Aaye tere dwar, namaskaar namaskaar Sab jag kee aadhaar, namaskaar namaskaar Mangalamayee maa, ham aaye tere dwaar Aaye tere dwar, namaskaar namaskaar
Sooraj aur chaand mein tera hee ujaala hai Toone pahan rakhee hai sitaaron kee maala Hai sab jag kee aadhaar, namaskaar namaskaar Aaye tere dwar….
Parvaton kee chotiyon ko baadal hai choomate Prithvi surya chaand sitaare ga rahe hai jhoomate Niyam ke anusaar, namaskaar namaskaar Aaye tere dwar….
Koyal kee ye koohoo koohoo sab ke man ko bha rahee Sheetal mand pavan tera geet madhur ga rahee Japat rahee sau baar, namaskaar namaskaar Aaye tere dwar….
Maanush tan ko dekho kitana sundar banaaya hai Man buddhi aur indriyon ko kisane sajaaya hai Asht chakr nau dwar, namaskaar namaskaar Aaye tere dwar….
Aaye tere dwar, namaskaar namaskaar Sab jag kee aadhaar, namaskaar namaskaar
हे सर्वशक्तिमान्! सबके प्राणस्वरूप परमेश्वर! आपको नमस्कार है। हे सर्वव्यापी अन्तर्यामी परमेश्वर मुझे सत्-आचरण एवं सत्-भाषण करनेकी और सत्-विद्याको ग्रहण करनेकी शक्ति प्रदान करके इस जन्म-मरणरूप संसार-चक्रसे मेरी रक्षा करें।
प्रभो! खूब देख लिया, इस विश्वको भलीभाँति छान डाला, पर तुम्हारे अतिरिक्त अन्य कोई भी सुखप्रदाता नहीं मिला।
प्रभो! तुम्हीं सुखी करो, तुम्हीं दुःखसे छुड़ाओ। विश्वमें हिंसक और हिंस्य फैले हुए हैं । ऐसा कोई भी नहीं है जो हिंसाका शिकार न बना हो। जो हिंसक हैं वे भी दूसरोंका आहार बन जाते हैं। अहिंस्य यहाँ एक ही है। प्रभुपर किसीका अस्त्र नहीं चल सकता। वे सबको त्राण देनेवाले हैं; शाश्वत कालसे वे भक्तोंकी रक्षा करते आये हैं। वे ही प्रभु मुझे सुख एवं शान्ति प्रदान करें ।
प्रभो! तुम्हीं त्राता हो, तुम्हीं सहायक हो। तुमसे अधिक बलवान् यहाँ कोई भी नहीं है, मैं इसीलिये तुम्हें बुला रहा हूँ, क्योंकि तुम सुहृद् हो, सुगमतासे पुकारे जाने योग्य हो।
हे सर्वशक्तिसम्पन्न! तुम मेरे-जैसे अनेकोंके द्वारा पुकारे जाते हो, और तुम सबको सहायता देते हो। हे स्वामी, मुझे भी स्वस्ति दो, शान्ति दो, मेरा कल्याण करो।
स्वस्ति अर्थात – कल्याण, मंगल, सुख,अव्यय, शुभ हो, भला हो। त्राता अर्थात – रक्षा करने वाला, बचाने वाला, वह जो त्राण (रक्षा) करता हो, रक्षा करने वाला व्यक्ति
ईश्वर प्रार्थना में अपूर्व शक्ति है। ईश्वर उपासना से सब प्रकार के दु:खों का और कष्टों का निवारण होता है। प्रार्थना की अलौकिक शक्ति से ना केवल रोग से निवारण होकर शांति मिलती है, बल्कि जीवन की सभी आवश्यकताएं भी पूर्ण हो सकती है।
पाश्चात्य देशों में प्रार्थना के लिए खास खास संस्थाएं खुली हुई है। प्रार्थना से अनेक रोग निवृत्त किए जाते हैं और अनेक कामनाएं पूर्ण होती है, जिसका वहां विधिपूर्वक रिकॉर्ड रखा जाता है। उन देशों में लाखों मनुष्य प्रार्थना के प्रभाव पर विश्वास करते हैं। प्रार्थना का विषय एवं तत्व जानना प्रार्थना करने वालों के लिए परम आवश्यक है। प्रार्थना क्या है और क्यों की जाती है? प्रार्थना का उत्तर मिलता भी है या नहीं? मिलता है तो किस प्रकार मिलता है? और यदि नहीं तो उत्तर न मिलने का कारण क्या है?
प्रार्थना क्या है?
प्रार्थना का अर्थ है किसी अर्थ की याचना करना या किसी वस्तु के लिये (अर्थात अभाव का अनुभव कर उसकी पूर्ति के लिये) सहायता प्राप्त करना। प्रार्थना के तीन प्रयोजनविशेषकर होते हैं।
पहला संसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए,
दुसरा आत्मिक उन्नति के लिए और
तीसरा ईश्वर भक्ति के लिए।
संसारिक वस्तुओं की प्राप्ति हेतुया किसी इच्छा की पूर्ति के लिए प्रार्थना की जाती है, जैसे
अन्न, वस्त्र, नौकरी, धन,
पुत्र प्राप्ति,
रोग निवारण, किसी क्लेश या दुःख से रक्षा, आपत्ति का नाश,
सम्मान प्राप्ति,
विद्या प्राप्ति और परीक्षा में सफलता
आदि सब व्यावहारिक सिद्धियों के लिए।
2. आत्मिक उन्नति के लिए,
काम क्रोध राग द्वेष आदि मानसिक विकारों पर विजय प्राप्त करने के लिए,
आत्मा क्या है, ईश्वर क्या है,
सृष्टि क्या है, मृत्यु क्या है और मृत्यु के बाद क्या होता है इत्यादि का ज्ञान प्राप्त करने के लिए,
मानसिक और बौद्धिक उन्नति के लिए,
अध्यात्म ज्ञान और यथार्थ साधन जानने के लिए
3. ईश्वर की भक्ति के लिए (सर्वोत्कृष्ट प्रार्थना) तीसरे प्रकार के वह सच्चे प्रार्थना करने वाले प्रेमी भक्त होते हैं जिन्हें कुछ भी मांगना नहीं है, जो केवल उस महाप्रभु के ध्यान में और प्रेम में ही निरंतर लीन रहना चाहते हैं। ऐसे सच्चे भक्त ईश्वर से एक होने के लिए अपनी खुदी को मिटाकर ईश्वर दर्शन या आत्म साक्षात्कार करने के लिए इच्छा रखते हैं। यह सर्वोत्कृष्ट प्रार्थना है।
जो जिस कामना के लिए प्रार्थना करता है, उसकी वह सब कामनाएं अवश्य पूर्ण होती है। प्रार्थना का उत्तर अवश्य मिलता है। जो धन के लिए प्रार्थना करते हैं, उन्हें धन किसी भी साधन से मिल जाता है। जो अन्न, वस्त्र के लिए प्रार्थना करता है, उसके द्वार पर अन्न, वस्त्र किसी भी प्रकार पहुंच जाते हैं। जो विद्या प्राप्ति के निमित्त प्रार्थना करता है, वह बड़ा विद्वान हो जाता है। अनाथालय आदि धार्मिक कार्यों में परोपकारी पुरुषों के पास, जिनका उद्देश्य केवल प्राणी मात्र को सहायता देकर सेवा करना है, प्रार्थना करने पर आवश्यक सहायता अवश्य पहुंच जाती है।
प्रार्थना कब सफल होती है और कब नहीं?
कभी-कभी प्रार्थना पूर्ण भी नहीं होती और प्रार्थना का कोई उत्तर भी नहीं मिलता। इसका कारण यह है कि या तो उन्हें प्रार्थना करना नहीं आता, या उनके किसी पूर्व कर्म का कोई महान प्रतिबंधक होता है। जो मनुष्य ईश्वर में विश्वासी, प्रबल धारणा शक्ति (इच्छाशक्ति) वाला, नि:स्वार्थी, परोपकारी और चरित्रवान होता है, उसकी प्रार्थना कभी निष्फल नहीं होती है। अविश्वासी, निर्बल शक्ति वाला, अश्रद्धालु या अन्धश्रद्धालु और कुकर्मी व्यक्ति की प्रार्थना ही प्राय: निष्फल हुआ करती है।
प्रार्थना और ईश्वर
प्रार्थनाओं का उत्तर दाता ईश्वर ही है। ईश्वर सर्वव्यापक सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है। जिसकी शक्ति में, जिसके ज्ञान में, जिसके प्रेम में समस्त चराचर स्थित है, जो सृष्टि में सर्वत्र मौजूद है, जिसके ज्ञान के बिना एक पक्षी भी आकाश में नहीं उड़ता, जिसके ज्ञान के बिना एक चींटी भी भूमि पर पैर नहीं रखती, ऐसे सर्वविधाता ईश्वर ही प्राणियों की प्रार्थनाओं को सुनता है और उनका यथोचित उत्तर देता है। प्रार्थना में अमोघ बल है क्योंकि प्रार्थना से मनुष्य अपने जीवन में चाहे जैसे विलक्षण परिवर्तन कर सकता है और उसकी सारी आवश्यकताएं पूर्ण हो सकती है। सब जगत का कल्याण हो।
ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम। नेकी पर चले और बदी से टले, ताकी हसते हुये निकले दम॥
हे ईश्वर! आप हमारे सब कर्मोको जाननेवाले हैं; क्योंकि आप घट-घटवासी हैं। आप हमें धन, सम्पत्ति वा आत्मिक कल्याणके लिये अच्छे मार्गसे, शुभमार्गसे ले चलिये। इतना ही नहीं, हे प्रभो! हमारे सम्पूर्ण पापोंको, कुटिलताओंको हमसे दूर करिये, जिससे हम निष्पाप हो सकें।
ये अंधेरा घना छा रहा, तेरा इन्सान घबरा रहा। हो रहा बेख़बर, कुछ ना आता नज़र, सुख का सूरज छुपा जा रहा॥
हे सम्पूर्ण संसारके प्रकाशक और उत्पन्न करनेवाले प्रभु! हमारे सम्पूर्ण दुरितोंको, पापोंको और पापमयी वासनाओंको हमसे दूर करिये और जो कुछ भी संसारमें शुद्ध है, हमारे लिये कल्याणकारी है, ऐसे उत्तम श्रेष्ठ गुणों वा पदार्थोंको प्राप्त कराइये।
हे स्वामी! मुझपर कृपा कर और अपनी विभूतियोंसे मेरा अन्त:करण भर दे। यदि तू अपनी कृपा और प्रसादसे मुझे सबल नहीं बनायेगा तो यह दुःखार्त जीवन मैं किस प्रकार बिताऊँगा?
हे प्रभु! मैं तेरी इच्छाका अनुसरण कर सकूँ, ऐसी शक्ति मुझे दे। तेरी दृष्टिमें जो उपयुक्त और नम्र जीवन है, मैं अपना वैसा जीवन बना सकूँ-ऐसी बुद्धि दे।
तू ही मेरा ज्ञान है, तू ही मुझको सबसे अधिक जानता है, जगतमें मेरा जन्म होनेके पहले एवं जगतकी सृष्टि होनेके पूर्व भी तू मुझे जानता रहा है। हे जीवन-स्वामी! तेरे चरणों में मैं आत्म-समर्पण करता हूँ।
नेकी पर चले और बदी से टले, ताकी हसते हुये निकले दम॥ ऐ मालिक तेरे बंदे हम
प्रार्थनाका साधारण शब्दोंमें यही अर्थ है – ईश्वर और मानवकी पारस्परिक विश्वासभरी बातचीत। यह पारस्परिक बातचीत आन्तरिक एकताकी ओर संकेत करती है।
प्रार्थनामें हम ईश्वरसे एकता स्थापित करते हैं। प्रार्थनामें हम अपनी सारी बात ईश्वरके समक्ष रख देते हैं। ईश्वर ही जगतके रूपमें अभिव्यक्त है। जगतका सारा सौन्दर्य, सारा वैभव, सारा गौरव, सारी बुद्धिमानी, सारा स्वास्थ्य ईश्वरसे ही प्रस्फुटित हुआ है।
हमें अधिक सौन्दर्यकी आवश्यकता है, हम अधिक नीरोग होना चाहते हैं, हमें व्यापारमें अधिक सफलता चाहिये, हमारे मनमें अधिक आध्यात्मिक उन्नतिकी कामना है – इन सारे – अधिकों की प्राप्ति ईश्वरसे होगी। प्रार्थनाद्वारा हम ईश्वरसे सम्पर्क स्थापित करें।
प्रार्थना एक रचनात्मक और सक्रिय वस्तु है। ज्यों ही हम अपने मंगलके लिये अथवा अपने मित्रके मंगलके लिये प्रार्थना करते हैं, एक नये प्रकारकी चेष्टाका प्रारम्भ हो जाता है। सही विचार-धारा और सही प्रार्थना एक नये जगतका निर्माण प्रारम्भ कर देती है।
मंगलके निधान ईश्वरके प्रति की गयी प्रार्थना हमारे लिये मंगलके द्वार खोल देती है। हमारे अन्तर्मनमें मंगल विचारोंका प्रवाह चल पड़ता है। यही मंगलमयता हमारे जीवनमें, पहले भीतर, फिर बाहर बिखर जाती है।
जीवनमें जो अशुभ है, शरीरमें जो अस्वास्थ्य है, चित्तमें जो अशान्ति है, व्यापारमें जो असफलता है, व्यवहारमें जो अभद्रता है, वह सब केवल इसीलिये है कि न हमारे विचारों में मंगलमयता है और न मंगलमय भगवानसे हमारा सम्पर्क है।
प्रार्थना करना ईश्वरकी सर्वव्यापकताको स्वीकार करना है। सर्वव्यापी ईश्वर मेरे पास हैं, मैं उनके पास हूँ। सर्वसमर्थ ईश्वरके सामीप्यकी यह अनुभूति, यह विश्वास जीवनको दु:खोंसे राहत देती है।
ईश्वरसे एकात्मताका अर्थ है – सम्पूर्ण सद्गुणोंसे एकात्मता।
प्रार्थनाके क्षणोंमें हम अपनी समस्या लेकर ईश्वरके समीप जाते हैं और प्रार्थनामें मिलता है सजीव आशीर्वाद , जो जीवनका जीवन है।
तुम मेरे जीवन हो, जीवनका आनन्द हो, तुम मेरे साथ हो; अतः मेरे जीवनमें आध्यात्मिक आनन्दका अखण्ड स्रोत प्रवाहित है।