1
भगवान ही रक्षक है, पालनहार हैं
जो विश्वास कर लेता है कि
एकमात्र भगवान ही मेरे रक्षक है,
एकमात्र भगवान ही मेरे पालनहार हैं,
तो वह मनुष्य शीघ्र ही साधु बन जाता है।
ऐसा निश्चय होते ही भगवान का आश्रय मिल जाता है,
क्योंकि उसका यह निश्चय यथार्थ है, सच्चा है।
भगवान का आश्रय मिलते ही सारी अच्छाइयां अपने आप वैसे ही आ जाती है,
जैसे हिमालय में ठंडक आ जाती है, क्योंकि ठंडक वहां हिमालय ही है।
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2
ईश्वर पर विश्वास और उनकी कृपा का बल
भगवान का विश्वास ही एकमात्र ऐसी चीज है,
जो सब अच्छाइयोंको ला देती है।
भगवान का बल, उनकी कृपा का बल,
भगवान की दया का बल, ऐसी शक्ति है कि
जिसके सामने सब प्रकार के बल परास्त हो जाते हैं।
हो क्या जाते हैं, सब परास्त ही हैं।
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3
ईश्वर से प्रार्थना कैसी हो?
प्रार्थना का स्वरुप है – भगवान के साथ विश्वास पूर्वक
अपने चित्तका अनन्य संयोग कर देना।
अपने मन को पूर्ण रूप से ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देना।
ऐसा हुए बिना, भगवान से प्रार्थना होती ही नहीं।
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4
अध्यात्म ज्ञान ही उत्तम ज्ञान है
सब कर्मों की अपेक्षा अध्यात्म ज्ञान प्राप्त करना ही सबसे लाभदायक है,
क्योंकि ज्ञान की प्राप्ति ईश्वर कृपा की प्राप्ति के समान हैं।
इसलिए, उत्तम मनुष्य जहां अध्यात्म विद्या के सुख सागर में डूबा रहता है,
वहां साधारण मनुष्य मूर्ख की तरह आलस्य और
अज्ञान के कंटीले जंगलोंमें भटका करता है।
5
ईश्वर का चिंतन, कल्याण का साधन
विषयों का चिंतन सर्वनाश का कारण है और
भगवान का चिंतन, सर्वनाश से बचाकर सर्व कल्याण का साधन है।
क्योंकि, जहां हमने भगवान का आश्रय लिया,
वही स्वाभाविक रूप से दैवी संपत्ति हमारे जीवन में आ जाएगी।
ठीक उसी प्रकार, जैसे सूर्योदय के साथ ही प्रकाश आ जाता है।
6
श्रद्धा युक्त मन से ईश्वर का स्मरण
सावधानी के साथ मन को विषयों से हटाकर
भगवान के चिंतन में न लगाना ही साधना की सबसे बड़ी कमी है।
जब तक मन श्रद्धा युक्त होकर भगवान का स्मरण नहीं करता,
तब तक कमी ही कमी है।
इसलिए भगवान में अनुराग बढ़ा कर
बार-बार भगवान का स्मरण करने की चेष्टा करनी चाहिए।
भगवान के गुण, नाम, लीला आदि जिसमें ही मन लगे,
अनुराग हो, भक्ति जागृत हो, उसी का चिंतन करना चाहिए।
7
सुख शांति की आधारभूमि – ईश्वर के साथ नित्य युक्त रहना
भगवान के साथ नित्य युक्त रहना,
सारी व्यवस्थाओंकी और सुख शांति की आधारभूमि है।
और भगवान से वियुक्त हो जाना, उनको भूल जाना,
यही सारे दुखों, पापों और चिंताओं की जड़ है।
भगवान सबके प्रति समान भाव से प्रेम करते हैं,
समान भाव से सब पर उनकी कृपा बरसती है,
सबको समान भाव से अपने कल्याणमय गुणों का आस्वाद कराना चाहते हैं।
कोई भी उसका अनधिकारी नहीं है।
पर जो भगवान के सामने नहीं आना चाहता,
जो उनसे लाभ उठाना नहीं चाहता,
वह अवश्य वंचित रह जाता है।
सूर्य सबको समान भाव से प्रकाश और ताप देता है,
पर जो व्यक्ति किसी अंधेरी कोठरी में बैठे और
दरवाजा बंद करके उस पर काला पर्दा डाल दे,
तो उसे सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता।
इसमें सूर्य का पक्षपात नहीं,
वह मनुष्य स्वयं ही सूर्य से प्रकाश नहीं लेना चाहता।
8
मन अखंड सुख चाहता है, जो सिर्फ ईश्वर में है
मनुष्य का मन किसी भी स्थिति में तृप्त नहीं होता है और
यह इसी बात को सिद्ध करता है कि
वह किसी पूर्णता की स्थिति को प्राप्त करना चाहता है।
भगवान सुख और शांति के स्वरूप है।
पूर्ण सुख, अखंड सुख, नित्य सुख भगवान में ही है।
हम ऐसे ही सुख को चाहते हैं और
ऐसा सुख जगत में कहीं नहीं है।
इसलिए हम कहीं भी किसी भी स्थिति में पहुंच जाएं,
हमें और अतृप्ति का अभाव का ही बोध होता है।
हमारी इस स्थिति से ज्ञात होता है कि
हम परिपूर्णतम भगवानको चाहते हैं।
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