Sant Kabir ke Dohe – 3 – Hindi


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संत कबीर के दोहे – भाग 3 (Sant Kabir ke Dohe – Page 3)


कबीरा ते नर अँध है,
गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है,
गुरु रूठे नहीं ठौर॥


पाँच पहर धन्धे गया,
तीन पहर गया सोय।
एक पहर हरि नाम बिन,
मुक्ति कैसे होय॥


शीलवन्त सबसे बड़ा,
सब रतनन की खान।
तीन लोक की सम्पदा,
रही शील में आन॥


गुरु कीजिए जानि के,
पानी पीजै छानि।
बिना विचारे गुरु करे,
परे चौरासी खानि॥


कामी, क्रोधी, लालची,
इनसे भक्ति न होय।
भक्ति करे कोइ सूरमा,
जाति वरन कुल खोय॥


जागन में सोवन करे,
साधन में लौ लाय।
सूरत डोर लागी रहे,
तार टूट नाहिं जाय॥


साधु ऐसा चहिए,
जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे,
थोथ देइ उड़ाय॥


जहाँ दया तहाँ धर्म है,
जहाँ लोभ तहाँ पाप।
जहाँ क्रोध तहाँ पाप है,
जहाँ क्षमा तहाँ आप॥


सतगुरू की महिमा अनंत,
अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया,
अनंत दिखावणहार॥


यह तन विषय की बेलरी,
गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै,
तो भी सस्ता जान॥


कबीर के दोहे – 4 (Kabir ke Dohe – 4)

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