शिव पुराण - रुद्र संहिता - पार्वती खण्ड - 40

शिव पुराण – रुद्र संहिता – पार्वती खण्ड – 40


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शिव पुराण संहिता लिंकविद्येश्वर | रुद्र संहिता | शतरुद्र | कोटिरुद्र | उमा | कैलास | वायवीय


शिव-पार्वती तथा उनकी बारातकी विदाई, भगवान् शिवका समस्त देवताओंको विदा करके कैलासपर रहना और पार्वतीखण्डके श्रवणकी महिमा

ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! ब्राह्मणीने देवी पार्वतीको पतिव्रत-धर्मकी शिक्षा देनेके पश्चात् मेनाको बुलाकर कहा—‘महारानीजी! अब अपनी पुत्रीकी यात्रा कराइये—इसे विदा कीजिये।’ तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर वे प्रेमके वशीभूत हो गयीं।

फिर धैर्य धारण करके उन्होंने कालीको बुलाया और उसके वियोगके भयसे व्याकुल हो वे बेटीको बारंबार गलेसे लगाकर अत्यन्त उच्चस्वरसे रोने लगीं।

फिर पार्वती भी करुणाजनक बात कहती हुई जोर-जोरसे रो पड़ीं।

मेना और शिवा दोनों ही विरह-शोकसे पीड़ित हो मूर्च्छित हो गयीं।

पार्वतीके रोनेसे देवपत्नियाँ भी अपनी सुध-बुध खो बैठीं।

सारी स्त्रियाँ वहाँ रोने लगीं।

वे सब-की-सब अचेत-सी हो गयीं।

उस यात्राके समय परम प्रभु साक्षात् योगीश्वर शिव भी रो पड़े, फिर दूसरा कौन चुप रह सकता था? इसी समय अपने समस्त पुत्रों, मन्त्रियों और उत्तम ब्राह्मणोंके साथ हिमालय शीघ्र वहाँ आ पहुँचे और मोहवश अपनी बच्चीको हृदयसे लगाकर रोने लगे।

‘बेटी! तुम मुझे छोड़कर कहाँ चली जा रही हो?’ ऐसा कहकर सारे जगत् को सूना मानते हुए वे बारंबार विलाप करने लगे।

तब ज्ञानियोंमें श्रेष्ठ पुरोहितने अन्य ब्राह्मणोंके सहयोगसे कृपापूर्वक अध्यात्मविद्याका उपदेश देते हुए सबको सुखद रीतिसे समझाया।

पार्वतीने भक्ति-भावसे माता-पिता तथा गुरुको प्रणाम किया।

वे महामाया होकर भी लोकाचारवश बार-बार रो उठती थीं।

पार्वतीके रोनेसे ही सब स्त्रियाँ रोने लगती थीं।

माता मेना तो बहुत रोयीं।

भौजाइयाँ भी रोने लगीं।

यही दशा भाइयोंकी थी।

शिवाकी माँ, भाभियाँ तथा अन्य युवतियाँ बार-बार रोदन करने लगीं।

भाई और पिता भी प्रेम और सौहार्दवश रोये बिना न रह सके।

उस समय ब्राह्मणोंने मिलकर सबको आदरपूर्वक समझाया और यह सूचित किया कि यात्राके लिये यही सबसे उत्तम तथा सुखद लग्न है।

तब हिमालय और मेनाने विवेकपूर्वक धैर्य धारण करके शिवाके बैठनेके लिये पालकी मँगवायी, ब्राह्मणोंकी पत्नियोंने शिवाको उसपर चढ़ाया और सबने मिलकर आशीर्वाद दिया।

पिता-माता और ब्राह्मणोंने भी अपनी शुभ कामना प्रकट की।

मेना और हिमालयने पार्वतीको ऐसे-ऐसे सामान दिये, जो महारानीके योग्य थे।

नाना प्रकारके द्रव्योंकी शुभ राशि भेंट की, जो दूसरोंके लिये परम दुर्लभ थी।

शिवाने समस्त गुरुजनोंको, माता-पिताको, पुरोहित और ब्राह्मणोंको तथा भौजाइयों और दूसरी स्त्रियोंको प्रणाम करके यात्रा की।

पुत्रोंसहित बुद्धिमान् हिमाचल भी स्नेहके वशीभूत हो पीछे-पीछे गये और उस स्थानपर पहुँचे, जहाँ देवताओंसहित भगवान् शिव प्रसन्नतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहे थे।

वहाँ सब लोग बड़े प्रेम और आनन्दसे परस्पर मिले।

उन सबने भगवान् को प्रणाम किया और उनकी प्रशंसा करते हुए वे पुरीको लौट गये।

तदनन्तर कैलास पहुँचकर भगवान् शिवने पार्वतीसे कहा—‘देवेश्वरि! तुम सदासे ही मेरी प्राणप्रिया हो।

तुम्हें लीला-पूर्वक इस बातकी याद दिला रहा हूँ।

तुम्हें पूर्वजन्मकी बातोंका स्मरण है।

अतः मेरे और अपने नित्य सम्बन्धका यदि तुम्हें स्मरण हो तो बताओ।’ अपने प्राणनाथ महेश्वरकी यह बात सुनकर शंकरकी नित्य प्रिया पार्वती मुसकराती हुई बोलीं—‘प्राणेश्वर! मुझे सब बातोंका स्मरण है, किंतु इस समय आप चुप रहिये और इस अवसरके अनुरूप जो कार्य हो, उसीको शीघ्र पूर्ण कीजिये।’ ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! प्रिया पार्वतीके सैकड़ों सुधा-धाराओंके समान मधुर वचनको सुनकर लोकाचारपरायण भगवान् विश्वनाथ बड़े प्रसन्न हुए।

उन्होंने बहुत-सी सामग्रियाँ एकत्र करके नारायण आदि देवताओंको भाँति-भाँतिकी मनोहर भोज्य वस्तुएँ खिलायीं।

इसी तरह अपने विवाहमें पधारे हुए दूसरे लोगोंको भी भगवान् शंकरने प्रेमपूर्वक सुमधुर रससे युक्त नाना प्रकारका अन्न भोजन कराया।

भोजन करनेके पश्चात् उन सब देवताओंने नाना रत्नोंसे विभूषित हो अपनी स्त्रियों और सेवकगणोंके साथ आकर प्रभु चन्द्रशेखरको प्रणाम किया।

फिर प्रिय वचनोंद्वारा प्रसन्नतापूर्वक उनकी स्तुति एवं परिक्रमा करके शिव-विवाहकी प्रशंसा करते हुए वे सब लोग अपने-अपने धामको चले गये।

मुने! साक्षात् भगवान् शिवने लोकाचारवश भगवान् विष्णुको और मुझको भी प्रणाम किया—ठीक उसी तरह, जैसे वामनरूपधारी श्रीहरिने महर्षि कश्यपको नमस्कार किया था।

तब मैंने और श्रीविष्णुने शिवको हृदयसे लगाकर उनको आशीर्वाद दिया।

तदनन्तर श्रीहरिने उन्हें परब्रह्म परमात्मा मानकर उनकी उत्तम स्तुति की।

इसके बाद मेरेसहित भगवान् विष्णु शिवसे विदा ले शिवा और शिवको प्रसन्नतापूर्वक हाथ जोड़ उनके विवाहकी प्रशंसा करते हुए अपने उत्तम धामको गये।

भगवान् शिव भी पार्वतीके साथ सानन्द विहार करते हुए अपने निवासभूत कैलास पर्वतपर रहने लगे।

समस्त शिवगणोंको इस विवाहसे बड़ा सुख मिला।

वे अत्यन्त भक्तिपूर्वक शिवा और शिवकी आराधना करने लगे।

तात! इस प्रकार मैंने परम मंगलमय शिव-विवाहका वर्णन किया।

यह शोकनाशक, आनन्ददायक तथा धन और आयुकी वृद्धि करनेवाला है।

जो पुरुष भगवान् शिव और शिवामें मन लगाकर पवित्र हो प्रतिदिन इस प्रसंगको सुनता अथवा नियमपूर्वक दूसरोंको सुनाता है, वह शिवलोक प्राप्त कर लेता है।

यह अद्भुत आख्यान कहा गया, जो मंगलका आवासस्थान है।

यह सम्पूर्ण विघ्नोंको शान्त करके समस्त रोगोंका नाश करनेवाला है।

इसके द्वारा स्वर्ग, यश, आयु तथा पुत्र और पौत्रोंकी प्राप्ति होती है।

यह सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण करता, इस लोकमें भोग देता और परलोकमें मोक्ष प्रदान करता है।

इस शुभ प्रसंगको सुननेसे अपमृत्युका शमन होता है और परम शान्तिकी प्राप्ति होती है।

यह समस्त दुःस्वप्नोंका नाशक तथा बुद्धि एवं विवेक आदिका साधक है।

अपने शुभकी इच्छा रखनेवाले लोगोंको शिव-सम्बन्धी सभी उत्सवोंमें प्रसन्नताके साथ प्रयत्नपूर्वक इसका पाठ करना चाहिये।

यह भगवान् शिवको संतोष प्रदान करनेवाला है।

विशेषतः देवता आदिकी प्रतिष्ठाके समय तथा शिवसम्बन्धी सभी कार्योंके प्रसंगमें प्रसन्नतापूर्वक इसका पाठ करना चाहिये अथवा पवित्र हो शिव-पार्वतीके इस कल्याणकारी चरित्रका श्रवण करना चाहिये।

ऐसा करनेसे समस्त कार्य सिद्ध होते हैं।
यह सत्य है, सत्य है।
इसमें संशय नहीं है। (अध्याय ५५)

।। रुद्रसंहिताका पार्वतीखण्ड सम्पूर्ण ।।


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