Kailash Ke Nivasi Namo – Lyrics in Hindi with Meanings


कैलाश के निवासी नमो बार बार

कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ, नमो बार बार हूँ
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
आयो शरण तिहारी शम्भू तार तार तू,
भोले तार तार तू, कैलाश के निवासी…


भक्तो को कभी शिव तुने निराश ना किया
माँगा जिन्हें जो चाहा वरदान दे दिया
बड़ा हैं तेरा दायजा, बड़ा दातार तू,
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ…


बखान क्या करू मै राखो के ढेर का
चपटी भभूत में हैं खजाना कुबेर का
हैं गंग धार, मुक्ति द्वार, ओंकार तू
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ….


क्या क्या नहीं दिया, हम क्या प्रमाण दे
बस गए त्रिलोक शम्भू तेरे दान से
ज़हर पिया, जीवन दिया
कितना उदार तू, कितना उदार तू,
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ….


तेरी कृपा बिना न हिलें एक भी अनु
लेते हैं स्वास तेरी दया से कनु कनु
कहे दास एक बार, मुझको निहार तू
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ….


कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ, नमो बार बार हूँ
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
आयो शरण तिहारी शम्भू तार तार तू


Kailash Ke Nivasi Namo Bar Bar

Shri Rameshbhai Oza

Shri Narayan Swami


Shiv Bhajan



कैलाश के निवासी नमो बार बार भजन का आध्यात्मिक अर्थ

“कैलाश के निवासी नमो बार बार हूं, नमो बार बार हूं”:
ये पंक्तियाँ कैलाश पर्वत के निवासी भगवान शिव के प्रति अभिनंदन और श्रद्धा की अभिव्यक्ति हैं। भक्त बार-बार विनम्र अभिवादन करता है और भगवान को प्रणाम करता है।

“आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू”
पंक्तियाँ भगवान शिव की शरण लेने की भावना को व्यक्त करती हैं, उन्हें उद्धारकर्ता के रूप में संबोधित करती हैं जो रक्षा करता है और मुक्त करता है। भक्त मानते हैं कि भगवान शिव ही उद्धारकर्ता हैं जो उन्हें संकट से बचाते हैं और मोक्ष प्रदान करते हैं।

“भक्तो को कभी शिव तूने निराश ना किया”:
यह श्लोक आश्वस्त करता है कि भगवान शिव ने अपने भक्तों को कभी निराश नहीं किया है। यह दर्शाता है कि भगवान ने हमेशा अपने भक्तों की इच्छाओं और इच्छाओं को पूरा किया है।

“मांगा जिन्हें जो चाहा वरदान दे दिया”:
यहां, यह कहा गया है कि भगवान शिव उनकी इच्छाएं पूरी करते हैं और उन लोगों को आशीर्वाद देते हैं जो उनका दिव्य हस्तक्षेप चाहते हैं। वह अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए जाने जाते हैं।

“बड़ा हैं तेरा दायजा, बड़ा दातार तू”:
ये पंक्तियाँ भगवान शिव की उदारता को उजागर करती हैं। यह दर्शाती है कि वह परम दाता है, जो अपने भक्तों पर प्रचुर आशीर्वाद और उपहारों की वर्षा करता है।

“बखान क्या करूं मैं राखो के ढेर का,
चपटी भभूत में हैं खजाना कुबेर का”:
ये पंक्तियाँ भक्तों की दुविधा को व्यक्त करती हैं कि वे भगवान शिव के असीम आशीर्वाद के बदले में क्या अर्पित कर सकते हैं। इससे पता चलता है कि धन के देवता भगवान कुबेर का खजाना, भक्त द्वारा दिए गए अल्प चढ़ावे में भी मौजूद होता है।

“है गंग धर, मुक्ति द्वार, ओंकार तू”:
यह श्लोक भगवान शिव को दिव्य नदी गंगा (गंग धार) को धारण करने वाले और मुक्ति का प्रवेश द्वार (मुक्ति द्वार) के रूप में स्वीकार करता है। यह उन्हें पवित्र ध्वनि “ओम” (ओंकार) के अवतार के रूप में भी पहचानता है।

“क्या क्या नहीं दिया, हम क्या प्रमाण दे,
बस गए त्रिलोक शम्भू तेरे दान से”:
ये पंक्तियाँ भगवान शिव द्वारा उन्हें दिए गए अनगिनत आशीर्वादों पर भक्त के चिंतन को व्यक्त करती हैं। भक्त विचार करता है कि जो कुछ उन्हें प्राप्त हुआ है, उसके लिए वे क्या साक्ष्य या प्रमाण प्रदान कर सकते हैं। यह इस धारणा पर प्रकाश डालता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड भगवान शिव के दिव्य उपहारों से समृद्ध हुआ है।

“ज़हर पिया, जीवन दिया, कितना उदार तू”:
यहाँ, यह प्रतीकात्मक रूप से व्यक्त किया गया है कि भगवान शिव ने जहर (ज़हर) पी लिया है और जीवन (जीवन) प्रदान किया है। यह भगवान शिव की दिव्य उदारता का प्रतीक है, उनकी असीम करुणा और परोपकार पर जोर देता है।

“तेरी कृपा बिना ना हिले एक भी अनु,
लेते हैं स्वास तेरी दया से कनु कनु”:
ये पंक्तियाँ भक्त की मान्यता को व्यक्त करती हैं कि भगवान शिव की कृपा के बिना एक भी परमाणु नहीं हिलता। यह भक्त की गहरी समझ का प्रतीक है कि उनकी हर सांस भगवान की दया और करुणा से बनी रहती है।

“कहे दास एक बार, मुझको निहार तू”:
यह श्लोक भगवान शिव से भक्त की विनती को व्यक्त करता है, जो उनसे विनम्रतापूर्वक उन पर अपनी दिव्य दृष्टि बरसाने का अनुरोध करता है। यह भक्त की भगवान की कृपा और ध्यान प्राप्त करने की इच्छा को दर्शाता है।

कुल मिलाकर भजन की ये पंक्तियाँ भगवान शिव के प्रति गहरी श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करती हैं। भक्त भगवान से प्राप्त अपार आशीर्वाद को स्वीकार करता है और रक्षक, जीवनदाता और अनुग्रह दाता के रूप में उनकी भूमिका को पहचानते हुए उनकी शरण चाहता है। भक्त भगवान शिव की उदारता और दिव्य गुणों को पहचानकर उनकी शरण लेता है।


Shiv Bhajan



Kailash Ke Nivasi Namo – Lyrics in English with Meanings


Kailash Ke Nivasi Namo Bar Bar Lyrics

Kailash ke nivasi namo bar bar ho, namo bar bar hoon
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu,
Aayo sharan tihaari Shambhu taar taar tu,
Kailash ke nivasi…


Bhakto ko kabhi Shiv tune niraash na kiya
Maanga jinhen jo chaaha vardaan de diya
Bada hain tera daayaja, bada daataar tu,
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Kailash ke nivasi namo bar bar hoon….


Bakhaan kya karoo mai raakho ke dher ka
Chapti bhabhoot mein hain khajaana kuber ka
Hain gang dhaar, mukti dwaar, Omkaar tu
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Kailash ke nivasi namo bar bar hoon….


Kya kya nahin diya, ham kya pramaan de
Bas gaye trilok shambhoo tere daan se
Zahar piya, jivan diya, kitna udaar tu,
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Kailash ke nivasi namo bar bar hoon….


Teri kripa bina na hile ek bhi anu
Lete hain swaas teri daya se kanu kanu
Kahe daas ek baar, mujhako nihaar tu
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Kailash ke nivasi namo bar bar hoon….


Kailash ke nivasi namo bar bar ho,
namo bar bar hoon
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Shambhoo taar taar tu, taar taar tu


Kailash Ke Nivasi Namo Bar Bar

Shri Rameshbhai Oza

Shri Narayan Swami


Shiv Bhajan



Kailash Ke Nivasi Namo Bar Bar – Spiritual Meanings

“Kailash ke nivasi namo bar bar ho, namo bar bar hoon”:
This line is a salutation to Lord Shiva, the resident of Mount Kailash. It expresses reverence and devotion, repeatedly offering humble greetings to the Lord.

“Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu”:
The lines convey the act of seeking refuge in Lord Shiva, addressing Him as the one who saves and protects. The devotee acknowledges that Lord Shiva is the savior who rescues them from distress and offers salvation.

“Bhakto ko kabhi Shiv tune niraash na kiya”:
This verse reassures that Lord Shiva has never disappointed or let down His devotees. It signifies that the Lord has always fulfilled the wishes and desires of His devotees.

“Maanga jinhen jo chaaha vardaan de diya”:
Here, it is stated that Lord Shiva grants the wishes and bestows blessings upon those who seek His divine intervention. He is known to fulfill the desires of His devotees.

“Bada hain tera daayaja, bada daataar tu”:
These lines highlight Lord Shiva’s magnanimity and generosity. It signifies that He is the ultimate giver and provider, showering His devotees with abundant blessings and gifts.

“Bakhaan kya karoo mai raakho ke dher ka, Chapti bhabhoot mein hain khajaana kuber ka”:
These lines express the devotee’s dilemma about what they can offer in return to Lord Shiva’s immense blessings. It suggests that the treasures of Lord Kubera, the deity of wealth, are present even in the meager offerings made by the devotee.

“Hain gang dhaar, mukti dwaar, Omkaar tu”:
This verse acknowledges Lord Shiva as the one who holds the divine river Ganga (Gang dhaar) and is the gateway to liberation (mukti dwaar). It also recognizes Him as the embodiment of the sacred sound “Om” (Omkaar).

“Kya kya nahin diya, ham kya pramaan de, Bas gaye trilok shambhoo tere daan se”:
These lines express the devotee’s contemplation on the countless blessings bestowed upon them by Lord Shiva. The devotee ponders what evidence or proof they can provide for all that they have received. It highlights the notion that the entire universe has been enriched by the divine gifts of Lord Shiva.

“Zahar piya, jivan diya, kitna udaar tu”:
Here, it is metaphorically expressed that Lord Shiva has consumed the poison (zahar) and granted life (jivan). It signifies the divine magnanimity and generosity of Lord Shiva, emphasizing His boundless compassion and benevolence.

“Teri kripa bina na hile ek bhi anu, Lete hain swaas teri daya se kanu kanu”:
These lines convey the devotee’s recognition that not even a single atom (anu) moves without the grace (kripa) of Lord Shiva. It signifies the devotee’s deep understanding that every breath they take is sustained by the Lord’s mercy and compassion.

“Kahe daas ek baar, mujhako nihaar tu”:
The verse expresses the devotee’s plea to Lord Shiva, humbly requesting Him to shower His divine glance upon them. It signifies the devotee’s desire to receive the Lord’s grace and attention.

Overall, these lines of the bhajan express deep devotion and gratitude towards Lord Shiva. The devotee acknowledges the immense blessings received from the Lord and seeks His refuge, recognizing His role as the protector, giver of life, and bestower of grace. The devotee seeks refuge in Lord Shiva, recognizing His magnanimity and divine attributes.


Shiv Bhajan



Vedsar Shiv Stav – with Meaning


Shiv Bhajan

वेदसार शिव स्तव – अर्थसहित


पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्‌गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम्॥१॥

जो सम्पूर्ण प्राणियोंके रक्षक हैं, पापका ध्वंस करनेवाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजीका मैं स्मरण करता हूँ।


महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्॥२॥

चन्द्र, सूर्य और अग्नि – तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देवदुःखदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूँ।


गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्॥३॥

जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारके आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीरमें भस्म लगाये हुए हैं और श्रीपार्वतीजी जिनकी अर्द्धांगिनी हैं, उन पंचमुख महादेवजीको मैं भजता हूँ।


शिवाकान्त शम्भो शशांकार्धमौले
महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद-व्यापको विश्वरूप
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप॥४॥

हे पार्वतीवल्लभ महादेव! हे चन्द्रशेखर! हे महेश्वर! हे त्रिशूलिन्! हे जटाजूटधारिन्! हे विश्वरूप! एकमात्र आप ही जगत्‌में व्यापक हैं। हे पूर्णरूप प्रभो! प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये।


परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारम-ओमकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्॥५॥

जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत्‌के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्रणवद्वारा जाननेयोग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्वकी उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभुको मैं भजता हूँ।


न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु-
र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे॥६॥

जो न पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश हैं; न तन्द्रा हैं, न निद्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है, उन मूर्तिहीन त्रिमूर्तिकी मैं स्तुति करता हूँ।


अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम्॥७॥

जो अजन्मा हैं, नित्य हैं, कारणके भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं, प्रकाशकोंके भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रयसे विलक्षण हैं, अज्ञानसे परे हैं, अनादि और अनन्त हैं, उन परमपावन अद्वैतस्वरूपको मैं प्रणाम करता हूँ ।


नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य॥८॥

हे विश्वमूर्ते! हे विभो! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे चिदानन्दमूर्ते! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। हे वेदवेद्य भगवन्! आपको नमस्कार है, नमस्कार है।


प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः॥९॥

हे प्रभो! हे त्रिशूलपाणे! हे विभो! हे विश्वनाथ! हे महादेव! हे शम्भो! हे महेश्वर! हे त्रिनेत्र! हे पार्वतीप्राणवल्लभ! हे शान्त! हे कामारे! हे त्रिपुरारे! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, न माननीय है और न गणनीय है।


शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेकस्त्वं
हंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि॥१०॥

हे शम्भो! हे महेश्वर! हे करुणामय! हे त्रिशूलिन्! हे गौरीपते! पशुपते! हे पशुबन्धमोचन! हे काशीश्वर! एक तुम्हीं करुणावश इस जगत्‌की उत्पत्ति, पालन और संहार करते हो; प्रभो! तुम ही इसके एकमात्र स्वामी हो।


त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मकं हर चराचरविश्वरूपिन्॥११॥

हे देव! हे शंकर! हे कन्दर्पदलन! हे शिव! हे विश्वनाथ! हे ईश्वर! हे हर! हे चराचरजगद्रूप प्रभो! यह लिंगस्वरूप समस्त जगत् तुम्हींसे उत्पन्न होता है, तुम्हींमें स्थित रहता है और तुम्हींमें लय हो जाता है।


इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतो
वेदसारशिवस्तवः सम्पूर्णम्।

Shiv Bhajans

Vedsar Shiv Stav

Pujya Rameshbhai Oza

Vedsar Shiv Stav


पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्‌गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम्॥१॥

महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्॥२॥

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
गवेन्द्राधिरूढं गणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्॥३॥

शिवाकान्त शम्भो शशांकार्धमौले
महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद-व्यापको विश्वरूप
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप॥४॥

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
निरीहं निराकारम-ओमकारवेद्यम्।

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्॥५॥

न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु-
र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न ग्रीष्मो न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे॥६॥

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम्॥७॥

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य॥८॥

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ
महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः॥९॥

शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेकस्त्वं
हंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि॥१०॥

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मकं हर चराचरविश्वरूपिन्॥११॥

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यकृतो
वेदसारशिवस्तवः सम्पूर्णम्।

Vedsar Shiv Stav
Vedsar Shiv Stav

Shiv Bhajans

Nirvana Shatakam – Atma Shatakam


Shiv Bhajan

निर्वाण षट्कम – आत्म षट्कम


मनो, बुद्ध्यहंकार, चित्तानि नाहम्
न च श्रोत्र जिह्वे, न च घ्राण नेत्रे।

मनो, बुद्ध्यहंकार, चित्तानि नाहम्
न च श्रोत्र जिह्वे, न च घ्राण नेत्रे।

न च व्योम भूमिर्, न तेजॊ न वायु:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥

Nirvana Shatakam - Atma Shatakam
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्

न च प्राण संज्ञो, न वै पञ्चवायु:,
न वा सप्तधातुर्, न वा पञ्चकोश:।

न वाक्पाणिपादौ, न चोपस्थपायू,
चिदानन्द रूप:, शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥


न मे द्वेष रागौ, न मे लोभ मोहौ,
मदो नैव मे, नैव मात्सर्य भाव:।

न धर्मो, न चार्थो, न कामो, ना मोक्ष:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥

निर्वाण षट्कम – शिवोऽहम् शिवॊऽहम्

न पुण्यं, न पापं, न सौख्यं, न दु:खम्,
न मन्त्रो, न तीर्थं, न वेदा:, न यज्ञा:।

अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥


न मृत्युर्, न शंका, न मे जातिभेद:,
पिता नैव मे, नैव माता, न जन्म:।

न बन्धुर्, न मित्रं, गुरुर्नैव शिष्य:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥

न पुण्यं, न पापं, न सौख्यं, न दु:खम् – चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्

अहं निर्विकल्पॊ, निराकार रूपॊ,
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।

न चासंगतं नैव मुक्तिर्, न मेय:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥


मनो, बुद्ध्यहंकार, चित्तानि नाहम्
न च श्रोत्र जिह्वे, न च घ्राण नेत्रे।

न च व्योम भूमिर्, न तेजॊ न वायु:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥

Blessings of Lord Shiv
Nirvana Shatakam – Atma Shatakam

मनो, बुद्ध्यहंकार, चित्तानि नाहम्
न च श्रोत्र जिह्वे, न च घ्राण नेत्रे।
न च व्योम भूमिर्, न तेजॊ न वायु:,
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम्॥

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Shiv Bhajans

Nirvana Shatakam – Atma Shatakam

Shri Rameshbhai Oza

Sounds Of Isha

Nirvana Shatakam – Atma Shatakam


Mano, buddhi, ahankara, chittani naham.
Na cha shrotravjihve, na cha ghraana netre.

Na cha vyoma bhumir, na tejo, na vayuhu
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Na cha prana sangyo, na vai pancha vayuhu
Na va sapta dhatur, na va pancha koshah.

Na vak pani padam na chopastha payu.
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Na me dvesha ragau, na me lobha mohau,
mado naiv me, naiv matsarya bhavaha.

Na dharmo, na chartho, na kamo, na mokshaha.
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Na punyam na papam na saukhyam na duhkham
Na mantro na tirtham na vedah na yajnah

Aham bhojanam naiva bhojyam na bhotka
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Na me mrityu shanka, na me jati bhedaha,
Pita naiv me, naiv mataa, na janmaha

Na bandhur, na mitram, gurur naiva shishyaha.
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Aham nirvikalpo, nirakara rupo,
Vibhut-vatcha sarvatra, sarvendriyanam.

Na cha sangatham, na muktir, na meyaha.
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Mano buddhi ahankara, chittani naham,
Na cha shrotravjihve, na cha ghraana netre.

Na cha vyoma bhumir, na tejo na vayuhu.
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Nirvana Shatakam - Atma Shatakam
Nirvana Shatakam – Atma Shatakam

Mano, buddhi, ahankara, chittani naham.
Na cha shrotravjihve, na cha ghraana netre.

Na cha vyoma bhumir, na tejo, na vayuhu
Chidananda rupah, shivoham shivoham.

Shiv Bhajans

Jyotirlinga Stotra – with Meaning


Shiv Bhajan

ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – अर्थसहित


सौराष्ट्रे सोमनाथं च
श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

सौराष्ट्रे सोमनाथं
श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्
उज्जयिन्यां महाकालं
ओम्कारम् अमलेश्वरम्

सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्री सोमनाथ,
श्रीशैल पर श्री मल्लिकार्जुन,
उज्जयिनी में श्री महाकाल,
ओंकारेश्वर अमलेश्वर (अमरेश्वर)

सोमनाथ – मल्लिकार्जुन – महाकाल

परल्यां वैद्यनाथं
डाकिन्यां भीमशङ्करम्
सेतुबन्धे तु रामेशं
नागेशं दारुकावने॥

परली में वैद्यनाथ,
डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर,
सेतुबंध पर श्री रामेश्वर,
दारुकावन में श्रीनागेश्वर

अमलेश्वर – वैद्यनाथ – भीमशंकर

वाराणस्यां तु विश्वेशं
त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं
घुश्मेशं च शिवालये॥

वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ,
गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर,
हिमालय पर श्रीकेदारनाथ और
शिवालय में श्री घृष्णेश्वर, को स्मरण करें।

रामेश्वर – श्रीनागेश्वर – विश्वनाथ

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि
सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं
स्मरणेन विनश्यति॥

जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल और संध्या समय इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है, उसके सात जन्मों के पाप इन लिंगों के स्मरण-मात्र से मिट जाते है।

त्र्यम्बकेश्वर – केदारनाथ – घृष्णेश्वर

एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।
कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥

ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – बारह ज्योतिर्लिंग

सौराष्ट्रे सोमनाथं च
श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं
ओम्कारममलेश्वरम्॥

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Shiv Bhajans

Jyotirlinga Stotram

Shri Rameshbhai Oza

Anuradha Paudwal

Jyotirlinga Stotra – with Meaning


Saurashtre Somanatham cha
Shrishaile Mallikarjunam
Ujjayiniyam Mahakalam
Omkara-mamaleshwaram

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारममलेश्वरम्॥

Somnath in Saurashtra
Mallikarjunam in Shri-Shailam,
Mahakaal in Ujjain,
Amleshwar (Amreshwar) in Omkareshwar

Somanath – Mallikarjun – Mahakal


Paralyam Vaidyanatham cha
Dakinyam Bheemashankaram
Setubandhe tu Ramesham
Nagesham Darukavane

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करं
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

Vaidyanath in Parali,
Bhimashankaram in Dakinya,
Ramesham (Rameshwaram) in Sethubandh,
Nagesham in Daruka-Vana

Amreshwar – Vaidyanath – Bhimashankar

Varanasyam tu Vishvesham
Tryambakam Gautami-tate
Himalaye tu Kedaram
Ghrushnesham cha Shivalaye

वारणस्यां तु विश्र्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे
हिमालये तु केदारं घृश्नेशं च शिवालये॥

Vishwa-Isham (Vishvanath) in Vanarasi,
Triambakam at bank of the river Gautami (Godavari),
Kedar (Kedarnath) in Himalayas and
Grushnesh (Gushmeshwar) in Shivalaya (Shiwar).

Rameshwaram – Nagesham – Vishvanath

Etani Jyotirlingani sayam
pratah pathennarah
Saptajanma-krutam papam
smaranena vinashyati

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

One who recites these Jyotirlingas every morning and evening is relieved of all sins committed in past seven lives.

Triambakam – Kedarnath – Grushnesh

Eteshaam darshanaadev
paatakam naiv tishthati
Karma-kshayo bhavettasya
yasya tushto Maheshvaraah

एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।
कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥

One who visits these , Jyotirling Temples all his wishes fulfilled and one’s karma gets eliminated as Maheshwara gets satisfied to the worship.

Dvadasha Jyotirlinga Stotra

Saurashtre Somanatham cha
Shrishaile Mallikarjunam
Ujjayiniyam Mahakalam
Omkara-mamaleshwaram

Shiv Bhajans

Shiv Manas Puja – Meaning – Hindi


शिव मानस पूजा स्तोत्र – अर्थ सहित

शिव मानस पूजा एक सुंदर भावनात्मक स्तुति है, जिसमे मनुष्य अपने मनके द्वारा
भगवान् शिव की पूजा कर सकता है। शिव मानस पूजा स्तोत्र के जरिये कोई भी व्यक्ति बिना किसी साधन और सामग्री के भगवान् शिव की पूजा संपन्न कर सकता हैं। शास्त्रों में मानसिक पूजा अर्थात मनसे की गयी पूजा, श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वर्णित है।

शिव मानस पूजा स्तोत्र भगवान शिव के प्रति भक्ति और प्रेम को व्यक्त करता है, जिन्हें पशुपति (सभी प्राणियों यानी की जीवों के स्वामी) और दयानिधि (करुणा का खजाना) के रूप में भी जाना जाता है।

शिव मानस पूजा में, भक्त अपने मन में कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करते हुए, भगवान शिव को पूजा की विभिन्न वस्तुओं को अर्पित करने की कल्पना करता है।

इस स्तोत्र का तात्पर्य यह भी है कि भगवान शिव की सच्ची पूजा बाहरी अनुष्ठानों या सामग्रियों पर निर्भर नहीं है, बल्कि भक्त के आंतरिक दृष्टिकोण और भावनाओं पर निर्भर है। इस स्तोत्र का पाठ अक्सर हिंदुओं द्वारा उनकी दैनिक प्रार्थना या ध्यान के समय किया जाता है।


शिव मानस पूजा स्तोत्र – अर्थ और भावार्थ सहित

1. भगवान् शिव के लिए धूप, दीप, आसन

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः
स्नानं च दिव्याम्बरं,
नानारत्नविभूषितं मृगमदा
मोदाङ्कितं चन्दनम्।

जाती-चम्पक-बिल्व-पत्र-रचितं
पुष्पं च धूपं तथा,
दीपं देव दयानिधे पशुपते
हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥

  • रत्नैः कल्पितम-आसनं – यह रत्ननिर्मित सिंहासन,
  • हिमजलैः स्नानं – शीतल जल से स्नान,
  • च दिव्याम्बरं – तथा दिव्य वस्त्र,
  • नानारत्नविभूषितं – अनेक प्रकार के रत्नों से विभूषित,
  • मृगमदा मोदाङ्कितं चन्दनम् – कस्तूरि गन्ध समन्वित चन्दन,
  • जाती-चम्पक – जूही, चम्पा और
  • बिल्वपत्र-रचितं पुष्पं – बिल्वपत्रसे रचित पुष्पांजलि
  • च धूपं तथा दीपं – तथा धूप और दीप
  • देव दयानिधे पशुपते – हे देव, हे दयानिधे, हे पशुपते,
  • हृत्कल्पितं गृह्यताम् – यह सब मानसिक (मनके द्वारा) पूजोपहार ग्रहण कीजिये

भावार्थ:
हे देव, हे दयानिधे, हे पशुपते,
यह रत्ननिर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्न से विभूषित दिव्य वस्त्र,
कस्तूरि आदि गन्ध से समन्वित चन्दन,
जूही, चम्पा और बिल्वपत्रसे रचित पुष्पांजलि तथा
धूप और दीप
– यह सब मानसिक [पूजोपहार] ग्रहण कीजिये।

हे भगवान, मैं आपको बहुमूल्य रत्नों से बना आसन, ठंडे जल से स्नान, विभिन्न रत्नों से सुशोभित दिव्य वस्त्र, इंद्रियों को आनंदित करने वाला कस्तूरी मिश्रित चंदन का लेप, चमेली के फूल, चंपक और बिल्व पत्र, धूप और दीपक प्रदान करता हूं।

हे भगवान, हे दया के सागर, हे सभी प्राणियों के भगवान, कृपया इन प्रसादों को स्वीकार करें जिनकी मैंने अपने हृदय में कल्पना की है।


2. शंकरजी के लिए नैवेद्य, जल, शरबत

सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते
पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं
रम्भाफलं पानकम्।

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं
कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं
भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥

  • सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते पात्रे – नवीन रत्नखण्डोंसे जडित सुवर्णपात्र में
  • घृतं पायसं – घृतयुक्त खीर, (घृत – घी)
  • भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं – दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन,
  • रम्भाफलं पानकम् – कदलीफल, शरबत,
  • शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं – अनेकों शाक, कपूरसे सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल
  • ताम्बूलं – तथा ताम्बूल (पान)
  • मनसा मया विरचितं – ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं
  • भक्त्या प्रभो स्वीकुरु – हे प्रभो, कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये

भावार्थ:
मैंने नवीन रत्नखण्डोंसे जड़ित सुवर्णपात्र में घृतयुक्त खीर, दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन,
कदलीफल, शरबत, अनेकों शाक,
कपूरसे सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल तथा ताम्बूल
– ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं।
हे प्रभो, कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये।


3. भोलेनाथ के स्तुति के लिए वाद्य

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं
चादर्शकं निर्मलम्
वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला
गीतं च नृत्यं तथा।

साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा
ह्येतत्समस्तं मया
संकल्पेन समर्पितं तव विभो
पूजां गृहाण प्रभो॥

  • छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं – छत्र, दो चँवर, पंखा,
  • चादर्शकं निर्मलम् – निर्मल दर्पण,
  • वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला – वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य,
  • गीतं च नृत्यं तथा – गान और नृत्य तथा
  • साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा – साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति
  • ह्येतत्समस्तं मया संकल्पेन – ये सब मैं संकल्पसे ही
  • समर्पितं तव विभो – आपको समर्पण करता हूँ
  • पूजां गृहाण प्रभो – हे प्रभो, मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये

भावार्थ:
छत्र, दो चँवर, पंखा, निर्मल दर्पण,
वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य,
गान और नृत्य,
साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति
– ये सब मैं संकल्पसे ही आपको समर्पण करता हूँ।
हे प्रभु, मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये।


4. तन, मन, बुद्धि, कर्म, निद्रा – सब कुछ शिवजी के चरणों में

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः
प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोग-रचना
निद्रा समाधि-स्थितिः।

सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः
स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं
शम्भो तवाराधनम्॥

  • आत्मा त्वं – मेरी आत्मा तुम हो,
  • गिरिजा मतिः – बुद्धि पार्वतीजी हैं,
  • सहचराः प्राणाः – प्राण आपके गण हैं,
  • शरीरं गृहं – शरीर आपका मन्दिर है
  • पूजा ते विषयोपभोग-रचना – सम्पूर्ण विषयभोगकी रचना आपकी पूजा है,
  • निद्रा समाधि-स्थितिः – निद्रा समाधि है,
  • सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः – मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा
  • स्तोत्राणि सर्वा गिरो – सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं
  • यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं – इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ,
  • शम्भो तवाराधनम् – हे शम्भो, वह सब आपकी आराधना ही है

भावार्थ:
हे शम्भो, मेरी आत्मा तुम हो,
बुद्धि पार्वतीजी हैं,
प्राण आपके गण हैं,
शरीर आपका मन्दिर है,
सम्पूर्ण विषयभोगकी रचना आपकी पूजा है,
निद्रा समाधि है,
मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा
सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं।

इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है।


5. भगवान से अपने अपराध और गलतियों के लिए माफ़ी माँगना

कर-चरण-कृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
श्रवण-नयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्-क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥

  • कर-चरण-कृतं वाक् – हाथोंसे, पैरोंसे, वाणीसे,
  • कायजं कर्मजं वा – शरीरसे, कर्मसे,
  • श्रवण-नयनजं वा – कर्णोंसे, नेत्रोंसे अथवा
  • मानसं वापराधम् – मनसे भी जो अपराध किये हों,
  • विहितमविहितं वा – वे विहित हों अथवा अविहित,
  • सर्वमेतत्-क्षमस्व – उन सबको हे शम्भो आप क्षमा कीजिये
  • जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो – हे करुणासागर, हे महादेव शम्भो, आपकी जय हो, जय हो

भावार्थ: – हाथोंसे, पैरोंसे, वाणीसे, शरीरसे, कर्मसे, कर्णोंसे, नेत्रोंसे अथवा मनसे भी जो अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणासागर महादेव शम्भो। आप क्षमा कीजिये।

हे महादेव शम्भो, आपकी जय हो, जय हो।


शिव मानस पूजा स्तोत्र

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः
स्नानं च दिव्याम्बरं,
नानारत्नविभूषितं मृगमदा
मोदाङ्कितं चन्दनम्।

जाती-चम्पक-बिल्व-पत्र-रचितं
पुष्पं च धूपं तथा,
दीपं देव दयानिधे पशुपते
हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥

सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते
पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं
रम्भाफलं पानकम्।

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं
कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं
भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं
चादर्शकं निर्मलम्
वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला
गीतं च नृत्यं तथा।

साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा
ह्येतत्समस्तं मया
संकल्पेन समर्पितं तव विभो
पूजां गृहाण प्रभो॥

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः
प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोग-रचना
निद्रा समाधि-स्थितिः।

सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः
स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं
शम्भो तवाराधनम्॥

कर-चरण-कृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
श्रवण-नयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्-क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥


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Aasra Is Jahan Ka Mile Na Mile – Lyrics in Hindi with Meanings


आसरा इस जहाँ का मिले ना मिले

आसरा इस जहाँ का मिले ना मिले।
मुझको तेरा सहारा सदा चाहिये॥
चाँद तारे गगन में दिखे ना दिखे।
मुझको तेरा नजारा सदा चाहिये॥
आसरा इस जहाँ का….


यहाँ खुशियों हैं कम और ज्यादा है गम।
जहाँ देखो वहीं है, भरम ही भरम॥
मेरी महफिल में शमां जले ना जले।
मेरे दिल में उजाला तेरा चाहिये॥
आसरा इस जहाँ का….


कभी वैराग है, कभी अनुराग है।
जहां बदले है माली, वही बाग़ है॥
मेरी चाहत की दुनिया बसे ना बसे।
मेरे दिल में बसेरा सदा चाहिये॥
आसरा इस जहाँ का….


मेरी धीमी है चाल और पथ है विशाल।
हर कदम पर मुसीबत, अब तू ही संभाल॥
पैर मेरे थके हैं, चले ना चले।
मेरे दिल में इशारा तेरा चाहिये॥
आसरा इस जहाँ का….


चाँद तारे फलक पर (गगन में) दिखे ना दिखे।
मुझको तेरा नजारा सदा चाहिये॥
आसरा इस जहाँ का मिले ना मिले।
मुझको तेरा सहारा सदा चाहिये॥


Aasra Is Jahan Ka Mile Na Mile


Krishna Bhajan



आसरा इस जहाँ का मिले ना मिले भजन का आध्यात्मिक अर्थ

इस भजन के बोल ईश्वर की निरंतर उपस्थिति और समर्थन के लिए भक्ति और लालसा को व्यक्त करते हैं।

आसरा इस जहाँ का मिले ना मिले।
मुझको तेरा सहारा सदा चाहिये॥

चाहे मुझे इस दुनिया में सहारा मिले या न मिले, मुझे हमेशा आपके (भगवान के) सहारे की जरूरत है।

ये पंक्तियाँ भक्त के इस अहसास को दर्शाता है कि सांसारिक समर्थन अनिश्चित या अस्थायी हो सकता है, लेकिन वे दिव्य के निरंतर और अटूट समर्थन की तलाश करते हैं।

यह ईश्वर के साथ स्थायी संबंध की चाहत पर जोर देता है, चाहे वे दुनिया में किसी भी परिस्थिति का सामना करें।

चाँद तारे गगन में दिखे ना दिखे।
मुझको तेरा नजारा सदा चाहिये॥

चाहे चाँद और तारे आकाश में दिखाई दें या नहीं, मैं हमेशा आपकी (भगवान की) उपस्थिति का दर्शन चाहता हूँ।

यह पंक्ति बाहरी परिस्थितियों या खगोलीय घटनाओं की दृश्यता के बावजूद, भक्त की भगवान की उपस्थिति का अनुभव करने की इच्छा व्यक्त करता है।

यह हर समय ईश्वर की दिव्य उपस्थिति का अनुभव करने की गहरी इच्छा को दर्शाता है।

यहाँ खुशियों हैं कम और ज्यादा है गम।
जहाँ देखो वहीं है, भरम ही भरम॥

यहाँ तो सुख कम, दु:ख ज्यादा है। जहाँ भी मैं देखता हूँ, यह सब एक भ्रम है।

ये पंक्तियाँ सांसारिक सुख-दुख की क्षणिक एवं भ्रामक प्रकृति को दर्शाता है। भक्त को एहसास होता है कि सांसारिक अनुभव अस्थायी हैं और भ्रम के अधीन हैं।

यह भक्तों की ईश्वर में अटूट आस्था और सांसारिक चीजों की नश्वरता की उनकी मान्यता पर जोर देता है।

मेरी महफिल में शमां जले ना जले।
मेरे दिल में उजाला तेरा चाहिये॥

चाहे मेरी महफ़िल में दिया जले या न जले, मुझे हमेशा मेरे दिल में आपकी (भगवान की) मौजूदगी की रोशनी चाहिए।

ये लाइन्स बाहरी परिस्थितियों या उत्सवों की परवाह किए बिना, उनके दिल और आत्मा को रोशन करने के लिए दिव्य प्रकाश की भक्त की आंतरिक लालसा का प्रतीक है।

कभी वैराग है, कभी अनुराग है।
जहां बदले है माली, वही बाग़ है॥

कभी वैराग्य होता है, कभी मोह होता है। माली (भगवान) बदल जाता है, लेकिन बगीचा वही रहता है।

यह कविता मानवीय भावनाओं की दोहरी प्रकृति को स्वीकार करती है, जहां कभी-कभी व्यक्ति दुनिया से अलग महसूस करता है, और कभी-कभी, प्यार और लगाव की गहरी भावना होती है।

भक्त यह पहचानता है कि बगीचे (जीवन) के देखभालकर्ता भगवान अलग-अलग रूप में प्रकट हो सकते हैं, लेकिन दुनिया और उसके अनुभव स्थिर रहते हैं।

मेरी चाहत की दुनिया बसे ना बसे।
मेरे दिल में बसेरा सदा चाहिये॥

चाहे मेरी इच्छाओं की दुनिया प्रकट हो या न हो, मैं हमेशा अपने दिल में (भगवान् के लिए) एक स्थायी निवास की तलाश में रहता हूँ।

यह पंक्तियाँ भक्तों के हृदय में ईश्वर के लिए स्थायी निवास की इच्छा को दर्शाता है, भले ही उनकी सांसारिक इच्छाएँ पूरी हों या नहीं।

मेरी धीमी है चाल और पथ है विशाल।
हर कदम पर मुसीबत, अब तू ही संभाल॥

मेरी गति धीमी है, और पथ विशाल है। हर कदम पर, केवल आप (भगवान) ही प्रतिकूल परिस्थितियों को संभाल सकते हैं।

यह श्लोक भक्त की अपनी सीमाओं की पहचान और आध्यात्मिक पथ की विशालता को दर्शाता है।

वे जीवन की चुनौतियों से निपटने और कठिनाइयों पर काबू पाने के लिए विनम्रतापूर्वक ईश्वर का मार्गदर्शन और समर्थन चाहते हैं।

पैर मेरे थके हैं, चले ना चले।
मेरे दिल में इशारा तेरा चाहिये॥

मेरे पैर थक सकते हैं, चाहे मैं चल सकूं या न चल सकूं, मुझे अपने दिल में हमेशा आपके (भगवान के) मार्गदर्शन की जरूरत है।

यह श्लोक भक्त की अपनी शारीरिक सीमाओं को स्वीकार करने और जीवन में आगे बढ़ने के लिए भगवान के आंतरिक मार्गदर्शन पर निर्भरता को दर्शाता है।

ये गीत भक्त की भक्ति, समर्पण और ईश्वर के साथ निरंतर संबंध की लालसा का उदाहरण देते हैं। वे इस समझ को व्यक्त करते हैं कि ईश्वर जीवन की यात्रा के सभी पहलुओं में अंतिम देखभालकर्ता, मार्गदर्शक और शाश्वत समर्थन है।

यह भक्त की सांसारिक मामलों की नश्वरता की पहचान को दर्शाता है। वे भौतिक संसार की क्षणभंगुर प्रकृति के बीच निरंतर समर्थन, ईश्वर की उपस्थिति और आंतरिक ज्ञान की तलाश करते हैं।


सच्चा भक्त और ईश्वर भक्ति

सच्चे भक्त का एक ही धर्म रहता है, जिससे वह सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है और सारे दुखों से मुक्ति पा लेता है। वह परम धर्म है – भगवान का हो जाना।

भगवानकी ही भक्ति करना, भगवान की ही पूजा करना, भगवान को ही नमस्कार करना, और भगवान के ही कर्म करना। जब वह ऐसा करता है तब भगवान के अतिरिक्त न कहीं आसक्ति रहती है और ना ममता। सारा अहंकार निकलकर वह एक ही जगह केंद्रित हो जाता है कि वह भगवान का है। वह नित्य निरंतर सदा के लिए भगवान का हो जाता है।


Krishna Bhajan



Aasra Is Jahan Ka Mile Na Mile – Lyrics in English with Meanings


Aasra Is Jahan Ka Mile Na Mile

Aasra is jahan ka mile na mile,
mujhko tera sahara sada chaahiye.
Chand taare gagan mein dikhe na dikhe,
mujhko tera najaara sada chaahiye.
Aasra is jahan ka….


Yahaan khushiyon hain kam aur jyaada hai gam,
Jahaan dekho vahin hai, bharam hi bharam.
Meri mahfil mein shammaa jale na jale,
mere dil mein ujaala tera chaahiye.
Aasra is jahan ka….


Kabhi vairaag hai, kabhi anuraag hai,
yahaa badale hai maali, vahi baag hai.
Meri chaahat ki duniya base na base,
mere dil mein basera sada chaahiye.
Aasra is jahan ka….


Meri dhimi hai chaal aur path hai vishaal.
Har kadam par musibat, ab tu hi sambhaal.
Pair mere thake hain, chale na chale,
mere dil mein ishaara tera chaahiye.
Aasra is jahan ka….


Chaand taare phalak par (gagan me) dikhe na dikhe,
mujhako tera najaara sada chaahiye.
Aasra is jahan ka mile na mile,
mujhako tera sahaara sada chaahiye.


Aasra Is Jahan Ka Mile Na Mile


Krishna Bhajan



Aasra Is Jahan Ka Mile Na Mile – Spiritual Meanings

The lyrics of this bhajan expresses devotion and the yearning for the constant presence and support of the Divine.

Aasra is jahan ka mile na mile,
mujhko tera sahara sada chaahiye.

Whether I find support in this world or not, I always need your (God’s) support.

This verse reflects the devotee’s realization that worldly support may be uncertain or temporary, but they seek the constant and unwavering support of the Divine.

It emphasizes the yearning for a permanent connection with the Divine, regardless of the circumstances they face in the world.

Chand taare gagan mein dikhe na dikhe,
mujhko tera najaara sada chaahiye.

Whether the moon and stars appear in the sky or not, I always seek the sight of your (God’s) presence.

This verse conveys the devotee’s desire to experience the presence of God, irrespective of the external circumstances or the visibility of celestial phenomena. It reflects the deep desire to experience God’s divine presence at all times.

Yahaan khushiyon hain kam aur jyaada hai gam,
Jahaan dekho vahin hai, bharam hi bharam.

Here, there is less happiness and more sorrow. Everywhere I look, it’s all an illusion.

This verse reflects the transient and deceptive nature of worldly pleasures and sorrows. The devotee realizes that worldly experiences are temporary and subject to illusion.

It emphasizes the devotee’s unwavering faith in the Divine and their recognition of the impermanence of worldly things.

Meri mahfil mein shammaa jale na jale,
mere dil mein ujaala tera chaahiye.

Whether a lamp is lit in my gathering or not, I always need the light of your (God’s) presence in my heart.

This verse symbolizes the inner longing of the devotee for the divine light to illuminate their heart and soul, regardless of external circumstances or celebrations.

Kabhi vairaag hai, kabhi anuraag hai,
yahaa badale hai maali, vahi baag hai.

Sometimes there is detachment, and sometimes there is attachment (love). The gardener (God) changes, but the garden remains the same.

This verse acknowledges the dual nature of human emotions, where sometimes one feels detached from the world, and at other times, there is a deep sense of love and attachment. The devotee recognizes that God, the caretaker of the garden (life), may manifest differently, but the world and its experiences remain constant.

Meri chaahat ki duniya base na base,
mere dil mein basera sada chaahiye.

Whether the world of my desires manifests or not, I always seek a permanent abode in my heart (for the Divine).

This verse reflects the devotee’s desire for a permanent dwelling place for the Divine in their heart, irrespective of whether their worldly desires are fulfilled or not.

Meri dhimi hai chaal aur path hai vishaal.
Har kadam par musibat, ab tu hi sambhaal.

My pace is slow, and the path is vast.
At every step, only you (God) can handle the adversities.

This verse portrays the devotee’s recognition of their limitations and the vastness of the spiritual path. They humbly seek God’s guidance and support to navigate through life’s challenges and overcome difficulties.

Pair mere thake hain, chale na chale,
mere dil mein ishaara tera chaahiye.

My feet may be tired, whether I can walk or not, I always need your (God’s) guidance in my heart.

This verse depicts the devotee’s acceptance of their physical limitations and their reliance on God’s inner guidance to keep moving forward in life.

These lyrics exemplify the devotee’s devotion, surrender, and yearning for a constant connection with the Divine. They convey the understanding that God is the ultimate caretaker, guide, and eternal support in all aspects of life’s journey.

It shows the devotee’s recognition of the impermanence of worldly affairs. They seek constant support, the presence of God, and inner enlightenment amidst the transient nature of the material world.


True devotee and devotion to God

A true devotee has only one religion, by which he becomes free from all bondages and gets freedom from all sorrows. That is the ultimate religion – to belong to God.

Worship only God, worship God only, salute God only, and do God’s work only. When he does this, then there is neither attachment nor affection anywhere other than God. The whole ego comes out and he concentrates in one place that it belongs to God. He becomes God’s forever and ever.


Krishna Bhajan



Rameshbhai Oza Bhajans – List


Rameshbhai Oza Bhajans – List


Rameshbhai Oza

Rameshbhai Oza (रमेशभाई ओझा) is a Hindu spiritual leader. He is a singer-preacher of Vedanta Philosophy.

Rameshbhai Oza founded religious and educational institutes namely Devka Vidyapith and Sandipani Vidyaniketan near Sandhavav village and Porbandar Aerodrome.

Shri Ramesh bhai Oza was born on 31 August 1957 at Devka village near Rajula, Saurashtra, Gujarat, India. He was inspired by his uncle, Jeevaraj Oza who was narrator of the Bhagavata Purana. His uncle noticed his interest that led him to study and practice religious scriptures.

He held his first discourse on the Bhagavata Purana at the age of 13 in Gangotri. At the age of 18, he held Bhagavata Purana recitation in central Mumbai. He has conducted numerous recitations across the world since then.

Source: Wikipedia – Rameshbhai Oza

Krishna Bhajans

Shiv Manas Puja – Shiv Stotra


Shiv Bhajan

शिव मानस पूजा – शिव स्तोत्र


रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः
स्नानं च दिव्याम्बरं

नानारत्नविभूषितं मृगमदा
मोदाङ्कितं चन्दनम्।

जाती-चम्पक-बिल्व-पत्र-रचितं
पुष्पं च धूपं तथा

दीपं देव दयानिधे पशुपते
हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥

सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते
पात्रे घृतं पायसं

भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं
रम्भाफलं पानकम्।

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं
कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं

ताम्बूलं मनसा मया विरचितं
भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं
चादर्शकं निर्मलम्

वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला
गीतं च नृत्यं तथा।

साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा
ह्येतत्समस्तं मया

संकल्पेन समर्पितं तव विभो
पूजां गृहाण प्रभो॥

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः
प्राणाः शरीरं गृहं

पूजा ते विषयोपभोग-रचना
निद्रा समाधि-स्थितिः।

सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः
स्तोत्राणि सर्वा गिरो

यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं
शम्भो तवाराधनम्॥

कर-चरण-कृतं वाक् कायजं कर्मजं वा
श्रवण-नयनजं वा मानसं वापराधम्।

विहितमविहितं वा सर्वमेतत्-क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥

Shiv Manas Puja
Shiv Manas Puja – Shiv Stotra

Shiv Bhajans

Shiv Manas Puja – Shiv Stotra

Pujya Rameshbhai Oza

Shiv Manas Puja – Shiv Stotra

Ratnaih kalpitam-aasanam hima-jalaih
snaanam cha divya-ambaram

Naanaa-ratna-vibhushitam mrga-madaa
moda-angkitam chandanam

Jaati-champaka-bilva-patra-rachitam
pushpam cha dhoopam tathaa

Diipam deva daya-nidhe pashupate
hrt-kalpitam grhyataam

Sauvarne nava-ratna-khanda-rachite
paatre ghrtam paayasam

Bhakshyam pancha-vidham payo-dadhi-yutam
rambhaa-phalam paanakam

Shaakaanaam-ayutam jalam ruchikaram
karpoora-khanndojjvalam

Taambulam manasaa mayaa virachitam
bhaktyaa prabho sviikuru

Chatram chamarayor-yugam vyajanakam
cha-adarshakam nirmalam

Viina-bheri-mrdangga-kahala-kalaa
giitam cha nrtyam tathaa

Sashtaangam prannatih stutir-bahu-vidhaa
hye-tat-samastam mayaa

Sankalpen samarpitam tava vibho
pujaam grhaanna prabho

Aatmaa tvam girijaa matih sahacharaah
praannaah shariiram grham

Puujaa te vissayop-bhoga-rachana
nidraa samaadhi-sthitih

Sancharah padayoh pradakshin-vidhih
stotrani sarvaa giro

Yad-yat-karma karomi tat-tad-akhilam
shambho tava-araadhanam

Kara-charanna-krtam vaak
kaaya-jam karma-jam vaa

Shravanna-nayana-jam vaa
maanasam vaaparaadham

Vihitam-avihitam vaa
sarvam-etat-khsamasva

Jaya jaya karunna-abdhe
shri-Mahadeva Shambho

Shiv Manas Puja – Shiv Stotra
Shiv Manas Puja – Shiv Stotra