ईश्वर प्रार्थना में अपूर्व शक्ति है। ईश्वर उपासना से सब प्रकार के दु:खों का और कष्टों का निवारण होता है। प्रार्थना की अलौकिक शक्ति से ना केवल रोग से निवारण होकर शांति मिलती है, बल्कि जीवन की सभी आवश्यकताएं भी पूर्ण हो सकती है।
पाश्चात्य देशों में प्रार्थना के लिए खास खास संस्थाएं खुली हुई है। प्रार्थना से अनेक रोग निवृत्त किए जाते हैं और अनेक कामनाएं पूर्ण होती है, जिसका वहां विधिपूर्वक रिकॉर्ड रखा जाता है। उन देशों में लाखों मनुष्य प्रार्थना के प्रभाव पर विश्वास करते हैं। प्रार्थना का विषय एवं तत्व जानना प्रार्थना करने वालों के लिए परम आवश्यक है। प्रार्थना क्या है और क्यों की जाती है? प्रार्थना का उत्तर मिलता भी है या नहीं? मिलता है तो किस प्रकार मिलता है? और यदि नहीं तो उत्तर न मिलने का कारण क्या है?
प्रार्थना क्या है?
प्रार्थना का अर्थ है किसी अर्थ की याचना करना या किसी वस्तु के लिये (अर्थात अभाव का अनुभव कर उसकी पूर्ति के लिये) सहायता प्राप्त करना। प्रार्थना के तीन प्रयोजनविशेषकर होते हैं।
पहला संसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए,
दुसरा आत्मिक उन्नति के लिए और
तीसरा ईश्वर भक्ति के लिए।
संसारिक वस्तुओं की प्राप्ति हेतुया किसी इच्छा की पूर्ति के लिए प्रार्थना की जाती है, जैसे
अन्न, वस्त्र, नौकरी, धन,
पुत्र प्राप्ति,
रोग निवारण, किसी क्लेश या दुःख से रक्षा, आपत्ति का नाश,
सम्मान प्राप्ति,
विद्या प्राप्ति और परीक्षा में सफलता
आदि सब व्यावहारिक सिद्धियों के लिए।
2. आत्मिक उन्नति के लिए,
काम क्रोध राग द्वेष आदि मानसिक विकारों पर विजय प्राप्त करने के लिए,
आत्मा क्या है, ईश्वर क्या है,
सृष्टि क्या है, मृत्यु क्या है और मृत्यु के बाद क्या होता है इत्यादि का ज्ञान प्राप्त करने के लिए,
मानसिक और बौद्धिक उन्नति के लिए,
अध्यात्म ज्ञान और यथार्थ साधन जानने के लिए
3. ईश्वर की भक्ति के लिए (सर्वोत्कृष्ट प्रार्थना) तीसरे प्रकार के वह सच्चे प्रार्थना करने वाले प्रेमी भक्त होते हैं जिन्हें कुछ भी मांगना नहीं है, जो केवल उस महाप्रभु के ध्यान में और प्रेम में ही निरंतर लीन रहना चाहते हैं। ऐसे सच्चे भक्त ईश्वर से एक होने के लिए अपनी खुदी को मिटाकर ईश्वर दर्शन या आत्म साक्षात्कार करने के लिए इच्छा रखते हैं। यह सर्वोत्कृष्ट प्रार्थना है।
जो जिस कामना के लिए प्रार्थना करता है, उसकी वह सब कामनाएं अवश्य पूर्ण होती है। प्रार्थना का उत्तर अवश्य मिलता है। जो धन के लिए प्रार्थना करते हैं, उन्हें धन किसी भी साधन से मिल जाता है। जो अन्न, वस्त्र के लिए प्रार्थना करता है, उसके द्वार पर अन्न, वस्त्र किसी भी प्रकार पहुंच जाते हैं। जो विद्या प्राप्ति के निमित्त प्रार्थना करता है, वह बड़ा विद्वान हो जाता है। अनाथालय आदि धार्मिक कार्यों में परोपकारी पुरुषों के पास, जिनका उद्देश्य केवल प्राणी मात्र को सहायता देकर सेवा करना है, प्रार्थना करने पर आवश्यक सहायता अवश्य पहुंच जाती है।
प्रार्थना कब सफल होती है और कब नहीं?
कभी-कभी प्रार्थना पूर्ण भी नहीं होती और प्रार्थना का कोई उत्तर भी नहीं मिलता। इसका कारण यह है कि या तो उन्हें प्रार्थना करना नहीं आता, या उनके किसी पूर्व कर्म का कोई महान प्रतिबंधक होता है। जो मनुष्य ईश्वर में विश्वासी, प्रबल धारणा शक्ति (इच्छाशक्ति) वाला, नि:स्वार्थी, परोपकारी और चरित्रवान होता है, उसकी प्रार्थना कभी निष्फल नहीं होती है। अविश्वासी, निर्बल शक्ति वाला, अश्रद्धालु या अन्धश्रद्धालु और कुकर्मी व्यक्ति की प्रार्थना ही प्राय: निष्फल हुआ करती है।
प्रार्थना और ईश्वर
प्रार्थनाओं का उत्तर दाता ईश्वर ही है। ईश्वर सर्वव्यापक सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है। जिसकी शक्ति में, जिसके ज्ञान में, जिसके प्रेम में समस्त चराचर स्थित है, जो सृष्टि में सर्वत्र मौजूद है, जिसके ज्ञान के बिना एक पक्षी भी आकाश में नहीं उड़ता, जिसके ज्ञान के बिना एक चींटी भी भूमि पर पैर नहीं रखती, ऐसे सर्वविधाता ईश्वर ही प्राणियों की प्रार्थनाओं को सुनता है और उनका यथोचित उत्तर देता है। प्रार्थना में अमोघ बल है क्योंकि प्रार्थना से मनुष्य अपने जीवन में चाहे जैसे विलक्षण परिवर्तन कर सकता है और उसकी सारी आवश्यकताएं पूर्ण हो सकती है। सब जगत का कल्याण हो।
जो कुछ समस्तके लिए किया जाता है केवल किसी अंशके लिए नहीं, जो कुछ ईश्वरमय होकर ईश्वरका कार्य समझपर किया जाता है, वही कर्म मनुष्यको बाँधता नहीं, क्योंकि यह यज्ञकर्म है और बंधनमें नहीं डालता। दूसरेके लिए प्रेमसे प्रेरित होकर जो कुछ किया जाता है, वही सेवा है। वेतनभोगी सेवा सच्ची सेवा नहीं है।
दूसरों के दुखोंकी अनुभूति स्वयं अपने दुखोंके समान होनी चाहिए। दूसरों की पीड़ा का अनुभव ठीक उसी प्रकार होना चाहिए, जैसे अपने ह्रदय की पीड़ा का।
आध्यात्मिक जीवन की आकांक्षा रखने वाले को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि उसकी वाणी से किसी और को दुख ना पहुंचे। उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वाणी का और ऊपर किस प्रकार का प्रभाव पड़ता है। इसलिए, वाणी कोमल होनी चाहिए, शब्द प्रिय होने चाहिए, निंदा, अपवाद, कटुवचन, दूसरों पर दुष्ट उद्देश्य का आरोप – इन सबसे अपनी जिह्वा को अपवित्र नहीं करना चाहिए।
आध्यात्मिक जीवनके अभ्यास के साथ साथ अद्वैत भाव विकसित होता जाता है। संतो और ज्ञानियों के लिए आदर भाव के साथ पापियों के लिए करुणा का भाव विकसित होने लगता है। सभीके हृदयमें एक ही जीवन व्याप्त है, इसीमें हमारा ईश्वरत्व निहित है, उसकी ईश्वरतामें अंतर नहीं है, अंतर केवल व्यक्त रूपकी श्रेणीमें है।
भक्तियोगकी सहायतासे मन अपने-आप ही शान्त हो जाता है। परमात्माके साक्षात्कारके द्वारा मायाका बन्धन छिन्न हो जाता है, मन शान्त हो जाता है और कर्मबन्धन शिथिल हो जाता है। अपनी शक्तिके अनुसार भक्ति करना सबके लिये सहज है।
सर्वदा भगवान्का चिन्तन, ध्यान, स्मरण और भगवान्में अनन्य विश्वास का नाम उपासना है।
अनवरत तैलधाराके समान मन की तरंगे जब भगवान्के नामस्मरण या ध्यानमें लग जाती है. तब परमात्मा प्रत्यक्षवत् हो जाते है, तथा जीवात्मा अपने पृथक् अस्तित्वको खो देता है, और परमात्माके साथ एक हो जाता है। इसीको उपासना कहते हें।
उपासनाकी सफलताके लिये भगवान्के प्रति असीम प्रेम होना आवश्यक है। हृदयके अनुरागके बिना केवल योग, जप, तप, ध्यान आदिके द्वारा भगवानकी प्राप्ति नहीं हो सकती। भगवान्के चरणोंमें अन्त:करणको लगा देनेका नाम ही योग है।
उपासनामें भगवत्प्रेमकी अत्यन्त आवश्यकता है। क्योंकि हम जिससे सर्वाधिक प्यार करते हैं, रात-दिन जिसका ध्यान-स्मरण हमको अच्छा लगता है, उसीमे हमको आनन्दकी अनुभूति होती है।
भगवान्के साथ यदि हम हृदयसे प्रेम करेंगे तो उनका ध्यान हमारे मनसे कभी नहीं छूटेगा। भगवान्के ध्यान और स्मरणमें हमको आनन्दकी प्राप्ति होगी।
देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ। मेरे सर पर रख बनवारी, मेरे सर पर रख गिरधारी, अपने दोनों ये हाथ॥
देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ। अब तो कृपा कर दीजिए, जनम जनम का साथ
देने वाले श्याम प्रभु से, धन और दौलत क्या मांगे। श्याम प्रभु से मांगे तो फिर, नाम और इज्ज़त क्या मांगे। मेरे जीवन में अब कर दे, तू कृपा की बरसात॥ देना हो तो दीजिए….
श्याम तेरे चरणों की धूलि, धन दौलत से महंगी है। एक नज़र कृपा की बाबा, नाम इज्ज़त से महंगी है। मेरे दिल की तमन्ना यही है, करूँ सेवा तेरी दिन रात॥ देना हो तो दीजिए….
झुलस रहें है गम की धुप में, प्यार की छाया कर दे तू। बिन मांझी के नाव चले ना, अब पतवार पकड़ ले तू। मेरा रस्ता रौशन कर दे, छाई अंधियारी रात॥ देना हो तो दीजिए….
सुना है हमने शरणागत को, अपने गले लगाते हो। ऐसा हमने क्या माँगा, जो देने से घबराते हो। चाहे जैसे रख बनवारी, बस होती रहे मुलाक़ात॥ देना हो तो दीजिए….
देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ। मेरे सर पर रख बनवारी, मेरे सर पर रख गिरधारी, अपने दोनों ये हाथ॥
देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ भजन का आध्यात्मिक अर्थ
देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ भजन एक बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण गीत है जो भगवान कृष्ण के प्रति भक्त की भक्ति और समर्पण को व्यक्त करता है।
भक्त भगवान से उसके सिर पर हाथ रखने और समय और अस्तित्व की सीमाओं को पार करते हुए जीवन भर का साथ देने की प्रार्थना करता है।
साथ ही साथ भक्त भगवान की कृपा, शक्ति और प्रेम की भी प्रशंसा करता है, और अपनी जीवन यात्रा में उनका मार्गदर्शन, सुरक्षा और आशीर्वाद चाहता है।
भजन की पंक्तियाँ भगवान के प्रति समर्पण, भक्ति और ईश्वर प्रेम जैसी बातों को बहुत ही सरल और स्पष्ट तरीके से वर्णन करती हैं।
भजन का आध्यात्मिक अर्थ इस प्रकार है –
देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ।
अगर कुछ देना ही चाहते हो तो जन्मों-जन्मों तक अपना साथ दो।
इस पंक्ति का आध्यात्मिक महत्व जन्मों से परे परमात्मा के साथ स्थायी संबंध की गहरी लालसा है।
यह परमात्मा के साथ गहन और शाश्वत साहचर्य की इच्छा को दर्शाता है, यह मानते हुए कि भौतिक संपत्ति इसकी तुलना में क्षणिक है।
मेरे सर पर रख बनवारी, मेरे सर पर रख गिरधारी, अपने दोनों ये हाथ॥
मेरे सिर पर अपना हाथ रखो, हे बनवारी (कृष्ण), हे गिरधारी (कृष्ण)।
ये पंक्तियाँ परमात्मा का आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त करने का आध्यात्मिक महत्व रखती हैं।
किसी के सिर पर परमात्मा का हाथ रखना समर्पण और सुरक्षा की मांग का प्रतीक है।
यह भक्त की दैवीय इच्छा द्वारा निर्देशित होने और दैवीय देखभाल के अधीन रहने की इच्छा को दर्शाता है।
देने वाले श्याम प्रभु से, धन और दौलत क्या मांगे।
भगवान श्याम (कृष्ण) से मांगते समय धन-दौलत क्यों मांगें?
यह पंक्ति आध्यात्मिक संदेश देती है कि परमात्मा से मांगने पर भौतिक संपदा और संपत्ति महत्वहीन हो जाती है।
यह इस समझ का प्रतीक है कि सच्चा आध्यात्मिक आशीर्वाद भौतिक धन से परे है और परमात्मा के साथ संबंध पूर्ति का अंतिम स्रोत है।
श्याम प्रभु से मांगे तो फिर, नाम और इज्ज़त क्या मांगे।
यदि आप भगवान श्याम (कृष्ण) से मांगे, तो आप उनके नाम और आशीर्वाद के अलावा और कुछ ना मांगे। क्यों? –
ये पंक्तियाँ इस बात पर जोर देती हैं कि जब भगवान श्याम (कृष्ण) से उनका दिव्य नाम (आध्यात्मिक ज्ञान) और उनका आशीर्वाद (दिव्य अनुग्रह) माँगना अन्य सभी इच्छाओं से बढ़कर होता है।
अस्थायी और सांसारिक बातों से ज्यादा, शाश्वत और आध्यात्मिक बातों को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है।
मेरे जीवन में अब कर दे, तू कृपा की बरसात॥
अब मेरे जीवन में अपनी कृपा की प्रचुरता से वर्षा करें।
यह पंक्ति किसी के जीवन में दैवीय कृपा और आशीर्वाद की प्रचुरता की आध्यात्मिक लालसा को व्यक्त करती है।
यह दैवीय मार्गदर्शन, सुरक्षा और परिवर्तनकारी प्रभाव की आवश्यकता की पहचान का प्रतीक है।
“बरसात” या अनुग्रह की वर्षा एक शक्तिशाली आध्यात्मिक अनुभव का प्रतिनिधित्व करती है।
श्याम तेरे चरणों की धूलि, धन दौलत से महंगी है।
हे श्याम (कृष्ण), आपके चरणों की धूल धन-संपत्ति से भी अधिक मूल्यवान है।
यह पंक्ति गहन आध्यात्मिक समझ बताती है कि भगवान श्याम (कृष्ण) के चरणों की धूल दुनिया की सभी संपत्ति और धन से अधिक मूल्यवान है।
यह इस मान्यता का प्रतीक है कि आध्यात्मिक खजाने, जैसे कि दिव्य आशीर्वाद और संबंध, भौतिक संपत्ति से कहीं अधिक कीमती हैं।
एक नज़र कृपा की बाबा, नाम इज्ज़त से महंगी है।
आपकी दया की एक नज़र, हे बाबा (पिता), प्रसिद्धि और सम्मान से भी अधिक कीमती है।
यह पंक्ति आध्यात्मिक सत्य पर जोर देती है कि दैवीय दया की एक नज़र किसी भी सांसारिक मान्यता या सम्मान से अधिक मूल्यवान है।
यह इस अहसास का प्रतीक है कि सामाजिक स्वीकृति या सम्मान से बढ़कर, परमात्मा की स्वीकृति और कृपा सर्वोच्च महत्व की है।
मेरे दिल की तमन्ना यही है, करूँ सेवा तेरी दिन रात॥
मेरे हृदय की इच्छा है कि मैं दिन-रात आपकी सेवा करूँ।
ये पंक्तियाँ ईश्वर की निरंतर सेवा करने की आध्यात्मिक लालसा को दर्शाती हैं।
यह किसी के कार्यों, विचारों और भावनाओं को ईश्वर के प्रति निस्वार्थ सेवा के साथ करने की इच्छा को दर्शाता है, जो एक गहरी आध्यात्मिक प्रतिबद्धता और भक्ति का प्रतीक है।
झुलस रहें है गम की धुप में, प्यार की छाया कर दे तू।
यह पंक्ति चुनौतीपूर्ण समय के दौरान दैवीय सुरक्षा और मार्गदर्शन प्राप्त करने की आध्यात्मिक अवधारणा को दर्शाती है।
जिस प्रकार छाया चिलचिलाती धूप से राहत देती है, उसी प्रकार भक्त जीवन की कठिनाइयों से निपटने के लिए ईश्वर के प्रेम और आश्रय की तलाश करता है।
बिन मांझी के नाव चले ना, अब पतवार पकड़ ले तू।
ये पंक्तियाँ प्रतीकात्मक रूप से बताती हैं कि कुशल नाविक के बिना नाव सुचारू रूप से नहीं चल सकती।
नाविक परमात्मा का प्रतिनिधित्व करता है, और नाव भक्त की जीवन यात्रा का प्रतीक है।
जीवन की चुनौतियों और अनिश्चितताओं से निपटने के लिए ईश्वरीय मार्गदर्शन प्राप्त करने में ही महत्व निहित है।
मेरा रस्ता रौशन कर दे, छाई अंधियारी रात॥
यह पंक्ति भ्रम और अंधकार के समय के बीच दिव्य रोशनी और स्पष्टता प्राप्त करने की आध्यात्मिक आकांक्षा को व्यक्त करती है।
आध्यात्मिक महत्व अज्ञानता और चुनौतियों के रूपक अंधेरे के माध्यम से अपने मार्ग का मार्गदर्शन करने के लिए दिव्य प्रकाश की तलाश में निहित है।
सुना है हमने शरणागत को, अपने गले लगाते हो।
ये पंक्तियाँ आध्यात्मिक समझ को व्यक्त करती हैं कि जब कोई साधक पूर्ण विश्वास के साथ परमात्मा के प्रति समर्पण करता है, तो परमात्मा उसे प्रेमपूर्ण आलिंगन में घेर लेते हैं।
यह अहंकार और नियंत्रण को परमात्मा को समर्पित करने की अवधारणा का प्रतीक है, जिससे भक्त एक गहरे आध्यात्मिक संबंध की ओर अग्रसर होता है।
ऐसा हमने क्या माँगा, जो देने से घबराते हो।
यह पंक्ति इस अहसास को व्यक्त करती है कि परमात्मा से मांगते समय डरने या झिझकने की कोई बात नहीं है। क्योंकि परमात्मा के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
यह आध्यात्मिक सत्य का प्रतीक है कि परमात्मा हमेशा दयालु और देने वाला है, बिना किसी हिचकिचाहट के भक्त की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार है।
चाहे जैसे रख बनवारी, बस होती रहे मुलाक़ात॥
ये पंक्तियाँ परमात्मा के साथ अटूट और घनिष्ठ संबंध की आध्यात्मिक लालसा का प्रतीक हैं।
यह परमात्मा के साथ निरंतर और सार्थक रिश्ते की चाहत को दर्शाता है, जो भक्त की निरंतर एकता में रहने की आकांक्षा को दर्शाता है।
अब तो कृपा कर दीजिए, जनम जनम का साथ
यह पंक्ति जीवन भर दैवीय कृपा और आशीर्वाद के लिए गंभीर प्रार्थना व्यक्त करती है। यह दैवीय मार्गदर्शन और सुरक्षा के साथ निरंतर आध्यात्मिक यात्रा की आध्यात्मिक लालसा को दर्शाता है।
देना हो तो दीजिए, जनम जनम का साथ।
ये पंक्तियाँ परमात्मा के साथ जीवन भर चलने वाले स्थायी साहचर्य की इच्छा पर जोर देती हैं।
यह इस मान्यता का प्रतीक है कि परमात्मा की उपस्थिति की तलाश ही अंतिम आकांक्षा है, जो किसी भी भौतिक लाभ या सांसारिक इच्छाओं से कहीं परे है।
इस प्रकार भजन की ये पंक्तियाँ गहरा आध्यात्मिक अर्थ रखती हैं, और समर्पण, विश्वास और परमात्मा के साथ स्थायी संबंध की तलाश के विषयों को रेखांकित करती हैं।
भजन की पंक्तियाँ परमात्मा के साथ संबंध के लिए गहरी आध्यात्मिक लालसा, आध्यात्मिक आशीर्वाद की तुलना में भौतिक संपत्ति की महत्वहीनता और किसी की जीवन यात्रा को रोशन करने के लिए परमात्मा की कृपा और मार्गदर्शन की लालसा को भी दर्शाती हैं।
वे इस समझ को व्यक्त करती हैं कि दैवीय आशीर्वाद स्वतंत्र रूप से दिया जाता है और सांसारिक चिंताओं से परे, साधक की आध्यात्मिक यात्रा में ईश्वर की निरंतर उपस्थिति रहती है।
ईश्वर से प्रार्थना
मुझको दो वरदान कन्हैया, सदा तुम्हारा नाम पुकारुं। करूं सदा वंदना तुम्हारी, अपना अगला जन्म सुधारुं॥ चाह नहीं है फूल बनूं मैं, और तुम्हारे शीश चढू मैं। मुझको तो बस नीर बना दो, सदा तुम्हारे चरण पखारुं॥
चाह नहीं चंदन बनने की, माथे पर लगते रहने की। मुझको तो बस दीप बना दो, सुबह शाम आरती उतारू॥ प्रभु दया की भीख मांगता, द्वार तुम्हारे शीश झुकाता। मुझको तो बस दिव्य दृष्टि दो, सदा तुम्हारा रूप निहारु॥