भगवान् गणेशजी की आरती, गणपति की सेवा मंगल मेवा में गणपतिजी की महिमा और उनकी सर्वव्यापकता के बारे में बताया गया है और साथ ही साथ इस आरती से हमें उनकी सेवा का महत्व भी पता चलता है।
यह आरती हमें बताती है की हमें हमेशा किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि इससे हमें सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिलेगी और हम सुखमय जीवन जी पाएंगे।
हमें इस आरती से जो आध्यात्मिक बातें सीखने को मिलती है, उनमे से कुछ प्रमुख –
भक्ति और सेवा का महत्त्व
गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विध्न टरें।
भजन में कहा गया है कि गणपतिजी की सेवा मंगलकारी है।
उनकी सेवा करने से सभी तरह के विघ्न दूर हो जाते हैं और हमारे जीवन में मंगल (शुभ) घटनाएँ होती हैं, इसलिए गणेशजी को विघ्नहर्ता और सुखकर्ता भी कहा जाता है।
यह हमें सिखाता है कि भक्ति और सेवा जीवन में बहुत महत्त्व रखती है। भक्ति से हमें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और सेवा से हमारे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
ईश्वर की सर्वव्यापकता
तीन लोक तैतिस देवता, द्वार खड़े सब अर्ज करे॥
गणेश जी की सेवा सभी देवताओं को प्रिय है। तीन लोक के तैंतीस करोड़ देवता गणपति के द्वार पर खड़े होकर उनकी अर्चना करते हैं, उनकी सेवा में खड़े होकर प्रार्थना करते हैं।
यह हमें ईश्वर की सर्वव्यापकता का संदेश देता है। ईश्वर हर जगह विद्यमान हैं।
भगवान की कृपा
ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजे, अरु आनन्द सों चँवरकरें।
गणपतिजी के दाएं और बाएं ओर ऋद्धि (समृद्धि) और सिद्धि (साधना) विराजमान हैं, मूर्तियाँ सुशोभित हैं, और वे उनके ऊपर आनंद से चँवर अर्थात पंखा (चंवर का अर्थ निचे दिया गया है) लहरा रही हैं।
इसका तात्पर्य यह है कि गणेश जी की सेवा से ऋद्धि-सिद्धि का भी आशीर्वाद मिलता है।
गणपति सभी प्रकार की धन-धान्य और सफलता के स्रोत हैं, और जब हम भगवान की भक्ति और सेवा करते हैं, तो उनकी कृपा से हमें सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
चँवर यानी की लंबे बालों का बना पंखा, जो राजाओं आदि के ऊपर मक्खियाँ आदि उड़ाने के लिए डुलाया जाता है – चँवर डुलाना।
भक्ति का सरल तरीका
धूप दीप और लिए आरती, भक्त खड़े जयकार करें॥ गुड़ के मोदक भोग लगत है, मुषक वाहन चढ़ा करें।
भजन में कहा गया है कि भक्त धूप, दीप और आरती लेकर गणपति की जयकार करते हैं। भक्तों को अपने इष्टदेव की सेवा में बहुत उत्साह होता है।
गुड़ के मोदक गणेश जी को बहुत प्रिय हैं, इसलिए गणेश भगवान को गुड़ के मोदक के भोग से प्रसन्न किया जा सकता है और मुषक गणेश जी का वाहन है।
यह हमें भक्ति के सरल तरीके का संदेश देता है। भक्ति करने के लिए हमें किसी विशेष साधन की आवश्यकता नहीं है। हम सरल तरीके से भी भगवान की भक्ति कर सकते हैं।
सौम्य रूप की महत्ता
सौम्यरुप सेवा गणपति की, विध्न भागजा दूर परें॥
भजन में कहा गया है कि गणपतिजी का सौम्य रूप है। यह हमें सौम्य रूप की महत्ता का संदेश देता है।
इन पंक्तियों से हमें यह भी सीखने को मिलता है कि जीवन में विघ्नों का सामना करना पड़ता है, लेकिन भक्ति और सेवा से हम इन विघ्नों को दूर कर सकते हैं।
क्यों किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए?
गणपति की पूजा पहले करनी, काम सभी निर्विघ्न सरें। श्री प्रताप गणपतीजी को, हाथ जोड स्तुति करें॥
श्री गणेशजी को प्रथम पूज्य माना जाता है और उनकी पूजा सबसे पहले करनी चाहिए।
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। वे हमें जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से बचाते हैं। हमारे कार्यों में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं।
इसलिए, कोई भी कार्य शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। इससे हमारे कार्य सफल होंगे और हमारे जीवन में सुख-समृद्धि आएगी।
भगवान गणेश की स्तुति करनी चाहिए। भगवान गणेश बुद्धि, ज्ञान, और समृद्धि के देवता हैं। इसलिए उनकी स्तुति करने से हमें इन सभी गुणों की प्राप्ति होती है।
भादों मास और शुक्ल चतुर्थी, दिन दोपारा पूर परें । लियो जन्म गणपति प्रभुजी ने, दुर्गा मन आनन्द भरें॥
भगवान गणेश का जन्म भादों मास की शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। यह हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है।
भगवान गणेश का जन्म भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र के रूप में हुआ था। उनका जन्म एक अद्भुत घटना थी।
अद्भुत बाजा बजा इन्द्र का, देव वधू जहँ गान करें। श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुन्या सब विघ्न टरें॥
इस पंक्ति में श्री गणेशजी की महिमा का वर्णन किया गया है। कहा गया है कि श्री गणेशजी देवताओं के द्वारा पूजे जाते हैं और उनके नाम सुनते ही सभी विघ्न दूर हो जाते हैं।
इसलिए श्री गणेशजी की पूजा करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। उनकी पूजा करने से हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
भगवान् गणपति सभी देवताओं के आराध्य देव हैं और देवताओं द्वारा पूजे जाते है। इंद्र और ब्रह्माजी जैसे देवता भी इनकी पूजा करते हैं। और भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा है।
एकदन्त गजवदन विनायक, त्रिनयन रूप अनूप धरें। पगथंभा सा उदर पुष्ट है, देख चन्द्रमा हास्य करें॥
भगवान गणेश का एकदंत, गजवदन, त्रिनयन रूप अनूप है। इनका उदर पगथंभा सा पुष्ट है। भगवान गणेश की तीन आंखें हैं, जो तीनों लोकों को देखती हैं। इनकी एक दांत है और ये हाथी के मुख वाले हैं।
दे श्राप श्री चंद्रदेव को, कलाहीन तत्काल करें।
चंद्रमा ने भगवान गणेश का अपमान किया था, इसलिए उन्होंने चंद्रमा को कलाहीन कर दिया।
इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी का अपमान नहीं करना चाहिए।
चौदह लोक मे फिरे गणपति, तीन भुवन में राज्य करें॥
भगवान गणेश चौदह लोक में विचरण करते हैं और तीन भुवन में राज्य करते हैं। यह पंक्ति गणेश भगवान की पूजा का महत्व और प्राथमिकता बताती है और भगवान गणेश के गुणों और विशेषताओं का वर्णन करती है। इनकी कृपा से हमारा जीवन सुखमय और सफल होता है।
गण का अर्थ है लोग (जन) और गणों के नायक को गणनायक, गणाधिपति या गणपति कहते हैं। मंगल मूर्ति श्री गणेश को लोग गणपति बप्पा भी कहते है।
गणपतिजी को अग्रपूजा का सम्मान प्राप्त है, इसलिए किसी भी कार्य के आरंभ में गणेशजी की पूजा की जाती है।
गणेश जी को सुखकर्ता, दु:खहर्ता और रक्षणकर्ता कहते हैं – अर्थात भक्तों को सुख देने वाले, भक्तों के दुख हरने वाले और भक्तों की रक्षा करने वाले।
श्री गणेश को विद्या और बुद्धि के देवता भी कहा जाता है।
अ, उ और म से ओम की निर्मिति हुई है और हिन्दू संस्कृति के अनुसार ओमकार से ही विश्व निर्मिती हुई है। श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इसलिए श्री गणेश को विश्वरूप देवता माना जाता है।
इस एकाक्षर ॐ में
ऊपर का भाग गणेशजी का मस्तक,
नीचे वाला भाग उदर तथा
मात्रा सूँड है और
चंद्रबिंदु लड्डू है।
चार भुजाएँ – चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता का प्रतीक हैं।
लंबोदर (अर्थात बड़ा उदर, पेट) – क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है।
बड़े कान – अधिक ग्राह्यशक्ति, सभी भक्तों की प्रार्थनाएँ सुनते हैं।
छोटी-पैनी आँखें – सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं।
लंबी नाक (सूंड) – महाबुद्धित्व, महान बुद्धि का प्रतीक है।
गण का अर्थ है लोग (जन) और गणों के नायक को गणनायक, गणाधिपति या गणपति कहते हैं। मंगल मूर्ति श्री गणेश को लोग गणपति बप्पा भी कहते है।
गणपतिजी को अग्रपूजा का सम्मान प्राप्त है, इसलिए किसी भी कार्य के आरंभ में गणेशजी की पूजा की जाती है।
गणेश जी को सुखकर्ता, दु:खहर्ता और रक्षणकर्ता कहते हैं – अर्थात भक्तों को सुख देने वाले, भक्तों के दुख हरने वाले और भक्तों की रक्षा करने वाले।
श्री गणेश को विद्या और बुद्धि के देवता भी कहा जाता है।
अ, उ और म से ओम की निर्मिति हुई है और हिन्दू संस्कृति के अनुसार ओमकार से ही विश्व निर्मिती हुई है। श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इसलिए श्री गणेश को विश्वरूप देवता माना जाता है।
इस एकाक्षर ॐ में
ऊपर का भाग गणेशजी का मस्तक,
नीचे वाला भाग उदर तथा
मात्रा सूँड है और
चंद्रबिंदु लड्डू है।
चार भुजाएँ – चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता का प्रतीक हैं।
लंबोदर (अर्थात बड़ा उदर, पेट) – क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है।
बड़े कान – अधिक ग्राह्यशक्ति, सभी भक्तों की प्रार्थनाएँ सुनते हैं।
छोटी-पैनी आँखें – सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं।
लंबी नाक (सूंड) – महाबुद्धित्व, महान बुद्धि का प्रतीक है।
गुरु गोविंद दोऊँ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
गुरु गोविंद दोऊ खड़े – गुरु और गोविन्द (भगवान) दोनों एक साथ खड़े है
काके लागूं पाँय – पहले किसके चरण-स्पर्श करें (प्रणाम करे)?
बलिहारी गुरु – कबीरदासजी कहते है, पहले गुरु को प्रणाम करूँगा
आपने गोविन्द दियो बताय – क्योंकि, आपने (गुरु ने) गोविंद तक पहुचने का मार्ग बताया है।
गुरु आज्ञा मानै नहीं, चलै अटपटी चाल। लोक वेद दोनों गए, आए सिर पर काल॥
गुरु आज्ञा मानै नहीं – जो मनुष्य गुरु की आज्ञा नहीं मानता है,
चलै अटपटी चाल – और गलत मार्ग पर चलता है
लोक वेद दोनों गए – वह लोक (दुनिया) और वेद (धर्म) दोनों से ही पतित हो जाता है
आए सिर पर काल – और दुःख और कष्टों से घिरा रहता है
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष। गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटे न दोष॥
गुरु बिन ज्ञान न उपजै – गुरु के बिना ज्ञान मिलना कठिन है
गुरु बिन मिलै न मोष – गुरु के बिना मोक्ष नहीं
गुरु बिन लखै न सत्य को – गुरु के बिना सत्य को पह्चानना असंभव है
गुरु बिन मिटे न दोष – गुरु बिना दोष का (मन के विकारों का) मिटना मुश्किल है
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट। अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥
गुरु कुम्हार – गुरु कुम्हार के समान है
शिष कुंभ है – शिष्य मिट्टी के घडे के समान है
गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट – गुरु कठोर अनुशासन किन्तु मन में प्रेम भावना रखते हुए शिष्य के खोट को (मन के विकारों को) दूर करते है
अंतर हाथ सहार दै – जैसे कुम्हार घड़े के भीतर से हाथ का सहारा देता है
बाहर बाहै चोट – और बाहर चोट मारकर घड़े को सुन्दर आकार देता है
Sant Kabir Dohe – 1
Sant Kabir Dohe – 2
Kabir Dohe – Guru ki Mahima
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत। वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत॥
गुरु पारस को अन्तरो – गुरु और पारस पत्थर के अंतर को
जानत हैं सब संत – सभी संत (विद्वान, ज्ञानीजन) भलीभाँति जानते हैं।
वह लोहा कंचन करे – पारस पत्थर सिर्फ लोहे को सोना बनाता है
ये करि लेय महंत – किन्तु गुरु शिष्य को ज्ञान की शिक्षा देकर अपने समान गुनी और महान बना लेते है।
Kabirdas ke Dohe – Guru Mahima
गुरु समान दाता नहीं, याचक सीष समान। तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दिन्ही दान॥
गुरु समान दाता नहीं – गुरु के समान कोई दाता (दानी) नहीं है
याचक सीष समान – शिष्य के समान कोई याचक (माँगनेवाला) नहीं है
तीन लोक की सम्पदा – ज्ञान रूपी अनमोल संपत्ति, जो तीनो लोको की संपत्ति से भी बढ़कर है
सो गुरु दिन्ही दान – शिष्य के मांगने से गुरु उसे यह (ज्ञान रूपी सम्पदा) दान में दे देते है
गुरु शरणगति छाडि के, करै भरोसा और। सुख संपती को कह चली, नहीं नरक में ठौर॥
गुरु शरणगति छाडि के – जो व्यक्ति सतगुरु की शरण छोड़कर और उनके बत्ताए मार्ग पर न चलकर
करै भरोसा और – अन्य बातो में विश्वास करता है
सुख संपती को कह चली – उसे जीवन में दुखो का सामना करना पड़ता है और
नहीं नरक में ठौर – उसे नरक में भी जगह नहीं मिलती
कबीर माया मोहिनी, जैसी मीठी खांड। सतगुरु की किरपा भई, नहीं तौ करती भांड॥
कबीर माया मोहिनी – माया (संसार का आकर्षण) बहुत ही मोहिनी है, लुभावनी है
जैसी मीठी खांड – जैसे मीठी शक्कर या मीठी मिसरी
सतगुरु की किरपा भई – सतगुरु की कृपा हो गयी (इसलिए माया के इस मोहिनी रूप से बच गया)
नहीं तौ करती भांड – नहीं तो यह मुझे भांड बना देती।
(भांड – विदूषक, मसख़रा, गंवार, उजड्ड)
माया ही मनुष्य को संसार के जंजाल में उलझाए रखती है। संसार के मोहजाल में फंसकर अज्ञानी मनुष्य मन में अहंकार, इच्छा, राग और द्वेष के विकारों को उत्पन्न करता रहता है।
विकारों से भरा मन, माया के प्रभाव से उपर नहीं उठ सकता है और जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसा रहता है।
कबीरदासजी कहते है, सतगुरु की कृपा से मनुष्य माया के इस मोहजाल से छूट सकता है।
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥
यह तन विष की बेलरी – यह शरीर सांसारिक विषयो की बेल है।
गुरु अमृत की खान – सतगुरु विषय और विकारों से रहित है इसलिए वे अमृत की खान है
मन के विकार (अहंकार, आसक्ति, द्वेष आदि) विष के समान होते है। इसलिए शरीर जैसे विष की बेल है।
सीस दिये जो गुर मिलै – ऐसे सतगुरु यदि शीश (सर्वस्व) अर्पण करने पर भी मिल जाए
तो भी सस्ता जान – तो भी यह सौदा सस्ता ही समझना चाहिए।
अपना सर्वस्व समर्पित करने पर भी ऐसे सतगुरु से भेंट हो जाए, जो विषय विकारों से मुक्त है। तो भी यह सौदा सस्ता ही समझना चाहिए। क्योंकि, गुरु से ही हमें ज्ञान रूपी अनमोल संपत्ति मिल सकती है, जो तीनो लोको की संपत्ति से भी बढ़कर है।
सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार। लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥
सतगुरु महिमा अनंत है – सतगुरु की महिमा अनंत हैं
अनंत किया उपकार – उन्होंने मुझ पर अनंत उपकार किये है
लोचन अनंत उघारिया – उन्होंने मेरे ज्ञान के चक्षु (अनन्त लोचन) खोल दिए
अनंत दिखावन हार – और मुझे अनंत (ईश्वर) के दर्शन करा दिए।
ज्ञान चक्षु खुलने पर ही मनुष्य को इश्वर के दर्शन हो सकते है। मनुष्य आंखों से नहीं परन्तु भीतर के ज्ञान के चक्षु से ही निराकार परमात्मा को देख सकता है।
सब धरती कागद करूँ, लिखनी सब बनराय। सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय॥
सब धरती कागद करूं – सारी धरती को कागज बना लिया जाए
लिखनी सब बनराय – सब वनों की (जंगलो की) लकडियो को कलम बना ली जाए
सात समुद्र का मसि करूं – सात समुद्रों को स्याही बना ली जाए
गुरु गुण लिखा न जाय – तो भी गुरु के गुण लिखे नहीं जा सकते (गुरु की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता)। क्योंकि, गुरु की महिमा अपरंपार है।
Sant Kabir Dohe – Guru Mahima
गुरु सों ज्ञान जु लीजिए, सीस दीजिए दान। बहुतक भोंदू बह गए, राखि जीव अभिमान॥
गुरु सों ज्ञान जु लीजिए – गुरु से ज्ञान पाने के लिए
सीस दीजिए दान – तन और मन पूर्ण श्रद्धा से गुरु के चरणों में समर्पित कर दो।
राखि जीव अभिमान – जो अपने तन, मन और धन का अभिमान नहीं छोड़ पाते है
बहुतक भोंदु बहि गये – ऐसे कितने ही मूर्ख (भोंदु) और अभिमानी लोग संसार के माया के प्रवाह में बह जाते है। वे संसार के माया जाल में उलझ कर रह जाते है और उद्धार से वंचित रह जाते है।
गुरु मूरति गति चंद्रमा, सेवक नैन चकोर। आठ पहर निरखत रहे, गुरु मूरति की ओर॥
गुरु मूरति गति चंद्रमा – गुरु की मूर्ति जैसे चन्द्रमा और
सेवक नैन चकोर – शिष्य के नेत्र जैसे चकोर पक्षी। (चकोर पक्षी चन्द्रमा को निरंतर निहारता रहता है, वैसे ही हमें)
गुरु मूरति की ओर – गुरु ध्यान में और गुरु भक्ति में
आठ पहर निरखत रहे – आठो पहर रत रहना चाहिए। (निरखत, निरखना – ध्यान से देखना)
कबीर ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और। हरि के रुठे ठौर है, गुरु रुठे नहिं ठौर॥
कबीर ते नर अन्ध हैं – संत कबीर कहते है की वे मनुष्य नेत्रहीन (अन्ध) के समान है
गुरु को कहते और – जो गुरु के महत्व को नहीं जानते
हरि के रुठे ठौर है – भगवान के रूठने पर मनुष्य को स्थान (ठौर) मिल सकता है
गुरु रुठे नहिं ठौर – लेकिन, गुरु के रूठने पर कही स्थान नहीं मिल सकता
आछे दिन पाछे गए, गुरु सों किया न हेत। अब पछतावा क्या करै, चिड़ियाँ चुग गईं खेत॥
आछे दिन पाछे गये – अच्छे दिन बीत गए
मनुष्य सुख के दिन सिर्फ मौज मस्ती में बिता देता है
गुरु सों किया न हेत – गुरु की भक्ति नहीं की, गुरु के वचन नहीं सुने
अब पछितावा क्या करे – अब पछताने से क्या होगा
चिड़िया चुग गई खेत – जब चिड़ियाँ खेत चुग गई (जब अवसर चला गया)
Om Vinayakaay Namah Om Vighna-rajaay Namah Om Gowri-puthraaya Namah Om Ganeshwaraaya Namah Om Skanda-grajaaya Namah Om Avyayaaya Namah Om Puthaaya Namah Om Dakshaaya Namah Om Adhyakshaaya Namah Om Dwija-priyaaya Namah
Om Agni-garbha-chide Namah Om Indhra-shri-pradaaya Namah Om Vaani-pradaaya Namah Om Avyayaaya Namah Om Sarva-siddhi-pradaaya Namah Om Sarva-dhanayaaya Namah Om Sarva-priyaaya Namah Om Sarvatmakaaya Namah Om Shrishti-karthe Namah Om Dhevaaya Namah
Om Anekar-chitaaya Namah Om Shivaaya Namah Om Shuddhaaya Namah Om Buddhi-priyaaya Namah Om Shantaya Namah Om Brahma-charine Namah Om Gajana-naaya Namah Om Dvai-madhuraaya Namah Om Muni-stuthaaya Namah Om Bhakta-vighna-vinashanaaya Namah
Om Eka-dhandaya Namah Om Chatur-bhahave Namah Om Chatu-raaya Namah Om Shakthi-sam-yutaaya Namah Om Lambhodaraaya Namah Om Shoorpa-karnaaya Namah Om Haraaye Namah Om Brahma-viduttamaaya Namah Om Kalaaya Namah Om Graha-pataaye Namah
Om Kamine Namah Om Soma-suryag-nilo-chanaaya Namah Om Pashanku-shadha-raaya Namah Om Chandhaaya Namah Om Guna-thitaaya Namah Om Niranjanaaya Namah Om Akalmashaaya Namah Om Swayam-siddhaaya Namah Om Siddhar-chita-padham-bujaaya Namah Om Bijapura-phala-sakthaaya Namah
Om Varadhaaya Namah Om Shashwataaya Namah Om Krithine Namah Om Vidhwat-priyaaya Namah Om Vitha-bhayaaya Namah Om Gadhine Namah Om Chakrine Namah Om Ikshu-chapa-dhrute Namah Om Shridaaya Namah Om Ajaya Namah
Om Utphala-karaaya Namah Om Shri-pataye Namah Om Stuthi-harshi-taaya Namah Om Kuladri-bhrite Namah Om Jatilaaya Namah Om Kali-kalmasha-nashanaaya Namah Om Chandra-chuda-manaye Namah Om Kantaaya Namah Om Papaharine Namah Om Sama-hithaaya Namah
Om Aashritaaya Namah Om Shrikaraaya Namah Om Sowmyaaya Namah Om Bhakta-vamchita-dayakaaya Namah Om Shantaaya Namah Om Kaivalya-sukhadaaya Namah Om Sachida-nanda-vigrahaaya Namah Om Jnanine Namah Om Dayayuthaaya Namah Om Dandhaaya Namah
Om Brahma-dvesha-vivarjitaaya Namah Om Pramatta-daitya-bhayadaaya Namah Om Shrikanthaaya Namah Om Vibudheshwaraaya Namah Om Ramarchitaaya Namah Om Vidhaye Namah Om Nagaraja-yagyno-pavitavaathe Namah Om Sthulakanthaaya Namah Om Swayam-kartre Namah Om Sama-ghosha-priyaaya Namah
Om Parasmai Namah Om Sthula-tundhaaya Namah Om Agranyaaya Namah Om Dhiraaya Namah Om Vagishaaya Namah Om Siddhi-dhayakaaya Namah Om Dhurva-bilwa-priyaaya Namah Om Avyaktamurthaaye Namah Om Adbhuta-murthi-mathe Namah Om Shailendhra-tanu-jotsanga-khelanotsuka-manasaaya Namah
Om Swalavanya-sudha-sarajitha-manmatha-vigrahaaya Namah Om Samastha-jagada-dharaaya Namah Om Mayine Namah Om Mushika-vahanaaya Namah Om Hrishtaaya Namah Om Tushtaaya Namah Om Prasannatmane Namah Om Sarva-siddhi-pradhayakaaya Namah