दाता पुरारी) है। वह अज्ञानता और भ्रम के पहाड़ को हटा देता है, और मैं उनसे आशीर्वाद और कृपा के लिए प्रार्थना करता हूं।
यह श्लोक सर्वोच्च और शाश्वत अस्तित्व के रूप में भगवान शिव के दिव्य गुणों और भूमिका की प्रशंसा करता है। यह उसे शुभता और आनंद का स्रोत, अज्ञानता को दूर करने वाला और समय से परे जाने वाला बताता है।
ध्यान लगाई के, ज्योत जलाई के, शिव को पुकारते चलो जी हर दम एकाग्रचित्त ध्यान और भक्ति की लौ से निरंतर भगवान शिव को पुकारते रहो। यह श्लोक भगवान शिव के निरंतर ध्यान, भक्ति और स्मरण को प्रोत्साहित करता है। यह किसी के दिल में प्रेम और समर्पण की लौ जलाए रखने और हर समय ईमानदारी से शिव को पुकारने के महत्व पर जोर देता है।
खेल रही है जटा में गंगा, तन पे खाल बाघम्बर अंगा पवित्र नदी गंगा भगवान शिव की जटाओं में चंचलतापूर्वक बह रही है। वह अपने शरीर पर बाघ की खाल पहनते हैं, और वह श्मशान घाट की राख (बागंबर अंग) से सुशोभित होते हैं।
बाजे डमरू पिकर भंगा, मेरो जोगी मस्त मलंगा, भक्त मांगे तेरी नज़रे करम वह डमरू बजाता है और भांग (एक पारंपरिक नशीला पेय) पीने का आनंद लेता है। मेरा योगी (तपस्वी) दिव्य प्रेम में आनंदित और मतवाला है। भक्त आपकी कृपा दृष्टि और आशीर्वाद चाहता है।
यह श्लोक भगवान शिव के अद्वितीय और दिव्य स्वरूप को दर्शाता है। इसमें बताया गया है कि कैसे गंगा नदी उनके जटाओं से बहती है, कैसे वह बाघ की खाल पहनते हैं, और श्मशान की राख उनके त्यागी स्वभाव का प्रतीक है। यह उन्हें एक आनंदित और तपस्वी के रूप में चित्रित करता है जो अपने दिव्य नृत्य के हिस्से के रूप में डमरू बजाने और भांग का सेवन करने का आनंद लेता है। भक्त भक्ति की इन अभिव्यक्तियों के माध्यम से उनकी कृपा और आशीर्वाद चाहता है।
कुल मिलाकर, ये भजन गीत भगवान शिव के प्रति भक्ति और प्रशंसा को खूबसूरती से व्यक्त करते हैं, उनके दिव्य गुणों की प्रशंसा करते हैं और उन पर निरंतर भक्ति और ध्यान को प्रोत्साहित करते हैं।
आयो आयो रे शिवरात्रि त्यौहार, सारा जग लागे आज काशी हरिद्वार, आयो-आयो रे, शिवरात्रि त्योहार…
धरती और गगन ने मिलके शब्द यही दोहराए, ओम नमः शिवाय बोलो ओम नमः शिवाय, चलो शिव धाम चलो चाहो अगर उद्धार, आयो-आयो रे, शिवरात्रि त्योहार…
शिवरात्रि के दिन श्रद्धा से शिव महिमा जो गाए, अंत समय शिव भक्ति उसको मोक्ष की राह दिखाए, आज के दिन सुनते शिव भक्तो की पुकार, आयो-आयो रे, शिवरात्रि त्योहार…
आयो आयो रे, शिवरात्रि त्यौहार, सारा जग लागे आज काशी हरिद्वार, आयो-आयो रे, शिवरात्रि त्योहार…
शिव का नाम लो, हर संकट में ॐ नमो शिवाय,बस यह नाम जपो
भगवान शिव का नाम लो; हर कठिन परिस्थिति में “ओम नमो शिवाय” का जाप करें और इसी नाम का ही ध्यान करें।
यह श्लोक मुसीबत या संकट के समय भगवान शिव के नाम, “ओम नमो शिवाय” का जाप करने की शक्ति पर जोर देता है। यह दिव्य नाम के जाप के माध्यम से सांत्वना और शक्ति प्राप्त करने को प्रोत्साहित करता है।
जय शम्भू कहो, जब कोई मुश्किल आन पड़े तो भोले नाथ रटो
कहो, “भगवान शिव की जय।” जब भी कोई कठिनाई आए तो भगवान शिव को याद करें।
यह श्लोक भगवान शिव को दयालु के रूप में स्तुति करता है। यह जीवन में चुनौतियों या कठिनाइयों का सामना करते समय उनकी शरण लेने और उनके नाम का आह्वान करने का सुझाव देता है।
शिव के चरणों में है चारो धाम। देवों में भी शिव जी हैं प्रधान॥
भगवान शिव के चरणों में ही सभी तीर्थ निवास करते हैं। देवताओं में शिव सर्वोपरि हैं।
यह श्लोक भगवान शिव के महत्व को यह कहकर स्वीकार करता है कि सभी पवित्र स्थान (चार धाम) उनके दिव्य चरणों में मौजूद हैं। यह इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि देवताओं में भगवान शिव का प्रमुख स्थान है।
सब का बस वही एक स्वामी है। दान जिसका है धरम, ऐसा दानी है।
वह सबका एकमात्र सच्चा स्वामी है। दान देना उसका स्वभाव है; वह बहुत उदार दाता है।
यह श्लोक भगवान शिव को ब्रह्मांड के परम भगवान और स्वामी के रूप में वर्णित करता है। यह उनके दयालु और उदारता के दिव्य गुण को भी चित्रित करता है। हिंदू परंपराओं में, भगवान शिव को “आशुतोष” के रूप में जाना जाता है, जो आसानी से प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।
जग का है वो पिता, इतना जान लो॥
वह सारे विश्व का पिता है; इस बात को अच्छे से समझ लें.
यह श्लोक भगवान शिव को सार्वभौमिक पिता के रूप में संबोधित करता है, जो ब्रह्मांडीय निर्माता और पालनकर्ता के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाता है।
शिव की महिमा सब से है महान। प्रेम दया का दूजा है यह नाम॥
भगवान शिव की महिमा सबसे बड़ी है। (ईश्वर का) दूसरा नाम प्रेम और करुणा है।
यह श्लोक भगवान शिव की महानता का बखान करता है और कहता है कि उनकी दिव्य महिमा सभी से बढ़कर है। इसमें यह भी उल्लेख है कि ईश्वर के स्वभाव का सार प्रेम और करुणा के दो गुणों द्वारा वर्णित किया जा सकता है।
विष अमृत मान कर पी लिया जिसने। हर प्राणी का कल्याण किया जिसने।
जिसने विष को ऐसे पिया जैसे कि वह अमृत हो। जिसने सभी प्राणियों का कल्याण सुनिश्चित किया।
यह श्लोक हिंदू पौराणिक कथाओं के उस प्रसिद्ध प्रसंग को संदर्भित करता है जब भगवान शिव ने दुनिया को बचाने के लिए समुद्र मंथन के दौरान जहर (हलाहल विष) पी लिया था। खतरे के बावजूद, उन्होंने सभी प्राणियों की रक्षा के लिए इसका सेवन किया। यह उनके निस्वार्थ कार्य और सभी प्राणियों की भलाई के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालता है।
द्वारे पे शिव खड़े, तुम पहचान लो॥
जब शिव आपके द्वार पर खड़े हों, तो उन्हें पहचानें।
यह श्लोक भक्तों से भगवान शिव की उपस्थिति को पहचानने और महसूस करने का आग्रह करता है, जो उनकी रक्षा और मार्गदर्शन के लिए हमेशा मौजूद रहते हैं।
कुल मिलाकर, ये भजन गीत भगवान शिव के दिव्य गुणों का जश्न मनाते हैं और भक्तों को उनकी शरण लेने, उनके नाम का जाप करने और अपने जीवन में उनकी उपस्थिति को पहचानने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। गीत भगवान शिव की भक्ति, स्तुति और महानता को व्यक्त करता हैं। वे हिंदू धर्म में प्रेम, करुणा और पारलौकिक चेतना के अवतार भगवान शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा की भावना पैदा करते हैं।
सुबह सुबह ले शिव का नाम भजन आध्यात्मिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण भजन है।
यह भजन हमें बताता है कि सुबह उठकर क्यों सबसे पहले भगवान शिव का नाम लेना चाहिए और उससे हमें क्या-क्या आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ मिलते है।
इस भजन की पंक्तियों से हमें कई महत्वपूर्ण आध्यात्मिक संदेश मिलते हैं। ये सन्देश हमें जीवन जीने और दूसरों के साथ व्यवहार करने के तरीके में मदद कर सकते हैं।
इन संदेशों के अलावा, भजन हमें भगवान् शिव की दया और करुणा के बारे में भी बताता है।
सुबह उठकर सबसे पहले क्या करना चाहिए?
सुबह सुबह ले शिव का नाम, कर ले बन्दे यह शुभ काम।
शिव भगवान् को हिंदू धर्म में देवों का देव माना जाता है। इसलिए सुबह उठकर सबसे पहले भगवान शिव का नाम लेना चाहिए।
सुबह सुबह ईश्वर का स्मरण करने से हमें दिन भर के लिए सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति मिल जाती है और साथ ही साथ भगवान् का आशीर्वाद भी प्राप्त हो जाता है, जिससे हमारे सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
इसलिए हमें अपने दिन की शुरुआत भगवान शिव के नाम का जाप करके करनी चाहिए और सकारात्मक और धार्मिक कार्यों में संलग्न होना चाहिए।
सभी चिंताओं और दु:खों से छुटकारा कैसे पा सकते है?
शिव के रहते कैसी चिंता, साथ रहे प्रभु आठों याम।
यदि भगवान हमारे साथ हैं, तो हमें किसी चीज़ की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।
इसलिए यदि हम सच्चे दिल से ईश्वर भक्ति करते है, तो भगवान हमेशा हमारे साथ होते हैं, चाहे दिन हो या रात, और वे हमें हर कदम पर मदद करते हैं।
यदि हमारे मन में हर समय ईश्वर का स्मरण है, जीवन में शिव हैं, तो हमें कोई चिंता नहीं करनी चाहिए।
यह इसलिए है क्योंकि शिव अपने भक्तों के रक्षक हैं। वह दिन-रात हमारे साथ रहते हैं और हमें हर समय मदद करते हैं।
शिव को भजले सुख पायेगा, मन को आएगा आराम
भगवान की भक्ति हमें सुख और शांति प्रदान करती है।
ईश्वर की भक्ति से हमारा मन निर्मल होता है और हम जीवन में सही राह पर चल पाते हैं।
जब हम भगवान की भक्ति करते हैं, तो हम उनका दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता हैं, जो हमें जीवन में खुशी और शांति प्रदान करता हैं। अर्थात ईश्वर भक्ति से व्यक्ति को आंतरिक सुख की प्राप्ति होती है और मानसिक शांति का अनुभव होता है।
यह इसलिए है क्योंकि शिव सभी भलाई और करुणा के स्रोत हैं। जब हम उनकी भक्ति के माध्यम से उनसे जुड़ते हैं, तो हम उनकी दिव्य ऊर्जा तक पहुंच सकते हैं और अपने जीवन को बदल सकते हैं।
दूसरों की हमेशा मदद करे
खुद को राख लपेटे फिरते, औरों को देते धन धाम
भगवान शिव नि:स्वार्थ हैं। वे दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, भले ही वे खुद कठिनाइयों का सामना कर रहे हों।
इसलिए हमें भी दूसरों की मदद करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
भजन की यह पंक्ति बताती है की शिवजी खुद राख लपटे फिरते है, लेकिन उदारतापूर्वक दूसरों को धन और समृद्धि प्रदान करते हैं।
इसी प्रकार हमें भी अपने धन और समृद्धि को दूसरों के साथ हमेशा साझा करते रहना चाहिए और विनम्र बने रहना चाहिए।
देवो के हित विष पी डाला, नील कंठ को कोटि प्रणाम॥
जब देवताओं और दैत्यों ने समुद्र मंथन किया, तो एक घातक विष निकला। कोई भी विष पीने के लिए तैयार नहीं था, लेकिन शिवजी ने उसे पी लिया ताकि देवताओं को बचाया जा सके।
इसी प्रकार हमें भी दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
भगवान की भक्ति हमें दूसरों के प्रति दयालु और करुणावान बनने में मदद करती है।
भगवान शिव के चरणों की शरण लेने से क्या लाभ मिलता है?
शिव के चरणों में मिलते, सारे तीरथ चारो धाम।
भगवान शिव के चरणों में सभी तीर्थ और चारों धाम मिल जाते हैं। यानी की भोलेनाथ के चरणों की शरण लेने से सभी पवित्र स्थानों और तीर्थों के दर्शन के बराबर आध्यात्मिक सार और लाभ प्राप्त होता है।
इसका मतलब है कि शिव की भक्ति से हमें मोक्ष प्राप्त होता है और हम इस संसार के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।
कर्म और उसके परिणाम का सिद्धांत कैसा है?
करनी का सुख तेरे हाथों, शिव के हाथों में परिणाम
कर्म करना हमारे हाथ में है, यानी की हम जो करना चाहते हैं, वह करना हमारे हाथ में है। लेकिन, उसके परिणाम शिव के हाथ में हैं।
इसका मतलब है कि हम जो भी करते हैं, वह शिव की इच्छा के अनुसार होना चाहिए।
अगर हम शिव की इच्छा के अनुसार करते हैं, जैसे की निस्वार्थ सेवा, दूसरों की मदद, बिना घमंड और अहंकार से किये गए कर्म, तो हमें उसके अच्छे परिणाम मिलेंगे।
लेकिन, अगर हम शिव की इच्छा के विरुद्ध करते हैं, जैसे की स्वार्थ की भावना से मदद, अहंकार और घमंड के साथ कर्म यानी की मै कर रहा हूँ, इस भाव से कर्म, तो हमें उसके बुरे परिणाम मिलेंगे।
शिव का नाम लेने का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
शिव का नाम लेने का अर्थ है उनके गुणों और विशेषताओं को अपने जीवन में उतारना। शिव अत्यंत दयालु, करुणामय और न्यायप्रिय हैं। उनके नाम लेने से हम भी इन गुणों को अपने जीवन में विकसित कर सकते हैं।
शिव का नाम लेने का अर्थ है उनसे जुड़ना। जब हम उनके नाम का जाप करते हैं, तो हम उनके साथ एक आध्यात्मिक संबंध स्थापित करते हैं। इससे हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।
शिव का नाम लेने का अर्थ है अपने मन और आत्मा को शुद्ध करना। शिव का नाम एक शक्तिशाली मंत्र है जो हमारे मन और आत्मा को शुद्ध करने में मदद करता है।
भगवान् शिव किस प्रकार सहायता करते है?
सुबह सुबह ले शिव का नाम, शिव आयेंगे तेरे काम।
भजन की यह दूसरी पंक्ति है जो बताती है की क्यों सुबह-सुबह शिव का नाम लेने से हमारे सभी काम सफल होते हैं।
भगवान् शिव एक शक्तिशाली देवता हैं, लेकिन साथ ही साथ एक दयालु और परोपकारी भगवान हैं। वे हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करने और उनकी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। हमारी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
इसलिए, सुबह-सुबह शिव का नाम लेने से हमें अपने जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
Summary
इस प्रकार, भजन की पंक्तियों में हमें यह बताया गया है कि सुबह-सुबह शिव का नाम लेना एक बहुत ही शुभ काम है। इससे हमें शिव की कृपा प्राप्त होती है, हमारे सभी काम सफल होते हैं, हमें मोक्ष मिलता है और हम शिव की इच्छा के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं।