Bata mere yaar Sudama re, bhayi ghane dina mein aaya
Baalak tha re jab aaya karataa, roj khel ke jaaya karataa. Huee ke takaraar Sudama re, bhayi ghane dina mein aaya, Bata mere yaar Sudama re…..
Mhane suna de kutumb kahaani, kyon kar pad gai thokar khaani. Tote ki maar Sudama re, bhayi ghane dina mein aaya. Bata mere yaar Sudama re…..
Sab bachcho ka haal suna de, misraani ki baat bata de. Re kyon gaya haar Sudama re, bhayi ghane dina mein aaya, Bata mere yaar Sudama re…..
Chahiye tha re tane pahal me aana, itana duhkh nahi padata thaana (uthaana). Kyon bhula pyaar Sudama re, bhayi ghane dina mein aaya. Bata mere yaar Sudama re…..
Ib bhi aa gaya theek bakhat pe, aaja baith ja mere takhat pe. O jigari yaar Sudama re, bhayi ghane dina mein aaya. Bata mere yaar Sudama re…..
Aaja bhagat chhaati ke lyaalu, ib bata tane kade bithaalu Karoon sahukaar Sudama re, bhayi ghane dina mein aaya. Bata mere yaar Sudama re…..
Ghane dina mein aaya, bhayi ghane dina mein aaya. Bata mere yaar Sudama re, bhayi ghane dina mein aaya.
गुरु गोविंद दोऊँ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
गुरु गोविंद दोऊ खड़े – गुरु और गोविन्द (भगवान) दोनों एक साथ खड़े है
काके लागूं पाँय – पहले किसके चरण-स्पर्श करें (प्रणाम करे)?
बलिहारी गुरु – कबीरदासजी कहते है, पहले गुरु को प्रणाम करूँगा
आपने गोविन्द दियो बताय – क्योंकि, आपने (गुरु ने) गोविंद तक पहुचने का मार्ग बताया है।
गुरु आज्ञा मानै नहीं, चलै अटपटी चाल। लोक वेद दोनों गए, आए सिर पर काल॥
गुरु आज्ञा मानै नहीं – जो मनुष्य गुरु की आज्ञा नहीं मानता है,
चलै अटपटी चाल – और गलत मार्ग पर चलता है
लोक वेद दोनों गए – वह लोक (दुनिया) और वेद (धर्म) दोनों से ही पतित हो जाता है
आए सिर पर काल – और दुःख और कष्टों से घिरा रहता है
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष। गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटे न दोष॥
गुरु बिन ज्ञान न उपजै – गुरु के बिना ज्ञान मिलना कठिन है
गुरु बिन मिलै न मोष – गुरु के बिना मोक्ष नहीं
गुरु बिन लखै न सत्य को – गुरु के बिना सत्य को पह्चानना असंभव है
गुरु बिन मिटे न दोष – गुरु बिना दोष का (मन के विकारों का) मिटना मुश्किल है
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट। अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥
गुरु कुम्हार – गुरु कुम्हार के समान है
शिष कुंभ है – शिष्य मिट्टी के घडे के समान है
गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट – गुरु कठोर अनुशासन किन्तु मन में प्रेम भावना रखते हुए शिष्य के खोट को (मन के विकारों को) दूर करते है
अंतर हाथ सहार दै – जैसे कुम्हार घड़े के भीतर से हाथ का सहारा देता है
बाहर बाहै चोट – और बाहर चोट मारकर घड़े को सुन्दर आकार देता है
Sant Kabir Dohe – 1
Sant Kabir Dohe – 2
Kabir Dohe – Guru ki Mahima
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत। वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत॥
गुरु पारस को अन्तरो – गुरु और पारस पत्थर के अंतर को
जानत हैं सब संत – सभी संत (विद्वान, ज्ञानीजन) भलीभाँति जानते हैं।
वह लोहा कंचन करे – पारस पत्थर सिर्फ लोहे को सोना बनाता है
ये करि लेय महंत – किन्तु गुरु शिष्य को ज्ञान की शिक्षा देकर अपने समान गुनी और महान बना लेते है।
Kabirdas ke Dohe – Guru Mahima
गुरु समान दाता नहीं, याचक सीष समान। तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दिन्ही दान॥
गुरु समान दाता नहीं – गुरु के समान कोई दाता (दानी) नहीं है
याचक सीष समान – शिष्य के समान कोई याचक (माँगनेवाला) नहीं है
तीन लोक की सम्पदा – ज्ञान रूपी अनमोल संपत्ति, जो तीनो लोको की संपत्ति से भी बढ़कर है
सो गुरु दिन्ही दान – शिष्य के मांगने से गुरु उसे यह (ज्ञान रूपी सम्पदा) दान में दे देते है
गुरु शरणगति छाडि के, करै भरोसा और। सुख संपती को कह चली, नहीं नरक में ठौर॥
गुरु शरणगति छाडि के – जो व्यक्ति सतगुरु की शरण छोड़कर और उनके बत्ताए मार्ग पर न चलकर
करै भरोसा और – अन्य बातो में विश्वास करता है
सुख संपती को कह चली – उसे जीवन में दुखो का सामना करना पड़ता है और
नहीं नरक में ठौर – उसे नरक में भी जगह नहीं मिलती
कबीर माया मोहिनी, जैसी मीठी खांड। सतगुरु की किरपा भई, नहीं तौ करती भांड॥
कबीर माया मोहिनी – माया (संसार का आकर्षण) बहुत ही मोहिनी है, लुभावनी है
जैसी मीठी खांड – जैसे मीठी शक्कर या मीठी मिसरी
सतगुरु की किरपा भई – सतगुरु की कृपा हो गयी (इसलिए माया के इस मोहिनी रूप से बच गया)
नहीं तौ करती भांड – नहीं तो यह मुझे भांड बना देती।
(भांड – विदूषक, मसख़रा, गंवार, उजड्ड)
माया ही मनुष्य को संसार के जंजाल में उलझाए रखती है। संसार के मोहजाल में फंसकर अज्ञानी मनुष्य मन में अहंकार, इच्छा, राग और द्वेष के विकारों को उत्पन्न करता रहता है।
विकारों से भरा मन, माया के प्रभाव से उपर नहीं उठ सकता है और जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है।
कबीरदासजी कहते है, सतगुरु की कृपा से मनुष्य माया के इस मोहजाल से छूट सकता है।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥
यह तन विष की बेलरी – यह शरीर सांसारिक विषयो की बेल है।
गुरु अमृत की खान – सतगुरु विषय और विकारों से रहित है इसलिए वे अमृत की खान है
मन के विकार (अहंकार, आसक्ति, द्वेष आदि) विष के समान होते है। इसलिए शरीर जैसे विष की बेल है।
सीस दिये जो गुर मिलै – ऐसे सतगुरु यदि शीश (सर्वस्व) अर्पण करने पर भी मिल जाए
तो भी सस्ता जान – तो भी यह सौदा सस्ता ही समझना चाहिए।
अपना सर्वस्व समर्पित करने पर भी ऐसे सतगुरु से भेंट हो जाए, जो विषय विकारों से मुक्त है। तो भी यह सौदा सस्ता ही समझना चाहिए। क्योंकि, गुरु से ही हमें ज्ञान रूपी अनमोल संपत्ति मिल सकती है, जो तीनो लोको की संपत्ति से भी बढ़कर है।
सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार। लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥
सतगुरु महिमा अनंत है – सतगुरु की महिमा अनंत हैं
अनंत किया उपकार – उन्होंने मुझ पर अनंत उपकार किये है
लोचन अनंत उघारिया – उन्होंने मेरे ज्ञान के चक्षु (अनन्त लोचन) खोल दिए
अनंत दिखावन हार – और मुझे अनंत (ईश्वर) के दर्शन करा दिए।
ज्ञान चक्षु खुलने पर ही मनुष्य को इश्वर के दर्शन हो सकते है। मनुष्य आंखों से नहीं परन्तु भीतर के ज्ञान के चक्षु से ही निराकार परमात्मा को देख सकता है।
सब धरती कागद करूँ, लिखनी सब बनराय। सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥
सब धरती कागद करूं – सारी धरती को कागज बना लिया जाए
लिखनी सब बनराय – सब वनों की (जंगलो की) लकडियो को कलम बना ली जाए
सात समुद्र का मसि करूं – सात समुद्रों को स्याही बना ली जाए
गुरु गुण लिखा न जाय – तो भी गुरु के गुण लिखे नहीं जा सकते (गुरु की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता)। क्योंकि, गुरु की महिमा अपरंपार है।
Sant Kabir Dohe – Guru Mahima
गुरु सों ज्ञान जु लीजिए, सीस दीजिए दान। बहुतक भोंदू बह गए, राखि जीव अभिमान॥
गुरु सों ज्ञान जु लीजिए – गुरु से ज्ञान पाने के लिए
सीस दीजिए दान – तन और मन पूर्ण श्रद्धा से गुरु के चरणों में समर्पित कर दो।
राखि जीव अभिमान – जो अपने तन, मन और धन का अभिमान नहीं छोड़ पाते है
बहुतक भोंदु बहि गये – ऐसे कितने ही मूर्ख (भोंदु) और अभिमानी लोग संसार के माया के प्रवाह में बह जाते है। वे संसार के माया जाल में उलझ कर रह जाते है और उद्धार से वंचित रह जाते है।
गुरु मूरति गति चंद्रमा, सेवक नैन चकोर। आठ पहर निरखत रहे, गुरु मूरति की ओर॥
गुरु मूरति गति चंद्रमा – गुरु की मूर्ति जैसे चन्द्रमा और
सेवक नैन चकोर – शिष्य के नेत्र जैसे चकोर पक्षी। (चकोर पक्षी चन्द्रमा को निरंतर निहारता रहता है, वैसे ही हमें)
गुरु मूरति की ओर – गुरु ध्यान में और गुरु भक्ति में
आठ पहर निरखत रहे – आठो पहर रत रहना चाहिए। (निरखत, निरखना – ध्यान से देखना)
कबीर ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और। हरि के रुठे ठौर है, गुरु रुठे नहिं ठौर॥
कबीर ते नर अन्ध हैं – संत कबीर कहते है की वे मनुष्य नेत्रहीन (अन्ध) के समान है
गुरु को कहते और – जो गुरु के महत्व को नहीं जानते
हरि के रुठे ठौर है – भगवान के रूठने पर मनुष्य को स्थान (ठौर) मिल सकता है
गुरु रुठे नहिं ठौर – लेकिन, गुरु के रूठने पर कही स्थान नहीं मिल सकता
आछे दिन पाछे गए, गुरु सों किया न हेत। अब पछतावा क्या करै, चिड़ियाँ चुग गईं खेत॥
आछे दिन पाछे गये – अच्छे दिन बीत गए
मनुष्य सुख के दिन सिर्फ मौज मस्ती में बिता देता है
गुरु सों किया न हेत – गुरु की भक्ति नहीं की, गुरु के वचन नहीं सुने
अब पछितावा क्या करे – अब पछताने से क्या होगा
चिड़िया चुग गई खेत – जब चिड़ियाँ खेत चुग गई (जब अवसर चला गया)
निज आयुध भुजचारी – चारों भुजाओं में शस्त्र (आयुध) धारण किए हुए थे
भूषन – दिव्य आभूषण और
बनमाला – वनमाला पहने हुए थे,
नयन बिसाला – बड़े-बड़े नेत्र थे,
सोभासिंधु – इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा
खरारी – खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए।
कैसा है यह स्वरूप, तुलसीदासजी कहते हैं कि सुंदर नेत्र है, मेघसा श्याम शरीर है, चारों भुजाओं में अपने चारों शस्त्र (शंख, चक्र, गदा, पद्म) धरे है।
वनमाला पहने हैं, सब अंगों में आभूषण सजे है, बड़े विशाल नेत्र है, शोभा के सागर और खर नाम राक्षस के बैरी है।
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता। माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता॥
कह दुइ कर जोरी – दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगी
अस्तुति तोरी – तुम्हारी स्तुति
केहि बिधि करूं – मैं किस प्रकार करूँ
अनंता – हे अनंत!
माया गुन ग्यानातीत अमाना – माया, गुण और ज्ञान से परे
वेद पुरान भनंता – वेद और पुराण तुम को बतलाते हैं (वेद और पुराण तुम को माया, गुण और ज्ञान से परे बतलाते हैं)
दोनों हाथ जोड़ कौशल्या ने कहा कि हे अनंत प्रभु, मैं आप की स्तुति कैसे करू।
क्योंकि वेद और पुराण भी ऐसे कहते हैं कि प्रभु का स्वरूप माया के गुणों से परे, इंद्रियजन्य ज्ञान से अगोचर और प्रमाण का विषय नहीं है।
करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता। सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता॥
करुना सुख सागर – दया और सुख का समुद्र,
सब गुन आगर – सब गुणों का धाम कहकर
जेहि गावहिं श्रुति संता – श्रुतियाँ और संतजन जिनका गान करते हैं
सो मम हित लागी – मेरे कल्याण के लिए
जन अनुरागी – वही भक्तों पर प्रेम करने वाले
भयउ प्रगट श्रीकंता – लक्ष्मीपति भगवान प्रकट हुए हैं
सो हे प्रभु मैं तो ऐसे जानती हूँ कि जिसे श्रुति और संत लोग गाते हैं, वे करुणा व सुखके सागर, सब गुणों के आगर (भण्डार), भक्त अनुरागी, लक्ष्मीपति, प्रभु मेरा हित करने के लिए प्रकट हुए है।
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहै। मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै॥
ब्रह्मांड निकाया – अनेकों ब्रह्माण्डों के समूह हैं
निर्मित माया – माया के रचे हुए
रोम रोम – आपके रोम-रोम में रहते हैं
प्रति बेद कहै – ऐसा वेद कहते हैं
मम उर सो बासी – वे तुम मेरे गर्भ में रहे
यह उपहासी – इस हँसी की बात
सुनत धीर – सुनने पर धीर (विवेकी) पुरुषों की बुद्धि भी
मति थिर न रहै – स्थिर नहीं रहती (विचलित हो जाती है)
और हे प्रभु, वेद ऐसे कहते हैं कि आपके रोम-रोम में माया से रचे हुए अनेक ब्रह्मांड समूह रहते हैं सो वे आप मेरे उदर (गर्भ) में कैसे रहे। इस बात की मुझे बड़ी हंसी आती है।
केवल मैं ही नहीं बड़े-बड़े धीर पुरुषों की बुद्धि भी यह बात सुनकर धीर नहीं रहती।
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै। कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥
उपजा जब ग्याना – जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ
प्रभु मुसुकाना – तब प्रभु मुस्कुराए
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै – वे बहुत प्रकार के चरित्र करना चाहते हैं
कहि कथा सुहाई – अतः उन्होंने (पूर्व जन्म की) सुंदर कथा कहकर
मातु बुझाई – माता को समझाया
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै – जिससे उन्हें पुत्र का प्रेम प्राप्त हो और भगवान के प्रति पुत्र का भाव आ जाए
जब कौशल्या को ज्ञान प्राप्त हो गया तब प्रभु हँसे कि देखो इसको किस वक्त में ज्ञान प्राप्त हुआ है अभी इसको ज्ञान नहीं होना चाहिए। क्योंकि, अभी मुझको बहुत चरित्र करने हैं।
उस वक्त प्रभु अनेक प्रकार के चरित्र करना चाहते थे, इसलिए माता को अनेक प्रकार की कथा सुना कर ऐसे समझा बुझा दिया कि जिस तरह उसके मन में पुत्र का प्रेम आ गया।
माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा। कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा॥
माता पुनि बोली, सो मति डोली – प्रभु की प्रेरणा से कौशल्या माँ की बुद्धि दूसरी ओर डोल गई, तब वह फिर बोली
तजहु तात यह रूपा – हे तात! यह रूप छोड़कर
कीजै सिसुलीला – बाललीला करो
अति प्रियसीला – जो मेरे लिए अत्यन्त प्रिय है
यह सुख परम अनूपा – यह सुख मेरे लिए परम अनुपम होगा
प्रभु की प्रेरणा से कौशल्या की बुद्धि दूसरी ओर डोल गई जिससे वह फिर बोली कि हे तात! आप यह स्वरूप तज (छोड़) दो।
बालक स्वरूप धारण कर, अतिशय प्रिय स्वभाव वाली बाल लीला करो। यह सुख मुझको बहुत अच्छा लगता है।
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा। यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा॥
सुनि बचन सुजाना – माता के ऐसे वचन सुनकर
रोदन ठाना – (भगवान ने बालक रूप धारण कर) रोना शुरू कर दिया
होइ बालक – बालक रूप धारण कर
सुरभूपा – देवताओं के स्वामी भगवान ने
यह चरित जे गावहिं – जो इस चरित्र का गान करते हैं
हरिपद पावहिं – वे श्री हरि का पद (भगवत पद) पाते हैं
ते न परहिं – और वे फिर नहीं गिरते
भवकूपा – संसार रूपी कुएं में (और फिर संसार रूपी माया में नहीं गिरते)
माता के ऐसे वचन सुन प्रभु ने बालक स्वरूप धारण कर रुदन करना (रोना) शुरू किया।
महादेव जी कहते हैं कि हे पार्वती जो मनुष्य इस चरित्र को गाते हैं वह मनुष्य अवश्य भगवत पद को प्राप्त हो जाते हैं और वे कभी संसार रुपी कुए में नहीं गिरते।
श्री राम से बड़ा कोई देवता नहीं, श्री राम से बढ़कर कोई व्रत नहीं, श्री राम से बड़ा कोई योग नहीं तथा श्री राम से बढ़कर कोई यज्ञ नहीं है।
श्री राम का स्मरण, जप और पूजन करके मनुष्य परम पद प्राप्त करता है। तथा इस लोक और परलोक की उत्तम समृद्धि को भी प्राप्त करता है।
श्री रघुनाथ जी संपूर्ण कामनाओं और फलों के दाता है। मन के द्वारा स्मरण और ध्यान करने पर वे अपनी उत्तम भक्ति प्रदान करते हैं जो संसार समुद्र से तारनेवाली है। कैसा भी मनुष्य क्यों ना हो, श्री राम का स्मरण करके परमगति को प्राप्त कर लेता है।
यह संपूर्ण वेद और शास्त्रों का रहस्य है। एक ही देवता है – श्री राम। एक ही व्रत है – श्री रामका पूजन। एक ही मंत्र है – श्री राम क नाम तथा एक ही शास्त्र है उनकी स्तुति।
अतः सब प्रकार से परम मनोहर श्री रामचंद्र जी का भजन करो, जिससे तुम्हारे लिए यह महान संसार सागर गाय के खुर के समान तुच्छ हो जाए।
Jay Radhe, Jay Radhe Radhe, Shri Radhe Jay Radhey, Jay Radhey Radhey, Shri Radhey
Braj ki raj mein lot kar, Yamuna jal kar paan. Shri Radha Radha ratate, ya tan so nikale praan.
Kishori kuch aisa intjam ho jaye . Juba pe Radha, Radha Radha naam ho jaye.
Gar tum na karogi, to krpa kaun karega. Gar tum na sunogi, to meri kaun sunega.
Kishori kuch aisa intjam ho jaye . Juba pe Radha, Radha Radha naam ho jaye.
dolat phirat mukh bolat main Radhe Radhe, aur jag jaalan ke khyaalan se hat re. jaagat, sovat, pag jovat mein Radhe Radhe, rat Radhe Radhe, tyaag urate kapat re.
Laal balabir dhar dhir rat Radhe Radhe, Hare koti baadhe rat Radhe jhatapat re. Ai re man mere too chhod ke jhamele sab, rat Radhe, rat Radhe, Radhe Radhe rat re.
Shri Radhe itani krpa tumhaari hum pe ho jaye. Kisi ka naam loon jubaa pe tumhaara naam aaye.
Kishori kuch aisa intjam ho jaye . Juba pe Radha, Radha Radha naam ho jaye.
Woh din bhi aaye tere vrndaavan mein aayen ham, tumhaare charanon mein apane sar ko jhukaen ham. braj galion mein jhoome naache gaaye hum. Meri saari umr vrndaavan mein tamaam ho jaye.
Kishori kuch aisa intjam ho jaye . Juba pe Radha, Radha Radha naam ho jaye.
Armaan mere dil ka mita kyu nahi deti, Sarkar Vrindavan mein bula kyoon nahin leti. Deedaar bhi hota rahe har waqt baar baar, Charano mein hamako apane bitha kyoon nahin leti.
Kishori kuch aisa intjam ho jaye . Juba pe Radha, Radha Radha naam ho jaye.
Shri Vridaavan vaas mile, ab yahi hamaari aasha hai. yamuna tat chhaav kunjan ki jahaan rasikon ka vaasa hai.
Seva kunj manohar nidhi van, jahaan ik ras baarahon maasa hai. lalit kishori ab ye dil bas, us yugal roop ka pyaasa hai.
Kishori kuch aisa intjam ho jaye . Juba pe Radha, Radha Radha naam ho jaye.
Main to aai Vrindaavan dhaam kishori tere charanan mein. Kishori tere charanan mein, Shri Radhe tere charanan mein .
karo krpa ki kor Shri Radhe, din janan ki or Shri Radhe. meri vinati hai aatho yaam, kishori tere charanan mein. Shri Radhe tere charanan mein
Baanke thaakur ki thakuraani, vrndaavan jin ki rajadhaani. Tere charan dabaavat shyaam, kishori tere charanan mein. Shri Radhe tere charanan mein
Mujhe bana lo apani daasi, chaahat nit hi mahal khavaasi. Mujhe aur na jag se kaam, kishori tere charanan mein. Shri Radhe tere charanan mein
Kishori kuch aisa intjam ho jaye . Juba pe Radha, Radha Radha naam ho jaye.
Kishori is se badh kar aarajoo-e-dil nahin koi. tumhaara naam hai bas doosara saahil nahin koi. tumhaari yaad mein meri subaho shyaam ho jae.
Kishori kuch aisa intjam ho jaye . Juba pe Radha, Radha Radha naam ho jaye.
Yah to bata do barasaane vaali main kaise tumhaari lagan chhod doonga. Teri daya par yah jivan hai mera, main kaise tumhaari sharan chhod doonga.
Na poochho kiye mainne, aparaadh kya kya, kahi yah zamin aasamaan hil na jaaye. Jab tak shri Radha raani kshama na karogi, main kaise tumhaare charan chhod doonga.
Bahut thokare kha chooka zindagi mein, tamanna tumhaare didaar ki hai. Jab tak shri Radha rani darshan na dogi, main kaise tumhaara bhajan chhod doonga.
Taaro na taaro marji tumhaari, lekin meri aakhari baat sun lo . Mujh ko shri raadha raani jo dar se hataaya, tumhaare hi dar pe main dam tod doonga.
Kishori kuch aisa intjam ho jaye . Juba pe Radha, Radha Radha naam ho jaye.
Marana ho to main maroo, Shri Radhe ke dvaar, kabhi to laadali poochhegi, yah kaun padyo darabaar.
Kishori kuch aisa intjam ho jaye . Juba pe Radha, Radha Radha naam ho jaye.
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
जब गिरते हुए मैंने तेरा नाम लिया है। तो गिरने ना दिया तूने, मुझे थाम लिया है॥
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
तुम अपने भक्तो पे कृपा करती हो, श्री राधे। उनको अपने चरणों में जगह देती हो, श्री राधे।
(मांगने वाले खाली ना लौटे, कितनी मिली खैरात ना पूछो। उनकी कृपा तो उनकी कृपा है, उनकी कृपा की बात ना पूछो॥)
तुम अपने भक्तो पे कृपा करती हो, श्री राधे। उनको अपने चरणों में जगह देती हो, श्री राधे। तुम्हारे चरणों में मेरा मुकाम हो जाए॥
श्री राधे, श्री राधे राधे, श्री राधे श्री राधे, श्री राधे राधे, श्री राधे
जय राधे, जय राधे राधे, श्री राधे जय राधे, जय राधे राधे, श्री राधे
ब्रज की रज में लोट कर, यमुना जल कर पान। श्री राधा राधा रटते, या तन सों निकले प्राण॥
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
गर तुम ना करोगी, तो कृपा कौन करेगा। गर तुम ना सुनोगी, तो मेरी कौन सुनेगा॥
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
डोलत फिरत मुख बोलत मैं राधे राधे, और जग जालन के ख्यालन से हट रे। जागत, सोवत, पग जोवत में राधे राधे, रट राधे राधे, त्याग उरते कपट रे॥
लाल बलबीर धर धीर रट राधे राधे, हरे कोटि बाधे रट राधे झटपट रे। ऐ रे मन मेरे तू छोड़ के झमेले सब, रट राधे, रट राधे, राधे राधे रट रे॥
श्री राधे, श्री राधे राधे, श्री राधे श्री राधे, श्री राधे राधे, श्री राधे
श्री राधे इतनी कृपा तुम्हारी हम पे हो जाए। किसी का नाम लूँ जुबां पे तुम्हारा नाम आये॥
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
वो दिन भी आये तेरे वृन्दावन में आयें हम, तुम्हारे चरणों में अपने सर को झुकाएं हम। ब्रज गलिओं में झूमे नाचे गायें हम। मेरी सारी उम्र वृन्दावन में तमाम हो जाए॥
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
अरमान मेरे दिल का मिटा क्यूँ नहीं देती, सरकार वृन्दावन में बुला क्यूँ नहीं लेती। दीदार भी होता रहे हर वक्त बार बार, चरणों में हमको अपने बिठा क्यूँ नहीं लेती॥
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
श्री वृन्दावन वास मिले, अब यही हमारी आशा है। यमुना तट छाव कुंजन की जहाँ रसिकों का वासा है॥
सेवा कुंज मनोहर निधि वन, जहाँ इक रस बारहों मासा है। ललित किशोरी अब ये दिल बस, उस युगल रूप का प्यासा है॥
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
मैं तो आई वृन्दावन धाम किशोरी तेरे चरनन में। किशोरी तेरे चरनन में, श्री राधे तेरे चरनन में॥
ब्रज वृन्दावन की महारानी, मुक्ति भी जहाँ भरती पानी। तेरे चरण पड़े चारो धाम, किशोरी तेरे चरनन में॥ श्री राधे तेरे चरनन में
करो कृपा की कोर श्री राधे, दीन जनन की ओर श्री राधे। मेरी विनती है आठो याम, किशोरी तेरे चरनन में॥ श्री राधे तेरे चरनन में
बांके ठाकुर की ठकुरानी, वृन्दावन जिन की रजधानी। तेरे चरण दबावत श्याम, किशोरी तेरे चरनन में॥ श्री राधे तेरे चरनन में
मुझे बना लो अपनी दासी, चाहत नित ही महल खवासी। मुझे और ना जग से काम, किशोरी तेरे चरनन में॥ श्री राधे तेरे चरनन में
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
किशोरी इस से बढ कर आरजू-ए-दिल नहीं कोई। तुम्हारा नाम है बस दूसरा साहिल नहीं कोई। तुम्हारी याद में मेरी सुबहो श्याम हो जाए॥
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
यह तो बता दो बरसाने वाली मैं कैसे तुम्हारी लगन छोड़ दूंगा। तेरी दया पर यह जीवन है मेरा, मैं कैसे तुम्हारी शरण छोड़ दूंगा॥
ना पूछो किये मैंने, अपराध क्या क्या, कही यह जमीन आसमां हिल ना जाये। जब तक श्री राधा रानी क्षमा ना करोगी, मैं कैसे तुम्हारे चरण छोड़ दूंगा॥
बहुत ठोकरे खा चूका ज़िन्दगी में, तमन्ना तुम्हारे दीदार की है। जब तक श्री राधा रानी दर्शन ना दोगी, मैं कैसे तुम्हारा भजन छोड़ दूंगा॥
तारो ना तारो मर्जी तुम्हारी, लेकिन मेरी आखरी बात सुन लो। मुझ को श्री राधा रानी जो दर से हटाया, तुम्हारे ही दर पे मैं दम तोड़ दूंगा॥
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥
मरना हो तो मैं मरू, श्री राधे के द्वार, कभी तो लाडली पूछेगी, यह कौन पड्यो दरबार॥
किशोरी कुछ ऐसा इंतजाम हो जाए। जुबां पे राधा, राधा राधा नाम हो जाए॥