Aisi Lagi Lagan Meera Ho Gayi Magan – Lyrics in Hindi


ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन

ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन लिरिक्स के इस पेज में पहले मीरा भजन के हिंदी लिरिक्स दिए गए है।

बाद में इस भजन का आध्यात्मिक महत्व दिया गया है और इसकी पंक्तियों से हमें कौन कौन सी बातें सीखने को मिलती है यह बताया गया है, जो हमें भक्ति मार्ग पर चलने में मदद कर सकती है।

क्योंकि इस भजन में हमें मीराबाई की कृष्ण-भक्ति से कई प्रेरणादायक संदेश मिलते हैं और उनकी भक्ति की महानता के बारे में भी जानने को मिलता है।


Aisi Lagi Lagan Meera Ho Gayi Magan Hindi Lyrics

ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन।
वो तो गली गली, हरी गुण गाने लगी॥


बेकार वो मुख है, जो रहे व्यर्थ बातों में।
मुख है वो जो, हरी नाम का सुमिरन किया करे॥

हीरे मोती से नहीं शोभा है हाथ की।
है हाथ जो भगवान् का पूजन किया करे॥

मर के भी अमर नाम है उस जीव का जग में।
प्रभु प्रेम में बलिदान जो जीवन किया करे॥


ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन।
वो तो गली गली, हरी गुण गाने लगी॥
महलों में पली, बन के जोगन चली।
मीरा रानी दीवानी कहाने लगी॥

[ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन।
वो तो गली गली, हरी गुण गाने लगी॥]


कोई रोके नहीं, कोई टोके नहीं,
मीरा गोविन्द गोपाल गाने लगी।
बैठी संतो के संग, रंगी मोहन के रंग,
मीरा प्रेमी प्रीतम को मनाने लगी।
वो तो गली गली हरी गुण गाने लगी॥
[ऐसी लागी लगन…]


राणा ने विष दिया, मानो अमृत पिया,
मीरा सागर में सरिता समाने लगी।
दुःख लाखों सहे, मुख से गोविन्द कहे,
मीरा गोविन्द गोपाल गाने लगी।
वो तो गली गली हरी गुण गाने लगी॥
[ऐसी लागी लगन…]


महलों में पली, बन के जोगन चली।
मीरा रानी दीवानी कहाने लगी॥
ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन।
वो तो गली गली हरी गुण गाने लगी॥


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Aisi Lagi Lagan Meera Ho Gayi Magan – Meera Bhajan

Anup Jalota


Krishna Bhajan



ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन भजन का आध्यात्मिक महत्व

ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन” भजन की पंक्तियों से हमें मीराबाई के जीवन और भक्ति से कई प्रेरणादायक शिक्षाएं मिलती हैं। साथ ही साथ सच्ची भक्ति, धैर्य, ध्यान, और संतों के साथ सत्संग करने का महत्व भी समझ में आता है।

भक्ति से सम्बंधित जो महत्वपूर्ण बातें इस भजन से हमें सीखने को मिलती हैं, उनमे से कुछ हैं –


भक्ति में समर्पण

ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन।
वो तो गली गली, हरी गुण गाने लगी॥

मीराबाई ने अपनी पूरी जिंदगी कृष्ण को समर्पित कर दी थी। वे कृष्ण के प्रति इतनी समर्पित थीं कि उन्होंने उनके लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया। उन्होंने कृष्ण की भक्ति को ही अपना जीवन बना लिया था।

इन पंक्तियों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति में समर्पण होना चाहिए और हमें भी भक्ति को अपने जीवन का केंद्र बनाना चाहिए।


भक्ति में दृढ़ता

महलों में पली, बन के जोगन चली।
मीरा रानी दीवानी कहाने लगी॥

मीराबाई को कृष्ण के प्रति भक्ति इतनी गहरी थी की जब उन्हें लगने लगा की महलों की बाते उनकी भक्ति में बाधक बन रही है, तो उन्होंने महल छोड़ दिया।

उन्होंने घर-परिवार, धन-संपत्ति सब त्याग दिया और कृष्ण के प्रेम में लीन हो गईं। वे हर समय कृष्ण के गुण गाती रहती थीं। उनके प्रेम और भक्ति की शक्ति से वे सबको प्रभावित करती थीं।

वे किसी भी तरह के विरोध या उपहास से भी नहीं डरी।


भक्ति में आत्मविश्वास

कोई रोके नहीं, कोई टोके नहीं,
मीरा गोविन्द गोपाल गाने लगी।

मीराबाई की भक्ति में प्रेम का अद्भुत संगम था। उन्होंने कृष्ण को अपना सर्वस्व मान लिया था। वह कृष्ण के प्रेम में डूबकर रहती थीं।

उन्होंने भक्ति में आत्मविश्वास का परिचय दिया। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि उनके जैसे सामान्य व्यक्ति को कृष्ण की प्राप्ति नहीं होगी।

उन्होंने अपने प्रेम और विश्वास के बल पर कृष्ण को पा लिया।


भक्ति में साहस

दुःख लाखों सहे, मुख से गोविन्द कहे,
मीरा गोविन्द गोपाल गाने लगी।

मीराबाई ने भक्ति में साहस और दृढ़ता का भी परिचय दिया। उन्होंने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने अपनी भक्ति नहीं छोड़ी।

यह पंक्ति हमें बताती है की मीराबाई ने अपनी भक्ति के लिए अपने परिवार और समाज के विरोध का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

इसी प्रकार हमें भी अपने जीवन में भक्ति के लिए कठिनाइयों का सामना करने से नहीं डरना चाहिए।


भक्ति में प्रेम की पराकाष्ठा

राणा ने विष दिया, मानो अमृत पिया,
मीरा सागर में सरिता समाने लगी।

उन्होंने दुख, अपमान, और यहां तक कि अपने परिवार और समाज के तिरस्कार को भी सहा।

मीराबाई के कृष्ण प्रेम को उनके घरवाले और समाज ने नहीं समझा। उन्हें तरह-तरह की परेशानियां दी गईं। लेकिन, मीरा ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी कृष्ण-भक्ति को कभी नहीं छोड़ा।

उन्होंने समाज के रीति-रिवाजों और रूढ़ियों को चुनौती दी। उन्होंने महिलाओं को भी भक्ति के लिए प्रेरित किया।

इससे हमें यह भी सीखने को मिलता है कि जीवन में होने वाली परेशानियां हो या भक्ति मार्ग पर चलते समय मिलने वाली कठिनाइयां, दोनो का सामना करने के लिए धैर्य और ध्यान का महत्व होता है।


संत समाज का महत्व

बैठी संतो के संग, रंगी मोहन के रंग,
मीरा प्रेमी प्रीतम को मनाने लगी।

मीरा बाई ने अपने जीवन में संतों का मार्गदर्शन प्राप्त किया। संतों के सान्निध्य में रहने से उनकी भक्ति और प्रेम में और भी अधिक वृद्धि हुई।

मीरा बाई कृष्ण के प्रेम में इतनी डूब गईं कि उन्होंने अपने जीवन को कृष्ण के लिए समर्पित कर दिया। वे कृष्ण के बिना एक पल भी नहीं रह सकती थीं। वे कृष्ण के दर्शन के लिए तरसती रहती थीं।

यह बात हमें संतों के साथ सत्संग करने और सद्गुरु के मार्ग पर चलने के महत्व को बताती है। साथ ही हमें सिखाती है की हमें संत समाज का सम्मान करना चाहिए। क्योंकि संतों के मार्गदर्शन से ही हमें सही मार्ग मिल सकता है।


Summary

इस प्रकार ऐसी लागी लगन भजन की पंक्तियाँ भक्त को मीराबाई की तरह ईश्वर भक्ति करने की प्रेरणा देती है।

भक्ति हमें मोक्ष की प्राप्ति कराती है। मीरा बाई ने भी अपनी भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया। यह बताती है की भक्ति की शक्ति बहुत बड़ी होती है, जो हमें जीवन में सही मार्गदर्शन देती है।

इन पंक्तियों को पढ़कर हमें यह भी प्रेरणा मिलती है कि हमें भी मीरा बाई की तरह कृष्ण की भक्ति में लीन होना चाहिए। हमें दिन रात सिर्फ अपनी भौतिक इच्छाओं के पीछे नहीं भागना चाहिए, बल्कि कृष्ण के प्रति सच्ची भक्ति रखनी चाहिए।

मीरा बाई ने कृष्ण की भक्ति के माध्यम से अपने जीवन को पूर्ण बनाया। भक्ति हमें जीवन में पूर्णता और संतुष्टि प्रदान कर सकती है। इसलिए हमें कृष्ण को अपना सर्वस्व मानना चाहिए और उनकी भक्ति में डूब जाना चाहिए। इन शिक्षाओं को अपनाकर हम भी अपने जीवन में सफलता और सुख प्राप्त कर सकते हैं।


Krishna Bhajan



ऐसी लागी लगन भजन

ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन” हिंदी में एक लोकप्रिय भजन है जो भगवान कृष्ण के प्रति मीराबाई की भक्ति और प्रेम से जुड़ा है।

इसमें मीराबाई के परमात्मा के साथ गहरे और गहन आध्यात्मिक संबंध को दर्शाया गया है।

कृष्णभक्त मीराबाई

मीराबाई (1498-1547) सोलहवीं शताब्दी की एक कृष्ण भक्त और कवयित्री थीं।
Source – Wikipedia – Meerabai

मीराबाई ने भगवान कृष्ण को समर्पित कई भक्तिगीतों की रचना की और गाए है। उन्होंने अपनी मर्मस्पर्शी और हृदयस्पर्शी कविताओं और पदों के माध्यम से भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त की है। संत रैदास या रविदास उनके गुरु थे।

ऐसी लागी लगन भजन, मीरा की भगवान कृष्ण के प्रति उनके प्रेम से पूरी तरह से लीन और मुग्ध होने की स्थिति को चित्रित करता है।

यह गीत उनके समर्पण और भक्ति को व्यक्त करता हैं, यह वर्णन करते हुए कि कैसे परमात्मा के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें पूरी तरह से लीन कर दिया है।

समय के साथ, मीराबाई के भजन विभिन्न कलाकारों द्वारा गाए गए और लोकप्रिय हुए और भक्ति संगीत प्रदर्शनों की सूची का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए।

कृष्ण की भक्ति में लीन मीराबाई

ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन” का मधुर संगीत और भक्ति भाव से भरे शब्द, मीराबाई की ईश्वर के प्रति गहरी लालसा और भक्ति के सार को बहुत खूबसूरती से दर्शाता है।

यह भजन अक्सर बड़े भावनात्मक उत्साह के साथ गाया जाता है, आध्यात्मिक परमानंद और परमात्मा के साथ संबंध की भावना का आह्वान करता है।

भजन भक्तों और भक्ति संगीत के प्रेमियों द्वारा गाया जाता है, क्योंकि यह मीरा बाई के भगवान कृष्ण के प्रति गहन प्रेम और भक्ति की याद दिलाता है।

यह श्रोताओं को मीराबाई की तरह भक्ति की गहराई विकसित करने और परमात्मा के प्रति समर्पण करने के लिए प्रेरित करता है।

Aarti Kunj Bihari Ki – Lyrics in Hindi with Meanings


आरती कुंज बिहारी की – श्री कृष्ण आरती

भगवान् कृष्ण की आरती – आरती कुंज बिहारी की के इस पेज में पहले कृष्ण आरती के हिंदी लिरिक्स दिए गए हैं।

बाद में “आरती कुंज बिहारी की” की पंक्तियों का अर्थ और आध्यात्मिक महत्व दिया गया है।


आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

[आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।]


गले में बैजंती माला, बजावे मुरली मधुर बाला
श्रवण में कुंडल झलकाला
नन्द के नन्द, श्री आनंद कंद, मोहन बृज चंद
राधिका रमण बिहारी की,
श्री गिरीधर कृष्ण मुरारी की
[आरती कुंज बिहारी की….]


गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
[आरती कुंज बिहारी की….]


कनकमय मोर मुकुट बिलसे, देवता दर्शन को तरसे
गगन सों सुमन रसी बरसे
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
[आरती कुंज बिहारी की….]


जहां ते प्रकट भई गंगा
कलुष कलि हारिणि श्री गंगा
(Or – सकल मल हारिणि श्री गंगा)
स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव शीष, जटा के बीच, हरै अघ कीच
चरन छवि श्री बनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
[आरती कुंज बिहारी की….]


चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू
चहुं दिशी गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद
टेर सुन दीन भिखारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
[आरती कुंज बिहारी की….]


आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की


Aarti Kunj Bihari Ki – Krishna Aarti


Krishna Bhajan



आरती कुंज बिहारी की – श्री कृष्ण आरती – आध्यात्मिक अर्थसहित

आरती कुंज बिहारी की भगवान कृष्ण की आरती है, जिन्हें कुंज बिहारी या कन्हैया के नाम से भी जाना जाता है। यह आरती भक्तों द्वारा हिंदू त्योहार जन्माष्टमी के दौरान गाई जाती है, जब भगवान् कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया जाता है।

भजन में भगवान कृष्ण की सुंदरता और आकर्षण का वर्णन किया गया है, जो फूलों की माला पहनते हैं, बांसुरी बजाते हैं और राधा के साथ नृत्य करते हैं। यह भजन भक्त के भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को भी व्यक्त करता है, जो अपने भक्तों के रक्षक और पालक हैं। आरती कुंज बिहारी की भजन भगवान कृष्ण की सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से गाई जाने वाली आरतियों में से एक है।

आरती कुंज बिहारी की आरती का अर्थ और आध्यात्मिक अर्थ इस प्रकार है –

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

“कुंज बिहारी” भगवान कृष्ण का एक नाम है, जो अपनी दिव्य उपस्थिति से सभी को आकर्षित और मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

यह पंक्ति भगवान कृष्ण की आरती की पहली लाइन है, जिसमे उन्हें गिरधर (क्योंकि भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली से उठा लिया था) और मुरारी (मुरा नामक राक्षस का वध करने वाला) के रूप में संदर्भित करती है।

यह पंक्ति भगवान श्रीकृष्ण को गोवर्धन धारी, देवकी पुत्र, और दुष्टों का संहार करने वाले श्री गिरिधर के रूप में स्तुति करती हैं।

गले में बैजंती माला,

गले में छोटे सफेद मोतियों से बनी एक दिव्य माला है, जो अक्सर भगवान विष्णु या कृष्ण से जुड़ी होती है। यह भगवान कृष्ण के दिव्य श्रृंगार का प्रतीक है।

बजावे मुरली मधुर बाला

“बजावे” का अर्थ है बजाना, “मुरली” का अर्थ है भगवान कृष्ण की बांसुरी, और “मधुर बाला” उनकी बांसुरी की मधुर ध्वनि को दर्शाता है। भगवान कृष्ण को अक्सर एक आकर्षक बांसुरीवादक के रूप में चित्रित किया जाता है, जो अपनी बांसुरी के मंत्रमुग्ध संगीत के माध्यम से अपने भक्तों के दिलों को मोहित कर लेते हैं।

श्रवण में कुंडल झलकाला

“श्रवण” का अर्थ है कान, और “कुंडल” बालियां हैं। यह पंक्ति भगवान कृष्ण की बालियों की सुंदरता का वर्णन करती है, जो बांसुरी बजाते समय चमकती और लहराती हैं।

नन्द के नन्द, श्री आनंद कंद, मोहन बृज चंद

यह पंक्तियाँ भगवान कृष्ण को नंद (उनके पालक पिता) के प्रिय पुत्र, सर्वोच्च आनंद (आनंद कंद) के स्रोत और बृज की भूमि (उनका बचपन का घर) के सबसे प्रिय और आनंदमय के रूप में वर्णन करती है। ।

राधिका रमण बिहारी की, श्री गिरीधर कृष्ण मुरारी की

राधिका रमण भगवान कृष्ण का दूसरा नाम है, जो दर्शाता है कि वह राधा के प्रिय हैं, और “बिहारी” का तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो बगीचों (कुंज) में लीला (विहारी) का आनंद लेता है, जो उनके चंचल और प्रेमपूर्ण स्वभाव का प्रतीक है।

गगन सम अंग कांति काली,

यह पंक्ति भगवान कृष्ण की दिव्य सुंदरता का वर्णन करती है, जिसमें उनके गहरे रंग की तुलना नीले आकाश (गगन) के बीच एक काले बादल की उज्ज्वल चमक से की जाती है।

राधिका चमक रही आली

यह राधा के तेज और वैभव का प्रतीक है, जिन्हें अक्सर भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और प्रेम के प्रतीक के रूप में चित्रित किया जाता है।

लतन में ठाढ़े बनमाली

“लतन” का अर्थ है कमर, और “बनमाली” भगवान कृष्ण के नामों में से एक है। यह पंक्ति भगवान कृष्ण को अपनी कमर में मोर पंख लगाए हुए चित्रित करती है, जैसा कि आमतौर पर उनकी छवियों में दर्शाया जाता है।

भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक

यह श्लोक भगवान कृष्ण के भौंरे (भ्रमर) के रूप में आकर्षक, माथे पर कस्तूरी की सुगंध वाला तिलक और चंद्रमा (चंद्र) की तरह चमकने वाले रूप का वर्णन करता है।

ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

यह पंक्ति श्यामा (कृष्ण का दूसरा नाम) के आकर्षक और मनमोहक रूप (छवि) की प्रशंसा करती है और उनके प्यारे स्वभाव पर प्रकाश डालती है।

कनकमय मोर मुकुट बिलसे,

“कनकमय” का अर्थ है सोने से बना, “मोर मुकुट” का अर्थ है मोर पंखों से सुसज्जित। इस पंक्ति में भगवान कृष्ण को मोरपंख वाला स्वर्ण मुकुट पहने हुए बताया गया है।

देवता दर्शन को तरसे

“तरसे” का अर्थ है लालसा या इच्छा। यह पंक्ति बताती है कि देवता स्वयं भगवान कृष्ण के दिव्य दर्शन के लिए लालायित रहते हैं।

गगन सों सुमन रसी बरसे

गगन यानी की आकाश, “सुमन” का अर्थ है फूल, और “बरसे” का अर्थ है बौछार। यह लाइन दर्शाती है कि कैसे, स्वर्गीय लोकों से, भगवान कृष्ण पर आराधना की अभिव्यक्ति के रूप में हल्की बारिश की तरह फूल बरसते हैं।

बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग

“मुरचंग” बांसुरी के समान एक संगीत वाद्ययंत्र है, “मधुर मिरदंग” का तात्पर्य मधुर ध्वनि वाले मृदंग (एक प्रकार का ड्रम) से है, और “ग्वालिन संग” का अर्थ है “अर्थात् ग्वालबालों के साथ। यह पंक्ति बांसुरी और ड्रम के मनमोहक संगीत के साथ एक आनंदमय दृश्य को चित्रित करती है, जबकि चरवाहे ग्वालिन भगवान कृष्ण की दिव्य उपस्थिति में गाती हैं और नृत्य करती हैं।

अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

“अतुल रति” का अर्थ है अतुलनीय प्रेमी, और “गोप कुमारी” का तात्पर्य ग्वालिन से है। यह श्लोक वृन्दावन की ग्वालबालियों के प्रति भगवान कृष्ण के असाधारण प्रेम और स्नेह को उजागर करता है।

जहां ते प्रकट भई गंगा
कलुष कलि हारिणि श्री गंगा (Or – सकल मल हारिणि श्री गंगा)

“जहा से प्रगट” का अर्थ है जहां से यह प्रकट हुई, और “गंगा” का तात्पर्य गंगा नदी से है। “कलुष कली हारिणी” का अर्थ है अशुद्धियों को दूर करने वाली, और “श्री गंगा” पवित्र गंगा नदी को संदर्भित करती है। यह श्लोक इस बात पर भी जोर देता है कि गंगा अपनी उपस्थिति से ही सभी पापों को शुद्ध कर देती है।

स्मरन ते होत मोह भंगा

“मोह भंग” का अर्थ है भ्रम टूट गया। यह पंक्ति इंगित करती है कि भगवान कृष्ण के स्मरण मात्र से सभी भ्रम और मोह दूर हो सकते हैं।

बसी शिव शीष, जटा के बीच, हरै अघ कीच

यह श्लोक भगवान कृष्ण को ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित करता है जो पवित्र गंगा को अपनी जटाओं में धारण करते हैं, और ऐसा करके, वह सभी प्राणियों के पापों को धो देते हैं।

चरन छवि श्री बनवारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

“चरण छवि” दिव्य चरणों को संदर्भित करता है, और “श्री बनवारी” भगवान कृष्ण का दूसरा नाम है। यह पंक्ति भगवान कृष्ण के दिव्य रूप और उनके पवित्र चरणों की महिमा करती है।

चमकती उज्ज्वल तट रेनू

“चमकती” का अर्थ है चमचमाती, “उज्ज्वल” यानी की दीप्तिमान, और “तट रेनू” का अर्थ है वृन्दावन की धूल। यह श्लोक वर्णन करता है कि वृन्दावन की धूल किस प्रकार चमक रही है।

बज रही वृंदावन बेनू

इस पंक्ति का तात्पर्य भगवान कृष्ण के प्रिय निवास वृन्दावन में बजने वाली बांसुरी से है।

चहुं दिशी गोपि ग्वाल धेनू

“चाहु दिसि” का अर्थ है सभी दिशाओं में, “गोपी ग्वाल” चरवाहे लड़कियां और लड़के हैं, और “धेनु” गायों को संदर्भित करता है। यह पंक्ति दर्शाती है कि किस प्रकार संपूर्ण वृन्दावन ग्वालबालों, बालकों और गायों की हर्षध्वनि से गूंज उठता है।

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद

इस वाक्य में भगवान श्रीकृष्ण की सुंदरता और आकर्षण का वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण को हँसते-हँसते, धीरे-धीरे, चाँदनी के समान चमकते हुए चंद्रमा के समान वर्णित किया गया है, और उनके समर्थन से संसार के समस्त भव-भंगिमाओं से मुक्ति प्राप्त होती है। यह वाक्य भगवान के दिव्य रूप को स्तुति करता है और भक्तों को उनकी आराधना के लिए प्रेरित करता है। यह श्लोक चाँद की रोशनी में भगवान कृष्ण के मंद मंद हँसने के मनोरम दृश्य को भी चित्रित करता है।

टेर सुन दीन भिखारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

इस वाक्य में भक्त श्रीकृष्ण के चरणों में अपने सब दु:खों और आपत्तियों को समर्पित करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, उनकी कृपा का आशीर्वाद चाहते हैं।

संक्षेप में, “आरती कुंज बिहारी की” के बोल भगवान कृष्ण के दिव्य गुणों और आकर्षण की खूबसूरती से प्रशंसा करते हैं। भजन में उनके उत्कृष्ट स्वरूप, गंगा नदी के साथ उनके जुड़ाव, सभी अशुद्धियों को दूर करने की उनकी क्षमता, ग्वालों के प्रति उनके प्रेम और वृन्दावन के आनंदमय माहौल का वर्णन किया गया है जहां वह अपनी मनमोहक बांसुरी बजाते हैं।

आरती कुंज बिहारी की” भगवान् कृष्ण के चंचल और प्रेमपूर्ण स्वभाव, उनके मधुर बांसुरी वादन और उनकी मंत्रमुग्ध उपस्थिति और साथ ही साथ वृन्दावन की सुंदरता को भी दर्शाता है।


कृष्ण भक्ति

शीश मुकुट और मोर पंख, गल वैजन्तीमाल।
यह छबि मन में बस रही, यशोदा के गोपाल॥

तेरी मेरे सांवरे, युग युग की है प्रीत।
मैं चरणों का दास हूँ, तू मेरे मन का मीत॥

रोग शोक संकट हरे, बाधा निकट न आये।
है प्रताप हरी नाम में, जो लेवे तर जाये॥ 

राम वही है, कृष्ण वही, लक्ष्मण वही  बलराम।
त्रेता द्वापर की छबि, है ये चारों धाम॥

गीध, गणिका और अजामिल को तुमने तारा है।
गज को मुक्ति दिलाई, ग्राह को जा मारा है॥

शबरी भीलनी औरअहिल्या को, तूने ही तो उबारा है।
लाज द्रौपदी की बचाई, तू ही तो रखवारा है॥


Krishna Bhajan



Achyutam Keshavam Krishna Damodaram – Lyrics in Hindi with Meanings


अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं,
राम नारायणं, जानकी वल्लभं

  • अच्युतम – (अर्थ) – अविनाशी, अमर, जिसका नाश न हो सके, अमिट
    – indestructible, imperishable, immortal

कौन कहता है भगवान आते नहीं,
तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं।
अच्युतम केशवं….


कौन कहता है भगवान खाते नहीं,
बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं।
अच्युतम केशवं….


कौन कहता है भगवान सोते नहीं,
माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं।
अच्युतम केशवं….


कौन कहता है भगवान नाचते नहीं,
तुम गोपी के जैसे नचाते नहीं।
अच्युतम केशवं….


कौन कहता है भगवान नचाते नहीं,
गोपियों की तरह तुम नाचते नहीं।
अच्युतम केशवं….


अच्युतम केशवं राम नारायणं
कृष्ण दामोदरं वासुदेवं हरे॥

श्रीधरम माधवम गोपिका वल्लभं
जानकी नायकम, रामचन्द्रम हरे॥


नाम जपते चलो, काम करते चलो
हर समय कृष्ण का ध्यान करते चलो
अच्युतम केशवं….

याद आएगी उनको कभी ना कभी
कृष्ण दर्शन तो देंगे कभी ना कभी
अच्युतम केशवं….


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Achyutam Keshavam Krishna Damodaram


Krishna Bhajan



अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं भजन का आध्यात्मिक अर्थ

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरम, एक बहुत ही खूबसूरत कृष्ण भजन हैं, जिसमे भगवान विष्णु के विभिन्न नामों और स्वरूपों की स्तुति की गयी है और उनके विभिन्न दिव्य गुणों और भक्तों के साथ उनके सम्बन्धो को भी दर्शाया गया हैं। यह हर समय ईश्वर की भक्ति और स्मरण के महत्व पर भी प्रकाश डालता है।

भजन की पंक्तियों का अर्थ इस प्रकार है –

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं

अच्युतम” भगवान विष्णु को संदर्भित करता है, जो अचूक और शाश्वत हैं। अच्युतम का अर्थ है अविनाशी, अमर, जिसका नाश न हो सके, अमिट।
केशवम” भगवान कृष्ण का दूसरा नाम है, जो उनके सुंदर बालों का प्रतीक है।
कृष्ण” भगवान विष्णु का गहरे रंग का, दिव्य अवतार है, और
दामोदरम” का तात्पर्य कमर के चारों ओर बंधी रस्सी वाले अवतार से है।

यह श्लोक भगवान कृष्ण के दिव्य रूप और उनकी मां यशोदा द्वारा रस्सी से बांधे जाने की चंचल लीला की प्रशंसा करता है।

राम नारायणं, जानकी वल्लभं॥

राम” भगवान राम को संदर्भित करता है, जो भगवान विष्णु का एक और दिव्य अवतार है, और
नारायणम” भगवान विष्णु के कई नामों में से एक है।
जानकी वल्लभं का अर्थ है माँ जानकी के प्रिय। जानकी देवी सीता का नाम है, जो भगवान राम की पत्नी और राजा जनक की पुत्री थीं। वल्लभं शब्द वल्लभ से बना है, जिसका मतलब है प्रिय, प्रेमी, या पसंदीदा। जानकी वल्लभं भगवान राम का एक नाम है, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं।

भजन की अगली पंक्तियाँ विभिन्न भक्तों की भक्ति और प्रेम की तुलना इस आम धारणा से करती हैं कि भगवान लोगों के साथ कैसे बातचीत करते हैं।

कौन कहता है भगवान आते नहीं,
तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं।

यह पंक्तियाँ इस विश्वास पर सवाल उठाती है कि भगवान अपने भक्तों के पास नहीं आते हैं। यह भारत के राजस्थान की एक संत और कवयित्री मीरा बाई के उदाहरण पर प्रकाश डालता है, जिन्होंने भगवान कृष्ण के प्रति गहरे संबंध और प्रेम का अनुभव किया था। पंक्ति से पता चलता है कि भगवान अपने भक्तों के पास आते हैं, जैसे वह मीरा बाई के पास आए थे जब उन्होंने उन्हें सच्ची भक्ति से बुलाया था।

कौन कहता है भगवान खाते नहीं,
बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं।

यह पंक्ति इस विचार पर सवाल उठाती है कि भगवान नहीं खाते। यह महाकाव्य रामायण से भगवान राम की भक्त शबरी की कहानी को संदर्भित करता है। शबरी ने अत्यंत प्रेम और भक्ति के साथ भगवान राम को बेर अर्पित किए और उन्होंने उन्हें भी उतने ही प्रेम से स्वीकार किया, यह दर्शाता है कि भगवान वास्तव में शुद्ध हृदय से किए गए प्रसाद को स्वीकार करते हैं।

कौन कहता है भगवान सोते नहीं,
माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं।

यह लाइन इस विश्वास को चुनौती देती है कि भगवान सोते नहीं हैं। यह यशोदा के दिव्य मातृ प्रेम की तुलना करता है, जो प्रेमपूर्वक भगवान कृष्ण को सुलाती थी। यह इंगित करता है कि भले ही ईश्वर मानवीय आवश्यकताओं की सीमाओं से परे है, वह अपने भक्तों के प्यार और देखभाल का उसी तरह जवाब देता है जैसे एक माँ अपने बच्चे की देखभाल करती है।

कौन कहता है भगवान नाचते नहीं,
तुम गोपी के जैसे नचाते नहीं।

यह पंक्ति इस धारणा को खंडित करती है कि भगवान नृत्य नहीं करते। यह वृन्दावन के जंगलों में गोपियों (ग्वालियों) के साथ भगवान कृष्ण के मनमोहक नृत्य को संदर्भित करता है। गोपियों के साथ भगवान कृष्ण का नृत्य (रास लीला) प्रेम और भक्ति की एक दिव्य और आनंदमय अभिव्यक्ति माना जाता है, यह दर्शाता है कि जब भक्ति और प्रेम होता है तो भगवान अपने भक्तों के साथ नृत्य करते हैं।

कौन कहता है भगवान नचाते नहीं,
गोपियों की तरह तुम नाचते नहीं।

यह पंक्तियाँ इस विश्वास पर सवाल उठाती है कि भगवान नृत्य नहीं करते। इसकी तुलना वृन्दावन की गोपियों, चरवाहों से की जाती है, जो भगवान कृष्ण की उपस्थिति में बहुत खुशी और प्रेम के साथ नृत्य करती थीं। पंक्ति से पता चलता है कि, वास्तव में, भगवान कृष्ण गोपियों की तरह नृत्य करते हैं जब वे उनकी उपस्थिति में भक्ति का आनंदमय नृत्य करते हैं।

अच्युतम केशवं राम नारायणं
कृष्ण दामोदरं वासुदेवं हरे॥

ये पंक्तियाँ भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु के विभिन्न दिव्य नामों को प्रस्तुत करती हैं, उनके विभिन्न पहलुओं और रूपों को व्यक्त करती हैं

अच्युतम – अचूक, अविनाशी।
केशवम् – सुंदर बालों वाले भगवान.
राम – भगवान विष्णु के अवतार।
नारायणम – भगवान विष्णु के नामों में से एक।
कृष्ण – भगवान विष्णु का सांवला, दिव्य अवतार।
दामोदरम – जिसकी कमर में रस्सी बंधी हुई है (माँ यशोदा द्वारा बाँधे जाने की चंचल लीला का उल्लेख करते हुए)।
वासुदेवम – वासुदेव के पुत्र, भगवान कृष्ण का दूसरा नाम।
हरे – ईश्वर को संबोधित करने, अनुग्रह और सुरक्षा मांगने का एक वाचिक रूप।

ये नाम भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु के विभिन्न दिव्य गुणों और रूपों का आह्वान करते हैं।

श्रीधरम माधवम गोपिका वल्लभं
जानकी नायकम, रामचन्द्रम हरे॥

यह श्लोक अधिक दिव्य नामों और विशेषणों के साथ जारी है

श्रीधरम – वह जो दिव्य देवी लक्ष्मी (श्री) को सुशोभित करती है।
माधवम – भगवान कृष्ण का दूसरा नाम, जो धन की देवी, माँ लक्ष्मी के साथ उनके संबंध को दर्शाता है।
गोपिका वल्लभम – गोपियों के प्रिय।
जानकी नायकम – सीता के स्वामी, भगवान राम का दूसरा नाम।
रामचंद्रम – भगवान राम का चंद्रमा जैसा सुंदर रूप.
हरे – परमात्मा को संबोधित करने का एक वाचिक रूप।

ये नाम भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु के दिव्य पहलुओं और संबंधों का जश्न मनाते हैं।

नाम जपते चलो, काम करते चलो
हर समय कृष्ण का ध्यान करते चलो

ये पंक्तियाँ भगवान कृष्ण के नाम का निरंतर स्मरण और जप करने के महत्व पर जोर देती हैं। भक्तों से आग्रह किया जाता है कि वे अपना ध्यान परमात्मा पर केंद्रित रखते हुए, हमेशा भगवान कृष्ण का ध्यान करते हुए अपनी दैनिक गतिविधियों को जारी रखें।

याद आएगी उनको कभी ना कभी
कृष्ण दर्शन तो देंगे कभी ना कभी

ये छंद यह आश्वासन व्यक्त करते हैं कि यदि भक्त ईमानदारी से भगवान कृष्ण को याद करते हैं और उनका ध्यान करते हैं, तो वे उनके जीवन में किसी समय अपनी दिव्य उपस्थिति और दर्शन (दिव्य दृष्टि) से उन्हें अनुग्रहित करेंगे। पंक्तियाँ भक्तों को धैर्यवान और अपनी भक्ति में दृढ़ रहने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, क्योंकि दिव्य अनुभव उन्हें सही समय पर मिलेगा।

कुल मिलाकर, ये भजन गीत भगवान कृष्ण के दिव्य गुणों का जश्न मनाते हैं और हमारे जीवन में भगवान की उपस्थिति और कृपा का अनुभव करने के लिए शुद्ध प्रेम, भक्ति और समर्पण के महत्व पर जोर देते हैं।

ये भजन भक्तों को भगवान कृष्ण के प्रति अटूट भक्ति, स्मरण और ध्यान में संलग्न होने के लिए प्रेरित करते हैं, उनसे जुड़े दिव्य गुणों और रिश्तों पर प्रकाश डालते हैं।


श्रद्धा सुमन

(अच्युतम, केशवं, कृष्ण, दामोदरं, वासुदेवं, माधवम, श्रीधरम, गोपिका वल्लभं,
रामचन्द्रम, जानकी नायकम, जानकी वल्लभं, राम नारायणम)


हम लाये है सुमन स्नेह के,
चरणों में अर्पित करने।
और हमारे भाव दिलों के,
तुमको समर्पित करने॥

आस लगाए बैठे है हम,
दर्शन हमको नित्य मिले।
और आपके आशीषों का,
हमें सदा वरदान मिलें॥


Krishna Bhajan



Mera Aapki Kripa Se Sab Kaam Ho Raha Hai – Lyrics in Hindi


मेरा आपकी कृपा से, सब काम हो रहा है

मेरा आपकी कृपा से, सब काम हो रहा है।
करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है॥


पतवार के बिना ही, मेरी नाव चल रही है।
हैरान है ज़माना, मंजिल भी मिल रही है।
करता नहीं मैं कुछ भी, सब काम हो रहा है॥

मेरा आपकी कृपा से, सब काम हो रहा है।
करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है॥


तुम साथ हो जो मेरे, किस चीज की कमी है।
किसी और चीज की, अब दरकार ही नहीं है।
तेरे साथ से गुलाम, अब गुलफाम हो रहा है॥

मेरा आपकी दया से, सब काम हो रहा है।
करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है॥


मैं तो नहीं हूँ काबिल, तेरा पार कैसे पाऊं।
टूटी हुयी वाणी से, गुणगान कैसे गाऊं।
तेरी प्रेरणा से ही, सब ये कमाल हो रहा हैं॥

मेरा आपकी दया से, सब काम हो रहा है।
करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है॥


मुझे हर कदम कदम पर, तूने दिया सहारा।
मेरी ज़िन्दगी बदल दी, तूने करके एक इशारा।
एहसान पे तेरा ये, एहसान हो रहा है॥

मेरा आपकी दया से, सब काम हो रहा है।
करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है॥


तूफ़ान आंधियों में, तूने है मुझको थामा।
तुम कृष्ण बन के आए, मैं जब बना सुदामा।
तेरे करम से अब ये, सरे आम हो रहा है॥

मेरा आपकी दया से, सब काम हो रहा है।
करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है॥

मेरा आपकी दया से, सब काम हो रहा है।
करते हो तुम कन्हैया, मेरा नाम हो रहा है॥


Mera Aapki Kripa Se Sab Kaam Ho Raha Hai

Shri Vinod Agarwal


Krishna Bhajan



मेरा आपकी कृपा से भजन का आध्यात्मिक महत्व

मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहा है” एक लोकप्रिय हिंदी भजन है, जो परमात्मा के प्रति आभार व्यक्त करता है और हमें कई आध्यात्मिक संदेश देता है।

कुछ आध्यात्मिक बातें जो हमें इस भजन की पंक्तियों से मिलती हैं, वो है –

ईश्वर की कृपा

मेरा आपकी कृपा से, सब काम हो रहा है।

हमें अपने जीवन में भगवान पर भरोसा करना चाहिए, सभी कार्यों में ईश्वर के प्रति आभास रखना चाहिए और उसकी कृपा के लिए हमें हमेशा आभारी रहना चाहिए।

यदि हम अपने प्रयासों में कड़ी मेहनत करते हैं और भगवान पर भरोसा करते हैं, तो अपने लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

जब हम भगवान की कृपा पर भरोसा करते हैं, तो हम अपने जीवन में उनकी उपस्थिति को महसूस करना शुरू कर देते हैं। यह उपस्थिति हमें शक्ति, आशा और प्रेरणा प्रदान करती है।


भगवान की भक्ति

भगवानकी भक्ति से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति आती है। भगवान की पूजा और उनके नाम का जाप करके हम आनंदमय और प्रसन्न जीवन जी सकते हैं।

भगवान का नाम जप करने से हमारा मन शांत होता है और हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होता है। यह एक आध्यात्मिक तंत्र है जिससे हम अपने मन को शुद्ध और प्रेरित रख सकते हैं।


भगवान के सामने नम्र बने

मैं तो नहीं हूँ काबिल, तेरा पार कैसे पाऊं, टूटी हुयी वाणी से, गुणगान कैसे गाऊं।

अपने आप को भगवान के सामने नम्र करें। भगवान सर्वशक्तिमान हैं, और हमें उनके सामने नम्र होना चाहिए।

हमें भगवान के प्रति आभारी होना चाहिए, लेकिन साथ ही साथ यह भी याद रखना चाहिए कि हम उसके योग्य नहीं है। ईश्वर के सामने अपने स्वयं की अयोग्यता और असमर्थता को स्वीकार करना एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि उसके बाद ही हम अपने जीवन में भगवान की भूमिका को समझ पाते है।


भगवान के प्रति आभार

मुझे हर कदम कदम पर, तूने दिया सहारा, मेरी ज़िन्दगी बदल दी, तूने करके एक इशारा।

यदि हम अहंकार छोड़कर अपने कार्य करें, तो भगवान हर कदम पर हमें सहारा देते है और ज़िंदगी बदल जाती है। यदि हम ईश्वर में सच्चा विश्वास करे तो भगवान हमारे जीवन में बहुत कुछ करते हैं, और हमें उनके प्रति आभारी होना चाहिए।


Summary

मेरा आपकी कृपा से भजन आध्यात्मिकता, ईश्वर में विश्वास, और ईश्वर के प्रति प्रेम के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को प्रकट करता है। यह सिखाता है कि भगवान की कृपा, उनके नाम का जाप, और भक्ति के माध्यम से हम मन की शांति, आत्मा की शुद्धि, और सुख की प्राप्ति कर सकते हैं।

भगवान हमारी सभी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं और हमें अपने जीवन में खुशी और शांति प्रदान करते हैं।


Krishna Bhajan



Nand Ke Anand Bhayo – Lyrics in Hindi


नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

हे आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

हे बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


हे आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

हे बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

हे आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ –

हे बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

हे आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

गौये चराने आये, जय हो पशुपाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

हे गौए चराने आये, जय हो पशुपाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की॥


पूनम के चाँद जैसी शोभा है बाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैयालाल की॥ – 2

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

गौये चराने आये, जय हो पशुपाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


भक्तो के आनंद-कंद जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

जय हो यशोदा लाल की, जय हो गोपाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

गौये चराने आये, जय हो पशुपाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


आनंद से बोलो सब जय हो बृज लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

जय हो बृजलाल की, पावन प्रतिपाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

गौए चराने आये, जय हो पशुपाल की।
नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

बोलो श्री कृष्ण कन्हैया लाल की जय


Nand Ke Anand Bhayo – Janmashtami Bhajan


Krishna Bhajan



Madhurashtakam – Adharam Madhuram – Lyrics in Hindi with Meanings


मधुराष्टकम – अर्थ साहित – अधरं मधुरं वदनं मधुरं

अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।

अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।


हृदयं मधुरं गमनं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
(मधुराधिपते अखिलं मधुरम्)

वचनं मधुरं चरितं मधुरं,
वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।

चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
(मधुराधिपते अखिलं मधुरम्)


वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः,
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।

नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥


गीतं मधुरं पीतं मधुरं,
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।

रूपं मधुरं तिलकं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥


करणं मधुरं तरणं मधुरं,
हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।

वमितं मधुरं शमितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥


गुंजा मधुरा माला मधुरा,
यमुना मधुरा वीची मधुरा।

सलिलं मधुरं कमलं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥


गोपी मधुरा लीला मधुरा,
युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्।

दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥


गोपा मधुरा गावो मधुरा,
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।

दलितं मधुरं फलितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
(मधुराधिपते अखिलं मधुरम्)


इति श्रीमद्वल्लभाचार्यविरचितं
मधुराष्टकं सम्पूर्णं।

अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।


Madhurashtakam – Adharam Madhuram


Krishna Bhajan



Madhurashtakam – Adharam Madhuram – Meaning

  • मधुर – pleasant, pleasing
  • मधुर – मनभावन, आकर्षक, सुंदर, सौम्य, मनोहर, सुहावना, प्रीतिकर, सुखकर

अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
(मधुराधिपते अखिलं मधुरम्)

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • अधरं मधुरं – श्री कृष्ण के होंठ मधुर हैं
  • वदनं मधुरंमुख मधुर है
  • नयनं मधुरंनेत्र (ऑंखें) मधुर हैं
  • हसितं मधुरम्मुस्कान मधुर है
  • हृदयं मधुरंहृदय मधुर है
  • गमनं मधुरंचाल भी मधुर है
  • मधुराधिपतेमधुराधिपति (मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण)
  • अखिलं मधुरम्सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री मधुराधिपति (श्री कृष्ण) का सभी कुछ मधुर है। उनके अधर (होंठ) मधुर है, मुख मधुर है, नेत्र मधुर है, हास्य (मुस्कान) मधुर है, हृदय मधुर है और चाल (गति) भी मधुर है॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं,
वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
(मधुराधिपते अखिलं मधुरम्)

अर्थ (Meaning in Hindi)

  • वचनं मधुरं – भगवान श्रीकृष्ण के वचन (बोलना) मधुर है
  • चरितं मधुरंचरित्र मधुर है
  • वसनं मधुरंवस्त्र मधुर हैं
  • वलितं मधुरम् – वलय, कंगन मधुर हैं
  • चलितं मधुरंचलना मधुर है
  • भ्रमितं मधुरंभ्रमण (घूमना) मधुर है
  • मधुराधिपते – मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री मधुराधिपति (भगवन श्री कृष्ण) का सभी कुछ मधुर है। उनका बोलना (वचन) मधुर है, चरित्र मधुर है, वस्त्र मधुर है, वलय मधुर है, चाल मधुर है और घूमना (भ्रमण) भी अति मधुर है।

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः,
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • वेणुर्मधुरो – श्री कृष्ण की वेणु मधुर है, बांसुरी मधुर है
  • रेणुर्मधुरःचरणरज मधुर है, उनको चढ़ाये हुए फूल मधुर हैं
  • पाणिर्मधुरःहाथ (करकमल) मधुर हैं
  • पादौ मधुरौचरण मधुर हैं
  • नृत्यं मधुरंनृत्य मधुर है
  • सख्यं मधुरंमित्रता मधुर है
  • मधुराधिपते – हे श्रीकृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

भगवान् कृष्ण की वेणु मधुर है, बांसुरी मधुर है चरणरज मधुर है, करकमल (हाथ) मधुर है, चरण मधुर है, नृत्य मधुर है, और सख्या (मित्रता) भी अति मधुर है। श्री मधुराधिपति कृष्ण का सभी कुछ मधुर है॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं,
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • गीतं मधुरं – श्री कृष्ण के गीत मधुर हैं
  • पीतं मधुरंपीताम्बर मधुर है
  • भुक्तं मधुरंभोजन (खाना) मधुर है
  • सुप्तं मधुरम्शयन (सोना) मधुर है
  • रूपं मधुरंरूप मधुर है
  • तिलकं मधुरंतिलक (टीका) मधुर है
  • मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री मधुराधिपति कृष्ण का सभी कुछ मधुर है। उनके गीत (गान) मधुर है, पान (पीताम्बर) मधुर है, भोजन मधुर है, शयन मधुर है। उनका रूप मधुर है, और तिलक (टिका) भी अति मधुर है।

करणं मधुरं तरणं मधुरं,
हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • करणं मधुरंकार्य मधुर हैं
  • तरणं मधुरं – तारना मधुर है (दुखो से तारना, उद्धार करना)
  • हरणं मधुरं – हरण मधुर है (दुःख हरणा)
  • रमणं मधुरम्रमण मधुर है
  • वमितं मधुरंउद्धार मधुर हैं
  • शमितं मधुरंशांत रहना मधुर है
  • मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री कृष्ण, श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है। उनक कार्य मधुर है, उनका तारना, दुखो से उबरना मधुर है। दुखो का हरण मधुर है। उनका रमण मधुर है, उद्धार मधुर है और शांति भी अति मधुर है।

गुंजा मधुरा माला मधुरा,
यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • गुंजा मधुरागर्दन मधुर है
  • माला मधुरामाला भी मधुर है
  • यमुना मधुरायमुना मधुर है
  • वीची मधुरायमुना की लहरें मधुर हैं
  • सलिलं मधुरंयमुना का पानी मधुर है
  • कमलं मधुरंयमुना के कमल मधुर हैं
  • मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री कृष्ण की गुंजा मधुर है, माला भी मधुर है। यमुना मधुर है, उसकी तरंगे भी मधुर है, उसका जल मधुर है और कमल भी अति मधुर है। श्री मधुराधिपति कृष्ण का सभी कुछ मधुर है॥

गोपी मधुरा लीला मधुरा,
युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • गोपी मधुरागोपियाँ मधुर हैं
  • लीला मधुराकृष्ण की लीला मधुर है
  • युक्तं मधुरं – उनक संयोग मधुर है
  • मुक्तं मधुरम्वियोग मधुर है
  • दृष्टं मधुरंनिरिक्षण (देखना) मधुर है
  • शिष्टं मधुरंशिष्टाचार (शिष्टता) भी मधुर है
  • मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है। उनकी गोपिया मधुर है, उनकी लीला मधुर है, उनक सयोग मधुर है, वियोग मधुर है, निरिक्षण मधुर (देखना) है और शिष्टाचार भी मधुर है।

गोपा मधुरा गावो मधुरा,
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • गोपा मधुरागोप मधुर हैं
  • गावो मधुरागायें मधुर हैं
  • यष्टिर्मधुरालकुटी (छड़ी) मधुर है
  • सृष्टिर्मधुरासृष्टि (रचना) मधुर है
  • दलितं मधुरंदलन (विनाश करना) मधुर है
  • फलितं मधुरंफल देना (वर देना) मधुर है
  • मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

Krishna Bhajan



कृष्ण भक्ति

जिनका मुख मधुर मुस्कानसे विकसित है, रत्नभूषित हाथ में सुन्दर मुरली है, गलेमें परम मनोहर मणियोंका हार हैँ, कमलके समान मुख है, जो दाता है, नवघन सदृश नीलवर्ण हैं और सुन्दर गोपकुमारोंसे घिरे हुए है, उन परमपुरुष आदिनारायण श्रीकृष्णको नमस्कार करता हूँ।

जो सुवर्णमय कमलकी माला धारण करते है, केशी और कंस आदि के काल है रणभूमिमें अति विकराल है और समस्त लोकोंके प्रतिपालक है, वे बालगोपाल मेरे ह्रदय में बसे।

सज्जनोके हितकारी, परमानंदसमूहकी वर्षा करनेवाले मेघ, लक्ष्मीनिवास नन्दनन्दन श्रीगोविन्दकी मैं वन्दना करता हूँ।

जिनकी कृपा गूँगेको को वक्ता बना देती है और अपाहिज को भी पर्वत-लाँघनेमे समर्थ कर देती है, उन परमानन्द स्वरुप माधवकी मै वन्दना करता हूँ।

कंस और चाणूरका वध करनेवाले, देवकीके आनंदवर्धन, वसुदेवनन्दन, जगद्गुरु श्रीकृष्णचन्द्रकी में वन्दना करता हूँ।

Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari – Lyrics in Hindi with Meanings


मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी

मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी भजन के इस पेज में मैं आरती तेरी गाउँ के हिंदी लिरिक्स दिए गए है।

बाद में भजन का आध्यात्मिक महत्व दिया गया है, और भजन से हमें कौन कौन सी आध्यात्मिक बातें सिखने को मिलती है यह बताया गया है।


मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।
मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥


है तेरी छबि अनोखी, ऐसी ना दूजी देखी।
तुझ सा ना सुन्दर कोई, ओ मोर मुकुटधारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


जो आए शरण तिहारी, विपदा मिट जाए सारी।
हम सब पर कृपा रखना, ओ जगत के पालनहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


राधा संग प्रीत लगाई, और प्रीत की रीत चलायी।
तुम राधा रानी के प्रेमी, जय राधे रास बिहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


माखन की मटकी फोड़ी, गोपीन संग अखियाँ जोड़ी।
ओ नटखट रसिया तुझपे, जाऊं मैं तो बलिहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


जब जब तू बंसी बजाये, सब अपनी सुध खो जाएँ।
तू सबका सब तेरे प्रेमी, ओ कृष्ण प्रेम अवतारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।
मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥


Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari


Krishna Bhajan



मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी भजन का आध्यात्मिक महत्व

मैं आरती तेरी गाउँ भजन भगवान श्रीकृष्ण की आरती है, जिसमें उनकी सुंदरता, लीलाएं, प्रेम, कृपा और महिमा का गुणगान किया गया हैं।

इस भजन के माध्यम से हमें भक्ति, समर्पण, ईश्वर की शरण, और उनकी कृपा जैसी आध्यात्मिक बातों का संदेश मिलता है, जो हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकता हैं।

इस भजन में भगवान कृष्ण को अलग-अलग नामों से भी संबोधित किया गया है, जो उनके स्वरूप और स्वभाव का वर्णन करते हैं।

इस भजन की पंक्तियों से हमें कई आध्यात्मिक सन्देश मिलते हैं। तो आइए, इस भजन का आध्यात्मिक अर्थ समझकर ईश्वर की आराधना और भक्ति में लीन हो जाये।


हम भगवान की आरती क्यों करते है?

मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।

जब हम कृष्ण की आरती करते है और उनके सामने सिर झुकाते है, तो हम अपने आराध्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और अपना समर्पण व्यक्त करते है।

यह हमारे मन में भगवान के प्रति गहरी श्रद्धा और विश्वास को जगाता है।

  • केशव कुंज बिहारी – यह नाम भगवान कृष्ण को संदर्भित करता है, जो उनके विशेष भव्य रूप और वृंदावन में विहार करने की लीलाएं बयां करता हैं।

मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥

हे ईश्वर, मैं हर पल आपके सामने अपना सिर झुकाता हूं।

जब हम नियमित रूप से भगवान कृष्ण के सामने झुकाकर उनसे प्रार्थना करते है तो हमारे मन में उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना प्रबल होती है। इससे क्या लाभ होता है, आगे की पंक्तियों में दिया गया है।

  • मोहन कृष्ण मुरारी – भगवान कृष्ण का प्यारा नाम है, जो उनके मनोरम और मनमोहक स्वभाव को दर्शाता है।

हम अपनी विपदाओं को कैसे दूर करें?

जो आए शरण तिहारी, विपदा मिट जाए सारी।

कृष्ण वह हैं जो कठिनाइयों को दूर करते हैं और सुरक्षा प्रदान करते हैं। जो जो भगवान् की शरण जाता है, भगवान उन सब पर कृपा करते हैं।

इसलिए जब हम भगवान् की शरण में जाते हैं,
उनके सामने अपने आप को समर्पित करते है,
तो हमारी सारी परेशानियां और प्रतिकूलताएं दूर हो जाती हैं,
सारी विपदाएँ मिट जाती हैं।

ईश्वर की कृपा से हमें सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है, और हम जीवन में सुख और आनंद का अनुभव करते हैं।

यह पंक्ति हमारे मन में भगवान के प्रति पूर्ण विश्वास और भरोसे को दर्शाती है।

हम सब पर कृपा रखना, ओ जगत के पालनहारी॥

इसलिए हमें ईश्वर से अपने और सभी पर कृपा करने की प्रार्थना करनी चाहिए।

हे ईश्वर, हम सभी पर अपना आशीर्वाद और कृपा बनाए रखना।

  • जगत के पालन-हारी – कृष्ण को संपूर्ण विश्व के पालनकर्ता और रक्षक के रूप में संदर्भित करता है।

इस प्रकार भजन की पंक्तियों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने आराध्य भगवान के प्रति भक्ति और समर्पण रखना चाहिए। हमें ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और भरोसा करना चाहिए। ईश्वर की कृपा से हम अपनी सभी विपदाओं से मुक्त हो सकते हैं।

यह भजन हमें यह भी बताता है कि हमें अपने जीवन में ईश्वर के सामने आत्म-समर्पण करना चाहिए, अपने आप को ईश्वर के हाथों में सौंप देना चाहिए। ईश्वर की कृपा से हम अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।


Krishna Bhajan



मैं आरती तेरी गाउँ भजन की पंक्तियों का आध्यात्मिक अर्थ

है तेरी छबि अनोखी, ऐसी ना दूजी देखी।

“है तेरी छवि अनोखी” अर्थात “तुम्हारा रूप निराला है।” भक्त ने भगवान कृष्ण के दिव्य रूप को किसी अन्य के विपरीत, अतुलनीय रूप से विशेष बताया है। उनके जैसा खूबसूरत कोई नहीं है। भक्त, भगवान कृष्ण की विशिष्ट और अद्वितीय सुंदरता की प्रशंसा करते हुए कहता है कि उनके जैसा कोई और नहीं है।

तुझ सा ना सुन्दर कोई, ओ मोर मुकुटधारी॥

“तुझ सा ना सुंदर कोई” बताता है “तुम्हारे जैसा सुंदर कोई नहीं है।” “ओ मोर मुकुट-धारी” भगवान कृष्ण को संदर्भित करता है, जो अपने सिर पर मोर पंख (मोर मुकुट) पहनते हैं। यह श्लोक भगवान कृष्ण की अद्वितीय सुंदरता का गुणगान करता है।

राधा संग प्रीत लगाई, और प्रीत की रीत चलायी।

यह श्लोक राधा के साथ गहरा और प्रेमपूर्ण रिश्ता (प्रीत) स्थापित करने के लिए भगवान कृष्ण की प्रशंसा करता है, जो उनके बीच दिव्य बंधन का प्रतीक है।

तुम राधा रानी के प्रेमी, जय राधे रास बिहारी॥

“तुम राधा रानी के प्रेमी” का अर्थ है “तुम राधा रानी के प्रेमी हो।” यह श्लोक राधा के साथ कृष्ण के विशेष और अंतरंग बंधन को स्वीकार करता है। “जय राधे रास बिहारी” एक उत्सवपूर्ण उद्घोष है, जिसमें कृष्ण को राधा और गोपियों के साथ रास के दिव्य नृत्य में संलग्न बताया जाता है।

माखन की मटकी फोड़ी, गोपीन संग अखियाँ जोड़ी।

इस श्लोक में भगवान कृष्ण द्वारा मक्खन की मटकी (माखन की मटकी) को तोड़ने और गोपियों के साथ रास का वर्णन किया गया है, जो उनके साथ उनके प्रेमपूर्ण और आनंदमय संबंधों को दर्शाता है।

ओ नटखट रसिया तुझपे, जाऊं मैं तो बलिहारी॥

“ओ नटखट रसिया तुझपे” कृष्ण को शरारती और आकर्षक के रूप में संदर्भित करता है। भक्त अपनी गहरी भक्ति व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वे ऐसे चंचल और मनोरम कृष्ण के लिए खुद को बलिहारी कर देंगे।

जब जब तू बंसी बजाये, सब अपनी सुध खो जाएँ।

“जब जब तू बंसी बजाएं” का अर्थ है “जब भी आप बांसुरी बजाएं।” यह कविता कृष्ण की बांसुरी वादन के मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्रभाव पर प्रकाश डालती है, जिससे सभी प्राणी उनके दिव्य संगीत में खो जाते हैं।

तू सबका सब तेरे प्रेमी, ओ कृष्ण प्रेम अवतारी॥

“तू सबका सब तेरे प्रेमी” बताता है “तुम सबके प्रेमी हो; हर कोई तुम्हारा है।” “हे कृष्ण प्रेम अवतारी” कृष्ण को दिव्य प्रेम के अवतार के रूप में संदर्भित करता है। यह श्लोक कृष्ण के असीम और सार्वभौमिक प्रेम, सभी प्राणियों को गले लगाने पर जोर देता है।

संक्षेप में, भजन के बोल भगवान कृष्ण की अद्वितीय सुंदरता और प्रेमपूर्ण प्रकृति व्यक्त करते हैं। भक्त कृष्ण की सुरक्षा चाहता है, राधा के साथ अपने दिव्य प्रेम का जश्न मनाता है, और उनके प्रति पूर्ण समर्पण करने की इच्छा व्यक्त करता है। इस भावपूर्ण भजन में कृष्ण की बांसुरी की मनमोहक धुन और उनके सार्वभौमिक प्रेम का जश्न मनाया जाता है।

यह भजन भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और प्रशंसा व्यक्त करता है। गायक कृष्ण के दिव्य रूप की विशिष्टता और सुंदरता की प्रशंसा करता है, उन्हें सभी परेशानियों से सुरक्षा और राहत के स्रोत के रूप में स्वीकार करता है। वे उनके सामने झुककर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं और अपने और सभी जीवित प्राणियों के लिए उनकी उदार कृपा और आशीर्वाद मांगते हैं।


Shanta Karam Bhujaga Shayanam – Hindi + Meaning


Krishna Bhajan

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं – अर्थ सहित


शान्ताकारं भुजग-शयनं
पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन-सदृशं
मेघवर्ण शुभाङ्गम्।


लक्ष्मीकान्तं कमल-नयनं
योगिभिर्ध्यानगम्यम्
(योगिभिर – ध्यान – गम्यम्)

वन्दे विष्णुं भवभय-हरं
सर्वलोकैक-नाथम्॥

Shanta karam Bhujaga shayanam – Meaning in Hindi

शान्ताकारं भुजग-शयनं
पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं
मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
  • शान्ताकारं – जिनकी आकृति अतिशय शांत है, वह जो धीर क्षीर गंभीर हैं,
  • भुजग-शयनं – जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं (विराजमान हैं),
  • पद्मनाभं – जिनकी नाभि में कमल है,
  • सुरेशं जो ‍देवताओं के भी ईश्वर और
  • विश्वाधारं जो संपूर्ण जगत के आधार हैं, संपूर्ण विश्व जिनकी रचना है,
  • गगन-सदृशं जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं,
  • मेघवर्ण नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है,
  • शुभाङ्गम् अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो अति मनभावन एवं सुंदर है

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं
योगिभिर्ध्यानगम्यम्
(योगिभिर – ध्यान – गम्यम्)वन्दे विष्णुं भवभयहरं
सर्वलोकैकनाथम्॥
  • लक्ष्मीकान्तं ऐसे लक्ष्मीपति,
  • कमल-नयनं कमलनेत्र (जिनके नयन कमल के समान सुंदर हैं)
  • योगिभिर्ध्यानगम्यम् – (योगिभिर – ध्यान – गम्यम्) – जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, (योगी जिनको प्राप्त करने के लिया हमेशा ध्यानमग्न रहते हैं)
  • वन्दे विष्णुं – भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ (ऐसे परमब्रम्ह श्री विष्णु को मेरा नमन है)
  • भवभय-हरं जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, जो सभी भय को नाश करने वाले हैं
  • सर्वलोकैक-नाथम् – जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, सभी चराचर जगत के ईश्वर हैं

Krishna Bhajans

Shanta Karam Bhujaga Shayanam

Anuradha Paudwal

Shantakaram Bhujaga Shayanam – Prayer to Lord Vishnu

Shanta-karam Bhujaga-shayanam,
Padmanabham Suresham.
Vishva-dharam Gagana-sadrusham,
Megha-varnam Shubhangam.


Lakshmi-kantam Kamala nayanam,
Yogibhir Dhyana Gamyam.
Vande Vishnum Bhava Bhaya Haram,
Sarva Lokaikanatham.

Sanwali Surat Pe Mohan Dil Diwana – Lyrics in Hindi with Meanings


सांवली सूरत पे मोहन दिल दीवाना हो गया

सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया।
दिल दीवाना हो गया, मेरा दिल दीवाना हो गया।
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया।


एक तो तेरे नैन तिरछे, दूसरा काजल लगा।
तीसरा नज़रें मिलाना, दिल दीवाना हो गया॥
सांवली सूरत पे मोहन….


एक तो तेरे होंठ पतले, दूसरा लाली लगी।
तीसरा तेरा मुस्कुराना, दिल दीवाना हो गया॥
सांवली सूरत पे मोहन….


एक तो तेरे हाथ कोमल, दूसरा मेहँदी लगी।
तीसरा मुरली बजाना, दिल दीवाना हो गया॥
सांवली सूरत पे मोहन….


एक तो तेरे पाँव नाज़ुक, दूसरा पायल बंधी।
तीसरा घुंघरू बजाना, दिल दीवाना हो गया॥
सांवली सूरत पे मोहन….


एक तो तेरे भोग छप्पन, दूसरा माखन धरा।
तीसरा खिचडे का खाना, दिल दीवाना हो गया॥
सांवली सूरत पे मोहन….


एक तो तेरे साथ राधा, दूसरा रुक्मिणी खड़ी।
तीसरा मीरा का आना, दिल दीवाना हो गया॥
सांवली सूरत पे मोहन….


एक तो तुम देवता हो, दूसरा प्रियतम मेरे।
तीसरा सपनों में आना, दिल दीवाना हो गया॥
सांवली सूरत पे मोहन….


दिल दीवाना हो गया, मेरा दिल दीवाना हो गया।
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया।


Sanwali Surat Pe Mohan


Krishna Bhajan



सांवली सूरत पे मोहन भजन का आध्यात्मिक अर्थ

सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया भजन के बोल भगवान कृष्ण के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति को व्यक्त करते हैं। यह भजन भगवान कृष्ण के मंत्रमुग्ध और मनोरम गुणों का वर्णन करता हैं, जिनसे भक्त का हृदय पूरी तरह मोहित हो जाता है।

सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया।
दिल दीवाना हो गया, मेरा दिल दीवाना हो गया।

आपके सांवले आकर्षक रूप को देखकर, हे मोहन (भगवान कृष्ण का एक नाम), मेरा दिल मंत्रमुग्ध हो गया। यह पंक्ति भगवान कृष्ण के मनमोहक स्वरूप को दर्शाती है। यह दर्शाता है कि भक्त का हृदय कृष्ण के स्वरूप से पूरी तरह मोहित हो गया है। यह भगवान कृष्णा के मनोरम रूप के प्रति भक्त के विस्मय और आकर्षण को व्यक्त करता है।

एक तो तेरे नैन तिरछे, दूसरा काजल लगा।
तीसरा नज़रें मिलाना, दिल दीवाना हो गया॥

यह पंक्ति कृष्ण की आकर्षक तिरछी नज़रों को उजागर करती है, जो उनके मनमोहक स्वरूप को बढ़ाती है। इसमें भक्त और भगवान कृष्ण के बीच नज़रों को मिलाने का भी उल्लेख है, जो भक्त को और मंत्रमुग्ध कर देता है।

एक तो तेरे होंठ पतले, दूसरा लाली लगी।
तीसरा तेरा मुस्कुराना, दिल दीवाना हो गया॥

यह पंक्ति कृष्ण के कोमल होठों पर लाली और उसके ऊपर उनकी मनमोहक मुस्कान का वर्णन करती है, जो उनके मनमोहक स्वरूप में चार चांद लगा देती है। ये पंक्तियाँ कान्हा की विशेषताओं के क्रम को दर्शाती हैं जो भक्त को मनोरम लगती हैं।

एक तो तेरे हाथ कोमल, दूसरा मेहँदी लगी।
तीसरा मुरली बजाना, दिल दीवाना हो गया॥

इस पंक्ति में कृष्ण के कोमल और नाज़ुक हाथों का वर्णन है और उसपर सजी मेहंदी, जो उनके अलंकरण में चार चांद लगा देती है। यह पंक्ति उनके नाजुक हाथों से बांसुरी बजाने का भी उल्लेख करती है, जो उनकी सुरुचिपूर्ण और कलात्मक विशेषताओं को व्यक्त करती है।

एक तो तेरे पाँव नाज़ुक, दूसरा पायल बंधी।
तीसरा घुंघरू बजाना, दिल दीवाना हो गया॥

सबसे पहले, आपके नाजुक पैर। फिर पायलों से श्रृंगार किया। तीसरा, घुंघरूओं की झंकार। यह पंक्ति कृष्ण के कोमल और सुंदर पैरों का वर्णन करती है, जिसमे पायल बंधी है, जो उनकी शोभा बढ़ाती है। इस पंक्ति में पायल के घुंघरू की ध्वनि का भी उल्लेख है। ये पंक्तियाँ देवता की सुन्दरता और मधुर विशेषताओं का वर्णन करती हैं।

एक तो तेरे भोग छप्पन, दूसरा माखन धरा।
तीसरा खिचडे का खाना, दिल दीवाना हो गया॥

सबसे पहले, आपका छप्पन व्यंजनों का प्रसाद, फिर, मक्खन के प्रति आपका प्रेम, और तीसरा, खिचड़ी के पकवान का स्वाद लेना।

यह पंक्ति भक्ति के प्रतीक के रूप में भगवान कृष्ण को अर्पित किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को संदर्भित करती है। यह पंक्ति भगवान कृष्ण के मक्खन के प्रति प्रेम को भी उजागर करती है, यह विशेषता अक्सर उनके साथ जुड़ी हुई है। तीसरा खीचड़े का खाना साधारण भोजन के प्रति भी भगवान कृष्ण की सराहना को दर्शाता है। ये पंक्तियाँ भगवान कृष्ण के विभिन्न प्रकार के भोजन के प्रति प्रेम को दर्शाती हैं, जो उनके भक्तों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध का प्रतीक हैं।

एक तो तेरे साथ राधा, दूसरा रुक्मिणी खड़ी।
तीसरा मीरा का आना, दिल दीवाना हो गया॥

सबसे पहले तो राधा आपके साथ है. फिर, रुक्मिणी है। तीसरा, मीरा की उपस्थिति। यह पंक्ति भगवान कृष्ण और राधा, जो कृष्ण की कहानियों में एक केंद्रीय पात्र हैं, के बीच साहचर्य पर प्रकाश डालती है। इसमें भगवान कृष्ण की एक पत्नी रुक्मिणी का भी उल्लेख है। और फिर यह भगवान कृष्ण की समर्पित भक्त मीरा को संदर्भित करती है। ये पंक्तियाँ भगवान कृष्ण के जीवन में विभिन्न प्रिय विभूतियों की उपस्थिति का वर्णन करती हैं।

एक तो तुम देवता हो, दूसरा प्रियतम मेरे।
तीसरा सपनों में आना, दिल दीवाना हो गया॥

पहले तो तुम देवता हो। फिर, तुम मेरे प्रिय हो. तीसरा, स्वप्न में कृष्ण का आना।

इस पंक्ति में भगवान कृष्ण के दिव्य स्वरूप और एक भक्त के सपने में उनके प्रकट होने का वर्णन है। यह भक्त और भगवान कृष्ण के बीच एक व्यक्तिगत और अंतरंग संबंध को व्यक्त करता है। ये पंक्तियाँ भगवान कृष्ण के दिव्य देवता और भक्त के प्रिय स्वरूप दोनों की दोहरी प्रकृति पर जोर देती हैं।

संक्षेप में, ये भजन गीत भगवान कृष्ण के प्रति भक्त के गहरे प्रेम को व्यक्त करता हैं, भगवान के प्रति आकर्षण और भक्ति की भावना को भी व्यक्त करता हैं, जो अक्सर भगवान कृष्ण से जुड़े होते हैं।

भजन की पंक्तियाँ कृष्ण के मनोरम गुणों, साथियों और दिव्य गुणों पर प्रकाश डालता हैं और भक्त के हृदय पर उनके प्रभाव को व्यक्त करने के लिए विभिन्न काव्यात्मक वर्णनों का उपयोग करती हैं।


Krishna Bhajan



Hey Gopal Krishna Karu Aarti Teri – Lyrics in Hindi with Meanings


हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी

हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी लिरिक्स के इस पेज में पहले भजन के हिंदी लिरिक्स दिए गए है।

बाद में इस भजन का आध्यात्मिक महत्व दिया गया है और इसकी पंक्तियों से हमें कौन कौन सी बातें सिखने को मिलती है यह बताया गया है, जो हमें भक्ति मार्ग पर चलने में मदद कर सकती है।


Hey Gopal Krishna Karu Aarti Teri Lyrics

हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी।
हे प्रिया पति, मैं करूँ आरती तेरी॥
तुझपे कान्हा, बलि बलि जाऊं।
सांझ सवेरे, तेरे गुण गाउँ॥

प्रेम में रंगी, मैं रंगी भक्ति में तेरी।
हे गोपाल कृष्णा, करूँ आरती तेरी॥


ये माटी का (मेरा) तन है तेरा, मन और प्राण भी तेरे।
मैं एक गोपी, तुम हो कन्हैया, तुम हो भगवन मेरे।
कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण रटे आत्मा मेरी,
हे गोपाल कृष्णा करूँ आरती तेरी॥


कान्हा तेरा रूप अनुपम, मन को हरता जाये।
मन ये चाहे हरपल अंखियां, तेरा दर्शन पाये।
दरस तेरा, प्रेम तेरा, आस है मेरी,
हे गोपाल कृष्ण करूँ आरती तेरी॥


तुझपे ओ कान्हा बलि बलि जाऊं,
सांझ सवेरे तेरे गुण गाउँ।
प्रेम में रंगी, मैं रंगी भक्ति में तेरी,
हे गोपाल कृष्ण करूँ आरती तेरी॥

हे प्रिया पति, मैं करूँ आरती तेरी॥
हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी।


Hey Gopal Krishna Karu Aarti Teri

Devoleena Bhattacharjee


Krishna Bhajan



हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी भजन का आध्यात्मिक महत्व

हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी भजन से हमें कई आध्यात्मिक और जीवन संबंधी बातें सिखने को मिलती हैं। इन सन्देशों को अपने जीवन में आत्मसात करके हम एक सुखी और सफल जीवन जी सकते हैं।

भजन की पंक्तियाँ हमें यह बताती है कि – हमें सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए और ईश्वर को अपना सर्वस्व मानना चाहिए। इस भजन से हमें जो आध्यात्मिक सन्देश मिलते हैं, उनमे से कुछ प्रमुख हैं:


भक्ति ही जीवन का सार है

हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी।
सांझ सवेरे, तेरे गुण गाउँ॥

इस पंक्ति में भक्त कृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति का इजहार करता है।

जब हम ईश्वर को अपना सर्वस्व मानते है, उनकी आरती करते है, और उनके गुण गाते है, तो हमारे मन में भक्ति, और ईश्वर के चरणों में समर्पण की भावना, प्रबल होती जाती है।

और यह भक्ति ही है जो हमें मोक्ष की ओर ले जाती है।


ईश्वर सर्वव्यापी है

ये माटी का (मेरा) तन है तेरा, मन और प्राण भी तेरे।

ईश्वर सर्वव्यापी है और वह हमारे प्रत्येक कण में विद्यमान है। हमारा तन, मन और प्राण सभी कुछ ईश्वर के ही है।

यह हमें भ्रम से मुक्त होकर, आध्यात्मिक जीवन में अग्रसर होने की दिशा में प्रेरित करता है।

इसलिए भक्त कृष्ण को अपना सब कुछ अर्पित कर देते हैं। वे कहते हैं कि उनका शरीर, मन और प्राण सभी कृष्ण के हैं। वे कृष्ण को अपना भगवान मानते हैं और उनके नाम का जाप करते हैं।


प्रेम ही जीवन का आधार है

कान्हा तेरा रूप अनुपम, मन को हरता जाये।
मन ये चाहे हरपल अंखियां, तेरा दर्शन पाये।

भक्त कृष्ण के रूप और प्रेम का वर्णन करता है और कहता है की कृष्ण का रूप अनुपम, अद्वितीय है जो मन को हर लेता है, मोह लेता है। इसलिए वह कृष्ण के दर्शन के लिए तरसता है।

यह भक्ति हमें यह शिक्षा देती है कि ईश्वर प्रेम ही जीवन का आधार है। ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति से मनुष्य को शांति और आनंद मिलता है। ईश्वर की अनुपमता का अनुभव करने के लिए भक्त को सच्चे मन से भक्ति करनी चाहिए।


ईश्वर के दर्शन की इच्छा

दरस तेरा, प्रेम तेरा, आस है मेरी

भक्त कृष्ण के दर्शन और प्रेम की आस लगाए रहते हैं। वे जानते हैं कि कृष्ण ही उनके दुखों को दूर कर सकते हैं। भक्त की यह आशा ही उन्हें भक्ति मार्ग में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है।

Summary

इस प्रकार भजन की पंक्तियों को पढ़कर हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी कृष्ण के प्रति ऐसी ही भक्ति करनी चाहिए।

हमें कृष्ण को अपना सर्वस्व मानना चाहिए और उनकी भक्ति में डूब जाना चाहिए।

क्योंकि भक्ति हमें जीवन में सही मार्गदर्शन देती है, भक्ति हमें मोक्ष की प्राप्ति कराती है और हमें प्रेम, शांति और आनंद प्रदान करती है।


Krishna Bhajan



हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी भजन की पंक्तियों का आध्यात्मिक अर्थ

ये भजन गीत भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति की हार्दिक अभिव्यक्ति हैं।

हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी।
हे प्रिया पति, मैं करूँ आरती तेरी॥

“हे गोपाल कृष्ण, मैं अपनी पूरी भक्ति के साथ आपकी आरती करता हूं। हे प्यारे पति (प्रिया पति), मैं अपनी पूजा आपको अर्पित करता हूं।”

इन पंक्तियों में, भक्त भगवान कृष्ण को “गोपाल कृष्ण” कहकर संबोधित करते हैं, जो उनके लिए प्यारे नाम हैं। वे आरती करने का अपना इरादा व्यक्त करते हैं, जो भगवान् की प्रार्थना, भजन और पूजा करने का एक श्रद्धापूर्ण तरीका है। भक्त कृष्ण को अपना प्रिय मानते हैं और उनकी पूजा करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।

तुझपे कान्हा, बलि बलि जाऊं।
सांझ सवेरे, तेरे गुण गाउँ॥

“मैं खुद को तुम्हें अर्पित करता हूं, कान्हा (भगवान कृष्ण का दूसरा नाम)। दिन-रात, मैं तुम्हारी स्तुति गाता हूं।”

भक्त भगवान कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण और भक्ति व्यक्त करते हैं, खुद को पूरी तरह से उन्हें समर्पित करते हैं। वाक्यांश “बलि बलि जाऊं” पूर्ण समर्पण, भगवान को सब कुछ देने का प्रतीक है। भक्त सुबह और शाम दोनों समय लगातार कृष्ण के गुणों और महिमाओं की स्तुति करने और गाने की प्रतिज्ञा करता है।

प्रेम में रंगी, मैं रंगी भक्ति में तेरी।
हे गोपाल कृष्णा, करूँ आरती तेरी॥

“प्रेम से रंगा हुआ, मैं आपकी भक्ति में डूबा हुआ हूं। हे गोपाल कृष्ण, मैं आपको अपनी पूजा अर्पित करता हूं।”

भक्त कहते हैं कि उनका हृदय कृष्ण के प्रति प्रेम से भर गया है, और वे पूरी तरह से उनकी भक्ति में डूबे हुए हैं। “रंग” शब्द का तात्पर्य रंगे जाने से है, जो इस बात का प्रतीक है कि कैसे उनका पूरा अस्तित्व भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति से संतृप्त है। भक्त अपनी आध्यात्मिक यात्रा में पूजा के इस कार्य के महत्व को स्वीकार करते हुए, आरती करने के अपने इरादे को दोहराते हैं।

ये माटी का (मेरा) तन है तेरा, मन और प्राण भी तेरे।

“मेरा यह शरीर (मिट्टी से बना) आपका है, साथ ही मेरा मन और जीवन (प्राण) भी आपका है।”

भक्त स्वीकार करते हैं कि उनका भौतिक शरीर, सांसारिक पदार्थ (माटी) से बना है, अंततः भगवान कृष्ण का है। वे भौतिक पहलू से परे जाते हैं और अपना मन और जीवन शक्ति (प्राण) भी उन्हें अर्पित करते हैं, जो उनके संपूर्ण अस्तित्व के पूर्ण समर्पण का संकेत देता है।

मैं एक गोपी, तुम हो कन्हैया, तुम हो भगवन मेरे।

“मैं एक गोपी हूं, और आप मेरे प्यारे कन्हैया (भगवान कृष्ण का दूसरा नाम), मेरे दिव्य भगवान हैं।”

भक्त स्वयं को गोपी के रूप में पहचानते हैं, जो भगवान कृष्ण के गहरे भक्त का प्रतीक है। वे उन्हें प्यार से “कन्हैया” कहकर बुलाते हैं, जो कृष्ण के नामों में से एक है और अक्सर उनके चंचल और आकर्षक स्वभाव से जुड़ा होता है। वे कृष्ण को अपने दिव्य भगवान के रूप में स्वीकार करते हैं, उनके प्रति अपनी गहन भक्ति और प्रेम पर जोर देते हैं।

कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण रटे आत्मा मेरी,

“कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, तुम मेरी आत्मा में निवास करो।”

इन पंक्तियों में, भक्त बार-बार कृष्ण के नाम का जाप करते हैं, जो उनके साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाता है। उनका मानना है कि भगवान कृष्ण उनकी आत्मा में निवास करते हैं, जो एक अंतरंग आध्यात्मिक संबंध और परमात्मा के साथ एकता की भावना व्यक्त करते हैं।

कान्हा तेरा रूप अनुपम, मन को हरता जाये।

“कान्हा, आपका रूप अद्वितीय है, यह मेरा मन चुरा लेता है।”

भक्त भगवान कृष्ण के दिव्य रूप की स्तुति करते हुए उसे अतुलनीय बताते हैं। वे कृष्ण की दिव्य सुंदरता से मोहित और मंत्रमुग्ध महसूस करते हैं, और उनका दिल उनके रूप पर विचार करने में पूरी तरह से लीन हो जाता है।

मन ये चाहे हरपल अंखियां, तेरा दर्शन पाये।

“मेरा दिल हर पल आपकी दिव्य उपस्थिति को देखना चाहता है, और मेरी आँखें आपको देखने के लिए तरसती हैं।”

भक्त लगातार अपने साथ कृष्ण की दिव्य उपस्थिति पाने की अपनी अंतरतम इच्छा व्यक्त करते हैं। उनका हृदय कृष्ण के आध्यात्मिक दर्शन के लिए तरसता है, और वे उनके दर्शन (पवित्र झलक) पाने के लिए तरसते हैं।

दरस तेरा, प्रेम तेरा, आस है मेरी,

“आपका दिव्य दर्शन, आपका प्रेम, मेरी आकांक्षाएं हैं।”

भक्त स्वीकार करते हैं कि उनकी अंतिम आकांक्षाएँ भगवान कृष्ण के दर्शन और उनके दिव्य प्रेम का अनुभव करने में निहित हैं। वे उसकी कृपा और स्नेह में डूबे रहना चाहते हैं, यह पहचानते हुए कि ऐसा संबंध उनकी आध्यात्मिक इच्छाओं का शिखर है।

संक्षेप में, ये भजन गीत भक्त के भगवान कृष्ण के प्रति गहरे प्रेम, भक्ति और समर्पण को दर्शाते हैं। वे कृष्ण को सर्वोच्च भगवान के रूप में पहचानते हैं और उनके साथ घनिष्ठ संबंध महसूस करते हैं।

भक्तों की हार्दिक अभिव्यक्ति कृष्ण के साथ जुड़ने, उनके दिव्य रूप को देखने और उनके बिना शर्त प्यार का अनुभव करने की उनकी लालसा को दर्शाती है। वे भक्ति और समर्पण के रूप में आरती करने की इच्छा व्यक्त करते हैं, कृष्ण के दिव्य गुणों की प्रशंसा करते हैं और उनके प्रति अपने प्रेम की घोषणा करते हैं। गीत आध्यात्मिक संबंध और भक्त के प्रिय देवता, भगवान कृष्ण के साथ जुड़ने की लालसा को दर्शाते हैं।