श्रीशिवपुराण-माहात्म्य - 6


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शिवपुराणके श्रवणकी विधि

शौनकजी कहते हैं –

महाप्राज्ञ व्यासशिष्य सूतजी! आपको नमस्कार है।

आप धन्य हैं, शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ हैं।

आपके महान् गुण वर्णन करनेयोग्य हैं।

अब आप कल्याणमय शिवपुराणके श्रवणकी विधि बतलाइये, जिससे सभी श्रोताओंको सम्पूर्ण उत्तम फलकी प्राप्ति हो सके।


सूतजीने कहा –

मुने शौनक! अब मैं तुम्हें सम्पूर्ण फलकी प्राप्तिके लिये शिव-पुराणके श्रवणकी विधि बता रहा हूँ।

पहले किसी ज्योतिषीको बुलाकर दान-मानसे संतुष्ट करके अपने सहयोगी लोगोंके साथ बैठकर बिना किसी विघ्न-बाधाके कथाकी समाप्ति होनेके उद्देश्यसे शुद्ध मुहूर्तका अनुसंधान कराये और प्रयत्नपूर्वक देश-देशमें – स्थान-स्थानपर यह संदेश भेजे कि ‘हमारे यहाँ शिवपुराणकी कथा होनेवाली है।

अपने कल्याणकी इच्छा रखनेवाले लोगोंको उसे सुननेके लिये अवश्य पधारना चाहिये।’ कुछ लोग भगवान् श्रीहरिकी कथासे बहुत दूर पड़ गये हैं।

कितने ही स्त्री, शूद्र आदि भगवान् शंकरके कथा-कीर्तनसे वंचित रहते हैं।

उन सबको भी सूचना हो जाय, ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये।

देश-देशमें जो भगवान् शिवके भक्त हों तथा शिवकथाके कीर्तन और श्रवणके लिये उत्सुक हों, उन सबको आदरपूर्वक बुलवाना चाहिये और आये हुए लोगोंका सब प्रकारसे आदर-सत्कार करना चाहिये।

शिवमन्दिरमें, तीर्थमें, वनप्रान्तमें अथवा घरमें शिवपुराणकी कथा सुननेके लिये उत्तम स्थानका निर्माण करना चाहिये।

केलेके खम्भोंसे सुशोभित एक ऊँचा कथामण्डप तैयार कराये।

उसे सब ओर फल-पुष्प आदिसे तथा सुन्दर चँदोवेसे अलंकृत करे और चारों ओर ध्वजा-पताका लगाकर तरह-तरहके सामानोंसे सजाकर सुन्दर शोभासम्पन्न बना दे।

भगवान् शिवके प्रति सब प्रकारसे उत्तम भक्ति करनी चाहिये।

वही सब तरहसे आनन्दका विधान करनेवाली है।

परमात्मा भगवान् शंकरके लिये दिव्य आसनका निर्माण करना चाहिये तथा कथावाचकके लिये भी एक ऐसा दिव्य आसन बनाना चाहिये, जो उनके लिये सुखद हो सके।

मुने! नियमपूर्वक कथा सुननेवाले श्रोताओंके लिये भी यथायोग्य सुन्दर स्थानोंकी व्यवस्था करनी चाहिये।

अन्य लोगोंके लिये साधारण स्थान ही रखने चाहिये।

जिसके मुखसे निकली हुई वाणी देहधारियोंके लिये कामधेनुके समान अभीष्ट फल देनेवाली होती है, उस पुराणवेत्ता विद्वान् वक्ताके प्रति तुच्छबुद्धि कभी नहीं करनी चाहिये।

संसारमें जन्म तथा गुणोंके कारण बहुत-से गुरु होते हैं।

परंतु उन सबमें पुराणोंका ज्ञाता विद्वान् ही परम गुरु माना गया है।

पुराणवेत्ता पवित्र, दक्ष, शान्त, ईर्ष्यापर विजय पानेवाला, साधु और दयालु होना चाहिये।

ऐसा प्रवचन-कुशल विद्वान् इस पुण्यमयी कथाको कहे।

सूर्योदयसे आरम्भ करके साढ़े तीन पहरतक उत्तम बुद्धिवाले विद्वान् पुरुषको शिवपुराण-की कथा सम्यक् रीतिसे बाँचनी चाहिये।

मध्याह्नकालमें दो घड़ीतक कथा बंद रखनी चाहिये, जिससे कथा-कीर्तनसे अवकाश पाकर लोग मल-मूत्रका त्याग कर सकें।

कथा-प्रारम्भके दिनसे एक दिन पहले व्रत ग्रहण करनेके लिये वक्ताको क्षौर करा लेना चाहिये।

जिन दिनों कथा हो रही हो, उन दिनों प्रयत्नपूर्वक प्रातःकालका सारा नित्यकर्म संक्षेपसे ही कर लेना चाहिये।

वक्ताके पास उसकी सहायताके लिये एक दूसरा वैसा ही विद्वान् स्थापित करना चाहिये।

वह भी सब प्रकारके संशयोंको निवृत्त करनेमें समर्थ और लोगोंको समझानेमें कुशल हो।

कथामें आनेवाले विघ्नोंकी निवृत्तिके लिये गणेशजीका पूजन करे।

कथाके स्वामी भगवान् शिवकी तथा विशेषतः शिवपुराणकी पुस्तककी भक्तिभावसे पूजा करे।

तत्पश्चात् उत्तम बुद्धिवाला श्रोता तन-मनसे शुद्ध एवं प्रसन्नचित्त हो आदरपूर्वक शिवपुराणकी कथा सुने।

जो वक्ता और श्रोता अनेक प्रकारके कर्मोंमें भटक रहे हों, काम आदि छः विकारोंसे युक्त हों, स्त्रीमें आसक्ति रखते हों और पाखण्डपूर्ण बातें कहते हों, वे पुण्यके भागी नहीं होते।

जो लौकिक चिन्ता तथा धन, गृह एवं पुत्र आदिकी चिन्ताको छोड़कर कथामें मन लगाये रहते हैं, उन शुद्धबुद्धि पुरुषोंको उत्तम फलकी प्राप्ति होती है।

जो श्रोता श्रद्धा और भक्तिसे युक्त होते हैं, दूसरे कर्मोंमें मन नहीं लगाते और मौन, पवित्र एवं उद्वेगशून्य होते हैं, वे ही पुण्यके भागी होते हैं।


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