Shiv Shankar Ko Jisne Puja – Lyrics in Hindi with Meanings


शिव शंकर को जिसने पूजा

शिव शंकर को जिसने पूजा,
उसका ही उद्धार हुआ
अंत:काल को भवसागर में,
उसका बेडा पार हुआ

भोले शंकर की पूजा करो,
ध्यान चरणों में इसके धरो
हर हर महादेव शिव शम्भू,
हर हर महादेव शिव शम्भू


डमरूवाला है जग में दयालु बड़ा
दीनदुखियो का दाता जगत का पिता
सब पे करता है यह भोला शंकर दया
सब को देता है यह आसरा

इन पावन चरणों में अर्पण,
आकर जो एक बार हुआ
अंत: काल को भवसागर में,
उसका बेडा पार हुआ

ओम नमो शिवाय नमो,
हरी ओम नमो शिवाय नमो
हर हर महादेव शिव शम्भू,
हर हर महादेव शिव शम्भू


नाम ऊँचा है सबसे महादेव का,
वंदना इसकी करते हैं सब देवता
इसकी पूजा से वरदान पाते हैं सब
शक्ति का दान पाते हैं सब

नाग असुर प्राणी सब पर ही,
भोले का उपकार हुआ
अंत काल को भवसागर में,
उसका बेडा पार हुआ


शिव शंकर को जिसने पूजा,
उसका ही उद्धार हुआ
अंत:काल को भवसागर में,
उसका बेडा पार हुआ

भोले शंकर की पूजा करो,
ध्यान चरणों में इसके धरो
हर हर महादेव शिव शम्भू,
हर हर महादेव शिव शम्भू


Shiv Shankar Ko Jisne Puja

Anuradha Paudwal


Shiv Bhajan



शिव शंकर को जिसने पूजा भजन का आध्यात्मिक अर्थ

शिव शंकर को जिसने पूजा एक बहुत ही खूबसूरत भजन है, जिसमे हर पंक्ति भगवान शिव की पूजा करने और उनका आशीर्वाद पाने के महत्व पर प्रकाश डालती हैं।

इस भजन में यह बताया गया है की किस प्रकार भगवान शिव की भक्ति और ध्यान से आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त की जा सकती है, साथ ही उनके दिव्य गुणों के प्रति श्रद्धा और प्रशंसा भी व्यक्त की जा सकती है।

भजन की पंक्तियाँ भगवान शिव के परोपकारी और दयालु स्वभाव को भी उजागर करती हैं, जो सभी प्राणियों के लिए अपनी करुणा प्रदान करते है।


भजन का आध्यात्मिक अर्थ इस प्रकार है –

शिव शंकर को जिसने पूजा, उसका ही उद्धार हुआ:
जो कोई भी भगवान शिव की पूजा करता है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह पंक्ति इस बात पर जोर देती है कि जो लोग भगवान शिव की पूजा और भक्ति में संलग्न होते हैं वे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं और आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त करते हैं।

अंतकाल को भवसागर में, उसका बेड़ा पार हुआ:
सांसारिक अस्तित्व के सागर में, वे जन्म और मृत्यु के चक्र को पार करने में सक्षम हैं। यह पंक्ति दर्शाती है कि भगवान शिव का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करके, कोई व्यक्ति जीवन और मृत्यु के अंतहीन चक्र को पार कर सकता है और भौतिक संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

भोले शंकर की पूजा करो, ध्यान चरणों में इसके धरो:
भगवान शिव की पूजा करें, उनके चरणों का ध्यान करें। यह पंक्ति भक्तों को भगवान शिव की पूजा और ध्यान में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित करती है, उनका ध्यान उनके दिव्य चरणों पर केंद्रित करती है। यह भक्ति प्रथाओं और भगवान शिव की दिव्य उपस्थिति की तलाश के महत्व पर प्रकाश डालता है।

हर हर महादेव शिव शम्भू:
यह वाक्यांश भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और स्तुति का उद्घोष है। “हर हर” एक मंत्र है जो बुरी ताकतों पर जीत का प्रतीक है, “महादेव” महान देवता को संदर्भित करता है, और “शिव शंभू” भगवान शिव के नाम और विशेषण हैं। यह वाक्यांश भगवान शिव की महानता और दिव्य प्रकृति को स्वीकार करते हुए भक्ति की एक उत्कट अभिव्यक्ति है।

डमरू वाला है जग में दयालु बड़ा:
भगवान शिव, जो डमरू (एक छोटा दो तरफा ड्रम) धारण करते हैं, दुनिया में अत्यधिक दयालु हैं। यह पंक्ति भगवान शिव के दयालु स्वभाव और अपने भक्तों पर दया बरसाने की उनकी क्षमता पर प्रकाश डालती है।

दीन दुखियो का दाता जगत का पिता:
भगवान शिव दुखियों को शांति देने वाले और संपूर्ण जगत के पिता हैं। यह पंक्ति भगवान शिव को एक दयालु व्यक्ति और सार्वभौमिक पिता के रूप में चित्रित करती है, जो पीड़ित लोगों को आराम और सहायता प्रदान करते हैं ।

सब पे करता है ये भोला शंकर दया:
भोला शंकर, भगवान शिव का दूसरा नाम, सभी पर अपनी कृपा बरसाते हैं। यह पंक्ति इस बात पर जोर देती है कि भगवान शिव की करुणा सभी प्राणियों पर फैली हुई है, चाहे उनकी पृष्ठभूमि, स्थिति या योग्यता कुछ भी हो।

सबको देता है ये आसरा:
भगवान शिव सभी को अपना आश्रय देते हैं। यह पंक्ति दर्शाती है कि भगवान शिव उन सभी को अपनी सुरक्षा और सहायता प्रदान करते हैं जो उनकी शरण में आते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जो कोई भी ईमानदारी और भक्ति के साथ उनके पास आएगा उसे उसकी सहायता और मार्गदर्शन प्राप्त होगा।

पावन चरणों में अर्पण, आकर जो एक बार हुआ:
इन पवित्र चरणों में समर्पित होकर, यदि कोई एक बार आ जाए। यह पंक्ति भक्तों को भगवान शिव के दिव्य चरणों में खुद को पूरी तरह से समर्पित करने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह सुझाव देती है कि भगवान शिव के प्रति स्वयं को पूर्ण समर्पण और भक्ति अर्पित करके, कोई भी उनकी दिव्य कृपा प्राप्त कर सकता है।

अंतकाल को भवसागर में, उसका बेड़ा पार हुआ:
अंत में, वे सांसारिक अस्तित्व के सागर को पार करने में सक्षम होते हैं। यह पंक्ति दर्शाती है कि भगवान शिव का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करके, कोई भी जन्म और मृत्यु के चक्र को पार कर सकता है, जिसे यहां सांसारिक अस्तित्व के विशाल महासागर के रूप में दर्शाया गया है।

नाम ऊँचा है सबसे महादेव का:
भगवान शिव का नाम सबसे ऊंचा है. यह पंक्ति स्वीकार करती है कि देवताओं के सभी नामों और रूपों में भगवान शिव का नाम सबसे अधिक महत्व और शक्ति रखता है।

वंदना इसकी करते हैं सब देवता:
सभी देवी-देवता उन्हें नमस्कार करते हैं। यह पंक्ति दर्शाती है कि अन्य देवता भी भगवान शिव का सम्मान करते हैं और उनकी सर्वोच्च स्थिति और दिव्य गुणों को पहचानते हैं।

इसकी पूजा से वरदान पाते हैं सब:
उनकी आराधना से सभी को आशीर्वाद मिलता है। यह पंक्ति इस बात पर जोर देती है कि भगवान शिव की पूजा और भक्ति में संलग्न होने से व्यक्तियों को दिव्य आशीर्वाद और वरदान प्राप्त होते हैं।

शक्ति का दान पाते हैं सब:
शक्ति का उपहार सभी को प्राप्त होता है। यह पंक्ति बताती है कि भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों को दैवीय शक्ति और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है। भगवान शिव को शक्ति और ऊर्जा का दाता माना जाता है।

नाग असुर प्राणी सब पर ही, भोले का उपकार हुआ:
यहां तक कि नाग राक्षसों और सभी प्राणियों को भी भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यह पंक्ति बताती है कि भगवान शिव की करुणा, प्राणियों और नकारात्मक शक्तियों सहित सभी प्राणियों पर फैली हुई है। वह सभी को अपना आशीर्वाद और परोपकार प्रदान करते हैं।

अंतकाल को भवसागर में, उसका बेड़ा पार हुआ
अंत में, वे सांसारिक अस्तित्व के सागर को पार करने में सक्षम होते हैं।

कुल मिलाकर ये पंक्तियाँ भगवान शिव की महानता और परोपकारिता को उजागर करती हैं। वे इस बात पर जोर देते हैं कि उनकी पूजा करने और उनके प्रति समर्पण करने से, व्यक्तियों को आशीर्वाद, शक्ति और भौतिक दुनिया को पार करने और मुक्ति प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त होती है। यह सभी प्राणियों तक फैली भगवान शिव की कृपा और उनके दिव्य आशीर्वाद की तलाश में भक्ति और समर्पण के महत्व को रेखांकित करती है।


Shiv Bhajan



Shiv Shankar Ko Jisne Puja – Lyrics in English with Meanings


Shiv Shankar Ko Jisne Puja Lyrics

Shiv Shankar ko jisne puja,
uska hi udhhar hua
Antakaal ko bhavsaagar mein,
uska beda paar hua

Bhole Shankar ki puja karo,
dhyaan charano mein iske dharo
Har Har Mahadev Shiv Shambhoo


Damru waala hai jag mein dayaalu bada
Din dukhiyo ka daata jagat ka pita
Sab pe karata hai yah bhola Shankar daya
Sab ko deta hai yah aasara

In paawan charanon mein arpan,
aakar jo ek baar hua
Antkaal ko bhavasaagar mein,
uska beda paar hua

Om Namo Shivaay Namo, Hare
Om Namo Shivaay Namo
Har Har Mahadev Shiv Shambhoo


Naam uncha hai sabase Mahadev ka
Vandana isaki karate hain sab devta
Iski puja se varadaan paate hain sab
Shakti ka daan paate hain sab

Naag asur praani sab par hi,
bhole ka upkaar hua
Ant kaal ko bhavasaagar mein,
uska beda paar hua


Shiv Shankar ko jisne puja,
uska hi udhhar hua
Antakaal ko bhavsaagar mein,
uska beda paar hua

Bhole Shankar ki puja karo,
dhyaan charano mein iske dharo
Har Har Mahadev Shiv Shambhoo


Shiv Shankar Ko Jisne Puja

Anuradha Paudwal


Shiv Bhajan



Shiv Shankar Ko Jisne Puja – Spiritual Meanings

Shiv Shankar Ko Joojee Pooja is a beautiful bhajan, in which each line shows the importance of worshiping Lord Shiva and seeking his blessings.

This bhajan describes how devotion and meditation on Lord Shiva can lead to spiritual liberation, as well as reverence and appreciation of his divine qualities.

The lines of the hymn also highlight the benevolent and compassionate nature of Lord Shiva, who bestows his compassion on all beings.


The spiritual meaning of the bhajan is as follows –

Shiv Shankar ko jisne puja, uska hi udhhar hua:
Whoever worships Lord Shiva, they attain salvation. This line emphasizes that those who engage in the worship and devotion of Lord Shiva are liberated from the cycle of birth and death and attain spiritual liberation.

Antakaal ko bhavsaagar mein, uska beda paar hua:
In the ocean of worldly existence, they are able to cross over the cycle of birth and death. This line signifies that by seeking Lord Shiva’s blessings and grace, one can transcend the endless cycle of life and death and achieve liberation from the material world.

Bhole Shankar ki puja karo, dhyaan charano mein iske dharo:
Worship Lord Shiva, meditate upon His feet. This line encourages devotees to engage in the worship and meditation of Lord Shiva, focusing their attention on His divine feet. It highlights the importance of devotional practices and seeking the divine presence of Lord Shiva.

Har Har Mahadev Shiv Shambhoo:
This phrase is an exclamation of reverence and praise for Lord Shiva. “Har Har” is a chant that signifies victory over evil forces, “Mahadev” refers to the great god, and “Shiv Shambhoo” are names and epithets of Lord Shiva. This phrase is a fervent expression of devotion, acknowledging the greatness and divine nature of Lord Shiva.

Damru waala hai jag mein dayaalu bada:
Lord Shiva, who holds the damru (a small two-sided drum), is exceedingly compassionate in the world. This line highlights Lord Shiva’s compassionate nature and his ability to shower mercy upon his devotees.

Din dukhiyo ka daata jagat ka pita:
Lord Shiva is the giver of solace to the sorrowful and the father of the entire world. This line portrays Lord Shiva as a compassionate figure and the universal father, who provides comfort and support to those who are suffering.

Sab pe karata hai yah bhola Shankar daya:
Bhola Shankar, another name for Lord Shiva, showers his mercy upon everyone. This line emphasizes that Lord Shiva’s compassion extends to all beings, regardless of their background, status, or merits.

Sab ko deta hai yah aasara:
Lord Shiva grants his shelter to everyone. This line signifies that Lord Shiva offers his protection and support to all who seek refuge in him. It implies that anyone who approaches him with sincerity and devotion will receive his assistance and guidance.

In paawan charanon mein arpan, aakar jo ek baar hua:
Surrendering to these sacred feet, if one comes once. This line encourages devotees to surrender themselves completely to the divine feet of Lord Shiva. It suggests that by offering oneself in complete surrender and devotion to Lord Shiva, one can attain His divine grace.

Antkaal ko bhavasaagar mein, uska beda paar hua:
In the end, they are able to cross over the ocean of worldly existence. This line signifies that by seeking Lord Shiva’s blessings and grace, one can transcend the cycle of birth and death, symbolized here as the vast ocean of worldly existence.

Naam uncha hai sabase Mahadev ka:
The name of Lord Shiva is the highest. This line acknowledges that among all the names and forms of deities, Lord Shiva’s name holds the highest significance and power.

Vandana isaki karate hain sab devta:
All the gods and goddesses offer their salutations to Him. This line signifies that even other deities revere and pay homage to Lord Shiva, recognizing His supreme status and divine qualities.

Iski puja se varadaan paate hain sab:
Through His worship, everyone receives blessings. This line emphasizes that by engaging in the worship and devotion of Lord Shiva, individuals are bestowed with divine blessings and boons.

Shakti ka daan paate hain sab:
Everyone attains the gift of power. This line suggests that by worshipping Lord Shiva, devotees gain access to divine power and inner strength. Lord Shiva is considered the bestower of power and energy.

Naag asur praani sab par hi, bhole ka upkaar hua:
Even the serpent demons and all creatures receive Lord Shiva’s grace. This line conveys that Lord Shiva’s compassion extends to all beings, including creatures and negative forces. He grants His blessings and benevolence to everyone.

Overall, these lines highlight the greatness and benevolence of Lord Shiva. They emphasize that by worshiping and surrendering to Him, individuals receive blessings, power, and the ability to transcend the material world and achieve liberation. It underscores the inclusive nature of Lord Shiva’s grace, extending to all beings, and the importance of devotion and surrender in seeking His divine blessings.


Shiv Bhajan



Satyam Shivam Sundaram -Lyrics in Hindi with Meanings


सत्यम शिवम सुन्दरम

ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है,
शिव ही सुन्दर है
जागो उठ कर देखो,
जीवन ज्योत उजागर है

सत्यम शिवम सुन्दरम,
सत्यम शिवम् सुन्दरम


सत्यम शिवम सुन्दरम, सुन्दरम
सत्यम शिवम सुन्दरम….


राम अवध में, काशी में शिव,
कान्हा वृन्दावन में
दया करो प्रभु, देखू इनको
हर घर के आँगन में,

राधा मोहन शरणम,
सत्यम शिवम सुन्दरम….


एक सूर्य है, एक गगन है,
एक ही धरती माता
दया करो प्रभु, एक बने सब,
सबका एक से नाता

राधा मोहन शरणम,
सत्यम शिवम् सुन्दरम…..


ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है,
शिव ही सुन्दर है
सत्यम शिवम् सुन्दरम,
सत्यम शिवम् सुन्दरम


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Satyam Shivam Sundaram

Lata Mangeshkar


Shiv Bhajan



सत्यम शिवम सुंदरम – आध्यात्मिक अर्थ

सत्यम शिवम सुंदरम गीत ईश्वर से की गई एक भक्तिपूर्ण प्रार्थना है, जो इस विचार को व्यक्त करता है कि सत्य, सौंदर्य और दिव्यता एक ही हैं। इस गाने को इसकी मधुर धुन, भावपूर्ण आवाज और आध्यात्मिक संदेश के लिए सराहा गया है।

“सत्यम शिवम सुंदरम” के बोल गहन आध्यात्मिक अर्थ बताते हैं।

सत्यम् शिवम् सुन्दरम्, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
ये शब्द पूरे गीत में दोहराए जाते हैं, सच्चाई, अच्छाई और सुंदरता के महत्व और महत्व पर जोर देते हैं।

ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुन्दर है“:
यह पंक्ति बताती है कि भगवान सत्य और अच्छाई का अवतार है, और सत्य भगवान शिव का पर्याय है, जो सुंदरता का भी प्रतीक है।

जागो उठ कर देखो, जीवन ज्योत उजागर है“:
यह पंक्ति व्यक्तियों को जागृत होने और यह महसूस करने के लिए प्रोत्साहित करती है कि जीवन का दिव्य प्रकाश उनके भीतर है। यह उन्हें आंतरिक प्रकाश को समझने और उसे अपने जीवन में प्रसारित करने के लिए प्रेरित करता है।

राम अवध में, काशी में शिव, कान्हा वृन्दावन में“:
यह श्लोक विभिन्न रूपों और स्थानों में देवत्व की उपस्थिति पर प्रकाश डालता है। इसमें अवध में भगवान राम, काशी (वाराणसी) में भगवान शिव और वृन्दावन में भगवान कृष्ण का उल्लेख है, जो हर घर में भगवान की कृपा और आशीर्वाद को आमंत्रित करता है।

दया करो प्रभु, देखू इनको हर घर के आँगन में,“:
इस पंक्ति में भगवान से प्रार्थना है कि वे करुणा और कृपा बरसाएं, जिससे लोगों को हर घर में उनकी दिव्य उपस्थिति महसूस करने का मौका मिले।

एक सूर्य है, एक गगन है, एक ही धरती माता“:
यह श्लोक समस्त सृष्टि की एकता और अंतर्संबंध को व्यक्त करता है। इसमें कहा गया है कि एक सूर्य, एक आकाश और एक धरती माता है, जो सभी प्राणियों के बीच एकता और सद्भाव की आवश्यकता पर बल देती है।

दया करो प्रभु, एक बने सब, सबका एक से नाता“:
समापन पंक्ति सभी के बीच एकता और एकता की भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रभु की कृपा और आशीर्वाद का अनुरोध करती है, इस बात पर जोर देती है कि हम सभी जुड़े हुए हैं और हमें एक दूसरे के साथ इसी तरह व्यवहार करना चाहिए।

कुल मिलाकर, “सत्यम शिवम सुंदरम” के बोल हमें अपने भीतर की दिव्य प्रकृति की याद दिलाते हैं और हमें हमारे आस-पास की दुनिया में मौजूद अंतर्निहित सत्य, अच्छाई और सुंदरता को पहचानने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे हमें अपनी आंतरिक रोशनी को जागृत करने और एकता, करुणा और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करते हैं।


सत्यम शिवम सुंदरम 1978 में रिलीज़ हुई इसी नाम की फिल्म, सत्यम शिवम सुंदरम, का एक लोकप्रिय भजन है।

इस भजन को लता मंगेशकर ने गाया था और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने संगीतबद्ध किया था।

गीत के बोल पंडित नरेंद्र शर्मा ने लिखे थे और यह गाना शशि कपूर और जीनत अमान पर फिल्माया गया था।


Shiv Bhajan



Satyam Shivam Sundaram – Lyrics in English with Meanings


Satyam Shivam Sundaram Lyrics

Ishwar satya hai, satya hi Shiv hai,
Shiv hi sundar hai
Jaago uth kar dekho,
jivan jyot ujaagar hai

Satyam Shivam Sundaram,
Satyam Shivam Sundaram


Satyam Shivam Sundaram, sundaram
Satyam Shivam Sundaram….


Raam Awadh me, Kaashi me Shiv,
Kanha Vrindaavan mein
Daya karo prabhu, dekhu inko
har ghar ke aangan mein

Radha Mohan sharanam,
Satyam Shivam Sundaram….


Ek surya hai, ek gagan hai,
ek hi dharti mata
Daya karo prabhu, ek bane sab,
sabka ek se naata

Radha Mohan sharanam, Satyam
Shivam Sundaram….


Ishwar satya hai, satya hi Shiv hai,
Shiv hi sundar hai
Satyam Shivam Sundaram,
Satyam Shivam Sundaram


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Satyam Shivam Sundaram Piano Notes

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Satyam Shivam Sundaram

Lata Mangeshkar


Shiv Bhajan



Satyam Shivam Sundaram – Spiritual Meanings

Satyam Shivam Sundaram is a devotional prayer to God, expressing the idea that truth, beauty and divinity are one and the same. The song has been praised for its melodious tune, soulful voice and spiritual message.

The lyrics of “Satyam Shivam Sundaram” convey profound spiritual meanings.

Satyam Shivam Sundaram, Satyam Shivam Sundaram“:
These words repeat throughout the song, emphasizing the importance and significance of truth, goodness, and beauty.

Ishwar satya hai, satya hi Shiv hai, Shiv hi sundar hai“:
This line states that God is the embodiment of truth and goodness, and that truth is synonymous with Lord Shiva, who is also the epitome of beauty.

Jaago uth kar dekho, jivan jyot ujaagar hai“:
This line encourages individuals to awaken and realize that the divine light of life is within them. It inspires them to perceive the inner light and radiate it in their lives.

Raam Awadh me, Kaashi me Shiv, Kanha Vrindaavan mein“:
This verse highlights the presence of divinity in various forms and places. It mentions Lord Rama in Awadh, Lord Shiva in Kashi (Varanasi), and Lord Krishna in Vrindavan, inviting the Lord’s grace and blessings into every home.

Daya karo prabhu, dekhu inko har ghar ke aangan mein“:
The plea to the Lord in this line is to shower compassion and grace, allowing people to witness His divine presence in every household.

Ek surya hai, ek gagan hai, ek hi dharti mata“:
This verse expresses the unity and interconnectedness of all creation. It states that there is one sun, one sky, and one Mother Earth, emphasizing the need for unity and harmony among all beings.

Daya karo prabhu, ek bane sab sabka ek se naata“:
The closing line requests the Lord’s grace and blessings to foster a sense of unity and oneness among all, emphasizing that we are all connected and should treat one another as such.

Overall, the lyrics of Satyam Shivam Sundaram remind us of the divine nature within ourselves and encourage us to recognize the inherent truth, goodness, and beauty that exists in the world around us. They inspire us to awaken to our inner light and foster a sense of unity, compassion, and harmony.


Satyam Shivam Sundaram is a popular Hindi song from the movie of the same name, released in 1978.

The song was sung by Lata Mangeshkar and composed by Laxmikant Pyarelal.

The lyrics were written by Pt. Narendra Sharma and the song was picturized on Shashi Kapoor and Zeenat Aman.


Shiv Bhajan



Sukhkarta Dukhharta – Jai Dev Jai Mangal Murti – Lyrics in English


Sukhkarta Dukhharta – Jai Dev Jai Mangal Murti

Sukhkarta Dukhharta Varta Vighnachi.
Nurvi Purvi Prem Kripa Jayachi.

Sarvaangi Sundar Uti Shenduraachi.
Kanthi Jhalake Maal Muktaa Phalanchi.
Jai Dev, Jai Dev


Jai Dev, Jai Dev, Jai Mangal Murti.
Darshan-matre Mann Kamana-purti.
Jai Dev, Jai Dev


Ratna-khachit Phara Tuj Gauri-kumara.
Chandanaachi Uti Kumkum Keshara.

Hire-jadit Mukut Shobhato Bara.
Runzunti Noopure Charni Ghaagariya.
Jai Dev, Jai Dev


Jai Dev, Jai Dev, Jai Mangal Murti, O Shri Mangal Murti.
Darshan-matre Mann Kaamana-purti
Jai Dev, Jai Dev


Lambodar Pitaambar Phanivar Bandhana.
Saral Sond Vakratund Trinayana.

Daas Ramachaa Waat Paahe Sadanaa.
Sankati Paavave, Nirvaani Rakshave,
Suravar Vandana. Jai Dev, Jai Dev


Jai Dev, Jai Dev, Jai Mangal Murti, O Shri Mangal Murti.
Darshan-matre Mann Kamana-purti
Jai Dev, Jai Dev


Ghaalin Lotaangan Vandin Charan.
Dolyaanni Paahin Roop Tujhe
Preme Aalingan Aanande Poojin.
Bhaave Ovaalin Mhane Naama.


Tvamev Mata cha Pita Tvamev
Tvamev Bandhu cha Sakha Tvamev.
Tvamev Vidya Dravinam Tvamev
Tvamev Sarvam Mam Dev dev.


Kaayen Vaacha Manasen-driyairva,
Budhdaatmana va Prakruti-svabhavaat
Karomi Yadyat Sakalam Parasmai
Narayanayeti Samarpayaami.


Achayutam Keshavam Ram-narayanam,
Krishna-damodaram Vaasudevam Hari.
Shridharam Madhavam Gopika-vallabham,
Janaki-nayakam Ram-chandram Bhaje


Hare Ram, Hare Ram, Ram Ram, Hare Hare
Hare Krishna, Hare Krishna, Krishna Krishna, Hare Hare.
Hare Ram, Hare Ram, Ram Ram, Hare Hare
Hare Krishna, Hare Krishna, Krishna Krishna, Hare Hare.


Sukhkarta Dukhharta Varta Vighnachi.
Nurvi Purvi Prem Kripa Jayachi.
Jai Dev, Jai Dev, Jai Mangal Murti, O Shri Mangal Murti.
Darshan-matre Mann Kamana-purti, Jai Dev, Jai Dev


Sukhkarta Dukhharta – Jai Dev Jai Mangal Murti


Ganesh Bhajan



Sukhkarta Dukhharta – Jai Dev Jai Mangal Murti – Lyrics in Hindi


श्री गणेश आरती – सुखकर्ता दुखहर्ता – जय देव, जय मंगलमूर्ती

सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची।
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची॥

सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची।
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥
जय देव, जय देव


जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापु्र्ती
जय देव, जय देव


रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा।
चंदनाची उटी कुंकुम केशरा।

हिरेजड़ित मुकुट शोभतो बरा।
रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरीया॥
जय देव, जय देव


जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापु्र्ती
जय देव, जय देव


लंबोदर पीतांबर फणीवर बंधना।
सरळ सोंड वक्रतुण्ड त्रिनयना।

दास रामाचा वाट पाहे सदना।
संकटी पावावें, निर्वाणी रक्षावे, सुरवरवंदना॥
जय देव, जय देव


जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापु्र्ती
जय देव, जय देव


घालीन लोटांगण, वंदिन चरण।
डोळ्यांनी पाहिन रूप तुझे।
प्रेमे आलिंगीन आनंदे पुजिन।
भावें ओवाळिन म्हणे नामा॥


त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव॥
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्व मम देवदेव॥


कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा,
बुध्दात्मना वा प्रकृतिस्वभावात्।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि॥


अच्युतं केशवं रामनारायणं,
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरि।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे॥


हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥

हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥


सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची।
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची॥
जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापु्र्ती
जय देव, जय देव


Sukhkarta Dukhharta – Jai Dev Jai Mangal Murti


Ganesh Bhajan



Shiv Bhajans and Stotra – List


शिव भजन और स्तोत्र लिस्ट

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Shiv Stotra List

Shiv Bhajans and Stotra – List – Lyrics in English


Shiv Bhajans and Stotra

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8

Shiv Stotra List

Sunderkand – 01


Sunderkand in Ramayan

सुंदरकाण्ड रामायण और रामचरितमानस का एक सोपान (भाग) है। हनुमानजी की शक्ति और सफलता के लिए सुंदरकाण्ड को याद किया जाता है।

इस सोपान के मुख्य घटनाक्रम है – हनुमानजी का लंका की ओर प्रस्थान, विभीषण से भेंट, सीताजी से भेंट करके उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, अक्षय कुमार का वध, लंका दहन और लंका से वापसी।

महाकाव्य रामायण में सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण रामायण कथा श्रीराम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है। किन्तु सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है, जो सिर्फ हनुमानजी की शक्ति और विजय का कांड है।

Hanuman Kripa

हनुमानजी का सीता शोध के लिए लंका प्रस्थान

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।
सहि दुख कंद मूल फल खाई॥

जाम्बवान के सुहावने वचन सुनकर हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लगे॥
और हनुमानजी ने कहा की हे भाइयो! आप लोग कन्द, मूल व फल खा, दुःख सह कर मेरी राह देखना॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
जब लगि आवौं सीतहि देखी।
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा।
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥

जबतक मै सीताजीको देखकर लौट न आऊँ, क्योंकि कार्य सिद्ध होने पर मन को बड़ा हर्ष होगा॥

ऐसे कह, सबको नमस्कार करके, रामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धरकर, प्रसन्न होकर हनुमानजी लंका जाने के लिए चले॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी।
तरकेउ पवनतनय बल भारी॥

समुद्र के तीर पर एक सुन्दर पहाड़ था। उसपर कूदकर हनुमानजी कौतुकी से चढ़ गए॥
फिर वारंवार रामचन्द्रजी का स्मरण करके, बड़े पराक्रम के साथ हनुमानजी ने गर्जना की॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता।
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।
एही भाँति चलेउ हनुमाना॥

जिस पहाड़ पर हनुमानजी ने पाँव रखे थे, वह पहाड़ तुरंत पाताल के अन्दर चला गया॥
और जैसे श्रीरामचंद्रजी का अमोघ बाण जाता है, ऐसे हनुमानजी वहा से चले॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥

समुद्र ने हनुमानजी को श्रीराम (रघुनाथ) का दूत जानकर मैनाक नाम पर्वत से कहा की हे मैनाक, तू जा, और इनको ठहरा कर श्रम मिटानेवाला हो॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मैनाक पर्वत की हनुमानजी से विनती

सोरठा – Sunderkand

सिन्धुवचन सुनी कान, तुरत उठेउ मैनाक तब।
कपिकहँ कीन्ह प्रणाम, बार बार कर जोरिकै॥

समुद्रके वचन कानो में पड़तेही मैनाक पर्वत वहांसे तुरंत उठा और हनुमानजीके पास आकर वारंवार हाथ जोड़कर उसने हनुमानजीको प्रणाम किया॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

दोहा (Doha – Sunderkand)

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ॥1॥

हनुमानजी ने उसको अपने हाथसे छूकर फिर उसको प्रणाम किया, और कहा की, रामचन्द्रजीका का कार्य किये बिना मुझको विश्राम कहा है? ॥1॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजीकी सुरसा से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जात पवनसुत देवन्ह देखा।
जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता।
पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥

हनुमानजी को जाते देखकर उसके बल और बुद्धि के वैभव को जानने के लिए देवताओं ने नाग माता सुरसा को भेजा।
उस नागमाताने आकर हनुमानजी से यह बात कही॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा।
सुनत बचन कह पवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं।
सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥

आज तो मुझको देवताओं ने यह अच्छा आहार दिया। यह बात सुन हँस कर, हनुमानजी बोले॥
– मैं रामचन्द्रजी का काम करके लौट आऊ और सीताजी की खबर रामचन्द्रजी को सुना दूं॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
तब तव बदन पैठिहउँ आई।
सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना।
ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥

फिर हे माता! मै आकर आपके मुँह में प्रवेश करूंगा। अभी तू मुझे जाने दे। इसमें कुछभी फर्क नहीं पड़ेगा। मै तुझे सत्य कहता हूँ॥
जब उसने किसी उपायसे उनको जाने नहीं दिया, तब हनुमानजी ने कहा कि तू क्यों देरी करती है? तू मुझको नही खा सकती॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।
कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥

सुरसाने अपना मुंह एक योजनभरमें फैलाया। हनुमानजी ने अपना शरीर दो योजन विस्तारवाला किया॥
सुरसा ने अपना मुँह सोलह (१६) योजनमें फैलाया। हनुमानजीने अपना शरीर तुरंत बत्तीस (३२) योजन बड़ा किया॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप देखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥

सुरसा ने जैसा जैसा मुंह फैलाया, हनुमानजीने वैसेही अपना स्वरुप उससे दुगना दिखाया॥
जब सुरसा ने अपना मुंह सौ योजन (चार सौ कोस का) में फैलाया, तब हनुमानजी तुरंत बहुत छोटा स्वरुप धारण कर॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा।
मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥

उसके मुंहमें पैठ कर (घुसकर) झट बाहर चले आए। फिर सुरसा से विदा मांग कर हनुमानजी ने प्रणाम किया॥
उस वक़्त सुरसा ने हनुमानजी से कहा की हे हनुमान! देवताओंने मुझको जिसके लिए भेजा था, वह तेरा बल और बुद्धि का भेद मैंने अच्छी तरह पा लिया है॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

दोहा (Doha – Sunderkand)

राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान ॥2॥

तुम बल और बुद्धि के भण्डार हो, सो श्रीरामचंद्रजी के सब कार्य सिद्ध करोगे। ऐसे आशीर्वाद देकर सुरसा तो अपने घर को चली, और हनुमानजी प्रसन्न होकर लंकाकी ओर चले ॥2॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की छाया पकड़ने वाले राक्षस से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई।
करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं।
जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥

समुद्र के अन्दर एक राक्षस रहता था। सो वह माया करके आकाशचारी पक्षी और जंतुओको पकड़ लिया करता था॥
जो जीवजन्तु आकाश में उड़कर जाता, उसकी परछाई जल में देखकर, परछाई को जल में पकड़ लेता॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई।
एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा।
तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥

परछाई को जल में पकड़ लेता, जिससे वह जिव जंतु फिर वहा से सरक नहीं सकता। इसतरह वह हमेशा आकाशचारी जिवजन्तुओ को खाया करता था॥
उसने वही कपट हनुमानसे किया। हनुमान ने उसका वह छल तुरंत पहचान लिया॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
ताहि मारि मारुतसुत बीरा।
बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥
तहाँ जाइ देखी बन सोभा।
गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥

धीर बुद्धिवाले पवनपुत्र वीर हनुमानजी उसे मारकर समुद्र के पार उतर गए॥
वहा जाकर हनुमानजी वन की शोभा देखते है कि भ्रमर मकरंद के लोभसे गुँजाहट कर रहे है॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी लंका पहुंचे

नाना तरु फल फूल सुहाए।
खग मृग बृंद देखि मन भाए॥
सैल बिसाल देखि एक आगें।
ता पर धाइ चढ़ेउ भय त्यागें॥

अनेक प्रकार के वृक्ष फल और फूलोसे शोभायमान हो रहे है। पक्षी और हिरणोंका झुंड देखकर मन मोहित हुआ जाता है॥
वहा सामने हनुमान एक बड़ा विशाल पर्वत देखकर निर्भय होकर उस पहाड़पर कूदकर चढ़ बैठे॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
उमा न कछु कपि कै अधिकाई।
प्रभु प्रताप जो कालहि खाई॥
गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी।
कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥

महदेव जी कहते है कि हे पार्वती! इसमें हनुमान की कुछ भी अधिकता नहीं है। यह तो केवल एक रामचन्द्रजीके ही प्रताप का प्रभाव है कि जो कालकोभी खा जाता है॥
पर्वत पर चढ़कर हनुमानजी ने लंका को देखा, तो वह ऐसी बड़ी दुर्गम है की जिसके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
अति उतंग जलनिधि चहु पासा।
कनक कोट कर परम प्रकासा॥

पहले तो वह पुरी बहुत ऊँची, फिर उसके चारो ओर समुद्र की खाई।
उसपर भी सुवर्णके कोटका महाप्रकाश कि जिससे नेत्र चकाचौंध हो जावे॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

लंका का वर्णन

छंद – Sunderkand Lyrics

कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥

उस नगरीका रत्नों से जड़ा हुआ सुवर्ण का कोट अतिव सुन्दर बना हुआ है। चौहटे, दुकाने व सुन्दर गलियों के बहार उस सुन्दर नगरी के अन्दर बनी है॥
जहा हाथी, घोड़े, खच्चर, पैदल व रथोकी गिनती कोई नहीं कर सकता। और जहा महाबली अद्भुत रूपवाले राक्षसोके सेनाके झुंड इतने है की जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥

जहा वन, बाग़, बागीचे, बावडिया, तालाब, कुएँ, बावलिया शोभायमान हो रही है। जहां मनुष्यकन्या, नागकन्या, देवकन्या और गन्धर्वकन्याये विराजमान हो रही है – जिनका रूप देखकर मुनिलोगोका मन मोहित हुआ जाता है॥
कही पर्वत के समान बड़े विशाल देहवाले महाबलिष्ट मल्ल गर्जना करते है और अनेक अखाड़ों में अनेक प्रकारसे भिड रहे है और एक एकको आपस में पटक पटक कर गर्जना कर रहे है॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥

जहा कही विकट शरीर वाले करोडो भट चारो तरफसे नगरकी रक्षा करते है और कही वे राक्षस लोग भैंसे, मनुष्य, गौ, गधे, बकरे और पक्षीयोंको खा रहे है॥
राक्षस लोगो का आचरण बहुत बुरा है। इसीलिए तुलसीदासजी कहते है कि मैंने इनकी कथा बहुत संक्षेपसे कही है। ये महादुष्ट है, परन्तु रामचन्द्रजीके बानरूप पवित्र तीर्थनदीके अन्दर अपना शरीर त्यागकर गति अर्थात मोक्षको प्राप्त होंगे॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

दोहा (Doha – Sunderkand)

पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार ॥3॥

हनुमानजी ने बहुत से रखवालो को देखकर मन में विचार किया की मै छोटा रूप धारण करके नगर में प्रवेश करूँ ॥3॥


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Sunderkand – Audio + Chaupai – 01


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Sunderkand Audio – 1


Listen to Sunderkand Chaupai of this page

Shri Ashvinkumar Pathak (Guruji)
श्री अश्विन कुमार पाठक (गुरूजी)
(Jay Shree Ram Sundarkand Parivar)

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मंगल भवन अमंगल हारी,
द्रवहु सुदसरथ अचर बिहारी॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी का सीता शोध के लिए लंका प्रस्थान

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।
सहि दुख कंद मूल फल खाई॥


जब लगि आवौं सीतहि देखी।
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा।
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥


सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी।
तरकेउ पवनतनय बल भारी॥


जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता।
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।
एही भाँति चलेउ हनुमाना॥


जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मैनाक पर्वत की हनुमानजी से विनती

दोहा (Doha – Sunderkand)

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ॥1॥

हनुमानजीकी सुरसा से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जात पवनसुत देवन्ह देखा।
जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता।
पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥


आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा।
सुनत बचन कह पवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं।
सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥


तब तव बदन पैठिहउँ आई।
सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना।
ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥


जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।
कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥


जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप देखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥


बदन पइठि पुनि बाहेर आवा।
मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान ॥2॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की छाया पकड़ने वाले राक्षस से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई।
करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं।
जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥


गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई।
एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा।
तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥


ताहि मारि मारुतसुत बीरा।
बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥
तहाँ जाइ देखी बन सोभा।
गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी लंका पहुंचे

नाना तरु फल फूल सुहाए।
खग मृग बृंद देखि मन भाए॥
सैल बिसाल देखि एक आगें।
ता पर धाइ चढ़ेउ भय त्यागें॥


उमा न कछु कपि कै अधिकाई।
प्रभु प्रताप जो कालहि खाई॥
गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी।
कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥


अति उतंग जलनिधि चहु पासा।
कनक कोट कर परम प्रकासा॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

लंका का वर्णन

छंद – Sunderkand Lyrics

कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥


बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥


करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार ॥3॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की लंकिनी से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

मसक समान रूप कपि धरी।
लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी।
सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥


जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा।
मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥
मुठिका एक महा कपि हनी।
रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥


पुनि संभारि उठी सो लंका।
जोरि पानि कर बिनय ससंका॥
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा।
चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥


बिकल होसि तैं कपि कें मारे।
तब जानेसु निसिचर संघारे॥
तात मोर अति पुन्य बहूता।
देखेउँ नयन राम कर दूता॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ॥4॥

हनुमानजी का लंका में प्रवेश

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा।
हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई॥


गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही।
राम कृपा करि चितवा जाही॥
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना।
पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की लंका में सीताजी की खोज

मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा।
देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥
गयउ दसानन मंदिर माहीं।
अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥


सयन किएँ देखा कपि तेही।
मंदिर महुँ न दीखि बैदेही॥
भवन एक पुनि दीख सुहावा।
हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई ॥5॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की विभीषण से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

लंका निसिचर निकर निवासा।
इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा।
तेहीं समय बिभीषनु जागा॥


राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा।
हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥
एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी।
साधु ते होइ न कारज हानी॥


बिप्र रूप धरि बचन सुनाए।
सुनत बिभीषन उठि तहँ आए॥
करि प्रणाम पूँछी कुसलाई।
बिप्र कहहु निज कथा बुझाई॥


की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई।
मोरें हृदय प्रीति अति होई॥
की तुम्ह रामु दीन अनुरागी।
आयहु मोहि करन बड़भागी॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ॥6॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और विभीषण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी।
जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा।
करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥


तामस तनु कछु साधन नाहीं।
प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता।
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥


जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा।
तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती।
करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥


कहहु कवन मैं परम कुलीना।
कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥
प्रात लेइ जो नाम हमारा।
तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर ॥7॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और विभीषण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जानतहूँ अस स्वामि बिसारी।
फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी॥
एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा।
पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा॥


पुनि सब कथा बिभीषन कही।
जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥
तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता।
देखी चहउँ जानकी माता॥


जुगुति बिभीषन सकल सुनाई।
चलेउ पवनसुत बिदा कराई॥
करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ।
बन असोक सीता रह जहवाँ॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी ने अशोकवन में सीताजी को देखा

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रणामा।
बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
कृस तनु सीस जटा एक बेनी।
जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥8॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

अशोक वाटिका में रावण और सीताजी का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

तरु पल्लव महँ रहा लुकाई।
करइ बिचार करौं का भाई॥
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा।
संग नारि बहु किएँ बनावा॥


बहु बिधि खल सीतहि समुझावा।
साम दान भय भेद देखावा॥
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी।
मंदोदरी आदि सब रानी॥


तव अनुचरीं करउँ पन मोरा।
एक बार बिलोकु मम ओरा॥
तृन धरि ओट कहति बैदेही।
सुमिरि अवधपति परम सनेही॥


सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा।
कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥
अस मन समुझु कहति जानकी।
खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥


सठ सूनें हरि आनेहि मोही।
अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।
परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

रावण और सीताजी का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सीता तैं मम कृत अपमाना।
कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥
नाहिं त सपदि मानु मम बानी।
सुमुखि होति न त जीवन हानी॥


स्याम सरोज दाम सम सुंदर।
प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा।
सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥


चंद्रहास हरु मम परितापं।
रघुपति बिरह अनल संजातं॥
सीतल निसित बहसि बर धारा।
कह सीता हरु मम दुख भारा॥


सुनत बचन पुनि मारन धावा।
मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई।
सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥


मास दिवस महुँ कहा न माना।
तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

त्रिजटा का स्वप्न

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

त्रिजटा नाम राच्छसी एका।
राम चरन रति निपुन बिबेका॥
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना।
सीतहि सेइ करहु हित अपना॥


सपनें बानर लंका जारी।
जातुधान सेना सब मारी॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा।
मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥


एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई।
लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥
नगर फिरी रघुबीर दोहाई।
तब प्रभु सीता बोलि पठाई॥


यह सपना मैं कहउँ पुकारी।
होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥
तासु बचन सुनि ते सब डरीं।
जनकसुता के चरनन्हि परीं॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

सीताजी और त्रिजटा का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी।
मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥
तजौं देह करु बेगि उपाई।
दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥


आनि काठ रचु चिता बनाई।
मातु अनल पुनि देहि लगाई॥
सत्य करहि मम प्रीति सयानी।
सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥


श्री राम, जय राम, जय जय राम

त्रिजटा ने सीताजी को सान्तवना दी

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सुनत बचन पद गहि समुझाएसि।
प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी।
अस कहि सो निज भवन सिधारी॥


कह सीता बिधि भा प्रतिकूला।
मिलिहि न पावक मिटिहि न सूला॥
देखिअत प्रगट गगन अंगारा।
अवनि न आवत एकउ तारा॥


पावकमय ससि स्रवत न आगी।
मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका।
सत्य नाम करु हरु मम सोका॥


नूतन किसलय अनल समाना।
देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता।
सो छन कपिहि कलप सम बीता॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ ॥12॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमान सीताजी से मिले

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

तब देखी मुद्रिका मनोहर।
राम नाम अंकित अति सुंदर॥
चकित चितव मुदरी पहिचानी।
हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥


जीति को सकइ अजय रघुराई।
माया तें असि रचि नहिं जाई॥
सीता मन बिचार कर नाना।
मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥


रामचंद्र गुन बरनैं लागा।
सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई।
आदिहु तें सब कथा सुनाई॥


श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई।
कही सो प्रगट होति किन भाई॥
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ।
फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ॥


राम दूत मैं मातु जानकी।
सत्य सपथ करुनानिधान की॥
यह मुद्रिका मातु मैं आनी।
दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥


नर बानरहि संग कहु कैसें।
कही कथा भइ संगति जैसें॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

दोहा (Doha – Sunderkand)

कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास
जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास ॥13॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमान ने सीताजी को आश्वासन दिया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी।
सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी॥
बूड़त बिरह जलधि हनुमाना।
भयहु तात मो कहुँ जलजाना॥


अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी।
अनुज सहित सुख भवन खरारी॥
कोमलचित कृपाल रघुराई।
कपि केहि हेतु धरी निठुराई॥


सहज बानि सेवक सुखदायक।
कबहुँक सुरति करत रघुनायक॥
कबहुँ नयन मम सीतल ताता।
होइहहिं निरखि स्याम मृदु गाता॥


बचनु न आव नयन भरे बारी।
अहह नाथ हौं निपट बिसारी॥
देखि परम बिरहाकुल सीता।
बोला कपि मृदु बचन बिनीता॥


मातु कुसल प्रभु अनुज समेता।
तव दुख दुखी सुकृपा निकेता॥
जनि जननी मानह जियँ ऊना।
तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।
अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर ॥14॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमान ने सीताजीको रामचन्द्रजीका सन्देश दिया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

कहेउ राम बियोग तव सीता।
मो कहुँ सकल भए बिपरीता॥
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू।
कालनिसा सम निसि ससि भानू॥


कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा।
बारिद तपत तेल जनु बरिसा॥
जे हित रहे करत तेइ पीरा।
उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा॥


कहेहू तें कछु दुख घटि होई।
काहि कहौं यह जान न कोई॥
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा।
जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥


सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं।
जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं॥
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही।
मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही॥


कह कपि हृदयँ धीर धरु माता।
सुमिरु राम सेवक सुखदाता॥
उर आनहु रघुपति प्रभुताई।
सुनि मम बचन तजहु कदराई॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु ॥15॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

सीताजीके मन में संदेह

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जौं रघुबीर होति सुधि पाई।
करते नहिं बिलंबु रघुराई॥
राम बान रबि उएँ जानकी।
तम बरुथ कहँ जातुधान की॥


अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई।
प्रभु आयुस नहिं राम दोहाई॥
कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥


निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना।
जातुधान अति भट बलवाना॥


मोरें हृदय परम संदेहा।
सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥
कनक भूधराकार सरीरा।
समर भयंकर अतिबल बीरा॥


सीता मन भरोस तब भयऊ।
पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल ॥16॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

सिताजीने हनुमानको आशीर्वाद दिया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

मन संतोष सुनत कपि बानी।
भगति प्रताप तेज बल सानी॥
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना।
होहु तात बल सील निधाना॥


अजर अमर गुननिधि सुत होहू।
करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना।
निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥


बार बार नाएसि पद सीसा।
बोला बचन जोरि कर कीसा॥
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता।
आसिष तव अमोघ बिख्याता॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजीने अशोकवनमें फल खाने की आज्ञा मांगी

सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा।
लागि देखि सुंदर फल रूखा॥
सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी।
परम सुभट रजनीचर भारी॥


तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं।
जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु ॥17॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

अशोक वाटिका विध्वंस और अक्षय कुमार का वध

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा।
फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥
रहे तहाँ बहु भट रखवारे।
कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥


नाथ एक आवा कपि भारी।
तेहिं असोक बाटिका उजारी॥
खाएसि फल अरु बिटप उपारे।
रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥


सुनि रावन पठए भट नाना।
तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥
सब रजनीचर कपि संघारे।
गए पुकारत कछु अधमारे॥


पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा।
चला संग लै सुभट अपारा॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि ॥18॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी का मेघनाद से युद्ध

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सुनि सुत बध लंकेस रिसाना।
पठएसि मेघनाद बलवाना॥
मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही।
देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥


चला इंद्रजित अतुलित जोधा।
बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥
कपि देखा दारुन भट आवा।
कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥


अति बिसाल तरु एक उपारा।
बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥
रहे महाभट ताके संगा।
गहि गहि कपि मर्दई निज अंगा॥


तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा।
भिरे जुगल मानहुँ गजराजा॥
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई।
ताहि एक छन मुरुछा आई॥


उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया।
जीति न जाइ प्रभंजन जाया॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मेघनादने ब्रम्हास्त्र चलाया

दोहा (Doha – Sunderkand)

ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार ॥19॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मेघनाद हनुमानजी को बंदी बनाकर रावणकी सभा में ले गया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा।
परतिहुँ बार कटकु संघारा॥
तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ।
नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥


जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥


कपि बंधन सुनि निसिचर धाए।
कौतुक लागि सभाँ सब आए॥
दसमुख सभा दीखि कपि जाई।
कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥


कर जोरें सुर दिसिप बिनीता।
भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥
देखि प्रताप न कपि मन संका।
जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।
सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद ॥20॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और रावण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

कह लंकेस कवन तैं कीसा।
केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही।
देखउँ अति असंक सठ तोही॥


मारे निसिचर केहिं अपराधा।
कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥
सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया।
पाइ जासु बल बिरचति माया॥


जाकें बल बिरंचि हरि ईसा।
पालत सृजत हरत दससीसा॥
जा बल सीस धरत सहसानन।
अंडकोस समेत गिरि कानन॥


धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता।
तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा।
तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥


खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली।
बधे सकल अतुलित बलसाली॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।
तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और रावण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई।
सहसबाहु सन परी लराई॥
समर बालि सन करि जसु पावा।
सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥


खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा।
कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥
सब कें देह परम प्रिय स्वामी।
मारहिं मोहि कुमारग गामी॥


जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे।
तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥
मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा।
कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥


बिनती करउँ जोरि कर रावन।
सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥
देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी।
भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥


जाकें डर अति काल डेराई।
जो सुर असुर चराचर खाई॥
तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै।
मोरे कहें जानकी दीजै॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ॥22॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और रावण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

राम चरन पंकज उर धरहू।
लंका अचल राजु तुम्ह करहू॥
रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयंका।
तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥


राम नाम बिनु गिरा न सोहा।
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥
बसन हीन नहिं सोह सुरारी।
सब भूषन भूषित बर नारी॥


राम बिमुख संपति प्रभुताई।
जाइ रही पाई बिनु पाई॥
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं।
बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥


सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी।
बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥
संकर सहस बिष्नु अज तोही।
सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ॥23॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

रावण ने हनुमानजी की पूँछ जलाने का हुक्म दिया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जदपि कही कपि अति हित बानी।
भगति बिबेक बिरति नय सानी॥
बोला बिहसि महा अभिमानी।
मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥


मृत्यु निकट आई खल तोही।
लागेसि अधम सिखावन मोही॥
उलटा होइहि कह हनुमाना।
मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥


सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना।
बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥
सुनत निसाचर मारन धाए।
सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥


नाइ सीस करि बिनय बहूता।
नीति बिरोध न मारिअ दूता॥
आन दंड कछु करिअ गोसाँई।
सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥


सुनत बिहसि बोला दसकंधर।
अंग भंग करि पठइअ बंदर॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ।
तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ ॥24॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

राक्षसोंने हनुमानजी की पूँछ में आग लगा दी

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

पूँछहीन बानर तहँ जाइहि।
तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई।
देखउ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥


बचन सुनत कपि मन मुसुकाना।
भइ सहाय सारद मैं जाना॥
जातुधान सुनि रावन बचना।
लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥


रहा न नगर बसन घृत तेला।
बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥
कौतुक कहँ आए पुरबासी।
मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥


बाजहिं ढोल देहिं सब तारी।
नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥
पावक जरत देखि हनुमंता।
भयउ परम लघुरूप तुरंता॥


निबुकि चढ़ेउ कप कनक अटारीं।
भईं सभीत निसाचर नारीं॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास ॥25॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी ने लंका जलाई

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

देह बिसाल परम हरुआई।
मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला।
झपट लपट बहु कोटि कराला॥


तात मातु हा सुनिअ पुकारा।
एहिं अवसर को हमहि उबारा॥
हम जो कहा यह कपि नहिं होई।
बानर रूप धरें सुर कोई॥


साधु अवग्या कर फलु ऐसा।
जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं।
एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥


ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा।
जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥
उलटि पलटि लंका सब जारी।
कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि ॥26॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

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