अम्बे तू है जगदम्बे काली – माँ दुर्गा आरती | माँ काली आरती


1. अम्बे तू है जगदम्बे काली – माँ दुर्गा आरती

1.

अम्बे तू है जगदम्बे काली,
जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥


2.

तेरे भक्त जनों पे माता,
भीर पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पडो माँ,
करके सिंह सवारी॥

सौ सौ सिंहों से तु बलशाली,
अष्ट भुजाओं वाली।
दुष्टों को पल में संहारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥


3.

माँ बेटे का है इस जग में,
बड़ा ही निर्मल नाता।
पूत कपूत सूने हैं पर,
ना माता सुनी कुमाता॥

सब पे करुणा बरसाने वाली,
अमृत बरसाने वाली।
दुखियों के दुखडे निवारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥


4.

नहीं मांगते धन और दौलत,
ना चाँदी, ना सोना।
हम तो मांगे माँ तेरे मन में,
इक छोटा सा कोना॥

सबकी बिगडी बनाने वाली,
लाज बचाने वाली।
सतियों के सत को संवारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥


1.

अम्बे तू है जगदम्बे काली,
जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥

ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥


2.अम्बे तू है जगदम्बे काली – माँ काली आरती

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥

तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी॥
सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, अष्ट भुजाओं वाली।
दुष्टों को पल में संहारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥

माँ बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता।
पूत कपूत सूने हैं पर, ना माता सुनी कुमाता॥
सब पे करुणा बरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली।
दुखियों के दुखडे निवारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥

नहीं मांगते धन और दौलत, ना चाँदी, ना सोना।
हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना॥
सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली।
सतियों के सत को संवारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी


1.

जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिव री॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


2.

मांग सिंदूर बिराजत,
टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


3.

कनक समान कलेवर,
रक्ताम्बर राजै।
रक्त-पुष्प गल माला,
कंठन पर साजै॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


4.

केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी।
सुर-नर मुनि-जन सेवत,
तिनके दुःखहारी॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


5.

कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर,
राजत सम ज्योति॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


6.

शुम्भ निशुम्भ बिदारे,
महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना,
निशिदिन मदमाती॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


7.

चण्ड मुण्ड संहारे,
शोणितबीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे,
सुर भयहीन करे॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


8.

ब्रम्हाणी रुद्राणी,
तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


9.

चौंसठ योगिनि गावत,
नृत्य करत भैरूं।
बाजत ताल मृदंगा,
औ बाजत डमरू॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


10.

तुम ही जगकी माता,
तुम ही हो भरता।
भक्तनकी दुःख हरता,
सुख सम्पति करता॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


11.

भुजा चार अति शोभित,
खड्ग खप्पर धारी।
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


12.

कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती।
(श्री) मालकेतुमें राजत,
कोटिरतन ज्योति॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


13.

(श्री) अम्बेजी की आरती,
जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख सम्पत्ति पावै॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥


1.

जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिव री॥
॥मैया जय अम्बे गौरी॥

ॐ जय लक्ष्मी माता – लक्ष्मी जी की आरती


1.

ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता।
तुम को निश दिन सेवत,
मैय्याजी को निस दिन सेवत,
हर-विष्णु-धाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥


2.

उमा, रमा, ब्रह्माणी,
तुम ही जग-माता,
मैया, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता॥
॥ओम जय लक्ष्मी माता॥


3.

दुर्गा रूप निरंजनि,
सुख-सम्पति दाता,
मैया, सुख-सम्पति दाता।
जो कोई तुमको ध्याता,
ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
॥ओम जय लक्ष्मी माता॥


4.

तुम पाताल निवासिनी,
तुम ही शुभ दाता,
मैया, तुम ही शुभ दाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी,
भव निधि की त्राता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥


5.

जिस घर तुम रहती,
सब सद्‍गुण आता,
मैया, सब सद्‍गुण आता।
सब संभव हो जाता,
मन नहीं घबराता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥


6.

तुम बिन यज्ञ न होवे (होते) ,
वस्त्र न कोई पाता,
मैया, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव,
सब तुमसे आता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥


7.

शुभ गुण मंदिर सुंदर,
क्षीरोदधि जाता,
मैया, क्षीरोदधि जाता।
रत्न-चतुर्दश तुम बिन,
कोई नहीं पाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥


8.

महालक्ष्मी(जी) की आरती,
जो कोई नर गाता,
मैया, जो कोई नर गाता।
उर आनंद समाता,
पाप उतर जाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥


1.

ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता।
तुम को निश दिन सेवत,
हर-विष्णु-धाता॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय


1.

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


2.

तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


3.

आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


4.

अविकारी, अघहारी, सकल कलाधारी।
कर्ता विधि भर्ता हरि हर संहारकारी॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


5.

तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


6.

राम, कृष्ण, तू सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाँछा कल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


7.

दश विद्या, नव दुर्गा, नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


8.

तू परधाम निवासिनि, महा-विलासिनि तू।
तू ही शमशान विहारिणि, ताण्डव लासिनि तू॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


9.

सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी धारा॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


10.

तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


11.

मूलाधार निवासिनि, इहपर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वर दे॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


12.

शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले वेदत्रयी॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


13.

हम अति दीन दुखी माँ, विपट जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


14.

निज स्वभाववश जननी, दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी, चरण शरण दीजै॥

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥


15.

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥

दुर्गा चालीसा – नमो नमो दुर्गे सुख करनी


1.

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥

2.

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूँ लोक फैली उजियारी॥


3.

शशि ललाट, मुख महाविशाला।
नेत्र लाल, भृकुटि विकराला॥

4.

रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥


5.

तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥

6.

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥


7.

प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

8.

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥


9.

रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥


10.

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥

11.

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥


12.

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥

13.

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥


14.

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥

15.

मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

16.

श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥


17.

केहरि वाहन सोहे भवानी।
लंगुर वीर चलत अगवानी॥

18.

कर में खप्पर खड्ग विराजे।
जाको देख काल डर भाजे॥


19.

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

20.

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुँलोक में डंका बाजत॥


21.

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥

22.

महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥


23.

रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

24.

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥


25.

अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥

26.

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥


27.

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

28.

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥


29.

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

30.

शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥


31.

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

32.

शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥


33.

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

34.

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥


35.

मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

36.

आशा तृष्णा निपट सतावें।
मोह मदादिक सब बिनशावें॥


37.

शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

38.

करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला॥


39.

जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ॥

40.

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥


41.

देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥


1.

दुर्गति नाशिनि दुर्गा जय जय,
काल विनाशिनि काली जय जय।
उमा रमा ब्रह्माणि जय जय,
राधा-सीता-रुक्मिणि जय जय॥


2.

जय जय दुर्गा, जय माँ तारा।
जय गणेश, जय शुभ-आगारा॥
जयति शिवा-शिव जानकि-राम।
गौरी-शंकर सीताराम॥

भोर भई दिन चढ़ गया – माँ वैष्णो देवी आरती


1.

भोर भई दिन चढ़ गया, मेरी अम्बे
हो रही जय जय कार मंदिर विच
आरती जय माँ
हे दरबारा वाली, आरती जय माँ
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ


2.

काहे दी मैया तेरी, आरती बनावा
काहे दी मैया तेरी, आरती बनावा
काहे दी पावां विच, बाती मंदिर विच
आरती जय माँ

सुहे चोलेयाँवाली आरती जय माँ
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ


3.

सर्व सोने दी तेरी, आरती बनावा
सर्व सोने दी तेरी, आरती बनावा
अगर कपूर पावां, बाती मंदिर विच
आरती जय माँ

हे माँ पिंडी रानी, आरती जय माँ
हे पहाड़ा वाली, आरती जय माँ


4.

कौन सुहागन दिवा, बालेया मेरी मैया
कौन सुहागन दिवा, बालेया मेरी मैया
कौन जागेगा सारी, रात मंदिर विच
आरती जय माँ

सच्चियाँ ज्योतां वाली, आरती जय माँ
हे पहाड़ा वाली, आरती जय माँ


5.

सर्व सुहागिन दिवा, बालेया मेरी मैया
सर्व सुहागिन दिवा, बालेया मेरी मैया
ज्योत जागेगी सारी रात मंदिर विच
आरती जय माँ

हे माँ त्रिकुटा रानी, आरती जय माँ
हे पहाड़ा वाली, आरती जय माँ


6.

जुग जुग जीवे तेरा, जम्मुए दा राजा
जुग जुग जीवे तेरा, जम्मुए दा राजा
जिस तेरा भवन बनाया मंदिर विच
आरती जय माँ

हे मेरी अम्बे रानी, आरती जय माँ
हे पहाड़ा वाली, आरती जय माँ


7.

सिमर चरण तेरा, ध्यानु यश गावें
जो ध्यावे सो, यो फल पावे
रख बाणे वाली, लाज मंदिर विच
आरती जय माँ

सोहनेया मंदिरां वाली आरती जय माँ
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ


1.

भोर भई दिन चढ़ गया, मेरी अम्बे
भोर भई दिन चढ़ गया, मेरी अम्बे
हो रही जय जयकार मंदिर विच
आरती जय माँ

हे दरबारा वाली, आरती जय माँ
हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ

जय सन्तोषी माता – सन्तोषी माता आरती


1.

जय सन्तोषी माता,
मैया सन्तोषी माता।
अपने सेवक जन की,
सुख सम्पत्ति दाता॥
॥जय सन्तोषी माता॥


2.

सुन्दर चीर सुनहरी,
माँ धारण कीन्हों।
हीरा पन्ना दमके,
तन श्रृंगार कीन्हों॥
॥जय सन्तोषी माता॥


3.

गेरू लाल छटा छवि,
बदन कमल सोहे।
मन्द हंसत करुणामयी,
त्रिभुवन मन मोहे॥
॥जय सन्तोषी माता॥


4.

स्वर्ण सिंहासन बैठी,
चंवर ढुरें प्यारे।
धूप दीप मधुमेवा,
भोग धरें न्यारे॥
॥जय सन्तोषी माता॥


5.

गुड़ अरु चना परमप्रिय,
ता मे संतोष कियो।
सन्तोषी कहलाई,
भक्तन वैभव दियो॥
॥जय सन्तोषी माता॥


6.

शुक्रवार प्रिय मानत,
आज दिवस सोही।
भक्त मण्डली छाई,
कथा सुनत मोही॥
॥जय सन्तोषी माता॥


7.

मंदिर जगमग ज्योति,
मंगल ध्वनि छाई।
विनय करें हम सेवक,
चरनन सिर नाई॥
॥जय सन्तोषी माता॥


8.

भक्ति भावमय पूजा,
अंगीकृत कीजै।
जो मन बसै हमारे,
इच्छा फल दीजै॥
॥जय सन्तोषी माता॥


9.

दुखी, दरिद्री, रोगी,
संकट मुक्त किये।
बहु धन-धान्य भरे घर,
सुख सौभाग्य दिये॥
॥जय सन्तोषी माता॥


10.

ध्यान धर्यो जिस जन ने,
मनवांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर,
घर आनन्द आयो॥
॥जय सन्तोषी माता॥


11.

शरण गहे की लज्जा,
रखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे,
दयामयी अम्बे॥
॥जय सन्तोषी माता॥


12.

सन्तोषी माता की आरती,
जो कोई जन गावे।
ऋद्धि-सिद्धि, सुख-सम्पत्ति,
जी भरकर पावे॥
॥जय सन्तोषी माता॥


1.

जय सन्तोषी माता,
मैया सन्तोषी माता।
अपने सेवक जन की,
सुख सम्पत्ति दाता॥
॥जय सन्तोषी माता॥

दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी


1.

दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी।
अनाथ नाथे अम्बे करुणा विस्तारी।
वारी वारी जन्म मरणांते वारी।
हारी पडलो आता संकट निवारी॥
॥जय देवी जय देवी॥


2.

जय देवी, जय देवी, महिषासुरमथिनी।
सुरवर ईश्वर वरदे तारक संजीवनी॥
॥जय देवी, जय देवी॥


3.

त्रिभुवन-भुवनी पाहता तुज ऐसी नाही।
चारी श्रमले परन्तु न बोलवे काही।
साही विवाद करिता पडले प्रवाही।
ते तू भक्तालागी पावसि लवलाही॥
॥जय देवी, जय देवी॥


4.

जय देवी, जय देवी, महिषासुर-मथिनी।
सुरवर ईश्वर वरदे तारक संजीवनी॥
॥जय देवी, जय देवी॥


5.


प्रसन्न वदने प्रसन्न होसी निजदासा।
क्लेशांपासुनि सोडवि तोडी भवपाशा।
अम्बे तुजवाचून कोण पुरविल आशा।
नरहरी तल्लिन झाला पदपंकजलेशा॥
॥जय देवी जय देवी॥


6.

जय देवी, जय देवी, महिषासुरमथिनी।
सुरवर ईश्वर वरदे तारक संजीवनी॥
॥जय देवी, जय देवी॥


7.

दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी।
अनाथ नाथे अम्बे करुणा विस्तारी।
॥जय देवी जय देवी॥

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा – कालीमाता की आरती


1.

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा,
हाथ जोड तेरे द्वार खडे।
पान सुपारी ध्वजा नारियल
ले ज्वाला तेरी भेट धरे॥


2.

सुन जगदम्बे न कर विलम्बे,
संतन के भडांर भरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली,
जय काली कल्याण करे॥


3.

बुद्धि विधाता तू जग माता,
मेरा कारज सिद्व करे।
चरण कमल का लिया आसरा,
शरण तुम्हारी आन पडे॥


4.

जब जब भीड पडी भक्तन पर,
तब तब आप सहाय करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशाली,
जय काली कल्याण करे॥


5.

गुरु के वार सकल जग मोहयो,
तरुणी रूप अनूप धरे।
माता होकर पुत्र खिलावे,
कही भार्या भोग करे॥


6.

शुक्र सुखदाई सदा सहाई,
संत खडे जयकार करे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली,
जय काली कल्याण करे॥


7.

ब्रह्मा विष्णु महेश फल लिये,
भेट देन तेरे द्वार खडे।
अटल सिहांसन बैठी मेरी माता,
सिर सोने का छत्र फिरे॥


8.

वार शनिचर कुकम बरणो,
जब लुंकड़ पर हुकुम करे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशाली,
जै काली कल्याण करे॥


9.

खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये,
रक्त बीज को भस्म करे।
शुम्भ निशुम्भ को क्षण में मारे,
महिषासुर को पकड दले॥
(रक्त बीज, शुम्भ निशुम्भ और महिषासुर वध के बारे में विस्तार से जानने के लिए – दुर्गा सप्तशती अर्थ सहित पढ़े – दुर्गा सप्तशती)


10.

आदित वारी आदि भवानी,
जन अपने को कष्ट हरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली,
जय काली कल्याण करे॥


11.

कुपित होकर दानव मारे,
चण्डमुण्ड सब चूर करे।
जब तुम देखी दया रूप हो,
पल में सकंट दूर करे॥


12.

सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता,
जन की अर्ज कबूल करे।
सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली,
जय काली कल्याण करे॥


13.

सात बार की महिमा बरनी,
सब गुण कौन बखान करे।
सिंह पीठ पर चढी भवानी,
अटल भवन में राज्य करे॥


14.

दर्शन पावे मंगल गावे,
सिद्ध साधक तेरी भेट धरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली,
जय काली कल्याण करे॥


15.

ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे,
शिव शंकर हरी ध्यान धरे।
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती,
चंवर कुबेर डुलाय रहे॥


16.

जय जननी जय मातु भवानी,
अटल भवन में राज्य करे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली,
जय काली कल्याण करे॥


1.

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा,
हाथ जोड तेरे द्वार खडे।
पान सुपारी ध्वजा नारियल
ले ज्वाला तेरी भेट धरे॥


2.

सुन जगदम्बे न कर विलम्बे,
संतन के भडांर भरे।
संतन प्रतिपाली सदा खुशहाली,
जय काली कल्याण करे॥

Ambe Tu Hai Jagdambe Kali – Lyrics in Hindi with Meanings


अम्बे तू है जगदम्बे काली – माता की आरती

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥


तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी॥
सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, अष्ट भुजाओं वाली।
दुष्टों को पल में संहारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥


माँ बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता।
पूत कपूत सूने हैं पर, ना माता सुनी कुमाता॥
सब पे करुणा बरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली।
दुखियों के दुखडे निवारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥


नहीं मांगते धन और दौलत, ना चाँदी, ना सोना।
हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना॥
सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली।
सतियों के सत को संवारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥


अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती,
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥
ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥


Ambe Tu Hai Jagdambe Kali – Durga Maa Ki Aarti

Anuradha Paudwal

Narendra Chanchal


Durga Bhajan



अम्बे तू है जगदम्बे काली आरती के पंक्तियों का महत्व

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।

यह पंक्ति माँ दुर्गा की शक्ति और भव्यता का वर्णन करती है। माँ दुर्गा को जगत की माँ और दुष्टों का नाश करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। खप्पर धारण करना उनकी शक्ति और वीरता का प्रतीक है।

तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥

यह पंक्ति माँ दुर्गा के गुणों और उनकी स्तुति का वर्णन करती है। भक्त माँ दुर्गा की आरती उतारकर उनका सम्मान और आभार व्यक्त करते हैं।

तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी।

यह पंक्ति माँ दुर्गा के प्रति भक्तों की भक्ति और समर्पण को दर्शाती है। माँ दुर्गा के भक्त उनकी शरण में आते हैं और उनसे सहायता प्राप्त करते हैं।

दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी॥

यह पंक्ति माँ दुर्गा की शक्ति और वीरता का वर्णन करती है। माँ दुर्गा सिंह पर सवार होकर राक्षसों का नाश करती हैं।

सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, अष्ट भुजाओं वाली।

यह पंक्ति माँ दुर्गा की शक्ति और भव्यता का वर्णन करती है। माँ दुर्गा सौ सिंहों से भी अधिक शक्तिशाली हैं और उनके आठ हाथ हैं, जो उनकी शक्ति और बहुमुखी प्रतिभा का प्रतीक हैं।

दुष्टों को पल में संहारती, ओ मैया, हम सब उतारें तेरी आरती॥

यह पंक्ति माँ दुर्गा की शक्ति और न्यायप्रियता का वर्णन करती है। माँ दुर्गा दुष्टों का नाश करती हैं और अच्छे लोगों की रक्षा करती हैं। भक्त माँ दुर्गा की आरती उतारकर उनका आभार व्यक्त करते हैं।

दुष्टों को पल में संहारती

यह पंक्ति इस बात पर जोर देती है कि देवी दुष्ट (दुष्टो) शक्तियों या नकारात्मक ऊर्जाओं को तुरंत नष्ट (संहाराति) करने में सक्षम हैं।

माँ बेटे का है इस जग में, बड़ा ही निर्मल नाता।

इस पंक्ति में, भक्त स्वीकार करती है कि एक माँ और उसके बच्चे के बीच का रिश्ता शुद्ध और विशेष होता है। इस रिश्ते को पवित्र और बेदाग होने पर जोर दिया जाता है।

पूत कपूत सूने हैं पर, ना माता सुनी कुमाता॥

यह पंक्ति कहती है कि बच्चे दूर हो सकते हैं, लेकिन एक माँ का अपने बच्चों के प्रति स्नेह और चिंता कभी कम नहीं होती है। भले ही उसके बच्चे दूर हों, माँ की मातृ प्रवृत्ति और उनके लिए प्यार बना रहता है।

सब पे करुणा बरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली।

ये पंक्तियाँ एक दयालु देवी के रूप में देवी दुर्गा की विशेषताओं को उजागर करती हैं जो अपने भक्तों पर करुणा बरसाती है और को दयालुता का मार्ग दिखाती हैं, और उन्हें अपनी कृपा का अमृत की तरह आशीर्वाद देती हैं।

दुखियों के दुखडे निवारती

यहां, भजन इस बात पर जोर देता है कि देवी दुर्गा दुखियों के दुख और परेशानियों को कम करती हैं। वह दर्द और पीड़ा से राहत दिलाने का काम करती है।

नहीं मांगते धन और दौलत, ना चाँदी, ना सोना।

यह पंक्ति दर्शाती है कि देवी दुर्गा के भक्त भौतिक धन, या सोने और चांदी जैसी कीमती धातुओं की तलाश नहीं करते हैं। वे भौतिक संपत्ति से अधिक आध्यात्मिक आशीर्वाद को महत्व देते हैं।

हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना॥

ये पंक्तियाँ भक्तों की विनम्र इच्छाओं को व्यक्त करती हैं, जिसमें कहा गया है कि वे देवी के हृदय के भीतर केवल एक छोटा सा कोना (कोना) माँगते हैं, जो भक्ति और संबंध के लिए स्थान का प्रतीक है।

सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली।

ये पंक्तियाँ देवी दुर्गा की स्तुति करती हैं, जो टूटी हुई स्थितियों को सुधारती हैं और जो अपने भक्तों के सम्मान और गरिमा (लाज) की रक्षा करती हैं।

सतियों के सत को संवारती

यह पंक्ति धार्मिक और सदाचारी व्यक्तियों के सत्य (सत्) के पोषण और संरक्षण में देवी दुर्गा की भूमिका को स्वीकार करती है।

यह आरती देवी की शक्ति, करुणा और परोपकार के लिए स्तुति करती है, और उनसे आशीर्वाद और अनुग्रह मांगता है।

इन पंक्तियों में, भजन देवी दुर्गा के मातृ और दयालु स्वभाव के सार के साथ-साथ अपने भक्तों को सुरक्षा, मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्रदान करने में उनकी भूमिका को दर्शाता है।

कुल मिलाकर, ये गीत देवी दुर्गा की अपार शक्ति, सुरक्षात्मक प्रकृति और उनके अनुयायियों की भक्ति की तस्वीर पेश करते हैं। यह भजन भक्तों के लिए अपनी श्रद्धा व्यक्त करने, उनका आशीर्वाद लेने और उनके दिव्य गुणों से शक्ति और साहस प्राप्त करने का एक तरीका है।


Durga Bhajan