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संत कबीर के दोहे – भाग 2 (Sant Kabir ke Dohe – Page 2)
आया था किस काम को,
तु सोया चादर तान।
सुरत सम्भाल ए गाफिल,
अपना आप पहचान॥
साईं इतना दीजिये,
जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ,
साधु ना भूखा जाय॥
तिनका कबहुँ ना निंदये,
जो पाँव तले होय।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े,
पीर घानेरी होय॥
बडा हुआ तो क्या हुआ,
जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही,
फल लागे अति दूर॥
आय हैं सो जाएँगे,
राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ि चले,
एक बँधे जात जंजीर॥
काल करे सो आज कर,
आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी,
बहुरि करेगा कब॥
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े,
का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे,
गोबिंद दियो मिलाय॥
धीरे-धीरे रे मना,
धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा,
ॠतु आए फल होय॥
जाति न पूछो साधु की,
पूछि लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का,
पड़ा रहन दो म्यान॥
दुर्लभ मानुष जन्म है,
देह न बारम्बार।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े,
बहुरि न लागे डार॥
कबीर के दोहे – 3 (Kabir ke Dohe – 3)
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