Shiv Rudrashtakam Lyrics with Meaning


श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र – अर्थ सहित – नमामीशमीशान निर्वाणरूपं

तुलसीदास कृत शिव रूद्राष्टक

रुद्राष्टकम = रुद्र + अष्टक। रुद्र अर्थात भगवान शिव और अष्टक अर्थात आठ श्लोकों का समूह। इसलिए, रुद्राष्टकम स्तोत्र यानी भगवान शंकरजी की स्तुति के लिए आठ श्लोक।

तुलसीदासजी ने भगवान् शिव की स्तुति के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। स्वामी तुलसीदासजी के श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में रुद्राष्टकम स्तोत्र का उल्लेख आता है।


रुद्राष्टकम स्तोत्र पढ़ने का लाभ

रुद्राष्टकम स्तोत्र में शिवजी के रूप, गुण और कार्यों का वर्णन किया हुआ है। जो मनुष्य रुद्राष्टकम स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, भोलेनाथ उन से प्रसन्न होते हैं।उस मनुष्य के दुःख दूर हो जाते है और जीवन में सुख शांति आती है।


श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र – नमामीशमीशान निर्वाणरूपं

रुद्राष्टकम स्तोत्र के इस पोस्ट में –

  • पहले स्तोत्र शब्दों के अर्थ और भावार्थ के साथ दिया गया है।
  • बाद में स्तोत्र सिर्फ संस्कृत में और
  • अंत में श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र सिर्फ हिंदी में दिया गया है।

रूद्र के बारें में विस्तार से पढ़ने के लिए

अथर्वशिर उपनिषद में, भगवान् शिव ने देवताओं को रूद्र के बारे में जो बताया था,
और फिर रूद्र के स्वरुप का देवताओं ने किस प्रकार विस्तार से वर्णन किया, और उनकी स्तुति की, वह दिया गया है।

उस वर्णन को पढ़ने के लिए क्लिक करें – रूद्र – भगवान शिव

रुद्राष्टकम स्तोत्र में ओमकार, परब्रह्म, ईशान जैसे शब्द आते है। देवताओं ने, भगवान् रूद्र को, महेश्वर, ओमकार, ईशान, परब्रह्म, प्रणव, अनंत क्यों कहा जाता है, यह बताया था। यह सब रूद्र – भगवान शिव के लेख में दिया गया है।


Rudrashtakam Meaning In Hindi

रुद्राष्टकम स्तोत्र – अर्थ सहित

1.

मोक्षस्वरुप, आकाशरूप, सर्व्यवापी शिवजी को प्रणाम

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्॥1॥

  • नमामीशम् – श्री शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ जो
  • ईशान – ईशान दिशाके ईश्वर
  • निर्वाणरूपं – मोक्षस्वरुप
  • विभुं व्यापकं – सर्व्यवापी
  • ब्रह्मवेदस्वरूपम् – ब्रह्म और वेदस्वरूप है
  • निजं – निजस्वरुप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित)
  • निर्गुणं – गुणों से रहित
  • निर्विकल्पं – भेद रहित
  • निरीहं – इच्छा रहित
  • चिदाकाशम् – चेतन आकाशरूप एवं
  • आकाशवासं – आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले
    • अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले)
  • भजेहम् – हे शिव, आपको मैं भजता हूँ

भावार्थ: –
हे मोक्षस्वरुप, सर्व्यवापी,
ब्रह्म और वेदस्वरूप,
ईशान दिशाके ईश्वर तथा सबके स्वामी श्री शिवजी,
मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

निजस्वरुप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित,
गुणों से रहित, भेद रहित,
इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं
आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दीगम्बर
अर्थात आकाश को भी आच्छादित करने वाले,
आपको मैं भजता हूँ ॥१॥

हे ईशान! मैं मुक्तिस्वरूप, समर्थ, सर्वव्यापक, ब्रह्म, वेदस्वरूप, निजस्वरूपमें स्थित, निर्गुण, निर्विकल्प, निरीह, अनन्त ज्ञानमय और आकाशके समान सर्वत्र व्याप्त प्रभुको प्रणाम करता हूँ॥1॥


2.

ॐ कार शब्द के मूल, निराकार, महाकाल कैलाशपति को नमस्कार

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्॥2॥

  • निराकार – निराकार स्वरुप
  • ओमङ्कारमूलं – ओंकार के मूल
  • तुरीयं – तीनों गुणों से अतीत
  • गिराज्ञान गोतीतमीशं – वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे
  • गिरीशम् – कैलाशपति
  • करालं – विकराल
  • महाकालकालं – महाकाल के काल
  • कृपालं – कृपालु
  • गुणागार – गुणों के धाम
  • संसारपारं – संसार से परे
  • नतोहम् – परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ

भावार्थ: –
कैलाशपति, ओंकार के मूल,
तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत,
वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से पर, कैलाशपति,

विकराल, महाकाल के काल, कृपालु,
गुणों के धाम, संसार से परे,
आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥

जो निराकार हैं, ओंकाररूप आदिकारण हैं, तुरीय हैं, वाणी, बुद्धि और इन्द्रियोंके पथसे परे हैं, कैलासनाथ हैं, विकराल और महाकालके भी काल, कृपाल, गुणोंके आगार और संसारसे तारनेवाले हैं, उन भगवान्‌को मैं नमस्कार करता हूँ॥2॥


3.

सिरपर गंगाजी, ललाटपर चन्द्रमा, गले में सर्पों की माला

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥3॥

  • तुषाराद्रिसंकाश – जो हिमाचल के समान
  • गौरं गभिरं – गौरवर्ण तथा गंभीर हैं
  • मनोभूत कोटि प्रभा – करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है
  • श्री शरीरम् – जिनके श्री शरीर में
  • स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
  • जिनके सिरपर,
  • सुन्दर नदी गंगा जी विराजमान हैं
  • लसद्भालबालेन्दु – जिनके ललाटपर द्वितीय का चन्द्रमा और
  • कण्ठे भुजङ्गा – गले में सर्प सुशोभित हैं

भावार्थ: –
जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं,
जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,

जिनके सिरपर सुन्दर गंगा जी नदी विराजमान हैं,
जिनके ललाटपर द्वितीय का चन्द्रमा और
गले में सर्प सुशोभित हैं ॥३॥

जो हिमालयके समान श्वेतवर्ण, गम्भीर और करोड़ों कामदेवके समान कान्तिमान् शरीरवाले हैं, जिनके मस्तकपर मनोहर गंगाजी लहरा रही हैं, भालदेशमें बालचन्द्रमा सुशोभित होते हैं और गलेमें सर्पोंकी माला शोभा देती है॥3॥


4.

नीलकंठ, प्रसन्नमुख, दयालु, सबके नाथ, शिवजी को प्रणाम

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥

  • चलत्कुण्डलं – जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं
  • भ्रूसुनेत्रं विशालं – सुन्दर भृकुटि और विशाल नेत्र हैं
  • प्रसन्नाननं – जो प्रसन्नमुख
  • नीलकण्ठं – नीलकंठ और
  • दयालम् – दयालु हैं
  • मृगाधीशचर्माम्बरं – सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और
  • मुण्डमालं – मुण्डमाला पहने हैं
  • प्रियं शङ्करं – उन सबके प्यारे और
  • सर्वनाथं – सबके नाथ (कल्याण करने वाले) श्री शंकर जी को
  • भजामि – मैं भजता हूँ

भावार्थ: –
जिनके कानों में, कुण्डल हिल रहे हैं,
सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं,
जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ और दयालु हैं।

सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और
मुण्डमाला पहने हैं,
सबके प्यारे और सबके नाथ,
कल्याण करने वाले,
श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥४॥

जिनके कानोंमें कुण्डल हिल रहे हैं, जिनके नेत्र एवं भृकुटी सुन्दर और विशाल हैं, जिनका मुख प्रसन्न और कण्ठ नील है, जो बड़े ही दयालु हैं, जो बाघकी खालका वस्त्र और मुण्डोंकी माला पहनते हैं, उन सर्वाधीश्वर प्रियतम शिवका मैं भजन करता हूँ॥4॥


5.

अखंड, तेजस्वी, हाथ में त्रिशूलधारी, भवानीपति शिवजी को प्रणाम

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥

  • प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
  • प्रचंड (रुद्ररूप) श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर
  • अखण्डं – अखंड
  • अजं – अजन्मा
  • भानुकोटिप्रकाशं – करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले
  • त्र्यःशूलनिर्मूलनं – तीनों प्रकार के शूलों (दुखों) को निर्मूल करने वाले
  • शूलपाणिं – हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए
  • भजेहं – मैं भजता हूँ
  • भवानीपतिं – भवानी के पति श्री शंकर
  • भावगम्यम् – भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले

भावार्थ: –
प्रचंड (रुद्ररूप) श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर,
अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले,

तीनों प्रकार के शूलों (दुखों) को निर्मूल करने वाले,
हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए,
भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले,
भवानी के पति श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥५॥

जो प्रचण्ड, सर्वश्रेष्ठ, प्रगल्भ, परमेश्वर, पूर्ण, अजन्मा, कोटि सूर्यके समान प्रकाशमान, त्रिभुवनके शूलनाशक और हाथमें त्रिशूल धारण करनेवाले हैं, उन भावगम्य भवानीपतिका मैं भजन करता हूँ॥5॥


6.

कल्याण स्वरुप, दु:ख हरने वाले, भोलेनाथ को नमस्कार

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

  • कलातीत – कलाओं से परे
  • कल्याण – कल्याण स्वरुप
  • कल्पान्तकारी – कल्पका अंत (प्रलय) करने वाले
  • सदा सज्जनानन्ददाता – सज्जनों को सदा आनंद देने वाले
  • पुरारी – त्रिपुर के शत्रु
  • चिदानन्दसंदोह – सच्चिदानन्दघन
  • मोहापहारी – मोहको हराने वाले
  • प्रसीद प्रसीद प्रभो – कामदेव के शत्रु, हे प्रभु, प्रसन्न होइये
  • मन्मथारी – मनको मथ डालने वाले

भावार्थ: –
कलाओं से परे, कल्याण स्वरुप,
कल्पका अंत (प्रलय) करने वाले,
सज्जनों को सदा आनंद देने वाले,
त्रिपुर के शत्रु,

सच्चिदानन्दघन, मोहको हराने वाले,
मनको मथ डालने वाले,
कामदेव के शत्रु,
हे प्रभु प्रसन्न होइये ॥६॥

हे प्रभो! आप कलारहित, कल्याणकारी और कल्पका अन्त करनेवाले हैं। आप सर्वदा सत्पुरुषोंको आनन्द देते हैं, आपने त्रिपुरासुरका नाश किया था, आप मोहनाशक और ज्ञानानन्दघन परमेश्वर हैं, कामदेवके आप शत्रु हैं, आप मुझपर प्रसन्न हों, प्रसन्न हों॥6॥


7.

दु:खों से मुक्ति और सुख, शांति के लिए, शंकरजी के चरणों में प्रणाम

न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

  • न यावद् उमानाथपादारविन्दं – जबतक पार्वती के पति (शिवजी) आपके चरणकमलों को
  • भजन्तीह – मनुष्य नहीं भजते
  • लोके परे वा नराणाम् – तब तक उन्हें इसलोक में या परलोक में
  • न तावत्सुखं शान्ति – न सुख-शान्ति मिलती है और
  • सन्तापनाशं – न उनके तापों का अर्थात दुःखो का नाश होता है
  • प्रसीद प्रभो – प्रभो। प्रसन्न होइये
  • सर्वभूताधिवासं – समस्त जीवों के अन्दर (हृदय में) निवास करनेवाले

भावार्थ: –
जबतक पार्वती के पति (शंकरजी)
आपके चरणकमलों को मनुष्य नहीं भजते,
तबतक उन्हें
न तो इसलोक में ओर
ना ही परलोक में
सुख-शान्ति मिलती है और
न उनके तापों का नाश होता है।

अत: हे समस्त जीवों के अन्दर (हृदय में)
निवास करनेवाले प्रभो, प्रसन्न होइये ॥७॥

मनुष्य जबतक उमाकान्त महादेवजीके चरणारविन्दोंका भजन नहीं करते, उन्हें इहलोक या परलोकमें कभी सुख और शान्तिकी प्राप्ति नहीं होती और न उनका सन्ताप ही दूर होता है। हे समस्त भूतोंके निवासस्थान भगवान् शिव! आप मुझपर प्रसन्न हों॥7॥


8.

हे शंकर, हे शम्भो, मेरी रक्षा कीजिये

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥8॥

  • न जानामि योगं – मैं न तो योग जानता हूँ
  • जपं नैव पूजां – न जप और पूजा ही
  • नतोहं सदा सर्वदा – मैं तो सदा-सर्वदा आपको ही नमस्कार
  • शम्भुतुभ्यम् – हे शम्भो।
  • जराजन्मदुःखौघ – बुढापा (जरा), जन्म-मृत्यु के दुःख समूहों से
  • तातप्यमानं – जलते हुए मुझ दुखी की दुःख में रक्षा कीजिये
  • प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो – हे प्रभु, हे ईश्वर, हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूँ

भावार्थ: –
मैं न तो योग जानता हूँ,
न जप और पूजा ही।
हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा
आपको ही नमस्कार करता हूँ।

हे प्रभु, बुढापा तथा जन्म और मृत्यु के दुःख समूहों से जलते हुए
मुझ दुखी की दुःख में रक्षा कीजिये।
हे ईश्वर, हे शम्भो,
मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥८॥

हे प्रभो! हे शम्भो! हे ईश! मैं योग, जप और पूजा कुछ भी नहीं जानता, हे शम्भो! मैं सदा-सर्वदा आपको नमस्कार करता हूँ। जरा, जन्म और दुःखसमूहसे सन्तप्त होते हुए मुझ दुःखीकी दुःखसे आप रक्षा कीजिये॥8॥



Rudrashtakam Lyrics In English

Nama-misha-mishana
(namaam-isham-ishaana)
Nirvana Roopam
Vibhum Vyapakam
Brahma Veda Swaroopam|

Nijam Nirgunam
Nirvikalpam Niriham
Chidakasha Makasha
(cidaakaasham-aakaasha)
Vasam Bhaje (a)Hum||


Nirakara Monkara
(nirakara-onkara)
Moolam Turiyam
Gira Gnana Gotita
Misham Girisham|
(giraa-jnyaana-go-atiitam-iisham giriisham)

Karalam Mahakala
Kalam Kripaalam
Guna-agaara Samsara
Param Nato Ham||


Tusha Radri-Sankasha
Gauram Gabhiram
Mano-bhuta-Koti
Prabha Shri Sariram|

Sphuran Mauli-Kallolini
Charu-Ganga
Lasad-Bhala-Balendu
Kanthe Bhujanga||

Chalat-kundalam Bhru
Sunetram Visalam
Prasanna-Nanam
Nila-Kantham Dayalam|

Mrga-dhisa Charm-ambaram
Munda-malam
Priyam Sankaram
Sarva-natham Bhajami||


Prachandam Prakrshtam
Pragalbham Paresham
Akhandam Ajam
Bhanukoti-Prakasam|

Trayah-Shula-Nirmulanam
Shool-Panim
Bhaje Ham Bhavani-Patim
Bhava-Gamyam||


Kalatitata-Kalyana
Kalp-anta-Kari
Sada Sajjana-Nanda
Data Purarih|

Chid-ananda-Sandoha
Mohapahari
Prasida Praslda
Prabho Manmatharih||


Na Yavad
Umanatha-Padaravindam
Bhajantiha Loke
Pare-va Naranam|

Na Tavat-Sukham
Shanti-Santapa-Nasham
Praslda Prabho
Sarva Bhuta-Dhivasam||


Na Janami Yogam
Japam Naiva Pujam
Nato-Ham Sada Sarvada
Sambhu Tubhyam|

Jara Janma-Duhkhaugha
Tatapya Manam
Prabho Pahi
Apan-Namamisha Shambho||


Rudrashtakam Lyrics In Hindi

स्तोत्र अर्थ सहित

स्तोत्र सिर्फ हिन्दी में

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्॥2॥


तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥


प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥


न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥8॥


Rudrashtakam In Hindi

स्तोत्र अर्थ सहित

स्तोत्र सिर्फ संस्कृत में

1.

हे मोक्षस्वरुप, सर्व्यवापी, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशाके ईश्वर तथा सबके स्वामी श्री शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

निजस्वरुप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित, गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दीगम्बर अर्थात आकाश को भी आच्छादित करने वाले, आपको मैं भजता हूँ ॥१॥


2.

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत, वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से पर, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे, आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥


3.

जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिरपर सुन्दर गंगा जी नदी विराजमान हैं, जिनके ललाटपर द्वितीय का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित हैं ॥३॥


4.

जिनके कानों में, कुण्डल हिल रहे हैं, सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ और दयालु हैं।

सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और मुण्डमाला पहने हैं, सबके प्यारे और सबके नाथ, कल्याण करने वाले, श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥४॥


5.

प्रचंड (रुद्ररूप) श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों (दुखों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए, भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले, भवानी के पति श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥५॥


6.

कलाओं से परे, कल्याण स्वरुप, कल्पका अंत (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोहको हराने वाले, मनको मथ डालने वाले, कामदेव के शत्रु, हे प्रभु प्रसन्न होइये ॥६॥


7.

जबतक पार्वती के पति (शंकरजी) आपके चरणकमलों को मनुष्य नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इसलोक में ओर ना ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और न उनके तापों का नाश होता है।

अत: हे समस्त जीवों के अन्दर (हृदय में) निवास करनेवाले प्रभो, प्रसन्न होइये ॥७॥


8.

मैं न तो योग जानता हूँ, न जप और पूजा ही।

हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आपको ही नमस्कार करता हूँ।

हे प्रभु, बुढापा तथा जन्म और मृत्यु के दुःख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुःख में रक्षा कीजिये।

हे ईश्वर, हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥८॥

Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan


List

Shiv Panchakshar Stotra – with Meaning – Nagendra Haraya Trilochanaya  


श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र को शिवस्वरूप क्यों कहा जाता है?

पंचाक्षर अर्थात पांच अक्षर। श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र, के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य, ये पांच अक्षर आते है। न, म, शि, वा और य अर्थात् नम: शिवाय

प्रत्येक श्लोक की शुरुआत क्रमशः न, म, शि, वा और य अक्षर से होती है,
यानी की पहला श्लोक से, दुसरा से…।

और श्लोक के अंत में उस अक्षर से विदित भगवान् शिव के स्वरुप को,
यानी की अक्षर द्वारा विदित शिव स्वरूप को, अक्षर द्वारा जाने जाने वाले शिवजी के स्वरुप को प्रणाम किया गया है।

शिव पंचाक्षरी स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में भगवान् शिव के स्वरुप का वर्णन किया गया है, जैसे की नागेंद्रहाराय, दिगंबराय, नीलकंठाय आदि, और श्लोक के अंत में भोले बाबा को नमस्कार किया गया है।

इसलिए, यह पंचाक्षर स्तोत्र शिवस्वरूप है।


इस पोस्ट से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण बात

पंचाक्षर स्तोत्र के इस पोस्ट में शिव पंचाक्षरी – हिंदी में अर्थ सहित और अंग्रेजी में अर्थसहित दिया गया है –

  1. प्रत्येक शब्द का हिंदी में अर्थ और पूरे श्लोक का भावार्थ
  2. अंग्रेजी में Panchakshar StotraNagendraharaya Trilochanaya
  3. प्रत्येक इंग्लिश शब्द का इंग्लिश में अर्थ, बाद में
  4. पाठ के लिए स्तोत्र सिर्फ संस्कृत में, और
  5. अंत में श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र सिर्फ हिंदी में दिया गया है।

Shiv Panchakshar Stotra Benefits

शिव पंचाक्षर स्तोत्र के पाठ का लाभ

इस स्तोत्र के अंतिम श्लोक में पंचाक्षर स्तोत्र के पाठ का लाभ बताया है, जैसे की –

जो शिवके समीप, इस पवित्र पंचाक्षर मंत्र का पाठ करता है, वह शिवलोकको प्राप्त होता है और वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है, भगवान् शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है।


शिव पंचाक्षर स्तोत्र के साथ ध्यान

जो भी मनुष्य इस स्तोत्र के पाठ के साथ ध्यान करता है, उसके मन में धीरे धीरे शिवजी का स्वरुप बनने लगता है।

इसलिए इस स्तोत्र के अंतिम श्लोक में कहा गया है की –
जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है, वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है, तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है।


Shiv Panchakshar Stotra Meaning In Hindi

पहले श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र के प्रत्येक शब्द का अर्थ दिया गया है।

1. नमः शिवाय का पहला अक्षर “न”

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥

  • नागेंद्रहाराय – हे शंकर, आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं
  • त्रिलोचनाय – हे तीन नेत्रों वाले (त्रिलोचन)
  • भस्मांग रागाय – आप भस्म से अलंकृत है
  • महेश्वराय – महेश्वर है
  • नित्याय – नित्य (अनादि एवं अनंत) है और
  • शुद्धाय – शुद्ध हैं
  • दिगंबराय – अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले दिगम्बर
  • तस्मै न काराय – आपके “” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को
  • नमः शिवायः – हे शिव, नमस्कार है

भावार्थ: –
जिनके कंठ मे साँपोंका हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग है (अनुलेपन) है, दिशाँए ही जिनके वस्त्र हैं, उन अविनाशी महेश्वर “” कार स्वरूप शिवको नमस्कार है।


2. नमः शिवाय का दुसरा अक्षर “म”

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय
नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥

  • मंदाकिनी सलिल – गंगा की धारा द्वारा शोभायमान
  • चंदन चर्चिताय – चन्दन से अलंकृत एवं
  • नंदीश्वर प्रमथनाथ – नन्दीश्वर एवं प्रमथ के स्वामी
  • महेश्वराय – महेश्वर
    • प्रमथ अर्थात शिव के गण अथवा पारिषद
  • मंदारपुष्प – आप सदा मन्दार पर्वत से प्राप्त पुष्पों एवं
  • बहुपुष्प – बहुत से अन्य स्रोतों से प्राप्त पुष्पों द्वारा
  • सुपूजिताय – पुजित है
  • तस्मै म काराय – हे “म” अक्षर धारी
  • नमः शिवाय – शिव आपको नमन है

भावार्थ: –
गंगा की धारा द्वारा जो शोभायमान है, जो चन्दन से अलंकृत है, मन्दार पुष्प तथा अन्यान्य पुष्पों से जिनकी सुंदर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति और प्रमथ (प्रमथ अर्थात शिव के गण अथवा पारिषद) के स्वामी, महेश्वर “” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।


3. नमः शिवाय का तीसरा अक्षर “शि”

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय
तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥

  • शिवाय – हे शिव,
  • गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय – माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य समान तेज प्रदान करने वाले,
  • दक्षाध्वरनाशकाय – आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था
  • श्री नीलकंठाय – नीलकण्ठ
  • वृषभद्धजाय – हे धर्म ध्वज धारी
  • तस्मै शि काराय – आपके “शि” अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को
  • नमः शिवायः – हे शिव, नमस्कार है

भावार्थ: –
जो कल्याण स्वरूप हैं, पार्वती जी के मुख कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिये जो सूर्य स्वरूप हैं, जो राजा दक्ष के यज्ञका नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा मे बैलका चिन्ह है, उन शोभाशाली, श्री नीलकण्ठ “शि” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।


4. नमः शिवाय का चौथा अक्षर “वा”

वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य
मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥

  • वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य – वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि
  • मुनींद्र देवार्चित शेखराय – मुनियों द्वारा एवं देवगणो द्वारा पुजित देवाधिदेव
  • चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय – आपके सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि, तीन नेत्र समान हैं
  • तस्मै व काराय – आपके “” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को
  • नमः शिवायः – हे शिव नमस्कार है

भावार्थ: –
वसिष्ठ, अगस्त्य, और गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषि मुनियोंने तथा इन्द्र आदि देवताओंने जिन देवाधिदेव शंकरजी की पूजा की है। चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र है, उन “” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।


5. नमः शिवाय का पांचवां अक्षर “य”

यक्षस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥

  • यक्षस्वरूपाय – हे यज्ञ स्वरूप,
  • जटाधराय – जटाधारी शिव
  • पिनाकहस्ताय – पिनाक को धारण करने वाले
    • पिनाक अर्थात
    • शिव का धनुष
  • सनातनाय – आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन है
  • दिव्याय देवाय दिगंबराय – हे दिव्य अम्बर धारी शिव
  • तस्मै य काराय – आपके “य” अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को
  • नमः शिवायः – हे शिव, नमस्कार है

भावार्थ: –
जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ मे पिनाक (धनुष) है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव “य” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।

  • दिगम्बर अर्थात अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले

Shiv Panchakshar Stotra Benefits In Hindi

पंचाक्षर मंत्र के पाठ का लाभ

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः
पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति
शिवेन सह मोदते॥

  • पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः – जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का
  • पठेत् शिव सन्निधौ – नित्य ध्यान करता है
  • शिवलोकमवाप्नोति – वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है
  • शिवेन सह मोदते – तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है

भावार्थ: –
जो शिवके समीप, इस पवित्र पंचाक्षर मंत्र का पाठ करता है, वह शिवलोकको प्राप्त होता है और वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है।

॥इति श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥




Shiv Panchakshar Stotra Lyrics In English

Nagendraharaya Trilochanaya
Bhasmangaragaya Mahesvaraya

Nityaya Shuddhaya Digambaraya
Tasmai Na Karaya Namah Shivaya


Mandakini Salila Chandana Charchitaya
Nandishwar Pramathanatha Mahesvaraya

Mandara Pushpa Bahupushpa Supujitaya
Tasmai Ma Karaya Namah Shivaya


Shivaya Gauri Vadanabja Brnda
Suryaya Dakshadhvara Nashakaya

Sri Nilakanthaya Vrshadhvajaya
Tasmai Shi Karaya Namah Shivaya


Vashistha Kumbhodbhava Gautamarya
Munindra Devarchita Shekharaya

Chandrarka Vaishvanara Lochanaya
Tasmai Va Karaya Namah Shivaya


Yagna Svarupaya Jatadharaya
Pinaka Hastaya Sanatanaya

Divyaya Devaya Digambaraya
Tasmai Ya Karaya Namah Shivaya


Panchaksharamidam Punyam
Yah Pathechchiva

Sannidhau Shivalokamavapnoti
Sivena Saha Modate


Shiv Panchakshar Stotra Meaning

Nagendra Haraya Trilochanaya Meaning

First Letter “Na” of Namah Shivay

Nagendraharaya Trilochanaya
Bhasmangaragaya Mahesvaraya|
Nityaya Shuddhaya Digambaraya
Tasmai Na Karaya Namah Shivaya||

  • Nagendraharaya – the king of snakes as garland
  • Trilochanaya – lord with three eyes
  • Bhasmangaragaya – body is smeared with sacred ashes
  • Mahesvaraya – the great Lord,
  • Nityaya Shuddhaya – who is ever pure, eternal
  • Digambaraya – four directions and sky as his clothes
  • Tasmai Na Karaya – who is represented by the syllable “na”
  • Namah Shivaya – salutations to that Lord Shiva

Second Letter “Ma” of Namah Shivay

Mandakini Salila Chandana Charchitaya
Nandishwar Pramathanatha Mahesvaraya|
Mandara Pushpa Bahupushpa Supujitaya
Tasmai Ma Karaya Namah Shivaya||

  • Mandakini Salila – worshipped with water from the Mandakini river
  • Chandana Charchitaya – smeared with sandal paste,
  • Nandishwar – lord of Nandi
  • Pramathanatha – Lord of pramath, ghosts and goblins
  • Mahesvaraya – the great Lord
  • Mandara Pushpa – worshipped with Mandara,
  • Bahupushpa Supujitaya – worshipped with many other flowers,
  • Tasmai Ma Karaya – who is represented by the syllable “ma”
  • Namah Shivaya – salutations to that Lord Shankara

Third Letter “Shi” of Namah Shivay

Shivaya Gauri Vadanabja Brnda
Suryaya Dakshadhvara Nashakaya|
Sri Nilakanthaya Vrshadhvajaya
Tasmai Shi Karaya Namah Shivaya||

  • Shivaya – auspicious
  • Gauri Vadanabja Brnda Suryaya – like the newly risen sun causing the lotus-face of Gauri to blossom,
  • Dakshadhvara Nashakaya – destroyer of the sacrifice of Daksha,
  • Shri Nilakanthaya – blue throat
  • Vrshadhvajaya – has a bull as his emblem,
  • Tasmai Shi Karaya – who is represented by the syllable “shi”
  • Namah Shivaya – Salutations to that Great Lord Shiva, Mahadev

Fourth Letter “Va” of Namah Shivay

Vashistha Kumbhodbhava Gautamarya
Munindra Devarchita Shekharaya|
Chandrarka Vaishvanara Lochanaya
Tasmai Va Karaya Namah Shivaya||

  • Vashistha Kumbhodbhava Gautamarya – worshipped by the great and respected sages like Vasishtha, Agastya and Gautama
  • Munindra – worshipped by the sages and also by the gods
  • Devarchita Shekharaya – the crown of the universe,
  • Chandrarka Vaishvanara Lochanaya – has the moon, sun and fire as his three eyes,
  • Tasmai Va Karaya – who is represented by the syllable “va”
  • Namah Shivaya – Salutations to that Lord Shiva Shankara,

Third Letter “Ya” of Namah Shivay

Yagna Svarupaya Jatadharaya
Pinaka Hastaya Sanatanaya|
Divyaya Devaya Digambaraya
Tasmai Ya Karaya Namah Shivaya||

  • Yagna Swarupaya – embodiment of yagna (sacrifice)
  • Jatadharaya – matted locks,
  • Pinaka Hastaya – trident in hand
    – (pinaka – the bow of Lord Shiva)
  • Sanatanaya – eternal
  • Divyaya Devaya – divine, shining one
  • Digambaraya – four directions and sky as clothes
  • Tasmai Ya Karaya – who is represented by the syllable “ya”
  • Namah Shivaya – Salutations to that Mahadev Lord Shiva

Shiv Panchakshar Stotra Benefits

Panchaksharamidam Punyam
Yah Pathechchiva|
Sannidhau Shivalokamavapnoti
Sivena Saha Modate||

  • Panchaksharamidam Punyam, Yah Pathechchiva – who recites this Panchakshara Stotra near Lord Shiva,
  • Sannidhau Shivalokamavapnoti, Sivena Saha Modate – attain the abode of Shiva – Shivlok, and enjoy bliss.

Shiv Panchakshar Stotra in Sanskrit

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥


मंदाकिनी सलिल
चंदन चर्चिताय
नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥


शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय
तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥


वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य
मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥


यक्षस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥


पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः
पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति
शिवेन सह मोदते॥

॥इति श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥


Nagendra Haraya Trilochanaya In Hindi

Shiv Panchakshar Stotra Meaning in Hindi

जिनके कंठ मे साँपोंका हार है,
जिनके तीन नेत्र हैं,
भस्म ही जिनका अंगराग है (अनुलेपन) है,
दिशाँए ही जिनके वस्त्र हैं,
उन अविनाशी महेश्वर “न” कार स्वरूप शिवको नमस्कार है।

गंगा की धारा द्वारा जो शोभायमान है,
जो चन्दन से अलंकृत है,
मन्दार पुष्प तथा अन्यान्य पुष्पों से जिनकी सुंदर पूजा हुई है,
उन नन्दी के अधिपति और
प्रमथ (प्रमथ अर्थात शिव के गण अथवा पारिषद) के स्वामी,
महेश्वर “म” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।

जो कल्याण स्वरूप हैं,
पार्वती जी के मुख कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिये जो सूर्य स्वरूप हैं,
जो राजा दक्ष के यज्ञका नाश करने वाले हैं,
जिनकी ध्वजा मे बैलका चिन्ह है,
उन शोभाशाली, श्री नीलकण्ठ “शि” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।

वसिष्ठ, अगस्त्य, और गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषि मुनियोंने
तथा इन्द्र आदि देवताओंने जिन देवाधिदेव शंकरजी की पूजा की है।
चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र है,
उन “व” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।

जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है,
जो जटाधारी हैं,
जिनके हाथ मे पिनाक (धनुष) है,
जो दिव्य सनातन पुरुष हैं,
उन दिगम्बर देव “य” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।

दिगम्बर अर्थात अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले

जो शिवके समीप, इस पवित्र पंचाक्षर मंत्र का पाठ करता है,
वह शिवलोकको प्राप्त होता है और
वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है।


Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan

List

Dwadash Jyotirling Stotra – with Meaning


Dwadash Jyotirling Stotra with Meaning in Hindi

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में 13 श्लोक है और
इस स्तोत्र में भारत में स्थित
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का
वर्णन किया गया है।

हर एक श्लोक में
एक ज्योतिर्लिंग का वर्णन है और
अंतिम श्लोक में इस स्तोत्र के पाठ का लाभ बताया गया है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के इस पोस्ट में –

पहले स्तोत्र अर्थसहित दिया गया है, बाद में
शिवपुराण से द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगोंका वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा दी गयी है और अंत में
सम्पूर्ण ज्योतिर्लिंग स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है।


द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – अर्थसहित

श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥1॥

जो अपनी भक्ति प्रदान करनेके लिये
अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में
दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं,
चन्द्रमा जिनके मस्तकका आभूषण है,
उन ज्योतिर्लिंगस्वरूप भगवान् श्रीसोमनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥1॥


श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥2॥

जो ऊँचाईके आदर्शभूत पर्वतोंसे भी बढ़कर ऊँचे श्रीशैलके शिखरपर,
जहाँ देवताओंका अत्यन्त समागम होता रहता है,
प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा
जो संसार-सागरसे पार करानेके लिये पुलके समान हैं,
उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुनको मैं नमस्कार करता हूँ॥2॥


श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

अवन्तिकायां विहितावतारं
मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकालमहासुरेशम्॥3॥

संतजनोंको मोक्ष देनेके लिये
जिन्होंने अवन्तिपुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है,
उन महाकाल नामसे विख्यात महादेवजीको
मैं अकालमृत्युसे बचनेके लिये नमस्कार करता हूँ॥3॥


ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे
समागमे सज्जनतारणाय।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्त-
मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे॥4॥

जो सत्पुरुषोंको संसार-सागरसे पार उतारनेके लिये
कावेरी और नर्मदाके पवित्र संगमके निकट
मान्धाताके पुरमें सदा निवास करते हैं,
उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान् ॐकारेश्वरका मैं स्तवन करता हूँ॥4॥


श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने
सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि॥5॥

जो पूर्वोत्तर दिशामें चिताभूमि (वैद्यनाथ-धाम) के भीतर
सदा ही गिरिजाके साथ वास करते हैं,
देवता और असुर जिनके चरण कमलोंकी आराधना करते हैं,
उन श्रीवैद्यनाथको मैं प्रणाम करता हूँ॥5॥


श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये॥6॥

जो दक्षिणके अत्यन्त रमणीय सदंग नगरमें
विविध भोगोंसे सम्पन्न होकर
सुन्दर आभूषणोंसे भूषित हो रहे हैं,
जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्तिको देनेवाले हैं,
उन प्रभु श्रीनागनाथकी मैं शरणमें जाता हूँ॥6॥


श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः
केदारमीशं शिवमेकमीडे॥7॥

जो महागिरि हिमालयके पास केदारशृंगके तटपर
सदा निवास करते हुए मुनीश्वरोंद्वारा पूजित होते हैं
तथा देवता, असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं,
उन एक कल्याणकारक भगवान् केदारनाथका मैं स्तवन करता हूँ॥7॥


श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरितीरपवित्रदेशे।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे॥8॥

जो गोदावरीतटके पवित्र देशमें
सह्यपर्वतके विमल शिखरपर वास करते हैं,
जिनके दर्शनसे तुरंत ही पातक नष्ट हो जाता है,
उन श्रीत्र्यम्बकेश्वरका मैं स्तवन करता हूँ॥8॥


श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि॥9॥

जो भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके द्वारा ताम्रपर्णी और सागरके संगमपर
अनेक बाणोंद्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गये हैं,
उन श्रीरामेश्वरको मैं नियमसे प्रणाम करता हूँ॥9॥


श्री भीमांशंकर ज्योतिर्लिंग

यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं
शङ्करं भक्तहितं नमामि॥10॥

जो डाकिनी और शाकिनीवृन्दमें प्रेतोंद्वारा सदैव सेवित होते हैं,
उन भक्तहितकारी भगवान् भीमशंकरको मैं प्रणाम करता हूँ॥10॥


श्री विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

सानन्दमानन्दवने वसन्त-
मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥11॥

जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनन्दपूर्वक
आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं,
जो पापसमूहके नाश करनेवाले हैं,
उन अनाथोंके नाथ काशीपति श्रीविश्वनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥11॥


श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरस्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये॥12॥

जो इलापुरके सुरम्य मन्दिरमें विराजमान होकर
समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं,
जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है,
उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान् शिवकी शरणमें मैं जाता हूँ॥12॥


द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र के पाठ का महत्व

ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां
शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या
फलं तदालोक्य निजं भजेच्च॥13॥

यदि मनुष्य क्रमशः कहे गये
इन बारहों ज्योतिर्मय शिवलिंगोंके स्तोत्रका
भक्तिपूर्वक पाठ करे,
तो इनके दर्शनसे होनेवाले फलको प्राप्त कर सकता है॥13॥



द्वादश ज्योतिर्लिंगों का वर्णन एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा – शिवपुराण से

Dwadash Jyotirling Stotra with Meaning
Dwadash Jyotirling Stotra

शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता खंड के अध्याय 1 में
द्वादश ज्योतिर्लिंगों तथा उनके उपलिंगोंका वर्णन
एवं उनके दर्शन-पूजनकी महिमा दी गयी है।

यो धत्ते निजमाययैव भुवनाकारं विकारोज्झितो
यस्याहुः करुणाकटाक्षविभवौ स्वर्गापवर्गाभिधौ।
प्रत्यग्बोधसुखाद्वयं हृदि सदा पश्यन्ति यं
योगिन- स्तस्मै शैलसुताञ्चितार्द्धवपुषे शश्वन्नमस्तेजसे॥१॥

अर्थ
जो निर्विकार होते हुए भी
अपनी मायासे ही विराट् विश्वका आकार धारण कर लेते हैं,
स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष) जिनके कृपा-कटाक्षके ही वैभव बताये जाते हैं
तथा योगीजन जिन्हें सदा अपने हृदयके भीतर
अद्वितीय आत्मज्ञानानन्द-स्वरूपमें ही देखते हैं,
उन तेजोमय भगवान् शंकरको,
जिनका आधा शरीर शैलराजकुमारी पार्वतीसे सुशोभित है,
निरन्तर मेरा नमस्कार है॥१॥

कृपाललितवीक्षणं स्मितमनोज्ञवक्त्राम्बुजं
शशाङ्ककलयोज्ज्वलं शमितघोरतापत्रयम् ।
करोतु किमपि स्फुरत्परमसौख्यसच्चिद्वपु-
र्धराधरसुताभुजोद्वलयितं महो मङ्गलम् ॥२॥

अर्थ
जिसकी कृपापूर्ण चितवन बड़ी ही सुन्दर है,
जिसका मुखारविन्द मन्द मुसकानकी छटासे अत्यन्त मनोहर दिखायी देता है,
जो चन्द्रमाकी कलासे परम उज्ज्वल है,
जो आध्यात्मिक आदि तीनों तापोंको शान्त कर देनेमें समर्थ है,
जिसका स्वरूप सच्चिन्मय एवं परमानन्दरूपसे प्रकाशित होता है
तथा जो गिरिराजनन्दिनी पार्वतीके भुजपाशसे आवेष्टित है,
वह शिव नामक कोई अनिर्वचनीय तेजःपुंज सबका मंगल करे ॥ २ ॥

ऋषि बोले –

सूतजी! आपने सम्पूर्ण लोकोंके हितकी कामनासे नाना प्रकारके आख्यानोंसे युक्त जो शिवावतारका माहात्म्य बताया है, वह बहुत ही उत्तम है।

तात! आप पुनः शिवके परम उत्तम माहात्म्यका तथा शिवलिंगकी महिमाका प्रसन्नतापूर्वक वर्णन कीजिये।

आप शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ हैं, अतः धन्य हैं।

प्रभो! आपके मुखारविन्दसे निकले हुए भगवान् शिवके सुरम्य यशरूपी अमृतका अपने कर्णपुटोंद्वारा पान करके हम तृप्त नहीं हो रहे हैं, अतः फिर उसीका वर्णन कीजिये।

व्यासशिष्य! भूमण्डलमें, तीर्थ-तीर्थमें जो-जो शुभ लिंग हैं अथवा अन्य स्थलोंमें भी जो-जो प्रसिद्ध शिवलिंग विराजमान हैं, परमेश्वर शिवके उन सभी दिव्य लिंगोंका समस्त लोकोंके हितकी इच्छासे आप वर्णन कीजिये।

सूतजीने कहा –

महर्षियो! सम्पूर्ण तीर्थ लिंगमय हैं।

सब कुछ लिंगमें ही प्रतिष्ठित है।

उन शिवलिंगोंकी कोई गणना नहीं है, तथापि मैं उनका किंचित् वर्णन करता हूँ।

जो कोई भी दृश्य देखा जाता है तथा जिसका वर्णन एवं स्मरण किया जाता है, वह सब भगवान् शिवका ही रूप है; कोई भी वस्तु शिवके स्वरूपसे भिन्न नहीं है।

साधुशिरोमणियो! भगवान् शम्भुने सब लोगोंपर अनुग्रह करनेके लिये ही देवता, असुर और मनुष्योंसहित तीनों लोकोंको लिंगरूपसे व्याप्त कर रखा है।

समस्त लोकोंपर कृपा करनेके उद्देश्यसे ही भगवान् महेश्वर तीर्थ-तीर्थमें और अन्य स्थलोंमें भी नाना प्रकारके लिंग धारण करते हैं।

जहाँ-जहाँ जब-जब भक्तोंने भक्तिपूर्वक भगवान् शम्भुका स्मरण किया, तहाँ-तहाँ तब-तब अवतार ले कार्य करके वे स्थित हो गये; लोकोंका उपकार करनेके लिये उन्होंने स्वयं अपने स्वरूपभूत लिंगकी कल्पना की।

उस लिंगकी पूजा करके शिवभक्त पुरुष अवश्य सिद्धि प्राप्त कर लेता है।

ब्राह्मणो! भूमण्डलमें जो लिंग हैं, उनकी गणना नहीं हो सकती; तथापि मैं प्रधान-प्रधान शिवलिंगोंका परिचय देता हूँ।

मुनिश्रेष्ठ शौनक! इस भूतलपर जो मुख्य-मुख्य ज्योतिर्लिंग हैं, उनका आज मैं वर्णन करता हूँ।

उनका नाम सुननेमात्रसे पाप दूर हो जाता है।

सौराष्ट्रमें सोमनाथ, श्रीशैलपर मल्लिकार्जुन, उज्जैनीमें महाकाल, ओंकारतीर्थमें परमेश्वर, हिमालयके शिखरपर केदार, डाकिनीमें भीमशंकर, वाराणसीमें विश्वनाथ, गोदावरीके तटपर त्र्यम्बक, चिताभूमिमें वैद्यनाथ, दारुकावनमें नागेश, सेतुबन्धमें रामेश्वर तथा शिवालयमें घुश्मेश्वरका स्मरण करे।

जो प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर इन बारह नामोंका पाठ करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो सम्पूर्ण सिद्धियोंका फल प्राप्त कर लेता है।

मुनीश्वरो! जिस-जिस मनोरथको पानेकी इच्छा रखकर श्रेष्ठ मनुष्य इन बारह नामोंका पाठ करेंगे, वे इस लोक और परलोकमें उस मनोरथको अवश्य प्राप्त करेंगे।

जो शुद्ध अन्तःकरणवाले पुरुष निष्कामभावसे इन नामोंका पाठ करेंगे, उन्हें कभी माताके गर्भमें निवास नहीं करना पड़ेगा।

इन सबके पूजनमात्रसे ही इहलोकमें समस्त वर्णोंके लोगोंके दुःखोंका नाश हो जाता है और परलोकमें उन्हें अवश्य मोक्ष प्राप्त होता है।

इन बारह ज्योतिर्लिंगोंका नैवेद्य यत्नपूर्वक ग्रहण करना (खाना) चाहिये।

ऐसा करनेवाले पुरुषके सारे पाप उसी क्षण जलकर भस्म हो जाते हैं।

यह मैंने ज्योतिर्लिंगोंके दर्शन और पूजनका फल बताया।

अब ज्योतिर्लिंगोंके उपलिंग बताये जाते हैं।

मुनीश्वरो! ध्यान देकर सुनो।

सोमनाथका जो उपलिंग है, उसका नाम अन्तकेश्वर है।

वह उपलिंग मही नदी और समुद्रके संगमपर स्थित है।

मल्लिकार्जुनसे प्रकट उपलिंग रुद्रेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है।

वह भृगुकक्षमें स्थित है और उपासकोंको सुख देनेवाला है।

महाकालसम्बन्धी उपलिंग दुग्धेश्वर या दूधनाथके नामसे प्रसिद्ध है।

वह नर्मदाके तटपर है तथा समस्त पापोंका निवारण करनेवाला कहा गया है।

ओंकारेश्वर-सम्बन्धी उपलिंग कर्दमेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है।

वह बिन्दु सरोवरके तटपर है और उपासकको सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करता है।

केदारेश्वरसम्बन्धी उपलिंग भूतेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है और यमुनातटपर स्थित है।

जो लोग उसका दर्शन और पूजन करते हैं, उनके बड़े-से-बड़े पापोंका वह निवारण करनेवाला बताया गया है।

भीमशंकरसम्बन्धी उपलिंग भीमेश्वरके नामसे प्रसिद्ध है।

वह भी सह्य पर्वतपर ही स्थित है और महान् बलकी वृद्धि करनेवाला है।

नागेश्वरसम्बन्धी उपलिंगका नाम भी भूतेश्वर ही है, वह मल्लिका सरस्वतीके तटपर स्थित है और दर्शन करनेमात्रसे सब पापोंको हर लेता है।

रामेश्वरसे प्रकट हुए उपलिंगको गुप्तेश्वर और घुश्मेश्वरसे प्रकट हुए उपलिंगको व्याघ्रेश्वर कहा गया है।

ब्राह्मणो! इस प्रकार यहाँ मैंने ज्योतिर्लिंगोंके उपलिंगोंका परिचय दिया।

ये दर्शनमात्रसे पापहारी तथा सम्पूर्ण अभीष्टके दाता होते हैं।

मुनिवरो! ये मुख्यताको प्राप्त हुए प्रधान-प्रधान शिवलिंग बताये गये।

अब अन्य प्रमुख शिवलिंगोंका वर्णन सुनो।


द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र

सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥1॥

श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥2॥

अवन्तिकायां विहितावतारं
मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकालमहासुरेशम्॥3॥

कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे
समागमे सज्जनतारणाय।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्त-
मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे॥4॥

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने
सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।
सुरासुराराधितपादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि॥5॥

याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये॥6॥

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः
केदारमीशं शिवमेकमीडे॥7॥

सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरितीरपवित्रदेशे।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे॥8॥

सुताम्रपर्णीजलराशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि॥9॥

यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं
शङ्करं भक्तहितं नमामि॥10॥

सानन्दमानन्दवने वसन्त-
मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।
वाराणसीनाथमनाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥11॥

इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
वन्दे महोदारतरस्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये॥12॥

ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां
शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या
फलं तदालोक्य निजं भजेच्च॥13॥


Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan


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Jyotirling Stotra – with Meaning


ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – अर्थ सहित

यह ज्योतिर्लिंग स्तोत्र, छोटा, संक्षिप्त 4 श्लोकों का स्तोत्र है,
जिसमें भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम आते है, और
उन नामों का स्मरण करने से क्या लाभ मिलता है,
यह दिया गया है।

सम्पूर्ण ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र है,
जिसमे 13 श्लोक आते है और
प्रत्येक ज्योतिर्लिंग के लिए
चार लाइन का एक एक श्लोक दिया गया है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – अर्थसहित पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें –

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – अर्थ सहित


Jyotirling Stotra with Meaning in Hindi

Shiv Stotra List

1.

सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकाल, अमलेश्वर

सौराष्ट्रे सोमनाथं च
श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं
ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥

सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में श्री सोमनाथ,

श्रीशैल पर श्री मल्लिकार्जुन,

उज्जयिनी में श्री महाकाल,

ओंकारेश्वर में अमलेश्वर (अमरेश्वर)


2.

भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वेशं

परल्यां वैद्यनाथं च
डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं
नागेशं दारुकावने॥

परली में वैद्यनाथ,

डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर,

सेतुबंध पर श्री रामेश्वर,

दारुकावन में श्रीनागेश्वर


3.

विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर

वाराणस्यां तु विश्वेशं
त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं
घुश्मेशं च शिवालये॥

वाराणसी (काशी) में श्री विश्वनाथ,

गौतमी (गोदावरी) के तट पर श्री त्र्यम्बकेश्वर,

हिमालय पर श्रीकेदारनाथ और

शिवालय में श्री घृष्णेश्वर को स्मरण करें।


ज्योतिर्लिंग स्तोत्र और बारह ज्योतिर्लिंग नाम के पाठ का महत्व

4.

एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि
सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं
स्मरणेन विनश्यति॥

जो मनुष्य प्रतिदिन, प्रातःकाल और संध्या समय,
इन बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है,

उसके सात जन्मों के पाप
इन लिंगों के स्मरण-मात्र से मिट जाते है।


एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।
कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥

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द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – अर्थ सहित



Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan


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Shiv Tandav Stotram Lyrics with Meaning


Shiv Tandav Stotra Lyrics with Meaning In Hindi

शिव ताण्डव स्तोत्र – अर्थ सहित

Shiv Stotra List

श्री शिव ताण्डव स्तोत्र में 15 श्लोक आते है।

शिव ताण्डव स्तोत्र के इस पोस्ट में –
पहले स्तोत्र भावार्थ और शब्दों के अर्थ के साथ दिया गया है।
बाद में संस्कृत शब्दों को पढ़ने में सरल इस फॉर्मेट में, और
अंत में सम्पूर्ण ताण्डव स्तोत्रम् संस्कृत में दिया गया है।


Shiv Tandav Stotra in Hindi

1.

जटाटवीगलज्जल-
प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्यलम्बितां
भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।

डमड्डमड्डमड्डम-
निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं
तनोतु नः शिवः शिवम्॥

  • जटा-टवी-गलज्-जल – जिन्होंने जटारूपी अटवी (अर्थात वन) से निकलती हुई गंगाजी के
  • प्रवाह-पावि-तस्थले – गिरते हुए प्रवाहों से पवित्र किये गये
  • गलेऽव-लम्ब्य लम्बितां – गले में विशाल और लम्बे लम्बे
  • भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम् – सर्पों की लटकती हुई माला को धारणकर,
  • डमड्-डमड्-डमड् – डम-डम-डम
  • डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं – डमरू के इन डम-डम शब्दों से मण्डित
  • चकार चण्ड-ताण्डवं – प्रचण्ड ताण्डव (नृत्य) किया है,
  • तनोतु नः शिवः शिवम् – वे शिवजी हमारे कल्याण का विस्तार करें।

भावार्थ 1 : –
जिन्होंने जटारूपी अटवी (वन)-से निकलती हुई
गंगाजीके गिरते हुए प्रवाहोंसे
पवित्र किये गये गले में
सर्पोकी लटकती हुई विशाल मालाको धारणकर,
डमरूके डम-डम शब्दोंसे मण्डित
प्रचण्ड ताण्डव (नृत्य) किया,
वे शिवजी हमारे कल्याणका विस्तार करें, हम सबको संपन्नता प्रदान करें

भावार्थ 2 : –
जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित हो गंगा जी की धाराएं,
उनके कंठ को प्रक्षालित करती हैं, जिनके गले में, बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं,

तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर, प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।

  • प्रक्षालित अर्थात शुद्ध किया हुआ, साफ किया हुआ, धोया हुआ, धुला हुआ

2.

जटाकटाहसम्भ्रम-
भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरी
विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धग-
ज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
(धगद्धगद्धगज्ज्वललललाटपट्टपावके)
किशोरचन्द्रशेखरे
रतिः प्रतिक्षणं मम॥

  • जटा-कटाह-सम्भ्रम- जिनका मस्तक जटारूपी कड़ाह में, जटाओं की गहराई में
  • भ्रमन्-निलिम्प निर्झरी- वेग से घूमती हुई गंगाजी की
  • विलोल-वीचि-वल्लरी – चंचल तरंग-लताओं से
  • विराज-मान मूर्धनि। – सुशोभित हो रहा है,
  • धगद्-धगद्-धगज्– धक्-धक्-धक्
  • ज्वलल्-ललाट-पट्ट पावके- ललाटाग्नि धक्-धक् जल रही है,
  • किशोर-चन्द्र-शेखरे – शीश पर बाल चन्द्रमा विराजमान हैं,
  • रतिः प्रति-क्षणं मम – उन (भगवान् शिव) में मेरा निरन्तर अनुराग हो।

भावार्थ 1 : –
जिनका मस्तक जटारूपी कड़ाह में
वेग से घूमती हुई गंगाजी की
चंचल तरंग-लताओं से सुशोभित हो रहा है,
ललाटाग्नि धक्-धक् जल रही है,
शीश पर बाल चन्द्रमा विराजमान हैं,
उन (भगवान् शिव) में मेरा निरन्तर अनुराग हो।

भावार्थ 2 : –
जिन शिव जी के जटाओं में अतिवेग से विलास पुर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे उनके शिश पर लहरा रहीं हैं,

जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढता रहे। शिवजी में मेरी भक्ति प्रतिक्षण बढ़ती रहे।


3.

धराधरेन्द्रनंदिनी-
विलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्तति
प्रमोदमानमानसे।

कृपाकटाक्षधोरणी
निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे
(क्वचिद्दिगम्बरे)
मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥

  • धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी – गिरिराज किशोरी (पार्वती) के
  • विलास-बन्धु बन्धुर- विलासकाल उपयोगी शिरोभूषण से
  • स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति – समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख
  • प्रमोद-मान मानसे – जिनका मन आनन्दित हो रहा है,
  • कृपा-कटाक्ष-धोरणी- – जिनकी निरन्तर कृपादृष्टि से
  • निरुद्ध-दुर्धरा-पदि – कठिन आपत्ति का भी निवारण हो जाता है,
  • क्वचिद्-दिगम्बरे – ऐसे दिगम्बर तत्त्व में
  • मनो विनोद-मेतु वस्तुनि – मेरा मन विनोद करे।

भावार्थ 1 : –
गिरिराज किशोरी (पार्वती) के विलासकाल उपयोगी शिरोभूषणसे
समस्त दिशाओंको प्रकाशित होते देख
जिनका मन आनन्दित हो रहा है,
जिनकी निरन्तर कृपादृष्टिसे
कठिन आपत्तिका भी निवारण हो जाता है,
ऐसे दिगम्बर तत्त्वमें मेरा मन विनोद करे।

भावार्थ 2 : –
जो पर्वतराजसुता (पार्वतीजी) के विलासमय रमणिय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं,

तथा जिनके कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर शिवजी की आराधना से, मेरा चित्त सर्वदा आन्दित रहे।

  • दिगंबर अर्थात आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले

4.

जटाभुजंगपिंगल
स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुंकुमद्रव
प्रलिप्तदिग्वधूमुखे।

मदान्धसिन्धुरस्फुरत्
त्वगुत्तरीयमे दुरे
(मदान्ध सिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे)
मनोविनोदमद्भुतं
बिभर्तु भूतभर्तरि॥

  • जटा-भुजंग-पिंगल- – जिनके जटाजूटवर्ती भुजंगों के
  • स्फुरत्-फणा मणि-प्रभा- फणों की मणियों का फैलता हुआ प्रकाश
  • कदम्ब-कुंकुम-द्रव- प्रभा-समुहरूप कुंकुमराग केसर के कांति से
  • प्रलिप्त-दिग्वधू-मुखे- दिशाओं को प्रकाशित करता हैं
  • मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्- त्वगुत्त-रीय-मेदुरे- जो गजचर्म से विभुषित हैं,
  • मनो विनोद-मद्भुतं – मैं उन शिवजी की भक्ति में आन्दित रहूँ जो
  • बिभर्तु भूत-भर्तरि – सभी प्राणियों की के आधार एवं रक्षक हैं।

भावार्थ 1 : –
जिनके जटाजूटवर्ती भुजंगों के
फणों की मणियों का फैलता हुआ पिंगल
प्रभापुञ्ज दिशारूपिणी अंगनाओं के
मुख पर कुंकुमराग का अनुलेप कर रहा है,

मतवाले हाथी के हिलते हुए चमड़े का उत्तरीय वस्त्र (चादर) धारण करने से स्निग्धवर्ण हुए भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत विनोद करे।

भावार्थ 2 : –
जिनके जटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों के प्रकाश, पीले वर्ण प्रभा-समुहरूप केसर के कांति से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभुषित हैं,

मैं उन शिवजी की भक्ति में आन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों की के आधार एवं रक्षक हैं


5.

सहस्रलोचनप्रभृत्य
शेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी
विधूसरांघ्रिपीठभूः।

भुजङ्गराजमालया
निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां
चकोरबन्धुशेखरः॥

  • सहस्र-लोचन-प्रभृत्य– जिनकी चरणपादुकाएँ इन्द्र आदि समस्त देवताओं के
  • शेष-लेख-शेखर- प्रणाम करते समय, मस्तकवर्ती (सिर के ऊपरी)
  • प्रसून-धूलि-धोरणी– कुसुमों की धूलि से
  • विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः- रंजित हो रही हैं
  • भुजङ्ग-राज-मालया- नागराज (शेष) के हार से
  • निबद्ध-जाट-जूटक:- बँधी हुई जटावाले
  • श्रियै चिराय जायतां – मेरे लिये चिरस्थायिनी सम्पत्ति के साधक हों, हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें
  • चकोर-बन्धु-शेखरः – भगवान् चन्द्रशेखर

भावार्थ 1 : –
जिनकी चरणपादुकाएँ इन्द्र आदि समस्त देवताओं के (प्रणाम करते समय)
मस्तकवर्ती (सिर के ऊपरी) कुसुमों की धूलि से
रंजित हो रही हैं।

नागराज (शेष) के हार से
बँधी हुई जटावाले भगवान् चन्द्रशेखर
मेरे लिये चिरस्थायिनी सम्पत्ति के साधक हों।

भावार्थ 2 : –
जिन शिवजी के चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों के धूल से रंजित हैं (जिन्हे देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पन करते हैं),

जिनकी जटा पर लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ॐ नमः शिवाय
शिवजी हमारा कल्याण करें।


Shiv Tandav Stotram Meaning In Hindi

6.

ललाटचत्वरज्वलद्-
धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं
नमन्निलिम्पनायकम्।

सुधामयूखलेखया
विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदे
शिरोजटालमस्तु नः॥

  • ललाट-चत्वर-ज्वलद्– जिसने ललाट-वेदी पर प्रज्वलित हुई
  • धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा- अग्नि के स्फुलिंगों (ज्वाला) के तेज से
  • निपीत-पञ्च-सायकं- इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को भस्म कर दिया
  • नमन्-निलिम्प-नायकम्- जिसे इन्द्र नमस्कार किया करते है,
  • सुधा-मयूख-लेखया- चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित
  • विराज-मान-शेखरं- चन्द्रमा की कला से सुशोभित मुकुटवाला
  • महा-कपालि सम्पदे- वह उन्नत विशाल ललाटवाला
  • शिरो जटाल-मस्तु नः – जटिल मस्तक हमारी सम्पत्तिका साधक हो, मुझे सिद्दी प्रदान करें

भावार्थ 1 : –
जिसने ललाट-वेदी पर प्रज्वलित हुई
अग्नि के स्फुलिंगों (ज्वाला) के तेज से
कामदेव को नष्ट कर डाला था,
जिसे इन्द्र नमस्कार किया करते हैं,

चन्द्रमा की कला से सुशोभित मुकुटवाला
वह उन्नत विशाल ललाटवाला जटिल मस्तक
हमारी सम्पत्तिका साधक हो।

भावार्थ 2 : –
जिन शिवजी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभि देवों द्वारा पुज्य हैं,

तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्दी प्रदान करें।


7.

करालभालपट्टिका
धगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृत
प्रचण्डपञ्चसायके।

धराधरेन्द्रनन्दिनी
कुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि
त्रिलोचने रतिर्मम॥

  • कराल-भाल-पट्टिका – जिन्होंने अपने विकराल भालपट्ट पर
  • धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद् – धक-धक् जलती हई
  • धनञ्जया-हुती-कृत – अग्नि में आहुति दे दी थी,
  • प्रचण्ड-पञ्चसायके – प्रचण्ड कामदेव की आहुति
  • धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी – प्रकृति पर
  • कुचाग्र-चित्र-पत्रक – चित्रकारी करने में
  • प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि – एकमात्र शिल्पकार
  • त्रिलोचने रतिर्मम – उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो

भावार्थ 1 : –
जिन्होंने अपने विकराल भालपट्ट पर
धक-धक् जलती हई अग्नि में प्रचण्ड कामदेव की आहुति दे दी थी,

प्रकृति पर चित्रकारी करने में अति चतुर, एकमात्र शिल्पकार भगवान् शिव में मेरी धारणा लगी रहे।

भावार्थ 2 : –
जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया

तथा जो शिव प्रकृति पर चित्रकारी करने में अति चतुर है उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।


8.

नवीनमेघमण्डली
निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथि नीतमः
प्रबन्धबद्धकन्धरः।

निलिम्पनिर्झरी
धरस्तनोतुकृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः
श्रियं जगद्धुरंधरः॥

  • नवीन-मेघ-मण्डली– जिनके कण्ठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई
  • निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्– अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए
  • कुहू-निशीथि-नी-तमः– दुरूह अन्धकार के समान श्यामता अंकित है;
  • प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः – जो गजचर्म लपेटे हुए है,
  • निलिम्प-निर्झरी-धरस्– संसारभार को धारण करनेवाले
  • तनोतु कृत्ति-सिन्धुरः- संसारभार को धारण करनेवाले
  • कला-निधान-बन्धुरः – चन्द्रमा (के सम्पर्क) से मनोहर कान्तिवाले
  • श्रियं जगद्-धुरन्धरः – भगवान् शंकर मेरी सम्पत्ति का विस्तार करें।

भावार्थ 1 : –
जिनके कण्ठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई
अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए
दुरूह अन्धकार के समान श्यामता अंकित है;
जो गजचर्म लपेटे हुए है,

संसारभार को धारण करनेवाले
चन्द्रमा (के सम्पर्क) से मनोहर कान्तिवाले
भगवान् शंकर मेरी सम्पत्ति का विस्तार करें।

भावार्थ 2 : –
जिनका कण्ठ नवीन मेंघों की घटाओं से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं

तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिवजी हमे सभी प्रकार की सम्पनता प्रदान करें।


9.

प्रफुल्लनीलपङ्कज
प्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दली
रुचिप्रबद्धकन्धरम्।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं
भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं
तमन्तकच्छिदं भजे॥

भावार्थ 1 : –
जिनका कण्ठदेश खिले हुए नील कमलसमूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करनेवाली हरिणीकी-सी छविवाले चिह्न से सुशोभित है,

तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव (संसार), दक्ष-यज्ञ, गजासुर, अन्धकासुर और यमराज का भी उच्छेदन (संहार) करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।

भावार्थ 2 : –
जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभुषित है,

जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु:खो को काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं, तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिवजी को भजता हूँ।


10.

अखर्वसर्वमङ्गला
कलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी
विजृम्भणामधुव्रतम्।

स्मरान्तकं पुरान्तकं
भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं
तमन्तकान्तकं भजे॥

भावार्थ 1 : –
जो अभिमानरहित पार्वती की कलारूप कदम्बमंजरी के मकरन्दस्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करनेवाले मधुप है

तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्ष-यज्ञ, गजासुर, अन्धकासुर और यमराज का भी अन्त करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।

भावार्थ 2 : –
जो कल्यानमय, अविनाशि, समस्त कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं,

जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के सहांरक, दक्षयज्ञविध्वसंक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिवजी को भजता हूँ।

श्री नीलकंठ महादेव को नमस्कार


Shiv Tandav Meaning In Hindi

11.

जयत्वदभ्रविभ्रम
भ्रमद्भुजङ्गमश्वस
(जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस)
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्
करालभालहव्यवाट्
(द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्)।

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्
मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित
प्रचण्डताण्डवः शिवः॥

भावार्थ 1 : –
जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए भुजंग के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है,

धिमि-धिमि बजते हुए मृदंग के गम्भीर मंगल घोषके क्रमानुसार जिनका प्रचण्ड ताण्डव हो रहा है, उन भगवान् शंकर की जय हो!

भावार्थ 2 : –
अतयंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढी हूई प्रचंडअग्नि के मध्य

मृदंग की मंगलकारी धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।


12.

स्पृषद्विचित्रतल्पयो:
भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः
सुहृद्विपक्षपक्षयोः।

तृणारविन्दचक्षुषोः
प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रव्रितिक: कदा
सदाशिवं भजाम्यहम॥

भावार्थ 1 : –
पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, सांप और मोतियों की माला में, बहुमूल्य रत्न तथा मिट्टी के ढेले में, मित्र या शत्रुपक्ष में,

तृण या कमललोचना तरुणी में, प्रजा और पृथ्वी के महाराजमें समानभाव रखता हुआ, मैं कब शिवजी को भजूँगा?

भावार्थ 2 : –
कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टूकडों, शत्रू एवं मित्रों,

राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर समान दृष्टि रखने वाले, शिव को मैं भजता हूँ।


13.

कदानिलिम्पनिर्झरी
निकुञ्जकोटरेवसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा
शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।

विलोललोललोचनो
ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्
कदा सुखी भवाम्यहम्॥

भावार्थ 1 : –
सुन्दर ललाटवाले भगवान चन्द्रशेखर में दत्तचित्त हो,
अपने कुविचारों को त्यागकर,
गंगाजी तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआ,
सिर पर हाथ जोड़

डबडबायी हुई विह्वल आँखों से
शिव मन्त्र का उच्चारण करता हुआ
मैं कब सुखी होऊँगा।

भावार्थ 2 : –
कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर

चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिवजी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा।


14.

इमं हि नित्यमेवमुक्त
मुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो
विशुद्धिमेति संततम्।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु
याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां
सुशङ्करस्य चिंतनम्॥

भावार्थ 1 : –
जो मनुष्य इस प्रकार से उक्त
उत्तमोत्तम स्तोत्र का नित्य
पाठ, स्मरण और वर्णन करता है,
वह सदा शुद्ध रहता है और

शीघ्र ही सुरगुरु श्रीशंकरजी की अच्छी भक्ति प्राप्त कर लेता है,
वह विरुद्धगतिको प्राप्त नहीं होता;
क्योंकि शिवजीका भक्तिपूर्वक चिन्तन
प्राणिवर्गके मोह का नाश करनेवाला है।

भावार्थ 2 : –
इस उत्त्मोत्त्म शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो जाता है, और

परमगुरु शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।


15.

पूजावसानसमये
दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं
पठति प्रदोषे।

तस्य स्थिरां
रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं
प्रददाति शम्भुः॥

भावार्थ 1 : –
सायंकाल में पूजा समाप्त होने पर
रावणके गाये हुए इस
शम्भु पूजन सम्बन्धी स्तोत्र का
जो पाठ करता है,

भगवान् शंकर उस मनुष्य को
रथ, हाथी, घोड़ों से युक्त
सदा स्थिर रहनेवाली
अनुकूल सम्पत्ति प्रदान करते हैं।

भावार्थ 2 : –
प्रात: शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं

तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से, सर्वदा युक्त रहता है

  • इति श्रीरावण-कृतम् शिव-ताण्डव-स्तोत्रम् सम्पूर्णम्



Shiva Tandav Stotram Lyrics – with Easier to Read Format

शिव ताण्डव स्तोत्र – पढ़ने के लिए सरल, संस्कृत शब्द

1.

जटा-टवी-गलज्-जल-
प्रवाह-पावि-तस्थले
गलेऽव-लम्ब्य लम्बितां
भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्।

डमड्-डमड्-डमड्-
डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं
चकार चण्ड-ताण्डवं
तनोतु नः शिवः शिवम्॥1॥


2.

जटा-कटाह-सम्भ्रम-
भ्रमन्-निलिम्प निर्झरी
विलोल-वीचि-वल्लरी
विराज-मान मूर्धनि।

धगद्-धगद्-धगज्-
ज्वलल्-ललाट-पट्ट पावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे
रतिः प्रति-क्षणं मम॥2॥


3.

धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-
विलास-बन्धु बन्धुर
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति
प्रमोद-मान मानसे।

कृपा-कटाक्ष-धोरणी-
निरुद्ध-दुर्धरा-पदि
क्वचिद्-दिगम्बरे
मनो विनोद-मेतु वस्तुनि॥3॥


4.

जटा-भुजंग-पिंगल-
स्फुरत्-फणा मणि-प्रभा
कदम्ब-कुंकुम-द्रव
प्रलिप्त-दिग्वधू-मुखे।

मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्-
त्वगुत्त-रीय-मेदुरे
मनो विनोद-मद्भुतं
बिभर्तु भूत-भर्तरि॥4॥


5.

सहस्र-लोचन-प्रभृत्य-
शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-
विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः।

भुजङ्ग-राज-मालया
निबद्ध-जाट-जूटक:
श्रियै चिराय जायतां
चकोर-बन्धु-शेखरः॥5॥


6.

ललाट-चत्वर-ज्वलद्-
धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा
निपीत-पञ्च-सायकं
नमन्-निलिम्प-नायकम्।

सुधा-मयूख-लेखया
विराज-मान-शेखरं
महा-कपालि सम्पदे
शिरो जटाल-मस्तु नः॥6॥


7.

कराल-भाल-पट्टिका-
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्-
धनञ्जया-हुती-कृत-
प्रचण्ड-पञ्च-सायके।

धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-
कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि
त्रिलोचने रतिर्मम॥7॥


8.

नवीन-मेघ-मण्डली-
निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्-
कुहू-निशीथि-नी-तमः-
प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।

निलिम्प-निर्झरी-धरस्-
तनोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः
श्रियं जगद्-धुरन्धरः॥8॥


9.

प्रफुल्ल-नील-पङ्कज-
प्रपञ्च-कालिम-प्रभा-
वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-
रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम्।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं
भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि-दान्ध-कच्छिदं
तमन्त-कच्छिदं भजे॥9॥


10.

अखर्व-सर्व-मङ्गला-
कला-कदम्ब मञ्जरी-
रस-प्रवाह-माधुरी-
विजृम्भणा-मधु-व्रतम्।

स्मरान्तकं पुरान्तकं
भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं
तमन्त-कान्तकं भजे॥10॥


11.

जयत्-वद-भ्रवि-भ्रम-
भ्रमद्-भुजङ्ग मश्वस-
द्विनिर्गमत्-क्रम-स्फुरत्-

कराल-भाल-हव्य-वाट्
धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-
ध्वनन्-मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल-
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-
प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः॥11॥


12.

दृषद्-विचित्र-तल्पयोर्-
भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्-
गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोः
सुहृद्-विपक्ष-पक्ष-योः।

तृणारविन्द-चक्षुषोः
प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
सम-प्रवृत्ति-कः कदा
सदा-शिवं भजाम्यहम्॥12॥


13.

कदा निलिम्प-निर्झरी-
निकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा
शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन्।

विलोल-लोल-लोचनो
ललाम-भाल-लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन्
कदा सुखी भवाम्यहम्॥13॥


14.

इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-
मुत्त-मोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्-नरो
विशुद्धि-मेति सन्ततम्।

हरे गुरौ सुभक्ति-माशु
याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां
सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥14॥


15.

पूजा-वसान-समये
दश-वक्त्र-गीतं
यः शम्भु-पूजन-परं
पठति प्रदोषे।

तस्य स्थिरां रथ-
गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं
प्रददाति शम्भुः॥15॥

इति श्री रावणकृतं
शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्।


Shiv Tandav Stotram Lyrics In Sanskrit

1.

जटाटवीगलज्जल प्रवाह पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥


2.

जटाकटाह सम्भ्रम भ्रमन्नि लिम्प निर्झरी
विलोल वीचि वल्लरी विराज मान मूर्धनि।
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके
(धगद्धगद्धगज्ज्वललललाटपट्टपावके)
किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥


3.

धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुर
स्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मान मानसे।
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि
क्वचिद् दिगम्बरे (क्वचिद्दिगम्बरे)
मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥


4.

जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणा मणिप्रभा
कदम्ब कुङ्कुमद्रव प्रलिप्त दिग्वधूमुखे।
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे
(मदान्ध सिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे)
मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥


5.

सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर
प्रसून धूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रि पीठभूः।
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः॥


6.

ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जय स्फुलिङ्गभा
निपीत पञ्चसायकं नमन्नि लिम्पनायकम्।
सुधा मयूख लेखया विराजमान शेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरोजटालमस्तु नः॥


7.

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृत प्रचण्डपञ्चसायके।
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक
प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥


8.

नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः।
निलिम्प निर्झरी धरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधान बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥


9.

प्रफुल्ल नील पङ्कज प्रपञ्च कालिमप्रभा
वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांध कच्छिदं तमन्त कच्छिदं भजे॥


10.

अखर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी
रस प्रवाह माधुरी विजृम्भणा मधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त कान्ध कान्तकं तमन्त कान्तकं भजे॥


11.

जयत् वद भ्रविभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस
(जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस)
द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट्
(द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्)।
धिमिद्धिमिद्धिमि ध्वनन् मृदङ्ग तुङ्ग मङ्गल
ध्वनि क्रम प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥


12.

स्पृषद्वि चित्रतल्पयो: भुजङ्ग मौक्ति कस्रजोर्
गरिष्ठ रत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि पक्ष पक्षयोः।
तृणारविन्द चक्षुषोः प्रजामही महेन्द्रयोः
समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम॥


13.

कदा निलिम्प निर्झरी निकुञ्ज कोटरे वसन्
विमुक्त दुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन्।
विलोल लोल लोचनो ललाम भाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥


14.

इमं हि नित्यमेव मुक्त मुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम्॥


15.

पूजावसान समये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः॥


Shiva Tandav Stotra Lyrics in English

Part 1

Jataatavi Galajjala
Pravaaha Paavitasthale

Galeavalambya Lambitaam
Bhujanga Tunga Maalikaam

Damad Damad Damad
Damanninaada Vad da_Marvayam

Chakaara Chanda Taandavam
Tanotu Nah Shivah Shivam


Part 2

Jataa Kataaha Sambhrama
Bhramanni Limpa Nirjhariee

Vilolaveechi Vallaree
Viraajamaana Murddhanee.

Dhagad Dhagad Dhaga
Jjvalallalaata Patta Paavake
Kishora Chandra Shekhare
Ratih Pratikshanam Mama


Part 3

Dharaa Dharendra Nandinee
Vilaasa Bandhu Bandhura

Sphuraddiganta Santati
Pramoda Maana Maanase.

Kripaa Kataaksha Dhoranee
Niruddha Durdharaapadi

Kvachiddigambare Mano
Vinodametu Vastuni


Part 4

Jataa Bhujanga Pingala
Sphuratphanaa Maniprabhaa

Kadamba Kunkuma Drava
Pralipta Digvadhu Mukhe.

Madaandha Sindhu Rasphura
Ttvaguttareeya Medure

Mano Vinoda Madbhutam
Bibhartu Bhuta Bhartari


Part 5

Sahasra Lochana Prabhritya
Sheshalekha Shekhara

Prasuna Dhuli Dhoranee
Vidhu Saraanghri Peethabhuh.

Bhujanga Raaja Maalayaa
Nibaddha Jaata Jutakah

Shriyai Chiraaya Jaayataam
Chakora Bandhu Shekharah


Part 6

Lalaata Chatvara Jvala
ddhananjaya Sphulingabhaa

Nipeeta Pancha Saayakam
Namanni Limpa Naayakam.

Sudhaa Mayukha Lekhayaa
Viraajamaana Shekharam
Mahaa Kapaali Sampade
Shiro Jataala Mastu Nah


Part 7

Karaala Bhaala Pattikaa
Dhagad Dhagad Dhagajjvala

Ddhananjayaa Huteekrita
Prachanda Pancha Saayake.

Dharaa Dharendra Nandinee
Kuchaagra Chitra Patraka

Prakalpa Naika Shilpini
Trilochane Ratirmama


Part 8

Naveena Megha Mandalee
Niruddha Durdhara Sphuratkuhu

Nisheethinee Tamah
Prabandha Baddha Kandharah.

Nilimpa Nirjharee
Dharastanotu Kritti Sindhurah

Kalaa Nidhaana Bandhurah
Shriyam Jagaddhurandharah


Part 9

Praphulla Neela Pankaja
Prapancha Kaalima Prabhaa

Valambi Kantha Kandalee
Ruchi Prabaddha Kandharam.

Smarachchhidam Purachchhidam
Bhavachchhidam Makhachchhidam

Gajachchhidaandha Kachchhidam
Tamanta Kachchhidam Bhaje


Part 10

Akharva Sarva Mangalaa
Kalaa Kadamba Manjaree

Rasa Pravaaha Maadhuree
Vijrimbhanaa Madhuvratam.

Smaraantakam Puraantakam
Bhavaantakam Makhaantakam

Gajaanta Kaandha Kaantakam
Tamanta Kaantakam Bhaje


Part 11

Jayatvada Bhravibhrama
Bhramad Bhujanga Mashvasa

Dvinirgamat Krama Sphurat
Karaala Bhaala Havyavaat.

Dhimid Dhimid Dhimid
Dhvanan Mridanga Tunga Mangala

Dhvani Krama Pravartita
Prachanda Taandavah Shivah


Part 12

Drishad Vichitra Talpayor
Bhujanga Maukti Kasrajor

Garishtha Ratna Loshthayoh
Suhrid Vipaksha Pakshayoh.

Trinaaravinda Chakshushoh
Prajaamahee Mahendrayoh

Sama Pravrittikah Kadaa
Sadaa Shivam Bhajaamyaham


Part 13

Kadaa Nilimpa Nirjharee
Nikunja Kotare Vasan

Vimukta Durmatih Sadaa
Shirah Sthamanjalim Vahan.

Vilola lola Lochano
Lalaama Bhaala Lagnakah

Shiveti Mantra Muchcharan
Kadaa Sukhee Bhavaamyaham


Part 14

Imam Hi Nityameva Mukta
Mutta Mottamam Stavam

Pathan Smaran Bruvannaro
Vishuddhi Meti Santatam.

Hare Gurau Subhakti Maashu
Yaati Naanyathaa Gatim

Vimohanam Hee Dehinaam
Sushankarasya Chintanam ॥14॥


Part 15

Pujaa Vasaana Samaye
Dashavaktra Geetam

Yah Shambhu Pujana
Param Pathati Pradoshe.

Tasya Sthiraam Ratha
Gajendra Turanga Yuktaam

Lakshmeem Sadaiva Sumukheem
Pradadaati Shambhuh

Shiv Tandav Stotram Complete


Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan

List

Shiva Pratah Smaran Stotra – Meaning


शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र अर्थ सहित

सुबह की जाने वाली, भगवान शिव की स्तुति

प्रातः स्मरण अर्थात सुबह किया जाने वाला ईश्वर का स्मरण।

शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र, एक छोटासा तीन श्लोकों का शिव स्तोत्र है, अर्थात छोटी सी सुंदर, तीन श्लोकों की भगवान् शिव की स्तुति है।

शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र के हर श्लोक में, संसार के दुःख और कष्टों को हरने वाले शिवजी को प्रणाम करते है।


शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र का सुबह पाठ करने से दिन की अच्छी शुरुआत

इस स्त्रोत्र के हर श्लोक में भगवान् शिव के स्वरुप का वर्णन है, जैसे की गंगाधर, आशीर्वाद देने वाली हाथ की मुद्रा, विकारशून्य आदि।

साथ ही साथ उनकी महिमा के बारे में भी वर्णन है, जैसे की सांसारिक भय और रोग को हरने वाले, आदिदेव, विश्वनाथ आदि।

और फिर हर श्लोक के अंत में, रोग और दुखों से मुक्ति के लिए अद्वितीय औषध रूप भोले बाबा को नमस्कार किया गया है।

इसलिए, यदि सुबह बिस्तर से उठते ही शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र का पाठ किया जाए, तो मन प्रसन्न हो जाता है, और ऊर्जा से भरी हुई दिन की शुरुआत होती है।


शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र

शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र के इस पोस्ट में –

  1. पहले स्तोत्र भावार्थ और शब्दों के अर्थ के साथ दिया गया है।
  2. बाद में संस्कृत शब्दों को पढ़ने में सरल इस फॉर्मेट में दिया है।
  3. फिर स्तोत्र सिर्फ संस्कृत में और
  4. अंत में शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र सिर्फ हिंदी में दिया गया है।

1. शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र – शब्दों का अर्थ और भावार्थ

1.

प्रातः स्मरामि
भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं
वृषभवाहनमम्बिकेशम्।

खट्वाङ्गशूल
वरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥

  • प्रातः स्मरामि – मै प्रात:काल नमस्कार करता हूं
  • भव भीति हरं – जो सांसारिक भय को हरने वाले हैं
  • सुरेशं – देवताओं के स्वामी हैं,
  • गङ्गा धरं – जो गंगा जी को धारण करते हैं,
  • वृषभ वाहनम् – जिनका वृषभ वाहन है,
  • अम्बिकेशम् – जो अम्बिका के ईश हैं।
  • खट्वाङ्ग शूल – जिनके हाथ में खट्वांग (खटवांग), त्रिशूल
  • वरदाभय हस्तमीशं – आशीर्वाद देने की हाथों की मुद्रा
  • संसार रोग हरम् – उन संसार रोग को हरने के निमित्त
  • औषधम्-अद्वितीयम् – अद्वितीय और औषध रुप,
  • ईश महादेव जी को, मैं प्रणाम करता हूं।

भावार्थ:
जो सांसारिक भय को हरने वाले हैं और
जो देवताओं के स्वामी हैं,
जो गंगा जी को धारण करते हैं,
जिनका वृषभ वाहन है,
जो अम्बिका के ईश हैं,
जिनके हाथ में खट्वांग (खटवांग), त्रिशूल है और
वरद अभय मुद्रा है, अर्थात हाथ की आशीर्वाद देने की मुद्रा है,
उन संसार रोग को हरने के निमित्त अद्वितीय औषध रुप ईश महादेव जी को मैं प्रणाम करता हूं।

  • वरद अर्थात – आशीर्वाद देने की मुद्रा, वर देने वाले, वरदाता, आशीर्वाद, कृपा, वरदान
  • खट्वांग, खटवांग अर्थात – शिव के हाथ का एक आयुध, अस्त्र।

2.

प्रातर्नमामि गिरिशं
गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थिति
प्रलयकारणमादिदेवम्।

विश्वेश्वरं
विजितविश्वमनोभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥

  • प्रातर्नमामि – मै प्रात:काल नमस्कार करता हूं
  • गिरिशं – भगवान् शिव को
  • गिरिजार्धदेहं – अर्धनारीश्वर रूप
    • भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप, शिव और पार्वती
  • सर्ग स्थिति – जो संसार की सृष्टि, स्थिति और
  • प्रलय कारणम् – प्रलय के कारण हैं
  • आदिदेवम् – आदिदेव है
  • विश्वेश्वरं – विश्वनाथ है,
  • विजित विश्व – विश्व विजयी और
  • मनोभिरामं –  मनोहर है,
  • संसार रोग हरम् – सांसारिक रोग को नष्ट करने के लिए,
  • औषधम्-अद्वितीयम् – अद्वितीय औषध रुप,
  • उन गिरीश अर्थात शिवजी को मै प्रात:काल नमस्कार करता हूं

भावार्थ:
भगवती पार्वती जिनका आधा अंग है (भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप – शिव और पार्वती),
जो संसार की सृष्टि, स्थिति और प्रलय के कारण हैं,
आदिदेव है,
विश्वनाथ है,
विश्व विजयी और मनोहर है,
सांसारिक रोग को नष्ट करने के लिए अद्वितीय और औषध रूप उन गिरीश अर्थात शिवजी को मै प्रात:काल नमस्कार करता हूं।


3.

प्रातर्भजामि
शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं
पुरुषं महान्तम्।

नामादिभेदरहितं
षड्भावशून्यं
(या विकारशून्यं)
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥

  • प्रातर्भजामि – मैं प्रात:काल भजता हूँ
  • शिवमेकम् अनन्तम् आद्यं – शिवजी को, जो आदि अंत से रहित है,
  • वेदान्त वेद्य मनघं – वेदांत से जानने योग्य,
  • पुरुषं महान्तम् – पाप रहित एवं महान पुरुष है
  • नामादिभेदरहितं – जो नाम आदि भेदों से रहित,
  • षड्भावशून्यं (या विकारशून्यं) – विकारों से शुन्य,
    • अर्थात विकारों से रहित है,
  • संसाररोग हरम् – सांसारिक रोग को नष्ट करने के लिए,
  • औषधम्-अद्वितीयम् – अद्वितीय औषध रुप,
  • उन एक शिव जी को मैं प्रात:काल भजता हूँ

भावार्थ:
जो अंत से रहित,
आदिदेव है,
वेदांत से जानने योग्य,
पाप रहित एवं महान पुरुष है तथा
जो नाम आदि भेदों से रहित,
विकारों से शुन्य, अर्थात विकारों रहित,
संसार रोगके हरने के निमित्त अद्वितीय औषध है, उन एक शिव जी को मैं प्रात:काल भजता हूँ।


2. स्तोत्र – पढ़ने के लिए सरल, संस्कृत शब्द

1.

प्रातः स्मरामि
भवभीति हरं सुरेशं
गंगा-धरं
वृषभ वाहनम् अम्बिकेशम्।

खटवांग शूल
वरदा भय हस्तम् ईशं
संसार रोग हरम् औषधम् अद्वितीयम्॥


2.

प्रातर् नमामि गिरिशं
गिरिजा अर्ध देहं
सर्ग स्थिति
प्रलय कारणम् आदि देवम्।

विश्वेश्वरं
विजित विश्व मनोभिरामं
संसार रोग हरम् औषधम् अद्वितीयम्॥


3.

प्रातर् भजामि
शिवम् एकम् अनन्तम् आद्यं
वेदान्त वेद्य मनघं
पुरुषं महान्तम्।

नाम् आदि भेद रहितं
षण भाव शून्यं
संसार रोग हरम् औषधम् अद्वितीयम्॥



Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan


3. शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र – सिर्फ संस्कृत में

1.

प्रातः स्मरामि
भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं
वृषभवाहनमम्बिकेशम्।

खट्वाङ्गशूल
वरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥


2.

प्रातर्नमामि गिरिशं
गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थिति
प्रलयकारणमादिदेवम्।

विश्वेश्वरं
विजितविश्वमनोभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥


3.

प्रातर्भजामि
शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं
पुरुषं महान्तम्।

नामादिभेदरहितं
षड्भावशून्यं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम्॥


4. शिव प्रातः स्मरण स्तोत्र – सिर्फ हिंदी में

1.

जो सांसारिक भय को हरने वाले हैं और
देवताओं के स्वामी हैं,
जो गंगा जी को धारण करते हैं,
जिनका वृषभ वाहन है, और
जो अम्बिका के ईश हैं,

जिनके हाथ में खट्वांग (खटवांग), त्रिशूल और
वरद अभय मुद्रा है,
उन संसार रोग को हरने वाले
अद्वितीय औषध रुप भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूं।


2.

अर्धनारीश्वर स्वरुप अर्थात भगवती पार्वती जिनका आधा अंग है,
जो संसार की सृष्टि, स्थिति और प्रलय के कारण हैं और
आदिदेव है, विश्वनाथ है,
विश्व विजयी और मनोहर है,

सांसारिक रोगों को नष्ट करने के लिए
अद्वितीय और औषध रूप
उन गिरीश अर्थात शिवजी को मै प्रात:काल नमस्कार करता हूं।


3.

जो अंत से रहित, आदिदेव है,
वेदांत से जानने योग्य,
पाप रहित एवं महान पुरुष है,
तथा जो नाम आदि भेदों से रहित,
विकारों से शुन्य, अर्थात विकारों रहित है, और
संसार रोगके हरने के निमित्त अद्वितीय औषध है
उन शिव जी को मैं प्रात:काल भजता हूँ।


List

Shiv Shadakshar Stotra Mantra


Shiv Shadakshar Stotra

1.

ॐ कारं बिंदुसंयुक्तं
नित्यं ध्यायंति योगिन:।
कामदं मोक्षदं चैव
ॐकाराय नमो नम:॥


2.

नमंतिऋषयो देवा
नमन्त्यप्सरसां गणा:।
नरा नमन्तिदेवेशं
नकाराय नमो नम:॥


3.

महादेवं महात्मानं
महाध्यानं परायणम्।
महापापहरं देवं
मकाराय नमो नम:॥


4.

शिवं शांन्तं जगन्नाथं
लोकानुग्रहकारकम्।
शिवमेकपदं नित्यं
शिकाराय नमो नम:॥


5.

वाहनं वृषभो यस्य
वासुकि: कण्ठभूषणम्।
वामे शक्तिधरं देवं
वकाराय नमो नम:॥


6.

यत्र यत्र स्थितो
देव: सर्वव्यापी महेश्वर:।
यो गुरुः सर्वदेवानां
यकाराय नमो नम:॥


षडक्षरमिदं स्तोत्रं
य: पठेच्छिवसंनिधौ।
शिवलोकमवाप्नोति
शिवेन सह मोदते॥



Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan


List

Lingashtakam Stotra – with Meaning – Brahma Murari Surarchita Lingam


Lingashtakam Stotram with Meaning

लिंगाष्टकम स्तोत्र – अर्थ सहित

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं
निर्मलभासितशोभितलिङ्गम्।
जन्मजदु:खविनाशकलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥१॥

जो लिंग (-स्वरूप)
ब्रह्मा, विष्णु एवं समस्त देवगणोंद्वारा पूजित
तथा निर्मल कान्तिसे सुशोभित है और
जो लिंग जन्मजन्य दु:खका विनाशक
अर्थात् मोक्षप्रदायक है,
उस सदाशिव- लिंगको मैं प्रणाम करता हूँ॥१॥


देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं
कामदहं करुणाकरलिङ्गम्।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥२॥

जो शिवलिंग,
श्रेष्ठ देवगण एवं ऋषि- प्रवरोंद्वारा पूजित,
कामदेवको नष्ट करनेवाला,
करुणाकी खानि,
रावणके घमण्डको नष्ट करनेवाला है,
उस सदाशिव- लिंगको मैं प्रणाम करता हूँ॥२॥


सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं
बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम्।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥३॥

जो लिंग सभी दिव्य सुगन्धि (अगर- तगर- चन्दन आदि) से सुलेपित,
“ज्ञानमिच्छेत्तु शङ्करात्” इस उक्तिद्वारा बुद्धि- वृद्धिकारक,
समस्त सिद्ध, देवता एव असुरगणोंसे वन्दित है,
उस सदाशिव- लिंगको मैं प्रणाम करता हूँ॥३॥


कनकमहामणिभूषितलिङ्गं
फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम्।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥४॥

साम्बसदाशिवका लिंगरूप
विग्रह सुवर्ण, माणिक्यादि महामणियोंसे विभूषित
तथा नागराजद्वारा वेष्टित (लिपटे) होनेसे
अत्यन्त सुशोभित है और
(अपने श्वसुर) दक्ष- यज्ञका विनाशक है,
उस सदाशिव- लिंगको मैं प्रणाम करता हूँ॥४॥


कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं
पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥५॥

सदाशिवका लिंगरूप विग्रह (शरीर)
कुंकुम, चन्दन आदिसे लिम्पित (पुता हुआ),
दिव्य कमलकी मालासे सुशोभित और
अनेक जन्म- जन्मान्तरके संचित पापको
नष्ट करनेवाला है,
उस सदाशिव- लिंगको मैं प्रणाम करता हूँ॥५॥


देवगणार्चितसेवितलिङ्गं
भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥६॥

भावभक्तिद्वारा समस्त देवगणोंसे
पूजित एवं सेवित,
करोड़ों सूर्योंकी प्रखर कान्तिसे युक्त
उस भगवान्‌सदाशिव- लिंगको मैं प्रणाम करता हूँ॥६॥


अष्टदलोपरि वेष्टितलिङ्गं
सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम्।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥७॥

अष्टदल कमलसे वेष्टित सदाशिवका लिंगरूप विग्रह
सभी चराचर (स्थावर- जंगम)- की उत्पत्तिका कारणभूत
एवं अष्ट दरिद्रोंका विनाशक है,
उस सदाशिव- लिंगको मैं प्रणाम करता हूँ॥७॥


सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं
सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम्।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं
तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥८॥

जो लिंग देवगुरु बृहस्पति
एवं देवश्रेष्ठ इन्द्रादिके द्वारा पूजित,
निरन्तर नन्दनवनके दिव्य पुष्पोंद्वारा अर्चित,
परात्पर एवं परमात्मस्वरूप है,
उस सदाशिव- लिंगको मैं प्रणाम करता हूँ॥८॥


लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं
य: पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति
शिवेन सह मोदते॥९॥

जो साम्ब- सदाशिवके समीप पुण्यकारी
इस “लिंगाष्टक”का पाठ करता है,
वह निश्चित ही शिवलोक (कैलास)- में निवास करता है
तथा शिवके साथ रहते हुए अत्यन्त प्रसन्न होता है॥९॥

॥इति लिङ्गाष्टकं सम्पूर्णम्॥

॥इस प्रकार लिंगाष्टक सम्पूर्ण हुआ॥

Bilvashtakam Stotram – with Meaning – Tridalam Trigunakaram


Bilvashtakam Stotra with Meaning

बिल्वाष्टकम स्तोत्र – अर्थ सहित

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥१॥

तीन दलवाला,
सत्त्व, रज एवं तम: स्वरूप,
सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि –
त्रिनेत्रस्वरूप और आयुधत्रय स्वरूप
तथा तीनों जन्मोंके पापोंको
नष्ट करनेवाला बिल्वपत्र
मैं भगवान्‌शिव के लिये
समर्पित करता हूँ॥१॥


त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रै: कोमलै: शुभै:।
शिवपूजां करिष्यामि बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥२॥

छिद्ररहित, सुकोमल, तीनपत्तेवाले,
मंगल प्रदान करनेवाले बिल्वपत्रसे
मैं भगवान् शिवकी पूजा करूँगा।

यह बिल्वपत्र
शिवको समर्पित करता हूँ॥२॥


अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे।
शुद्‌ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥३॥

अखण्ड बिल्वपत्रसे
नन्दिकेश्वर भगवान्‌की पूजा करनेपर
मनुष्य सभी पापोंसे मुक्त होकर
शुद्ध हो जाते हैं।

मैं बिल्वपत्र
शिवको समर्पित करता हूँ॥३॥


शालग्रामशिलामेकां विप्राणां जातु अर्पयेत्।
सोमयज्ञमहापुण्यं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥४॥

मेरे द्वारा किया गया भगवान्‌शिवको
यह बिल्वपत्रका समर्पण,
कदाचित्‌ ब्राह्मणोंको शालग्रामकी शिलाके समान
तथा सोमयज्ञके अनुष्ठानके समान महान्‌पुण्यशाली हो।

(अत:मैं बिल्वपत्र
भगवान्‌शिवको समर्पित करता हूँ)॥४॥


दन्तिकोटिसहस्राणि वाजपेयशतानि च।
कोटिकन्यामहादानं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥५॥

मेरे द्वारा किया गया
भगवान्‌शिवको यह बिल्वपत्रका समर्पण
हजारों करोड़ गजदान,
सैकड़ों वाजपेय- यज्ञके अनुष्ठान
तथा करोड़ों कन्याओंके महादानके समान हो।

(अत: मैं बिल्वपत्र
भगवान्‌शिवको समर्पित करता हूँ)॥५॥


लक्ष्म्याः स्तनत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्।
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥६॥

विष्णु- प्रिया भगवती लक्ष्मीके वक्ष:स्थलसे प्रादुर्भूत
तथा महादेवजीके अत्यन्त प्रिय बिल्ववृक्षको
मैं समर्पित करता हूँ।

यह बिल्वपत्र
भगवान् शिवको समर्पित है॥६॥


दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्।
अघोरपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥७॥

बिल्ववृक्षका दर्शन और उसका स्पर्श
समस्त पापोंको नष्ट करनेवाला
तथा शिवापराधका संहार करनेवाला है।

यह बिल्वपत्र
भगवान् शिवको समर्पित है॥७॥


मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे।
अग्रत: शिवरूपाय बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥८॥

बिल्वपत्रका मूलभाग ब्रह्मरूप,
मध्यभाग विष्णुरूप एवं
अग्रभाग शिवरूप है,
ऐसा बिल्वपत्र भगवान् शिवको समर्पित है॥८॥

बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।
सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवलोकमवाप्नुयात्॥९॥

जो भगवान्‌शिवके समीप
इस पुण्य प्रदान करनेवाले “बिल्वाष्टक”का पाठ करता है,
वह समस्त पापोंसे मुक्त होकर
अन्तमें शिवलोकको प्राप्त करता है॥९॥॥

॥इति बिल्वाष्टकं सम्पूर्णम्॥

इस प्रकार बिल्वाष्टक सम्पूर्ण हुआ॥

संकटनाशन गणेश स्तोत्रं – अर्थ सहित


Sankat Nashan Ganesh Stotra with Meaning in Hindi

संकटों का नाश करने वाला गणेशजी का स्तोत्र

इच्छाओं की पूर्ति करनेवाला और भय दूर करनेवाला गणेशजी का यह संकटनाशन गणेश मन्त्र, बहुत प्रभावी माना जाता है। इस स्तोत्र में भगवान् गणपतिजी के बारह नाम आते है, जो इस प्रकार है –

1. वक्रतुण्ड2. एकदन्त
3. कृष्णपिंगाक्ष4. गजवक्त्र
5. लम्बोदर6, विकट
7. विघ्नराजेन्द्र8. धूम्रवर्णं
9. भालचन्द्र10. विनायक
11. गणपति12. गजानन
गणपतिजी के बारह नाम

जैसा की इस स्तोत्र के आखरी श्लोक में बताया गया है कि इस स्तोत्र के पाठ से
भक्त को इच्छित फल प्राप्त होता है और पूर्ण सिद्धि तक प्राप्त हो सकती है।


इस पोस्ट से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण बात

संकटनाशन गणेश स्तोत्र के इस पोस्ट में पहले स्तोत्र के सभी श्लोक अर्थ सहित दिए गए है और बाद में पूरा स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है।

ॐ गं गणपतये नमः


संकटनाशन गणेश स्तोत्र – अर्थ सहित

श्री गणेश जी का स्मरण करे और प्रणाम करें

1.

नारद उवाच,
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थ सिद्धये॥१॥

नारद जी कहते हैं, पार्वतीनन्दन श्रीगणेश जी को, सिर झुकाकर प्रणाम करे।

और फिर, अपनी आयु, कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये, उन भक्तनिवासका (श्रीगणेशजीका) नित्य स्मरण करें।

श्रीगणेश जी को प्रणाम


वक्रतुण्ड, एकदन्त, कृष्णपिंगाक्ष, गजवक्त्र

2.

प्रथमं वक्रतुंण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥॥२॥

पहला वक्रतुण्ड,
दूसरा एकदन्त,
तीसरा कृष्णपिंगाक्ष,
चौथा गजवक्त्र

  • कृष्णपिंगाक्ष अर्थात – काली और भूरी आंखोवाले
  • गजवक्त्रं अर्थात – हाथीके से मुखवाले

ॐ गं गणपतये नमः


लम्बोदर, विकट, विघ्नराजेन्द्र, धूम्रवर्णं

3.

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥

पाँचवां लम्बोदर,
छठा विकट,
सातवाँ विघ्नराजेन्द्र,
आठवाँ धूम्रवर्णं

  • लम्बोदर अर्थात – बड़े पेटवाले
  • विकट अर्थात – विराट
  • विघ्नराजेन्द्र अर्थात – विघ्नोका नाश करने वाले राजाधिराज)

ॐ नमो भगवते गजाननाय नमः


भालचन्द्र, विनायक, गणपति, गजानन

4.

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु गजाननम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥

नवाँ भालचन्द्र,
दसवाँ विनायक,
ग्यारहवाँ गणपति और
बारहवाँ गजानन

  • भालचन्द्र अर्थात – जिसके ललाटपर चंद्रमा सुशोभित है

ॐ श्री गणेशाय नमः


भय दूर करनेवाला, संकटनाशन गणेश मंत्र

5.

द्वादशैतानि नामामि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥

इन बारह नामों का जो व्यक्ति तीनों संध्याओं में अर्थात प्रात:, मध्याह्न और सायंकाल में पाठ करता है, उसे किसी भी तरह के विघ्न का भय नहीं रहता है।

इस प्रकार का स्मरण सब प्रकार की सिद्धियाँ देनेवाला है।

ॐ वक्रतुंडाय नम:


इच्छाओं की पूर्ति करनेवाला, गणेश मंत्र

6.

विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्-मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥

इस संकट नाशन गणपतिजी के मंत्र नित्य पाठ से
विद्याभिलाषी – विद्या,
धनार्थी – धन,
पुत्रार्थी – पुत्र, पुत्री तथा
मुमुक्षु – मोक्षगति
प्राप्त कर लेता है।

  • विद्याभिलाषी अर्थात विद्यार्थी,
  • धनार्थी यानी की धन का अभिलाषी,
  • पुत्रार्थी अर्थात पुत्र, पुत्री की इच्छा वाला तथा
  • मुमुक्षु यानी की मोक्ष की इच्छा वाला

ॐ गजाननाय नमः


संकटनाशन गणेश स्तोत्रं से इच्छित फल और पूर्ण सिद्धि

7.

जपेद गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥७॥

इस गणपति स्तोत्रका जाप करे तो छह महीने में इच्छित फल प्राप्त होता है और एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है, इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है।

श्री सिद्धिविनायक नमो नमः


भगवान् गणेश की कृपा

8.

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥८॥

जो पुरुष इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेशजी की कृपासे उसे सब प्राकरकी विद्या प्राप्त हो जाती है।

ॐ गं गणपतये नमः


॥इति श्रीनारदपुराणे श्रीसंकटनाशन
गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम॥॥

इस प्रकार श्रीनारद पुराण में लिखा, श्रीसंकटनाशन गणेशस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।



Stotra – List

Ganesh Aarti – Ganesh Chalisa


संकटनाशन गणेश स्तोत्रं – संस्कृत में

नारद उवाच,
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थ सिद्धये॥१॥

प्रथमं वक्रतुंण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥॥२॥

लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्॥३॥

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु गजाननम्।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्॥४॥

द्वादशैतानि नामामि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो॥५॥

विद्यार्थी लभते विद्यां, धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्-मोक्षार्थी लभते गतिम्॥६॥

जपेद गणपतिस्तोत्रं षडभिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥७॥

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥८॥

॥इति श्रीनारदपुराणे श्रीसंकटनाशन गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम॥॥


Stotra – List

Aarti – Chalisa