Shiv Rudrashtakam Lyrics with Meaning


श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र – अर्थ सहित – नमामीशमीशान निर्वाणरूपं

तुलसीदास कृत शिव रूद्राष्टक

रुद्राष्टकम = रुद्र + अष्टक। रुद्र अर्थात भगवान शिव और अष्टक अर्थात आठ श्लोकों का समूह। इसलिए, रुद्राष्टकम स्तोत्र यानी भगवान शंकरजी की स्तुति के लिए आठ श्लोक।

तुलसीदासजी ने भगवान् शिव की स्तुति के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। स्वामी तुलसीदासजी के श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में रुद्राष्टकम स्तोत्र का उल्लेख आता है।


रुद्राष्टकम स्तोत्र पढ़ने का लाभ

रुद्राष्टकम स्तोत्र में शिवजी के रूप, गुण और कार्यों का वर्णन किया हुआ है। जो मनुष्य रुद्राष्टकम स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, भोलेनाथ उन से प्रसन्न होते हैं।उस मनुष्य के दुःख दूर हो जाते है और जीवन में सुख शांति आती है।


श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र – नमामीशमीशान निर्वाणरूपं

रुद्राष्टकम स्तोत्र के इस पोस्ट में –

  • पहले स्तोत्र शब्दों के अर्थ और भावार्थ के साथ दिया गया है।
  • बाद में स्तोत्र सिर्फ संस्कृत में और
  • अंत में श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र सिर्फ हिंदी में दिया गया है।

रूद्र के बारें में विस्तार से पढ़ने के लिए

अथर्वशिर उपनिषद में, भगवान् शिव ने देवताओं को रूद्र के बारे में जो बताया था,
और फिर रूद्र के स्वरुप का देवताओं ने किस प्रकार विस्तार से वर्णन किया, और उनकी स्तुति की, वह दिया गया है।

उस वर्णन को पढ़ने के लिए क्लिक करें – रूद्र – भगवान शिव

रुद्राष्टकम स्तोत्र में ओमकार, परब्रह्म, ईशान जैसे शब्द आते है। देवताओं ने, भगवान् रूद्र को, महेश्वर, ओमकार, ईशान, परब्रह्म, प्रणव, अनंत क्यों कहा जाता है, यह बताया था। यह सब रूद्र – भगवान शिव के लेख में दिया गया है।


Rudrashtakam Meaning In Hindi

रुद्राष्टकम स्तोत्र – अर्थ सहित

1.

मोक्षस्वरुप, आकाशरूप, सर्व्यवापी शिवजी को प्रणाम

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्॥1॥

  • नमामीशम् – श्री शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ जो
  • ईशान – ईशान दिशाके ईश्वर
  • निर्वाणरूपं – मोक्षस्वरुप
  • विभुं व्यापकं – सर्व्यवापी
  • ब्रह्मवेदस्वरूपम् – ब्रह्म और वेदस्वरूप है
  • निजं – निजस्वरुप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित)
  • निर्गुणं – गुणों से रहित
  • निर्विकल्पं – भेद रहित
  • निरीहं – इच्छा रहित
  • चिदाकाशम् – चेतन आकाशरूप एवं
  • आकाशवासं – आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले
    • अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले)
  • भजेहम् – हे शिव, आपको मैं भजता हूँ

भावार्थ: –
हे मोक्षस्वरुप, सर्व्यवापी,
ब्रह्म और वेदस्वरूप,
ईशान दिशाके ईश्वर तथा सबके स्वामी श्री शिवजी,
मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

निजस्वरुप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित,
गुणों से रहित, भेद रहित,
इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं
आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दीगम्बर
अर्थात आकाश को भी आच्छादित करने वाले,
आपको मैं भजता हूँ ॥१॥

हे ईशान! मैं मुक्तिस्वरूप, समर्थ, सर्वव्यापक, ब्रह्म, वेदस्वरूप, निजस्वरूपमें स्थित, निर्गुण, निर्विकल्प, निरीह, अनन्त ज्ञानमय और आकाशके समान सर्वत्र व्याप्त प्रभुको प्रणाम करता हूँ॥1॥


2.

ॐ कार शब्द के मूल, निराकार, महाकाल कैलाशपति को नमस्कार

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्॥2॥

  • निराकार – निराकार स्वरुप
  • ओमङ्कारमूलं – ओंकार के मूल
  • तुरीयं – तीनों गुणों से अतीत
  • गिराज्ञान गोतीतमीशं – वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे
  • गिरीशम् – कैलाशपति
  • करालं – विकराल
  • महाकालकालं – महाकाल के काल
  • कृपालं – कृपालु
  • गुणागार – गुणों के धाम
  • संसारपारं – संसार से परे
  • नतोहम् – परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ

भावार्थ: –
कैलाशपति, ओंकार के मूल,
तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत,
वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से पर, कैलाशपति,

विकराल, महाकाल के काल, कृपालु,
गुणों के धाम, संसार से परे,
आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥

जो निराकार हैं, ओंकाररूप आदिकारण हैं, तुरीय हैं, वाणी, बुद्धि और इन्द्रियोंके पथसे परे हैं, कैलासनाथ हैं, विकराल और महाकालके भी काल, कृपाल, गुणोंके आगार और संसारसे तारनेवाले हैं, उन भगवान्‌को मैं नमस्कार करता हूँ॥2॥


3.

सिरपर गंगाजी, ललाटपर चन्द्रमा, गले में सर्पों की माला

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥3॥

  • तुषाराद्रिसंकाश – जो हिमाचल के समान
  • गौरं गभिरं – गौरवर्ण तथा गंभीर हैं
  • मनोभूत कोटि प्रभा – करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है
  • श्री शरीरम् – जिनके श्री शरीर में
  • स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
  • जिनके सिरपर,
  • सुन्दर नदी गंगा जी विराजमान हैं
  • लसद्भालबालेन्दु – जिनके ललाटपर द्वितीय का चन्द्रमा और
  • कण्ठे भुजङ्गा – गले में सर्प सुशोभित हैं

भावार्थ: –
जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं,
जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,

जिनके सिरपर सुन्दर गंगा जी नदी विराजमान हैं,
जिनके ललाटपर द्वितीय का चन्द्रमा और
गले में सर्प सुशोभित हैं ॥३॥

जो हिमालयके समान श्वेतवर्ण, गम्भीर और करोड़ों कामदेवके समान कान्तिमान् शरीरवाले हैं, जिनके मस्तकपर मनोहर गंगाजी लहरा रही हैं, भालदेशमें बालचन्द्रमा सुशोभित होते हैं और गलेमें सर्पोंकी माला शोभा देती है॥3॥


4.

नीलकंठ, प्रसन्नमुख, दयालु, सबके नाथ, शिवजी को प्रणाम

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥

  • चलत्कुण्डलं – जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं
  • भ्रूसुनेत्रं विशालं – सुन्दर भृकुटि और विशाल नेत्र हैं
  • प्रसन्नाननं – जो प्रसन्नमुख
  • नीलकण्ठं – नीलकंठ और
  • दयालम् – दयालु हैं
  • मृगाधीशचर्माम्बरं – सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और
  • मुण्डमालं – मुण्डमाला पहने हैं
  • प्रियं शङ्करं – उन सबके प्यारे और
  • सर्वनाथं – सबके नाथ (कल्याण करने वाले) श्री शंकर जी को
  • भजामि – मैं भजता हूँ

भावार्थ: –
जिनके कानों में, कुण्डल हिल रहे हैं,
सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं,
जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ और दयालु हैं।

सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और
मुण्डमाला पहने हैं,
सबके प्यारे और सबके नाथ,
कल्याण करने वाले,
श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥४॥

जिनके कानोंमें कुण्डल हिल रहे हैं, जिनके नेत्र एवं भृकुटी सुन्दर और विशाल हैं, जिनका मुख प्रसन्न और कण्ठ नील है, जो बड़े ही दयालु हैं, जो बाघकी खालका वस्त्र और मुण्डोंकी माला पहनते हैं, उन सर्वाधीश्वर प्रियतम शिवका मैं भजन करता हूँ॥4॥


5.

अखंड, तेजस्वी, हाथ में त्रिशूलधारी, भवानीपति शिवजी को प्रणाम

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥

  • प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
  • प्रचंड (रुद्ररूप) श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर
  • अखण्डं – अखंड
  • अजं – अजन्मा
  • भानुकोटिप्रकाशं – करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले
  • त्र्यःशूलनिर्मूलनं – तीनों प्रकार के शूलों (दुखों) को निर्मूल करने वाले
  • शूलपाणिं – हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए
  • भजेहं – मैं भजता हूँ
  • भवानीपतिं – भवानी के पति श्री शंकर
  • भावगम्यम् – भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले

भावार्थ: –
प्रचंड (रुद्ररूप) श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर,
अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले,

तीनों प्रकार के शूलों (दुखों) को निर्मूल करने वाले,
हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए,
भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले,
भवानी के पति श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥५॥

जो प्रचण्ड, सर्वश्रेष्ठ, प्रगल्भ, परमेश्वर, पूर्ण, अजन्मा, कोटि सूर्यके समान प्रकाशमान, त्रिभुवनके शूलनाशक और हाथमें त्रिशूल धारण करनेवाले हैं, उन भावगम्य भवानीपतिका मैं भजन करता हूँ॥5॥


6.

कल्याण स्वरुप, दु:ख हरने वाले, भोलेनाथ को नमस्कार

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

  • कलातीत – कलाओं से परे
  • कल्याण – कल्याण स्वरुप
  • कल्पान्तकारी – कल्पका अंत (प्रलय) करने वाले
  • सदा सज्जनानन्ददाता – सज्जनों को सदा आनंद देने वाले
  • पुरारी – त्रिपुर के शत्रु
  • चिदानन्दसंदोह – सच्चिदानन्दघन
  • मोहापहारी – मोहको हराने वाले
  • प्रसीद प्रसीद प्रभो – कामदेव के शत्रु, हे प्रभु, प्रसन्न होइये
  • मन्मथारी – मनको मथ डालने वाले

भावार्थ: –
कलाओं से परे, कल्याण स्वरुप,
कल्पका अंत (प्रलय) करने वाले,
सज्जनों को सदा आनंद देने वाले,
त्रिपुर के शत्रु,

सच्चिदानन्दघन, मोहको हराने वाले,
मनको मथ डालने वाले,
कामदेव के शत्रु,
हे प्रभु प्रसन्न होइये ॥६॥

हे प्रभो! आप कलारहित, कल्याणकारी और कल्पका अन्त करनेवाले हैं। आप सर्वदा सत्पुरुषोंको आनन्द देते हैं, आपने त्रिपुरासुरका नाश किया था, आप मोहनाशक और ज्ञानानन्दघन परमेश्वर हैं, कामदेवके आप शत्रु हैं, आप मुझपर प्रसन्न हों, प्रसन्न हों॥6॥


7.

दु:खों से मुक्ति और सुख, शांति के लिए, शंकरजी के चरणों में प्रणाम

न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

  • न यावद् उमानाथपादारविन्दं – जबतक पार्वती के पति (शिवजी) आपके चरणकमलों को
  • भजन्तीह – मनुष्य नहीं भजते
  • लोके परे वा नराणाम् – तब तक उन्हें इसलोक में या परलोक में
  • न तावत्सुखं शान्ति – न सुख-शान्ति मिलती है और
  • सन्तापनाशं – न उनके तापों का अर्थात दुःखो का नाश होता है
  • प्रसीद प्रभो – प्रभो। प्रसन्न होइये
  • सर्वभूताधिवासं – समस्त जीवों के अन्दर (हृदय में) निवास करनेवाले

भावार्थ: –
जबतक पार्वती के पति (शंकरजी)
आपके चरणकमलों को मनुष्य नहीं भजते,
तबतक उन्हें
न तो इसलोक में ओर
ना ही परलोक में
सुख-शान्ति मिलती है और
न उनके तापों का नाश होता है।

अत: हे समस्त जीवों के अन्दर (हृदय में)
निवास करनेवाले प्रभो, प्रसन्न होइये ॥७॥

मनुष्य जबतक उमाकान्त महादेवजीके चरणारविन्दोंका भजन नहीं करते, उन्हें इहलोक या परलोकमें कभी सुख और शान्तिकी प्राप्ति नहीं होती और न उनका सन्ताप ही दूर होता है। हे समस्त भूतोंके निवासस्थान भगवान् शिव! आप मुझपर प्रसन्न हों॥7॥


8.

हे शंकर, हे शम्भो, मेरी रक्षा कीजिये

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥8॥

  • न जानामि योगं – मैं न तो योग जानता हूँ
  • जपं नैव पूजां – न जप और पूजा ही
  • नतोहं सदा सर्वदा – मैं तो सदा-सर्वदा आपको ही नमस्कार
  • शम्भुतुभ्यम् – हे शम्भो।
  • जराजन्मदुःखौघ – बुढापा (जरा), जन्म-मृत्यु के दुःख समूहों से
  • तातप्यमानं – जलते हुए मुझ दुखी की दुःख में रक्षा कीजिये
  • प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो – हे प्रभु, हे ईश्वर, हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूँ

भावार्थ: –
मैं न तो योग जानता हूँ,
न जप और पूजा ही।
हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा
आपको ही नमस्कार करता हूँ।

हे प्रभु, बुढापा तथा जन्म और मृत्यु के दुःख समूहों से जलते हुए
मुझ दुखी की दुःख में रक्षा कीजिये।
हे ईश्वर, हे शम्भो,
मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥८॥

हे प्रभो! हे शम्भो! हे ईश! मैं योग, जप और पूजा कुछ भी नहीं जानता, हे शम्भो! मैं सदा-सर्वदा आपको नमस्कार करता हूँ। जरा, जन्म और दुःखसमूहसे सन्तप्त होते हुए मुझ दुःखीकी दुःखसे आप रक्षा कीजिये॥8॥



Rudrashtakam Lyrics In English

Nama-misha-mishana
(namaam-isham-ishaana)
Nirvana Roopam
Vibhum Vyapakam
Brahma Veda Swaroopam|

Nijam Nirgunam
Nirvikalpam Niriham
Chidakasha Makasha
(cidaakaasham-aakaasha)
Vasam Bhaje (a)Hum||


Nirakara Monkara
(nirakara-onkara)
Moolam Turiyam
Gira Gnana Gotita
Misham Girisham|
(giraa-jnyaana-go-atiitam-iisham giriisham)

Karalam Mahakala
Kalam Kripaalam
Guna-agaara Samsara
Param Nato Ham||


Tusha Radri-Sankasha
Gauram Gabhiram
Mano-bhuta-Koti
Prabha Shri Sariram|

Sphuran Mauli-Kallolini
Charu-Ganga
Lasad-Bhala-Balendu
Kanthe Bhujanga||

Chalat-kundalam Bhru
Sunetram Visalam
Prasanna-Nanam
Nila-Kantham Dayalam|

Mrga-dhisa Charm-ambaram
Munda-malam
Priyam Sankaram
Sarva-natham Bhajami||


Prachandam Prakrshtam
Pragalbham Paresham
Akhandam Ajam
Bhanukoti-Prakasam|

Trayah-Shula-Nirmulanam
Shool-Panim
Bhaje Ham Bhavani-Patim
Bhava-Gamyam||


Kalatitata-Kalyana
Kalp-anta-Kari
Sada Sajjana-Nanda
Data Purarih|

Chid-ananda-Sandoha
Mohapahari
Prasida Praslda
Prabho Manmatharih||


Na Yavad
Umanatha-Padaravindam
Bhajantiha Loke
Pare-va Naranam|

Na Tavat-Sukham
Shanti-Santapa-Nasham
Praslda Prabho
Sarva Bhuta-Dhivasam||


Na Janami Yogam
Japam Naiva Pujam
Nato-Ham Sada Sarvada
Sambhu Tubhyam|

Jara Janma-Duhkhaugha
Tatapya Manam
Prabho Pahi
Apan-Namamisha Shambho||


Rudrashtakam Lyrics In Hindi

स्तोत्र अर्थ सहित

स्तोत्र सिर्फ हिन्दी में

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्॥2॥


तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥


प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥


न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥8॥


Rudrashtakam In Hindi

स्तोत्र अर्थ सहित

स्तोत्र सिर्फ संस्कृत में

1.

हे मोक्षस्वरुप, सर्व्यवापी, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशाके ईश्वर तथा सबके स्वामी श्री शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

निजस्वरुप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित, गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दीगम्बर अर्थात आकाश को भी आच्छादित करने वाले, आपको मैं भजता हूँ ॥१॥


2.

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत, वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से पर, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे, आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥


3.

जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिरपर सुन्दर गंगा जी नदी विराजमान हैं, जिनके ललाटपर द्वितीय का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित हैं ॥३॥


4.

जिनके कानों में, कुण्डल हिल रहे हैं, सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ और दयालु हैं।

सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और मुण्डमाला पहने हैं, सबके प्यारे और सबके नाथ, कल्याण करने वाले, श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥४॥


5.

प्रचंड (रुद्ररूप) श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों (दुखों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए, भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले, भवानी के पति श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥५॥


6.

कलाओं से परे, कल्याण स्वरुप, कल्पका अंत (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोहको हराने वाले, मनको मथ डालने वाले, कामदेव के शत्रु, हे प्रभु प्रसन्न होइये ॥६॥


7.

जबतक पार्वती के पति (शंकरजी) आपके चरणकमलों को मनुष्य नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इसलोक में ओर ना ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और न उनके तापों का नाश होता है।

अत: हे समस्त जीवों के अन्दर (हृदय में) निवास करनेवाले प्रभो, प्रसन्न होइये ॥७॥


8.

मैं न तो योग जानता हूँ, न जप और पूजा ही।

हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आपको ही नमस्कार करता हूँ।

हे प्रभु, बुढापा तथा जन्म और मृत्यु के दुःख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुःख में रक्षा कीजिये।

हे ईश्वर, हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥८॥

Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan


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