Mahamrityunjaya Mantra – with Meaning


Shiv Bhajan

महामृत्युंजय मंत्र – अर्थसहित


ओम त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

Mahamrityunjaya mantra jap 108
महामृत्युंजय मंत्र जाप – १०८

Maha Mrityunjaya Mantra


महामृत्युंजय मंत्र के द्वारा हम भगवान् शिव की आराधना करते है। महामृत्युंजय मंत्र महामंत्र है। यह अत्यंत प्रभावशाली मंत्र है तथा इसे संजीवनी मंत्र भी कहते है।

महामृत्युंजय मंत्र का नियमित श्रवण तथा उच्चारण जीवन में शांति, सुख व समृद्धि लाता है। इस मंत्र के जाप से दुर्भाग्य, अमंगल तथा विपत्तियाँ मनुष्य से दूर रहती है।

Blessings of Lord Shiv
महामृत्युंजय मंत्र – १०८ बार

Mahamrityunjaya Mantra – Meaning in Hindi

ओम त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

त्रयंबकम त्रि-नेत्रों वाले (तीन नेत्रों वाले)
यजामहे – हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं

सुगंधिम – मीठी महक वाले, सुगंधित
पुष्टि – एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन
वर्धनम – वह जो पोषण करते है, शक्ति देते है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में वृद्धिकारक); जो हर्षित करते है, आनन्दित करते है

हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं।


उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

उर्वारुकम – ककड़ी
इव – जैसे, इस तरह
बंधना – तना

मृत्युर मृत्यु से
मुक्षिया – हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा – न
अमृतात – अमरता, मोक्ष

उनसे (भगवान शिव से) हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।

जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेलरूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं।

महामृत्युंजय मंत्र भावार्थ

भावार्थ – 1

हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं।

उनसे (भगवान् शिवजी से) हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।

जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेलरूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं।


भावार्थ – 2

हम त्रि-नेत्रीय शिवजी का चिंतन करते हैं, जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करते है और वृद्धि करते है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग (“मुक्त”) हों, अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों।

ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्

ओम त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

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Shiv Bhajans

Mahamrityunjaya Mantra – with Meaning

Shankar Sahney

Mahamrityunjaya Mantra – with Meaning


Om Tryambakam Yajamahe
Sugandhim Pusti-vardhanam
Urvarukam-iva Bandhanan
Mrtyor Muksiya Mamritat


Om Tryambakam Yajamahe
Sugandhim Pusti-vardhanam

Tryambakam – the three-eyed one, shiv
Yajamahe – we worship, we sacrifice
Sugandhim – the fragrant, the virtuous, the supreme being
Pusti-vardhanam – who nourishes all beings, the bestower of nourishment, wealth, perfection (him who possesses the growth of nourishment)


Urvarukam-iva Bandhanan
Mrtyor Muksiya Mamritat

Urvarukamiva – as cucumber
Bandhanan – from bondage, from the stalk/stem
Mrtyor – from death
Muksiya – may I be freed/released
Mamritat – not from immortality

Mahamrityunjaya Mantra Meaning

We Meditate on the Three-eyed reality (Lord Siva) which permeates and nourishes all like a fragrance.
Or
We worship the three-eyed one (Lord Siva, the spreme being) who nourishes all beings like a fragrance (bestower of nourishment, wealth, perfection);

May He liberate me from the death, for the sake of Immortality, as the cucumber is severed from its bondage (of the creeper).

Maha Mrityunjaya Mantra – with Meaning
Mahamrityunjaya Mantra – with Meaning

Shiv Bhajans

Bhavani Ashtakam – Meaning in Hindi


भवानी अष्टकम – अर्थ सहित


आदि शंकराचार्य रचित भवानी अष्टकम – हिंदी अर्थ सहित

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥१॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • न तातो, न माता – न पिता, न माता
  • न बन्धुर्न दाता – ना सम्बन्धी, न भाई बहन, न दाता
  • न पुत्रो, न पुत्री – न पुत्र, न पुत्री
  • न भृत्यो, न भर्ता – ना सेवक, न पति
  • न जाया, न विद्या – न पत्नी, न ज्ञान
  • न वृत्तिर्ममैव – और ना व्यापार ही मेरे हैं
  • गतिस्त्वं – एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो (तुम्हीं मेरा सहारा हो)
  • गतिस्त्वं – तुम्हीं मेरी गति हो (मैं केवल तुम्हारी शरण हूँ)
  • त्वमेका भवानि – हे भवानी

भावार्थ:

हे भवानी! पिता, माता, भाई बहन, दाता, पुत्र, पुत्री, सेवक, स्वामी, पत्नी, विद्या और व्यापार – इनमें से कोई भी मेरा नहीं है, हे भवानी माँ! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, मैं केवल आपकी शरण हूँ।


भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः
पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।
कुसंसार-पाश-प्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥२॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • भवाब्धावपारे – मैं अपार भवसागर में पड़ा हुआ हूँ,
  • महादुःखभीरु – महान् दु:खों से भयभीत हूँ;
  • पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः – कामी, लोभी, मतवाला तथा
  • कुसंसारपाश-प्रबद्धः सदाहं – कुसंसारके (घृणायोग्य संसारके) बन्धनों में बँधा हुआ हूँ
  • गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि – हे भवानी! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो। मैं केवल तुम्हारी शरण हूँ।

भावार्थ:

हे भवानी माँ, मैं जन्म-मरण के इस अपार भवसागर में पड़ा हुआ हूँ, भवसागर के महान् दु:खों से भयभीत हूँ। मैं पाप, लोभ और कामनाओ से भरा हुआ हूँ तथा घृणायोग्य संसारके (कुसंसारके) बन्धनों में बँधा हुआ हूँ। हे भवानी! मैं केवल तुम्हारी शरण हूँ, अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।


न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तंत्रं न च स्तोत्र-मन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥३॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • न जानामि दानं – मैं न तो दान देना जानता हूँ और
  • न च ध्यानयोगं – न ध्यान-योग का ही मुझे पता है,
  • न जानामि तंत्रं – तन्त्र का मुझे ज्ञान नहीं है और
  • न च स्तोत्र-मन्त्रम् – स्तोत्र-मन्त्रों का भी मुझे ज्ञान नहीं है
  • न जानामि पूजां – न मैं पूजा जानता हूँ
  • न च न्यासयोगम् – ना ही न्यास योग आदि क्रियाओं का मुझे ज्ञान है
  • गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि – हे देवि! हे भवानी! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो

भावार्थ:

हे भवानी! मैं न तो दान देना जानता हूँ और न ध्यानयोग मार्ग का ही मुझे पता है। तंत्र, मंत्र और स्तोत्र का भी मुझे ज्ञान नहीं है। पूजा तथा न्यास योग आदि की क्रियाओं को भी मै नहीं जानता हूँ। हे देवि! हे माँ भवानी! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है।


न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मात-
र्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥४॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • न जानामि पुण्यं – न मै पुण्य जानता हूँ
  • न जानामि तीर्थं – न ही तीर्थों को जानता हूँ,
  • न जानामि मुक्तिं – न मुक्ति का ज्ञान है
  • लयं वा कदाचित् – न लय का (ईश्वर के साथ एक होने का ज्ञान)
  • न जानामि भक्तिं – मुझे भक्ति का ज्ञान नहीं है और
  • व्रतं वापि मात – हे माता! व्रत भी मुझे ज्ञात नहीं है
  • र्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि – हे भवानी! अब केवल तुम्हीं मेरा सहारा हो, तुम्हीं मेरी गति हो।

भावार्थ:

हे भवानी माता! मै न पुण्य जानता हूँ, ना ही तीर्थों को, न मुक्ति का पता है न लय का। हे मा भवानी! भक्ति और व्रत भी मुझे ज्ञान नहीं है। हे भवानी! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो, अब केवल तुम्हीं मेरा सहारा हो।


कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥५॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • कुकर्मी कुसङ्गी – मैं कुकर्मी, बुरी संगति में रहने वाला (कुसंगी)
  • कुबुद्धिः कुदासः – दुर्बुद्धि, दुष्टदास
  • कुलाचारहीनः कदाचारलीनः – कुलोचित सदाचार से हीन, दुराचारपरायण (नीच कार्यो में ही प्रवत्त रहता हूँ),
  • कुदृष्टिः – कुदृष्टि (कुत्सित दृष्टि) रखने वाला और
  • कुवाक्यप्रबन्धः सदाहम् – सदा दुर्वचन बोलने वाला हूँ
  • गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि – हे भवानी! मुझ अधम की एकमात्र तुम्हीं गति हो

भावार्थ:

मैं कुकर्मी, कुसंगी (बुरी संगति में रहने वाला), कुबुद्धि (दुर्बुद्धि), कुदास(दुष्टदास) और नीच कार्यो में ही प्रवत्त रहता हूँ (सदाचार से हीन कार्य), दुराचारपरायण, कुत्सित दृष्टि (कुदृष्टि) रखने वाला और सदा दुर्वचन बोलने वाला हूँ। हे भवानी! मुझ अधम की एकमात्र तुम्हीं गति हो, मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है।


प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥६॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं – मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र को नहीं जानता
  • दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् – न मैं सूर्य को और न चन्द्रमा को जानता हूँ,
  • न जानामि चान्यत् – अन्य किसी भी देवता को नहीं जानता
  • सदाहं शरण्ये – हे शरण देनेवाली माता!
  • गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि – हे भवानी! एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो

भावार्थ:

हे माँ भवानी! मैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र को नहीं जानता हूँ। सूर्य, चन्द्रमा,तथा अन्य किसी भी देवता को भी नहीं जानता हूँ। हे शरण देनेवाली माँ भवानी! तुम्हीं मेरा सहारा हो, मैं केवल तुम्हारी शरण हूँ, एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।


विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥७॥

भावार्थ:

  • हे भवानी! तुम विवाद, विषाद में, प्रमाद, प्रवास में, जल, अनल में (अग्नि में), पर्वतो में, शत्रुओ के मध्य में और वन (अरण्य) में सदा ही मेरी रक्षा करो, हे भवानी माँ! मुझे केवल तुम्हारा ही आश्रय है, एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।

अनाथो दरिद्रो जरा-रोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥८॥

भावार्थ:

  • हे माता! मैं सदा से ही अनाथ, दरिद्र, जरा-जीर्ण, रोगी हूँ। मै अत्यन्त दुर्बल, दीन, गूँगा, विपद्ग्रस्त (विपत्तिओं से घिरा रहने वाला) और नष्ट हूँ। अत: हे भवानी माँ! अब तुम्हीं एकमात्र मेरी गति हो, मैं केवल आपकी ही शरण हूँ, तूम्हीं मेरा सहारा हो।

॥इति श्रीमच्छड़्कराचार्यकृतं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम्॥

Durga Bhajan List

Bhavani Ashtakam – Meaning in Hindi

Shankar Sahney


Bhavani Ashtakam – Bhavanyashtakam – Lyrics in Hindi


भवानी अष्टकम

आदि शंकराचार्य रचित भवानी अष्टकम

न तातो न माता, न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री, न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या, न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥१॥

भवाब्धावपारे महादुःखभीरुः
पपात प्रकामी, प्रलोभी प्रमत्तः।
कुसंसार-पाश-प्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥२॥

न जानामि दानं, न च ध्यानयोगं
न जानामि तंत्रं, न च स्तोत्र-मन्त्रम्।
न जानामि पूजां, न च न्यासयोगम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥३॥

न जानामि पुण्यं, न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं, लयं वा कदाचित्।
न जानामि भक्तिं, व्रतं वापि मात-
र्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥४॥

कुकर्मी कुसङ्गी, कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥५॥

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥६॥

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥७॥

अनाथो दरिद्रो जरा-रोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रणष्टः सदाहम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥८॥

॥इति श्रीमच्छड़्कराचार्यकृतं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम्॥


Bhavani Ashtakam – Bhavanyashtakam

Shankar Sahney


Durga Bhajan



Bhavani Ashtakam – Bhavanyashtakam – Lyrics in English


Bhavani Ashtakam – Bhavanyashtakam

Na taato na maata, na bandhur-na daata
Na putro na putri, na bhartyo na bhartaa.
Na jaaya na vidya, na vrttir-mamaiv
Gatistvam gatistvam tvameka Bhavani ॥1॥

Bhavaabdhaav-apaare mahaa-duhkh-bhiruh
Papaat prakaami, pralobhi pramattah.
Kusansaar-paash prabaddhah sadaahan
Gatistvam gatistvam tvameka Bhavaani ॥2॥

Na jaanaami daanam, na cha dhyaan-yogam
Na jaanaami tantram, na cha stotra-mantram.
Na jaanaami poojam, na ch nyaas-yogam
Gatistvam gatistvam tvameka Bhavani ॥3॥

Na jaanaami punyam, na jaanaami tirtham
Na jaanaami mukti, layan va kadaachit.
Na jaanaami bhaktim, vratan vaapi maatr
Gatistvam gatistvam tvameka Bhavani ॥4॥

Kukarmi kusangi, kubuddhih kudaasah
Kulaachaara-hinh kadaachaar-linh.
Kudrshti Kuvaakya-prabandhah sadaaham
Gatistvam gatistvam tvameka Bhavani ॥5॥

Prajesham Ramesham Mahesham Suresham
Dinesham Nishitheshvaram va kadaachit.
Na jaanaami chaanyat sadaaham sharanye
Gatistvam gatistvam tvameka Bhavani ॥6॥

Vivaade vishaade pramaade pravaase
Jale chaanle parvate shatru-madhye.
Aranye sharanye sada Maan prapaahi
Gatistvam gatistvam tvameka Bhavani ॥7॥

Anaatho daridro jara-rogayukto
Mahaa-kshin-dinah sada jaadya-vaktrah.
Vipattau pravishtah pranashtah sadaaham
Gatistvam gatistvam tvameka Bhavani ॥8॥


Bhavani Ashtakam – Bhavanyashtakam

Shankar Sahney


Durga Bhajan