Sankat Nashan Ganesh Stotra – with Meaning


Ganesh Bhajan

संकटनाशन गणेश स्तोत्रं – अर्थसहित


नारद उवाच,
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थ सिद्धये॥१॥
  • नारद जी कहते हैं,
  • पार्वतीनन्दन श्रीगणेश जी को सिर झुकाकर प्रणाम करे। और फिर
  • अपनी आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये उन भक्तनिवासका (श्रीगणेशजीका) नित्य स्मरण करें
प्रथमं वक्रतुंण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥॥२॥
  • पहला वक्रतुण्ड, दूसरा एकदन्त
  • तीसरा कृष्णपिंगाक्ष, चौथा गजवक्त्र

(कृष्णपिंगाक्ष – काली और भूरी आंखोवाले
गजवक्त्रं – हाथीके से मुखवाले)

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥
  • पाँचवां लम्बोदर, छठा विकट,
  • सातवाँ विघ्नराजेन्द्र, आठवाँ धूम्रवर्णं

(लम्बोदर – बड़े पेटवाले
विकट – विकराल
विघ्नराजेन्द्र – विघ्नोका नाश करने वाले राजाधिराज)

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु गजाननम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥
  • नवाँ भालचन्द्र, दसवाँ विनायक,
  • ग्यारहवाँ गणपति और बारहवाँ गजानन

(भालचन्द्र – जिसके ललाटपर चंद्रमा सुशोभित है)

द्वादशैतानि नामामि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥
  • इन बारह नामों का जो व्यक्ति तीनों संध्याओं में (प्रात:, मध्याह्न और सायंकाल में) पाठ करता है,
  • उसे किसी भी तरह के विघ्न का भय नहीं रहता है। इस प्रकार का स्मरण सब प्रकार की सिद्धियाँ देनेवाला है।
विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्-मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥
  • इससे विद्याभिलाषी (विद्यार्थी) विद्या, धनार्थी (धन के अभिलाषी) धन,
  • पुत्रार्थी (पुत्र की इच्छा वाले) पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्षगति प्राप्त कर लेता है।
जपेद गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥७॥
  • इस गणपति स्तोत्रका जप करे तो छह महीने में इच्छित फल प्राप्त होता है और
  • एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है, इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है.
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥८॥
  • जो पुरुष इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है,
  • गणेशजी की कृपासे उसे सब प्राकरकी विद्या प्राप्त हो जाती है।
Shri Ganesh Mantra
Shri Ganesh Mantra

॥इति श्रीनारदपुराणे श्रीसंकटनाशन
गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम॥॥
  • इस प्रकार श्रीनारद पुराण में लिखा श्रीसंकटनाशनगणेशस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ.

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अष्टविनायक दर्शन (Ashtavinayak Darshan)

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Sankat Nashan Ganesh Stotra

Ketan Patwardhan

संकटनाशन गणेश स्तोत्रं


नारद उवाच:

प्रणम्य शिरसा देवं
गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं
आयुःकामार्थ सिद्धये॥१॥


प्रथमं वक्रतुंण्डं
एकदन्तं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं
गजवक्त्रं चतुर्थकम॥॥२॥


लम्बोदरं पंचमं च
षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं
(सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं)
धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥


नवमं भालचन्द्रं
दशमं तु गजाननम्
एकादशं गणपतिं
द्वादशं तु गजाननम्॥४॥


द्वादशैतानि नामामि
त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य
सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥


विद्यार्थी लभते विद्यां,
धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्-
-मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥


जपेद गणपतिस्तोत्रं
षडभिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च
लभते नात्र संशय:॥७॥


अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च
लिखित्वा य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा
गणेशस्य प्रसादत:॥८॥

Sankat Nashan Ganesh Stotra

॥इति श्रीनारदपुराणे श्रीसंकटनाशन
गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम॥॥

Sankat Nashan Ganpati Stotra

Narada Uvacha:

Pranamya Shirasa Devam
Gauri Putram Vinayakam

Bhaktavasam Smaren-nityam
Ayuh-kamartha Siddhaye ||1||


Prathamam Vakratundam Cha
Ekadantam Dwitiyakam

Thritiyam Krishna Pingaaksham
Gajavaktram Chaturthakam ||2||


Lambodaram Panchamam Cha
Shashtam Vikatameva Cha

Saptamam Vighnarajam cha
(Saptamam Vighnarajendram)
Dhoomravarnam Thathashtamam ||3||


Navamam Bhal-chandram Cha
Dashamam Tu Vinayakam

Ekadasham Ganapatim
Dwadasham Tu Gajananam ||4|


Dwadashaitani Namani
Trisandhyam Yah Pathen-narah

Na Cha Vighna Bhayam Tasya
Sarvasiddhi Karam Prabho ||5||


Vidyarthi Labhate Vidyam
Dhanarthi Labhate Dhanam

Putrarthi Labhate Putraam
Moksharthi Labhate Gatim ||6||


Japeth Ganapathi Stotram
Shadbhir Masaihe Phalam Labheth

Samvatsarena Siddhim Cha
Labhate Nathra Samshayaha ||7||


Ashtabhyo Brahmanebhyash Cha
Likhitwa Yah Samarpayeth

Thasya Vidya Bhavet-sarva
Ganeshasya Prasad-tahaa ||8||

Sankat Nashan Ganesh Stotra
Shri Ganesh Stotra

|| Iti Shri Narad Purane Sankashtanashanam
Ganesh Stotram Sampurnam ||

Ganesh Bhajans

Sant Kabir ke Dohe – Sumiran + Meaning


कबीर के दोहे – सुमिरन + अर्थसहित

Sumiran – Kabir ke Dohe – (Arth sahit)


दु:ख में सुमिरन सब करै,
सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करै,
तो दु:ख काहे को होय॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • दु:ख में सुमिरन सब करै – आमतौर पर मनुष्य ईश्वर को दुःख में याद करता है।
  • सुख में करै न कोय – सुख में ईश्वर को भूल जाते है
  • जो सुख में सुमिरन करै – यदि सुख में भी इश्वर को याद करे
  • तो दु:ख काहे को होय – तो दुःख निकट आएगा ही नहीं

काह भरोसा देह का,
बिनसी जाय छिन मांहि।
सांस सांस सुमिरन करो
और जतन कछु नाहिं॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • कहा भरोसा देह का – इस शरीर का क्या भरोसा है
  • बिनसी जाय छिन मांहि – किसी भी क्षण यह (शरीर) हमसे छीन सकता है (1), इसलिए
  • सांस सांस सुमिरन करो – हर साँस में ईश्वर को याद करो
  • और जतन कछु नाहिं – इसके अलावा मुक्ति का कोई दूसरा मार्ग नहीं है

कबीर सुमिरन सार है,
और सकल जंजाल।
आदि अंत मधि सोधिया,
दूजा देखा काल॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • कबीर सुमिरन सार है – कबीरदासजी कहते हैं कि सुमिरन (ईश्वर का ध्यान) ही मुख्य है,
  • और सकल जंजाल – बाकी सब मोह माया का जंजाल है
  • आदि अंत मधि सोधिया – शुरू में, अंत में और मध्य में जांच परखकर देखा है,
  • दूजा देखा काल – सुमिरन के अलावा बाकी सब काल (दुःख) है
    (सार – essence – सारांश, तत्त्व, मूलतत्त्व)

राम नाम सुमिरन करै,
सतगुरु पद निज ध्यान।
आतम पूजा जीव दया,
लहै सो मुक्ति अमान॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • राम नाम सुमिरन करै – जो मनुष्य राम नाम का सुमिरन करता है (इश्वर को याद करता है)
  • सतगुरु पद निज ध्यान – सतगुरु के चरणों का निरंतर ध्यान करता है
  • आतम पूजा – अंतर्मन से ईश्वर को पूजता है
  • जीव दया – सभी जीवो पर दया करता है
  • लहै सो मुक्ति अमान – वह इस संसार से मुक्ति (मोक्ष) पाता है।

सुमिरण मारग सहज का,
सतगुरु दिया बताय।
सांस सांस सुमिरण करूं,
इक दिन मिलसी आय॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • सुमिरण मारग सहज का – सुमिरण का मार्ग बहुत ही सहज और सरल है
  • सतगुरु दिया बताय – जो मुझे सतगुरु ने बता दिया है
  • सांस सांस सुमिरण करूं – अब मै हर साँस में प्रभु को याद करता हूँ
  • इक दिन मिलसी आय – एक दिन निश्चित ही मुझे ईश्वर के दर्शन होंगे

सुमिरण की सुधि यौ करो,
जैसे कामी काम।
एक पल बिसरै नहीं,
निश दिन आठौ जाम॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • सुमिरण की सुधि यौ करो – ईश्वर को याद इस प्रकार करो
  • जैसे कामी काम – जैसे कामी पुरुष हर समय विषयो के बारे में सोचता है
  • एक पल बिसरै नहीं – एक पल भी व्यर्थ मत गवाओ
  • निश दिन आठौ जाम – रात, दिन, आठों पहर प्रभु परमेश्वर को याद करो

बिना साँच सुमिरन नहीं,
बिन भेदी भक्ति न सोय।
पारस में परदा रहा,
कस लोहा कंचन होय॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • बिना सांच सुमिरन नहीं – बिना ज्ञान के प्रभु का स्मरण (सुमिरन) नहीं हो सकता और
  • बिन भेदी भक्ति न सोय – भक्ति का भेद जाने बिना सच्ची भक्ति नहीं हो सकती
  • पारस में परदा रहा – जैसे पारस में थोडा सा भी खोट हो
  • कस लोहा कंचन होय – तो वह लोहे को सोना नहीं बना सकता.
    • यदि मन में विकारों का खोट हो तो मनुष्य सच्चे मन से सुमिरन नहीं कर सकता

दर्शन को तो साधु हैं,
सुमिरन को गुरु नाम।
तरने को आधीनता,
डूबन को अभिमान॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • दर्शन को तो साधु हैं – दर्शन के लिए सन्तों का दर्शन श्रेष्ठ हैं और
  • सुमिरन को गुरु नाम – सुमिरन के लिए (चिन्तन के लिए) गुरु व्दारा बताये गये नाम एवं गुरु के वचन उत्तम है
  • तरने को आधीनता – भवसागर (संसार रूपी भव) से पार उतरने के लिए आधीनता अर्थात विनम्र होना अति आवश्यक है
  • डूबन को अभिमान – लेकिन डूबने के लिए तो अभिमान, अहंकार ही पर्याप्त है (अर्थात अहंकार नहीं करना चाहिए)

लूट सके तो लूट ले,
राम नाम की लूट।
पाछे फिर पछ्ताओगे,
प्राण जाहिं जब छूट॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • लूट सके तो लूट ले – अगर लूट सको तो लूट लो
  • राम नाम की लूट – अभी राम नाम की लूट है,
    • अभी समय है, तुम भगवान का जितना नाम लेना चाहते हो ले लो
  • पाछे फिर पछ्ताओगे – यदि नहीं लुटे तो बाद में पछताना पड़ेगा
  • प्राण जाहिं जब छूट – जब प्राण छुट जायेंगे

आदि नाम पारस अहै,
मन है मैला लोह।
परसत ही कंचन भया,
छूटा बंधन मोह॥

अर्थ (Meaning in Hindi):

  • आदि नाम पारस अहै – ईश्वर का स्मरण पारस के समान है
  • मन है मैला लोह – विकारों से भरा मन (मैला मन) लोहे के समान है
  • परसत ही कंचन भया – पारस के संपर्क से लोहा कंचन (सोना) बन जाता है
    • ईश्वर के नाम से मन शुद्ध हो जाता है
  • छूटा बंधन मोह – और मनुष्य मोह माया के बन्धनों से छूट जाता है

कबीरा सोया क्या करे,
उठि न भजे भगवान।
जम जब घर ले जायेंगे,
पड़ी रहेगी म्यान॥


पाँच पहर धन्धे गया,
तीन पहर गया सोय।
एक पहर हरि नाम बिन,
मुक्ति कैसे होय॥


नींद निशानी मौत की,
उठ कबीरा जाग।
और रसायन छांड़ि के,
नाम रसायन लाग॥


रात गंवाई सोय के,
दिवस गंवाया खाय।
हीरा जन्म अमोल था,
कोड़ी बदले जाय॥

Sant Kabir Bhajans and Dohe

Sant Kabir ke Dohe – Sumiran

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Sant Kabir ke Dohe – Sumiran

Dukh mein sumiran sab karai,
sukh mein karai na koy.
Jo sukh mein sumiran karai,
to dukh kaahe ko hoy.


Kaah bharosa deh ka,
binasi jaay chhin maanhi.
Saans saans sumiran karo
Aur jatan kachhu naahin.


Kabir sumiran saar hai,
aur sakal janjaal.
Aadi ant madhi sodhiya,
dooja dekha kaal.


Raam naam sumiran karai,
satguru pad nij dhyaan.
Aatam pooja jiv daya,
lahai so mukti amaan.


Sumiran maarag sahaj ka,
satguru diya bataay.
Saans saans sumiran karoon,
ik din milasi aay.


Sumiran ki sudhi yau karo,
jaise kaami kaam.
Ek pal bisarai nahin,
nish din aathau yaam.


Bina saanch sumiran nahi,
bin bhedi bhakti na soy.
Paaras mein pardaa rahaa,
kas loha kanchan hoy.


Darshan ko to saadhu hain,
sumiran ko guru naam.
Tarne ko aadhinta,
dooban ko abhimaan.


Loot sake to loot le,
Ram naam ki loot.
Paachhe phir pachhtaoge,
praan jaahi jab chhoot.


Aadi naam paaras ahai,
man hai maila loh.
Parasat hi kanchan bhaya,
chhoota bandhan moh.


Kabira soya kya kare,
uthi na bhaje bhagavaan.
Jam jab ghar le jaayenge,
padi rahegi myaan.


Paanch pahar dhandhe gaya,
tin pahar gaya soy.
Ek pahar hari naam bin,
mukti kaise hoy.


Nind nishaani maut ki,
uth kabira jaag.
Aur rasaayan chhaandi ke,
naam rasaayan laag.


Raat ganvai soy ke,
divas ganvaaya khaay.
Hira janm amol tha,
kodi badale jaay.

Sangati – Kabir Dohe – Hindi


कबीर संगत साधु की, नित प्रति कीजै जाय।
कबीर संगत साधु की, जौ की भूसी खाय।
संगत कीजै साधु की, कभी न निष्फल होय।
संगति सों सुख्या ऊपजे, कुसंगति सो दुख होय।

Sangati – Kabir Dohe


कबीर संगत साधु की,
नित प्रति कीजै जाय।
दुरमति दूर बहावसी,
देसी सुमति बताय॥

अर्थ (Doha in Hindi):

  • कबीर संगत साधु की – संत कबीर कहते हैं कि, सज्जन लोगों की संगत
  • नित प्रति कीजै जाय – प्रतिदिन करनी चाहिए,
    • ज्ञानी सज्जनों की संगत में प्रतिदिन जाना चाहिए
  • दुरमति दूर बहावसी – इससे दुर्बुद्धि (दुरमति) दूर हो जाती है
    • मन के विकार नष्ट हो जाते है और
  • देसी सुमति बताय – सदबुद्धि (सुमति) आती है

कबीर संगत साधु की,
जौ की भूसी खाय।
खीर खांड भोजन मिले,
साकट संग न जाए॥

अर्थ (Doha in Hindi):

  • कबिर संगति साधु की – कबीरदासजी कहते हैं कि, साधु की संगत में रहकर यदि
  • जो कि भूसी खाय – स्वादहीन भोजन (जौ की भूसी का भोजन) भी मिले तो भी उसे प्रेम से ग्रहण करना चाहिए
  • खीर खांड भोजन मिले – लेकिन दुष्ट के साथ यदि खीर और मिष्ठान आदि स्वादिष्ट भोजन भी मिले
  • साकत संग न जाय – तो भी उसके साथ (दुष्ट स्वभाव वाले के साथ) नहीं जाना चाहिए।

संगत कीजै साधु की,
कभी न निष्फल होय।
लोहा पारस परसते,
सो भी कंचन होय॥

अर्थ (Doha in Hindi):

  • संगत कीजै साधु की – संत कबीर कहते है की, सन्तो की संगत करना चाहिए क्योंकि वह
  • कभी न निष्फल होय – कभी निष्फल नहीं होती
    • (संतो की संगति का फल अवश्य प्राप्त होता है)
  • लोहा पारस परसते – जैसे पारस के स्पर्श से लोहा भी
  • सो भी कंचन होय – सोना बन जाता है।
    • वैसे ही संतो के वचनों को ध्यानपूर्वक सुनने और उन का पालन करने से मनुष्य के मन के विकार नष्ट हो जाते है और वह भी सज्जन बन जाता है

संगति सों सुख्या ऊपजे,
कुसंगति सो दुख होय।
कह कबीर तहँ जाइये,
साधु संग जहँ होय॥


कबीरा मन पँछी भया,
भये ते बाहर जाय।
जो जैसे संगति करै,
सो तैसा फल पाय॥


सज्जन सों सज्जन मिले,
होवे दो दो बात।
गहदा सो गहदा मिले,
खावे दो दो लात॥


मन दिया कहुँ और ही,
तन साधुन के संग।
कहैं कबीर कोरी गजी,
कैसे लागै रंग॥


साधु संग गुरु भक्ति अरू,
बढ़त बढ़त बढ़ि जाय।
ओछी संगत खर शब्द रू,
घटत-घटत घटि जाय॥


साखी शब्द बहुतै सुना,
मिटा न मन का दाग।
संगति सो सुधरा नहीं,
ताका बड़ा अभाग॥


साधुन के सतसंग से,
थर-थर काँपे देह।
कबहुँ भाव कुभाव ते,
जनि मिटि जाय सनेह॥


हरि संगत शीतल भया,
मिटी मोह की ताप।
निशिवासर सुख निधि,
लहा अन्न प्रगटा आप॥


जा सुख को मुनिवर रटैं,
सुर नर करैं विलाप।
जो सुख सहजै पाईया,
सन्तों संगति आप॥


कबीरा कलह अरु कल्पना,
सतसंगति से जाय।
दुख बासे भागा फिरै,
सुख में रहै समाय॥


संगत कीजै साधु की,
होवे दिन-दिन हेत।
साकुट काली कामली,
धोते होय न सेत॥


सन्त सुरसरी गंगा जल,
आनि पखारा अंग।
मैले से निरमल भये,
साधू जन को संग॥


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Shri Ramchandra Kripalu Bhajman – Lyrics in English


Shri Ramchandra Kripalu Bhajman

Shri Ramchandra kripalu bhajman,
haran bhav bhaya darunam
Nav-kanj-lochan kanj-mukh,
kar-kanj pad-kanjarunam

Kandarp aganit amit chavi,
naval-nil niraj sundaram
Patapit manahu tarit ruchi suchi,
naumi Janaka-sutavaram

Shri Ram-chandra kripalu bhajman,
haran bhav bhay darunam

Bhaju Din-bandhu Dinesh
danav daitya-vansh nikandanam.

Raghu-nand anand kanda,
Kaushal chand Dasharath-nandanam.

Shri Ramchandra kripalu bhajman,
haran bhav bhaya darunam

Sir mukut kundal tilak charu,
udaaru ang vibhu-shanam.

Ajanu bhuja shar chapadhar,
sangram-jit Khar-Dushanam.

Shri Ramchandra kripalu bhajman,
harana bhava bhaya daarunam

Iti vadati Tulsidas Shankar,
Shesh muni-man ranjanam
mam hriday-kanj nivas kuru,
kamaadi khaladal ganjanam.

Shri Ramchandra krupalu bhaj mann,
haran bhav bhaya darunam

Manu jaahi rachehu milihi so baru,
sahaj sunder saanwaro.

Karunaa nidhaan sujaan silu
snehu jaanat raavro

Shri Ram-chandra kripaalu bhajman,
harana bhava bhaya daarunam

Ehi bhanti gori asees sunee
siya sahit hiya harshin ali.

Tulsi Bhawanih pooji puni-puni
mudit mann mandir chali

Shri Ram chandra kripalu bhaju mann,
haran bhav bhaya darunam

Shri Ram… Shri Ram…


Shri Ramchandra Kripalu Bhajman

Lata Mangeshkar


Ram Bhajan



Shri Ramchandra Kripalu Bhajman – Lyrics in Hindi with Meaning


श्री राम स्तुति – श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – अर्थसहित

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख
कर-कंज पद-कंजारुणम्॥
  • श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – हे मन, कृपालु (कृपा करनेवाले, दया करनेवाले) भगवान श्रीरामचंद्रजी का भजन कर
  • हरण भवभय दारुणम्। – वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है
    – दारुण: कठोर, भीषण, घोर (frightful, terrible)
  • नवकंज-लोचन – उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है
  • कंज-मुखमुख कमल के समान हैं
  • कर-कंजहाथ (कर) कमल के समान हैं
  • पद-कंजारुणम्॥चरण (पद) भी कमल के समान हैं
कंदर्प अगणित अमित छबि,
नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची,
नौमि जनक सुतावरम्॥
  • कंदर्प अगणित अमित छबि – उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित (असंख्य, अनगिनत) कामदेवो से बढ़कर है
  • नव नील नीरज सुन्दरम् – उनका नवीन नील नीरज (कमल, सजल मेघ) जैसा सुंदर वर्ण है
  • पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची – पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है
  • नौमि जनक सुतावरम् – ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हूँ
भज दीन बन्धु दिनेश
दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द
दशरथ नन्दनम्॥
  • भजु दीन बन्धु दिनेश – हे मन, दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी
  • दानव दैत्यवंश निकन्दनम् – दानव और दैत्यो के वंश का नाश करने वाले
  • रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द – आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान
  • दशरथ नन्दनम्दशरथनंदन श्रीराम (रघुनन्द) का भजन कर
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु,
उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर
सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम्॥
  • सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु – जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, मस्तक पर तिलक और
  • उदारु अङ्ग विभूषणम् – प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है
  • आजानुभुज – जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है और
  • शर चापधर – जो धनुष-बाण लिये हुए है.
  • सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् – जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है
इति वदति तुलसीदास,
शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु,
कामादि खलदल गंजनम्॥
  • इति वदति तुलसीदासतुलसीदासजी प्रार्थना करते है कि
  • शंकर शेष मुनि मन रंजनम् – शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले
  • मम हृदयकंज निवास कुरु – श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे जो
  • कामादि खलदल गंजनम्कामादि (काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह) शत्रुओ का नाश करने वाले है
मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु
सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु
सनेहु जानत रावरो॥
  • मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु – जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा
  • सहज सुन्दर साँवरो – वह स्वभाव से सहज, सुंदर और सांवला है
  • करुना निधान सुजान सीलु – वह करुणा निधान (दया का खजाना), सुजान (सर्वज्ञ, सब जाननेवाला), शीलवान है
  • सनेहु जानत रावरो – तुम्हारे स्नेह को जानता है
एही भांति गोरी असीस सुनी
सिय सहित हिय हरषीं अली।
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मंदिर चली॥
  • सिय सहित हिय हरषीं अलीजानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई
  • एही भांति गोरी असीस सुनी – इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर

(इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई)

  • तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनितुलसीदासजी कहते है, भवानीजी को बार-बार (पुनि-पुनि) पूजकर
  • मुदित मन मंदिर चली – सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली।

॥सियावर रामचंद्र की जय॥

श्री भए प्रगट कृपाला – अर्थ सहित पढ़ने के लिए:
भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
जब कृपा के सागर कौशल्या के हितकारी दीनदयालु प्रभु प्रकट हुए, तब उनका अद्भुत स्वरुप देखकर माता कौशल्या परम प्रसन्न हुई।
राम आरती – अर्थ सहित

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन – श्री राम आरती

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन कंज-मुख
कर-कंज पद-कंजारुणम्॥

कंदर्प अगणित अमित छबि,
नव नील नीरज सुन्दरम्।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची,
नौमि जनक सुतावरम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।


भजु दीन बन्धु दिनेश
दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द
दशरथ नन्दनम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु,
उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चापधर
सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।


इति वदति तुलसीदास,
शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदयकंज निवास कुरु,
कामादि खलदल गंजनम्॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भज मन
हरण भवभय दारुणम्।


मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु
सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु
सनेहु जानत रावरो॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभय दारुणम्।


एही भांति गोरी असीस सुनी
सिय सहित हिय हरषीं अली।
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मंदिर चली॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभय दारुणम्।


जानी गौरी अनुकूल सिय
हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम
अंग फरकन लगे॥

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन
हरण भवभय दारुणम्।

॥सियावर रामचंद्र की जय॥


Shri Ramchandra Kripalu Bhajman

Lata Mangeshkar


Ram Bhajan



Shri Ram Janki Baithe Hai Mere Seene Mein – Lyrics in Hindi


श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में

श्री रामचंद्रजी महाराज के भरे दरबार में,
विभीषणने ताना मारा –
ऐ बजरंगी, क्या तेरे मन में भी राम है?

हनुमानजी नेश्री राम का नाम लिया
और सीना फाड़ा,
बोले ले देख –
== जय श्री राम ==

Jai Shree Ram

नहीं चलाओ बाण व्यंग के, ऐ विभीषण,
ताना ना सह पाऊं।
क्यों तोड़ी है यह माला,
तुझे ऐ लंकापति बतलाऊं॥

मुझ में भी है, तुझ में भी है,
सब में है समझाऊं।
ऐ लंकापति विभीषण, ले देख,
मैं तुझ को आज दिखाऊं॥

और वीर बजरंगी ने सीना चीर दिया और बोले ले देख
== जय श्री राम ==


श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में,
देख लो मेरे दिल के नगिनें में।

देख लो मेरे दिल के नगिनें में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥
मेरे राम…


(ऐ विभीषण)
मुझ को कीर्ति न वैभव, न यश चाहिए,
राम के नाम का मुझ को रस चाहिए।
सुख मिले ऐसे अमृत को पीने में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥
मेरे राम…


राम रसिया हूँ मैं, राम सुमिरन करू,
सिया-राम का सदा ही मै चिंतन करू।
अनमोल कोई भी चीज मेरे काम की नहीं
दिखती अगर उसमे छवि सिया राम की नहीं॥

राम रसिया हूँ मैं, राम सुमिरन करू,
सिया-राम का सदा ही मै चिंतन करू।
सच्चा आंनंदहै ऐसे जीने में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥

फाड़ सीना हैं सब को यह दिखला दिया,
भक्ति में मस्ती हैं, बेधड़क दिखला दिया।
कोई मस्ती ना सागर मीने में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥


श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में,
देख लो मेरे दिल के नगिनें में।
देख लो मेरे दिल के नगिनें में,
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥
मेरे राम…


Shri Ram Janki Baithe Hai Mere Seene Mein

Lakhbir Singh Lakha


Ram Bhajan



Shri Ram Janki Baithe Hai Mere Seene Mein – Lyrics in English


Shri Ram Janki Baithe Hai Mere Seene Mein

Shree Ram chandraji maharaj ke bhare darbaar mein, Vibhishan ne taana maara – aye Bajarangi kya tere man mein bhi Ram hai?

Hanumanji ne Shree Ram ka naam liya aur seena phaada, bole le dekh – == Jay Shree Ram ==


Nahin chalao baan vyang ke, aye Vibhishan,
taana na sah paoon..
Kyon todee hai yah maala,
tujhe ai lankapati batalaoon.

Mujh mein bhi hai, tujh mein bhi hai,
sab mein hai samajhaoon

Mujh mein bhee hai, tujh mein bhee hai,
sab mein hai samajhaoon.
Ai lankaapati vibheeshan, le dekh,
main tujh ko aaj dikhaoon.

Aur veer bajarangee ne seena cheer diya aur bole le dekh
== Jay Shree Ram ==


Shri Ram Janki baithe hai mere seene mein,
Shri Ram Janki baithe hai mere seene mein,
dekh lo mere dil ke nagine mein.

Dekh lo mere dil ke nagine mein,
Shri Ram Janki baithe hai mere seene mein.
Mere Ram…


(Aye Vibhishan)
Mujh ko keerti na vaibhav, na yash chaahiye,
Ram ke naam ka mujh ko ras chaahiye.
Sukh mile aise amrit ko peene mein,
Shri Ram Janki baithe hai mere seene mein.
Mere Ram…


Ram rasiya hoon main, Ram sumiran karoo,
Siya-Ram ka sada hee mai chintan karoo.
Anamol koee bhi cheej mere kaam ki nahin
dikhati agar usame chhavi Siya Raam ki nahi

Ram rasiya hoon main, Ram sumiran karoo,
Siya-Ram ka sada hee mai chintan karoo.
Sachcha anand hai aise jeene mein,
Shri Ram Janki baithe hai mere seene mein.


Phaad seena hain sab ko yah dikhala diya,
bhakti mein masti hain bedhadak dikhala diya.
Koyee masti na saagar meene mein,
Shri Ram Janki baithe hai mere seene mein॥


Shri Ram Jankibaithe hai mere seene mein,
dekh lo mere dil ke nagine mein.
Dekh lo mere dil ke nagine mein,
Shri Ram Janki baithe hai mere seene mein.
Mere Ram…


Shri Ram Janki Baithe Hai Mere Seene Mein

Lakhbir Singh Lakha


Ram Bhajan



Suraj Ki Garmi Se Jalte Huye Tan Ko – Lyrics in Hindi


सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर की छाया।

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर की छाया।
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम॥

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर की छाया।


भटका हुआ मेरा मन था कोई
मिल ना रहा था सहारा।
लहरों से लडती हुई नाव को जैसे,
मिल ना रहा हो किनारा।

उस लडखडाती हुई नाव को जो
किसी ने किनारा दिखाया।
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम॥

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर की छाया


शीतल बने आग चन्दन के जैसी
राघव कृपा हो जो तेरी।
उजयाली पूनम की हो जाये राते
जो थी अमावस अँधेरी॥

युग युग से प्यासी मुरुभूमि ने
जैसे सावन का संदेस पाया।
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम॥

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर की छाया


जिस राह की मंजिल तेरा मिलन हो
उस पर कदम मैं बढ़ाऊं।
फूलों मे खारों मे, पतझड़ बहारो मे
मैं ना कभी डगमगाऊँ॥

पानी के प्यासे को तकदीर ने
जैसे जी भर के अमृत पिलाया।
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम॥

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर की छाया।
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है,
मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम॥

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर की छाया।


Suraj Ki Garmi Se Jalte Huye Tan Ko

1. Sharma Bandhu – fim: Parinay (1974)

2. Anup Jalota


Prayer Songs – Prayers



Suraj Ki Garmi Se Jalte Huye Tan Ko – Lyrics in English


Suraj Ki Garmi Se Jalte Huye Tan Ko

Jaise, Suraj ki garmi se jalte hue tan ko
mil jaaye taruvar ki chhaaya
Aisa hi sukh mere man ko mila hai,
main jab se sharan teri aaya, mere Ram

Suraj ki garmi se jalte hue tan ko
mil jaaye taruvar ki chhaaya

Bhataka hua mera man tha koi
mil na raha tha sahara
Laharon se ladti hui naav ko jaise,
mil na raha ho kinara

Us ladakhadaati hui naav ko jo
kisi ne kinaara dikhaaya
Aisa hi sukh mere man ko mila hai,
main jab se sharan teri aaya, mere Ram

Suraj ki garmi se jalte hue tan ko
mil jaaye taruvar ki chhaaya

Shital bane aag chandan ke jaisi
Raaghav kripa ho jo teri
Ujayaali poonam ki ho jaaye raate
jo thi amaavas andheri

Yug yug se pyaasi murubhoomi ne
jaise saavan ka sandes paaya
Aisa hi sukh mere man ko mila hai,
main jab se sharan teri aaya, mere Ram

Suraj ki garmi se jalte hue tan ko
mil jaaye taruvar ki chhaaya

Jis raah ki manjil tera milan ho
us par kadam main badhaoon
Phoolon me khaaron me,
patjhad bahaaro me
mai na kabhi dag-magaoo

Paani ke pyaase ko takadir ne
Jaise ji bhar ke amrit pilaaya
Aisa hi sukh mere man ko mila hai,
main jab se sharan teri aaya, mere Ram

Suraj ki garmi se jalte hue tan ko
mil jaaye taruvar ki chhaaya
Aisa hi sukh mere man ko mila hai,
main jab se sharan teri aaya, mere Ram


Suraj Ki Garmi Se Jalte Huye Tan Ko

1. Sharma Bandhu – fim: Parinay (1974)

2. Anup Jalota


Prayer Songs – Prayers



Satguru – Kabir Dohe – Hindi


– सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड।
– सतगुरु तो सतभाव है, जो अस भेद बताय।
– तीरथ गये ते एक फल, सन्त मिले फल चार।
– सतगुरु खोजो सन्त, जोव काज को चाहहु।

Satguru – Kabir Dohe


सतगुरु सम कोई नहीं,
सात दीप नौ खण्ड।
तीन लोक न पाइये,
अरु इक्कीस ब्रह्म्ण्ड॥


कबीर माया मोहिनी,
जैसी मीठी खांड़।
सतगुरु की कृपा भई,
नहीं तौ करती भांड़॥


सतगुरु तो सतभाव है,
जो अस भेद बताय।
धन्य शीष धन भाग तिहि,
जो ऐसी सुधि पाय॥


तीरथ गये ते एक फल,
सन्त मिले फल चार।
सतगुरु मिले अनेक फल,
कहें कबीर विचार॥


सतगुरु खोजो सन्त,
जोव काज को चाहहु।
मिटे भव को अंक,
आवा गवन निवारहु॥


सतगुरु शब्द उलंघ के,
जो सेवक कहूँ जाय।
जहाँ जाय तहँ काल है,
कहैं कबीर समझाय॥


सतगुरु को माने नही,
अपनी कहै बनाय।
कहै कबीर क्या कीजिये,
और मता मन जाय॥


सतगुरु मिला जु जानिये,
ज्ञान उजाला होय।
भ्रम का भांड तोड़ि करि,
रहै निराला होय॥


सतगुरु मिले जु सब मिले,
न तो मिला न कोय।
माता-पिता सुत बाँधवा,
ये तो घर घर होय॥


चौंसठ दीवा जोय के,
चौदह चन्दा माहिं।
तेहि घर किसका चाँदना,
जिहि घर सतगुरु नाहिं॥


सुख दुख सिर ऊपर सहै,
कबहु न छोड़े संग।
रंग न लागै का,
व्यापै सतगुरु रंग॥


यह सतगुरु उपदेश है,
जो मन माने परतीत।
करम भरम सब त्यागि के,
चलै सो भव जल जीत॥


जाति बरन कुल खोय के,
भक्ति करै चितलाय।
कहैं कबीर सतगुरु मिलै,
आवागमन नशाय॥


जेहि खोजत ब्रह्मा थके,
सुर नर मुनि अरु देव।
कहै कबीर सुन साधवा,
करु सतगुरु की सेव॥


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