<< शिव पुराण – रुद्र संहिता – पार्वती खण्ड – 31
शिव पुराण संहिता लिंक – विद्येश्वर | रुद्र संहिता | शतरुद्र | कोटिरुद्र | उमा | कैलास | वायवीय
भगवान् शिवका अपने परम सुन्दर दिव्य रूपको प्रकट करना, मेनाकी प्रसन्नता और क्षमा-प्रार्थना तथा पुरवासिनी स्त्रियोंका शिवके रूपका दर्शन करके जन्म और जीवनको सफल मानना
ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! इसी समय भगवान् विष्णुसे प्रेरित हो तुम शीघ्र ही भगवान् शंकरको अनुकूल बनानेके लिये उनके निकट गये।
वहाँ जाकर देवताओंका कार्य सिद्ध करनेकी इच्छासे नाना प्रकारके स्तोत्रोंद्वारा तुमने रुद्रदेवको संतुष्ट किया।
तुम्हारी बात सुनकर शम्भुने प्रसन्नतापूर्वक अद्भुत, उत्तम एवं दिव्य रूप धारण कर लिया।
ऐसा करके उन्होंने अपने दयालु स्वभावका परिचय दिया।
मुने! भगवान् शम्भुका वह स्वरूप कामदेवसे भी अधिक सुन्दर तथा लावण्यका परम आश्रय था; उसका दर्शन करके तुम बड़े प्रसन्न हुए और उस स्थानपर गये, जहाँ सबके साथ मेना विद्यमान थीं।
वहाँ पहुँचकर तुमने कहा—विशाल नेत्रोंवाली मेने! भगवान् शिवके उस सर्वोत्तम रूपका दर्शन करो।
यह रूप प्रकट करके उन करुणामय शिवने तुमपर बड़ी ही कृपा की है।
तुम्हारी यह बात सुनकर शैलराजकी पत्नी मेना आश्चर्यचकित हो गयीं।
उन्होंने शिवके उस परमानन्ददायक रूपका दर्शन किया, जो करोड़ों सूर्योंके समान तेजस्वी, सर्वांगसुन्दर, विचित्र वस्त्रधारी तथा नाना प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित था।
वह अत्यन्त प्रसन्न, सुन्दर हास्यसे सुशोभित, ललित लावण्यसे लसित, मनोहर, गौरवर्ण, द्युतिमान् तथा चन्द्रलेखासे अलंकृत था।
विष्णु आदि सम्पूर्ण देवता बड़े प्रेमसे भगवान् शिवकी सेवा कर रहे थे।
सूर्यदेवने छत्र लगा रखा था।
चन्द्रदेव मस्तकका मुकुट बनकर उनकी शोभा बढ़ा रहे थे।
इन सब साधनोंसे भगवान् शंकर सर्वथा रमणीय जान पड़ते थे।
उनका वाहन भी अनेक प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित था।
उसकी महाशोभाका वर्णन नहीं हो सकता था।
गंगा और यमुना भगवान् शिवको सुन्दर चँवर डुला रही थीं और आठों सिद्धियाँ उनके आगे नाच रही थीं।
उस समय मैं, भगवान् विष्णु तथा इन्द्र आदि देवता अपने-अपने वेशको भलीभाँति विभूषित करके पर्वतवासी भगवान् शिवके साथ चल रहे थे।
नानारूपधारी शिवके गण खूब सज-धजकर अत्यन्त आनन्दित हो शिवके आगे-आगे चल रहे थे।
सिद्ध, उपदेवता, समस्त मुनि तथा अन्य सब लोग भी महान् सुखका अनुभव करते हुए अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक शिवके साथ यात्रा कर रहे थे।
इस प्रकार देवता आदि सब लोग विवाह देखनेके लिये उत्कण्ठित हो खूब सज-धजकर अपनी पत्नियोंके साथ परब्रह्म शिवका यशोगान करते हुए जा रहे थे।
विश्वावसु आदि गन्धर्व अप्सराओंके साथ हो शंकरजीके उत्तम यशका गान करते हुए उनके आगे-आगे चल रहे थे।
मुनिश्रेष्ठ! महेश्वरके शैलराजके द्वारपर पधारते समय इस प्रकार वहाँ नाना प्रकारका महान् उत्सव हो रहा था।
मुनीश्वर! उस समय वहाँ परमात्मा शिवकी जैसी शोभा हो रही थी, उसका विशेषरूपसे वर्णन करनेमें कौन समर्थ हो सकता है? उन्हें वैसे विलक्षण रूपमें देखकर मेना क्षणभरके लिये चित्रलिखी-सी रह गयीं।
फिर बड़ी प्रसन्नताके साथ बोलीं—‘महेश्वर! मेरी पुत्री धन्य है, जिसने बड़ा भारी तप किया और उस तपके प्रभावसे आप मेरे इस घरमें पधारे।
पहले जो मैंने आप शिवकी अक्षम्य निन्दा की है, उसे मेरी शिवाके स्वामी शिव! आप क्षमा करें और इस समय पूर्णतः प्रसन्न हो जायँ।’ ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! इस प्रकार बात करके चन्द्रमौलि शिवकी स्तुति करती हुई शैलप्रिया मेनाने उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम किया, फिर वे लज्जित हो गयीं।
इतनेमें ही बहुत-सी पुरवासिनी स्त्रियाँ भगवान् शिवके दर्शनकी लालसासे अनेक प्रकारके काम छोड़कर वहाँ आ पहुँचीं।
जो जैसे थीं, वैसे ही अस्त-व्यस्तरूपमें दौड़ आयीं।
भगवान् शंकरका वह मनोहर रूप देखकर वे सब मोहित हो गयीं।
शिवके दर्शनसे हर्षको प्राप्त हो प्रेमपूर्ण हृदयवाली वे नारियाँ महेश्वरकी उस मूर्तिको अपने मनोमन्दिरमें बिठाकर इस प्रकार बोलीं।
पुरवासिनियोंने कहा—अहो! हिमवान् के नगरमें निवास करनेवाले लोगोंके नेत्र आज सफल हो गये।
जिस-जिस व्यक्तिने इस दिव्य रूपका दर्शन किया है, निश्चय ही उसका जन्म सार्थक हो गया है।
उसीका जन्म सफल है और उसीकी सारी क्रियाएँ सफल हैं, जिसने सम्पूर्ण पापोंका नाश करनेवाले साक्षात् शिवका दर्शन किया है।
पार्वतीने शिवके लिये जो तप किया है, उसके द्वारा उन्होंने अपना सारा मनोरथ सिद्ध कर लिया।
शिवको पतिके रूपमें पाकर ये शिवा धन्य और कृतकृत्य हो गयीं।
यदि विधाता शिवा और शिवकी इस युगल जोड़ीको सानन्द एक-दूसरेसे मिला न देते तो उनका सारा परिश्रम निष्फल हो जाता।
इस उत्तम जोड़ीको मिलाकर ब्रह्माजीने बहुत अच्छा कार्य किया है।
इससे सबके सभी कार्य सार्थक हो गये।
तपस्याके बिना मनुष्योंके लिये शम्भुका दर्शन दुर्लभ है।
भगवान् शंकरके दर्शनमात्रसे ही सब लोग कृतार्थ हो गये।
जो-जो सर्वेश्वर गिरिजापति शंकरका दर्शन करते हैं, वे सारे पुरुष श्रेष्ठ हैं और हम सारी स्त्रियाँ भी धन्य हैं।
ब्रह्माजी कहते हैं—नारद! ऐसी बात कहकर उन स्त्रियोंने चन्दन और अक्षतसे शिवका पूजन किया और बड़े आदरसे उनके ऊपर खीलोंकी वर्षा की।
वे सब स्त्रियाँ मेनाके साथ उत्सुक होकर खड़ी रहीं और मेना तथा गिरिराजके भूरिभाग्यकी सराहना करती रहीं।
मुने! स्त्रियोंके मुखसे वैसी शुभ बातें सुनकर विष्णु आदि सब देवताओंके साथ भगवान् शिवको बड़ा हर्ष हुआ।
(अध्याय ४५)
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