मधुराधिपते – मधुराधिपति(मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण)
अखिलं मधुरम् – सभी प्रकार से मधुर है
भावार्थ:
श्री मधुराधिपति (श्री कृष्ण) का सभी कुछ मधुर है। उनके अधर (होंठ) मधुर है, मुख मधुर है, नेत्र मधुर है, हास्य (मुस्कान) मधुर है, हृदय मधुर है और चाल (गति) भी मधुर है॥
वचनं मधुरं – भगवान श्रीकृष्ण के वचन(बोलना) मधुर है
चरितं मधुरं – चरित्रमधुर है
वसनं मधुरं – वस्त्रमधुर हैं
वलितं मधुरम् – वलय, कंगनमधुर हैं
चलितं मधुरं – चलनामधुर है
भ्रमितं मधुरं – भ्रमण(घूमना) मधुर है
मधुराधिपते – मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण (मधुराधिपति)
अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है
भावार्थ:
श्री मधुराधिपति (भगवन श्री कृष्ण) का सभी कुछ मधुर है। उनका बोलना (वचन) मधुर है, चरित्र मधुर है, वस्त्र मधुर है, वलय मधुर है, चाल मधुर है और घूमना (भ्रमण) भी अति मधुर है।
वेणुर्मधुरो – श्री कृष्ण की वेणु मधुर है, बांसुरीमधुर है
रेणुर्मधुरः – चरणरजमधुर है, उनको चढ़ाये हुए फूल मधुर हैं
पाणिर्मधुरः – हाथ(करकमल) मधुर हैं
पादौ मधुरौ – चरणमधुर हैं
नृत्यं मधुरं – नृत्यमधुर है
सख्यं मधुरं – मित्रतामधुर है
मधुराधिपते – हे श्रीकृष्ण (मधुराधिपति)
अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है
भावार्थ:
भगवान् कृष्ण की वेणु मधुर है, बांसुरी मधुर है चरणरज मधुर है, करकमल (हाथ) मधुर है, चरण मधुर है, नृत्य मधुर है, और सख्या (मित्रता) भी अति मधुर है। श्री मधुराधिपति कृष्ण का सभी कुछ मधुर है॥
श्री मधुराधिपति कृष्ण का सभी कुछ मधुर है। उनके गीत (गान) मधुर है, पान (पीताम्बर) मधुर है, भोजन मधुर है, शयन मधुर है। उनका रूप मधुर है, और तिलक (टिका) भी अति मधुर है।
तरणं मधुरं – तारना मधुर है (दुखो से तारना, उद्धार करना)
हरणं मधुरं – हरण मधुर है (दुःख हरणा)
रमणं मधुरम् – रमणमधुर है
वमितं मधुरं – उद्धारमधुर हैं
शमितं मधुरं – शांतरहना मधुर है
मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण(मधुराधिपति)
अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है
भावार्थ:
श्री कृष्ण, श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है। उनक कार्य मधुर है, उनका तारना, दुखो से उबरना मधुर है। दुखो का हरण मधुर है। उनका रमण मधुर है, उद्धार मधुर है और शांति भी अति मधुर है।
श्री कृष्ण की गुंजा मधुर है, माला भी मधुर है। यमुना मधुर है, उसकी तरंगे भी मधुर है, उसका जल मधुर है और कमल भी अति मधुर है। श्री मधुराधिपति कृष्ण का सभी कुछ मधुर है॥
श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है। उनकी गोपिया मधुर है, उनकी लीला मधुर है, उनक सयोग मधुर है, वियोग मधुर है, निरिक्षण मधुर (देखना) है और शिष्टाचार भी मधुर है।
जिनका मुख मधुर मुस्कानसे विकसित है, रत्नभूषित हाथ में सुन्दर मुरली है, गलेमें परम मनोहर मणियोंका हार हैँ, कमलके समान मुख है, जो दाता है, नवघन सदृश नीलवर्ण हैं और सुन्दर गोपकुमारोंसे घिरे हुए है, उन परमपुरुष आदिनारायण श्रीकृष्णको नमस्कार करता हूँ।
जो सुवर्णमय कमलकी माला धारण करते है, केशी और कंस आदि के काल है रणभूमिमें अति विकराल है और समस्त लोकोंके प्रतिपालक है, वे बालगोपाल मेरे ह्रदय में बसे।
सज्जनोके हितकारी, परमानंदसमूहकी वर्षा करनेवाले मेघ, लक्ष्मीनिवास नन्दनन्दन श्रीगोविन्दकी मैं वन्दना करता हूँ।
जिनकी कृपा गूँगेको को वक्ता बना देती है और अपाहिज को भी पर्वत-लाँघनेमे समर्थ कर देती है, उन परमानन्द स्वरुप माधवकी मै वन्दना करता हूँ।
कंस और चाणूरका वध करनेवाले, देवकीके आनंदवर्धन, वसुदेवनन्दन, जगद्गुरु श्रीकृष्णचन्द्रकी में वन्दना करता हूँ।