जगत के रंग क्या देखूं, तेरा दीदार काफी है - 2


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जगत के रंग क्या देखूं

जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है।
क्यों भटकूँ गैरों के दर पे,
तेरा दरबार काफी है॥


नहीं चाहिए ये दुनियां के
निराले रंग ढंग मुझको।
चली जाऊँ मैं वृंदावन,
तेरा श्रृंगार काफी है

जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है।


जगत के साज बाजों से
हुए हैं कान अब बहरे।
कहाँ जाके सुनूँ बंसी,
मधुर वो तान काफी है॥

जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है।


जगत के रिश्तेदारों ने,
बिछाया जाल माया का।
तेरे भक्तों से हो प्रीति,
श्याम परिवार काफी है॥

जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है।


जगत की झूठी रौनक से
हैं आँखें भर गई मेरी।
चले आओ मेरे मोहन,
दरस की प्यास काफी है॥

जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है।


जगत के रंग क्या देखूं,
तेरा दीदार काफी है।
क्यों भटकूँ गैरों के दर पे,
तेरा दरबार काफी है॥


Jagat Ke Rang Kya Dekhu – 2 – Khatu Shyam Bhajan

Jaya Kishori Ji


Krishna Bhajan