गीता के अनुसार मनुष्य का भविष्य कैसे बनता है?


मनुष्य की गति – मन के विचार और उनके परिणाम

भगवद्गीता के कुछ श्लोकों के जरिए भगवान् ने यह बताया कि
कैसे मनुष्य के विचार और उसका आचरण
उसका भविष्य निर्धारित करते है और
उसकी क्या गति होती है।

इस पोस्ट में
गीता के उन श्लोकों का अर्थ दिया गया है और
धर्मग्रंथों और संतों के प्रवचनों के आधार पर
उपाय दिया गया है।


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ऊपर की इमेज में दिए गए शब्द

मनुष्य योनि –

  • 0 – मनुष्य – मनुष्य जीवन

पशु योनि का कारण –

  • 1 – लोभ – जैसे मुझे 10 रुपये चाहिए
  • 2 – मोह – 10 रुपये मिलने के बाद, मुझे और 100 रुपये चाहिए
  • 3 – आसक्ति – ये मेरा पैसा, ये मेरा घर, ये मेरा बच्चा
  • 4 – घमंड – मैने किया, मैने कमाया, मैने घर बनाया
  • 5 – अहंकार – मै, मेरा, मेरी कोई गलती नही, मै सबसे अच्छा

द्वेष, क्रोध जैसे जहर की वजह से जहरीले पशु योनि का कारण –

  • 6 – ईर्ष्या – उसके पास मेरे से ज्यादा कैसे
  • 7 – द्वेष, घृणा – उसने मेरे साथ ऐसे किया, उसने मेरे को ऐसा बोला

फिर राक्षस लोक, नरक लोक का कारण –

  • 8 – क्रोध – मैंने उसके लिए इतना किया और उसने मेरे साथ ऐसा किया, इसलिए क्रोध और झगड़ा
  • 9 – क्रोध, लोभ की वजह से स्थितियां – जैसे चोरी, हत्या, मारना आदि

बार-बार आसुरी योनि, घोर नरक का कारण –

  • 10 – गलतियों का अहसास ना होना,
    अपनी गलतियों के लिए, अपराध के लिए,
    ईश्वर से माफ़ी ना मांगना

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हे ईश्वर! हमें सद्बुद्धि दो।


गीता के श्लोकों में मन के विचारों का वर्णन

भगवद्गीता के कुछ श्लोकों में
मन में उठने वाले विचार और
उसके परिणामों के बारें में दिया गया है।

उनमे से कुछ श्लोक है –

अध्याय 16 – श्लोक 15 से 21,
अध्याय 13 – श्लोक 21 और
अध्याय 14 – श्लोक 15

निचे उन श्लोकों के
प्रत्येक शब्द का अर्थ और
भावार्थ दिया गया है।

जिसे पढ़ने पर हमें पता चलता है कि
भगवान् ने हमें इन विचारों के बारे में क्या बताया है।


इसका उपाय क्या है?

प्रत्येक क्षण हमारे अंतर्मन में
इनमे से कुछ ना कुछ विचार उठते ही रहते है।

कभी पैसे के लोभ का,
कभी सांसारिक चीजों की इच्छा का,
कभी अहंकार और घमंड का,
तो कभी द्वेष का विचार
हर समय हमारे मन में उठते ही रहते है।

ये विकार जन्म जन्मांतर से
अंतर्मन में इतने गहरे बेठे है,
कि इनको निकालना इतना आसान नहीं है।

—-

तो इन विकारों से कैसे बच सकते है?

इसके लिए हमें ईश्वर, प्रभु, भगवान्,
परमपिता परमेश्वर की सहायता लेनी पड़ती है।

इसलिए सभी धर्मों के ग्रंथो में
प्रार्थना, पश्चाताप को इतना महत्व दिया गया है।

सभी संतों ने ईश्वर से प्रार्थना और
बार बार अपनी गलतियों के लिए
ईश्वर से माफ़ी मांगने के बारे कहा है।

प्रार्थना के कुछ वाक्य जैसे की –

हे ईश्वर! मेरे मन और अंतर्मन को
पवित्र कर देना।

हे ईश्वर! मेरी गलतियां और
मेरे अपराध माफ करना।

—-

हे प्रभु! मेरे मन से द्वेष, घृणा,
ईर्ष्या के विचार (विकार) मिटा दो।

हे ईश्वर! मेरे मन में कभी किसी के लिए
द्वेष, बुरे विचार, घृणा ना आए।

—-

हे ईश्वर! मेरे मन से अहंकार, घमंड
जैसे विकार मिटा दो।

हे परमेश्वर! मेरे मन में कभी
घमंड, अहंकार ना जागे।

—-

हे ईश्वर! मुझे सदबुद्धी दो। मुझे अपने चरणों में जगह दो।
हे ईश्वर! अपने चरणों में हमको सदा रखना।


चित्तानुपश्यना

इसलिए यह महत्वपूर्ण है की
मनुष्य को अपने विचार और आचरण के प्रति
हर क्षण सतर्क रहना जरूरी है।

जैसे विपश्यना के एक अंग
चित्तानुपश्यना (चित्त अनुपश्यना) में
हमें मन के प्रति जागृत रहना पड़ता है और
मन को और प्रत्येक विचार को देखना पड़ता है।

इसका भी ख़याल रखना पड़ता है कि
क्या हमारे कर्म से,
हम जो काम कर रहे है
उससे किसी को दुःख पहुंच रहा है क्या?

क्या मन में किसी के लिए
द्वेष, घृणा के विचार आ रहे है?

क्या मन में खुद के किये हुए कामों का
अहंकार, घमंड आ रहा है।
जैसे मैंने पैसा कमाया, मैंने घर बनाया,
मैंने इतने काम किये, मैं सब कर रहा हूँ आदि।

ॐ नमः शिवाय
हे ईश्वर! हमें सब बन्धनों से मुक्त कर दो।


अध्याय 16

15

आढयोऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः॥

आढ्यः – बड़ा धनी (और)
अभिजनवान् – बड़े कुटुम्बवाला
अस्मि – हूँ।
मया – मेरे
सदृशः – समान
अन्यः – दूसरा
कः – कौन
अस्ति – है?
यक्ष्ये – मैं यज्ञ करूँगा,
दास्यामि – दान दूँगा (और)
मोदिष्ये – आमोद-प्रमोद करूँगा।

मैं बड़ा धनी और बड़े कुटुम्ब वाला हूँ।
मेरे समान दूसरा कौन है?
मैं यज्ञ करूँगा, दान दूँगा और
आमोद-प्रमोद करूँगा॥15॥

आगे श्लोक 16 में
भगवान् ने यह बताया कि
ऐसे अज्ञानी और घमंडी पुरुषों की क्या गति होती है,
यानी की उन्हें बाद में किस प्रकार का जीवन मिलता है।


अहंकार और घमंड

अहंकार, घमंड और अभिमानके परायण होकर
अज्ञानी मनुष्य सोचता है की –
कितना धन मेरे पास है,
कितना सोनाचाँदी, मकान, खेत और
जमीन मेरे पास है।

कितने ऊँचे पदाधिकारी मेरे पक्षमें हैं।
मै धन और लोगोके बलपर,
रिश्वत और सिफारिशके बलपर
जो चाहें वही कर सकता हूँ।

मैं कितना दान देता हूँ,
लोगो का भला करता हूँ।
दानसे मेरा नाम अखबारोंमें छपेगा।

धर्मशाला बनवाऊंगा और
उसमें मेरा नाम खुदवाया जायेगा,
जिससे मेरी यादगारी रहेगी।

इस प्रकार अध्याय 16 के
13, 14, और 15 श्लोकमें वर्णित मनोरथ करनेवाले
यानी की इच्छा वाले मनुष्य अज्ञानसे मोहित रहते हैं।

मूढ़ताके कारण ही
उनकी ऐसे मनोरथवाली वृत्ति होती है।


अहंकार वाले मूढ़ विचार मन में क्यों आते है?

अध्याय 3 श्लोक 38 में भगवान् ने कहा था कि,
जिस प्रकार धुएँ से अग्नि और
मैल से दर्पण ढँका जाता है,
वैसे ही अज्ञान और इच्छाओं द्वारा ज्ञान ढँका रहता है और
इसी अज्ञान की वजह से ही इस प्रकार के
मूढ़ विचार, अहंकारी विचार उनके मन में आते रहते है।

हरे राम हरे कृष्ण
हे ईश्वर! सब सुखी हों, सबका मंगल हो।


16

अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ॥

इति – इस प्रकार
अज्ञानविमोहिताः – अज्ञानसे मोहित रहनेवाले (तथा)
अनेकचित्तविभ्रान्ताः – अनेक प्रकारसे भ्रमित चित्तवाले
मोहजालसमावृताः – मोहरूप जालसे समावृत (और)
कामभोगेषु – विषयभोगोंमें
प्रसक्ताः – अत्यन्त आसक्त (आसुरलोग)
अशुचौ – महान् अपवित्र
नरके – नरकमें
पतन्ति – गिरते हैं।

इस प्रकार अज्ञान से मोहित रहने वाले
तथा अनेक प्रकार से भ्रमित चित्त वाले
मोहरूप जाल से समावृत और
विषयभोगों में अत्यन्त आसक्त आसुरलोग
महान्‌ अपवित्र नरक में गिरते हैं॥16॥


इच्छाएं और मोहजाल

अनेकचित्तविभ्रान्ताः अर्थात
इस प्रकार लोभी और अहंकारी पुरुषों के मन में
कई प्रकार की इच्छाएं और कामनायें जागृत होती रहती है।

और उस एकएक इच्छाकी पूर्तिके लिये
वे अनेक तरहके उपाय ढूंढते हैं
तथा उन उपायोंके विषयमें
निरंतर उनके मन में चिंतन चलता रहता है,
निरंतर मन भटकता रहता है।

मोहजालसमावृताः यानी की
मोहजालसे वे ढके रहते हैं।
जैसे मछली जाल मे फंसी रहती है,
उसी प्रकार वो मनुष्य बंधनों के और
माया के जाल में फंसा रहता है।


इच्छाओं की पूर्ति के बाद भय और फिर दुःख

ऐसे मनुष्यों में
क्रोध और अभिमानके साथसाथ,
संग्रह किये हुए धन को बचाये रखने का भय भी बना रहता है।

शुरुआत में
वह धन और संग्रह की हुई चीजें, सुखदायी लगती है,
बड़ी अच्छी लगती है,
किन्तु कुछ वर्षो के बाद
वही चीजें उसके लिए दुःख का कारण बनती जाती है।

पतन्ति नरकेऽशुचौ अर्थात
मोहजाल उनके लिये जीतेजी ही नरक बन जाता है और
मरनेके बाद उन्हें नरकोंकी प्राप्ति होती है।
उन नरकोंमें भी वे घोर यातनावाले नरकोंमें गिरते हैं।

नरके अशुचौ कहनेका तात्पर्य यह है कि
जिन नरकोंमें महान् असह्य यातना और भयंकर दुःख दिया जाता है,
ऐसे घोर नरकोंमें वे गिरते हैं।

क्योंकि जिनकी जैसी स्थिति होती है,
मरनेके बाद भी उनकी वैसी (स्थितिके अनुसार) ही गति होती है।


17

आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः।
यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्‌॥

ते – वे
आत्मसम्भाविताः – अपने-आपको ही श्रेष्ठ माननेवाले
स्तब्धाः – घमण्डी पुरुष
धनमानमदान्विताः – धन और मानके मदसे युक्त होकर
नामयज्ञैः – केवल नाममात्रके यज्ञोंद्वारा
दम्भेन – पाखण्डसे
अविधिपूर्वकम् – शास्त्रविधिरहित
यजन्ते – यजन करते हैं।

वे अपने-आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले घमण्डी पुरुष
धन और मान के मद से युक्त होकर
केवल नाममात्र के यज्ञों द्वारा
पाखण्ड से शास्त्रविधिरहित यजन करते हैं॥17॥

ॐ गं गणपतये नमः
हे ईश्वर! अपने चरणों में हमको सदा रखना।


18

अहङ्‍कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः।
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः॥

अहङ्कारम् – अहंकार,
बलम् – बल,
दर्पम् – घमण्ड,
कामम् – कामना, (और)
क्रोधम् – क्रोधादिके
संश्रिताः – परायण
– और
अभ्यसूयकाः – दूसरोंकी निन्दा करनेवाले पुरुष
आत्मपरदेहेषु – अपने और दूसरोंके शरीरमें (स्थित)
माम् – मुझ अन्तर्यामीसे
प्रद्विषन्तः – द्वेष करनेवाले होते हैं।

(द्वेष करनेवाले नराधमोंको आसुरी योनियोंकी प्राप्ति।)

वे अहंकार, बल,
घमण्ड, कामना और

क्रोधादि के परायण और
दूसरों की निन्दा करने वाले पुरुष

अपने और दूसरों के शरीर में स्थित
मुझ अन्तर्यामी से द्वेष करने वाले होते हैं॥18॥

हे प्रभु, मुझे पवित्र कर दो।


19

तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्‌।
क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु॥

तान् – उन
द्विषतः – द्वेष करनेवाले
अशुभान् – पापाचारी (और)
क्रूरान् – क्रूरकर्मी
नराधमान् – नराधमोंको
अहम् – मैं
संसारेषु – संसारमें
अजस्रम् – बार-बार
आसुरीषु – आसुरी
योनिषु – योनियोंमें
एव – ही
क्षिपामि – डालता हूँ।

(आसुरी स्वभाववालोंको अधोगति प्राप्त होनेका कथन।)

उन द्वेष करने वाले पापाचारी और
क्रूरकर्मी नराधमों को
मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूँ॥19॥

हे ईश्वर! हमारे सब दु:ख दुर्गुण दूर कर दो।


20

आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि।
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्‌॥

कौन्तेय – हे अर्जुन!
मूढाः – वे मूढ
माम् – मुझको
अप्राप्य – न प्राप्त होकर
एव – ही
जन्मनि – जन्म-
जन्मनि – जन्ममें
आसुरीम् – आसुरी
योनिम् – योनिको
आपन्नाः – प्राप्त होते हैं, (फिर)
ततः – उससे भी
अधमाम् – अति नीच
गतिम् – गतिको
यान्ति – प्राप्त होते हैं अर्थात् घोर नरकोंमें पड़ते हैं।

(आसुरी सम्पदाके प्रधान लक्षण—काम, क्रोध और लोभको नरकके द्वार बतलाना।)

हे अर्जुन!
वे मूढ़ मुझको न प्राप्त होकर
जन्म-जन्म में आसुरी योनि को प्राप्त होते हैं,
फिर उससे भी अति नीच गति को ही प्राप्त होते हैं
अर्थात्‌ घोर नरकों में पड़ते हैं॥20॥

हे ईश्वर! अज्ञानता से हमे बचाये रखना।


21

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌॥

काम, क्रोध तथा लोभ –
ये तीन प्रकार के नरक के द्वार
आत्मा का नाश करने वाले अर्थात्‌ उसको अधोगति में ले जाने वाले हैं।

अतएव इन तीनों को त्याग देना चाहिए॥21॥

(सर्व अनर्थों के मूल और
नरक की प्राप्ति में हेतु होने से
यहाँ काम, क्रोध और लोभ को
“नरक के द्वार” कहा है)

ॐ नमः शिवाय

हे ईश्वर! सब संकटों से हमारी रक्षा करो।


अध्याय 14

15

रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्‍गिषु जायते।
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते॥

रजसि – रजोगुणके बढ़नेपर
प्रलयम् – मृत्युको
गत्वा – प्राप्त होकर
कर्मसङ्गिषु – कर्मोंकी आसक्तिवाले मनुष्योंमें
जायते – उत्पन्न होता है;
तथा – तथा
तमसि – तमोगुणके बढ़नेपर
प्रलीनः – मरा हुआ मनुष्य (कीट, पशु आदि)
मूढयोनिषु – मूढयोनियोंमें
जायते – उत्पन्न होता है।

रजोगुण के बढ़ने पर
मृत्यु को प्राप्त होकर कर्मों की आसक्ति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है तथा
तमोगुण के बढ़ने पर मरा हुआ मनुष्य
कीट, पशु आदि मूढ़योनियों में उत्पन्न होता है॥


अध्याय 13

21

पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्‍क्ते प्रकृतिजान्गुणान्‌।
कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु॥

प्रकृतिस्थः – प्रकृतिमें स्थित
हि – ही
पुरुषः – पुरुष
प्रकृतिजान् – प्रकृतिसे उत्पन्न
गुणान् – त्रिगुणात्मक पदार्थोंको
भुङ्क्ते – भोगता है (और इन)
गुणसङ्गः – गुणोंका संग (ही)
अस्य – इस जीवात्माके
सदसद्योनिजन्मसु – अच्छी-बुरी योनियोंमें जन्म लेनेका
कारणम् – कारण है

प्रकृति में (भगवान की त्रिगुणमयी माया) स्थित ही
पुरुष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थों को भोगता है और
इन गुणों का संग ही
इस जीवात्मा के अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण है।

सत्त्वगुण के संग से देवयोनि में एवं
रजोगुण के संग से मनुष्य योनि में और
तमोगुण के संग से पशु आदि नीच योनियों में जन्म होता है।॥

Aao Basaye Man Mandir Mein – Lyrics in Hindi


आओ बसाये मन मंदिर में

आओ बसाये मन मंदिर में झांकी सीताराम की,
जिसके मन में राम नहीं वो काया है किस काम की…


गौतम नारी अहिल्या तारी, श्राप मिला अति भारी था,
शिला रूप से मुक्ति पाई, चरण राम ने डाला था,
मुक्ति मिली तब वो बोली, जय जय सीताराम की,
जिसके मन में राम नहीं वो, काया है किस काम की…


जात पात का तोड़ के बंधन, शबरी मान बढ़ाया था,
हस हस खाते बेर प्रेम से, राम ने ये फ़रमाया था,
प्रेम भाव का भूखा हूँ मैं, चाह नहीं किसी काम की,
जिसके मन में राम नहीं वो, काया है किस काम की…


सागर में लिख राम नाम, नलनील ने पथ्थर तेराये,
इसी नाम से हनुमान जी, सीता जी की सुधि लाये,
भक्त विभीषण के मन में तब, ज्योत जगी श्री राम की,
जिसके मन में राम नहीं वो, काया है किस काम की…


भोले बनकर मेरे प्रभु ने, भक्तो का दुःख टाला था,
अवतार धर श्री राम ने, दुष्टों को संहारा था,
व्यास प्रभु की महिमा गाये, जय हो सीताराम की,
जिसके मन में राम नहीं वो, काया है किस काम की…


आओ बसाये मन मंदिर में झांकी सीताराम की,
जिसके मन में राम नहीं वो काया है किस काम की…


Aao Basaye Man Mandir Mein

Aao Ram Bhakt Hanuman Hamare Ghar – Lyrics in Hindi


आओ राम भक्त हनुमान हमारे घर कीर्तन में

आओ राम भक्त हनुमान, हमारे घर कीर्तन में,
हमारे घर कीर्तन में, हमारे घर कीर्तन में,
आओ राम भक्त हनुमान, हमारे घर कीर्तन में…


आन विराजो सिंघासन पै, दया कीजिए हम भक्तन पै,
हमारी बढ़ाओ प्रभु शान, हमरी बढ़ाओ प्रभु शान,
हमारे घर कीर्तन में,
आओ राम भक्त हनुमान, हमारे घर कीर्तन में…


नहीं चलेगा कोई बहाना, राम लखन को साथ में लाना,
पग डालो दया निधान, पग डालो दया निधान,
हमारे घर कीर्तन में,
आओ राम भक्त हनुमान, हमारे घर कीर्तन में…


नैना देखे प्रभु राह तुम्हारी, बात हकीकत कहे अनाड़ी,
भक्त तेरे परेशान, भक्त तेरे परेशान,
हमारे घर कीर्तन में,
आओ राम भक्त हनुमान, हमारे घर कीर्तन में…


आओं राम भक्त हनुमान, हमारे घर कीर्तन में,
हमारे घर कीर्तन में, हमारे घर कीर्तन में,
आओ राम भक्त हनुमान, हमारे घर कीर्तन में…


Aao Ram Bhakt Hanuman Hamare Ghar

ध्यान के लिए उपयोगी – भगवान् शिव के विभिन्न स्वरूपोंका और गुणोंका ध्यान


भगवान् शिव का ध्यान करने वालों के लिए
यह पेज बहुत उपयोगी है।

क्योंकि इस पेज में
भगवान् शिव के 15 स्वरूपों का, जैसे की
भगवान् सदाशिव, महामहेश्वर, भगवान् शंकर,
भगवान् महाकाल, श्रीनीलकण्ठ, महामृत्युञ्जय आदि का
सरल शब्दों में ध्यान दिया गया है।

ॐ नमः शिवाय


इस पोस्ट से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण बात

इस लेख में भगवान् शिव के
सभी 15 स्वरूपों के बारे में 
संस्कृत श्लोक और उनके अर्थ दिए गए हैं।

ध्यान सम्बन्धी बातें सिर्फ हिन्दी में

शिवजी के सभी स्वरूपों के बारें में सिर्फ हिंदी में पढ़ने के लिए,
अर्थात सभी श्लोक हाईड (hide) करने के लिए क्लिक करें –

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संस्कृत श्लोक के साथ अर्थ

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भगवान् सदाशिव

यो धत्ते भुवनानि सप्त गुणवान् स्रष्टा
रज:संश्रय: संहर्ता तमसान्वितो गुणवतीं
मायामतीत्य स्थित:। 
सत्यानन्दमनन्तबोधममलं ब्रह्मादिसंज्ञास्पदं नित्यं
सत्त्वसमन्वयादधिगतं पूर्णं शिवं धीमहि॥

भगवान् सदाशिव

जो रजोगुणका आश्रय लेकर
संसारकी सृष्टि करते हैं,

सत्त्वगुणसे सम्पन्न हो
सातों भुवनोंका धारण- पोषण करते हैं,

तमोगुणसे युक्त हो
सबका संहार करते हैं

तथा त्रिगुणमयी मायाको लाँघकर
अपने शुद्ध स्वरूपमें स्थित रहते हैं,

उन सत्यानन्दस्वरूप, अनन्त बोधमय,
निर्मल एवं पूर्णब्रह्म शिवका हम ध्यान करते हैं।

वे ही सृष्टिकालमें ब्रह्मा,
पालनके समय विष्णु और
संहारकालमें रुद्र नाम धारण करते हैं
तथा सदैव सात्त्विकभावको अपनानेसे ही प्राप्त होते हैं।

भगवान् सदाशिव को नमस्कार

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परमात्मप्रभु शिव

वेदान्तेषु यमाहुरेकपुरुषं व्याप्य स्थितं
रोदसी यस्मिन्नीश्वर इत्यनन्यविषय: शब्दो यथार्थाक्षर:। 
अन्तर्यश्च मुमुक्षुभिर्नियमित- प्राणादिभिर्मृग्यते स
स्थाणु: स्थिरभक्तियोगसुलभो नि:श्रेयसायास्तु व:॥

परमात्मप्रभु शिव

वेदान्तग्रन्थोंमें जिन्हें
एकमात्र परम पुरुष परमात्मा कहा गया है,

जिन्होंने समस्त पृथ्वीको अन्तर्बाह्य –
सर्वत्र व्याप्त कर रखा है।

जिन एकमात्र महादेवके लिये “ईश्वर ” शब्द
अक्षरश: यथार्थरूपमें प्रयुक्त होता है और
जो किसी दूसरेके विशेषणका विषय नहीं बनता,

अपने अन्तर्हृदयमें समस्त प्राणोंको निरुद्ध करके
मोक्षकी इच्छावाले योगीजन
जिनका निरन्तर चिन्तन और
अन्वेषण करते रहते हैं,

वे नित्य एक समान सुस्थिर रहनेवाले,
महाप्रलयमें भी विक्रियाको प्राप्त न होनेवाले और
भक्तियोगसे शीघ्र प्रसन्न होनेवाले भगवान् शिव
सभीका परम कल्याण करें।

परमात्मप्रभु शिव को नमस्कार

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मङ्गलस्वरूप भगवान् शिव

कृपाललितवीक्षणं स्मितमनोज्ञवक्त्राम्बुजं
शशाङ्ककलयोज्ज्वलं शमितघोरतापत्रयम्। 
करोतु किमपि स्फुरत्परमसौख्यसच्चिद्वपु-
र्धराधरसुताभुजोद्वलयितं महो मङ्गलम्॥

मंगलस्वरूप भगवान् शिव

जिनकी कृपापूर्ण चितवन बड़ी ही सुन्दर है,
जिनका मुखारविन्द मन्द मुसकानकी छटासे
अत्यन्त मनोहर दिखायी देता है,
जो चन्द्रमाकी कला- जैसे परम उज्ज्वल हैं,

जो आध्यात्मिक आदि तीनों तापोंको
शान्त कर देनेमें समर्थ हैं,

जिनका स्वरूप सच्चिन्मय
एवं परमानन्दरूपसे प्रकाशित होता है

तथा जो गिरिराजनन्दिनी पार्वतीके
भुजापाशसे आवेष्टित हैं,

वे शिव नामक अनिर्वचनीय तेज:पुंज
सबका मंगल करें।

मंगलस्वरूप भगवान् शिव को प्रणाम

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भगवान अर्धनारीश्वर

नीलप्रवालरुचिरं विलसत्त्रिनेत्रं
पाशारुणोत्पलकपालत्रिशूलहस्तम्। 
अर्धाम्बिकेशमनिशं प्रविभक्तभूषं
बालेन्दुबद्धमुकुटं प्रणमामि रूपम्॥

यो धत्ते निजमाययैव भुवनाकारं विकारोज्झितो
यस्याहुः करुणाकटाक्षविभवौ स्वर्गापवर्गाभिधौ।
प्रत्यग्बोधसुखाद्वयं हृदि सदा पश्यन्ति यं
योगिन- स्तस्मै शैलसुताञ्चितार्धवपुषे शश्वन्नमस्तेजसे॥

भगवान् अर्धनारीश्वर

श्रीशंकरजीका शरीर नीलमणि और
प्रवालके समान सुन्दर (नीललोहित) है,
तीन नेत्र हैं,
चारों हाथोंमें पाश, लाल कमल,
कपाल और त्रिशूल हैं,
आधे अंगमें अम्बिकाजी और आधेमें महादेवजी हैं।

दोनों अलग- अलग श्रृंगारोंसे सज्जित हैं,
ललाटपर अर्धचन्द्र है और
मस्तकपर मुकुट सुशोभित है,
ऐसे स्वरूपको नमस्कार है।

जो निर्विकार होते हुए भी
अपनी मायासे ही
विराट् विश्वका आकार धारण कर लेते हैं,
स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष)
जिनके कृपा- कटाक्षके ही वैभव बताये जाते हैं
तथा योगीजन जिन्हें सदा अपने हृदयके भीतर
अद्वितीय आत्मज्ञानानन्दस्वरूपमें ही देखते हैं,

जिनका आधा शरीर शैलराजकुमारी पार्वतीसे सुशोभित है,
उन तेजोमय भगवान् शंकरको,
निरन्तर मेरा नमस्कार है।

भगवान् अर्धनारीश्वर को नमस्कार

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भगवान् शंकर

वन्दे वन्दनतुष्टमानसमतिप्रेमप्रियं प्रेमदं
पूर्णं पूर्णकरं प्रपूर्णनिखिलैश्वर्यैकवासं शिवम्। 
सत्यं सत्यमयं त्रिसत्यविभवं सत्यप्रियं सत्यदं
विष्णुब्रह्मनुतं स्वकीयकृपयोपात्ताकृतिं शंकरम्॥

भगवान् शंकर

वन्दना करनेसे जिनका मन प्रसन्न हो जाता है,
जिन्हें प्रेम अत्यन्त प्यारा है,
जो प्रेम प्रदान करनेवाले, पूर्णानन्दमय,
भक्तोंकी अभिलाषा पूर्ण करने- वाले,
सम्पूर्ण ऐश्वर्योंके एकमात्र आवासस्थान और
कल्याणस्वरूप हैं।

सत्य जिनका श्रीविग्रह है,
जो सत्यमय हैं,
जिनका ऐश्वर्य त्रिकालाबाधित है,
जो सत्यप्रिय एवं सत्यप्रदाता हैं,
ब्रह्मा और विष्णु जिनकी स्तुति करते हैं,
स्वेच्छानुसार शरीर धारण करनेवाले
उन भगवान् शंकरकी मैं वन्दना करता हूँ।

भगवान् अर्धनारीश्वर को नमस्कार

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गौरीपति भगवान् शिव

विश्वोद्भवस्थितिलयादिषु हेतुमेकं
गौरीपतिं विदिततत्त्वमनन्तकीर्तिम्। 
मायाश्रयं विगतमायमचिन्त्यरूपं
बोधस्वरूपममलं हि शिवं नमामि॥

गौरीपति भगवान् शिव

जो विश्वकी उत्पत्ति, स्थिति और
लय आदिके एकमात्र कारण हैं,

गौरी गिरिराजकुमारी उमाके पति हैं,

तत्त्वज्ञ हैं, जिनकी कीर्तिका कहीं अन्त नहीं है,

जो मायाके आश्रय होकर भी
उससे अत्यन्त दूर हैं

तथा जिनका स्वरूप अचिन्त्य है,
उन विमल बोधस्वरूप भगवान् शिवको
मैं प्रणाम करता हूँ।

गौरीपति भगवान् शिव को नमस्कार

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महामहेश्वर

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्ंग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्। 
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं
वसानं विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥

महामहेश्वर

चाँदीके पर्वतके समान जिनकी श्वेत कान्ति है,
जो सुन्दर चन्द्रमाको आभूषणरूपसे धारण करते हैं,
रत्नमय अलंकारोंसे जिनकाशरीर उज्ज्वल है,

जिनके हाथोंमें परशु तथा मृग,
वर और अभय मुद्राएँ हैं,

जो प्रसन्न हैं,
पद्मके आसनपर विराजमान हैं,

देवतागण जिनके चारों ओर खड़े होकर
स्तुति करते हैं,

जो बाघकी खाल पहनते हैं,

जो विश्वके आदि, जगत्‌की उत्पत्तिके बीज और
समस्त भयको हरनेवाले हैं,

जिनके पाँच मुख और
तीन नेत्र हैं, उन महेश्वरका
प्रतिदिन ध्यान करना चाहिये।

भगवान् महामहेश्वर को नमस्कार

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पञ्चमुख सदाशिव

मुक्तापीतपयोदमौक्तिकजवावर्णैर्मुखै:
पञ्चभि- स्त्र्यक्षैरञ्चितमीशमिन्दुमुकुटं पूर्णेन्दुकोटिप्रभम्। 
शूलं टङककृपाणवज्रदहनान् नागेन्द्रघण्टाङ्कुशान्
पाशं भीतिहरं दधानममिताकल्पोज्ज्वलं चिन्तयेत्॥

पंचमुख सदाशिव

जिन भगवान् शंकरके पाँच मुखोंमें क्रमश:
ऊर्ध्वमुख गजमुक्ताके समान हलके लाल रंगका,
पूर्व- मुख पीतवर्णका,
दक्षिण- मुख सजल मेघके समान नील- वर्णका
पश्चिम- मुख मुक्ताके समान कुछ भूरे रंगका और
उत्तर- मुख जवापुष्पके समान प्रगाढ़ रक्तवर्णका है,

जिनकी तीन आँखें हैं और
सभी मुखमण्डलोंमें नीलवर्णके मुकुटके साथ
चन्द्रमा सुशोभित हो रहे है,

जिनके मुखमण्डलकी आभा
करोड़ों पूर्ण चन्द्रमाके तुल्य आह्लादित करनेवाली है,

जो अपने हाथोंमें क्रमश:
त्रिशूल टंक (परशु), तलवार, वज्र,
अग्नि नागराज, घण्टा, अंकुश, पाश
तथा अभयमुद्रा धारण किये हुए हैं

एवं जो अनन्त कल्पवृक्षके समान कल्याणकारी हैं,
उन सर्वेश्वर भगवान् शंकरका ध्यान करना चाहिये।

भगवान् पंचमुख सदाशिव को नमस्कार

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अम्बिकेश्वर

आद्यन्तमङ्गलमजातसमानभाव- मार्यं
तमीशमजरामरमात्मदेवम्। 
पञ्चाननं प्रबलपञ्चविनोदशीलं सम्भावये
मनसि शंकरमम्बिकेशम्॥

अम्बिकेश्वर

जो आदि और अन्तमें (तथा मध्यमें भी) नित्य मंगलमय हैं,
जिनकी समानता अथवा तुलना कहीं भी नहीं है,

जो आत्माके स्वरूपको प्रकाशित करनेवाले देवता (परमात्मा) हैं,
जिनके पाँच मुख हैं और
जो खेल- ही- खेलमें – अनायास
जगत्‌की रचना, पालन और संहार
तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरूप पाँच प्रबल कर्म करते रहते हैं,

उन सर्वश्रेष्ठ अजर- अमर
ईश्वर अम्बिकापति भगवान् शंकरका
मैं मन- ही- मन चिन्तन करता हूँ।

भगवान् अम्बिकेश्वर को नमस्कार

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पार्वतीनाथ भगवान् पञ्चानन

शूलाही टङ्कघण्टासिश्रृणिकुलिशपाशाग्न्यभीतीर्दधानं
दोर्भिः शीतांशुखण्डप्रतिघटितजटाभारमौलिं त्रिनेत्रम्। 
नानाकल्पाभिरामापघनमभिमतार्थप्रदं
सुप्रसन्नं पद्मस्थं पञ्चवक्त्रं स्फटिकमणिनिभं
पार्वतीशं नमामि॥

पार्वतीनाथ भगवान् पंचानन

जो अपने करकमलों में क्रमश:
त्रिशूल, सर्प, टंक (परशु), घण्टा, तलवार
अंकुश वज्र, पाश, अग्नि तथा अभयमुद्रा धारण किये हुए हैं,

जिनका प्रत्येक मुखमण्डल द्वितीया के चन्द्रमासे युक्त
जटाओंसे सुशोभित हो रहा है,

जिनके चन्द्रमा सूर्य और अग्नि – ये तीन नेत्र हैं,
जो अनेक कल्पवृक्षोंके समान
अपने भक्तोंको स्थिर रहनेवाले मनोरथोंसे
परिपूर्ण कर देते हैं और
जो सदा अत्यन्त प्रसन्न ही रहते हैं,

जो कमलके ऊपर विराजित हैं,
जिनके पाँच मुख हैं
तथा जिनका वर्ण स्फटिकमणिके समान
दिव्य प्रभासे आभासित हो रहा है,
उन पार्वतीनाथ भगवान् शंकरको मैं नमस्कार करता हूँ।

पार्वतीनाथ भगवान् पंचानन को नमस्कार

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भगवान् महाकाल

स्रष्टारोऽपि प्रजानां प्रबलभवभयाद् यं नमस्यन्ति
देवा यश्चित्ते सम्प्रविष्टोऽप्यवहितमनसां ध्यानमुक्तात्मनां च। 
लोकानामादिदेव: स जयतु भगवाञ्छ्रीमहाकालनामा
बिभ्राण: सोमलेखामहिवलययुतं व्यक्तलिङ्गं कपालम्॥

भगवान् महाकाल

प्रजाकी सृष्टि करनेवाले प्रजापति देव भी
प्रबल संसार- भयसे मुक्त होनेके लिये
जिन्हें नमस्कार करते हैं,

जो सावधानचित्तवाले
ध्यानपरायण महात्माओंके हृदयमन्दिरमें
सुखपूर्वक विराजमान होते हैं

और चन्द्रमाकी कला, सर्पोंके कंकण
तथा व्यक्त चिह्नवाले कपालको धारण करते हैं,

सम्पूर्ण लोकोंके आदिदेव
उन भगवान् महाकालकी जय हो।

भगवान् महाकाल को नमस्कार

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श्रीनीलकण्ठ

बालार्कायुततेजसं धृतजटाजूटेन्दुखण्डोज्ज्वलं
नागेन्द्रैः कृतभूषणं जपवटीं शूलं कपालं करैः। 
खट्वाङ्गं दधतं त्रिनेत्रविलसत्पञ्चाननं सुन्दरं।
व्याघ्रत्वक्परिधानमब्जनिलयं श्रीनीलकण्ठं भजे॥

श्रीनीलकण्ठ

भगवान् श्रीनीलकण्ठ
दस हजार बालसूर्योंके समान तेजस्वी हैं,
सिरपर जटाजूट, ललाटपर अर्धचन्द्र और
मस्तकपर सर्पोंका मुकुट धारण किये हैं,
चारों हाथोंमें जपमाला, त्रिशूल,
नर- कपाल और खट्‌वांग- मुद्रा है।

तीन नेत्र हैं, पाँच मुख हैं,
अति सुन्दर विग्रह है, बाघम्बर पहने हुए हैं और
सुन्दर पद्मपर विराजित हैं।

इन श्रीनीलकण्ठदेवका भजन करना चाहिये।

भगवान् श्रीनीलकण्ठ को प्रणाम

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पशुपति

मध्याह्नार्कसमप्रभं शशिधरं भीमाट्टहासोज्ज्वलं
त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रुस्फुरन्मूर्धजम्। 
हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुद्‌गरमसिं शक्तिं दधानं
विभुं दंष्ट्राभीमचतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररूपं स्मरेत्॥

पशुपति

जिनकी प्रभा मध्याह्नकालीन सूर्यके समान
दिव्य रूपमें भासित हो रही है,

जिनके मस्तकपर चन्द्रमा विराजित है,

जिनका मुखमण्डल
प्रचण्ड अट्टहाससे उद्‌भासित हो रहा है,

सर्प ही जिनके आभूषण हैं
तथा चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि –
ये तीन जिनके तीन नेत्रोंके रूपमें अवस्थित हैं,

जिनकी दाढ़ी और सिरकी जटाएँ
चित्र- विचित्र रंगके मोरपंखके समान स्फुरित हो रही हैं,

जिन्होंने अपने करकमलोंमें त्रिशूल, मुद्‌गर,
तलवार तथा शक्तिको धारण कर रखा है और
जिनके चार मुख तथा दाढ़ें भयावह हैं,

ऐसे सर्वसमर्थ, दिव्य रूप
एवं अस्त्रोंको धारण करनेवाले
पशुपतिनाथका ध्यान करना चाहिये।

भगवान् पशुपतिनाथ को नमस्कार

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भगवान् दक्षिणामूर्ति

मुद्रां भद्रार्थदात्रीं सपरशुहरिणां बाहुभिर्बाहुमेकं
जान्वासक्तं दधानो भुजगवरसमाबद्धकक्षो वटाध:। 
आसीनश्चन्द्रखण्डप्रतिघटितजट: क्षीरगौरस्त्रिनेत्रो
दद्यादाद्यैः शुकाद्यैर्मुनिभिरभिवृतो भावशुद्धिं भवो व:॥

भगवान् दक्षिणामूर्ति

जो भगवान् दक्षिणामूर्ति अपने करकमलोंमें
अर्थ प्रदान करनेवाली भद्रामुद्रा,
मृगीमुद्रा और परशु धारण किये हुए हैं और
एक हाथ घुटनेपर टेके हुए हैं,

कटिप्रदेशमें नागराजको लपेटे हुए हैं
तथा वटवृक्षके नीचे अवस्थित हैं,

जिनके प्रत्येक सिरके ऊपर जटाओंमें
द्वितीयाका चन्द्रमा जटित है और
वर्ण धवल दुग्धके समान उज्ज्वल है,

सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि –
ये तीनों जिनके तीन नेत्रके रूपमें स्थित हैं,

जो सनकादि एवं शुकदेव [नारद]
आदि मुनियोंसे आवृत हैं,

वे भगवान् भव शंकर हृदयमें
विशुद्ध भावना (विरक्ति) प्रदान करें।

भगवान् दक्षिणामूर्ति को नमस्कार

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महामृत्युञ्जय

हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैराप्लावयन्तं शिरो
द्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम्। 
अङ्कन्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं
स्वच्छाम्भोजगतं नवेन्दुमुकुटं देव त्रिनेत्रं भजे॥

हस्ताम्भोजयुगस्थकुम्भयुगलादुद्‌धृत्य तोयं शिर:
सिञ्चन्तं करयोर्युगेन दधतं स्वाङ्के सकुम्भौ करौ।
अक्षस्रङ्मृगहस्तमम्बुजगतं मूर्धस्थचन्द्रस्रव-
त्पीयूषार्द्रतनुं भजे सगिरिजं त्र्यक्षं च मृत्युञ्जयम्॥

महामृत्युंजय

त्र्यम्बकदेव अष्टभुज हैं।

उनके एक हाथमें अक्षमाला और
दूसरेमें मृगमुद्रा है,
दो हाथोंसे कलशोंमें अमृतरस लेकर
उससे अपने मस्तकको आप्लावित कर रहे हैं और
दो हाथोंसे उन्हीं कलशोंको थामे हुए हैं।

शेष दो हाथ उन्होंने
अपने अंकपर रख छोड़े हैं और
उनमें दो अमृतपूर्ण घट हैं।

वे श्वेत पद्मपर विराजमान हैं,
मुकुटपर बालचन्द्र सुशोभित है,
मुखमण्डलपर तीन नेत्र शोभायमान हैं।

ऐसे देवाधिदेव कैलासपति श्रीशंकरकी
मैं शरण ग्रहण करता हूँ।

जो अपने दो करकमलोंमें रखे हुए
दो कलशोंसे जल निकालकर
उनसे ऊपरवाले दो हाथोंद्वारा
अपने मस्तकको सींचते हैं।

अन्य दो हाथोंमें दो घड़े लिये उन्हें अपनी गोदमें रखे हुए हैं
तथा शेष दो हाथोंमें रुद्राक्ष एवं मृगमुद्रा धारण करते हैं,
कमलके आसनपर बैठे हैं,
सिरपर स्थित चन्द्रमासे निरन्तर झरते हुए
अमृतसे जिनका सारा शरीर भीगा हुआ है
तथा जो तीन नेत्र धारण करनेवाले हैं,
उन भगवान् मृत्युंजयका,
जिनके साथ गिरिराजनन्दिनी उमा भी विराजमान हैं,
मैं भजन (चिन्तन) करता हूँ।

भगवान् महामृत्युंजय को नमस्कार

Aate Jaate Hue Gungun Aaya Karo – Lyrics in Hindi


आते जाते हुए गुनगुनाया करो

आते जाते हुए गुनगुनाया करो,
राम बोला करो राम गाया करो…


रिश्ता रखते हो तुम जैसे संसार से,
मोह बंधन, बंधा है जैसे परिवार से,
(मोह बंधन, बंधा हो परिवार से,)

मोह बंधन बंधा है जैसे परिवार से,
(मोह बंधन, बंधा हो परिवार से,)
थोड़ा उससे भी रिश्ता निभाया करो,
राम बोला करो राम गाया करो…


कौन कहता है की छोड़कर काम को,
(कौन कहता है की छोड़ो तुम काम को,)
अच्छा हो याद रखो अगर राम को,

अच्छा हो याद रखो अगर राम को,
सुख दुःख में ना उनको भुलाया करो,
राम बोला करो राम गाया करो…


जिंदगी है ये, यूँ ही गुजर जाएगी,
(जिंदगी तेरी, यूँ ही गुजर जाएगी,)
शानो शौकत की दुनिया उजड़ जाएगी,

शानो शौकत की दुनिया उजड़ जाएगी,
अपने मन से उन्हें ना भुलाया करो,
राम बोला करो राम गाया करो…


आते जाते हुए, गुनगुनाया करो,
राम बोला करो राम गाया करो…


Aate Jaate Hue Gungun Aaya Karo

संकटनाशन गणेश स्तोत्रं – अर्थ सहित


Sankat Nashan Ganesh Stotra with Meaning in Hindi

संकटों का नाश करने वाला गणेशजी का स्तोत्र

इच्छाओं की पूर्ति करनेवाला और भय दूर करनेवाला गणेशजी का यह संकटनाशन गणेश मन्त्र, बहुत प्रभावी माना जाता है। इस स्तोत्र में भगवान् गणपतिजी के बारह नाम आते है, जो इस प्रकार है –

1. वक्रतुण्ड2. एकदन्त
3. कृष्णपिंगाक्ष4. गजवक्त्र
5. लम्बोदर6, विकट
7. विघ्नराजेन्द्र8. धूम्रवर्णं
9. भालचन्द्र10. विनायक
11. गणपति12. गजानन
गणपतिजी के बारह नाम

जैसा की इस स्तोत्र के आखरी श्लोक में बताया गया है कि इस स्तोत्र के पाठ से
भक्त को इच्छित फल प्राप्त होता है और पूर्ण सिद्धि तक प्राप्त हो सकती है।


इस पोस्ट से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण बात

संकटनाशन गणेश स्तोत्र के इस पोस्ट में पहले स्तोत्र के सभी श्लोक अर्थ सहित दिए गए है और बाद में पूरा स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है।

ॐ गं गणपतये नमः


संकटनाशन गणेश स्तोत्र – अर्थ सहित

श्री गणेश जी का स्मरण करे और प्रणाम करें

1.

नारद उवाच,
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थ सिद्धये॥१॥

नारद जी कहते हैं, पार्वतीनन्दन श्रीगणेश जी को, सिर झुकाकर प्रणाम करे।

और फिर, अपनी आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये, उन भक्तनिवासका (श्रीगणेशजीका) नित्य स्मरण करें।

श्रीगणेश जी को प्रणाम


वक्रतुण्ड, एकदन्त, कृष्णपिंगाक्ष, गजवक्त्र

2.

प्रथमं वक्रतुंण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥॥२॥

पहला वक्रतुण्ड,
दूसरा एकदन्त,
तीसरा कृष्णपिंगाक्ष,
चौथा गजवक्त्र

  • कृष्णपिंगाक्ष अर्थात – काली और भूरी आंखोवाले
  • गजवक्त्रं अर्थात – हाथीके से मुखवाले

ॐ गं गणपतये नमः


लम्बोदर, विकट, विघ्नराजेन्द्र, धूम्रवर्णं

3.

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥

पाँचवां लम्बोदर,
छठा विकट,
सातवाँ विघ्नराजेन्द्र,
आठवाँ धूम्रवर्णं

  • लम्बोदर अर्थात – बड़े पेटवाले
  • विकट अर्थात – विराट
  • विघ्नराजेन्द्र अर्थात – विघ्नोका नाश करने वाले राजाधिराज)

ॐ नमो भगवते गजाननाय नमः


भालचन्द्र, विनायक, गणपति, गजानन

4.

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु गजाननम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥

नवाँ भालचन्द्र,
दसवाँ विनायक,
ग्यारहवाँ गणपति और
बारहवाँ गजानन

  • भालचन्द्र अर्थात – जिसके ललाटपर चंद्रमा सुशोभित है

ॐ श्री गणेशाय नमः


भय दूर करनेवाला, संकटनाशन गणेश मंत्र

5.

द्वादशैतानि नामामि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥

इन बारह नामों का जो व्यक्ति तीनों संध्याओं में अर्थात प्रात:, मध्याह्न और सायंकाल में पाठ करता है, उसे किसी भी तरह के विघ्न का भय नहीं रहता है।

इस प्रकार का स्मरण सब प्रकार की सिद्धियाँ देनेवाला है।

ॐ वक्रतुंडाय नम:


इच्छाओं की पूर्ति करनेवाला, गणेश मंत्र

6.

विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्-मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥

इस संकट नाशन गणपतिजी के मंत्र नित्य पाठ से
विद्याभिलाषी – विद्या,
धनार्थी – धन,
पुत्रार्थी – पुत्र, पुत्री तथा
मुमुक्षु – मोक्षगति
प्राप्त कर लेता है।

  • विद्याभिलाषी अर्थात विद्यार्थी,
  • धनार्थी यानी की धन का अभिलाषी,
  • पुत्रार्थी अर्थात पुत्र, पुत्री की इच्छा वाला तथा
  • मुमुक्षु यानी की मोक्ष की इच्छा वाला

ॐ गजाननाय नमः


संकटनाशन गणेश स्तोत्रं से इच्छित फल और पूर्ण सिद्धि

7.

जपेद गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥७॥

इस गणपति स्तोत्रका जाप करे तो छह महीने में इच्छित फल प्राप्त होता है और एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है, इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है।

श्री सिद्धिविनायक नमो नमः


भगवान् गणेश की कृपा

8.

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥८॥

जो पुरुष इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेशजी की कृपासे उसे सब प्राकरकी विद्या प्राप्त हो जाती है।

ॐ गं गणपतये नमः


॥इति श्रीनारदपुराणे श्रीसंकटनाशन
गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम॥॥

इस प्रकार श्रीनारद पुराण में लिखा, श्रीसंकटनाशन गणेशस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।



Stotra – List

Ganesh Aarti – Ganesh Chalisa


संकटनाशन गणेश स्तोत्रं – संस्कृत में

नारद उवाच,
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थ सिद्धये॥१॥

प्रथमं वक्रतुंण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥॥२॥

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु गजाननम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥

द्वादशैतानि नामामि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥

विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्-मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥

जपेद गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥७॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥८॥

॥इति श्रीनारदपुराणे श्रीसंकटनाशन गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम॥॥


Stotra – List

Aarti – Chalisa

गणेश मंत्र – गणेशजी के अत्यंत सरल मंत्र


भगवान् श्री गणेश – सुखकर्ता और दुःखहर्ता

भगवान श्री गणेश दुखहर्ता है,
अर्थात बाधाएं, चिंता और दुःख दूर करने वाले देवता है।

गणपतिजी सुखकर्ता है,
अर्थात रिद्धी, सिद्धि और बुद्धि के भी दाता हैं।

इसलिए गणेशजी के मंत्र सिद्धि मंत्र हैं और
प्रत्येक मंत्र में उनकी कुछ विशिष्ट शक्तियां समाहित हैं।

  • समाहित अर्थात सम्मिलित, निहित या रहती हैं।

जब सच्ची भक्ति के साथ गणेश मंत्र का जाप किया जाता है,
तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।


श्री गणेश मंत्र जाप के लाभ

सामान्य तौर पर गणेश मंत्र के जाप से
सभी बुराईयां मिट जाती है और
भक्त को विवेक और सफलता का आशीर्वाद मिलता है।

जो मनुष्य सच्ची भक्ति से गणेशजी के मंत्र जाप करता है,
उस भक्त के मन में बुरे विचार प्रवेश नहीं करते और
जिस घर में श्री गणेश मंत्रो का जाप होता है,
उस घर में विपदाएं प्रवेश नहीं करती।

आध्यात्मिक लाभ के लिए,
श्री गणेशजी के कुछ सरल मंत्र नीचे दिए गए हैं। (1)


गणेश मंत्र जाप से पहले कुछ महत्वपूर्ण बातें –

मंत्र के जाप के लिए बैठने से पहले नहा लेना चाहिए।

मंत्र का जाप 108 बार या एक पूर्ण माला का होना चाहिए।

जब यह जाप नियमित रूप से 48 दिनों तक किया जाए,
तो यह एक – उपासना – बन जाता है।

जिसका अर्थ है गहन ध्यान,
जिससे सिद्धि या आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है।

लेकिन इन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

शक्तियों का उपयोग सिर्फ मानव जाति के लाभ के लिए और
निस्वार्थ कार्यों के लिए ही करना चाहिए।

शक्तियों का दुरुपयोग
देवताओं के अभिशाप का कारण बन सकता है। (1)


ओम गं गणपतये नमः

Om Gam Ganapataye Namaha
ॐ गं गणपतये नमः

ओम गं गणपतये नमः, गणपति उपनिषद का एक मंत्र है।

नया व्यवसाय, नया करियर या नई नौकरी शुरू करने से पहले,
यात्रा शुरू करने से पहले या स्कूल में नए कोर्स से पहले,
गणपतिजी के इस मंत्र को, पढ़ा जाता है,
ताकि बाधाएं दूर हो जाएं और प्रयासों में सफलता मिले। (1)

ॐ गं गणपतये नमः, ॐ गं गणपतये नमः
ॐ गं गणपतये नमः, ॐ गं गणपतये नमः


ओम नमो भगवते गजाननाय नमः

Om Namo Bhagavate Gajaananaaya Namaha
ॐ नमो भगवते गजाननाय नमः

ओम नमो भगवते गजाननाय नमः, एक भक्ति मंत्र है।

यह मंत्र गणेश जी की सर्वव्यापी चेतना का प्रतिनिधित्व करता है,
अर्थात सर्वव्यापी चेतना को व्यक्त करता है।

यह मंत्र गणेशजी के दर्शन करने या,
एक व्यक्ति के रूप में उनकी तत्काल उपस्थिति को
महसूस करने के लिए बहुत प्रभावशाली है। (1)

ओम नमो भगवते गजाननाय नमः,
ओम नमो भगवते गजाननाय नमः,
ओम नमो भगवते गजाननाय नमः,
ओम नमो भगवते गजाननाय नमः


ओम श्री गणेशाय नमः

Om Shri Ganeshaaya Namaha
ॐ श्री गणेशाय नमः

ओम श्री गणेशाय नमः मंत्र से
स्मरण शक्ति बढ़ती है,
जो छात्रों को पढ़ाई के लिए और
परीक्षामें सफल होने के लिए जरूरी हैं।

इसलिये यह मंत्र आमतौर पर सभी बच्चों को
उनकी अच्छी शिक्षा के लिए सिखाया जाता है।

किसी भी उम्र के लोग, स्कूल या विश्वविद्यालय में,
स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए और सफलता के लिए
इस मंत्र का उपयोग कर सकते हैं। (1)

ॐ श्री गणेशाय नमः, ॐ श्री गणेशाय नमः,
ॐ श्री गणेशाय नमः, ॐ श्री गणेशाय नमः


ॐ वक्रतुंडाय नम:

Om Vakratundaaya Namaha
ॐ वक्रतुंडाय नम:

यह एक बहुत शक्तिशाली मंत्र है,
जैसा कि गणेश पुराण में चर्चा की गई है।

जब व्यक्तिगत या सार्वभौमिक रूप से कुछ काम ठीक से नहीं हो रहा है,
या जब लोगों के दिमाग, नकारात्मक हो जाते हैं,
तो गणेशजी का ध्यान, इस मन्त्र से आकर्षित किया जा सकता है,
जिससे काम सरल हो जाते है।

गणेश पुराण में राक्षसों केअत्याचार को रोकने के लिए,
इस मंत्र का कई बार उपयोग किया गया है। (1)

ॐ वक्रतुंडाय नम:, ॐ वक्रतुंडाय नम:
ॐ वक्रतुंडाय नम:, ॐ वक्रतुंडाय नम:


ओम क्षिप्र प्रसादाय नमः

Om Kshipra Prasadaya Namaha
ॐ क्षिप्र प्रसादाय नमः

क्षिप्र अर्थात तुरंत, तत्काल, जल्दी, तेज़, शीघ्रगामी, instant

ओम क्षिप्र प्रसादाय नमः मंत्र में, क्षिप्र का अर्थ है तुरंत।

अगर कुछ खतरा या कुछ मुश्किलें रास्ते में आ रही हैं और
नहीं जानते कि उस मुसीबत से कैसे छुटकारा पाया जाए,
तो भगवान श्री गणेश का त्वरित आशीर्वाद पाने के लिए,
सच्ची श्रद्धा के साथ इस मंत्र का अभ्यास करें।

ॐ क्षिप्र प्रसादाय नमः, ॐ क्षिप्र प्रसादाय नमः
ॐ क्षिप्र प्रसादाय नमः, ॐ क्षिप्र प्रसादाय नमः


ओम सुमुखाय नमः

Om Sumukhaaya Namaha
ॐ सुमुखाय नमः

ॐ सुमुखाय नमः, इस मंत्र के बहुत अर्थ है,
लेकिन इसे सरल बनाने के लिए इसका मतलब है कि
इस मंत्र के जाप और ध्यान से
आप हमेशा आत्मा में, चेहरे पर और हर चीज में, बहुत सुंदर होंगे।

उस मंत्र का ध्यान करने से
आप पर बहुत ही मनभावन और सौंदर्य आ जाता है।

इसके साथ ही शांति मिलती है
जो आपकी आँखों में लगातार नृत्य करती है और
जो शब्द आप बोलते हैं,
वे सभी प्रेम की शक्ति से भरे होते हैं।

ॐ सुमुखाय नमः, ॐ सुमुखाय नमः
ॐ सुमुखाय नमः, ॐ सुमुखाय नमः


ओम एकदंताय नमः

Om Ekadantaaya Namaha
ॐ एकदंताय नमः

ॐ एकदंताय नमः मे
एकदंत का तात्पर्य गणपतिजी के एकदन्त से है।

इस मंत्र का अर्थ है कि,
भगवान ने मन में उठने वाले द्वंद्व को तोड़ा,
जिससे मन में एक स्पष्ट सोच आ जाती है।

जिसके पास मन की एकता और
एकल-मन की भक्ति है,
वह सब कुछ हासिल कर लेता है।

ॐ एकदंताय नमः, ॐ एकदंताय नमः
ॐ एकदंताय नमः, ॐ एकदंताय नमः


ओम कपिलाय नमः
Om Kapilaaya Namaha
ॐ कपिलाय नमः

ओम गजकर्णकाय नमः
Om Gajakarnakaaya Namaha
ॐ गजकर्णकाय नमः

ओम लम्बोदराय नमः
Om Lambodharaaya Namaha
ओम लम्बोदराय नमः

ओम विकटाय नमः
Om Vikataaya Namaha
ॐ विकटाय नमः

ओम विघ्न नाशनाय नमः
Om Vighna Nashanaaya Namaha
ॐ विघ्न नाशनाया

ओम विनायकाय नमः
Om Vinayakaaya Namaha
ॐ विनायकाय नमः

ओम धूम्रकेतुवे नमः
Om Dhumraketuve Namaha
ॐ धूम्रकेतुवे नमः

ओम गणाध्याय नमः
Om Ganadhyakshaaya Namaha
ॐ गणाध्याय नमः

ओम भालचंद्राय नमः
Om Bhalachandraaya Namaha
ऊँ भालचंद्राय नमः

ओम गजाननाय नमः
Om Gajaananaaya Namaha
ॐ गजाननाय नमः


सन्दर्भ – Reference – Source –
1. Official website of Shree Siddhivinayak Ganapati Temple Trust, Prabhadevi, Mumbai – Mantra


श्री गणेश मंत्र

श्री वक्रतुण्ड महाकाय
सूर्य कोटी समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव
सर्व-कार्येशु सर्वदा॥

ॐ गं गणपतये नमो नमः
श्री सिद्धिविनायक नमो नमः।
अष्टविनायक नमो नमः
गणपति बाप्पा मोरया॥


श्री गणेश गायत्री मंत्र

Shri Ganesh Gayatri Mantra

ॐ एकदन्ताय विद्धमहे,
वक्रतुण्डाय धीमहि,
तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥

ॐ वक्रतुण्डाय विद्धमहे,
एकदन्ताय धीमहि,
तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥


गणेश स्तुति मंत्र

Vinayak Stuti Mantra

गजाननं भूतगणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बूफलचारू भक्षणम्,
उमासुतं शोक विनाशकारकं,
नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्॥
ॐ श्री गणेशाय नमः

Gajaa-nanam bhoot-ganaadi sevitam
Kapittha jambu-phal charu bhakshanam।
Uma-sutam shok vinaash-kaarakam
Namaami Vighneshwar paad-pankajam॥

(कपित्थ – Wood Apple – एक फल है जो बेल जैसा होता है। इसे कबिट या कठबेल भी कहते हैं)


गणेश शुभ लाभ मंत्र

Ganesh Mantra for Prosperity and Wealth

ॐ श्रीम गम सौभाग्य गणपतये
वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥

Om Shreem Gam
Saubhagya Ganpataye
Varvarda Sarva-janma mein
Vash-maanya Namah॥

दुर्गा आरती – मंत्र – चालीसा – देवी के भजन


Maa Durga Aarti – List


Durga Chalisa


Durga Mantra


Navdurga


दुर्गा सप्तशती (अर्थ सहित) – देवी माहात्म्य


Shiv Aarti – Om Jai Shiv Omkara – with Meaning


ओम जय शिव ओंकारा आरती के इस पेज में आरती के लिरिक्स और आरती अर्थ सहित दी गयी है।

इस आरती की प्रत्येक पंक्ति में बताया गया है की किस प्रकार, ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनो देव, भगवान् शिव में स्थित है। और आखरी लाइन में शिवानन्द स्वामीजी ने प्रणवाक्षर ॐ का महत्व बताया है।

पहले ओम जय शिव ओंकारा आरती क्या है यह दिया गया है,
बाद में आरती के लिरिक्स और
अंत में आरती के शब्दों के अर्थ सरल हिंदी में दिए गए है। जैसे की एकानन चतुरानन क्यों कहा जाता है और क्यों भगवान् शिव को दोभुज चार चतुर्भुज कहा गया है आदि।


ओम जय शिव ओंकारा आरती क्या है?

ॐ जय शिव ओंकारा आरती हिंदू धर्म की एक आरती या भक्तिमय गीत है, जो भगवान शिव की स्तुति में गाई जाती है।

यह आरती आमतौर पर धार्मिक समारोहों, महाशिवरात्रि, त्योहारों और शिव मंदिरों में दैनिक पूजा के दौरान की जाती है।

यह आरती हिंदी में है और भगवान शिव के गुणों की प्रशंसा करती है, जैसे उनकी शक्ति, उनकी बुद्धि, करुणा, दयालुता और उनका ज्ञान आदि।

कहा जाता है कि इस आरती को गाने से आध्यात्मिक शांति आती है और भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त होता है।

यह आरती छंदो से मिलकर बनी है, जो भगवान शिव की अनेक रूपों, गुणों और शक्तियों का वर्णन करती हैं।

यह आरती बताती है की किस प्रकार भगवान् शिव के स्वरुप में, ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तीनों देव स्थित है।

इस आरती का प्रारंभ “ॐ जय शिव ओंकारा” से होता है, जिसका अर्थ होता है “भगवान शिव को नमन, जो ध्वनि ‘ॐ’ के स्वरूप में अवतरित होते हैं।”

आरती में आगे भगवान शिव के बहुत सारे रूपों का वर्णन होता है, जैसे उनके एक-मुख, चार-मुख और पाँच-मुख वाले रूप। इसमें त्रिशूल, सर्प और माला जैसे उनके कई शस्त्रों का भी वर्णन आता है।

कहा जाता है कि भगवान शिव न केवल ब्रह्मा, विष्णु और सदाशिव के रूप में ब्रह्मांड के सृजनहारी, संरक्षक और संहारक है, बल्कि दया, प्रेम और ज्ञान के स्वरूप भी हैं।

इस आरती के माध्यम से,
भक्त भगवान शिव से अपने को सभी संकटों से बचाने की प्रार्थना करता हैं,
और मोक्ष, यानी जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति प्रदान करने का अनुरोध करता है, मुक्ति प्राप्त करने की प्रार्थना करता हैं।

आरती भगवान शिव से उनके आशीर्वाद के लिए प्रार्थना के साथ समाप्त होती है। और साथ ही साथ उनसे शांति, सुख और समृद्धि प्राप्त करने की प्रार्थना की जाती है।

“ॐ जय शिव ओंकारा आरती” एक सुंदर और शक्तिशाली प्रार्थना है जिसका उपयोग भगवान शिव से जुड़ने के लिए किया जाता है। 

यह सर्वोच्च अस्तित्व के प्रतीक भगवान् शिव के प्रति भक्ति प्रदर्शित करने और उनकी कृपा की विनती करने का एक महान भक्तिमय मार्ग है।


Shiv Aarti – Om Jai Shiv Omkara Lyrics in Hindi

1.

ओम जय शिव ओंकारा।
प्रभु हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


2.

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
स्वामी (शिव) पंचानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन, वृषवाहन साजे॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


3.

दोभुज चार चतुर्भुज, दशभुज अति सोहे।
स्वामी दशभुज अति सोहे।
तीनो रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


4.

अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी।
स्वामी मुण्डमाला धारी।

त्रिपुरारी कंसारी, कर माला धारी॥
Or
(चन्दन मृगमद सोहे, भाले शशि धारी॥)
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


5.

श्वेतांबर पीतांबर, बाघंबर अंगे।
स्वामी बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुडादिक, भूतादिक संगे॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


6.

करमध्येन कमंडलु, चक्र त्रिशूलधारी।
स्वामी चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकर्ता दुखहर्ता, जग-पालन करता॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


7.

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका।
स्वामी जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर ओम मध्ये, ये तीनों एका॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


8.

काशी में विश्वनाथ विराजत, नन्दो ब्रह्मचारी।
स्वामी नन्दो ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


9.

त्रिगुण स्वामीजी की आरती, जो कोइ नर गावे।
स्वामी जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी , मन वांछित फल पावे॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


ओम जय शिव ओंकारा।
प्रभु हर शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


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Om Jai Shiv Omkara piano notes




Om Jai Shiv Omkara Meaning in Hindi

ओम जय शिव ओंकारा आरती अर्थ सहित

यहाँ आरती के शब्दों का सरल हिंदी में अर्थ दिया गया है।

1. ओम जय शिव ओंकारा

आरती की पहली पंक्ति में भगवान शिव का आव्हान किया जाता है।
ॐ की ध्वनि वाले भगवान शिव को नमस्कार है।
भगवान शिव को नमन, जो “ॐ” की ध्वनि हैं।

“ओम” शब्द ब्रह्मांड की पवित्र ध्वनि है, और यह प्राथमिक कंपन माना जाता है, जिससे सारी सृष्टि उत्पन्न होती है।

शब्द “शिव” भगवान शिव के नामों में से एक है, और इसका अर्थ होता है – शुभ या मंगलमय या शुभकारी।


2. ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव

ब्रह्मा सृष्टिकर्ता हैं, सृजनहार है। विष्णु पालक हैं और शिव संहारक हैं।

इस पंक्ति में भगवान शिव को त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप बताया गया है। आप ही ब्रह्मा, आप ही विष्णु और आप ही शिव हैं। सभी देवता आपके ही स्वरूप हैं।

इसलिए, यह पंक्ति भगवान शिव की ब्रह्मांड के निर्माता, संरक्षक और संहारक के रूप में स्तुति करती है।

अर्धांगी धारा

“अर्धांगी” शब्द का अर्थ होता है “आधी-पत्नी,” और यह पार्वती को संदर्भित करता है, जो भगवान शिव की पत्नी हैं।


एकानन चतुरानन पंचानन राजे

इस पंक्ति में किस प्रकार भगवान् शिव में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के भिन्न रूप स्थित है, इसका उल्लेख है।

उनका वर्णन एक मुख, चार मुख और पांच मुख वाले देवता के रूप में किया गया है। एक मुख, चार मुख और पांच मुख क्यों?

विष्णु के रूप में, आपका एक मुख है, ब्रह्मा रूप में चार मुख है, और शिव के रूप में पांच मुख।

ये मुख भगवान शिव के स्वभाव के विभिन्न पहलुओं को प्रतिष्ठित करते हैं। इसलिए, आप तीनों भगवान, त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश की भूमिका निभाते हैं।


हंसासन गरुड़ासन वृषभवाहन साजे

ब्रह्मा के रूप में आप हंस पर बैठे हैं, जो ब्रह्मा का वाहन है, विष्णु के रूप में आप गरुड़ पर बैठे हैं, जो विष्णु का वाहन है, और और महेश्वर के रूप में आप नंदी पर विराजमान हैं, जो महेश्वर का वाहन है।

ये वाहन उन विभिन्न तरीकों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनसे भगवान शिव तक पहुंचा जा सकता है। अर्थात भगवान शिव के प्राप्त होने के विभिन्न तरीकों को प्रतिष्ठित करते हैं।


दो भुज चार चतुर्भुज दशभुज अति सोहे

आपके पास ब्रह्मा की तरह दो भुजाएँ हैं, विष्णु के समान आपकी चार भुजाएँ हैं और
शिव के समान आपकी दस भुजाएँ हैं।

आपके भीतर त्रिदेव के गुण हैं और आप तीनों लोकों के लोगों के प्रिय हैं। तीनों लोकों में सामान्य लोग आपको प्यार करते हैं।

ये भुजाएं भगवान शिव की विभिन्न शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।


त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे

आपके भीतर त्रिदेवों के गुण हैं और आप तीनों लोकों के सामान्य लोगों के प्रिय हैं। यह पंक्ति भगवान शिव की उनके तीन गुणों के लिए स्तुति करती है।

तीन गुण सत्त्व, रजस् और तमस् होते हैं। वे प्रकृति के तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं: पवित्रता, उत्कंठा और अंधकार।

भगवान शिव इन तीनों गुणों से परे हैं, और वे तीनों देवों के अवतार हैं।
वही विश्व के लोगों को आकर्षित करने वाला है।


अक्ष-माला वन-माला मुंड-माला धारी

यह पंक्ति भगवान शिव की उनके अनेक आभूषणों के लिए स्तुति करती है। उन्हें रुद्राक्ष की माला, जंगल के फूलों की माला और राक्षसों के कटे सिरों की माला पहने हुए वर्णित किया गया है।

आपने ब्रह्मा के समान रुद्राक्ष की माला, विष्णु के समान सुगंधित फूलों की माला और शिव के समान राक्षसों के कटे सिरों की माला पहनी हुई है।

ये आभूषण भगवान शिव के स्वरूप के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।


निचे की पंक्ति कहीं पर
चन्दन मृगमद सोहे, भाले शशि धारी
या फिर
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी
दी गयी है।

इसलिए दोनों लाइन का अर्थ दिया गया है।

चन्दन मृगमद सोहे, भाले शशि धारी

माथे पर चंदन और कस्तूरी तिलक और आपके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है।

ब्रह्मा के समान चंदन का तिलक, विष्णु के समान कस्तूरी तिलक और शिव के समान चन्द्रमा आपके मस्तक पर सुशोभित हैं।

या

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी

यह पंक्ति भगवान शिव की तीनों राक्षसों त्रिपुरासुर पर जीत की प्रशंसा करती है। भगवान शिव ने उन्हें त्रिशूल से नष्ट कर दिया था। और वे साँपों की माला पहनते हैं।

यह विजय भगवान शिव की दुष्टों को परास्त करने की उनकी शक्ति को प्रतिष्ठित करती है। यह जीत, बुराई पर काबू पाने के लिए भगवान शिव की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है।


श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे

यह पंक्ति भगवान शिव के विभिन्न वस्त्रों के लिए उनकी स्तुति करती है। उन्हें सफेद वस्त्र, पीले वस्त्र और बाघ की खाल पहने हुए वर्णित किया गया है।

आपने ब्रह्मा के समान श्वेत अर्थात सफेद वस्त्र, विष्णु के समान पीले तथा शिव के समान बाघ की खाल के वस्त्र धारण किए हैं।

ये वस्त्र विभिन्न तरीकों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसमें भगवान शिव की पूजा की जा सकती है। या भगवान शिव की पूजा के विभिन्न तरीकों को प्रतिष्ठित करते हैं।


सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे

भगवान शिव हमेशा सनक, सनंदन, सनातन और सनतकुमार, गरुड़ और भूतों से घिरे रहते हैं।

आपके साथ ब्रह्माजी के अनुयाय यानी ऋषि-मुनि और चार वेद, विष्णु के अनुयाय गरुण और धर्मपालक, शिवजी के अनुयाय भूत, प्रेत आदि होते हैं।

ये प्राणी भगवान शिव की प्रकृति के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।


करमध्येन कमंडलु, चक्र त्रिशूलधारी

आपके हाथों में भगवान ब्रह्मा के समान कमंडल, विष्णु के समान चक्र और शिव के समान त्रिशूल है।

यह पंक्ति भगवान शिव की उनके हथियारों के लिए स्तुति करती है। उनके हाथ में कमल का फूल, चक्र और त्रिशूल लिए हुए बताया गया है।

ये आयुध भगवान शिव की विभिन्न शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इसलिए, आप इस विश्व को ब्रह्मा की तरह सृजित करते हैं, विष्णु की तरह चलाते हैं और शिव की तरह नष्ट करते हैं।


सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी
या
सुख-कर्ता दुख-हर्ता, जग-पालन कर्ता

यह पंक्ति भगवान शिव की सुख लाने और दुःख दूर करने की क्षमता के लिए उनकी स्तुति करती है।
आप सभी को आनंद और खुशी देते हैं,
सभी दुःखों और संकटों को नष्ट करते हैं,
और जग का पालन करते है, विश्व को स्थायी रखते हैं।
वही सारे संसार की रक्षा करने वाले है।
उन्हें दुनिया को रोशन करने वाला बताया गया है।


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका
प्रणव-अक्षर ॐ मध्ये, ये तिनो ऐका।

यह पंक्ति भगवान शिव की स्तुति करती है जो ब्रह्मा, विष्णु और सदाशिव के समान हैं। यह पंक्ति ब्रह्मा, विष्णु और सदाशिव के एक ही भगवान शिव होने बात कहती है। वह वही है जो सारी सृष्टि का स्रोत है।

एक मूर्ख व्यक्ति (अविवेकी व्यक्ति) भी जान सकता है कि ब्रह्मा, विष्णु और सदाशिव आपके ही रूप हैं।

ब्रह्मांड के पहले अक्षर “ॐ” में ये तीन देवता हैं। इन तीनों देवताओं को समझने के लिए सबसे पहले शब्द “ॐ” है।


काशी में विश्वनाथ विराजत, नंदो ब्रह्मचारी

भगवान महादेव काशी में विश्वनाथ के रूप में निवास करते हैं, और वे हमेशा नंदी के साथ होते हैं, जो उनकी सवारी है।

वह एक ब्रह्मचारी भी है, अर्थात वह जो भ्रम को त्याग देता है, जो माया को त्याग देता हैं।


नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी

भगवान शिव हमेशा दर्शन देने के लिए तत्पर रहते हैं, और उनकी महिमा अपरंपार है। भगवान शिव उन भक्तों से प्रसन्न होते हैं जो उन्हें रोज सुबह उठकर भोग लगाते हैं।


त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावे,
कहत शिवानंद स्वामी, मन वांछित फल पावे

जो भी भगवान शिव की इस आरती को गाएगा उसकी मनोकामना पूरी होगी।

शिवानंद स्वामी जी के अनुसार, कोई भी भक्त जो तीनों गुण सत्त्व, रजस् और तमस् के स्वामी भगवान शिव की आरती करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan

अंग्रेजी में आरती के लिरिक्स और इंग्लिश में अर्थ पढ़ने के लिए क्लिक करे –
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Om Jai Shiv Omkara Lyrics with Meaning



List

Shiv Aarti – Om Jai Shiv Omkara Lyrics with Meaning


First Lyrics of Om Jai Shiv Omkara are given, and then
meaning of the aarti is explained in simple words.


What is Om Jai Shiv Omkara Aarti?

Om Jai Shiv Omkara Aarti is a Hindu devotional song or aarti in praise of Lord Shiva.

The aarti is usually performed during religious ceremonies, Mahashivratri, festivals, and daily worship in Shiva temples.

The aarti is in Hindi praises Lord Shiva for his many attributes, such as his power, his wisdom, and his compassion.

It is believed that singing the aarti brings spiritual peace and blessings from Lord Shiva.

The aarti is composed of verses that describe Lord Shiva’s many forms, attributes and powers.

It begins with the invocation “Om Jai Shiv Omkara,” which means “Salutations to Lord Shiva, the one who is the embodiment of the sound Om.”

The song then goes on to describe Lord Shiva’s many forms, such as his one-faced, four-faced, and five-faced forms. It also describes his many weapons, such as the trident, the snake, and the rosary.

Lord Shiv is said to not only the creator, preserver, and destroyer of the universe, but also the embodiment of compassion, love, and wisdom.

Through this aarti,
devotee also request Lord Shiva to protect him from all harm
and to grant him moksha, or liberation from the cycle of birth and death.

The aarti ends with a prayer to Lord Shiva for his blessings. It asks him to grant peace, happiness, and prosperity to all.

Om Jai Shiv Omkara Aarti is a beautiful and powerful prayer that can be used to connect with Lord Shiva. It is a great way to show your devotion to the Supreme Being and to seek his blessings.


Om Jai Shiv Omkara Lyrics

Om Jai Shiva Omkara,
Prabhu Har Shiv Omkara

Brahma, Vishnu, Sadashiv ,
arddhaangi dhaara
Om Jai Shiva Omkara


Ekaanan chaturaanan,
panchaanan raaje,
swami panchaanan raaje

Hans-aasan garud-aasan,
vrish-vaahan saaje
Om Jai Shiva Omkara


Dobhuj chaar chatur-bhuj,
dash-bhuj ati sohe,
swami dashabhuj ati sohe

Tino roop nirakhate,
tribhuvan jan mohe
Om Jai Shiva Omkara


Aksh-mala van-mala,
mund-mala dhaari,
swami mund-maala dhaari

Chandan mrigmad sohe,
bhale shashi dhari
(Tripurari kansari, kar-mala dhari )
Om Jai Shiva Omkara


Shwetambar pitaambar,
baaghambar ange,
swami baaghambar ange

Sanakaadik garudaadik,
bhootaadik sange
Om Jai Shiva Omkara


Karamadhyen kamandalu,
chakra trishul-dhaari,
swami chakra trishool-dhaari

Sukh-karta dukh-harta,
jag-paalan karta
Om Jai Shiva Omkara


Brahma Vishnu Sadashiv ,
jaanat aviveka,
swami jaanat aviveka

Pranava-akshar Om madhye,
ye tino eka
Om Jai Shiva Omkara


Kaashi mein Vishwanaath viraajat,
nando brahmachaari,
swami nando brahmachaari

Nit uth darshan paavat,
mahima ati bhaari
Om Jai Shiva Omkara


Trigun swamiji ki aarti
jo koi nar gaave,
swami jo koi nar gaave

Kahat Shivanand swami ,
man vaanchhit phal paave
Om Jai Shiva Omkara


Om Jai Shiv Omkara Aarti Meaning

Om Jai Shiv Omkara

The first line of the song is a invocation to Lord Shiva. Salutations to Lord Shiva, the one who is the sound of Om.

The word “Om” is the sacred sound of the universe, and it is believed to be the primordial vibration from which all creation arises.

The word “Shiv” is one of the names of Lord Shiva, and it means “auspicious” or “beneficent.”


Brahma, Vishnu, Sadashiv

Brahma is the creator, Vishnu is the preserver, and Shiva is the destroyer.
In this line Lord Shiva is described as the form of Tridev i.e. Brahma, Vishnu and Mahesh.
You are the Brahma, you are the Vishnu and you are the Shiva. All the gods are your form.
So, this line praises Lord Shiva as the creator, preserver, and destroyer of the universe.

Ardhangi Dhara

He is also the one who is half of Parvati. The word “Ardhangi” means “half-wife,” and it refers to Parvati, who is Lord Shiva’s wife.


Ekaanan Chaturanan Panchanan Raje

In previous line, Lord Shiva was described as Brahma, Vishnu and Mahesh.
This line mentions his different form of Brahma, Vishnu and Mahesh.
He is described as having one face, four faces, and five faces.
Why one face, four faces and five faces
As Vishnu, you have one face,
as Brahma four
and as Shiva five faces.
These faces represent the different aspects of Lord Shiva’s nature.
So, you play the roles of all the three Gods, Tride – Brahma, Vishnu and Mahesh.


Hansasan Garudaasan Vrishabhavahana Saje

As Brahma, you sit on the swan, the vehicle of Brahma,
as Vishnu, you sit on Garuda, the vehicle of Vishnu and
and as Shiva you sit on the bull, the vehicle of Maheshwar.
So, this line praises Lord Shiva for his many vehicles and described as riding on a swan, Garuda, and a bull.
These vehicles represent the different ways in which Lord Shiva can be reached.


Do Bhuj Char Chatur-bhuj Dasha-bhuj Ati Sohe

You have two arms like Brahma,
you have four arms like Vishnu and
you have ten arms like Shiva.
You have the qualities of the Tridev within you and you are loved by the common people in all the three worlds.
So, this line praises Lord Shiva for his many arms and is described as having two arms, four arms, and ten arms. These arms represent the different powers of Lord Shiva.


Trigun Roop Nirkhante Tribhuvan Jan Mohe

You have the qualities of the trinity within you and you are loved by the common people in all the three worlds.
This line praises Lord Shiva for his three gunas. The three gunas are sattva, rajas, and tamas. They represent the three qualities of nature: purity, passion, and darkness. Lord Shiva is beyond these three gunas, and he is the embodiment of all three. He is the one who attracts the people of the world.


Aksha-maala Van-mala Mund-mala dhari

This line praises Lord Shiva for his many ornaments.
He is described as wearing a rosary, a garland of forest flowers, and a garland of skulls.
You are wearing a garland of Rudraksh like Brahma, a garland of fragrant flowers like Vishnu, and a garland of severed heads of demons like Shiva.
These ornaments represent the different aspects of Lord Shiva’s nature.


Chandan Mrigmad Sohe, Bhale Shashi Dhari

Tilak of sandalwood and musk (Kasturi Tilak) on forehead with moon is adorned on your head.
Your forehead, glistening in the moonlight which it holds, is smeared with sandal-paste and musk (Kasturi Tilak).
Tilak of sandalwood like Brahma, tilak of Kasturi Tilak (musk) like Vishnu and moon like Shiva is adorned on your head.

OR
Tripurari Kanshari Kar Mala Dhari

This line praises Lord Shiva for his victory over the three demons Tripurasur. Lord Shiva destroyed them with his trident, and he wears a garland of snakes.
This victory represents Lord Shiva’s power to overcome evil.


Shwetambar Pitambar Baghambar Ange

This line praises Lord Shiva for his different garments.
He is described as wearing white clothes, yellow clothes, and tiger skin.
You are wearing white clothes like Brahma, yellow clothes like Vishnu and tiger skin clothes like Shiva.
These garments represent the different ways in which Lord Shiva can be worshipped.


Sanakaadik Garudaadik Bhootaadik Sange

Lord Shiva is always surrounded by the sages Sanaka, Sananda, Sanatana, and Sanatkumara, Garuda, and the ghosts.
With you are the followers of Brahma ji i.e. Rishi-Muni and all the four Vedas, Vishnu’s followers Garuna and Dharmapalak, Shivji’s followers ghosts, prets etc.
So, this line praises Lord Shiva for his entourage and described as being accompanied by the Sanaka and Sanananda rishis, Garuda, and the Bhutas.
These beings represent the different aspects of Lord Shiva’s nature.


Karamadhyen Kamaldulu Chakra Trishuladhari

In your hands you have Kamandal like Lord Brahma, Chakra like Vishnu and Trishul like Shiva.
This line praises Lord Shiva for his weapons. He is described as holding a lotus flower, a chakra, and a trident in his hand.
These weapons represent the different powers of Lord Shiva.
So, you create this world like Brahma, you run it like Vishnu and you destroy it like Shiva.


Sukhakari Dukhahari Jagpalanakari
Or
Sukh-karta dukh-harta, jag-paalan karta

This line praises Lord Shiva for his ability to bring happiness and remove sorrow.
You bring joy and happiness to all,
destroy all sorrows and distress,
and sustain the world.
He is the one who protects the whole world.
He is described as the one who illuminates the world.


Brahma Vishnu Sadashiv Janata Aviveka

Pranava-Akshar Om Madhye, Ye Tino Eka
This line praises Lord Shiva as the one who is the same as Brahma, Vishnu, and Sadashiv.
He is the one who is the source of all creation.
Even an unwise person can know that Brahma, Vishnu and Sadashiv are your forms.
These three Gods are there in the first letter Om of the universe.


Kaashi Mein Vishwanaath Viraajat, Nando Brahmachaari

Lord Mahadev lives in Kashi as Vishwanath, and he is always with Nandi, the bull.
Lord Shiva resides in his city Kashi in the form of Vishwanath, whose ride is Nandi.
He is also a brahmachari, that is, one who renounces illusion.


Nit Uth Darshan Paavat, Mahima Ati Bhaari

Lord Shiva is always ready to give darshan, and his greatness is immeasurable.
Lord Shiva is pleased with the devotees who offer him food every morning after waking up.


Trigun Swamiji Ki Aarti Jo Koi Nar Gaave,
Kahat Shivanand Swami, Man Vaanchhit Phal Paave

Whoever sings this aarti of Lord Shiva will get his wishes fulfilled.
According to Shivanand Swami ji,
any devotee who performs the aarti of Lord Shiva with all the three qualities, Lord of the three gunas-sattva, rajas and tamas,
all his wishes are fulfilled.


Shiv Stotra Mantra List


Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan


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