श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – अर्थसहित


Shri Ramchandra Kripalu Bhajman with Meaning

भगवान् श्री राम की आरती के इस पोस्ट में
पहले आरती हिंदी में दी गयी है,
बाद में सम्पूर्ण राम स्तुति अर्थसहित और अंत में
इंग्लिश में (Shri Ramchandra kripalu bhajman) दी गयी है।


1.

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख
कर-कंज पद-कंजारुणम्॥


2.

कंदर्प अगणित अमित छबि,
नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची,
नौमि जनक सुतावरम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।


3.

भजु दीन बन्धु दिनेश
दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द
दशरथ नन्दनम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।


4.

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु,
उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर
सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।


5.

इति वदति तुलसीदास,
शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु,
कामादि खलदल गंजनम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।


6.

मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु
सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु
सनेहु जानत रावरो॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभय दारुणम्।


7.

एही भांति गोरी असीस सुनी
सिय सहित हिय हरषीं अली।
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मंदिर चली॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभय दारुणम्।


8.

जानी गौरी अनुकूल सिय
हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम
अंग फरकन लगे॥


1.

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख
कर-कंज पद-कंजारुणम्॥

॥सियावर रामचंद्र की जय॥


श्री राम स्तुति – श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – अर्थसहित

1.

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख
कर-कंज पद-कंजारुणम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – हे मन, कृपालु (कृपा करनेवाले, दया करनेवाले) भगवान श्रीरामचंद्रजी का भजन कर

हरण भवभय दारुणम्। – वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है
– दारुण: कठोर, भीषण, घोर (frightful, terrible)

नवकंज-लोचन – उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है

कंज-मुखमुख कमल के समान हैं

कर-कंजहाथ (कर) कमल के समान हैं

पद-कंजारुणम्॥चरण (पद) भी कमल के समान हैं


2.

कंदर्प अगणित अमित छबि,
नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची,
नौमि जनक सुतावरम्॥

कंदर्प अगणित अमित छबि – उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित (असंख्य, अनगिनत) कामदेवो से बढ़कर है

नव नील नीरज सुन्दरम् – उनका नवीन नील नीरज (कमल, सजल मेघ) जैसा सुंदर वर्ण है

पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची – पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है

नौमि जनक सुतावरम् – ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हूँ


3.

भजु दीन बन्धु दिनेश
दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द
दशरथ नन्दनम्॥

भजु दीन बन्धु दिनेश – हे मन, दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी

दानव दैत्यवंश निकन्दनम् – दानव और दैत्यो के वंश का नाश करने वाले

रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द – आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान

दशरथ नन्दनम्दशरथनंदन श्रीराम (रघुनन्द) का भजन कर


4.

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु,
उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर
सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम्॥

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु – जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, मस्तक पर तिलक और

उदारु अङ्ग विभूषणम् – प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है

आजानुभुज – जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है और

शर चापधर – जो धनुष-बाण लिये हुए है.

सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् – जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है


5.

इति वदति तुलसीदास,
शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु,
कामादि खलदल गंजनम्॥

इति वदति तुलसीदासतुलसीदासजी प्रार्थना करते है कि

शंकर शेष मुनि मन रंजनम् – शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले

मम हृदयकंज निवास कुरु – श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे जो

कामादि खलदल गंजनम्कामादि (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) शत्रुओ का नाश करने वाले है


6.

मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु
सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु
सनेहु जानत रावरो॥

मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु – जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा

सहज सुन्दर साँवरो – वह स्वभाव से सहज, सुंदर और सांवला है

करुना निधान सुजान सीलु – वह करुणा निधान (दया का खजाना), सुजान (सर्वज्ञ, सब जाननेवाला), शीलवान है

सनेहु जानत रावरो – तुम्हारे स्नेह को जानता है


7.

एही भांति गोरी असीस सुनी
सिय सहित हिय हरषीं अली।
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मंदिर चली॥

सिय सहित हिय हरषीं अलीजानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई

एही भांति गोरी असीस सुनी – इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर

(इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई)

तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनितुलसीदासजी कहते है, भवानीजी को बार-बार (पुनि-पुनि) पूजकर

मुदित मन मंदिर चली – सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली।


॥सियावर रामचंद्र की जय॥


Shri Ramchandra Kripalu Bhajman Lyrics

Shri Ramchandra kripalu bhajman,
haran bhav bhaya darunam
Nav-kanj-lochan kanj-mukh,
kar-kanj pad-kanjarunam

Kandarp aganit amit chavi,
naval-nil niraj sundaram
Patapit manahu tarit ruchi suchi,
naumi Janaka-sutavaram

Shri Ram-chandra kripalu bhajman,
haran bhav bhay darunam

Bhaju Din-bandhu Dinesh
danav daitya-vansh nikandanam.

Raghu-nand anand kanda,
Kaushal chand Dasharath-nandanam.

Shri Ramchandra kripalu bhajman,
haran bhav bhaya darunam

Sir mukut kundal tilak charu,
udaaru ang vibhu-shanam.

Ajanu bhuja shar chapadhar,
sangram-jit Khar-Dushanam.

Shri Ramchandra kripalu bhajman,
harana bhava bhaya daarunam

Iti vadati Tulsidas Shankar,
Shesh muni-man ranjanam
mam hriday-kanj nivas kuru,
kamaadi khaladal ganjanam.

Shri Ramchandra krupalu bhaj mann,
haran bhav bhaya darunam

Manu jaahi rachehu milihi so baru,
sahaj sunder saanwaro.

Karunaa nidhaan sujaan silu
snehu jaanat raavro

Shri Ram-chandra kripaalu bhajman,
harana bhava bhaya daarunam

Ehi bhanti gori asees sunee
siya sahit hiya harshin ali.

Tulsi Bhawanih pooji puni-puni
mudit mann mandir chali

Shri Ram chandra kripalu bhaju mann,
haran bhav bhaya darunam

Shri Ram… Shri Ram…

Shri Ram chandra kripalu bhaju mann,
haran bhav bhaya darunam

जय जय सुरनायक, जन सुखदायक


1.

जय जय सुरनायक, जन सुखदायक,
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥
॥जय जय सुरनायक॥


2.

पालन सुर धरनी, अद्भुत करनी,
मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाला, दीनदयाला,
करउ अनुग्रह सोई॥


3.

जय जय अबिनासी, सब घट बासी
ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं,
मायारहित मुकुंदा॥

॥जय जय सुरनायक॥


4.

जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी
बिगतमोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं,
जयति सच्चिदानंदा॥


5.

जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई,
संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी,
जानिअ भगति न पूजा॥

॥जय जय सुरनायक॥


6.

जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन,
गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी,
सरन सकल सुर जूथा॥


7.

सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा,
जा कहुँ कोउ नहि जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्
रवउ सो श्रीभगवाना॥

॥जय जय सुरनायक॥


8.

भव बारिधि मंदर, सब बिधि सुंदर,
गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्ध सकल, सुर परम भयातुर,
नमत नाथ पद कंजा॥


9.

जय जय सुरनायक, जन सुखदायक,
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥

॥जय जय सुरनायक॥


10.

जय जय सुरनायक, जन सुखदायक,
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥

श्री राम चालीसा – श्री रघुवीर भक्त हितकारी


1.

श्री रघुवीर भक्त हितकारी।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥

2.

निशिदिन ध्यान धरै जो कोई।
ता सम भक्त और नहिं होई॥


3.

ध्यान धरे शिवजी मन माहीं।
ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥

4.

जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला।
सदा करो संतन प्रतिपाला॥


5.

दूत तुम्हार वीर हनुमाना।
जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥

6.

तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला।
रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥


7.

तुम अनाथ के नाथ गुंसाई।
दीनन के हो सदा सहाई॥

8.

ब्रह्मादिक तव पार न पावैं।
सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥


9.

चारिउ वेद भरत हैं साखी।
तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥

10.

गुण गावत शारद मन माहीं।
सुरपति ताको पार न पाहीं॥


11.

नाम तुम्हार लेत जो कोई।
ता सम धन्य और नहिं होई॥

12.

राम नाम है अपरम्पारा।
चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥


13.

गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो।
तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥

14.

शेष रटत नित नाम तुम्हारा।
महि को भार शीश पर धारा॥


15.

फूल समान रहत सो भारा।
पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥

16.

भरत नाम तुम्हरो उर धारो।
तासों कबहुं न रण में हारो॥


17.

नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा।
सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥

18.

लखन तुम्हारे आज्ञाकारी।
सदा करत सन्तन रखवारी॥


19.

ताते रण जीते नहिं कोई।
युद्घ जुरे यमहूं किन होई॥

20.

महालक्ष्मी धर अवतारा।
सब विधि करत पाप को छारा॥


21.

सीता राम पुनीता गायो।
भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥

22.

घट सों प्रकट भई सो आई।
जाको देखत चन्द्र लजाई॥


23.

सो तुमरे नित पांव पलोटत।
नवो निद्घि चरणन में लोटत॥

24.

सिद्घि अठारह मंगलकारी।
सो तुम पर जावै बलिहारी॥


25.

औरहु जो अनेक प्रभुताई।
सो सीतापति तुमहिं बनाई॥

26.

इच्छा ते कोटिन संसारा।
रचत न लागत पल की बारा॥


27.

जो तुम्हरे चरणन चित लावै।
ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥

28.

जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा।
निर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥


29.

सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी।
सत्य सनातन अन्तर्यामी॥

30.

सत्य भजन तुम्हरो जो गावै।
सो निश्चय चारों फल पावै॥


31.

सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं।
तुमने भक्तिहिं सब सिद्धि दीन्हीं॥

32.

सुनहु राम तुम तात हमारे।
तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥


33.

तुमहिं देव कुल देव हमारे।
तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥

34.

जो कुछ हो सो तुम ही राजा।
जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥


35.

राम आत्मा पोषण हारे।
जय जय दशरथ राज दुलारे॥

36.

ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा।
नमो नमो जय जगपति भूपा॥


37.

धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा।
नाम तुम्हार हरत संतापा॥

38.

सत्य शुद्घ देवन मुख गाया।
बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥


39.

सत्य सत्य तुम सत्य सनातन।
तुम ही हो हमरे तन मन धन॥

40.

याको पाठ करे जो कोई।
ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥


41.

आवागमन मिटै तिहि केरा।
सत्य वचन माने शिव मेरा॥

42.

और आस मन में जो होई।
मनवांछित फल पावे सोई॥


43.

तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै।
तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥

44.

साग पत्र सो भोग लगावै।
सो नर सकल सिद्घता पावै॥


45.

अन्त समय रघुबरपुर जाई।
जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥

46.

श्री हरिदास कहै अरु गावै।
सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥


॥दोहा॥

1.

सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥


2.

राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय॥

हरे राम हरे कृष्ण
हरे राम हरे कृष्ण


भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला –  अर्थसहित


Bhaye Pragat Kripala, Deen Dayala Lyrics

भगवान् श्री राम की आरती के इस पोस्ट में
पहले आरती हिंदी में दी गयी है,
बाद में सम्पूर्ण राम आरती अर्थसहित दी गयी है।


भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी॥


लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी॥


कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता॥


करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता॥


ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै॥


उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥


माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा॥


सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूपा॥


भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी॥


श्री राम, जय राम, जय जय राम
श्री राम, जय राम, जय जय राम


भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला – अर्थसहित

भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी॥

भए प्रगट कृपालाकृपालु प्रभु प्रकट हुए

दीनदयालादीनों पर दया करने वाले

कौसल्या हितकारी – कौसल्याजी के हितकारी

हरषित महतारी – माता हर्ष से भर गई

मुनि मन हारी – मुनियों के मन को हरने वाले

अद्भुत रूप बिचारी – उनके अद्भुत रूप का विचार करके

जब कृपा के सागर, कौशल्या के हितकारी, दीनदयालु प्रभु प्रकट हुए, तब उनका अद्भुत स्वरुप देखकर माता कौशल्या परम प्रसन्न हुई।

जिन की शोभा को देखकर मुनि लोगों के मन मोहित हो जाते हैं, उस स्वरूप का दर्शन कर माता हर्ष से भर गई।


लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी॥

लोचन अभिरामानेत्रों को आनंद देने वाले

तनु घनस्यामा – मेघ के समान श्याम शरीर

निज आयुध भुजचारी – चारों भुजाओं में शस्त्र (आयुध) धारण किए हुए थे

भूषन – दिव्य आभूषण और

बनमाला – वनमाला पहने हुए थे,

नयन बिसाला – बड़े-बड़े नेत्र थे,

सोभासिंधु – इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा

खरारी – खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।

कैसा है यह स्वरूप, तुलसीदासजी कहते हैं कि सुंदर नेत्र है, मेघसा श्याम शरीर है, चारों भुजाओं में अपने चारों शस्त्र (शंख, चक्र, गदा, पद्म) धरे है।

वनमाला पहने हैं, सब अंगों में आभूषण सजे है, बड़े विशाल नेत्र है, शोभा के सागर और खर नाम राक्षस के बैरी है।


कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता॥

कह दुइ कर जोरी – दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी

अस्तुति तोरी – तुम्हारी स्तुति

केहि बिधि करूं – मैं किस प्रकार करूँ

अनंता – हे अनंत!

माया गुन ग्यानातीत अमाना – माया, गुण और ज्ञान से परे

वेद पुरान भनंता – वेद और पुराण तुम को बतलाते हैं (वेद और पुराण तुम को माया, गुण और ज्ञान से परे बतलाते हैं)

दोनों हाथ जोड़ कौशल्या ने कहा कि हे अनंत प्रभु, मैं आप की स्तुति कैसे करू।

क्योंकि वेद और पुराण भी ऐसे कहते हैं कि प्रभु का स्वरूप माया के गुणों से परे, इंद्रियजन्य ज्ञान से अगोचर और प्रमाण का विषय नहीं है।


करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता॥

करुना सुख सागरदया और सुख का समुद्र,

सब गुन आगर – सब गुणों का धाम कहकर

जेहि गावहिं श्रुति संता – श्रुतियाँ और संतजन जिनका गान करते हैं

सो मम हित लागी – मेरे कल्याण के लिए

जन अनुरागी – वही भक्तों पर प्रेम करने वाले

भयउ प्रगट श्रीकंता – लक्ष्मीपति भगवान प्रकट हुए हैं

सो हे प्रभु मैं तो ऐसे जानती हूँ कि जिसे श्रुति और संत लोग गाते हैं, वे करुणा व सुखके सागर, सब गुणों के आगर (भण्डार), भक्त अनुरागी, लक्ष्मीपति, प्रभु मेरा हित करने के लिए प्रकट हुए है।


ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै॥

ब्रह्मांड निकाया – अनेकों ब्रह्माण्डों के समूह हैं

निर्मित माया – माया के रचे हुए

रोम रोम – आपके रोम-रोम में रहते हैं

प्रति बेद कहै – ऐसा वेद कहते हैं

मम उर सो बासी – वे तुम मेरे गर्भ में रहे

यह उपहासी – इस हँसी की बात

सुनत धीर – सुनने पर धीर (विवेकी) पुरुषों की बुद्धि भी

मति थिर न रहै – स्थिर नहीं रहती (विचलित हो जाती है)

और हे प्रभु, वेद ऐसे कहते हैं कि आपके रोम-रोम में माया से रचे हुए अनेक ब्रह्मांड समूह रहते हैं सो वे आप मेरे उदर (गर्भ) में कैसे रहे। इस बात की मुझे बड़ी हंसी आती है।

केवल मैं ही नहीं बड़े-बड़े धीर पुरुषों की बुद्धि भी यह बात सुनकर धीर नहीं रहती।


उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥

उपजा जब ग्याना – जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ

प्रभु मुसुकाना – तब प्रभु मुस्कुराए

चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै – वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं

कहि कथा सुहाई – अतः उन्होंने (पूर्व जन्म की) सुंदर कथा कहकर

मातु बुझाई – माता को समझाया

जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै – जिससे उन्हें पुत्र का प्रेम प्राप्त हो और भगवान के प्रति पुत्र का भाव आ जाए

जब कौशल्या को ज्ञान प्राप्त हो गया तब प्रभु हँसे कि देखो इसको किस वक्त में ज्ञान प्राप्त हुआ है अभी इसको ज्ञान नहीं होना चाहिए। क्योंकि, अभी मुझको बहुत चरित्र करने हैं।

उस वक्त प्रभु अनेक प्रकार के चरित्र करना चाहते थे, इसलिए माता को अनेक प्रकार की कथा सुना कर ऐसे समझा बुझा दिया कि जिस तरह उसके मन में पुत्र का प्रेम आ गया।


माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा॥

माता पुनि बोली, सो मति डोली – प्रभु की प्रेरणा से कौशल्या माँ की बुद्धि दूसरी ओर डोल गई, तब वह फिर बोली

तजहु तात यह रूपा – हे तात! यह रूप छोड़कर

कीजै सिसुलीला – बाललीला करो

अति प्रियसीला – जो मेरे लिए अत्यन्त प्रिय है

यह सुख परम अनूपा – यह सुख मेरे लिए परम अनुपम होगा

प्रभु की प्रेरणा से कौशल्या की बुद्धि दूसरी ओर डोल गई जिससे वह फिर बोली कि हे तात! आप यह स्वरूप तज (छोड़) दो।

बालक स्वरूप धारण कर, अतिशय प्रिय स्वभाव वाली बाल लीला करो। यह सुख मुझको बहुत अच्छा लगता है।


सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूपा॥

सुनि बचन सुजाना – माता के ऐसे वचन सुनकर

रोदन ठाना – (भगवान ने बालक रूप धारण कर) रोना शुरू कर दिया

होइ बालक – बालक रूप धारण कर

सुरभूपा – देवताओं के स्वामी भगवान ने

यह चरित जे गावहिं – जो इस चरित्र का गान करते हैं

हरिपद पावहिं – वे श्री हरि का पद (भगवत पद) पाते हैं

ते न परहिं – और वे फिर नहीं गिरते

भवकूपा – संसार रूपी कुएं में (और फिर संसार रूपी माया में नहीं गिरते)

माता के ऐसे वचन सुन प्रभु ने बालक स्वरूप धारण कर रुदन करना (रोना) शुरू किया।

महादेव जी कहते हैं कि हे पार्वती जो मनुष्य इस चरित्र को गाते हैं वह मनुष्य अवश्य भगवत पद को प्राप्त हो जाते हैं और वे कभी संसार रुपी कुए में नहीं गिरते।


Bhaye Pragat Kripala, Deen Dayala
Bhaye Pragat Kripala, Deen Dayala

भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी॥

Shri Ramchandra Kripalu Bhajman – Lyrics in English


Shri Ramchandra Kripalu Bhajman

Shri Ramchandra kripalu bhajman,
haran bhav bhaya darunam
Nav-kanj-lochan kanj-mukh,
kar-kanj pad-kanjarunam

Kandarp aganit amit chavi,
naval-nil niraj sundaram
Patapit manahu tarit ruchi suchi,
naumi Janaka-sutavaram

Shri Ram-chandra kripalu bhajman,
haran bhav bhay darunam

Bhaju Din-bandhu Dinesh
danav daitya-vansh nikandanam.

Raghu-nand anand kanda,
Kaushal chand Dasharath-nandanam.

Shri Ramchandra kripalu bhajman,
haran bhav bhaya darunam

Sir mukut kundal tilak charu,
udaaru ang vibhu-shanam.

Ajanu bhuja shar chapadhar,
sangram-jit Khar-Dushanam.

Shri Ramchandra kripalu bhajman,
harana bhava bhaya daarunam

Iti vadati Tulsidas Shankar,
Shesh muni-man ranjanam
mam hriday-kanj nivas kuru,
kamaadi khaladal ganjanam.

Shri Ramchandra krupalu bhaj mann,
haran bhav bhaya darunam

Manu jaahi rachehu milihi so baru,
sahaj sunder saanwaro.

Karunaa nidhaan sujaan silu
snehu jaanat raavro

Shri Ram-chandra kripaalu bhajman,
harana bhava bhaya daarunam

Ehi bhanti gori asees sunee
siya sahit hiya harshin ali.

Tulsi Bhawanih pooji puni-puni
mudit mann mandir chali

Shri Ram chandra kripalu bhaju mann,
haran bhav bhaya darunam

Shri Ram… Shri Ram…


Shri Ramchandra Kripalu Bhajman

Lata Mangeshkar


Ram Bhajan



Shri Ramchandra Kripalu Bhajman – Lyrics in Hindi with Meaning


श्री राम स्तुति – श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – अर्थसहित

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख
कर-कंज पद-कंजारुणम्॥
  • श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – हे मन, कृपालु (कृपा करनेवाले, दया करनेवाले) भगवान श्रीरामचंद्रजी का भजन कर
  • हरण भवभय दारुणम्। – वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है
    – दारुण: कठोर, भीषण, घोर (frightful, terrible)
  • नवकंज-लोचन – उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है
  • कंज-मुखमुख कमल के समान हैं
  • कर-कंजहाथ (कर) कमल के समान हैं
  • पद-कंजारुणम्॥चरण (पद) भी कमल के समान हैं
कंदर्प अगणित अमित छबि,
नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची,
नौमि जनक सुतावरम्॥
  • कंदर्प अगणित अमित छबि – उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित (असंख्य, अनगिनत) कामदेवो से बढ़कर है
  • नव नील नीरज सुन्दरम् – उनका नवीन नील नीरज (कमल, सजल मेघ) जैसा सुंदर वर्ण है
  • पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची – पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है
  • नौमि जनक सुतावरम् – ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हूँ
भज दीन बन्धु दिनेश
दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द
दशरथ नन्दनम्॥
  • भजु दीन बन्धु दिनेश – हे मन, दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी
  • दानव दैत्यवंश निकन्दनम् – दानव और दैत्यो के वंश का नाश करने वाले
  • रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द – आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान
  • दशरथ नन्दनम्दशरथनंदन श्रीराम (रघुनन्द) का भजन कर
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु,
उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर
सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम्॥
  • सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु – जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, मस्तक पर तिलक और
  • उदारु अङ्ग विभूषणम् – प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है
  • आजानुभुज – जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है और
  • शर चापधर – जो धनुष-बाण लिये हुए है.
  • सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् – जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है
इति वदति तुलसीदास,
शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु,
कामादि खलदल गंजनम्॥
  • इति वदति तुलसीदासतुलसीदासजी प्रार्थना करते है कि
  • शंकर शेष मुनि मन रंजनम् – शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले
  • मम हृदयकंज निवास कुरु – श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे जो
  • कामादि खलदल गंजनम्कामादि (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) शत्रुओ का नाश करने वाले है
मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु
सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु
सनेहु जानत रावरो॥
  • मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु – जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा
  • सहज सुन्दर साँवरो – वह स्वभाव से सहज, सुंदर और सांवला है
  • करुना निधान सुजान सीलु – वह करुणा निधान (दया का खजाना), सुजान (सर्वज्ञ, सब जाननेवाला), शीलवान है
  • सनेहु जानत रावरो – तुम्हारे स्नेह को जानता है
एही भांति गोरी असीस सुनी
सिय सहित हिय हरषीं अली।
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मंदिर चली॥
  • सिय सहित हिय हरषीं अलीजानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई
  • एही भांति गोरी असीस सुनी – इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर

(इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई)

  • तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनितुलसीदासजी कहते है, भवानीजी को बार-बार (पुनि-पुनि) पूजकर
  • मुदित मन मंदिर चली – सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली।

॥सियावर रामचंद्र की जय॥

श्री भए प्रगट कृपाला – अर्थ सहित पढ़ने के लिए:
भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
जब कृपा के सागर कौशल्या के हितकारी दीनदयालु प्रभु प्रकट हुए, तब उनका अद्भुत स्वरुप देखकर माता कौशल्या परम प्रसन्न हुई।
राम आरती – अर्थ सहित

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – श्री राम आरती

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख
कर-कंज पद-कंजारुणम्॥

कंदर्प अगणित अमित छबि,
नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची,
नौमि जनक सुतावरम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।


भजु दीन बन्धु दिनेश
दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द
दशरथ नन्दनम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु,
उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर
सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।


इति वदति तुलसीदास,
शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु,
कामादि खलदल गंजनम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।


मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु
सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु
सनेहु जानत रावरो॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभय दारुणम्।


एही भांति गोरी असीस सुनी
सिय सहित हिय हरषीं अली।
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मंदिर चली॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभय दारुणम्।


जानी गौरी अनुकूल सिय
हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम
अंग फरकन लगे॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभय दारुणम्।

॥सियावर रामचंद्र की जय॥


Shri Ramchandra Kripalu Bhajman

Lata Mangeshkar


Ram Bhajan



Jay Jay Surnayak Jan Sukhdayak with Meaning


Ram Bhajan

जय जय सुरनायक, जन सुखदायक – अर्थसहित


देवताओं द्वारा प्रभु श्री राम के अवतार के लिए प्रार्थना (अवतार हेतु निवेदन)


जय जय सुरनायक, जन सुखदायक,
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥
  • जय जय – आपकी जय हो! जय हो!!
  • सुरनायक – हे देवताओंके स्वामी,
  • जन सुखदायक – सेवकोंको सुख देनेवाले,
  • प्रनतपाल भगवंता – शरणागतकी रक्षा करनेवाले भगवान्!
  • गो द्विज हितकारी – हे गोब्राह्मणोंका हित करनेवाले,
  • जय असुरारी – असुरोंका विनाश करनेवाले,
  • सिधुंसुता प्रिय कंता – समुद्रकी कन्या ( श्रीलक्ष्मीजी) के प्रिय स्वामी!
    आपकी जय हो ।

हे देवताओंके स्वामी, सेवकोंको सुख देनेवाले, शरणागतकी रक्षा करनेवाले भगवान्! आपकी जय हो! जय हो!!
हे गोब्राह्मणोंका हित करनेवाले, असुरोंका विनाश करनेवाले, श्रीलक्ष्मीजी के प्रिय स्वामी! आपकी जय हो।

पालन सुर धरनी, अद्भुत करनी,
मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाला, दीनदयाला,
करउ अनुग्रह सोई॥
  • पालन सुर धरनी – हे देवता और पृथ्वीका पालन करनेवाले!
  • अद्भुत करनी – आपकी लीला अद्भुत है,
  • मरम न जानइ कोई – उसका (आपकी लीला का) भेद कोई नहीं जानता।
  • जो सहज कृपाला – ऐसे जो स्वभावसे ही कृपालु और
  • दीनदयाला – दीनदयालु हैं
  • करउ अनुग्रह सोई – वे ही हमपर कृपा करें।

हे देवता और पृथ्वीका पालन करनेवाले! आपकी लीला अद्भुत है, उसका भेद कोई नहीं जानता ।
ऐसे जो स्वभावसे ही कृपालु और दीनदयालु हैं, वे ही हमपर कृपा करें।

जय जय अबिनासी, सब घट बासी
ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं,
मायारहित मुकुंदा॥
  • जय जय – आपकी जय हो! जय हो!!
  • अबिनासी – हे अविनाशी,
  • सब घट बासी – सबके हृदयमें निवास करनेवाले ( अन्तर्यामी),
  • ब्यापक – सर्वव्यापक,
  • परमानंदा – परम आनन्दस्वरूप
  • अबिगत गोतीतं – अज्ञेय, इन्द्रियोंसे परे,
  • चरित पुनीतं – पवित्र चरित्र
  • मायारहित – मायासे रहित
  • मुकुंदा – मुकुन्द (मोक्षदाता)

हे अविनाशी, सबके हृदयमें निवास करनेवाले (अन्तर्यामी), सर्वव्यापक, परम आनन्दस्वरूप,
अज्ञेय, इन्द्रियोंसे परे, पवित्रचरित्र, मायासे रहित मुकुन्द (मोक्षदाता)! आपकी जय हो! जय हो!!

जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी
बिगतमोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं,
जयति सच्चिदानंदा॥
  • जेहि लागि बिरागी – इस लोक और परलोकके सब भोगोंसे विरक्त मुनि
  • अति अनुरागी – अत्यन्त अनुरागी (प्रेमी) बनकर तथा
  • बिगतमोह मुनिबृंदा – मोहसे सर्वथा छूटे हुए ज्ञानी (मुनिवृन्द) भी
  • निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं – जिनका रातदिन ध्यान करते हैं और जिनके गुणोंके समूहका गान करते हैं,
  • जयति सच्चिदानंदा – उन सच्चिदानन्दकी जय हो।

(इस लोक और परलोकके सब भोगोंसे) विरक्त तथा मोहसे सर्वथा छूटे हुए (ज्ञानी) मुनिवृन्द भी अत्यन्त अनुरागी (प्रेमी) बनकर जिनका रातदिन ध्यान करते हैं और
जिनके गुणोंके समूहका गान करते हैं, उन सच्चिदानन्दकी जय हो ।

जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई,
संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी,
जानिअ भगति न पूजा॥
  • जेहिं सृष्टि उपाई – जिन्होंने सृष्टि उत्पत्र की,
  • त्रिबिध बनाई – स्वयं अपनेको त्रिगुणरूप (ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप) बनाकर
  • संग सहाय न दूजा – बिना किसी दूसरे संगी अथवा सहायताके
  • सो करउ अघारी – वे पापोंका नाश करनेवाले भगवान्
  • चिंत हमारी – हमारी सुधि लें
  • जानिअ भगति न पूजा – हम न भक्ति जानते हैं, न पूजा

जिन्होंने बिना किसी दूसरे संगी अथवा सहायकके अकेले ही बनाकर( या स्वयं अपनेको त्रिगुणरूप – ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप में प्रगट कर), अथवा बिना किसी उपादानकारणके अर्थात् स्वयं ही सृष्टिका कारण बनकर तीन प्रकारकी सृष्टि उत्पत्र की, वे पापोंका नाश करनेवाले भगवान् हमारी सुधि लें। क्योंकि हम न भक्ति जानते हैं, न पूजा।

जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन,
गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी,
सरन सकल सुर जूथा॥
  • जो भव भय भंजन – जो संसारके (जन्ममृत्युके) भयका नाश करनेवाले,
  • मुनि मन रंजन – मुनियोंके मनको आनन्द देनेवाले और
  • गंजन बिपति बरूथा – विपत्तियोंके समूहको नष्ट करनेवाले हैं,
  • मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी – हम सब देवताओंके समूह मन, वचन और कर्मसे चतुराई करनेकी बान छोड्‌कर
  • सरन सकल सुर जूथा – उन भगवान् की शरण आये हैं

जो संसारके (जन्ममृत्युके) भयका नाश करनेवाले, मुनियोंके मनको आनन्द देनेवाले और विपत्तियोंके समूहको नष्ट करनेवाले हैं, हम सब देवताओंके समूह मन, वचन और कर्मसे चतुराई करनेकी बान छोड्‌कर उन ( भगवान्) की शरण आये हैं।

सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा,
जा कहुँ कोउ नहि जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे
द्रवउ सो श्रीभगवाना॥
  • सारद श्रुति सेषा – सरस्वती, वेद, शेषजी और
  • रिषय असेषा – सम्पूर्ण ऋषि
  • जा कहुँ कोउ नहि जाना – कोई भी जिनको नहीं जानते,
  • जेहि दीन पिआरे – जिन्हें दीन प्रिय हैं,
  • बेद पुकारे – ऐसा वेद पुकारकर कहते हैं,
  • द्रवउ सो श्रीभगवाना – वे ही श्रीभगवान् हमपर दया करें।

सरस्वती, वेद, शेषजी और सम्पूर्ण ऋषि कोई भी जिनको नहीं जानते,
जिन्हें दीन प्रिय हैं, ऐसा वेद पुकारकर कहते हैं, वे ही श्रीभगवान् हमपर दया करें।

भव बारिधि मंदर, सब बिधि सुंदर,
गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्ध सकल, सुर परम भयातुर,
नमत नाथ पद कंजा॥
  • भव बारिधि मंदर – हे संसाररूपी समुद्रके (मथनेके) लिये मन्दराचलरूप,
  • सब बिधि सुंदर – सब प्रकारसे सुन्दर,
  • गुनमंदिर – गुणोंके धाम और
  • सुखपुंजा – सुखोंकी राशि
  • मुनि सिद्ध सकल, सुर परम भयातुर – नाथ! आपके चरणकमलोंमें मुनि, सिद्ध और
  • नमत नाथ पद कंजा – सारे देवता भयसे अत्यन्त व्याकुल होकर नमस्कार करते हैं ।

हे संसाररूपी समुद्रके (मथनेके) लिये मन्दराचलरूप, सब प्रकारसे सुन्दर, गुणोंके धाम और सुखोंकी राशि नाथ! आपके चरणकमलोंमें मुनि, सिद्ध और सारे देवता भयसे अत्यन्त व्याकुल होकर नमस्कार करते हैं ।

दोहा:
जानि सभय सुर भूमि
सुनि बचन समेत सनेह।
गगनगिरा गंभीर भइ
हरनि सोक संदेह॥
 

जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा।
तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा।
लेहउँ दिनकर बस उदारा॥

  • जानि सभय सुरभूमि – देवता और पृथ्वीको भयभीत जानकर और
  • सुनि बचन समेत सनेह – उनके सेहयुत्ह वचन सुनकर
  • गगनगिरा गंभीर भइ, हरनि सोक संदेह – शोक और सन्देहको हरनेवाली गम्भीर आकाशवाणी हुई
  • जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा – हे मुनि, सिद्ध और देवताओंके स्वामियो! डरो मत।
  • तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा – तुम्हारे लिये मैं मनुष्यका रूप धारण करूँगा और
  • अंसन्ह सहित मनुज अवतारा, लेहउँ दिनकर बस उदारा – उदार (पवित्र) सूर्यवंशमें अंशोसहित मनुष्यका अवतार लूँगा। [

देवता और पृथ्वीको भयभीत जानकर और उनके सेहयुत्ह वचन सुनकर शोक और सन्देहको हरनेवाली गम्भीर आकाशवाणी हुई – हे मुनि, सिद्ध और देवताओंके स्वामियो! डरो मत । तुम्हारे लिये मैं मनुष्यका रूप धारण करूँगा और उदार (पवित्र) सूर्यवंशमें अंशोसहित मनुष्यका अवतार लूँगा।
(श्रीरामचरितमानस )


Jay Jay Surnayak Jan Sukhdayak with Meaning
Jay Jay Surnayak Jan Sukhdayak with Meaning

Ram Bhajans

Jay Jay Surnayak Jan Sukhdayak

Sharma Bandhu

Prembhushan ji Maharaj

Jay Jay Surnayak Jan Sukhdayak with Meaning


जय जय सुरनायक, जन सुखदायक,
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥

॥जय जय सुरनायक॥


पालन सुर धरनी, अद्भुत करनी,
मरम न जानइ कोई।
जो सहज कृपाला, दीनदयाला,
करउ अनुग्रह सोई॥

जय जय अबिनासी, सब घट बासी
ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं,
मायारहित मुकुंदा॥

॥जय जय सुरनायक॥

(नारायण नारायण नारायण।
भजमन नारायण नारायण।)


जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी
बिगतमोह मुनिबृंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं,
जयति सच्चिदानंदा॥

जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई,
संग सहाय न दूजा।
सो करउ अघारी चिंत हमारी,
जानिअ भगति न पूजा॥

॥जय जय सुरनायक॥

(नारायण नारायण नारायण।
भजमन नारायण नारायण नारायण॥)


जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन,
गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी,
सरन सकल सुर जूथा॥

सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा,
जा कहुँ कोउ नहि जाना।
जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्
रवउ सो श्रीभगवाना॥

॥जय जय सुरनायक॥

(नारायण नारायण नारायण।
भजमन नारायण नारायण नारायण॥)


भव बारिधि मंदर, सब बिधि सुंदर,
गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्ध सकल, सुर परम भयातुर,
नमत नाथ पद कंजा॥

जय जय सुरनायक, जन सुखदायक,
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥

॥जय जय सुरनायक॥

नारायण नारायण नारायण….।
श्रीमन, नारायण नारायण नारायण॥
भजमन, नारायण नारायण नारायण।
लक्ष्मी नारायण नारायण नारायण॥


दोहा:
जानि सभय सुरभूमि
सुनि बचन समेत सनेह।
गगनगिरा गंभीर भइ
हरनि सोक संदेह।

Jay Jay Surnayak Jan Sukhdayak
Jay Jay Surnayak Jan Sukhdayak

जय जय सुरनायक, जन सुखदायक,
प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी, जय असुरारी,
सिधुंसुता प्रिय कंता॥

Ram Bhajans

Ramayan Aarti – Aarti Shri Ramayan ji ki – Lyrics in Hindi


रामायण आरती – आरती श्रीरामायणजी की

आरती श्रीरामायणजी की।
कीरति कलित ललित
सिय पी की॥

आरती श्रीरामायणजी की।
कीरति कलित ललित
सिय पी की॥


गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद,
बालमीक बिग्यान-बिसारद।
सुक सनकादि सेष अरु सारद,
बरनि पवनसुत कीरति नीकी॥

आरती श्रीरामायणजी की।
कीरति कलित ललित
सिय पी की॥


गावत बेद पुरान अष्टदस,
छहो सास्त्र सब ग्रन्थन को रस।
मुनि जन धन संतन को सरबस,
सार अंस संमत सबही की॥

आरती श्रीरामायणजी की।
कीरति कलित ललित
सिय पी की॥


गावत संतत संभु भवानी।
अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी॥
ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी।
काकभुसुंडि गरुड के ही की॥

आरती श्रीरामायणजी की।
कीरति कलित ललित
सिय पी की॥


कलि मल हरनि विषय रस फीकी।
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की॥
दलन रोग भव मूरि अमी की।
तात मात सब बिधि तुलसी की॥

आरती श्रीरामायणजी की।
कीरति कलित ललित
सिय पी की॥


Ramayan Aarti

Anuradha Paudwal


Ram Bhajan



Ramayan Aarti – Aarti Shri Ramayan ji ki – Lyrics in English


Ramayan Aarti

Aarti Shri Ramayan ji ki.
Kirti kalit lalit, Siya pi ki.

Gaavat Brahmaa-dik muni Narad,
Valmik bigyaan-bisaarad.
Suk sanak-aadi sesh aru saarad,
barani pavanasut kirati niki.

Aarti Shri Ramayan jee ki.
Kirti kalit lalit, Siya pi ki.

Gaavat bed puraan ashtadas,
chhaho saastra sab granthan ko ras.
Muni jan dhan santan ko sarabas,
saar ans sammat sabahi ki.

Aarti Shri Ramayan ji ki.
Kirti kalit lalit, Siya pi ki.

Gaavat santat sambhu Bhawani.
Aru ghatasambhav muni bigyaani.
Byaas aadi kabibarj bakhaani.
Kaak-bhusundi garud ke hi ki.

Aarti Shri Ramayan ji ki.
Kirti kalit lalit, Siya pi ki.

Kali mal harani vishay ras phiki.
Subhag singaar mukti jubati ki.
Dalan rog bhav moori ami ki.
Taat maat sab bidhi tulasi ki.

Aarti Shri Ramayan ji ki.
Kirti kalit lalit, Siya pi ki.


Ramayan Aarti

Anuradha Paudwal


Ram Bhajan