शिव पुराण विषय-सूची – 4
शिव पुराण संहिता लिंक – विद्येश्वर | रुद्र संहिता | शतरुद्र | कोटिरुद्र | उमा | कैलास | वायवीय
वायवीयसंहिता (पूर्वखण्ड)
1. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 1
प्रयागमें ऋषियोंद्वारा सम्मानित सूतजीके द्वारा कथाका आरम्भ, विद्यास्थानों एवं पुराणोंका परिचय तथा वायुसंहिताका प्रारम्भ
2. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 2
ऋषियोंका ब्रह्माजीके पास जा उनकी स्तुति करके उनसे परमपुरुषके विषयमें प्रश्न करना और ब्रह्माजीका आनन्दमग्न हो ‘रुद्र’ कहकर उत्तर देना
3. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 3
ब्रह्माजीके द्वारा परमतत्त्वके रूपमें भगवान् शिवकी ही महत्ताका प्रतिपादन, उनकी कृपाको ही सब साधनोंका फल बताना तथा उनकी आज्ञासे सब मुनियोंका नैमिषारण्यमें आना
4. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 4
नैमिषारण्यमें दीर्घसत्रके अन्तमें मुनियोंके पास वायुदेवताका आगमन, उनका सत्कार तथा ऋषियोंके पूछनेपर वायुके द्वारा पशु, पाश एवं पशुपतिका तात्त्विक विवेचन
5. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 5
महेश्वरकी महत्ताका प्रतिपादन
6. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 6
ब्रह्माजीकी मूर्च्छा, उनके मुखसे रुद्रदेवका प्राकट्य, सप्राण हुए ब्रह्माजीके द्वारा आठ नामोंसे महेश्वरकी स्तुति तथा रुद्रकी आज्ञासे ब्रह्माद्वारा सृष्टि-रचना
7. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 7
भगवान् रुद्रके ब्रह्माजीके मुखसे प्रकट होनेका रहस्य, रुद्रके महामहिम स्वरूपका वर्णन, उनके द्वारा रुद्रगणोंकी सृष्टि तथा ब्रह्माजीके रोकनेसे उनका सृष्टिसे विरत होना
8. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 8
ब्रह्माजीके द्वारा अर्द्धनारीश्वररूपकी स्तुति तथा उस स्तोत्रकी महिमा
9. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 9
महादेवजीके शरीरसे देवीका प्राकट्य और देवीके भ्रूमध्यभागसे शक्तिका प्रादुर्भाव
10. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 10
भगवान् शिवका पार्वती तथा पार्षदोंके साथ मन्दराचलपर जाकर रहना, शुम्भ-निशुम्भके वधके लिये ब्रह्माजीकी प्रार्थनासे शिवका पार्वतीको ‘काली’ कहकर कुपित करना और कालीका ‘गौरी’ होनेके लिये तपस्याके निमित्त जानेकी आज्ञा माँगना
11. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 11
पार्वतीकी तपस्या, एक व्याघ्रपर उनकी कृपा, ब्रह्माजीका उनके पास आना, देवीके साथ उनका वार्तालाप, देवीके द्वारा काली त्वचाका त्याग और उससे कृष्णवर्णा कुमारी कन्याके रूपमें उत्पन्न हुई कौशिकीके द्वारा शुम्भ-निशुम्भका वध
12. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 12
गौरीदेवीका व्याघ्रको अपने साथ ले जानेके लिये ब्रह्माजीसे आज्ञा माँगना, ब्रह्माजीका उसे दुष्कर्मी बताकर रोकना, देवीका शरणागतको त्यागनेसे इनकार करना, ब्रह्माजीका देवीकी महत्ता बताकर अनुमति देना और देवीका माता-पितासे मिलकर मन्दराचलको जाना
13. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 13
मन्दराचलपर गौरीदेवीका स्वागत, महादेवजीके द्वारा उनके और अपने उत्कृष्ट स्वरूप एवं अविच्छेद्य सम्बन्धपर प्रकाश तथा देवीके साथ आये हुए व्याघ्रको उनका गणाध्यक्ष बनाकर अन्तःपुरके द्वारपर सोमनन्दी नामसे प्रतिष्ठित करना
14. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 14
अग्नि और सोमके स्वरूपका विवेचन तथा जगत्की अग्नीषोमात्मकताका प्रतिपादन
15. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 15
जगत् ‘वाणी और अर्थरूप’ है—इसका प्रतिपादन
16. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 16
ऋषियोंके प्रश्नका उत्तर दत हुए वायुदेवके द्वारा शिवके स्वतन्त्र एवं सर्वानुग्राहक स्वरूपका प्रतिपादन
17. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 17
परम धर्मका प्रतिपादन, शैवागमके अनुसार पाशुपत ज्ञान तथा उसके साधनोंका वर्णन
18. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 18
पाशुपत-व्रतकी विधि और महिमा तथा भस्म-धारणकी महत्ता
19. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 19
बालक उपमन्युको दूधके लिये दुःखी देख माताका उसे शिवकी आराधनाके लिये प्रेरित करना तथा उपमन्युकी तीव्र तपस्या
20. शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 20
भगवान् शंकरका इन्द्ररूप धारण करके उपमन्युके भक्तिभावकी परीक्षा लेना, उन्हें क्षीरसागर आदि देकर बहुत-से वर देना और अपना पुत्र मानकर पार्वतीके हाथमें सौंपना, कृतार्थ हुए उपमन्युका अपनी माताके स्थानपर लौटना
वायवीयसंहिता (उत्तरखण्ड)
1. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 1
ऋषियोंके पूछनेपर वायुदेवका श्रीकृष्ण और उपमन्युके मिलनका प्रसंग सुनाना, श्रीकृष्णको उपमन्युसे ज्ञानका और भगवान् शंकरसे पुत्रका लाभ
2. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 2
उपमन्युद्वारा श्रीकृष्णको पाशुपत ज्ञानका उपदेश
3. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 3
भगवान् शिवकी ब्रह्मा आदि पंचमूर्तियों, ईशानादि ब्रह्ममूर्तियों तथा पृथ्वी एवं शर्व आदि अष्टमूर्तियोंका परिचय और उनकी सर्वव्यापकताका वर्णन
4. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 4
शिव और शिवाकी विभूतियोंका वर्णन
5. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 5
परमेश्वर शिवके यथार्थ स्वरूपका विवेचन तथा उनकी शरणमें जानसे जीवके कल्याणका कथन
6. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 6
शिवके शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, सर्वमय, सर्वव्यापक एवं सर्वातीत स्वरूपका तथा उनकी प्रणवरूपताका प्रतिपादन
7. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 7
परमेश्वरकी शक्तिका ऋषियोंद्वारा साक्षात्कार, शिवके प्रसादसे प्राणियोंकी मुक्ति, शिवकी सेवाभक्ति तथा पाँच प्रकारके शिव-धर्मका वर्णन
8. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 8
शिव-ज्ञान, शिवकी उपासनासे देवताओंको उनका दर्शन, सूर्यदेवमें शिवकी पूजा करके अर्घ्यदानकी विधि तथा व्यासावतारोंका वर्णन
9. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 9
शिवके अवतार, योगाचार्यों तथा उनके शिष्योंकी नामावली
10. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 10
भगवान् शिवके प्रति श्रद्धा-भक्तिकी आवश्यकताका प्रतिपादन, शिवधर्मके चार पादोंका वर्णन एवं ज्ञानयोगके साधनों तथा शिवधर्मके अधिकारियोंका निरूपण, शिवपूजनके अनेक प्रकार एवं अनन्यचित्तसे भजनकी महिमा
11. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 11
वर्णाश्रम-धर्म तथा नारी-धर्मका वर्णन; शिवके भजन, चिन्तन एवं ज्ञानकी महत्ताका प्रतिपादन
12. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 12
पंचाक्षर-मन्त्रके माहात्म्यका वर्णन
13. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 13
पंचाक्षर-मन्त्रकी महिमा, उसमें समस्त वाङ्मयकी स्थिति, उसकी उपदेशपरम्परा, देवीरूपा पंचाक्षरीविद्याका ध्यान, उसके समस्त और व्यस्त अक्षरोंके ऋषि, छन्द, देवता, बीज, शक्ति तथा अंगन्यास आदिका विचार
14. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 14
गुरुसे मन्त्र लेने तथा उसके जप करनेकी विधि, पाँच प्रकारके जप तथा उनकी महिमा, मन्त्रगणनाके लिये विभिन्न प्रकारकी मालाओंका महत्त्व तथा अंगुलियोंके उपयोगका वर्णन, जपके लिये उपयोगी स्थान तथा दिशा, जपमें वर्जनीय बातें, सदाचारका महत्त्व, आस्तिकताकी प्रशंसा तथा पंचाक्षर-मन्त्रकी विशेषताका वर्णन
15. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 15
त्रिविध दीक्षाका निरूपण, शक्तिपातकी आवश्यकता तथा उसके लक्षणोंका वर्णन, गुरुका महत्त्व, ज्ञानी गुरुसे ही मोक्षकी प्राप्ति तथा गुरुके द्वारा शिष्यकी परीक्षा
16. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 16
समय-संस्कार या समयाचारकी दीक्षाकी विधि
17. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 17
षडध्वशोधनकी विधि
18. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 18
षडध्वशोधनकी विधि
19. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 19
साधक-संस्कार और मन्त्र-माहात्म्यका वर्णन
20. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 20
योग्य शिष्यके आचार्यपदपर अभिषेकका वर्णन तथा संस्कारके विविध प्रकारोंका निर्देश
21. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 21
अन्तर्याग अथवा मानसिक पूजाविधिका वर्णन
22. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 22
शिवपूजनकी विधि
23. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 23
शिवपूजाकी विशेष विधि तथा शिव-भक्तिकी महिमा
24. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 24
पंचाक्षर-मन्त्रके जप तथा भगवान् शिवके भजन-पूजनकी महिमा, अग्निकार्यके लिये कुण्ड और वेदी आदिके संस्कार, शिवाग्निकी स्थापना और उसके संस्कार, होम, पूर्णाहुति, भस्मके संग्रह एवं रक्षणकी विधि तथा हवनान्तमें किये जानेवाले कृत्यका वर्णन
25. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 25
काम्य कर्मके प्रसंगमें शक्तिसहित पंचमुख महादेवकी पूजाके विधानका वर्णन
26. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 26
आवरणपूजाकी विस्तृत विधि तथा उक्त विधिसे पूजनकी महिमाका वर्णन
27. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 27
शिवके पाँच आवरणोंमें स्थित सभी देवताओंकी स्तुति तथा उनसे अभीष्टपूर्ति एवं मंगलकी कामना
28. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 28
ऐहिक फल देनेवाले कर्मों और उनकी विधिका वर्णन, शिवपूजनकी विधि, शान्ति-पुष्टि आदि विविध काम्य कर्मोंमें विभिन्न हवनीय पदार्थोंके उपयोगका विधान
29. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 29
पारलौकिक फल देनेवाले कर्म—शिवलिंग-महाव्रतकी विधि और महिमाका वर्णन
30. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 30
योगके अनेक भेद, उसके आठ और छः अंगोंका विवेचन—यम, नियम, आसन, प्राणायाम, दशविध प्राणोंको जीतनेकी महिमा, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधिका निरूपण
31. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 31
योगमार्गके विघ्न, सिद्धि-सूचक उपसर्ग तथा पृथ्वीसे लेकर बुद्धि-तत्त्वपर्यन्त ऐश्वर्यगुणोंका वर्णन, शिव-शिवाके ध्यानकी महिमा
32. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 32
ध्यान और उसकी महिमा, योगधर्म तथा शिवयोगीका महत्त्व, शिवभक्त या शिवके लिये प्राण देने अथवा शिवक्षेत्रमें मरणसे तत्काल मोक्ष-लाभका कथन
33. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 33
वायुदेवका अन्तर्धान, ऋषियोंका सरस्वतीमें अवभृथ-स्नान और काशीमें दिव्य तेजका दर्शन करके ब्रह्माजीके पास जाना, ब्रह्माजीका उन्हें सिद्धि-प्राप्तिकी सूचना देकर मेरुके कुमार-शिखरपर भेजना
34. शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 34
मेरुगिरिके स्कन्द-सरोवरके तटपर मुनियोंका सनत्कुमारजीसे मिलना, भगवान् नन्दीका वहाँ आना और दृष्टिपातमात्रसे पाशछेदन एवं ज्ञानयोगका उपदेश करके चला जाना, शिवपुराणकी महिमा तथा ग्रन्थका उपसंहार
Shiv Purana List
- शिव पुराण – विद्येश्वर संहिता
- शिव पुराण – रुद्र संहिता
- शिव पुराण – शतरुद्र संहिता
- शिव पुराण – कोटिरुद्र संहिता
- शिव पुराण – उमा संहिता
- शिव पुराण – कैलास संहिता
- शिव पुराण – वायवीय संहिता
Shiv Stotra, Mantra
- श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र – अर्थ सहित - नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
- श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र – अर्थ सहित – नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय
- द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र - अर्थ सहित
- ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – संक्षिप्त, छोटा - अर्थ सहित
- शिव ताण्डव स्तोत्र - अर्थ सहित
Shiv Bhajan, Aarti, Chalisa
- शिवशंकर को जिसने पूजा
- सत्यम शिवम सुन्दरम - ईश्वर सत्य है
- शिव आरती - ओम जय शिव ओंकारा
- ऐसी सुबह ना आए, आए ना ऐसी शाम
- कैलाश के निवासी नमो बार बार
- ऐसा डमरू बजाया भोलेनाथ ने
- मेरा भोला है भंडारी, करे नंदी की सवारी
- सज रहे भोले बाबा निराले दूल्हे में - शिव विवाह भजन
- ॐ नमः शिवाय 108 Times
- महामृत्युंजय मंत्र - ओम त्र्यम्बकं यजामहे - अर्थसहित