शिव पुराण - रुद्र संहिता - पार्वती खण्ड - 5


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देवी उमाका हिमवान् के हृदय तथा मेनाके गर्भमें आना, गर्भस्था देवीका देवताओंद्वारा स्तवन, उनका दिव्यरूपमें प्रादुर्भाव, माता मेनासे बातचीत तथा नवजात कन्याके रूपमें परिवर्तित होना

ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! तदनन्तर मेना और हिमालय आदरपूर्वक देवकार्यकी सिद्धिके लिये कन्याप्राप्तिके हेतु वहाँ जगज्जननी भगवती उमाका चिन्तन करने लगे।

जो प्रसन्न होनेपर सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओंको देनेवाली हैं, वे महेश्वरी उमा अपने पूर्ण अंशसे गिरिराज हिमवान् के चित्तमें प्रविष्ट हुईं।

इससे उनके शरीरमें अपूर्व एवं सुन्दर प्रभा उतर आयी।

वे आनन्दमग्न हो अत्यन्त प्रकाशित होने लगे।

उस अद्भुत तेजोराशिसे सम्पन्न महामना हिमालय अग्निके समान अधृष्य हो गये थे।

तत्पश्चात् सुन्दर कल्याणकारी समयमें गिरिराज हिमालयने अपनी प्रिया मेनाके उदरमें शिवाके उस परिपूर्ण अंशका आधान किया।

इस तरह गिरिराजकी पत्नी मेनाने हिमवान् के हृदयमें विराजमान करुणानिधान देवीकी कृपासे सुखदायक गर्भ धारण किया।

सम्पूर्ण जगत् की निवासभूता देवीके गर्भमें आनेसे गिरिप्रिया मेना सदा तेजोमण्डलके बीचमें स्थित होकर अधिक शोभा पाने लगीं।

अपनी प्रिया शुभांगी मेनाको देखकर गिरिराज हिमवान् बड़ी प्रसन्नताका अनुभव करने लगे।

गर्भमें जगदम्बाके आ जानेसे वे महान् तेजसे सम्पन्न हो गयी थीं।

मुने! उस अवसरमें विष्णु आदि देवता और मुनियोंने वहाँ आकर गर्भमें निवास करनेवाली शिवा-देवीकी स्तुति की और तदनन्तर महेश्वरीकी नाना प्रकारसे स्तुति करके प्रसन्नचित्त हुए वे सब देवता अपने-अपने धामको चले गये।

जब नवाँ महीना बीत गया और दसवाँ भी पूरा हो चला, तब जगदम्बा कालिकाने समय पूर्ण होनेपर गर्भस्थ शिशुकी जो गति होती है, उसीको धारण किया अर्थात् जन्म ले लिया।

उस अवसरपर आद्याशक्ति सती-साध्वी शिवा पहले मेनाके सामने अपने ही रूपसे प्रकट हुईं।

वसन्त-ऋतुमें चैत्र मासकी नवमी तिथिको मृगशिरा नक्षत्रमें आधी रातके समय चन्द्रमण्डलसे आकाशगंगाकी भाँति मेनकाके उदरसे देवी शिवाका अपने ही स्वरूपमें प्रादुर्भाव हुआ।

उस समय सम्पूर्ण संसारमें प्रसन्नता छा गयी।

अनुकूल हवा चलने लगी, जो सुन्दर, सुगन्धित एवं गम्भीर थी।

उस समय जलकी वर्षाके साथ फूलोंकी वृष्टि हुई।

विष्णु आदि सब देवता वहाँ आये।

सबने सुखी होकर प्रसन्नताके साथ जगदम्बाके दर्शन किये और शिवलोकमें निवास करनेवाली दिव्यरूपा महामाया शिवकामिनी मंगलमयी कालिका माताका स्तवन किया।

नारद! जब देवतालोग स्तुति करके चले गये, तब मेनका उस समय प्रकट हुई नील कमल-दलके समान कान्तिवाली श्यामवर्णा देवीको देखकर अतिशय आनन्दका अनुभव करने लगीं।

देवीके उस दिव्य रूपका दर्शन करके गिरिप्रिया मेनाको ज्ञान प्राप्त हो गया।

वे उन्हें परमेश्वरी समझकर अत्यन्त हर्षसे उल्लसित हो उठीं और संतोषपूर्वक बोलीं।

मेनाने कहा—जगदम्बे! महेश्वरि! आपने बड़ी कृपा की, जो मेरे सामने प्रकट हुईं।

अम्बिके! आपकी बड़ी शोभा हो रही है।

शिवे! आप सम्पूर्ण शक्तियोंमें आद्याशक्ति तथा तीनों लोकोंकी जननी हैं।

देवि! आप भगवान् शिवको सदा ही प्रिय हैं तथा सम्पूर्ण देवताओंसे प्रशंसित पराशक्ति हैं।

महेश्वरि! आप कृपा करें और इसी रूपसे मेरे ध्यानमें स्थित हो जायँ।

साथ ही मेरी पुत्रीके अनुरूप प्रत्यक्ष दर्शनीय रूप धारण करें।

ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! पर्वतपत्नी मेनाकी यह बात सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुई शिवादेवीने उस गिरिप्रियाको इस प्रकार उत्तर दिया।

देवी बोलीं—मेना! तुमने पहले तत्परतापूर्वक मेरी बड़ी सेवा की थी।

उस समय तुम्हारी भक्तिसे प्रसन्न हो मैं वर देनेके लिये तुम्हारे निकट आयी।

‘वर माँगो’ मेरी इस वाणीको सुनकर तुमने जो वर माँगा, वह इस प्रकार है—‘महादेवि! आप मेरी पुत्री हो जायँ और देवताओंका हित-साधन करें।’ तब मैंने ‘तथास्तु’ कहकर तुम्हें सादर यह वर दे दिया और मैं अपने धामको चली गयी।

गिरिकामिनि! उस वरके अनुसार समय पाकर आज मैं तुम्हारी पुत्री हुई हूँ।

आज मैंने जो दिव्य रूपका दर्शन कराया है, इसका उद्देश्य इतना ही है कि तुम्हें मेरे स्वरूपका स्मरण हो जाय; अन्यथा मनुष्य-रूपमें प्रकट होनेपर मेरे विषयमें तुम अनजान ही बनी रहतीं।

अब तुम दोनों दम्पति पुत्रीभावसे अथवा दिव्यभावसे मेरा निरन्तर चिन्तन करते हुए मुझमें स्नेह रखो।

इससे मेरी उत्तम गति प्राप्त होगी।

मैं पृथ्वीपर अद्भुत लीला करके देवताओंका कार्य सिद्ध करूँगी।

भगवान् शम्भुकी पत्नी होऊँगी और सज्जनोंका संकटसे उद्धार करूँगी।

ऐसा कहकर जगन्माता शिवा चुप हो गयीं और उसी क्षण माताके देखते-देखते प्रसन्नतापूर्वक नवजात पुत्रीके रूपमें परिवर्तित हो गयीं।

(अध्याय ६)


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