<< भागवत पुराण – षष्ठ स्कन्ध – अध्याय – 5
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दक्षप्रजापतिकी साठ कन्याओंके वंशका विवरण
श्रीशुकदेवजी कहते हैं – परीक्षित्! तदनन्तर ब्रह्माजीके बहुत अनुनय-विनय करनेपर दक्षप्रजापतिने अपनी पत्नी असिक्नीके गर्भसे साठ कन्याएँ उत्पन्न कीं।
वे सभी अपने पिता दक्षसे बहुत प्रेम करती थीं।।१।।
दक्षप्रजापतिने उनमेंसे दस कन्याएँ धर्मको, तेरह कश्यपको, सत्ताईस चन्द्रमाको, दो भूतको, दो अंगिराको, दो कृशाश्वको और शेष चार तार्क्ष्यनामधारी कश्यपको ही ब्याह दीं।।२।।
परीक्षित्! तुम इन दक्षकन्याओं और इनकी सन्तानोंके नाम मुझसे सुनो।
इन्हींकी वंशपरम्परा तीनों लोकोंमें फैली हुई है।।३।।
धर्मकी दस पत्नियाँ थीं – भानु, लम्बा, ककुभ्, जामि, विश्वा, साध्या, मरुत्वती, वसु, मुहूर्ता और संकल्पा।
इनके पुत्रोंके नाम सुनो।।४।।
राजन्! भानुका पुत्र देवऋषभ और उसका इन्द्रसेन था।
लम्बाका पुत्र हुआ विद्योत और उसके मेघगण।।५।।
ककुभ् का पुत्र हुआ संकट, उसका कीकट और कीकटके पुत्र हुए पृथ्वीके सम्पूर्ण दुर्गों (किलों)-के अभिमानी देवता।
जामिके पुत्रका नाम था स्वर्ग और उसका पुत्र हुआ नन्दी।।६।।
विश्वाके विश्वेदेव हुए।
उनके कोई सन्तान न हुई।
साध्यासे साध्यगण हुए और उनका पुत्र हुआ अर्थसिद्धि।।७।।
मरुत्वतीके दो पुत्र हुए – मरुत्वान् और जयन्त।
जयन्त भगवान् वासुदेवके अंश हैं, जिन्हें लोग उपेन्द्र भी कहते हैं।।८।।
मुहूर्तासे मूहूर्तके अभिमानी देवता उत्पन्न हुए।
ये अपने-अपने मूहूर्तमें जीवोंको उनके कर्मानुसार फल देते हैं।।९।।
संकल्पाका पुत्र हुआ संकल्प और उसका काम।
वसुके पुत्र आठों वसु हुए।
उनके नाम मुझसे सुनो।।१०।।
द्रोण, प्राण, ध्रुव, अर्क, अग्नि, दोष, वसु और विभावसु।
द्रोणकी पत्नीका नाम है अभिमति।
उससे हर्ष, शोक, भय आदिके अभिमानी देवता उत्पन्न हुए।।११।।
प्राणकी पत्नी ऊर्जस्वतीके गर्भसे सह, आयु और पुरोजव नामके तीन पुत्र हुए।
ध्रुवकी पत्नी धरणीने अनेक नगरोंके अभिमानी देवता उत्पन्न किये।।१२।।
अर्ककी पत्नी वासनाके गर्भसे तर्ष (तृष्णा) आदि पुत्र हुए।
अग्नि नामक वसुकी पत्नी धाराके गर्भसे द्रविणक आदि बहुत-से पुत्र उत्पन्न हुए।।१३।।
कृत्तिकापुत्र स्कन्द भी अग्निसे ही उत्पन्न हुए।
उनसे विशाख आदिका जन्म हुआ।
दोषकी पत्नी शर्वरीके गर्भसे शिशुमारका जन्म हुआ।
वह भगवान् का कलावतार है।।१४।।
वसुकी पत्नी आङ्गिरसीसे शिल्पकलाके अधिपति विश्वकर्माजी हुए।
विश्वकर्माके उनकी भार्या कृतीके गर्भसे चाक्षुष मनु हुए और उनके पुत्र विश्वेदेव एवं साध्यगण हुए।।१५।।
विभावसुकी पत्नी उषासे तीन पुत्र हुए – व्युष्ट, रोचिष् और आतप।
उनमेंसे आतपके पंचयाम (दिवस) नामक पुत्र हुआ, उसीके कारण सब जीव अपने-अपने कार्योंमें लगे रहते हैं।।१६।।
भूतकी पत्नी दक्षनन्दिनी सरूपाने कोटि-कोटि रुद्रगण उत्पन्न किये।
इनमें रैवत, अज, भव, भीम, वाम, उग्र, वृषाकपि, अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, बहुरूप, और महान् – ये ग्यारह मुख्य हैं।
भूतकी दूसरी पत्नी भूतासे भयंकर भूत और विनायकादिका जन्म हुआ।
ये सब ग्यारहवें प्रधान रुद्र महान् के पार्षद हुए।।१७-१८।।
अंगिरा प्रजापतिकी प्रथम पत्नी स्वधाने पितृगणको उत्पन्न किया और दूसरी पत्नी सतीने अथर्वांगिरस नामक वेदको ही पुत्ररूपमें स्वीकार कर लिया।।१९।।
कृशाश्वकी पत्नी अर्चिसे धूम्रकेशका जन्म हुआ और धिषणासे चार पुत्र हुए – वेदशिरा, देवल, वयुन और मनु।।२०।।
तार्क्ष्यनामधारी कश्यपकी चार स्त्रियाँ थीं – विनता, कद्रू, पतंगी और यामिनी।
पतंगीसे पक्षियोंका और यामिनीसे शलभों (पतिंगों)-का जन्म हुआ।।२१।।
विनताके पुत्र गरुड़ हुए, ये ही भगवान् विष्णुके वाहन हैं।
विनताके ही दूसरे पुत्र अरुण हैं, जो भगवान् सूर्यके सारथि हैं।
कद्रूसे अनेकों नाग उत्पन्न हुए।।२२।।
परीक्षित्! कृत्तिका आदि सत्ताईस नक्षत्रा-भिमानिनी देवियाँ चन्द्रमाकी पत्नियाँ हैं।
रोहिणीसे विशेष प्रेम करनेके कारण चन्द्रमाको दक्षने शाप दे दिया, जिससे उन्हें क्षयरोग हो गया था।
उन्हें कोई सन्तान नहीं हुई।।२३।।
उन्होंने दक्षको फिरसे प्रसन्न करके कृष्णपक्षकी क्षीण कलाओंके शुक्लपक्षमें पूर्ण होनेका वर तो प्राप्त कर लिया, (परन्तु नक्षत्राभिमानी देवियोंसे उन्हें कोई सन्तान न हुई) अब तुम कश्यपपत्नियोंके मंगलमय नाम सुनो।
वे लोकमाताएँ हैं।
उन्हींसे यह सारी सृष्टि उत्पन्न हुई है।
उनके नाम हैं – अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सरमा और तिमि।
इनमें तिमिके पुत्र हैं – जलचर जन्तु और सरमाके बाघ आदि हिंसक जीव।।२४-२६।।
सुरभिके पुत्र हैं – भैंस, गाय तथा दूसरे दो खुरवाले पशु।
ताम्राकी सन्तान हैं – बाज, गीध आदि शिकारी पक्षी।
मुनिसे अप्सराएँ उत्पन्न हुईं।।२७।।
क्रोधवशाके पुत्र हुए – साँप, बिच्छू आदि विषैले जन्तु।
इलासे वृक्ष, लता आदि पृथ्वीमें उत्पन्न होनेवाली वनस्पतियाँ और सुरसासे यातुधान (राक्षस)।।२८।।
अरिष्टासे गन्धर्व और काष्ठासे घोड़े आदि एक खुरवाले पशु उत्पन्न हुए।
दनुके इकसठ पुत्र हुए।
उनमें प्रधान-प्रधानके नाम सुनो।।२९।।
द्विमूर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अयोमुख, शंकुशिरा, स्वर्भानु, कपिल, अरुण, पुलोमा, वृषपर्वा, एकचक्र, अनुतापन, धूम्रकेश, विरूपाक्ष, विप्रचित्ति और दुर्जय।।३०-३१।।
स्वर्भानुकी कन्या सुप्रभासे नमुचिने और वृषपर्वाकी पुत्री शर्मिष्ठासे महाबली नहुषनन्दन ययातिने विवाह किया।।३२।।
दनुके पुत्र वैश्वानरकी चार सुन्दरी कन्याएँ थीं।
इनके नाम थे – उपदानवी, हयशिरा, पुलोमा और कालका।।३३।।
इनमेंसे उपदानवीके साथ हिरण्याक्षका और हयशिराके साथ क्रतुका विवाह हुआ।
ब्रह्माजीकी आज्ञासे प्रजापति भगवान् कश्यपने ही वैश्वानरकी शेष दो पुत्रियों – पुलोमा और कालकाके साथ विवाह किया।
उनसे पौलोम और कालकेय नामके साठ हजार रणवीर दानव हुए।
इन्हींका दूसरा नाम निवातकवच था।
ये यज्ञकर्ममें विघ्न डालते थे, इसलिये परीक्षित्! तुम्हारे दादा अर्जुनने अकेले ही उन्हें इन्द्रको प्रसन्न करनेके लिये मार डाला।
यह उन दिनोंकी बात है, जब अर्जुन स्वर्गमें गये हुए थे।।३४-३६।।
विप्रचित्तिकी पत्नी सिंहिकाके गर्भसे एक सौ एक पुत्र उत्पन्न हुए।
उनमें सबसे बड़ा था राहु, जिसकी गणना ग्रहोंमें हो गयी।
शेष सौ पुत्रोंका नाम केतु था।।३७।।
परीक्षित्! अब क्रमशः अदितिकी वंशपरम्परा सुनो।
इस वंशमें सर्वव्यापक देवाधिदेव नारायणने अपने अंशसे वामनरूपमें अवतार लिया था।।३८।।
अदितिके पुत्र थे – विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (वामन)।
यही बारह आदित्य कहलाये।।३९।।
विवस्वान् की पत्नी महाभाग्यवती संज्ञाके गर्भसे श्राद्धदेव (वैवस्वत) मनु एवं यम-यमीका जोड़ा पैदा हुआ! संज्ञाने ही घोड़ीका रूप धारण करके भगवान् सूर्यके द्वारा भूलोकमें दोनों अश्विनीकुमारोंको जन्म दिया।।४०।।
विवस्वान् की दूसरी पत्नी थी छाया।
उसके शनैश्चर और सावर्णि मनु नामके दो पुत्र तथा तपती नामकी एक कन्या उत्पन्न हुई।
तपतीने संवरणको पतिरूपमें वरण किया।।४१।।
अर्यमाकी पत्नी मातृका थी।
उसके गर्भसे चर्षणी नामक पुत्र हुए।
वे कर्तव्य-अकर्तव्यके ज्ञानसे युक्त थे।
इसलिये ब्रह्माजीने उन्हींके आधारपर मनुष्यजातिकी (ब्राह्मणादि वर्णोंकी) कल्पना की।।४२।।
पूषाके कोई सन्तान न हुई।
प्राचीनकालमें जब शिवजी दक्षपर क्रोधित हुए थे, तब पूषा दाँत दिखाकर हँसने लगे थे; इसलिये वीरभद्रने इनके दाँत तोड़ दिये थे।
तबसे पूषा पिसा हुआ अन्न ही खाते हैं।।४३।।
दैत्योंकी छोटी बहिन कुमारी रचना त्वष्टाकी पत्नी थी।
रचनाके गर्भसे दो पुत्र हुए – संनिवेश और पराक्रमी विश्वरूप।।४४।।
इस प्रकार विश्वरूप यद्यपि शत्रुओंके भानजे थे – फिर भी जब देवगुरु बृहस्पतिजीने इन्द्रसे अपमानित होकर देवताओंका परित्याग कर दिया, तब देवताओंने विश्वरूपको ही अपना पुरोहित बनाया था।।४५।।
इति श्रीमद् भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
षष्ठस्कन्धे षष्ठोऽध्यायः।।६।।
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भागवत पुराण – षष्ठ स्कन्ध – अध्याय – 7
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