Mahamrityunjaya Mantra – with Meaning


Shiv Bhajan

महामृत्युंजय मंत्र – अर्थसहित


ओम त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

Mahamrityunjaya mantra jap 108
महामृत्युंजय मंत्र जाप – १०८

Maha Mrityunjaya Mantra


महामृत्युंजय मंत्र के द्वारा हम भगवान् शिव की आराधना करते है। महामृत्युंजय मंत्र महामंत्र है। यह अत्यंत प्रभावशाली मंत्र है तथा इसे संजीवनी मंत्र भी कहते है।

महामृत्युंजय मंत्र का नियमित श्रवण तथा उच्चारण जीवन में शांति, सुख व समृद्धि लाता है। इस मंत्र के जाप से दुर्भाग्य, अमंगल तथा विपत्तियाँ मनुष्य से दूर रहती है।

Blessings of Lord Shiv
महामृत्युंजय मंत्र – १०८ बार

Mahamrityunjaya Mantra – Meaning in Hindi

ओम त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

त्रयंबकम त्रि-नेत्रों वाले (तीन नेत्रों वाले)
यजामहे – हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं

सुगंधिम – मीठी महक वाले, सुगंधित
पुष्टि – एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन
वर्धनम – वह जो पोषण करते है, शक्ति देते है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में वृद्धिकारक); जो हर्षित करते है, आनन्दित करते है

हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं।


उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

उर्वारुकम – ककड़ी
इव – जैसे, इस तरह
बंधना – तना

मृत्युर मृत्यु से
मुक्षिया – हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
मा – न
अमृतात – अमरता, मोक्ष

उनसे (भगवान शिव से) हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।

जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेलरूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं।

महामृत्युंजय मंत्र भावार्थ

भावार्थ – 1

हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं।

उनसे (भगवान् शिवजी से) हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।

जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेलरूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं।


भावार्थ – 2

हम त्रि-नेत्रीय शिवजी का चिंतन करते हैं, जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करते है और वृद्धि करते है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग (“मुक्त”) हों, अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों।

ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्

ओम त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

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Shiv Bhajans

Mahamrityunjaya Mantra – with Meaning

Shankar Sahney

Mahamrityunjaya Mantra – with Meaning


Om Tryambakam Yajamahe
Sugandhim Pusti-vardhanam
Urvarukam-iva Bandhanan
Mrtyor Muksiya Mamritat


Om Tryambakam Yajamahe
Sugandhim Pusti-vardhanam

Tryambakam – the three-eyed one, shiv
Yajamahe – we worship, we sacrifice
Sugandhim – the fragrant, the virtuous, the supreme being
Pusti-vardhanam – who nourishes all beings, the bestower of nourishment, wealth, perfection (him who possesses the growth of nourishment)


Urvarukam-iva Bandhanan
Mrtyor Muksiya Mamritat

Urvarukamiva – as cucumber
Bandhanan – from bondage, from the stalk/stem
Mrtyor – from death
Muksiya – may I be freed/released
Mamritat – not from immortality

Mahamrityunjaya Mantra Meaning

We Meditate on the Three-eyed reality (Lord Siva) which permeates and nourishes all like a fragrance.
Or
We worship the three-eyed one (Lord Siva, the spreme being) who nourishes all beings like a fragrance (bestower of nourishment, wealth, perfection);

May He liberate me from the death, for the sake of Immortality, as the cucumber is severed from its bondage (of the creeper).

Maha Mrityunjaya Mantra – with Meaning
Mahamrityunjaya Mantra – with Meaning

Shiv Bhajans

Devi Suktam – Ya Devi Sarva Bhuteshu


सम्पूर्ण देवी सूक्तम् – या देवी सर्वभूतेषु

देवी महात्म्यम् के पाठ के बाद देवी सूक्तम् का भी पाठ किया जाता है।
नमो देव्यै महादेव्यै
शिवायै सततम् नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै
नियताः प्रणताः स्मताम्॥

रौद्रायै नमो नित्यायै
गौर्यै धात्र्यै नमो नमः।
ज्योत्स्नायै च इन्दुरूपिण्यै
सुखायै सततम् नमः॥


कल्याण्यै प्रणताम् वृद्ध्यै
सिद्ध्यै कुर्मो नमो नमः।
नैर्ऋत्यै भूभृताम् लक्ष्म्यै
शर्वाण्यै ते नमो नमः॥

दुर्गायै दुर्गपारायै
सारायै सर्व कारिण्यै।
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै
धूम्रायै सततम् नमः॥

अति सौम्याति रौद्रायै
नताः तस्यै नमो नमः।
नमो जगत् प्रतिष्ठायै
देव्यै कृत्यै नमो नमः॥


या देवी सर्वभूतेषू
विष्णु मायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥
(नमस्तस्यै – नमः तस्यै, नमस् तस्यै)

या देवी सर्वभूतेषू
चेतनेत्यभि-धीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


या देवी सर्वभूतेषू
बुद्धि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषू
निद्रा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


या देवी सर्वभूतेषू
क्षुधा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥

यादेवी सर्वभूतेषू
छाया रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


या देवी सर्वभूतेषू
शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषू
तृष्णा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


या देवी सर्वभूतेषू
क्षान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषू
जाति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


या देवी सर्वभूतेषू
लज्जा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषू
शान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


या देवी सर्वभूतेषू
श्रद्धा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषू
कान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


या देवी सर्वभूतेषू
लक्ष्मी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषू
वृत्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


या देवी सर्वभूतेषू
स्मृति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषू
दया रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


या देवी सर्वभूतेषू
तुष्टि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषू
मातृ रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥

या देवी सर्वभूतेषू
भ्रान्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


इन्द्रियाणाम् अधिष्ठात्री
भूतानाम् च अखिलेषु या।
भूतेषु सततम् तस्यै
व्याप्ति देव्यै नमो नमः॥

चिति रूपेण या कृत्स्नम-एतद्
व्याप्त स्थिता जगत्।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नमः॥


स्तुता सुरैः पूर्वम् अभीष्ट संश्रयात्
तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता।
करोतु सा नः शुभहेतुः ईश्वरी
शुभानि भद्राणि अभिहन्तु चापदः॥

या साम्प्रतम् चोद्धत दैत्य तापितैः
अस्माभिः ईशा च सुरैः नमश्यते।
या च स्मृता तत्क्षणम् एव हन्ति
नः सर्वा पदः भक्ति विनम्र मूर्त्तिभिः॥

Devi Suktam – Ya Devi Sarva Bhuteshu

Durga Bhajan List

Devi Suktam – Ya Devi Sarva Bhuteshu

Namo Devyai Mahaadevyai
Shivayai satatam namah
Namah Prakrityai Bhadraayai
Niyataah Pranataah sma-taam||

Raudrayai namo nityaayai
Gauryai Dhaatrayai namo namah,
Jyotsnaayai cha Induroopinyai
Sukhaayai satatam namah||


Kalyaanai Pranataam Vriddhayai
Siddhai Kurmo namo namah
Nairityai Bhoobhritaam Lakshmyai
Sharvaanyai te namo namah||

Durgayai Durg-parayai
Sarayai Sarva kaarinyai
Khyaatyai tathaiva Krishnaayai
Dhoomraayai satatam namah||

Ati saumyaati raudraaye
Nataah tasyei namo namah
Namo Jagat pratishthaayai
Devyai Krityei namo namah||


Ya Devi sarva bhuteshu
Vishnu Maayeti Shabditaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarva bhuteshu
Chetanetya Bhi dhiyate
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||


Ya Devi sarvabhuteshu
Buddhi rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarvabhuteshu
Nidra rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||


Ya Devi sarva bhuteshu
Kshudhaa rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarva bhuteshu
Chhaayaa rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||


Ya Devi sarvabhuteshu
Shakti rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarvabhuteshu
Trishnaa rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||


Ya Devi sarvabhuteshu
Kshanti rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarvabhuteshu
Jaati rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha|


Ya Devi sarvabhuteshu
Lajjaa rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarvabhuteshu
Shaanti rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||


Ya Devi sarvabhuteshu
Shraddhaa rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarvabhuteshu
Kaanti rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||


Ya Devi sarvabhuteshu
Lakshmi rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarvabhuteshu
Vritti rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||


Ya Devi sarvabhuteshu
Smriti rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarvabhuteshu
Dayaa rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||


Ya Devi sarvabhuteshu
Tushti rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarvabhuteshu
Maatri rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||

Ya Devi sarvabhuteshu
Bhraanti rupen Sansthitaa
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||


Indriyaanaa Madhishthaatri
Bhootaanaam cha akhileshu ya
Bhooteshu satatam tasyai
Vyaaptidevyai namo namah||

Chitirupen ya Kritsnam-etad
vyaapta sthitaa Jagat
Namas-tasyai namas-tasyai,
namas-tasyai namo namaha||


Stutaa Suraih poorvam abheeshta samshrayaat
Tathaa Surendrena Dineshu Sevitaa |
Karotu Saa Nah Shubhahetu: eeshvari
Shubhaani Bhadraani abhihantu Chaapadah||

Yaa Saampratam Choddhata Daitya taapitaih
asmaabhih eeshaa cha surairnamasyate |
Yaa cha Smritaa tatakshanam eva Hanti Nah
Sarvaapado Bhakti vinamra moortibhihi||

Ganesh Mantra (गणेशजी के अत्यंत सरल मंत्र)


श्री गणेश मंत्र


भगवान श्री गणेश दुखहर्ता है, अर्थात बाधाएं, चिंता और दुःख दूर करने वाले देवता है। गणपतिजी सुखकर्ता है, अर्थात रिद्धी, सिद्धि और बुद्धि के भी दाता हैं।

इसलिए गणेशजी के मंत्र, सिद्धि मंत्र हैं और प्रत्येक मंत्र में उनकी कुछ विशिष्ट शक्तियां समाहित (सम्मिलित, निहित, रहती) हैं। जब सच्ची भक्ति के साथ गणेश मंत्र का जाप किया जाता है, तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।

सामान्य तौर पर, गणेश मंत्र के जाप से सभी बुराईयां मिट जाती है और भक्त को विवेक और सफलता का आशीर्वाद मिलता है।

जो मनुष्य सच्ची भक्ति से गणेशजी के मंत्र जाप करता है, बुरे विचार उस भक्त के दिमाग में प्रवेश नहीं करते और जिस घर में श्री गणेश मंत्रो का जाप होता है, उस घर में विपदाएं प्रवेश नहीं करती।

आध्यात्मिक लाभ के लिए कुछ ऐसे मंत्र नीचे दिए गए हैं। (1)

कुछ महत्वपूर्ण बातें –

  • मंत्र के जाप के लिए बैठने से पहले नहा लेना चाहिए।
  • मंत्र का जाप 108 बार या एक पूर्ण माला का होना चाहिए।
  • जब यह जाप नियमित रूप से 48 दिनों तक किया जाए तो यह एक – उपासना – बन जाता है। जिसका अर्थ है गहन ध्यान, जिससे सिद्धि या आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है।
  • लेकिन इन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। शक्तियों का उपयोग सिर्फ मानव जाति के लाभ के लिए और निस्वार्थ कार्यों के लिए ही करना चाहिए। शक्ति का दुरुपयोग देवता के अभिशाप का कारण बन सकता है। (1)

ॐ गं गणपतये नमः

(Om Gam Ganapataye Namaha)

ॐ गं गणपतये नमः

ओम गं गणपतये नमः, गणपति उपनिषद का एक मंत्र है। नया करियर या नए व्यवसाय में प्रवेश करने से पहले, नई नौकरी शुरू करने से पहले, यात्रा शुरू करने से पहले या स्कूल में नए कोर्स से पहले इसका उपयोग किया जा सकता है, ताकि बाधाएं दूर हो जाएं और प्रयासों में सफलता मिले। (1)

ॐ गं गणपतये नमः, ॐ गं गणपतये नमः
ॐ गं गणपतये नमः, ॐ गं गणपतये नमः

Om Gam Ganapataye Namaha, Om Gam Ganapataye Namaha
Om Gam Ganapataye Namaha, Om Gam Ganapataye Namaha

ॐ गं गणपतये नमः – Om Gam Ganapataye Namaha

ओम नमो भगवते गजाननाय नमः

Om Namo Bhagavate Gajaananaaya Namaha

नमो भगवते गजाननाय नमः

ओम नमो भगवते गजाननाय नमः, एक भक्ति मंत्र है। यह मंत्र गणेश जी की सर्वव्यापी चेतना का प्रतिनिधित्व करता है अर्थात सर्वव्यापी चेतना को व्यक्त करता है। यह मंत्र गणेशजी के दर्शन करने या (एक व्यक्ति के रूप में) उनकी तत्काल उपस्थिति को महसूस करने के लिए बहुत प्रभावशाली है। (1)

ओम नमो भगवते गजाननाय नमः

ओम श्री गणेशाय नमः

Om Shri Ganeshaaya Namaha

श्री गणेशाय नमः

ओम श्री गणेशाय नमः मंत्र से स्मरण शक्ति बढ़ती है, जो छात्रों को पढ़ाई के लिए और परीक्षामें सफल होने के लिए जरूरी हैं। इसलिये यह मंत्र आमतौर पर सभी बच्चों को उनकी अच्छी शिक्षा के लिए सिखाया जाता है। किसी भी उम्र के लोग स्कूल या विश्वविद्यालय में स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए और सफलता के लिए इस मंत्र का उपयोग कर सकते हैं। (1)

ओम श्री गणेशाय नमः – Om Shri Ganeshaaya Namaha

ॐ वक्रतुंडाय नम:

Om Vakratundaaya Namaha

ॐ वक्रतुंडाय नम:

यह एक बहुत शक्तिशाली मंत्र है जैसा कि गणेश पुराण में चर्चा की गई है। जब व्यक्तिगत या सार्वभौमिक रूप से कुछ काम ठीक से नहीं हो रहा है, या जब लोगों के दिमाग नकारात्मक हो जाते हैं, तो गणेशजी का ध्यान इस तरीके से आकर्षित किया जा सकता है कि जिससे काम सरल हो जाए। गणेश पुराण में राक्षसों के अत्याचार को रोकने के लिए, इस मंत्र का कई बार उपयोग किया गया है। (1)

ॐ वक्रतुंडाय नम: – Om Vakratundaaya Namaha

ओम क्षिप्र प्रसादाय नमः

Om Kshipra Prasadaya Namaha

क्षिप्र प्रसादाय नमः

क्षिप्र अर्थात तुरंत, तत्काल, जल्दी, तेज़, शीघ्रगामी, instant

ओम क्षिप्र प्रसादाय नमः मंत्र में क्षिप्र का अर्थ है तुरंत। अगर कुछ खतरा या कुछ मुश्किलें रास्ते में आ रही हैं और नहीं जानते कि उस मुसीबत से कैसे छुटकारा पाया जाए, तो भगवान श्री गणेश का त्वरित आशीर्वाद पाने के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ इस मंत्र का अभ्यास करें।

ओम क्षिप्र प्रसादाय नमः, Om Kshipra Prasadaya Namah

ओम सुमुखाय नमः

Om Sumukhaaya Namaha

ॐ सुमुखाय नमः

ॐ सुमुखाय नमः इस मंत्र के बहुत अर्थ है, लेकिन इसे सरल बनाने के लिए, इसका मतलब है कि इस मंत्र के जाप और ध्यान से आप हमेशा आत्मा में, चेहरे पर और हर चीज में बहुत सुंदर होंगे। उस मंत्र का ध्यान करने से आप पर बहुत ही मनभावन और सौंदर्य आ जाता है। इसके साथ ही शांति मिलती है जो आपकी आँखों में लगातार नृत्य करती है, और जो शब्द आप बोलते हैं, वे सभी प्रेम की शक्ति से भरे होते हैं।

ओम सुमुखाय नमः – Om Sumukhaaya Namaha

ओम एकदंताय नमः

Om Ekadantaaya Namaha

ॐ एकदंताय नमः

ॐ एकदंताय नमः, एकदंत का तात्पर्य गणपतिजी के एकदन्त से है। इस मंत्र का अर्थ है कि भगवान ने मन में उठने वाले द्वंद्व को तोड़ा जिससे मन में एक स्पष्ट सोच आ जाती है। जिसके पास मन की एकता और एकल-मन की भक्ति है वह सब कुछ हासिल कर लेता है।

ॐ एकदंताय नमः – Om Ekadantaaya Namaha

ओम कपिलाय नमः
Om Kapilaaya Namaha
ॐ कपिलाय नमः

ओम गजकर्णकाय नमः
Om Gajakarnakaaya Namaha
ॐ गजकर्णकाय नमः

ओम लम्बोदराय नमः
Om Lambodharaaya Namaha
ओम लम्बोदराय नमः

ओम विकटाय नमः
Om Vikataaya Namaha
ॐ विकटाय नमः

ओम विघ्न नाशनाया
Om Vighna Nashanaaya Namaha
ॐ विघ्न नाशनाया

ओम विनायकाय नमः
Om Vinayakaaya Namaha
ॐ विनायकाय नमः

ओम धूम्रकेतुवे नमः
Om Dhumraketuve Namaha
ॐ धूम्रकेतुवे नमः

ओम गणाध्याय नमः
Om Ganadhyakshaaya Namaha
ॐ गणाध्याय नमः

ओम भलाचंद्राय नमः
Om Bhalachandraaya Namaha
ऊँ भलाचंद्राय नमः

ओम गजाननाय नमः
Om Gajaananaaya Namaha
ॐ गजाननाय नमः

ओम श्रीं ह्रीं क्लीम ग्लौम गम गणपतये
वर वरदा सर्व जनमे वशमानय स्वाहा


Om Shreem Hreem Kleem Glaum Gam Ganapataye
Vara Varada Sarva Janamai Vashamanaaya Swaha

सन्दर्भ – Reference – Source –
1. Official website of Shree Siddhivinayak Ganapati Temple Trust, Prabhadevi, Mumbai – Mantra

श्री वक्रतुण्ड महाकाय
सूर्य कोटी समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव
सर्व-कार्येशु सर्वदा॥

Vakratunda Mahakaya
Suryakoti Samaprabha
Nirvighnam Kuru Me Deva
Sarva-Kaaryeshu Sarvada॥


ॐ गं गणपतये नमो नमः
श्री सिद्धिविनायक नमो नमः।
अष्टविनायक नमो नमः
गणपति बाप्पा मोरया॥

Om Gan Ganapataye Namo Namah
Shri Siddhi Vinayak Namo Namah
Ashtavinayak Namo Namah
Ganpati Bappa Moryaa

Shri Ganesh Mantra
Om Gan Ganapataye Namo Namah

श्री गणेश गायत्री मंत्र – (Shri Ganesh Gayatri Mantra)

ॐ एकदन्ताय विद्धमहे,
वक्रतुण्डाय धीमहि,
तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥

Om Ek-dantaya Vidh-mahe,
Vakra-tundaya Dheemahi,
Tanno Danti Prachodayat॥

OR

ॐ वक्रतुण्डाय विद्धमहे,
एकदन्ताय धीमहि,
तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥


गणेश स्तुति मंत्र (Vinayak Stuti Mantra)

गजाननं भूतगणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बूफलचारू भक्षणम्,
उमासुतं शोक विनाशकारकं,
नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्॥
ॐ श्री गणेशाय नमः

Gajaa-nanam bhoot-ganaadi sevitam
Kapittha jambu-phal charu bhakshanam।
Uma-sutam shok vinaash-kaarakam
Namaami Vighneshwar paad-pankajam॥

(कपित्थ – Wood Apple – एक फल है जो बेल जैसा होता है। इसे कबिट या कठबेल भी कहते हैं)


गणेश शुभ लाभ मंत्र (Ganesh Mantra for Prosperity and Wealth)

ॐ श्रीम गम सौभाग्य गणपतये
वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥

Om Shreem Gam
Saubhagya Ganpataye
Varvarda Sarva-janma mein
Vash-maanya Namah॥

Ganesh Bhajans and Aarti

Gayatri Mantra with Meaning


Gayatri Mantra - Om Bhur Bhuvah Swaha
Gayatri Mantra – Om Bhur Bhuvah Swaha

गायत्री मंत्र – अर्थसहित


ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्॥

ॐ भूर्भुवः स्वः (ॐ भूर भुवः स्वः)
तत्सवितुर्वरेण्यं (तत सवितुर वरेण्यम) ।
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्॥

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥

गायत्री मंत्र – अर्थ

  • – सर्वत्र, सदा, सर्वथा रक्षक, प्रणव अक्षर
  • भूर – प्राणाधार, प्राण प्रदाण करने वाला
  • भुवः – दुःखनाशक, दुख़ों का नाश करने वाला
  • स्वः – सुखस्वरूप, सुखदाता, सुख़ प्रदाण करने वाला
  • तत – वह (प्रभु)
  • सवितुर – सूर्य की भांति उज्जवल, उत्पन्न करने वाला
  • वरेण्यम – सबसे उत्तम, सर्वश्रेष्ठ
  • भर्गो – शुद्धस्वरूप, पापनाशक, कर्मों का उद्धार करने वाला
  • देवस्य – दिव्यस्वरूप का, प्रभु का
  • धीमहि – हम ध्यान करते हैं
  • धियो – बुद्धि को
  • यो – जो
  • नः – हमारी
  • प्रचोदयात् – सद्बुद्धि प्रदान करें, हमें शक्ति दें, सन्मार्ग में प्रेरित करे
Durga Bhajan
गायत्री मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं

गायत्री मंत्र – भावार्थ

गायत्री मंत्र अर्थ – 1

  • हे दयालु परमात्मा, आप अपनी असीम कृपा से हमारी सदा रक्षा करते हैं।
  • आप ही हमारे जीवनाधार हैं।
  • अपने सेवको के दुःखो को दूर करके उन को सूख देने वाले हैं।
  • आप सर्वत्र सप्रतिष्टित और सुप्रसिद्ध है।
  • आप से ही यह सारा जगत् उत्पन्न हुआ है।
  • आप सर्वोत्तम, शुद्ध, पवित्र, और ज्ञानस्वरूप हैं।
  • आप ही सकल शुभ गुणों की खान हैं।
  • आप का हम प्रतिदिन ध्यान करें और
  • आप हमे विवेकशीलता और सद्बुद्धि प्रदान करें।

गायत्री मंत्र अर्थ – 2

  • उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें।
  • वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

गायत्री मंत्र अर्थ – 3

  • ईश्वर प्राणाधार, दुःखनाशक तथा सुख स्वरूप है।
  • हम प्रेरक देव के उत्तम तेज का ध्यान करें।
  • जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर बढ़ाने के लिए पवित्र प्रेरणा दें।
विवेकशीलता और सद्बुद्धि प्रदान करें – बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे

गायत्री मंत्र का महत्व

ॐ भूर् भुवः स्वः।
तत् सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥


ऋषियों ने जो अमूल्य रत्न हमको दिऐ हैं, उनमें से एक अनुपम रत्न गायत्री मंत्र है। गायत्री मंत्र में ऐसी शक्ति सन्निहित है, जो महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है। इस मंत्र का जप करने से बडी-बडी सिद्धियां मिल जाती हैं। यह मंत्र छोटा है, पर इसकी शक्ति बड़ी है।

गायत्री मंत्र सदबुद्धि का भी मंत्र है, जिससे बुद्धि पवित्र होती है, इसलिऐ इस मंत्रो का मुकुटमणि कहा गया है।

गायत्री मंत्र का निरन्तर जप आत्माओं की उन्नति के लिए उपयोगी है। गायत्री का स्थिर चित्त और शान्त हृदय से किया हुआ जप आपत्तिकाल के संकटों को दूर करने का प्रभाव रखता है।

भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्

ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्।


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Durga Bhajans

ईश्वर की प्रार्थना

हे जगतके कारण सत-स्वरूप परमात्मा! तुझे नमस्कार है।

हे सर्वलोकोंके आश्रय चित-स्वरूप! तुझे नमस्कार है।

हे मुक्ति प्रदान करनेवाले अद्वैततत्त्व! तुझे नमस्कार है।

शाश्वत और सर्वव्यापी ब्रह्म! तुझे नमस्कार है।

तुम्हीं एक शरणमें जाने योग्य अर्थात् आश्रय-स्थान हो, तुम्हीं एक पूजा करने योग्य हो।

तुम्हीं एक जगतके पालक और अपने प्रकाशसे प्रकाशित हो।

तुम्हीं एक जगतके कर्ता, पालक और संहारक हो।

तुम्हीं एक निश्चल और निर्विकल्प हो।

तुम प्राणियोंकी गति हो और पावनोंको पावन करनेवाले हो।

अत्यन्त उच्च पदोंके तुम्हीं नियन्त्रण करनेवाले हो, तुम पर-से-परे हो, रक्षण करनेवालोंका भी रक्षण करनेवाले हो ।

हम तुम्हारा स्मरण करते हैं, हम तुमको भजते हैं।

हम तुम्हें जगतके साक्षिरूपमें नमस्कार करते हैं।

सत-स्वरूप, निरालम्ब तथा एकमात्र शरण लेनेयोग्य आश्रय इस भवसागरके नौकारूप ईश्वरके हम शरण जाते हैं ।


सर्वशक्तिमान प्रभु जो सबके हृदयको देखते हैं, सबकी अभिलाषाओं को जानते हैं और जिन से कोई भी भेद छिपा नहीं है, वे अपने दिव्य आत्माकी प्रेरणा से हमारे ह्रदय के विचारों को शुद्ध करें और हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

ईश्वर की प्रार्थना, आराधना और ध्यान

ईश्वर सत्यस्वरूप, ज्ञानस्वरूप और अनंतस्वरूप है। वे आनंद, शक्ति और अमृत-तत्वके मूल है। वे कल्याणमय, अद्वितीय, पवित्र, निरंजन, निराकार, सर्वशक्तिमान व सर्वव्यापी है। वे ही सृष्टिकर्ता और प्रतिपालक है।

ईश्वर ही मूल सत्य है। इस सृष्टि के पहले कुछ नहीं था, वह ईश्वर ही थे। उस समय न दिन था न रात। पृथ्वी, आकाश, अंतरिक्ष, जल, वायु, पर्वत, नदी, वृक्ष, लता आदि कुछ भी नहीं थे। ईश्वर ने अपनी इच्छा से इन सब का सृजन किया। ईश्वर में से ही सब पदार्थों की सृष्टि हुई है। प्रत्येक पदार्थ में प्राण रूप से परमेश्वर ही ओतप्रोत है।

वे सर्वज्ञ, सर्व-साक्षी, और प्रत्येक घटना के निरीक्षक है। उनसे छिपाकर कुछ भी नहीं रखा जा सकता।

वे अंतर्यामी, असीम, अनंत तथा मनवाणी के अगोचर है, स्वयंज्योति और स्वयंभू है। वे स्वयं यदि मनुष्य के ह्रदय में प्रकट ना हो तो मनुष्य उनके दर्शन करने में असमर्थ है।

वे आनंद, शांति और अमृत के निर्झर है। मंगलदाता, पवित्र और सचेत जागृत भाव से सर्वव्यापक है।

इस प्रकार ईश्वर के स्वरूप का विचार करके उनकी पूजा करना और समस्त विश्व में उनकी महिमा के दर्शन कर भक्ति पूर्वक उन्हें प्रणाम करना आराधना है। ईश्वर के चिंतन का नाम ही ध्यान है।

परमेश्वर हमारे हृदय में विराजमान हैं इस प्रकार सतत चिंतन करने से अंतःकरण में प्रभु का प्रकाश होता है और प्रभु की दिव्य ज्योति के दर्शन होते हैं।

Gayatri Mantra

Anuradha Paudwal

Suresh Wadkar

Gayatri Mantra


Om Bhur Bhuvah Swaha,
Tat Savitur Varenyam
Bhargo Devasya Dhimahi,
Dhiyo Yo Nah Pracho Dayat

Gayatri Mantra – Om Bhur Bhuvah Swaha, Tat Savitur Varenyam

We meditate on the glory of that Being who has produced this universe; may He enlighten our minds.

Let us meditate on Isvara and His Glory who has created the Universe, who is fit to be worshipped, who is the remover of all sins and ignorance. May he enlighten our intellect.

Om Bhur Bhuvah Swaha,
Tat Savitur Varenyam
Bhargo Devasya Dhimahi,
Dhiyo Yo Nah Pracho Dayat

  • Om – Brahma or Almighty God, Para Brahman;
  • Bhur – Bhuloka (Physical Plane), embodiment of vital spiritual energy (prana)
  • Bhuvah – antariksha, destroyer of sufferings
  • Svah – svarga loka, embodiment of happiness
  • Tat – paramatma, that
  • Savitur – isvara (surya), bright, luminous like the Sun
  • Varenyam – fit to be worshipped, best, most exalted
  • Bhargo – remover of sins and ignorance, destroyer of sins
  • Devasya – glory, divine (jnana svaroopa)
  • Dheemahi – We meditate
  • Dhiyo – Buddhi (Intellect)
  • Yo – which, who
  • Nah – our
  • Prachodayat – enlighten, may inspire

Let us meditate on that excellent glory of the divine vivifying Sun, May he enlighten our understandings.

We meditate on the effulgent glory of the divine Light; may he inspire our understanding.

We meditate on the adorable glory of the radiant sun; may he inspire our intelligence.

Gayatri Mantra
Gayatri Mantra

Om Bhur Bhuvah Swaha,
Tat Savitur Varenyam
Bhargo Devasya Dhimahi,
Dhiyo Yo Nah Pracho Dayat

Durga Bhajans

Daily Morning Mantra – Hindi


Morning Mantra

प्रात: कर-दर्शन

सुबह नींद से जागने के बाद सबसे पहले अपनी हथेलियोंको देखकर यह मंत्र बोलना चाहिये।
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्।

  • कराग्रे वसते लक्ष्मी: – हाथके अग्रभागमें (आगे वाले भाग में – उँगलियों में) लक्ष्मी का निवास है।
    • कर – हाथ, हथेली
  • करमध्ये सरस्वती – हाथके मध्यमें सरस्वती और
  • करमूले तु गोविन्दः – हाथके मूलभागमें गोविन्द निवास करते हैं,
  • प्रभाते करदर्शनम् – इसलिये प्रातःकाल (सुबह) दोनों हाथोंका दर्शन करना चाहिये

हाथ के सामने वाले भाग में (अर्थात् उँगलियों में) लक्ष्मी का का निवास है, हाथ के मध्य में सरस्वती और हाथ के मूलभाग में (अर्थात् कलाई के पास) गोविन्द (श्री कृष्ण, भगवान विष्णु) का निवास है। इसलिए प्रात:काल कर का (हाथोंका) दर्शन करना चाहिए।

पृथ्वी माताकी प्रार्थना

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे।

दीप दर्शन

शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥
दीपज्योति: परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दन:।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥
हे दीपज्योति (दीपक का प्रकाश), तू शुभ करनेवाली, कल्याण करनेवाली, आरोग्य और धनसंपदा देनेवाली है। शत्रुबुद्धि का विनाश करनेवाली दीपज्योति, तुझे नमस्कार।
दीपक का प्रकाश (दीपज्योति) परब्रह्म का रूप (परब्रह्म है),  दीपज्योति जनार्दन (भगवान् विष्णु) का रूप है, तू हमारे अज्ञान रूपी पापों का नाश करती है। हे दीपज्योति, आपको प्रणाम है, नमस्कार है।