दुर्गा सप्तशती अध्याय 12 - हिंदी में - सप्तशती पाठ के लाभ

Durga Saptashati – Adhyay 12 in Hindi


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दुर्गा सप्तशती क्या है और उसे पढ़ने से मनुष्य को कोई लाभ मिलता है या नहीं, जानने के लिए पढ़े –

दुर्गा सप्तशती क्या है और क्यों पढ़ना चाहिए?

What is Durga Saptashati and Why You Should Read it?


सप्तशती के पिछले अध्यायों में बताया गया था कि कैसे समय समय पर राक्षसों और दैत्यों का संहार करके, देवी माँ जगतकी और देवताओं की रक्षा करती है।

सप्तशती के इस बारहवे अध्याय में, खुद देवी ने देवताओं को देवी माहात्म्य और सप्तशती पढ़ने और सुनने के लाभ के बारें में बताया है।

दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोकों में से इस अध्याय में 41 श्लोक आते हैं।


इस पेज में दुर्गा सप्तशती अध्याय – 12 हिंदी में दिया गया है। इस अध्याय के संस्कृत श्लोक अर्थसहित पढ़ने के लिए क्लिक करें –

दुर्गा सप्तशती अध्याय – 12 श्लोक अर्थसहित


इस अध्याय में यह बताया गया है कि कैसे सप्तशती के पाठ से भक्त की संकटों और विपत्तियों से रक्षा होती है, बाधाएं दूर होती है और भय, रोग आदि से मुक्ति मिलती है।

साथ ही साथ यह भी विस्तार से दिया गया है कि देवी चरित्र का स्मरण, भक्त की स्थान-स्थान पर कैसे रक्षा करता है, जैसे की सुने मार्ग में, शत्रुओं से घिर जाने पर आदि।


दुर्गा सप्तशती अध्याय 12 का ध्यान

ध्यान

मैं तीन नेत्रोंवाली दुर्गादेवीका ध्यान करता (करती) हूँ।

उनके श्रीअंगोकी प्रभा बिजलीके समान है।

हाथोंमें तलवार और ढाल लिये अनेक कन्याएँ उनकी सेवामें खड़ी हैं।

वे अपने हाथोंमें, चक्र, गदा, तलवार, ढाल, बाण, धनुष, पाश और तर्जनी मुद्रा धारण किये हुए हैं।

उनका स्वरूप अग्रिमय है तथा वे माथेपर चन्द्रमाका मुकुट धारण करती हैं।

माँ दुर्गा, देवताओं को, सप्तशती पाठ के लाभ बताती है

देवी बोलीं –
देवताऒं! जो एकाग्रचित होकर प्रतिदिन इन स्तुतियों से मेरा ध्यान करेगा, उसकी सारी बाधाएं मैं निश्चय ही दूर कर दूंगी।

जो मनुष्य निचे दिए हुए प्रसंगों का पाठ करेंगे –

तथा अष्टमी, चतुर्दशी और नवमी को जो एकाग्रचित भक्तिपूर्वक मेरा माहात्म्य का श्रवण करेंगे,

– उन्हें कोई पाप नहीं छू सकेगा,
– उन पर पापजनित आपत्तियां भी नहीं आएंगी,
– उनके घर में दरिद्रता नहीं होगी तथा
– उनको कभी प्रेमीजनों के विछोह का कष्ट नहीं भोगना पड़ेगा।

लुटेरों से, शत्रु से, अग्नि, जल और शस्त्र से भय नहीं होता

इतना ही नहीं, उन्हें शत्रु से, लुटेरों से, राजा से, शस्त्र से, अग्नि से तथा जलराशि से भी
कभी भय नहीं होगा।

इसलिए सबको एकाग्रचित होकर भक्तिपूर्वक मेरे इस माहात्म्य को सदा पढना और सुनना चाहिए।

यह परम कल्याणकारक है।

मेरा महात्म्य, महामारीजनित समस्त उपद्रवों एवं तीनों प्रकार के उत्पातोंको
शांत करने वाला है।

मेरे जिस मंदिर में प्रतिदिन विधिपूर्वक मेरे इस माहात्म्य का पाठ किया जाता है, उस स्थान को मैं कभी नहीं छोड़ती।

वहां सदा ही मेरा सन्निधान बना रहता है, अर्थात निवास रहता है।

पूजा, होम तथा महोत्सव के अवसरों पर मेरे इस चरित्र का पूरा-पूरा पाठ और हवन करना चाहिए।

ऐसा करने पर मनुष्य विधि को जानकर या बिना जाने भी, मेरे लिए जो पूजा या होम आदि करेगा, उसे मैं बड़ी प्रसन्नताके साथ ग्रहण करूंगी।

धन धान्य की सम्पन्नता के लिए क्या करे?

शरद काल में जो वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे इस माहात्म्य को भक्तिपूर्वक सुनेगा, वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाऒं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा।

इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

मेरे इस माहात्म्य, मेरे प्रादुर्भाव की सुंदर कथाएं तथा युद्ध में किए हुए मेरे पराक्रम सुनने से मनुष्य निर्भय हो जाता है।

मेरे माहात्म्य का श्रवण करने वाले पुरुषों के शत्रु नष्ट हो जाते हैं, उहें कल्याण की प्राप्ति होती है, तथा उनका कुल आनंदित रहता है।

सर्वत्र शांति-कर्म में, बुरे स्वप्न दिखायी देने पर, तथा ग्रहजनित भयंकर पीड़ा उपस्थित होने पर मेरा माहात्म्य श्रवण करना चाहिए।

इससे (अर्थात देवी सप्तशती के श्रवण और पढ़ने से) सब विघ्न तथा भयंकर ग्रह-पीड़ाएं शांत हो जाती हैं, और मनुष्यों द्वारा देखा हुआ दु:स्वप्र यानी की बुरा स्वप्न भी
शुभ स्वप्न में परिवर्तित हो जाता है।

बालग्रहों से आक्रांत हुए बालकों के लिए यह माहात्म्य शांतिकारक है।

मनुष्योंके संगठन में फूट होने पर यह मित्रता कराने वाला होता है।

यह माहात्म्य समस्त दुराचारियों के बल का नाश कराने वाला है।

इसके पाठमात्र से राक्षसों, भूतों और पिशाचों का, नाश हो जाता है।

मेरा यह सब माहात्म्य मेरे सामीप्य की प्राप्ति कराने वाला है।

एक बार का सप्तशती श्रवण, कौन-कौन सी पूजा-आराधनाओं से बढ़कर है?

पुष्प, अर्घ्य, धूप, दीप, गंध आदि से पूजन करने से,
ब्राह्मण भोज से, होम से,
प्रतिदिन अभिषेक करने से,
नाना प्रकार के भोगों के अर्पण से
तथा दान आदि से,
एक वर्ष तक मेरी आराधना से मुझे जितनी प्रसन्नता होती है, –

उतनी प्रसन्नता
मेरे इस उत्तम चरित्रका
एक बार श्रवण करनेमात्रसे हो जाती है।

यह माहात्म्य, श्रवण करने पर पापोंको हर लेता है और आरोग्य प्रदान करता है।

मेरे प्रादुर्भाव का कीर्तन समस्त भूतों से रक्षा करता है, तथा मेरा युद्धविषयक चरित्र
दुष्ट दैत्यों का संहार करने वाला है।

इसके श्रवण करनेपर मनुष्यों को शत्रु का भय नहीं रहता।

देवताऒं! तुमने और ब्रह्मर्षियों ने जो मेरी स्तुतियां की हैं।

तथा ब्रह्माजी ने जो स्तुतियां की हैं, वे सभी कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं।

देवी चरित्र का स्मरण, स्थान स्थान पर रक्षा करता है

– वन में, सुने मार्ग में (वीरान मार्ग में), दावानल से घिर जाने पर,
– निर्जन स्थान में लुटेरों के दांव में पड़ जाने पर या शत्रुऒं से पकड़े जाने पर,
– अथवा जंगल में सिंह, बाघ या जंगली हाथियों के पीछा करने पर

मेरे चरित्र का स्मरण करने से कष्टों से रक्षा होती है।

कुपित राजा के आदेशसे वध या बंधन के स्थान में ले जाए जाने पर, महासागरमें नावपर बैठनेके बाद भारी तूफान से नाव के डगमग होने पर,

और अत्यंत भयंकर युद्ध में शस्त्रों का प्रहार होनेपर वेदना से पीडि़त होने पर,
अथवा सभी भयानक बाधाओं के उपस्थित होने पर

जो मेरे चरित्र का स्मरण करता है, वह संकटमुक्त हो जाता है।

मेरे प्रभाव से सिंह आदि हिंसक जंतु नष्ट हो जाते हैं, तथा लुटेरे और शत्रु भी
मेरे चरित्र का स्मरण करने वाले पुरुष से दूर भागते हैं।

ऋषि कहते हैं –
ऐसा कहकर, प्रचंड पराक्रम वाली भगवती चंडिका सब देवताऒं के देखते-देखते अंतर्धान हो गईं।

फिर समस्त देवता भी शत्रुऒं के मारे जाने से निर्भय हो

पहले की ही भांति यज्ञभागका उपभोग करते हुए अपने-अपने अधिकार का पालन करने लगे।

संसार का विध्वंस करने वाले, महाभयंकर पराक्रमी देवशत्रु शुम्भ तथा

महाबली निशुम्भ के युद्ध में देवी द्वारा मारे जाने पर शेष दैत्य पाताल लोक में चले आए।

राजन्! इस प्रकार भगवती अम्बिका देवी नित्य होती हुई भी पुन:-पुन: प्रकट होकर जगत की रक्षा करती हैं।

वे ही इस विश्व को मोहित करतीं, वे ही जगत को जन्म देतीं, तथा वे ही प्रार्थना करने पर संतुष्ट हो समृद्धि प्रदान करती हैं।

राजन! महाप्रलय के समय महामारी का स्वरूप धारण करने वाली, वे महाकाली ही इस समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त हैं।

वे ही समय-समय पर महामारी का रूप बनाती हैं और वे ही स्वयं अजन्मा होती हुई भी सृष्टि के रूप में प्रकट होती हैं।

वे सनातनी देवी ही समयानुसार सम्पूर्ण भूतों की रक्षा करती हैं।

मनुष्यों के अभ्युदयके समय वे ही घर में लक्ष्मी के रूप में स्थित हो उन्नति प्रदान करती हैं और वे ही अभाव के समय दरिद्रता बनकर विनाश का कारण होती हैं।

पुष्प, धूप और गंध आदि से पूजन करके उनकी स्तुति करने पर वे धन, पुत्र, धार्मिक बुद्धि तथा उत्तम गति प्रदान करती हैं।

इस प्रकार श्रीमार्कंडेयपुराण में सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत देवीमाहाम्य में फलस्तुति नामक बारहवां अध्याय पूरा हुआ।


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