(महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित पद्म पुराण – उत्तरखण्ड अध्याय से)
ऋषियों ने कहा – सूतजी!
श्रीमहादेवजी और देवर्षि नारदका जो अद्भुत संवाद हुआ था,
उसे आपने हम लोगों से कहा।
हम लोग श्रद्धापूर्वक सुन रहे हैं।
अब आप कृपापूर्वक यह बताइये कि,
ब्रह्माजीने नारदमुनि को
भगवान के नाम की महिमा किस प्रकार बताई थी।
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ॐ नमः शिवाय
नारदजी ने ब्रम्हाजी से नाम की महिमा के लिए प्रार्थना की
सूतजी बोले – हें मुनियो!
इस विषयमें मैं पुराना इतिहास सुनाता हूँ।
आप सब लोग ध्यान देकर सुनें।
इसके श्रवणसे, भगवान् श्रीकृष्णमें भक्ति बढ़ती है।
एक समयकी बात है,
चित्तको पूर्ण एकाग्र रखनेवाले नारदजी,
अपने पिता ब्रह्माजीका दर्शन करनेके लिये
मेरु पर्वतके शिखरपर गये।
वहाँ आसनपर बैठे हुए जगत्पति ब्रह्माजी को प्रणाम करके,
मुनिश्रेष्ठ नारदजीने इस प्रकार कहा।
नारदजी बोले – हे विश्वेश्वर!
भगवान्के नामकी जितनी शक्ति है, उसे बताइये।
प्रभो! ये जो समूर्ण विश्वके स्वामी साक्षात् श्रीनारायण हरि हैं,
इन अविनाशी परमात्माके नामकी कैसी महिमा है?
ब्रह्माजी वोले – नारद! इस कलियुगमें, विशेषत: नाम और कीर्तन से, भगवानकी भक्ति जिस प्रकार करनी चाहिये, वह सुनो।
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हरे राम हरे कृष्ण
श्री हरि के नाम का स्मरण
जिनके लिये शास्त्रोमें कोई प्रायश्चित नहीं बताया गया है,
उन सभी पापोंकी शुद्धिके लिये,
एकमात्र भगवान् विष्णुका प्रयत्नपूर्वक स्मरण ही
सर्वोत्तम साधन देखा गया है।
वह समस्त पापोंका नाश करनेवाला है।
अत: श्रीहरिके नामका कीर्तन और जप करना चाहिये।
जो ऐसा करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो
श्रीविष्णु-के परमपदको प्राप्त होता है।
ये वदन्ति नरा नित्यं, हरिरित्यक्षरद्वयम
(हरी इति अक्षर द्वयं)।
तस्योच्चारण मात्रेण, विमुक्तास्ते न संशय:॥
जो मनुष्य – हरि – इस दो अक्षरोंवाले नामका
सदा उच्चारण करते है,
वे उसके उच्चारण मात्रसे मुक्त हो जाते हैं,
इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
तपस्याके रूप में किये जानेवाले जो सम्पूर्ण प्रायश्रित्त है,
उन सबकी अपेक्षा, श्रीकृष्ण का निरन्तर स्मरण श्रेष्ठ है।
जो मनुष्य प्रातः, मध्यान्ह, सायं तथा रात्रि आदिके समय,
नारायण – नामका स्मरण करता है,
उसके समस्त पाप तत्काल नष्ट हो जाते है।
उत्तम व्रतका पालन करनेवाले नारद!
मेरा कथन सत्य है, सत्य है, सत्य है।
भगवान्के नामोंका उच्चारण करने मात्र से,
मनुष्य बड़े-बड़े पापोंसे मुक्त हो जाता है।
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ॐ नमो नारायण
राम नाम का जप
राम रामेति रामेति, रामेति च पुनर्जपन।
स चाण्डालोपि पूतात्मा, जायते नात्र संशय:॥
राम राम राम राम, – इस प्रकार वारंवार जप करनेवाला मनुष्य,
यदि बुरे कर्म करनेवाला हो तो भी,
वह पवित्रात्मा हो जाता है।
इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
उसने नामकीर्तन मात्रसे कुरुक्षेत्र, काशी, गया और
द्वारका आदि संपूर्ण तीर्थोंका सेवन कर लिया।
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श्री राम जय राम जय जय राम
कृष्ण नाम का जप और निरंतर स्मरण
कृष्ण कृष्णेति कृष्णेति, इति वा यो जपन पठन।
इहलोकं परित्यज्य, मोदते विष्णु-संनिधौ॥
जो – कृष्ण! कृष्ण! कृष्ण –
इस प्रकार जप और कीर्तन करता है,
वह इस संसारका परित्याग करनेपर
भगवान् विष्णुके समीप आनन्द भोगता है।
ब्रह्मन्! जो कलियुगमें प्रसन्नता पूर्वक
हरिके नामका जप और कीर्तन करता है,
वह मनुष्य महान् पापसे छुटकारा पा जाता है।
सतयुगमें ध्यान, त्रेतामें यज्ञ तथा द्वापरमें
पूजन करके मनुष्य जो कुछ पाता है,
वही कलियुगमें केवल भगवान् केशवका
नाम जप और कीर्तन करनेसे पा लेता है।
जो लोग इस बातको जानकर
जगदात्मा केशवके भजनमें लीन होते है,
वे सब पापोंसे मुक्त हो,
श्रीविष्णुके परमपदको प्राप्त कर लेते हैं।
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भगवान् विष्णु के दस अवतार
मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध तथा कल्कि –
ये दस अवतार इस पृथ्वीपर बताये गये हैं।
इनके नामोच्चारण मात्रसे सदा पापी मनुष्य भी शुद्ध होता है।
जो मनुष्य प्रातःकाल, जिस किसी तरह,
श्री विष्णु नामका कीर्तन, जप तथा ध्यान करता है,
वह निस्सन्देह मुक्त होता है,
निश्चय ही नरसे नारायण बन जाता है।
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ॐ नमः शिवाय
ईश्वर का स्वरुप
भगवान् विष्णु, सर्वत्र-व्यापक सनातन परमात्मा है।
इनका न आदि है, न अन्त हैं।
ये सम्पूर्ण भूतोंके आत्मा,
समस्त प्राणियोंको उत्पन्न करनेवाले और लक्ष्मीसे युक्त हैं।
वही कालके भी काल है।
उनका कभी विनाश नहीं होता है।
भगवान-जनार्दन साक्षात् विश्वरूप है।
वे ही व्यापक होनेके कारण विष्णु और
धारण-पोषण करनेके कारण जगदीश्वर हैं।
इसलिए जिनके नामका ऐसा महात्म्य है कि,
उसे सुनने मात्रसे मोक्षकी प्राप्ति हो जाती है,
उन भगवान्का ही स्मरण करना चाहिये।
जिस मुखमें – राम राम – का जप होता रहता,
वही महान् तीर्थ है,
वही प्रधान क्षेत्र है,
तथा वही समस्त कामनाआको पूर्ण करनेवाला हैं।
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