Aarti Kunj Bihari Ki – Lyrics in Hindi with Meanings


आरती कुंज बिहारी की – श्री कृष्ण आरती

भगवान् कृष्ण की आरती – आरती कुंज बिहारी की के इस पेज में पहले कृष्ण आरती के हिंदी लिरिक्स दिए गए हैं।

बाद में “आरती कुंज बिहारी की” की पंक्तियों का अर्थ और आध्यात्मिक महत्व दिया गया है।


आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

[आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।]


गले में बैजंती माला, बजावे मुरली मधुर बाला
श्रवण में कुंडल झलकाला
नन्द के नन्द, श्री आनंद कंद, मोहन बृज चंद
राधिका रमण बिहारी की,
श्री गिरीधर कृष्ण मुरारी की
[आरती कुंज बिहारी की….]


गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
[आरती कुंज बिहारी की….]


कनकमय मोर मुकुट बिलसे, देवता दर्शन को तरसे
गगन सों सुमन रसी बरसे
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
[आरती कुंज बिहारी की….]


जहां ते प्रकट भई गंगा
कलुष कलि हारिणि श्री गंगा
(Or – सकल मल हारिणि श्री गंगा)
स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव शीष, जटा के बीच, हरै अघ कीच
चरन छवि श्री बनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
[आरती कुंज बिहारी की….]


चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू
चहुं दिशी गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद
टेर सुन दीन भिखारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
[आरती कुंज बिहारी की….]


आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की


Aarti Kunj Bihari Ki – Krishna Aarti


Krishna Bhajan



आरती कुंज बिहारी की – श्री कृष्ण आरती – आध्यात्मिक अर्थसहित

आरती कुंज बिहारी की भगवान कृष्ण की आरती है, जिन्हें कुंज बिहारी या कन्हैया के नाम से भी जाना जाता है। यह आरती भक्तों द्वारा हिंदू त्योहार जन्माष्टमी के दौरान गाई जाती है, जब भगवान् कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया जाता है।

भजन में भगवान कृष्ण की सुंदरता और आकर्षण का वर्णन किया गया है, जो फूलों की माला पहनते हैं, बांसुरी बजाते हैं और राधा के साथ नृत्य करते हैं। यह भजन भक्त के भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को भी व्यक्त करता है, जो अपने भक्तों के रक्षक और पालक हैं। आरती कुंज बिहारी की भजन भगवान कृष्ण की सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से गाई जाने वाली आरतियों में से एक है।

आरती कुंज बिहारी की आरती का अर्थ और आध्यात्मिक अर्थ इस प्रकार है –

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

“कुंज बिहारी” भगवान कृष्ण का एक नाम है, जो अपनी दिव्य उपस्थिति से सभी को आकर्षित और मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

यह पंक्ति भगवान कृष्ण की आरती की पहली लाइन है, जिसमे उन्हें गिरधर (क्योंकि भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली से उठा लिया था) और मुरारी (मुरा नामक राक्षस का वध करने वाला) के रूप में संदर्भित करती है।

यह पंक्ति भगवान श्रीकृष्ण को गोवर्धन धारी, देवकी पुत्र, और दुष्टों का संहार करने वाले श्री गिरिधर के रूप में स्तुति करती हैं।

गले में बैजंती माला,

गले में छोटे सफेद मोतियों से बनी एक दिव्य माला है, जो अक्सर भगवान विष्णु या कृष्ण से जुड़ी होती है। यह भगवान कृष्ण के दिव्य श्रृंगार का प्रतीक है।

बजावे मुरली मधुर बाला

“बजावे” का अर्थ है बजाना, “मुरली” का अर्थ है भगवान कृष्ण की बांसुरी, और “मधुर बाला” उनकी बांसुरी की मधुर ध्वनि को दर्शाता है। भगवान कृष्ण को अक्सर एक आकर्षक बांसुरीवादक के रूप में चित्रित किया जाता है, जो अपनी बांसुरी के मंत्रमुग्ध संगीत के माध्यम से अपने भक्तों के दिलों को मोहित कर लेते हैं।

श्रवण में कुंडल झलकाला

“श्रवण” का अर्थ है कान, और “कुंडल” बालियां हैं। यह पंक्ति भगवान कृष्ण की बालियों की सुंदरता का वर्णन करती है, जो बांसुरी बजाते समय चमकती और लहराती हैं।

नन्द के नन्द, श्री आनंद कंद, मोहन बृज चंद

यह पंक्तियाँ भगवान कृष्ण को नंद (उनके पालक पिता) के प्रिय पुत्र, सर्वोच्च आनंद (आनंद कंद) के स्रोत और बृज की भूमि (उनका बचपन का घर) के सबसे प्रिय और आनंदमय के रूप में वर्णन करती है। ।

राधिका रमण बिहारी की, श्री गिरीधर कृष्ण मुरारी की

राधिका रमण भगवान कृष्ण का दूसरा नाम है, जो दर्शाता है कि वह राधा के प्रिय हैं, और “बिहारी” का तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो बगीचों (कुंज) में लीला (विहारी) का आनंद लेता है, जो उनके चंचल और प्रेमपूर्ण स्वभाव का प्रतीक है।

गगन सम अंग कांति काली,

यह पंक्ति भगवान कृष्ण की दिव्य सुंदरता का वर्णन करती है, जिसमें उनके गहरे रंग की तुलना नीले आकाश (गगन) के बीच एक काले बादल की उज्ज्वल चमक से की जाती है।

राधिका चमक रही आली

यह राधा के तेज और वैभव का प्रतीक है, जिन्हें अक्सर भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और प्रेम के प्रतीक के रूप में चित्रित किया जाता है।

लतन में ठाढ़े बनमाली

“लतन” का अर्थ है कमर, और “बनमाली” भगवान कृष्ण के नामों में से एक है। यह पंक्ति भगवान कृष्ण को अपनी कमर में मोर पंख लगाए हुए चित्रित करती है, जैसा कि आमतौर पर उनकी छवियों में दर्शाया जाता है।

भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक

यह श्लोक भगवान कृष्ण के भौंरे (भ्रमर) के रूप में आकर्षक, माथे पर कस्तूरी की सुगंध वाला तिलक और चंद्रमा (चंद्र) की तरह चमकने वाले रूप का वर्णन करता है।

ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

यह पंक्ति श्यामा (कृष्ण का दूसरा नाम) के आकर्षक और मनमोहक रूप (छवि) की प्रशंसा करती है और उनके प्यारे स्वभाव पर प्रकाश डालती है।

कनकमय मोर मुकुट बिलसे,

“कनकमय” का अर्थ है सोने से बना, “मोर मुकुट” का अर्थ है मोर पंखों से सुसज्जित। इस पंक्ति में भगवान कृष्ण को मोरपंख वाला स्वर्ण मुकुट पहने हुए बताया गया है।

देवता दर्शन को तरसे

“तरसे” का अर्थ है लालसा या इच्छा। यह पंक्ति बताती है कि देवता स्वयं भगवान कृष्ण के दिव्य दर्शन के लिए लालायित रहते हैं।

गगन सों सुमन रसी बरसे

गगन यानी की आकाश, “सुमन” का अर्थ है फूल, और “बरसे” का अर्थ है बौछार। यह लाइन दर्शाती है कि कैसे, स्वर्गीय लोकों से, भगवान कृष्ण पर आराधना की अभिव्यक्ति के रूप में हल्की बारिश की तरह फूल बरसते हैं।

बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग

“मुरचंग” बांसुरी के समान एक संगीत वाद्ययंत्र है, “मधुर मिरदंग” का तात्पर्य मधुर ध्वनि वाले मृदंग (एक प्रकार का ड्रम) से है, और “ग्वालिन संग” का अर्थ है “अर्थात् ग्वालबालों के साथ। यह पंक्ति बांसुरी और ड्रम के मनमोहक संगीत के साथ एक आनंदमय दृश्य को चित्रित करती है, जबकि चरवाहे ग्वालिन भगवान कृष्ण की दिव्य उपस्थिति में गाती हैं और नृत्य करती हैं।

अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

“अतुल रति” का अर्थ है अतुलनीय प्रेमी, और “गोप कुमारी” का तात्पर्य ग्वालिन से है। यह श्लोक वृन्दावन की ग्वालबालियों के प्रति भगवान कृष्ण के असाधारण प्रेम और स्नेह को उजागर करता है।

जहां ते प्रकट भई गंगा
कलुष कलि हारिणि श्री गंगा (Or – सकल मल हारिणि श्री गंगा)

“जहा से प्रगट” का अर्थ है जहां से यह प्रकट हुई, और “गंगा” का तात्पर्य गंगा नदी से है। “कलुष कली हारिणी” का अर्थ है अशुद्धियों को दूर करने वाली, और “श्री गंगा” पवित्र गंगा नदी को संदर्भित करती है। यह श्लोक इस बात पर भी जोर देता है कि गंगा अपनी उपस्थिति से ही सभी पापों को शुद्ध कर देती है।

स्मरन ते होत मोह भंगा

“मोह भंग” का अर्थ है भ्रम टूट गया। यह पंक्ति इंगित करती है कि भगवान कृष्ण के स्मरण मात्र से सभी भ्रम और मोह दूर हो सकते हैं।

बसी शिव शीष, जटा के बीच, हरै अघ कीच

यह श्लोक भगवान कृष्ण को ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित करता है जो पवित्र गंगा को अपनी जटाओं में धारण करते हैं, और ऐसा करके, वह सभी प्राणियों के पापों को धो देते हैं।

चरन छवि श्री बनवारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

“चरण छवि” दिव्य चरणों को संदर्भित करता है, और “श्री बनवारी” भगवान कृष्ण का दूसरा नाम है। यह पंक्ति भगवान कृष्ण के दिव्य रूप और उनके पवित्र चरणों की महिमा करती है।

चमकती उज्ज्वल तट रेनू

“चमकती” का अर्थ है चमचमाती, “उज्ज्वल” यानी की दीप्तिमान, और “तट रेनू” का अर्थ है वृन्दावन की धूल। यह श्लोक वर्णन करता है कि वृन्दावन की धूल किस प्रकार चमक रही है।

बज रही वृंदावन बेनू

इस पंक्ति का तात्पर्य भगवान कृष्ण के प्रिय निवास वृन्दावन में बजने वाली बांसुरी से है।

चहुं दिशी गोपि ग्वाल धेनू

“चाहु दिसि” का अर्थ है सभी दिशाओं में, “गोपी ग्वाल” चरवाहे लड़कियां और लड़के हैं, और “धेनु” गायों को संदर्भित करता है। यह पंक्ति दर्शाती है कि किस प्रकार संपूर्ण वृन्दावन ग्वालबालों, बालकों और गायों की हर्षध्वनि से गूंज उठता है।

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद

इस वाक्य में भगवान श्रीकृष्ण की सुंदरता और आकर्षण का वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण को हँसते-हँसते, धीरे-धीरे, चाँदनी के समान चमकते हुए चंद्रमा के समान वर्णित किया गया है, और उनके समर्थन से संसार के समस्त भव-भंगिमाओं से मुक्ति प्राप्त होती है। यह वाक्य भगवान के दिव्य रूप को स्तुति करता है और भक्तों को उनकी आराधना के लिए प्रेरित करता है। यह श्लोक चाँद की रोशनी में भगवान कृष्ण के मंद मंद हँसने के मनोरम दृश्य को भी चित्रित करता है।

टेर सुन दीन भिखारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

इस वाक्य में भक्त श्रीकृष्ण के चरणों में अपने सब दु:खों और आपत्तियों को समर्पित करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं, उनकी कृपा का आशीर्वाद चाहते हैं।

संक्षेप में, “आरती कुंज बिहारी की” के बोल भगवान कृष्ण के दिव्य गुणों और आकर्षण की खूबसूरती से प्रशंसा करते हैं। भजन में उनके उत्कृष्ट स्वरूप, गंगा नदी के साथ उनके जुड़ाव, सभी अशुद्धियों को दूर करने की उनकी क्षमता, ग्वालों के प्रति उनके प्रेम और वृन्दावन के आनंदमय माहौल का वर्णन किया गया है जहां वह अपनी मनमोहक बांसुरी बजाते हैं।

आरती कुंज बिहारी की” भगवान् कृष्ण के चंचल और प्रेमपूर्ण स्वभाव, उनके मधुर बांसुरी वादन और उनकी मंत्रमुग्ध उपस्थिति और साथ ही साथ वृन्दावन की सुंदरता को भी दर्शाता है।


कृष्ण भक्ति

शीश मुकुट और मोर पंख, गल वैजन्तीमाल।
यह छबि मन में बस रही, यशोदा के गोपाल॥

तेरी मेरे सांवरे, युग युग की है प्रीत।
मैं चरणों का दास हूँ, तू मेरे मन का मीत॥

रोग शोक संकट हरे, बाधा निकट न आये।
है प्रताप हरी नाम में, जो लेवे तर जाये॥ 

राम वही है, कृष्ण वही, लक्ष्मण वही  बलराम।
त्रेता द्वापर की छबि, है ये चारों धाम॥

गीध, गणिका और अजामिल को तुमने तारा है।
गज को मुक्ति दिलाई, ग्राह को जा मारा है॥

शबरी भीलनी औरअहिल्या को, तूने ही तो उबारा है।
लाज द्रौपदी की बचाई, तू ही तो रखवारा है॥


Krishna Bhajan



Nand Ke Anand Bhayo – Lyrics in Hindi


नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

हे आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

हे बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


हे आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

हे बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

हे आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ –

हे बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

हे आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

गौये चराने आये, जय हो पशुपाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

हे गौए चराने आये, जय हो पशुपाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की॥


पूनम के चाँद जैसी शोभा है बाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैयालाल की॥ – 2

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

गौये चराने आये, जय हो पशुपाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


भक्तो के आनंद-कंद जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

जय हो यशोदा लाल की, जय हो गोपाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

गौये चराने आये, जय हो पशुपाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


आनंद से बोलो सब जय हो बृज लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

जय हो बृजलाल की, पावन प्रतिपाल की।
गोकुल में आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥ – 2

कोटि ब्रह्माण्ड के अधिपति लाल की।
नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

गौए चराने आये, जय हो पशुपाल की।
नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥

आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
हाथी घोडा पालकी, जय कन्हैया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

जय हो नंदलाल की, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥


आनंद उमंग भयो, जय हो नन्द लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की॥

बोलो श्री कृष्ण कन्हैया लाल की जय


Nand Ke Anand Bhayo – Janmashtami Bhajan


Krishna Bhajan



Madhurashtakam – Adharam Madhuram – Lyrics in Hindi with Meanings


मधुराष्टकम – अर्थ साहित – अधरं मधुरं वदनं मधुरं

अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।

अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।


हृदयं मधुरं गमनं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
(मधुराधिपते अखिलं मधुरम्)

वचनं मधुरं चरितं मधुरं,
वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।

चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
(मधुराधिपते अखिलं मधुरम्)


वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः,
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।

नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥


गीतं मधुरं पीतं मधुरं,
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।

रूपं मधुरं तिलकं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥


करणं मधुरं तरणं मधुरं,
हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।

वमितं मधुरं शमितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥


गुंजा मधुरा माला मधुरा,
यमुना मधुरा वीची मधुरा।

सलिलं मधुरं कमलं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥


गोपी मधुरा लीला मधुरा,
युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्।

दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥


गोपा मधुरा गावो मधुरा,
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।

दलितं मधुरं फलितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
(मधुराधिपते अखिलं मधुरम्)


इति श्रीमद्वल्लभाचार्यविरचितं
मधुराष्टकं सम्पूर्णं।

अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।


Madhurashtakam – Adharam Madhuram


Krishna Bhajan



Madhurashtakam – Adharam Madhuram – Meaning

  • मधुर – pleasant, pleasing
  • मधुर – मनभावन, आकर्षक, सुंदर, सौम्य, मनोहर, सुहावना, प्रीतिकर, सुखकर

अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
(मधुराधिपते अखिलं मधुरम्)

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • अधरं मधुरं – श्री कृष्ण के होंठ मधुर हैं
  • वदनं मधुरंमुख मधुर है
  • नयनं मधुरंनेत्र (ऑंखें) मधुर हैं
  • हसितं मधुरम्मुस्कान मधुर है
  • हृदयं मधुरंहृदय मधुर है
  • गमनं मधुरंचाल भी मधुर है
  • मधुराधिपतेमधुराधिपति (मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण)
  • अखिलं मधुरम्सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री मधुराधिपति (श्री कृष्ण) का सभी कुछ मधुर है। उनके अधर (होंठ) मधुर है, मुख मधुर है, नेत्र मधुर है, हास्य (मुस्कान) मधुर है, हृदय मधुर है और चाल (गति) भी मधुर है॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं,
वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥
(मधुराधिपते अखिलं मधुरम्)

अर्थ (Meaning in Hindi)

  • वचनं मधुरं – भगवान श्रीकृष्ण के वचन (बोलना) मधुर है
  • चरितं मधुरंचरित्र मधुर है
  • वसनं मधुरंवस्त्र मधुर हैं
  • वलितं मधुरम् – वलय, कंगन मधुर हैं
  • चलितं मधुरंचलना मधुर है
  • भ्रमितं मधुरंभ्रमण (घूमना) मधुर है
  • मधुराधिपते – मधुरता के ईश्वर श्रीकृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री मधुराधिपति (भगवन श्री कृष्ण) का सभी कुछ मधुर है। उनका बोलना (वचन) मधुर है, चरित्र मधुर है, वस्त्र मधुर है, वलय मधुर है, चाल मधुर है और घूमना (भ्रमण) भी अति मधुर है।

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः,
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • वेणुर्मधुरो – श्री कृष्ण की वेणु मधुर है, बांसुरी मधुर है
  • रेणुर्मधुरःचरणरज मधुर है, उनको चढ़ाये हुए फूल मधुर हैं
  • पाणिर्मधुरःहाथ (करकमल) मधुर हैं
  • पादौ मधुरौचरण मधुर हैं
  • नृत्यं मधुरंनृत्य मधुर है
  • सख्यं मधुरंमित्रता मधुर है
  • मधुराधिपते – हे श्रीकृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

भगवान् कृष्ण की वेणु मधुर है, बांसुरी मधुर है चरणरज मधुर है, करकमल (हाथ) मधुर है, चरण मधुर है, नृत्य मधुर है, और सख्या (मित्रता) भी अति मधुर है। श्री मधुराधिपति कृष्ण का सभी कुछ मधुर है॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं,
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • गीतं मधुरं – श्री कृष्ण के गीत मधुर हैं
  • पीतं मधुरंपीताम्बर मधुर है
  • भुक्तं मधुरंभोजन (खाना) मधुर है
  • सुप्तं मधुरम्शयन (सोना) मधुर है
  • रूपं मधुरंरूप मधुर है
  • तिलकं मधुरंतिलक (टीका) मधुर है
  • मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री मधुराधिपति कृष्ण का सभी कुछ मधुर है। उनके गीत (गान) मधुर है, पान (पीताम्बर) मधुर है, भोजन मधुर है, शयन मधुर है। उनका रूप मधुर है, और तिलक (टिका) भी अति मधुर है।

करणं मधुरं तरणं मधुरं,
हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • करणं मधुरंकार्य मधुर हैं
  • तरणं मधुरं – तारना मधुर है (दुखो से तारना, उद्धार करना)
  • हरणं मधुरं – हरण मधुर है (दुःख हरणा)
  • रमणं मधुरम्रमण मधुर है
  • वमितं मधुरंउद्धार मधुर हैं
  • शमितं मधुरंशांत रहना मधुर है
  • मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री कृष्ण, श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है। उनक कार्य मधुर है, उनका तारना, दुखो से उबरना मधुर है। दुखो का हरण मधुर है। उनका रमण मधुर है, उद्धार मधुर है और शांति भी अति मधुर है।

गुंजा मधुरा माला मधुरा,
यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • गुंजा मधुरागर्दन मधुर है
  • माला मधुरामाला भी मधुर है
  • यमुना मधुरायमुना मधुर है
  • वीची मधुरायमुना की लहरें मधुर हैं
  • सलिलं मधुरंयमुना का पानी मधुर है
  • कमलं मधुरंयमुना के कमल मधुर हैं
  • मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री कृष्ण की गुंजा मधुर है, माला भी मधुर है। यमुना मधुर है, उसकी तरंगे भी मधुर है, उसका जल मधुर है और कमल भी अति मधुर है। श्री मधुराधिपति कृष्ण का सभी कुछ मधुर है॥

गोपी मधुरा लीला मधुरा,
युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • गोपी मधुरागोपियाँ मधुर हैं
  • लीला मधुराकृष्ण की लीला मधुर है
  • युक्तं मधुरं – उनक संयोग मधुर है
  • मुक्तं मधुरम्वियोग मधुर है
  • दृष्टं मधुरंनिरिक्षण (देखना) मधुर है
  • शिष्टं मधुरंशिष्टाचार (शिष्टता) भी मधुर है
  • मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

भावार्थ:

श्री मधुराधिपति का सभी कुछ मधुर है। उनकी गोपिया मधुर है, उनकी लीला मधुर है, उनक सयोग मधुर है, वियोग मधुर है, निरिक्षण मधुर (देखना) है और शिष्टाचार भी मधुर है।

गोपा मधुरा गावो मधुरा,
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं,
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥

अर्थ (Stotra Meaning in Hindi):

  • गोपा मधुरागोप मधुर हैं
  • गावो मधुरागायें मधुर हैं
  • यष्टिर्मधुरालकुटी (छड़ी) मधुर है
  • सृष्टिर्मधुरासृष्टि (रचना) मधुर है
  • दलितं मधुरंदलन (विनाश करना) मधुर है
  • फलितं मधुरंफल देना (वर देना) मधुर है
  • मधुराधिपते – हे भगवान् कृष्ण (मधुराधिपति)
  • अखिलं मधुरम् – आप (आपका) सभी प्रकार से मधुर है

Krishna Bhajan



कृष्ण भक्ति

जिनका मुख मधुर मुस्कानसे विकसित है, रत्नभूषित हाथ में सुन्दर मुरली है, गलेमें परम मनोहर मणियोंका हार हैँ, कमलके समान मुख है, जो दाता है, नवघन सदृश नीलवर्ण हैं और सुन्दर गोपकुमारोंसे घिरे हुए है, उन परमपुरुष आदिनारायण श्रीकृष्णको नमस्कार करता हूँ।

जो सुवर्णमय कमलकी माला धारण करते है, केशी और कंस आदि के काल है रणभूमिमें अति विकराल है और समस्त लोकोंके प्रतिपालक है, वे बालगोपाल मेरे ह्रदय में बसे।

सज्जनोके हितकारी, परमानंदसमूहकी वर्षा करनेवाले मेघ, लक्ष्मीनिवास नन्दनन्दन श्रीगोविन्दकी मैं वन्दना करता हूँ।

जिनकी कृपा गूँगेको को वक्ता बना देती है और अपाहिज को भी पर्वत-लाँघनेमे समर्थ कर देती है, उन परमानन्द स्वरुप माधवकी मै वन्दना करता हूँ।

कंस और चाणूरका वध करनेवाले, देवकीके आनंदवर्धन, वसुदेवनन्दन, जगद्गुरु श्रीकृष्णचन्द्रकी में वन्दना करता हूँ।

Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari – Lyrics in Hindi with Meanings


मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी

मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी भजन के इस पेज में मैं आरती तेरी गाउँ के हिंदी लिरिक्स दिए गए है।

बाद में भजन का आध्यात्मिक महत्व दिया गया है, और भजन से हमें कौन कौन सी आध्यात्मिक बातें सिखने को मिलती है यह बताया गया है।


मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।
मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥


है तेरी छबि अनोखी, ऐसी ना दूजी देखी।
तुझ सा ना सुन्दर कोई, ओ मोर मुकुटधारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


जो आए शरण तिहारी, विपदा मिट जाए सारी।
हम सब पर कृपा रखना, ओ जगत के पालनहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


राधा संग प्रीत लगाई, और प्रीत की रीत चलायी।
तुम राधा रानी के प्रेमी, जय राधे रास बिहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


माखन की मटकी फोड़ी, गोपीन संग अखियाँ जोड़ी।
ओ नटखट रसिया तुझपे, जाऊं मैं तो बलिहारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


जब जब तू बंसी बजाये, सब अपनी सुध खो जाएँ।
तू सबका सब तेरे प्रेमी, ओ कृष्ण प्रेम अवतारी॥
मैं आरती तेरी गाउँ….


मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।
मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥


Main Aarti Teri Gaun, O Keshav Kunj Bihari


Krishna Bhajan



मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी भजन का आध्यात्मिक महत्व

मैं आरती तेरी गाउँ भजन भगवान श्रीकृष्ण की आरती है, जिसमें उनकी सुंदरता, लीलाएं, प्रेम, कृपा और महिमा का गुणगान किया गया हैं।

इस भजन के माध्यम से हमें भक्ति, समर्पण, ईश्वर की शरण, और उनकी कृपा जैसी आध्यात्मिक बातों का संदेश मिलता है, जो हमारे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकता हैं।

इस भजन में भगवान कृष्ण को अलग-अलग नामों से भी संबोधित किया गया है, जो उनके स्वरूप और स्वभाव का वर्णन करते हैं।

इस भजन की पंक्तियों से हमें कई आध्यात्मिक सन्देश मिलते हैं। तो आइए, इस भजन का आध्यात्मिक अर्थ समझकर ईश्वर की आराधना और भक्ति में लीन हो जाये।


हम भगवान की आरती क्यों करते है?

मैं आरती तेरी गाउँ, ओ केशव कुञ्ज बिहारी।

जब हम कृष्ण की आरती करते है और उनके सामने सिर झुकाते है, तो हम अपने आराध्य भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और अपना समर्पण व्यक्त करते है।

यह हमारे मन में भगवान के प्रति गहरी श्रद्धा और विश्वास को जगाता है।

  • केशव कुंज बिहारी – यह नाम भगवान कृष्ण को संदर्भित करता है, जो उनके विशेष भव्य रूप और वृंदावन में विहार करने की लीलाएं बयां करता हैं।

मैं नित नित शीश नवाऊँ, ओ मोहन कृष्ण मुरारी॥

हे ईश्वर, मैं हर पल आपके सामने अपना सिर झुकाता हूं।

जब हम नियमित रूप से भगवान कृष्ण के सामने झुकाकर उनसे प्रार्थना करते है तो हमारे मन में उनके प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना प्रबल होती है। इससे क्या लाभ होता है, आगे की पंक्तियों में दिया गया है।

  • मोहन कृष्ण मुरारी – भगवान कृष्ण का प्यारा नाम है, जो उनके मनोरम और मनमोहक स्वभाव को दर्शाता है।

हम अपनी विपदाओं को कैसे दूर करें?

जो आए शरण तिहारी, विपदा मिट जाए सारी।

कृष्ण वह हैं जो कठिनाइयों को दूर करते हैं और सुरक्षा प्रदान करते हैं। जो जो भगवान् की शरण जाता है, भगवान उन सब पर कृपा करते हैं।

इसलिए जब हम भगवान् की शरण में जाते हैं,
उनके सामने अपने आप को समर्पित करते है,
तो हमारी सारी परेशानियां और प्रतिकूलताएं दूर हो जाती हैं,
सारी विपदाएँ मिट जाती हैं।

ईश्वर की कृपा से हमें सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है, और हम जीवन में सुख और आनंद का अनुभव करते हैं।

यह पंक्ति हमारे मन में भगवान के प्रति पूर्ण विश्वास और भरोसे को दर्शाती है।

हम सब पर कृपा रखना, ओ जगत के पालनहारी॥

इसलिए हमें ईश्वर से अपने और सभी पर कृपा करने की प्रार्थना करनी चाहिए।

हे ईश्वर, हम सभी पर अपना आशीर्वाद और कृपा बनाए रखना।

  • जगत के पालन-हारी – कृष्ण को संपूर्ण विश्व के पालनकर्ता और रक्षक के रूप में संदर्भित करता है।

इस प्रकार भजन की पंक्तियों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने आराध्य भगवान के प्रति भक्ति और समर्पण रखना चाहिए। हमें ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और भरोसा करना चाहिए। ईश्वर की कृपा से हम अपनी सभी विपदाओं से मुक्त हो सकते हैं।

यह भजन हमें यह भी बताता है कि हमें अपने जीवन में ईश्वर के सामने आत्म-समर्पण करना चाहिए, अपने आप को ईश्वर के हाथों में सौंप देना चाहिए। ईश्वर की कृपा से हम अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।


Krishna Bhajan



मैं आरती तेरी गाउँ भजन की पंक्तियों का आध्यात्मिक अर्थ

है तेरी छबि अनोखी, ऐसी ना दूजी देखी।

“है तेरी छवि अनोखी” अर्थात “तुम्हारा रूप निराला है।” भक्त ने भगवान कृष्ण के दिव्य रूप को किसी अन्य के विपरीत, अतुलनीय रूप से विशेष बताया है। उनके जैसा खूबसूरत कोई नहीं है। भक्त, भगवान कृष्ण की विशिष्ट और अद्वितीय सुंदरता की प्रशंसा करते हुए कहता है कि उनके जैसा कोई और नहीं है।

तुझ सा ना सुन्दर कोई, ओ मोर मुकुटधारी॥

“तुझ सा ना सुंदर कोई” बताता है “तुम्हारे जैसा सुंदर कोई नहीं है।” “ओ मोर मुकुट-धारी” भगवान कृष्ण को संदर्भित करता है, जो अपने सिर पर मोर पंख (मोर मुकुट) पहनते हैं। यह श्लोक भगवान कृष्ण की अद्वितीय सुंदरता का गुणगान करता है।

राधा संग प्रीत लगाई, और प्रीत की रीत चलायी।

यह श्लोक राधा के साथ गहरा और प्रेमपूर्ण रिश्ता (प्रीत) स्थापित करने के लिए भगवान कृष्ण की प्रशंसा करता है, जो उनके बीच दिव्य बंधन का प्रतीक है।

तुम राधा रानी के प्रेमी, जय राधे रास बिहारी॥

“तुम राधा रानी के प्रेमी” का अर्थ है “तुम राधा रानी के प्रेमी हो।” यह श्लोक राधा के साथ कृष्ण के विशेष और अंतरंग बंधन को स्वीकार करता है। “जय राधे रास बिहारी” एक उत्सवपूर्ण उद्घोष है, जिसमें कृष्ण को राधा और गोपियों के साथ रास के दिव्य नृत्य में संलग्न बताया जाता है।

माखन की मटकी फोड़ी, गोपीन संग अखियाँ जोड़ी।

इस श्लोक में भगवान कृष्ण द्वारा मक्खन की मटकी (माखन की मटकी) को तोड़ने और गोपियों के साथ रास का वर्णन किया गया है, जो उनके साथ उनके प्रेमपूर्ण और आनंदमय संबंधों को दर्शाता है।

ओ नटखट रसिया तुझपे, जाऊं मैं तो बलिहारी॥

“ओ नटखट रसिया तुझपे” कृष्ण को शरारती और आकर्षक के रूप में संदर्भित करता है। भक्त अपनी गहरी भक्ति व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वे ऐसे चंचल और मनोरम कृष्ण के लिए खुद को बलिहारी कर देंगे।

जब जब तू बंसी बजाये, सब अपनी सुध खो जाएँ।

“जब जब तू बंसी बजाएं” का अर्थ है “जब भी आप बांसुरी बजाएं।” यह कविता कृष्ण की बांसुरी वादन के मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्रभाव पर प्रकाश डालती है, जिससे सभी प्राणी उनके दिव्य संगीत में खो जाते हैं।

तू सबका सब तेरे प्रेमी, ओ कृष्ण प्रेम अवतारी॥

“तू सबका सब तेरे प्रेमी” बताता है “तुम सबके प्रेमी हो; हर कोई तुम्हारा है।” “हे कृष्ण प्रेम अवतारी” कृष्ण को दिव्य प्रेम के अवतार के रूप में संदर्भित करता है। यह श्लोक कृष्ण के असीम और सार्वभौमिक प्रेम, सभी प्राणियों को गले लगाने पर जोर देता है।

संक्षेप में, भजन के बोल भगवान कृष्ण की अद्वितीय सुंदरता और प्रेमपूर्ण प्रकृति व्यक्त करते हैं। भक्त कृष्ण की सुरक्षा चाहता है, राधा के साथ अपने दिव्य प्रेम का जश्न मनाता है, और उनके प्रति पूर्ण समर्पण करने की इच्छा व्यक्त करता है। इस भावपूर्ण भजन में कृष्ण की बांसुरी की मनमोहक धुन और उनके सार्वभौमिक प्रेम का जश्न मनाया जाता है।

यह भजन भगवान कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और प्रशंसा व्यक्त करता है। गायक कृष्ण के दिव्य रूप की विशिष्टता और सुंदरता की प्रशंसा करता है, उन्हें सभी परेशानियों से सुरक्षा और राहत के स्रोत के रूप में स्वीकार करता है। वे उनके सामने झुककर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं और अपने और सभी जीवित प्राणियों के लिए उनकी उदार कृपा और आशीर्वाद मांगते हैं।


Shri Krishna Janmashtami Katha


जन्माष्टमी व्रत कथा – भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा


इंद्र ने नारदजी से पूछा –
हे ब्रह्मपुत्र, हे मुनियों में श्रेष्ठ, सभी शास्त्रों के ज्ञाता, हे देव, व्रतों में उत्तम उस व्रत को बताएँ, जिस व्रतसे मनुष्यों को मुक्ति और लाभ प्राप्त हो। तथा हे ब्रह्मन्‌! उस व्रत से प्राणियों को भोग व मोक्ष भी प्राप्त हो जाए।

इंद्र की बातों को सुनकर नारदजी ने कहा –
त्रेतायुग के अन्त में और द्वापर युग के प्रारंभ समय में निन्दितकर्म को करने वाला कंस नाम का एक अत्यंत पापी दैत्य हुआ। उस दुष्ट व नीच कर्मी दुराचारी कंस की देवकी नाम की एक सुंदर बहन थी और उसके गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र कंस का वध करेगा।

मधुसूदन मनमोहन माधव मुरलीमनोहर

नारदजी की बातें सुनकर इंद्र ने कहा –
हे महामते! उस दुराचारी कंस की कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। क्या यह संभव है कि देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र अपने मामा कंस की हत्या करेगा।

ज्योतिष ने कंस को कृष्ण के बारे में बताया

इंद्र की सन्देहभरी बातों को सुनकर नारदजी ने कहा –
हे अदितिपुत्र इंद्र! एक समय की बात है। उस दुष्ट कंस ने एक ज्योतिषी से पूछा कि ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ज्योतिर्विद! मेरी मृत्यु किस प्रकार और किसके द्वारा होगी।

ज्योतिषी बोले –
हे दानवों में श्रेष्ठ कंस! वसुदेव की धर्मपत्नी देवकी जो वाक्‌पटु है और आपकी बहन भी है। उसी के गर्भ से उत्पन्न उसका आठवां पुत्र जो कि शत्रुओं को भी पराजित कर इस संसार में ‘कृष्ण’ के नाम से विख्यात होगा, वही एक समय सूर्योदयकाल में आपका वध करेगा।


ज्योतिषी की बातें सुनकर कंस ने कहा –
हे दैवज, बुद्धिमानों में अग्रण्य अब आप यह बताएं कि देवकी का आठवां पुत्र किस मास में किस दिन मेरा वध करेगा।

ज्योतिषी बोले –
हे महाराज! माघ मास की शुक्ल पक्ष की तिथि को सोलह कलाओं से पूर्ण श्रीकृष्ण से आपका युद्ध होगा। उसी युद्ध में वे आपका वध करेंगे। इसलिए हे महाराज! आप अपनी रक्षा यत्नपूर्वक करें।

इतना बताने के पश्चात नारदजी ने इंद्र से कहा –
ज्योतिषी द्वारा बताए गए समय पर ही कंस की मृत्यु कृष्ण के हाथ निःसंदेह होगी।

तब इंद्र ने कहा –
हे मुनि! उस दुराचारी कंस की कथा का वर्णन कीजिए और बताइए कि कृष्ण का जन्म कैसे होगा तथा कंस की मृत्यु कृष्ण द्वारा किस प्रकार होगी।


इंद्र की बातों को सुनकर नारदजी ने पुनः कहना प्रारंभ किया –
उस दुराचारी कंस ने अपने एक द्वारपाल से कहा – मेरी इस प्राणों से प्रिय बहन की पूर्ण सुरक्षा करना।

द्वारपाल ने कहा – ऐसा ही होगा।

कंस के जाने के पश्चात उसकी छोटी बहन दुःखित होते हुए जल लेने के बहाने घड़ा लेकर तालाब पर गई। उस तालाब के किनारे एक घनघोर वृक्ष के नीचे बैठकर देवकी रोने लगी।


यशोदा और देवकी

उसी समय एक सुंदर स्त्री जिसका नाम यशोदा था, उसने आकर देवकी से प्रिय वाणी में कहा – हे कान्ते! इस प्रकार तुम क्यों विलाप कर रही हो। अपने रोने का कारण मुझसे बताओ।

तब देवकी ने यशोदा से कहा –
हे बहन! नीच कर्मों में आसक्त दुराचारी मेरा ज्येष्ठ भ्राता कंस है। उस दुष्ट भ्राता ने मेरे कई पुत्रों का वध कर दिया। इस समय मेरे गर्भ में आठवाँ पुत्र है। वह इसका भी वध कर डालेगा। इस बात में किसी प्रकार का संशय या संदेह नहीं है, क्योंकि मेरे ज्येष्ठ भ्राता को यह भय है कि मेरे अष्टम पुत्र से उसकी मृत्यु अवश्य होगी।


देवकी की बातें सुनकर यशोदा ने कहा –
हे बहन! विलाप मत करो। मैं भी गर्भवती हूँ। यदि मुझे कन्या हुई तो तुम अपने पुत्र के बदले उस कन्या को ले लेना। इस प्रकार तुम्हारा पुत्र कंस के हाथों मारा नहीं जाएगा।

तदनन्तर कंस ने अपने द्वारपाल से पूछा –
देवकी कहाँ है? इस समय वह दिखाई नहीं दे रही है।

तब द्वारपाल ने कंस से नम्रवाणी में कहा –
हे महाराज! आपकी बहन जल लेने तालाब पर गई हुई हैं।

यह सुनते ही कंस क्रोधित हो उठा और उसने द्वारपाल को उसी स्थान पर जाने को कहा जहां वह गई हुई है।

द्वारपाल की दृष्टि तालाब के पास देवकी पर पड़ी। तब उसने कहा कि आप किस कारण से यहां आई हैं।

उसकी बातें सुनकर देवकी ने कहा कि मेरे गृह में जल नहीं था, जिसे लेने मैं जलाशय पर आई हूँ। इसके पश्चात देवकी अपने गृह की ओर चली गई।


कंस ने पुनः द्वारपाल से कहा कि इस गृह में मेरी बहन की तुम पूर्णतः रक्षा करो।

अब कंस को इतना भय लगने लगा कि गृह के भीतर दरवाजों में विशाल ताले बंद करवा दिए और दरवाजे के बाहर दैत्यों और राक्षसों को पहरेदारी के लिए नियुक्त कर दिया।

कंस हर प्रकार से अपने प्राणों को बचाने के प्रयास कर रहा था।

कृष्ण जन्म का शुभ मुहूर्त

एक समय सिंह राशि के सूर्य में आकाश मंडल में जलाधारी मेघों ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया।

भादो मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को घनघोर अर्द्धरात्रि थी।

उस समय चंद्रमा भी वृष राशि में था, रोहिणी नक्षत्र बुधवार के दिन सौभाग्ययोग से संयुक्त चंद्रमा के आधी रात में उदय होने पर आधी रात के उत्तर एक घड़ी जब हो जाए तो श्रुति-स्मृति पुराणोक्त फल निःसंदेह प्राप्त होता है।

इस प्रकार बताते हुए नारदजी ने इंद्र से कहा –
ऐसे विजय नामक शुभ मुहूर्त में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और श्रीकृष्ण के प्रभाव से ही उसी क्षण बन्दीगृह के दरवाजे स्वयं खुल गए।

द्वार पर पहरा देने वाले पहरेदार राक्षस सभी मूर्च्छित हो गए।

देवकी ने उसी क्षण अपने पति वसुदेव से कहा –
हे स्वामी! आप निद्रा का त्याग करें और मेरे इस अष्टम पुत्र को गोकुल में ले जाएँ, वहाँ इस पुत्र को नंद गोप की धर्मपत्नी यशोदा को दे दें।

उस समय यमुनाजी पूर्णरूपसे बाढ़ग्रस्त थीं, किन्तु जब वसुदेवजी बालक कृष्ण को सूप में लेकर यमुनाजी को पार करने के लिए उतरे उसी क्षण बालक के चरणों का स्पर्श होते ही यमुनाजी अपने पूर्व स्थिर रूप में आ गईं।

देवकीनंदन देवेश द्वारकाधीश गोविंदा

किसी प्रकार वसुदेवजी गोकुल पहुँचे और नंद के गृह में प्रवेश कर उन्होंने अपना पुत्र तत्काल उन्हें दे दिया और उसके बदले में उनकी कन्या ले ली।

वे तत्क्षण वहां से वापस आकर कंस के बंदी गृह में पहुँच गए।

प्रातःकाल जब सभी राक्षस पहरेदार निद्रा से जागे तो कंस ने द्वारपाल से पूछा कि अब देवकी के गर्भ से क्या हुआ? इस बात का पता लगाकर मुझे बताओ।

द्वारपालों ने महाराज की आज्ञा को मानते हुए कारागार में जाकर देखा तो वहाँ देवकी की गोद में एक कन्या थी। जिसे देखकर द्वारपालों ने कंस को सूचित किया, किन्तु कंस को तो उस कन्या से भय होने लगा।

अतः वह स्वयं कारागार में गया और उसने देवकी की गोद से कन्या को झपट लिया और उसे एक पत्थर की चट्टान पर पटक दिया किन्तु वह कन्या विष्णु की माया से आकाश की ओर चली गई और अंतरिक्ष में जाकर विद्युत के रूप में परिणित हो गई।

उसने कंस से कहा कि हे दुष्ट! तुझे मारने वाला गोकुल में नंद के गृह में उत्पन्न हो चुका है और उसी से तेरी मृत्यु सुनिश्चित है।


मेरा नाम तो वैष्णवी है, मैं संसार के कर्ता भगवान विष्णु की माया से उत्पन्न हुई हूँ, इतना कहकर वह स्वर्ग की ओर चली गई।

उस आकाशवाणी को सुनकर कंस क्रोधित हो उठा।

उसने नंदजी के गृह में पूतना राक्षसी को कृष्ण का वध करने के लिए भेजा किन्तु जब वह राक्षसी कृष्ण को स्तनपान कराने लगी तो कृष्ण ने उसके स्तन से उसके प्राणों को खींच लिया और वह राक्षसी कृष्ण-कृष्ण कहते हुए मृत्यु को प्राप्त हुई।

जब कंस को पूतना की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ तो उसने कृष्ण का वध करने के लिए क्रमशः केशी नामक दैत्य को अश्व के रूप में उसके पश्चात अरिष्ठ नामक दैत्य को बैल के रूप में भेजा, किन्तु ये दोनों भी कृष्ण के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए।

इसके पश्चात कंस ने काल्याख्य नामक दैत्य को कौवे के रूप में भेजा, किन्तु वह भी कृष्ण के हाथों मारा गया।

अपने बलवान राक्षसों की मृत्यु के आघात से कंस अत्यधिक भयभीत हो गया।

कृष्ण का कालिया नाग मर्दन

उसने द्वारपालों को आज्ञा दी कि नंद को तत्काल मेरे समक्ष उपस्थित करो।

द्वारपाल नंद को लेकर जब उपस्थित हुए तब कंस ने नंदजी से कहा कि यदि तुम्हें अपने प्राणों को बचाना है तो पारिजात के पुष्प ले आओ। यदि तुम नहीं ला पाए तो तुम्हारा वध निश्चित है।

कंस की बातों को सुनकर नंद ने ‘ऐसा ही होगा’ कहा और अपने गृह की ओर चले गए।

घर आकर उन्होंने संपूर्ण वृत्तांत अपनी पत्नी यशोदा को सुनाया, जिसे श्रीकृष्ण भी सुन रहे थे।

एक दिन श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद खेल रहे थे और अचानक स्वयं ने ही गेंद को यमुना में फेंक दिया। यमुना में गेंद फेंकने का मुख्य उद्देश्य यही था कि वे किसी प्रकार पारिजात पुष्पों को ले आएँ। अतः वे कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर यमुना में कूद पड़े।

कृष्ण के यमुना में कूदने का समाचार श्रीधर नामक गोपाल ने यशोदा को सुनाया। यह सुनकर यशोदा भागती हुई यमुना नदी के किनारे आ पहुँचीं और उसने यमुना नदी की प्रार्थना करते हुए कहा – हे यमुना! यदि मैं बालक को देखूँगी तो भाद्रपद मास की रोहिणी युक्त अष्टमी का व्रत अवश्य करूंगी क्योंकि दया, दान, सज्जन प्राणी, ब्राह्मण कुल में जन्म, रोहिणियुक्त अष्टमी, गंगाजल, एकादशी, गया श्राद्ध और रोहिणी व्रत ये सभी दुर्लभ हैं।

हजारों अश्वमेध यज्ञ, सहस्रों राजसूय यज्ञ, दान तीर्थ और व्रत करने से जो फल प्राप्त होता है, वह सब कृष्णाष्टमी के व्रत को करने से प्राप्त हो जाता है।


यह बात नारद ऋषि ने इंद्र से कही।

इंद्र ने कहा- हे मुनियों में श्रेष्ठ नारद! यमुना नदी में कूदने के बाद उस बालरूपी कृष्ण ने पाताल में जाकर क्या किया? यह संपूर्ण वृत्तांत भी बताएँ।

नारद ने कहा- हे इंद्र! पाताल में उस बालक से नागराज की पत्नी ने कहा कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो, कहाँ से आए हो और यहाँ आने का क्या प्रयोजन है?

नागपत्नी बोलीं- हे कृष्ण! क्या तूने द्यूतक्रीड़ा की है, जिसमें अपना समस्त धन हार गया है। यदि यह बात ठीक है तो कंकड़, मुकुट और मणियों का हार लेकर अपने गृह में चले जाओ क्योंकि इस समय मेरे स्वामी शयन कर रहे हैं। यदि वे उठ गए तो वे तुम्हारा भक्षण कर जाएँगे।

नागपत्नी की बातें सुनकर कृष्ण ने कहा- ‘हे कान्ते! मैं किस प्रयोजन से यहाँ आया हूँ, वह वृत्तांत मैं तुम्हें बताता हूँ। समझ लो मैं कालियानाग के मस्तक को कंस के साथ द्यूत में हार चुका हूं और वही लेने मैं यहाँ आया हूँ।

चतुर्भुज गोविंदा देवकीनंदन द्वारकाधीश

बालक कृष्ण की इस बात को सुनकर नागपत्नी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और अपने सोए हुए पति को उठाते हुए उसने कहा – हे स्वामी! आपके घर यह शत्रु आया है। अतः आप इसका हनन कीजिए।

अपनी स्वामिनी की बातों को सुनकर कालियानाग निन्द्रावस्था से जाग पड़ा और बालक कृष्ण से युद्ध करने लगा।

इस युद्ध में कृष्ण को मूर्च्छा आ गई, उसी मूर्छा को दूर करने के लिए उन्होंने गरुड़ का स्मरण किया। स्मरण होते ही गरुड़ वहाँ आ गए। श्रीकृष्ण अब गरुड़ पर चढ़कर कालियानाग से युद्ध करने लगे और उन्होंने कालियनाग को युद्ध में पराजित कर दिया।

अब कलियानाग ने भलीभांति जान लिया था कि मैं जिनसे युद्ध कर रहा हूँ, वे भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ही हैं।

अतः उन्होंने कृष्ण के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया और पारिजात से उत्पन्न बहुत से पुष्पों को मुकुट में रखकर कृष्ण को भेंट किया।

जब कृष्ण चलने को हुए तब कालियानाग की पत्नी ने कहा हे स्वामी! मैं कृष्ण को नहीं जान पाई। हे जनार्दन मंत्र रहित, क्रिया रहित, भक्तिभाव रहित मेरी रक्षा कीजिए। हे प्रभु! मेरे स्वामी मुझे वापस दे दें।

तब श्रीकृष्ण ने कहा- हे सर्पिणी! दैत्यों में जो सबसे बलवान है, उस कंस के सामने मैं तेरे पति को ले जाकर छोड़ दूँगा अन्यथा तुम अपने गृह को चली जाओ। अब श्रीकृष्ण कालियानाग के फन पर नृत्य करते हुए यमुना के ऊपर आ गए।

तदनन्तर कालिया की फुंकार से तीनों लोक कम्पायमान हो गए। अब कृष्ण कंस की मथुरा नगरी को चल दिए। वहां कमलपुष्पों को देखकर यमुनाके मध्य जलाशय में वह कालिया सर्प भी चला गया।


इधर कंस भी विस्मित हो गया तथा कृष्ण प्रसन्नचित्त होकर गोकुल लौट आए।

उनके गोकुल आने पर उनकी माता यशोदा ने विभिन्न प्रकार के उत्सव किए।

अब इंद्र ने नारदजी से पूछा- हे महामुने! संसार के प्राणी बालक श्रीकृष्ण के आने पर अत्यधिक आनंदित हुए। आखिर श्रीकृष्ण ने क्या-क्या चरित्र किया? वह सभी आप मुझे बताने की कृपा करें।

कृष्ण एवं चाणूर का मल्लयुद्ध

नारद ने इंद्र से कहा- मन को हरने वाला मथुरा नगर यमुना नदी के दक्षिण भाग में स्थित है। वहां कंस का महाबलशायी भाई चाणूर रहता था। उस चाणूर से श्रीकृष्ण के मल्लयुद्ध की घोषणा की गई।

हे इंद्र! कृष्ण एवं चाणूर का मल्लयुद्ध अत्यंत आश्चर्यजनक था। चाणूर की अपेक्षा कृष्ण बालरूप में थे। भेरी शंख और मृदंग के शब्दों के साथ कंस और केशी इस युद्ध को मथुरा की जनसभा के मध्य में देख रहे थे। श्रीकृष्ण ने अपने पैरों को चाणूर के गले में फँसाकर उसका वध कर दिया। चाणूर की मृत्यु के पश्चात उनका मल्लयुद्ध केशी के साथ हुआ।

अंत में केशी भी युद्ध में कृष्ण के द्वारा मारा गया। केशी के मृत्युपरांत मल्लयुद्ध देख रहे सभी प्राणी श्रीकृष्ण की जय-जयकार करने लगे।

बालक कृष्ण द्वारा चाणूर और केशी का वध होना कंस के लिए अत्यंत हृदय विदारक था।

अतः उसने सैनिकों को बुलाकर उन्हें आज्ञा दी कि तुम सभी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर कृष्ण से युद्ध करो।

हे इंद्र! उसी क्षण श्रीकृष्ण ने गरुड़, बलराम तथा सुदर्शन चक्र का ध्यान किया, जिसके परिणामस्वरूप बलदेवजी सुदर्शन चक्र लेकर गरुड़ पर आरूढ़ होकर आए। उन्हें आता देख बालक कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को उनसे लेकर स्वयं गरुड़ की पीठ पर बैठकर न जाने कितने ही राक्षसों और दैत्यों का वध कर दिया, कितनों के शरीर अंग-भंग कर दिए।

इस युद्ध में श्रीकृष्ण और बलदेव ने असंख्य दैत्यों का वध किया। बलरामजी ने अपने आयुध शस्त्र हल से और कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को विशाल दैत्यों के समूह का सर्वनाश किया।

दुराचारी कंस का वध

जब अन्त में केवल दुराचारी कंस ही बच गया तो कृष्ण ने कहा- हे दुष्ट, अधर्मी, दुराचारी अब मैं इस महायुद्ध स्थल पर तुझसे युद्ध कर तथा तेरा वध कर इस संसार को तुझसे मुक्त कराऊँगा।

यह कहते हुए श्रीकृष्ण ने उसके केशों को पकड़ लिया और कंस को घुमाकर पृथ्वी पर पटक दिया, जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। कंस के मरने पर देवताओं ने शंखघोष व पुष्पवृष्टि की।

वहां उपस्थित समुदाय श्रीकृष्ण की जय-जयकार कर रहा था। कंस की मृत्यु पर नंद, देवकी, वसुदेव, यशोदा और इस संसार के सभी प्राणियों ने हर्ष पर्व मनाया।


Krishna Bhajan



Shri Krishna Janmashtami Katha

Rakesh Kala


Krishna Bhajan



Shri Banke Bihari Teri Aarti – Lyrics in Hindi with Meanings


श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
(हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ)

आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ॥
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ


मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे,
प्यारी बंसी मेरो मन मोहे।
देख छवि बलिहारी मैं जाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


चरणों से निकली गंगा प्यारी,
जिसने सारी दुनिया तारी।
मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


दास अनाथ के नाथ आप हो,
दुःख सुख जीवन प्यारे साथ आप हो।
हरी चरणों में शीश झुकाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


श्री हरीदास के प्यारे तुम हो,
मेरे मोहन जीवन धन हो।
देख युगल छवि बलि बलि जाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ,
हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ,
आरती गाऊं प्यारे तुमको रिझाऊं।

कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


Shri Banke Bihari Teri Aarti

Shri Mridul Krishna Shastri


Krishna Bhajan



श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ भजन का आध्यात्मिक अर्थ

ये भजन गीत भगवान कृष्ण की स्तुति में हैं, विशेष रूप से उनके विभिन्न दिव्य गुणों पर प्रकाश डालता हैं और उनके प्रति भक्ति व्यक्त करता हैं।

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ, कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ, आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ॥

मैं आपके लिए आरती गाता हूं, भगवान कृष्ण। बांके बिहारी, कुंज बिहारी भगवान् कृष्ण के नाम है, जिन्हे शांत और सुंदर उपवन (कुंज) पसंद हैं। मैं आपकी दिव्य उपस्थिति में लीन होने के लिए प्रेम और भक्ति के साथ यह आरती प्रस्तुत करता हूं।

यह पंक्तिया भक्त की भगवान कृष्ण की पूजा और भक्ति के रूप में आरती गाने की इच्छा व्यक्त करती है, जिन्हें प्यार से बांके बिहारी और कुंज बिहारी के नाम से जाना जाता है।

मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे, प्यारी बंसी मेरो मन मोहे। देख छवि बलिहारी मैं जाऊँ।

हे भगवान, मोर का पंख आपके सिर पर बहुत सुंदर रूप से सुशोभित है, और आपकी बांसुरी की मधुर ध्वनि मेरे दिल को मोहित कर लेती है। आपके दिव्य रूप को देखकर, मैं पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो गया हूं और खुद को समर्पित कर रहा हूं।

इन पंक्तियों में, गायक ने भगवान कृष्ण के स्वरूप के कुछ आकर्षक पहलुओं का वर्णन किया है, जैसे उनके मुकुट पर मोर पंख और उनकी बांसुरी की मधुर धुन। भक्त उनकी दिव्य उपस्थिति से मुग्ध और अभिभूत होने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

चरणों से निकली गंगा प्यारी, जिसने सारी दुनिया तारी। मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ।

हे प्रभु, प्रिय नदी गंगा आपके चरणों से निकलती है। आप ही संपूर्ण जगत का पालन-पोषण करने वाले हैं। मैं आपके चरणकमलों को देखने का सौभाग्यशाली अवसर पाने के लिए उत्सुक हूँ।

यह श्लोक पवित्र नदी गंगा के स्रोत के रूप में भगवान कृष्ण की प्रशंसा करता है, और संपूर्ण ब्रह्मांड के निर्वाहक के रूप में उनकी सर्वोच्च शक्ति और अधिकार पर जोर देता है। भक्त कृष्ण के दिव्य चरणों के दर्शन की हार्दिक इच्छा व्यक्त करते हैं, जिन्हें बेहद पवित्र और पवित्र करने वाला माना जाता है।

दास अनाथ के नाथ आप हो, दुःख सुख जीवन प्यारे साथ आप हो। हरी चरणों में शीश झुकाऊँ।

तुम ही असहायों और अनाथों के स्वामी हो, और तुम ही जीवन में दुःख और सुख दोनों के साथी हो। मैं विनम्रतापूर्वक भगवान हरि (कृष्ण का दूसरा नाम) के चरणों में झुकता हूं।

इन पंक्तियों में, भक्त उन लोगों के रक्षक और देखभालकर्ता के रूप में भगवान कृष्ण में अपनी गहरी आस्था व्यक्त करते हैं जो असहाय हैं और जिनके पास भरोसा करने के लिए कोई और नहीं है। वे स्वीकार करते हैं कि कृष्ण उनके निरंतर साथी हैं, जो जीवन के सभी उतार-चढ़ाव में उनका साथ देते हैं। भक्त विनम्रतापूर्वक अपने आप को भगवान हरि के कमल चरणों में समर्पित कर देते हैं, उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन चाहते हैं।

श्री हरीदास के प्यारे तुम हो, मेरे मोहन जीवन धन हो। देख युगल छवि बलि बलि जाऊँ।

आप श्री हरिदास (कृष्ण के भक्त) के प्रिय हैं, और आप मेरे जीवन की सच्ची संपत्ति हैं, मेरे प्रिय। मैं दिव्य जोड़े (कृष्ण और राधा) की दिव्य छवि से पूरी तरह मंत्रमुग्ध हूं, और मैं भक्ति में अपना सब कुछ अर्पित करने के लिए तैयार हूं।

इन पंक्तियों में, भक्त भगवान कृष्ण को उनके भक्त श्री हरिदास के प्रिय के रूप में संबोधित करते हैं। वे कृष्ण को अपने जीवन का सबसे मूल्यवान और पोषित खजाना मानते हैं। भक्त कृष्ण और राधा की एक साथ दिव्य छवि (युगल छवि) से मोहित हो जाता है, जो आत्माओं के दिव्य मिलन का प्रतीक है। वे दिव्य जोड़े की भक्ति में खुद को पूरी तरह से समर्पित करने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

कुल मिलाकर, ये भजन गीत भगवान कृष्ण के प्रति भक्त के गहरे प्रेम, समर्पण और श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। भक्त कृष्ण को जरूरत के समय दयालु और देखभाल करने वाले रक्षक और जीवन में खुशी और सांत्वना के अंतिम स्रोत के रूप में देखते हैं। उनकी भक्ति हार्दिक और वास्तविक है, और उन्हें श्री बांके बिहारी की आरती गाने में अत्यधिक आनंद मिलता है।

इस तरह यह भजन भक्तों के लिए अपने देवता के प्रति आराधना और श्रद्धा की भावनाओं को व्यक्त करने, उनके आध्यात्मिक संबंध को मजबूत करने और भक्ति और शांति की भावना को बढ़ावा देने का एक तरीका है।


Krishna Bhajan



Hey Gopal Krishna Karu Aarti Teri – Lyrics in Hindi with Meanings


हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी

हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी लिरिक्स के इस पेज में पहले भजन के हिंदी लिरिक्स दिए गए है।

बाद में इस भजन का आध्यात्मिक महत्व दिया गया है और इसकी पंक्तियों से हमें कौन कौन सी बातें सिखने को मिलती है यह बताया गया है, जो हमें भक्ति मार्ग पर चलने में मदद कर सकती है।


Hey Gopal Krishna Karu Aarti Teri Lyrics

हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी।
हे प्रिया पति, मैं करूँ आरती तेरी॥
तुझपे कान्हा, बलि बलि जाऊं।
सांझ सवेरे, तेरे गुण गाउँ॥

प्रेम में रंगी, मैं रंगी भक्ति में तेरी।
हे गोपाल कृष्णा, करूँ आरती तेरी॥


ये माटी का (मेरा) तन है तेरा, मन और प्राण भी तेरे।
मैं एक गोपी, तुम हो कन्हैया, तुम हो भगवन मेरे।
कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण रटे आत्मा मेरी,
हे गोपाल कृष्णा करूँ आरती तेरी॥


कान्हा तेरा रूप अनुपम, मन को हरता जाये।
मन ये चाहे हरपल अंखियां, तेरा दर्शन पाये।
दरस तेरा, प्रेम तेरा, आस है मेरी,
हे गोपाल कृष्ण करूँ आरती तेरी॥


तुझपे ओ कान्हा बलि बलि जाऊं,
सांझ सवेरे तेरे गुण गाउँ।
प्रेम में रंगी, मैं रंगी भक्ति में तेरी,
हे गोपाल कृष्ण करूँ आरती तेरी॥

हे प्रिया पति, मैं करूँ आरती तेरी॥
हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी।


Hey Gopal Krishna Karu Aarti Teri

Devoleena Bhattacharjee


Krishna Bhajan



हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी भजन का आध्यात्मिक महत्व

हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी भजन से हमें कई आध्यात्मिक और जीवन संबंधी बातें सिखने को मिलती हैं। इन सन्देशों को अपने जीवन में आत्मसात करके हम एक सुखी और सफल जीवन जी सकते हैं।

भजन की पंक्तियाँ हमें यह बताती है कि – हमें सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए और ईश्वर को अपना सर्वस्व मानना चाहिए। इस भजन से हमें जो आध्यात्मिक सन्देश मिलते हैं, उनमे से कुछ प्रमुख हैं:


भक्ति ही जीवन का सार है

हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी।
सांझ सवेरे, तेरे गुण गाउँ॥

इस पंक्ति में भक्त कृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति का इजहार करता है।

जब हम ईश्वर को अपना सर्वस्व मानते है, उनकी आरती करते है, और उनके गुण गाते है, तो हमारे मन में भक्ति, और ईश्वर के चरणों में समर्पण की भावना, प्रबल होती जाती है।

और यह भक्ति ही है जो हमें मोक्ष की ओर ले जाती है।


ईश्वर सर्वव्यापी है

ये माटी का (मेरा) तन है तेरा, मन और प्राण भी तेरे।

ईश्वर सर्वव्यापी है और वह हमारे प्रत्येक कण में विद्यमान है। हमारा तन, मन और प्राण सभी कुछ ईश्वर के ही है।

यह हमें भ्रम से मुक्त होकर, आध्यात्मिक जीवन में अग्रसर होने की दिशा में प्रेरित करता है।

इसलिए भक्त कृष्ण को अपना सब कुछ अर्पित कर देते हैं। वे कहते हैं कि उनका शरीर, मन और प्राण सभी कृष्ण के हैं। वे कृष्ण को अपना भगवान मानते हैं और उनके नाम का जाप करते हैं।


प्रेम ही जीवन का आधार है

कान्हा तेरा रूप अनुपम, मन को हरता जाये।
मन ये चाहे हरपल अंखियां, तेरा दर्शन पाये।

भक्त कृष्ण के रूप और प्रेम का वर्णन करता है और कहता है की कृष्ण का रूप अनुपम, अद्वितीय है जो मन को हर लेता है, मोह लेता है। इसलिए वह कृष्ण के दर्शन के लिए तरसता है।

यह भक्ति हमें यह शिक्षा देती है कि ईश्वर प्रेम ही जीवन का आधार है। ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति से मनुष्य को शांति और आनंद मिलता है। ईश्वर की अनुपमता का अनुभव करने के लिए भक्त को सच्चे मन से भक्ति करनी चाहिए।


ईश्वर के दर्शन की इच्छा

दरस तेरा, प्रेम तेरा, आस है मेरी

भक्त कृष्ण के दर्शन और प्रेम की आस लगाए रहते हैं। वे जानते हैं कि कृष्ण ही उनके दुखों को दूर कर सकते हैं। भक्त की यह आशा ही उन्हें भक्ति मार्ग में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है।

Summary

इस प्रकार भजन की पंक्तियों को पढ़कर हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी कृष्ण के प्रति ऐसी ही भक्ति करनी चाहिए।

हमें कृष्ण को अपना सर्वस्व मानना चाहिए और उनकी भक्ति में डूब जाना चाहिए।

क्योंकि भक्ति हमें जीवन में सही मार्गदर्शन देती है, भक्ति हमें मोक्ष की प्राप्ति कराती है और हमें प्रेम, शांति और आनंद प्रदान करती है।


Krishna Bhajan



हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी भजन की पंक्तियों का आध्यात्मिक अर्थ

ये भजन गीत भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति की हार्दिक अभिव्यक्ति हैं।

हे गोपाल कृष्ण, करूँ आरती तेरी।
हे प्रिया पति, मैं करूँ आरती तेरी॥

“हे गोपाल कृष्ण, मैं अपनी पूरी भक्ति के साथ आपकी आरती करता हूं। हे प्यारे पति (प्रिया पति), मैं अपनी पूजा आपको अर्पित करता हूं।”

इन पंक्तियों में, भक्त भगवान कृष्ण को “गोपाल कृष्ण” कहकर संबोधित करते हैं, जो उनके लिए प्यारे नाम हैं। वे आरती करने का अपना इरादा व्यक्त करते हैं, जो भगवान् की प्रार्थना, भजन और पूजा करने का एक श्रद्धापूर्ण तरीका है। भक्त कृष्ण को अपना प्रिय मानते हैं और उनकी पूजा करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।

तुझपे कान्हा, बलि बलि जाऊं।
सांझ सवेरे, तेरे गुण गाउँ॥

“मैं खुद को तुम्हें अर्पित करता हूं, कान्हा (भगवान कृष्ण का दूसरा नाम)। दिन-रात, मैं तुम्हारी स्तुति गाता हूं।”

भक्त भगवान कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण और भक्ति व्यक्त करते हैं, खुद को पूरी तरह से उन्हें समर्पित करते हैं। वाक्यांश “बलि बलि जाऊं” पूर्ण समर्पण, भगवान को सब कुछ देने का प्रतीक है। भक्त सुबह और शाम दोनों समय लगातार कृष्ण के गुणों और महिमाओं की स्तुति करने और गाने की प्रतिज्ञा करता है।

प्रेम में रंगी, मैं रंगी भक्ति में तेरी।
हे गोपाल कृष्णा, करूँ आरती तेरी॥

“प्रेम से रंगा हुआ, मैं आपकी भक्ति में डूबा हुआ हूं। हे गोपाल कृष्ण, मैं आपको अपनी पूजा अर्पित करता हूं।”

भक्त कहते हैं कि उनका हृदय कृष्ण के प्रति प्रेम से भर गया है, और वे पूरी तरह से उनकी भक्ति में डूबे हुए हैं। “रंग” शब्द का तात्पर्य रंगे जाने से है, जो इस बात का प्रतीक है कि कैसे उनका पूरा अस्तित्व भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति से संतृप्त है। भक्त अपनी आध्यात्मिक यात्रा में पूजा के इस कार्य के महत्व को स्वीकार करते हुए, आरती करने के अपने इरादे को दोहराते हैं।

ये माटी का (मेरा) तन है तेरा, मन और प्राण भी तेरे।

“मेरा यह शरीर (मिट्टी से बना) आपका है, साथ ही मेरा मन और जीवन (प्राण) भी आपका है।”

भक्त स्वीकार करते हैं कि उनका भौतिक शरीर, सांसारिक पदार्थ (माटी) से बना है, अंततः भगवान कृष्ण का है। वे भौतिक पहलू से परे जाते हैं और अपना मन और जीवन शक्ति (प्राण) भी उन्हें अर्पित करते हैं, जो उनके संपूर्ण अस्तित्व के पूर्ण समर्पण का संकेत देता है।

मैं एक गोपी, तुम हो कन्हैया, तुम हो भगवन मेरे।

“मैं एक गोपी हूं, और आप मेरे प्यारे कन्हैया (भगवान कृष्ण का दूसरा नाम), मेरे दिव्य भगवान हैं।”

भक्त स्वयं को गोपी के रूप में पहचानते हैं, जो भगवान कृष्ण के गहरे भक्त का प्रतीक है। वे उन्हें प्यार से “कन्हैया” कहकर बुलाते हैं, जो कृष्ण के नामों में से एक है और अक्सर उनके चंचल और आकर्षक स्वभाव से जुड़ा होता है। वे कृष्ण को अपने दिव्य भगवान के रूप में स्वीकार करते हैं, उनके प्रति अपनी गहन भक्ति और प्रेम पर जोर देते हैं।

कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण रटे आत्मा मेरी,

“कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, तुम मेरी आत्मा में निवास करो।”

इन पंक्तियों में, भक्त बार-बार कृष्ण के नाम का जाप करते हैं, जो उनके साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाता है। उनका मानना है कि भगवान कृष्ण उनकी आत्मा में निवास करते हैं, जो एक अंतरंग आध्यात्मिक संबंध और परमात्मा के साथ एकता की भावना व्यक्त करते हैं।

कान्हा तेरा रूप अनुपम, मन को हरता जाये।

“कान्हा, आपका रूप अद्वितीय है, यह मेरा मन चुरा लेता है।”

भक्त भगवान कृष्ण के दिव्य रूप की स्तुति करते हुए उसे अतुलनीय बताते हैं। वे कृष्ण की दिव्य सुंदरता से मोहित और मंत्रमुग्ध महसूस करते हैं, और उनका दिल उनके रूप पर विचार करने में पूरी तरह से लीन हो जाता है।

मन ये चाहे हरपल अंखियां, तेरा दर्शन पाये।

“मेरा दिल हर पल आपकी दिव्य उपस्थिति को देखना चाहता है, और मेरी आँखें आपको देखने के लिए तरसती हैं।”

भक्त लगातार अपने साथ कृष्ण की दिव्य उपस्थिति पाने की अपनी अंतरतम इच्छा व्यक्त करते हैं। उनका हृदय कृष्ण के आध्यात्मिक दर्शन के लिए तरसता है, और वे उनके दर्शन (पवित्र झलक) पाने के लिए तरसते हैं।

दरस तेरा, प्रेम तेरा, आस है मेरी,

“आपका दिव्य दर्शन, आपका प्रेम, मेरी आकांक्षाएं हैं।”

भक्त स्वीकार करते हैं कि उनकी अंतिम आकांक्षाएँ भगवान कृष्ण के दर्शन और उनके दिव्य प्रेम का अनुभव करने में निहित हैं। वे उसकी कृपा और स्नेह में डूबे रहना चाहते हैं, यह पहचानते हुए कि ऐसा संबंध उनकी आध्यात्मिक इच्छाओं का शिखर है।

संक्षेप में, ये भजन गीत भक्त के भगवान कृष्ण के प्रति गहरे प्रेम, भक्ति और समर्पण को दर्शाते हैं। वे कृष्ण को सर्वोच्च भगवान के रूप में पहचानते हैं और उनके साथ घनिष्ठ संबंध महसूस करते हैं।

भक्तों की हार्दिक अभिव्यक्ति कृष्ण के साथ जुड़ने, उनके दिव्य रूप को देखने और उनके बिना शर्त प्यार का अनुभव करने की उनकी लालसा को दर्शाती है। वे भक्ति और समर्पण के रूप में आरती करने की इच्छा व्यक्त करते हैं, कृष्ण के दिव्य गुणों की प्रशंसा करते हैं और उनके प्रति अपने प्रेम की घोषणा करते हैं। गीत आध्यात्मिक संबंध और भक्त के प्रिय देवता, भगवान कृष्ण के साथ जुड़ने की लालसा को दर्शाते हैं।


Janme Hai Krishna Kanhai Gokul Mein Baje Badhai – Lyrics in Hindi


जन्मे है कृष्ण कन्हाई, गोकुल में देखो बाजे बधाई

बधाई हो बधाई..
जन्मे है कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई।

बाजे बधाई, देखो बाजे बधाई,
बाजे बधाई, देखो बाजे बधाई।

जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई॥


हे कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा।


यमुना भी धन्य हुई,
छूके चरण को।
लेके वासुदेव चले,
प्यारे ललन को॥

वो दिए कान्हा को ब्रज पहुंचाए।
गोकुल में देखो बाजे बधाई॥

जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई॥


हे कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा।


धन्य हुई ये ब्रजभूमि सारी,
त्रिलोकी नाथ जन्मे कृष्ण मुरारी।

ओ सारी नगरी है आज हरषाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई॥

जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई॥


हे कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी,
हे नाथ नारायण वासुदेवा।


अन्न धन लुटावे बाबा,
पायल और छल्ला।

लड्डूवा बटें और पेड़ा,
बर्फी रसगुल्ला॥

देखो, मैया तो फूली ना समाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई।

जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई॥


दाऊ लुटावे सोना,
चांदी और जेवर।
छाया आनंद आज,
खुशियां है घर घर॥

वो देख देख हसते है कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई।

जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई॥


जन्मे है कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई।

बाजे बधाई देखो बाजे बधाई,
बाजे बधाई देखो बाजे बधाई।

जन्मे हैं कृष्ण कन्हाई,
गोकुल में देखो बाजे बधाई॥


Janme Hai Krishna Kanhai Gokul Mein Baje Badhai

Rakesh Kala


Krishna Bhajan



Mera Gopal Jhule Palana – Lyrics in Hindi


मेरा गोपाल झूले पलना

मेरा गोपाल झूले पलना,
मदन गोपाल झूले पलना।

मेरा गोपाल झूले पलना,
मदन गोपाल झूले पलना।


काहे को सखी बनो रे पालनो,
काहे की बाँधी डोरी।
सोने को पलना, रेशम की डोरी,
चित्त करत है चोरी,

पलना ललना दोनों से ही,
नजर हटे ना एक पल ना॥
हो, नजर हटे ना एक पल ना

मेरा गोपाल झूले पलना,
मदन गोपाल झूले पलना।


कौन लल्ला को पलना झुलावे,
लोरी कौन सुनावे।
नंदलाल जी पलना झुलावे,
जसोदा लोरी गावे।

रंग सांवरो, सुघड़ लाल छब,
जाने हंस हंस छलना॥

मेरा गोपाल झूले पलना,
मदन गोपाल झूले पलना।

मेरा गोपाल झूले पलना,
मदन गोपाल झूले पलना।


Mera Gopal Jhule Palana


Krishna Bhajan