ईश्वर का स्मरण अर्थात सुमिरन पर कबीर के दोहे
दुःख से बचने का सरल उपाय – सुख में ईश्वर को याद रखो
दु:ख में सुमिरन सब करै,
सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करै,
तो दु:ख काहे को होय॥
दु:ख में सुमिरन सब करै – आमतौर पर मनुष्य ईश्वर को दुःख में याद करता है।
सुख में करै न कोय – सुख में ईश्वर को भूल जाते है।
जो सुख में सुमिरन करै – यदि सुख में भी इश्वर को याद करे
तो दु:ख काहे को होय – तो दुःख निकट आएगा ही नहीं।
मुक्ति का सरल उपाय – हर श्वास में ईश्वर का सुमिरन
काह भरोसा देह का,
बिनसी जाय छिन मांहि।
सांस सांस सुमिरन करो
और जतन कछु नाहिं॥
काह भरोसा देह का – इस शरीर का क्या भरोसा है,
बिनसी जाय छिन मांहि – किसी भी क्षण यह (शरीर) हमसे छीन सकता है।
सांस सांस सुमिरन करो – इसलिए हर साँस में ईश्वर को याद करो,
और जतन कछु नाहिं – इसके अलावा मुक्ति का कोई दूसरा मार्ग नहीं है।
ईश्वर के ध्यान के अलावा बाकी सब दुःख है
कबीर सुमिरन सार है,
और सकल जंजाल।
आदि अंत मधि सोधिया,
दूजा देखा काल॥
कबीर सुमिरन सार है – कबीरदासजी कहते हैं कि सुमिरन (ईश्वर का ध्यान) ही मुख्य है,
और सकल जंजाल – बाकी सब मोह माया का जंजाल है।
आदि अंत मधि सोधिया – शुरू में, अंत में और मध्य में, जांच परखकर देखा है,
दूजा देखा काल – सुमिरन के अलावा, बाकी सब काल (दुःख) है।
- सार अर्थात -essence – सारांश, तत्त्व, मूलतत्त्व
मुक्ति अर्थात मोक्ष के लिए क्या करें?
राम नाम सुमिरन करै,
सतगुरु पद निज ध्यान।
आतम पूजा जीव दया,
लहै सो मुक्ति अमान॥
राम नाम सुमिरन करै – जो मनुष्य राम नाम का सुमिरन करता है, ईश्वर को याद करता है,
सतगुरु पद निज ध्यान – सतगुरु के चरणों का निरंतर ध्यान करता है,
आतम पूजा – अंतर्मन से ईश्वर को पूजता है,
जीव दया – सभी जीवो पर दया करता है,
लहै सो मुक्ति अमान – वह इस संसार से मुक्ति (मोक्ष) पाता है।
ईश्वर के दर्शन के लिए सबसे सहज मार्ग क्या है?
सुमिरण मारग सहज का,
सतगुरु दिया बताय।
सांस सांस सुमिरण करूं,
इक दिन मिलसी आय॥
सुमिरण मारग सहज का – सुमिरण का मार्ग बहुत ही सहज और सरल है,
सतगुरु दिया बताय – जो मुझे सतगुरु ने बता दिया है
सांस सांस सुमिरण करूं – अब मै, हर साँस में, प्रभु को याद करता हूँ
इक दिन मिलसी आय – एक दिन निश्चित ही, मुझे ईश्वर के दर्शन होंगे
मन में ईश्वर का स्मरण कैसे रहना चाहिए?
सुमिरण की सुधि यौ करो,
जैसे कामी काम।
एक पल बिसरै नहीं,
निश दिन आठौ जाम॥
सुमिरण की सुधि यौ करो – ईश्वर को इस प्रकार याद करो,
जैसे कामी काम – जैसे कामी पुरुष, हर समय विषयो के बारे में सोचता है।
एक पल बिसरै नहीं – एक पल भी व्यर्थ मत गँवाओं, व्यर्थ मत जाने दो।
निश दिन आठौ जाम – रात, दिन, आठों पहर, प्रभु परमेश्वर को याद करो।
- पहर का अर्थ अगले दोहे में दिया गया है
मनुष्य की दिनचर्या में, ईश्वर के ध्यान का समय
पाँच पहर धन्धे गया,
तीन पहर गया सोय।
एक पहर हरि नाम बिन,
मुक्ति कैसे होय॥
पाँच पहर धन्धे गया – पाँच पहर धन्धा करते हुए बिता दिए
तीन पहर गया सोय – तीन पहर सोने में बिता दिए
एक पहर हरि नाम बिन – एक पहर भी भगवान के नाम का स्मरण नहीं किया
मुक्ति कैसे होय – तो भला किस प्रकार मुक्ति होगी
- पहर अर्थात – एक दिन का आठवाँ भाग,
- यानी की तीन घंटे का समय
- एक दिन में आठ पहर होते है –
- तीन तीन घंटे के आठ पहर, चैबीस घंटे।
भावार्थ: –
कबीरदासजी कहते है की
दिन के आठ पहर में से पाँच पहर
धंधा और दुनिया के कार्य करते हुए बिता दिए और
दिन के तीन पहर सोने में बिता दिए।
इस प्रकार दिन के आठों पहर का समय गुजार दिया,
किन्तु एक पहर भी भगवान का सुमिरन नहीं किया,
ईश्वर का ध्यान और नाम स्मरण नहीं किया,
तो मुक्ति किस प्रकार मिलेगी।
ज्ञान और भक्ति, ईश्वर के सुमिरन के लिए जरूरी
बिना साँच सुमिरन नहीं,
बिन भेदी भक्ति न सोय।
पारस में परदा रहा,
कस लोहा कंचन होय॥
बिना सांच सुमिरन नहीं – बिना ज्ञान के प्रभु का स्मरण (सुमिरन) नहीं हो सकता और
बिन भेदी भक्ति न सोय – भक्ति का भेद जाने बिना सच्ची भक्ति नहीं हो सकती।
पारस में परदा रहा – जैसे पारस में थोडा सा भी खोट हो,
कस लोहा कंचन होय – तो वह लोहे को सोना नहीं बना सकता।
- यदि मन में विकारों का खोट हो,
तो मनुष्य सच्चे मन से सुमिरन नहीं कर सकता।
भवसागर से उबरने के लिए सुमिरन, और डूबने के लिए अहंकार
दर्शन को तो साधु हैं,
सुमिरन को गुरु नाम।
तरने को आधीनता,
डूबन को अभिमान॥
दर्शन को तो साधु हैं – दर्शन के लिए सन्तों का दर्शन श्रेष्ठ हैं और
सुमिरन को गुरु नाम – सुमिरन के लिए (चिन्तन के लिए) गुरु व्दारा बताये गये नाम एवं गुरु के वचन उत्तम है।
तरने को आधीनता – भवसागर (संसार रूपी भव) से पार उतरने के लिए आधीनता अर्थात विनम्र होना, अति आवश्यक है,
डूबन को अभिमान – लेकिन डूबने के लिए तो अभिमान, अहंकार ही पर्याप्त है। (इसलिए अहंकार नहीं करना चाहिए)
जीवन रहते जितना राम नाम लूट सकते है, लूट लो
लूट सके तो लूट ले,
राम नाम की लूट।
पाछे फिर पछ्ताओगे,
प्राण जाहिं जब छूट॥
लूट सके तो लूट ले – अगर लूट सको तो लूट लो,
राम नाम की लूट – अभी राम नाम की लूट है।
- अभी समय है, तुम भगवान का जितना नाम लेना चाहते हो ले लो
पाछे फिर पछ्ताओगे – यदि नहीं लुटे, तो बाद में पछताना पड़ेगा,
प्राण जाहिं जब छूट – जब प्राण छुट जायेंगे।
विकारों से भरे मन को शुद्ध करने के लिए, सुमिरन रुपी पारस पत्थर
आदि नाम पारस अहै,
मन है मैला लोह।
परसत ही कंचन भया,
छूटा बंधन मोह॥
आदि नाम पारस अहै – ईश्वर का स्मरण पारस के समान है।
मन है मैला लोह – विकारों से भरा मन अर्थात मैला मन, लोहे के समान है।
परसत ही कंचन भया – जैसे पारस के संपर्क से लोहा कंचन (सोना) बन जाता है,
- वैसे ही ईश्वर के नाम से मन शुद्ध हो जाता है।
छूटा बंधन मोह – और मनुष्य मोह माया के बन्धनों से छूट जाता है।
हीरे जैसा अनमोल जीवन, कब कौड़ी जैसा व्यर्थ हो जाता है?
रात गंवाई सोय के,
दिवस गंवाया खाय।
हीरा जन्म अमोल था,
कोड़ी बदले जाय॥
रात गंवाई सोय के – रात सोकर गँवा दी और
दिवस गंवाया खाय – दिन खाने पीने में गँवा दिया।
हीरा जन्म अमोल था – हीरे जैसा अमूल्य जीवन
कोड़ी बदले जाय – कौड़ी के मोल बेच दिया, व्यर्थ जाने दिया।
भावार्थ: –
मनुष्य को जन्म मिलने के बाद, उसे अपने उद्धार के लिए,
मुक्ति के लिए, बंधनों से छूटने के लिए प्रयत्न करने चाहिए।
लेकिन यदि मनुष्य दिन रात
सिर्फ खाने, पीने और सोने में बिता दे,
तो यह हीरे जैसा अनमोल जीवन,
व्यर्थ चला जाएगा यानी की कौड़ी के दामों बिक जाएगा।
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कबीर के दोहे – सुमिरन
कबीरा सोया क्या करे,
उठि न भजे भगवान।
जम जब घर ले जायेंगे,
पड़ी रहेगी म्यान॥
नींद निशानी मौत की,
उठ कबीरा जाग।
और रसायन छांड़ि के,
नाम रसायन लाग॥
जीना थोड़ा ही भला,
हरि का सुमिरन होय।
लाख बरस का जीवना,
लेखै धरै न कोय॥
जो कोय सुमिरन अंग को,
पाठ करे मन लाय।
भक्ति ज्ञान मन ऊपजै,
कहै कबीर समुझाय॥
निज सुख आतम राम है,
दूजा दुःख अपार।
मनसा वाचा करमना,
कबीर सुमिरन सार॥
सहकामी सुमिरन करै,
पावै उत्तम धाम।
निहकामी सुमिरन करै,
पावै अविचल राम॥
सन्त सेव गुरु बन्दगी,
गुरु सुमिरन वैराग।
ये ता तबही पाइये,
पूरन मस्तक भाग॥
सुख मे सुमिरन ना किया,
दु:ख में किया याद।
कह कबीर ता दास की,
कौन सुने फरियाद॥
सुमरित सुरत जगाय कर,
मुख के कछु न बोल।
बाहर का पट बन्द कर,
अन्दर का पट खोल॥
Or
सुमिरन सुरति लगाय के,
मुख ते कछू न बोल।
बाहर के पट देय के,
अंतर के पट खोल॥
थोड़ा सुमिरन बहुत सुख,
जो करि जानै कोय।
हरदी लगै न फिटकरी,
चोखा ही रंग होय॥
सुमिरण की सुधि यौ करो,
ज्यौं गागर पनिहारि।
हालै डीलै सुरति में,
कहैं कबीर बिचारी॥
सुमरण की सुब्यों करो,
ज्यों गागर पनिहार।
होले-होले सुरत में,
कहैं कबीर विचार॥
सुमरण से मन लाइए,
जैसे पानी बिन मीन।
प्राण तजे बिन बिछड़े,
सन्त कबीर कह दीन॥
सुमिरन में मन लाइए,
जैसे नाद कुरंग।
कहैं कबीर बिसरे नहीं,
प्रान तजे तेहि संग॥
सुमिरन सों मन जब लगै,
ज्ञानांकुस दे सीस।
कहैं कबीर डोलै नहीं,
निश्चै बिस्वा बीस॥
सुमिरन सों मन लाइए,
जैसे दीप पतंग।
प्राण तजे छिन एक में,
जरत न मोरै अंग॥
हिरदे सुमिरनि नाम की,
मेरा मन मसगूल।
छवि लागै निरखत रहूँ,
मिटि गये संसै सूल॥
कहता हूँ कहि जात हूँ,
सुनता है सब कोय।
सुमिरन सों भल होयगा,
नातर भला न होय॥
कबीर माला काठ की,
पहिरी मुगद डुलाय।
सुमिरन की सुधि है नहीं,
डीगर बांधी गाय॥
नाम जपे अनुराग से,
सब दुख डारै धोय।
विश्वासे तो गुरू मिले,
लोहा कंचन होय॥
जब जागै तब नाम जप,
सोवत नाम संभार।
ऊठत बैठत आतमा,
चालत नाम चितार॥
ओठ कंठ हाले नहीं,
जीभ न नाम उचार।
गुप्तहि सुमिरन जो लखे,
सोई हंस हमार॥
अंतर जपिये रामजी,
रोम रोम रकार।
सहजे धुन लागी रहे,
येही सुमिरन सार॥
मनुवा तो गाफ़िल भया,
सुमिरन लागै नांहि।
घनी सहेगा सासना,
जम के दरगह मांहि॥
सुमिरन ऐसो कीजिये,
खरे निशाने चोट।
सुमिरन ऐसो कीजिये,
हाले जीभ न होठ॥
वाद करै सो जानिये,
निगुरे का वह काम।
सन्तों को फ़ुरसत नहीं,
सुमिरन करते नाम॥
कबीर सुमिरन अंग को,
पाठ करे मन लाय।
विद्याहिन विद्या लहै,
कहै कबीर समुझाय॥
जो कोय सुमिरन अंग को,
निसि बासर करै पाठ।
कहै कबीर सो संतजन,
संधै औघट घाट॥
भक्ति भजन हरि नाम है,
दूजा दुःख अपार।
मनसा वाचा कर्मना,
कबीर सुमिरन सार॥
जागन में सोवन करै,
सोवन में लव लाय।
सुरति डोर लागी रहे,
तार तूटि नहि जाय॥
नाम रटत अस्थिर भया,
ज्ञान कथत भया लीन।
सुरति सब्द एकै भया,
जल ही ह्वैगा मीन॥
सब मंत्रन का बीज है,
सत्तनाम ततसार।
जो कोई जन हिरदै धरे,
सो जन उतरै पार॥
कबीर मन निश्चल करो,
सत्तनाम गुन गाय।
निश्चल बिना न पाईये,
कोटिक करो उपाय॥
वाद विवादा मत करो, करु
नित एक विचार।
नाम सुमिर चित्त लाय के,
सब करनी में सार॥
अंतर हरि हरि होत है,
मुख की हाजत नाहि।
सहजे धुनि लागी रहे,
संतन के घट मांहि॥
Kabir Dohe – List
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