Lagan Tumse Laga Baithe – Lyrics in Hindi


लगन तुमसे लगा बैठे

लगन तुमसे लगा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा।

तुम्हे अपने बना बैठे,
जो होगा देखा जाएगा॥

लगन तुमसे लगा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा


कभी दुनिया से डरते थे,
के छुप छुप याद करते थे।

लो अब परदा उठा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा॥

लगन तुमसे लगा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा।


कभी यह ख्याल था, दुनिया
हमें बदनाम कर देगी।

शर्म अब बेच खा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा॥

लगन तुमसे लगा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा।


दीवाने बन गए तेरे, तो
फिर दुनिया से क्या लेना।

तेरे चरणों में आ बैठे,
जो होगा देखा जाएगा॥

लगन तुमसे लगा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा।


तुम्हे अपने बना बैठे,
जो होगा देखा जाएगा॥

लगन तुमसे लगा बैठे,
जो होगा देखा जाएगा


Lagan Tumse Laga Baithe

Jaya Kishori Ji


Krishna Bhajan



Tan Ke Tambure Me, Do Saanso Ki Taar Bole


Ram Bhajan

तन के तम्बूरे में, दो सांसो की तार बोले


तन तम्बूरा, तार मन
अद्भुत है ये साज।
हरी के कर से बज रहा,
हरी की है आवाज॥

तन के तम्बूरे में,
दो सांसो की तार बोले।
जय सिया राम, राम
जय राधे श्याम, श्याम॥


अब तो इस मन के मंदिर में
प्रभु का हुआ बसेरा।
मगन हुआ मन मेरा,
छूटा जनम जनम का फेरा॥

मन की मुरलिया में
सुर का सिंगार बोले।
जय सिया राम राम
जय राधे श्याम श्याम॥


लगन लगी लीला धारी से,
जगी रे जगमग ज्योति।
राम नाम का हीरा पाया,
श्याम नाम का मोती॥

प्यासी दो अंखियो में
आंसुओ के धार बोले।
जय सिया राम राम
जय राधे श्याम श्याम॥


तन के तम्बूरे में,
दो सांसो की तार बोले।
जय सिया राम राम
जय राधे श्याम श्याम॥

जय सिया राम राम
जय राधे श्याम श्याम

Tan Ke Tambure Me
Tan Ke Tambure Me

तन के तम्बूरे में,
दो सांसो की तार बोले।
जय सिया राम राम
जय राधे श्याम श्याम॥

Ram Bhajans

Tan Ke Tambure Me

Anup Jalota

Tan Ke Tambure Me

Tan tambura, taar man
Adbhut hai ye saaj
Hari ke kar se baj raha
Hari ki hai awaaj

Tan ke tambure mein
do saanso ki taar bole
Jai Siya Ram Ram
Jai Radhe Shyam Shyam

Ab to is man ke mandir mein
Prabhu ka hua basera
Magan hua man mera,
chhoota janam janam ka phera

Man ki muraliya mein,
sur ka singaar bole
Jay Siya Ram Ram
Jay Radhe Shyam Shyam

Lagan lagi lila dhaari se,
jagi re jagamag jyoti
Ram naam ka hira paaya,
Shyam naam ka moti

Pyaasi do ankhiyo mein
aansuo ke dhaar bole
Jai Siya Ram Ram
Jai Radhey Shyam Shyam

Tan ke tambure mein
do saanso ki taar bole
Jai Siyaa Ram Ram
Jai Radhey Shyaam Shyaam

Jai Siya Ram Ram
Jai Radhe Shyam Shyam

Tan Ke Tambure Me
Tan Ke Tambure Me

Tan ke tambure mein
do saanso ki taar bole
Jai Siyaa Ram Ram
Jai Radhey Shyaam Shyaam

Shri Krishna Janmashtami Katha


जन्माष्टमी व्रत कथा – भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा


इंद्र ने नारदजी से पूछा –
हे ब्रह्मपुत्र, हे मुनियों में श्रेष्ठ, सभी शास्त्रों के ज्ञाता, हे देव, व्रतों में उत्तम उस व्रत को बताएँ, जिस व्रतसे मनुष्यों को मुक्ति और लाभ प्राप्त हो। तथा हे ब्रह्मन्‌! उस व्रत से प्राणियों को भोग व मोक्ष भी प्राप्त हो जाए।

इंद्र की बातों को सुनकर नारदजी ने कहा –
त्रेतायुग के अन्त में और द्वापर युग के प्रारंभ समय में निन्दितकर्म को करने वाला कंस नाम का एक अत्यंत पापी दैत्य हुआ। उस दुष्ट व नीच कर्मी दुराचारी कंस की देवकी नाम की एक सुंदर बहन थी और उसके गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र कंस का वध करेगा।

मधुसूदन मनमोहन माधव मुरलीमनोहर

नारदजी की बातें सुनकर इंद्र ने कहा –
हे महामते! उस दुराचारी कंस की कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। क्या यह संभव है कि देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवाँ पुत्र अपने मामा कंस की हत्या करेगा।

ज्योतिष ने कंस को कृष्ण के बारे में बताया

इंद्र की सन्देहभरी बातों को सुनकर नारदजी ने कहा –
हे अदितिपुत्र इंद्र! एक समय की बात है। उस दुष्ट कंस ने एक ज्योतिषी से पूछा कि ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ज्योतिर्विद! मेरी मृत्यु किस प्रकार और किसके द्वारा होगी।

ज्योतिषी बोले –
हे दानवों में श्रेष्ठ कंस! वसुदेव की धर्मपत्नी देवकी जो वाक्‌पटु है और आपकी बहन भी है। उसी के गर्भ से उत्पन्न उसका आठवां पुत्र जो कि शत्रुओं को भी पराजित कर इस संसार में ‘कृष्ण’ के नाम से विख्यात होगा, वही एक समय सूर्योदयकाल में आपका वध करेगा।


ज्योतिषी की बातें सुनकर कंस ने कहा –
हे दैवज, बुद्धिमानों में अग्रण्य अब आप यह बताएं कि देवकी का आठवां पुत्र किस मास में किस दिन मेरा वध करेगा।

ज्योतिषी बोले –
हे महाराज! माघ मास की शुक्ल पक्ष की तिथि को सोलह कलाओं से पूर्ण श्रीकृष्ण से आपका युद्ध होगा। उसी युद्ध में वे आपका वध करेंगे। इसलिए हे महाराज! आप अपनी रक्षा यत्नपूर्वक करें।

इतना बताने के पश्चात नारदजी ने इंद्र से कहा –
ज्योतिषी द्वारा बताए गए समय पर ही कंस की मृत्यु कृष्ण के हाथ निःसंदेह होगी।

तब इंद्र ने कहा –
हे मुनि! उस दुराचारी कंस की कथा का वर्णन कीजिए और बताइए कि कृष्ण का जन्म कैसे होगा तथा कंस की मृत्यु कृष्ण द्वारा किस प्रकार होगी।


इंद्र की बातों को सुनकर नारदजी ने पुनः कहना प्रारंभ किया –
उस दुराचारी कंस ने अपने एक द्वारपाल से कहा – मेरी इस प्राणों से प्रिय बहन की पूर्ण सुरक्षा करना।

द्वारपाल ने कहा – ऐसा ही होगा।

कंस के जाने के पश्चात उसकी छोटी बहन दुःखित होते हुए जल लेने के बहाने घड़ा लेकर तालाब पर गई। उस तालाब के किनारे एक घनघोर वृक्ष के नीचे बैठकर देवकी रोने लगी।


यशोदा और देवकी

उसी समय एक सुंदर स्त्री जिसका नाम यशोदा था, उसने आकर देवकी से प्रिय वाणी में कहा – हे कान्ते! इस प्रकार तुम क्यों विलाप कर रही हो। अपने रोने का कारण मुझसे बताओ।

तब देवकी ने यशोदा से कहा –
हे बहन! नीच कर्मों में आसक्त दुराचारी मेरा ज्येष्ठ भ्राता कंस है। उस दुष्ट भ्राता ने मेरे कई पुत्रों का वध कर दिया। इस समय मेरे गर्भ में आठवाँ पुत्र है। वह इसका भी वध कर डालेगा। इस बात में किसी प्रकार का संशय या संदेह नहीं है, क्योंकि मेरे ज्येष्ठ भ्राता को यह भय है कि मेरे अष्टम पुत्र से उसकी मृत्यु अवश्य होगी।


देवकी की बातें सुनकर यशोदा ने कहा –
हे बहन! विलाप मत करो। मैं भी गर्भवती हूँ। यदि मुझे कन्या हुई तो तुम अपने पुत्र के बदले उस कन्या को ले लेना। इस प्रकार तुम्हारा पुत्र कंस के हाथों मारा नहीं जाएगा।

तदनन्तर कंस ने अपने द्वारपाल से पूछा –
देवकी कहाँ है? इस समय वह दिखाई नहीं दे रही है।

तब द्वारपाल ने कंस से नम्रवाणी में कहा –
हे महाराज! आपकी बहन जल लेने तालाब पर गई हुई हैं।

यह सुनते ही कंस क्रोधित हो उठा और उसने द्वारपाल को उसी स्थान पर जाने को कहा जहां वह गई हुई है।

द्वारपाल की दृष्टि तालाब के पास देवकी पर पड़ी। तब उसने कहा कि आप किस कारण से यहां आई हैं।

उसकी बातें सुनकर देवकी ने कहा कि मेरे गृह में जल नहीं था, जिसे लेने मैं जलाशय पर आई हूँ। इसके पश्चात देवकी अपने गृह की ओर चली गई।


कंस ने पुनः द्वारपाल से कहा कि इस गृह में मेरी बहन की तुम पूर्णतः रक्षा करो।

अब कंस को इतना भय लगने लगा कि गृह के भीतर दरवाजों में विशाल ताले बंद करवा दिए और दरवाजे के बाहर दैत्यों और राक्षसों को पहरेदारी के लिए नियुक्त कर दिया।

कंस हर प्रकार से अपने प्राणों को बचाने के प्रयास कर रहा था।

कृष्ण जन्म का शुभ मुहूर्त

एक समय सिंह राशि के सूर्य में आकाश मंडल में जलाधारी मेघों ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया।

भादो मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को घनघोर अर्द्धरात्रि थी।

उस समय चंद्रमा भी वृष राशि में था, रोहिणी नक्षत्र बुधवार के दिन सौभाग्ययोग से संयुक्त चंद्रमा के आधी रात में उदय होने पर आधी रात के उत्तर एक घड़ी जब हो जाए तो श्रुति-स्मृति पुराणोक्त फल निःसंदेह प्राप्त होता है।

इस प्रकार बताते हुए नारदजी ने इंद्र से कहा –
ऐसे विजय नामक शुभ मुहूर्त में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और श्रीकृष्ण के प्रभाव से ही उसी क्षण बन्दीगृह के दरवाजे स्वयं खुल गए।

द्वार पर पहरा देने वाले पहरेदार राक्षस सभी मूर्च्छित हो गए।

देवकी ने उसी क्षण अपने पति वसुदेव से कहा –
हे स्वामी! आप निद्रा का त्याग करें और मेरे इस अष्टम पुत्र को गोकुल में ले जाएँ, वहाँ इस पुत्र को नंद गोप की धर्मपत्नी यशोदा को दे दें।

उस समय यमुनाजी पूर्णरूपसे बाढ़ग्रस्त थीं, किन्तु जब वसुदेवजी बालक कृष्ण को सूप में लेकर यमुनाजी को पार करने के लिए उतरे उसी क्षण बालक के चरणों का स्पर्श होते ही यमुनाजी अपने पूर्व स्थिर रूप में आ गईं।

देवकीनंदन देवेश द्वारकाधीश गोविंदा

किसी प्रकार वसुदेवजी गोकुल पहुँचे और नंद के गृह में प्रवेश कर उन्होंने अपना पुत्र तत्काल उन्हें दे दिया और उसके बदले में उनकी कन्या ले ली।

वे तत्क्षण वहां से वापस आकर कंस के बंदी गृह में पहुँच गए।

प्रातःकाल जब सभी राक्षस पहरेदार निद्रा से जागे तो कंस ने द्वारपाल से पूछा कि अब देवकी के गर्भ से क्या हुआ? इस बात का पता लगाकर मुझे बताओ।

द्वारपालों ने महाराज की आज्ञा को मानते हुए कारागार में जाकर देखा तो वहाँ देवकी की गोद में एक कन्या थी। जिसे देखकर द्वारपालों ने कंस को सूचित किया, किन्तु कंस को तो उस कन्या से भय होने लगा।

अतः वह स्वयं कारागार में गया और उसने देवकी की गोद से कन्या को झपट लिया और उसे एक पत्थर की चट्टान पर पटक दिया किन्तु वह कन्या विष्णु की माया से आकाश की ओर चली गई और अंतरिक्ष में जाकर विद्युत के रूप में परिणित हो गई।

उसने कंस से कहा कि हे दुष्ट! तुझे मारने वाला गोकुल में नंद के गृह में उत्पन्न हो चुका है और उसी से तेरी मृत्यु सुनिश्चित है।


मेरा नाम तो वैष्णवी है, मैं संसार के कर्ता भगवान विष्णु की माया से उत्पन्न हुई हूँ, इतना कहकर वह स्वर्ग की ओर चली गई।

उस आकाशवाणी को सुनकर कंस क्रोधित हो उठा।

उसने नंदजी के गृह में पूतना राक्षसी को कृष्ण का वध करने के लिए भेजा किन्तु जब वह राक्षसी कृष्ण को स्तनपान कराने लगी तो कृष्ण ने उसके स्तन से उसके प्राणों को खींच लिया और वह राक्षसी कृष्ण-कृष्ण कहते हुए मृत्यु को प्राप्त हुई।

जब कंस को पूतना की मृत्यु का समाचार प्राप्त हुआ तो उसने कृष्ण का वध करने के लिए क्रमशः केशी नामक दैत्य को अश्व के रूप में उसके पश्चात अरिष्ठ नामक दैत्य को बैल के रूप में भेजा, किन्तु ये दोनों भी कृष्ण के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए।

इसके पश्चात कंस ने काल्याख्य नामक दैत्य को कौवे के रूप में भेजा, किन्तु वह भी कृष्ण के हाथों मारा गया।

अपने बलवान राक्षसों की मृत्यु के आघात से कंस अत्यधिक भयभीत हो गया।

कृष्ण का कालिया नाग मर्दन

उसने द्वारपालों को आज्ञा दी कि नंद को तत्काल मेरे समक्ष उपस्थित करो।

द्वारपाल नंद को लेकर जब उपस्थित हुए तब कंस ने नंदजी से कहा कि यदि तुम्हें अपने प्राणों को बचाना है तो पारिजात के पुष्प ले आओ। यदि तुम नहीं ला पाए तो तुम्हारा वध निश्चित है।

कंस की बातों को सुनकर नंद ने ‘ऐसा ही होगा’ कहा और अपने गृह की ओर चले गए।

घर आकर उन्होंने संपूर्ण वृत्तांत अपनी पत्नी यशोदा को सुनाया, जिसे श्रीकृष्ण भी सुन रहे थे।

एक दिन श्रीकृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद खेल रहे थे और अचानक स्वयं ने ही गेंद को यमुना में फेंक दिया। यमुना में गेंद फेंकने का मुख्य उद्देश्य यही था कि वे किसी प्रकार पारिजात पुष्पों को ले आएँ। अतः वे कदम्ब के वृक्ष पर चढ़कर यमुना में कूद पड़े।

कृष्ण के यमुना में कूदने का समाचार श्रीधर नामक गोपाल ने यशोदा को सुनाया। यह सुनकर यशोदा भागती हुई यमुना नदी के किनारे आ पहुँचीं और उसने यमुना नदी की प्रार्थना करते हुए कहा – हे यमुना! यदि मैं बालक को देखूँगी तो भाद्रपद मास की रोहिणी युक्त अष्टमी का व्रत अवश्य करूंगी क्योंकि दया, दान, सज्जन प्राणी, ब्राह्मण कुल में जन्म, रोहिणियुक्त अष्टमी, गंगाजल, एकादशी, गया श्राद्ध और रोहिणी व्रत ये सभी दुर्लभ हैं।

हजारों अश्वमेध यज्ञ, सहस्रों राजसूय यज्ञ, दान तीर्थ और व्रत करने से जो फल प्राप्त होता है, वह सब कृष्णाष्टमी के व्रत को करने से प्राप्त हो जाता है।


यह बात नारद ऋषि ने इंद्र से कही।

इंद्र ने कहा- हे मुनियों में श्रेष्ठ नारद! यमुना नदी में कूदने के बाद उस बालरूपी कृष्ण ने पाताल में जाकर क्या किया? यह संपूर्ण वृत्तांत भी बताएँ।

नारद ने कहा- हे इंद्र! पाताल में उस बालक से नागराज की पत्नी ने कहा कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो, कहाँ से आए हो और यहाँ आने का क्या प्रयोजन है?

नागपत्नी बोलीं- हे कृष्ण! क्या तूने द्यूतक्रीड़ा की है, जिसमें अपना समस्त धन हार गया है। यदि यह बात ठीक है तो कंकड़, मुकुट और मणियों का हार लेकर अपने गृह में चले जाओ क्योंकि इस समय मेरे स्वामी शयन कर रहे हैं। यदि वे उठ गए तो वे तुम्हारा भक्षण कर जाएँगे।

नागपत्नी की बातें सुनकर कृष्ण ने कहा- ‘हे कान्ते! मैं किस प्रयोजन से यहाँ आया हूँ, वह वृत्तांत मैं तुम्हें बताता हूँ। समझ लो मैं कालियानाग के मस्तक को कंस के साथ द्यूत में हार चुका हूं और वही लेने मैं यहाँ आया हूँ।

चतुर्भुज गोविंदा देवकीनंदन द्वारकाधीश

बालक कृष्ण की इस बात को सुनकर नागपत्नी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और अपने सोए हुए पति को उठाते हुए उसने कहा – हे स्वामी! आपके घर यह शत्रु आया है। अतः आप इसका हनन कीजिए।

अपनी स्वामिनी की बातों को सुनकर कालियानाग निन्द्रावस्था से जाग पड़ा और बालक कृष्ण से युद्ध करने लगा।

इस युद्ध में कृष्ण को मूर्च्छा आ गई, उसी मूर्छा को दूर करने के लिए उन्होंने गरुड़ का स्मरण किया। स्मरण होते ही गरुड़ वहाँ आ गए। श्रीकृष्ण अब गरुड़ पर चढ़कर कालियानाग से युद्ध करने लगे और उन्होंने कालियनाग को युद्ध में पराजित कर दिया।

अब कलियानाग ने भलीभांति जान लिया था कि मैं जिनसे युद्ध कर रहा हूँ, वे भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ही हैं।

अतः उन्होंने कृष्ण के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया और पारिजात से उत्पन्न बहुत से पुष्पों को मुकुट में रखकर कृष्ण को भेंट किया।

जब कृष्ण चलने को हुए तब कालियानाग की पत्नी ने कहा हे स्वामी! मैं कृष्ण को नहीं जान पाई। हे जनार्दन मंत्र रहित, क्रिया रहित, भक्तिभाव रहित मेरी रक्षा कीजिए। हे प्रभु! मेरे स्वामी मुझे वापस दे दें।

तब श्रीकृष्ण ने कहा- हे सर्पिणी! दैत्यों में जो सबसे बलवान है, उस कंस के सामने मैं तेरे पति को ले जाकर छोड़ दूँगा अन्यथा तुम अपने गृह को चली जाओ। अब श्रीकृष्ण कालियानाग के फन पर नृत्य करते हुए यमुना के ऊपर आ गए।

तदनन्तर कालिया की फुंकार से तीनों लोक कम्पायमान हो गए। अब कृष्ण कंस की मथुरा नगरी को चल दिए। वहां कमलपुष्पों को देखकर यमुनाके मध्य जलाशय में वह कालिया सर्प भी चला गया।


इधर कंस भी विस्मित हो गया तथा कृष्ण प्रसन्नचित्त होकर गोकुल लौट आए।

उनके गोकुल आने पर उनकी माता यशोदा ने विभिन्न प्रकार के उत्सव किए।

अब इंद्र ने नारदजी से पूछा- हे महामुने! संसार के प्राणी बालक श्रीकृष्ण के आने पर अत्यधिक आनंदित हुए। आखिर श्रीकृष्ण ने क्या-क्या चरित्र किया? वह सभी आप मुझे बताने की कृपा करें।

कृष्ण एवं चाणूर का मल्लयुद्ध

नारद ने इंद्र से कहा- मन को हरने वाला मथुरा नगर यमुना नदी के दक्षिण भाग में स्थित है। वहां कंस का महाबलशायी भाई चाणूर रहता था। उस चाणूर से श्रीकृष्ण के मल्लयुद्ध की घोषणा की गई।

हे इंद्र! कृष्ण एवं चाणूर का मल्लयुद्ध अत्यंत आश्चर्यजनक था। चाणूर की अपेक्षा कृष्ण बालरूप में थे। भेरी शंख और मृदंग के शब्दों के साथ कंस और केशी इस युद्ध को मथुरा की जनसभा के मध्य में देख रहे थे। श्रीकृष्ण ने अपने पैरों को चाणूर के गले में फँसाकर उसका वध कर दिया। चाणूर की मृत्यु के पश्चात उनका मल्लयुद्ध केशी के साथ हुआ।

अंत में केशी भी युद्ध में कृष्ण के द्वारा मारा गया। केशी के मृत्युपरांत मल्लयुद्ध देख रहे सभी प्राणी श्रीकृष्ण की जय-जयकार करने लगे।

बालक कृष्ण द्वारा चाणूर और केशी का वध होना कंस के लिए अत्यंत हृदय विदारक था।

अतः उसने सैनिकों को बुलाकर उन्हें आज्ञा दी कि तुम सभी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर कृष्ण से युद्ध करो।

हे इंद्र! उसी क्षण श्रीकृष्ण ने गरुड़, बलराम तथा सुदर्शन चक्र का ध्यान किया, जिसके परिणामस्वरूप बलदेवजी सुदर्शन चक्र लेकर गरुड़ पर आरूढ़ होकर आए। उन्हें आता देख बालक कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को उनसे लेकर स्वयं गरुड़ की पीठ पर बैठकर न जाने कितने ही राक्षसों और दैत्यों का वध कर दिया, कितनों के शरीर अंग-भंग कर दिए।

इस युद्ध में श्रीकृष्ण और बलदेव ने असंख्य दैत्यों का वध किया। बलरामजी ने अपने आयुध शस्त्र हल से और कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को विशाल दैत्यों के समूह का सर्वनाश किया।

दुराचारी कंस का वध

जब अन्त में केवल दुराचारी कंस ही बच गया तो कृष्ण ने कहा- हे दुष्ट, अधर्मी, दुराचारी अब मैं इस महायुद्ध स्थल पर तुझसे युद्ध कर तथा तेरा वध कर इस संसार को तुझसे मुक्त कराऊँगा।

यह कहते हुए श्रीकृष्ण ने उसके केशों को पकड़ लिया और कंस को घुमाकर पृथ्वी पर पटक दिया, जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। कंस के मरने पर देवताओं ने शंखघोष व पुष्पवृष्टि की।

वहां उपस्थित समुदाय श्रीकृष्ण की जय-जयकार कर रहा था। कंस की मृत्यु पर नंद, देवकी, वसुदेव, यशोदा और इस संसार के सभी प्राणियों ने हर्ष पर्व मनाया।


Krishna Bhajan



Shri Krishna Janmashtami Katha

Rakesh Kala


Krishna Bhajan



Govind Jai Jai, Gopal Jai Jai – Lyrics in English


Govind Jai Jai, Gopal Jai Jai

Govind Jai Jai, Gopal Jai Jai
Radha-raman hari, Govind jai jai

Govind Jai Jai, Gopal Jai Jai
Radha-raman hari, Govind jai jai


Brahma ki jai jai, Vishnu ki jai jai
Uma- pati Shiv Shankar ki jai jai

Govind Jay Jay, Gopal Jay Jay
Radha raman hari, Govind jay jay


Radha ki jai jai, Rukmani ki jai jai
Mor-mukut Bansiwale ki jai jai

Govind Jai Jai, Gopal Jai Jai
Radha-raman hari, Govind jai jai


Ganga ki jai jai, Yamuna ki jai jai
Saraswati, Triveni ki jai jai

Govind Jai Jai, Gopal Jai Jai
Radha-raman hari, Govind jai jai


Ram ji ki jai jai, Shyam ji ki jai jai
Dasharath-kunvar chaaron bhaiyon ki jai jai

Govind Jai Jai, Gopal Jai Jai
Radha-raman hari, Govind jai jai


Krishna ki jai jai, Lakshmi ki jai jai
Krishna-Baladev dono bhaiyo ki jai jai

Govind Jay Jay, Gopal Jay Jay
Radha-raman hari, Govind jay jay


Govind Jai Jai, Gopal Jai Jai

Anup Jalota


Krishna Bhajan



Govind Jai Jai, Gopal Jai Jai – Lyrics in Hindi


गोविन्द जय – जय गोपाल जय – जय

गोविन्द जय-जय गोपाल जय-जय।
राधा-रमण हरि, गोविन्द जय-जय॥

गोविन्द जय-जय, गोपाल जय-जय।
राधा-रमण हरि, गोविन्द जय-जय॥


ब्रह्माकी जय-जय, विष्णूकी जय-जय।
उमा- पति शिव शंकरकी जय-जय॥

गोविन्द जय-जय, गोपाल जय-जय।
राधा-रमण हरि, गोविन्द जय-जय॥


राधाकी जय-जय, रुक्मनिकी जय-जय।
मोर-मुकुट बन्सीवाले की जय-जय॥

गोविन्द जय-जय, गोपाल जय-जय।
राधा-रमण हरि, गोविन्द जय-जय॥


गंगाकी जय-जय, यमुनाकी जय-जय।
सरस्वती, त्रिवेणीकी जय-जय॥

गोविन्द जय-जय गोपाल जय-जय।
राधा-रमण हरि, गोविन्द जय-जय॥


रामजीकी जय-जय, श्यामजीकी जय-जय।
दशरथ-कुँवर चारों भैयों की जय-जय॥

गोविन्द जय-जय गोपाल जय-जय।
राधा-रमण हरि, गोविन्द जय-जय॥


कृष्णाकी जय-जय, लक्ष्मीकी जय-जय।
कृष्ण-बलदेव दोनों भाइयोंकी जय-जय॥

गोविन्द जय-जय, गोपाल जय-जय।
राधा-रमण हरि, गोविन्द जय-जय॥


Govind Jai Jai, Gopal Jai Jai

Anup Jalota


Krishna Bhajan



Rang De Chunariya – Shyam Piya Mori Rang De Chunariya – Lyrics in English


Rang De Chunariya – Shyam Piya Mori Rang De Chunariya

Rang de chunariya
Shyam piya mori rang de chunariya

Rang de chunariya
Shyam piya mori rang de chunariya


Aisi rang de ke rang naahi chhoote
Dhobiya dhoe chaahe ye saari umariya

Shyam piya mori rang de chunariya
Shyam piya mori rang de chunariya


Laal na rangaavu main, Hari na rangaoo
Apne hi rang mein, rang de chunariya
Apne hi rang mein, rang de chunariya

Shyam piya mori rang de chunariya
Shyam piya mori rang de chunariya

Rang de chunariya
Shyam piya mori rang de chunariya

Bina rangaaye mai to ghar naahi jaungi
Shyam piya mori rang de chunariya


Jal se patlaa kaun hai?
Kaun bhoomi se bhaari?
Kaun agan se tej hai?
Kaun kaajal se kaali?

Jal se patala gyaan hai
Aur paap bhoomi se bhaari
Krodh agan se tej hai
Aur kalank kaajal se kaali

Mira ke prabhu giridhar naagar
Prabhu charanan mein, hari charanan mein,
Shyam charanan mein, laagi najariya

O shyam piya more, rang de chunariya
Rang de chunariya
Shyam piya mori rang de chunariya


Rang De Chunariya – Shyam Piya Mori Rang De Chunariya

Anup Jalota


Krishna Bhajan



Rang De Chunariya – Shyam Piya Mori Rang De Chunariya – Lyrics in Hindi


रंग दे चुनरिया, श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया

रंग दे चुनरिया
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया

रंग दे चुनरिया
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया


ऐसी रंग दे के रंग नाही छूटे
धोबिया धोए चाहे ये सारी उमरिया

श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया


लाल ना रंगाऊ मैं, हरी ना रंगाऊ
अपने ही रंग में रंग दे चुनरिया
अपने ही रंग में रंग दे चुनरिया

श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया

रंग दे चुनरिया
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया

बिना रंगाये मै तो घर नाही जाउंगी
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया


जल से पतला कौन है?
कौन भूमि से भारी?
कौन अगन से तेज है?
कौन काजल से काली?

जल से पतला ज्ञान है
और पाप भूमि से भारी
क्रोध अगन से तेज है
और कलंक काजल से काली


मीरा के प्रभु गिरिधर नागर
प्रभु चरणन में, हरी चरणन में,
श्याम चरणन में, लागी नजरिया

श्याम पिया मोरी, रंग दे चुनरिया
श्याम पिया मोरी, रंग दे चुनरिया

रंग दे चुनरिया
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया


Rang De Chunariya – Shyam Piya Mori Rang De Chunariya

Anup Jalota


Krishna Bhajan



Shri Banke Bihari Teri Aarti – Lyrics in Hindi with Meanings


श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
(हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ)

आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ॥
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ


मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे,
प्यारी बंसी मेरो मन मोहे।
देख छवि बलिहारी मैं जाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


चरणों से निकली गंगा प्यारी,
जिसने सारी दुनिया तारी।
मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


दास अनाथ के नाथ आप हो,
दुःख सुख जीवन प्यारे साथ आप हो।
हरी चरणों में शीश झुकाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


श्री हरीदास के प्यारे तुम हो,
मेरे मोहन जीवन धन हो।
देख युगल छवि बलि बलि जाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ,
हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ,
आरती गाऊं प्यारे तुमको रिझाऊं।

कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ,
श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊँ,
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ॥


Shri Banke Bihari Teri Aarti

Shri Mridul Krishna Shastri


Krishna Bhajan



श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ भजन का आध्यात्मिक अर्थ

ये भजन गीत भगवान कृष्ण की स्तुति में हैं, विशेष रूप से उनके विभिन्न दिव्य गुणों पर प्रकाश डालता हैं और उनके प्रति भक्ति व्यक्त करता हैं।

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊँ, कुंज बिहारी तेरी आरती गाऊँ, आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ॥

मैं आपके लिए आरती गाता हूं, भगवान कृष्ण। बांके बिहारी, कुंज बिहारी भगवान् कृष्ण के नाम है, जिन्हे शांत और सुंदर उपवन (कुंज) पसंद हैं। मैं आपकी दिव्य उपस्थिति में लीन होने के लिए प्रेम और भक्ति के साथ यह आरती प्रस्तुत करता हूं।

यह पंक्तिया भक्त की भगवान कृष्ण की पूजा और भक्ति के रूप में आरती गाने की इच्छा व्यक्त करती है, जिन्हें प्यार से बांके बिहारी और कुंज बिहारी के नाम से जाना जाता है।

मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे, प्यारी बंसी मेरो मन मोहे। देख छवि बलिहारी मैं जाऊँ।

हे भगवान, मोर का पंख आपके सिर पर बहुत सुंदर रूप से सुशोभित है, और आपकी बांसुरी की मधुर ध्वनि मेरे दिल को मोहित कर लेती है। आपके दिव्य रूप को देखकर, मैं पूरी तरह से मंत्रमुग्ध हो गया हूं और खुद को समर्पित कर रहा हूं।

इन पंक्तियों में, गायक ने भगवान कृष्ण के स्वरूप के कुछ आकर्षक पहलुओं का वर्णन किया है, जैसे उनके मुकुट पर मोर पंख और उनकी बांसुरी की मधुर धुन। भक्त उनकी दिव्य उपस्थिति से मुग्ध और अभिभूत होने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

चरणों से निकली गंगा प्यारी, जिसने सारी दुनिया तारी। मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ।

हे प्रभु, प्रिय नदी गंगा आपके चरणों से निकलती है। आप ही संपूर्ण जगत का पालन-पोषण करने वाले हैं। मैं आपके चरणकमलों को देखने का सौभाग्यशाली अवसर पाने के लिए उत्सुक हूँ।

यह श्लोक पवित्र नदी गंगा के स्रोत के रूप में भगवान कृष्ण की प्रशंसा करता है, और संपूर्ण ब्रह्मांड के निर्वाहक के रूप में उनकी सर्वोच्च शक्ति और अधिकार पर जोर देता है। भक्त कृष्ण के दिव्य चरणों के दर्शन की हार्दिक इच्छा व्यक्त करते हैं, जिन्हें बेहद पवित्र और पवित्र करने वाला माना जाता है।

दास अनाथ के नाथ आप हो, दुःख सुख जीवन प्यारे साथ आप हो। हरी चरणों में शीश झुकाऊँ।

तुम ही असहायों और अनाथों के स्वामी हो, और तुम ही जीवन में दुःख और सुख दोनों के साथी हो। मैं विनम्रतापूर्वक भगवान हरि (कृष्ण का दूसरा नाम) के चरणों में झुकता हूं।

इन पंक्तियों में, भक्त उन लोगों के रक्षक और देखभालकर्ता के रूप में भगवान कृष्ण में अपनी गहरी आस्था व्यक्त करते हैं जो असहाय हैं और जिनके पास भरोसा करने के लिए कोई और नहीं है। वे स्वीकार करते हैं कि कृष्ण उनके निरंतर साथी हैं, जो जीवन के सभी उतार-चढ़ाव में उनका साथ देते हैं। भक्त विनम्रतापूर्वक अपने आप को भगवान हरि के कमल चरणों में समर्पित कर देते हैं, उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन चाहते हैं।

श्री हरीदास के प्यारे तुम हो, मेरे मोहन जीवन धन हो। देख युगल छवि बलि बलि जाऊँ।

आप श्री हरिदास (कृष्ण के भक्त) के प्रिय हैं, और आप मेरे जीवन की सच्ची संपत्ति हैं, मेरे प्रिय। मैं दिव्य जोड़े (कृष्ण और राधा) की दिव्य छवि से पूरी तरह मंत्रमुग्ध हूं, और मैं भक्ति में अपना सब कुछ अर्पित करने के लिए तैयार हूं।

इन पंक्तियों में, भक्त भगवान कृष्ण को उनके भक्त श्री हरिदास के प्रिय के रूप में संबोधित करते हैं। वे कृष्ण को अपने जीवन का सबसे मूल्यवान और पोषित खजाना मानते हैं। भक्त कृष्ण और राधा की एक साथ दिव्य छवि (युगल छवि) से मोहित हो जाता है, जो आत्माओं के दिव्य मिलन का प्रतीक है। वे दिव्य जोड़े की भक्ति में खुद को पूरी तरह से समर्पित करने की इच्छा व्यक्त करते हैं।

कुल मिलाकर, ये भजन गीत भगवान कृष्ण के प्रति भक्त के गहरे प्रेम, समर्पण और श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। भक्त कृष्ण को जरूरत के समय दयालु और देखभाल करने वाले रक्षक और जीवन में खुशी और सांत्वना के अंतिम स्रोत के रूप में देखते हैं। उनकी भक्ति हार्दिक और वास्तविक है, और उन्हें श्री बांके बिहारी की आरती गाने में अत्यधिक आनंद मिलता है।

इस तरह यह भजन भक्तों के लिए अपने देवता के प्रति आराधना और श्रद्धा की भावनाओं को व्यक्त करने, उनके आध्यात्मिक संबंध को मजबूत करने और भक्ति और शांति की भावना को बढ़ावा देने का एक तरीका है।


Krishna Bhajan



Shri Banke Bihari Teri Aarti – Lyrics in English with Meanings


Shri Banke Bihari Teri Aarti

Shree Baanke Bihari teri aarti gaoon,
Kunj Bihari teri aarti gaoon,
(Hey giridhar teri aarti gaoon.)
aarti gaoon pyaare tujhako rijhaoon,
Shree Baanke Biharee teri aarti gaoon

Mor mukut prabhu sheesh pe sohe,
Pyaari bansi mero man mohe.
Dekh chhavi balihaari main jaoon,
Shree Bankey Bihari teri aarti gaoon.

Charano se nikalee Ganga pyaari,
Jisane saaree duniya taaree.
Main un charano ke darshan paoon,
Shree Baanke Bihari teri aarti gaoon.

Daas anaath ke naath aap ho,
Duhkh sukh jeevan pyaare saath aap ho.
Hari charanon mein sheesh jhukaoon,
Shree Baanke Bihari teri aarti gaoon.

Shree Haridas ke pyaare tum ho,
Mere mohan jeevan dhan ho.
Dekh yugal chhavi bali bali jaoon,
Shree Baanke Bihari teri aarti gaoon.

Aarti gaoon pyaare tujhako rijhaoon,
Hey giridhar teri aarti gaoon,
Aarti gaoon pyaare tujhako rijhaoon,

Kunj Bihari teri aarti gaoon,
Shyam Sundar teri aarti gaoon.
Shree Baanke Biharee teri aarti gaoon.


Shri Banke Bihari Teri Aarti

Shri Mridul Krishna Shastri


Krishna Bhajan



Shri Banke Bihari Teri Aarti Gaoon – Spiritual Meanings

These bhajan lyrics are in praise of Lord Krishna, specifically highlighting His various divine attributes and expressing devotion towards Him.

Shree Baanke Bihari teri aarti gaoon, Kunj Bihari teri aarti gaoon, aarti gaoon pyaare tujhako rijhaoon.

I sing the aarti (a devotional song of worship) for you, Lord Krishna. Baanke Bihari, Kunj Bihari other names for Krishna, who is fond of the serene and beautiful groves (Kunj). I offer this aarti with love and devotion, seeking to be absorbed in your divine presence.

This verse expresses the singer’s desire to sing the aarti as an act of worship and devotion to Lord Krishna, who is affectionately known by the names Baanke Bihari and Kunj Bihari.

Mor mukut prabhu sheesh pe sohe, Pyaari bansi mero man mohe. Dekh chhavi balihaari main jaoon.

O Lord, the peacock feather adorns Your head so beautifully, and the sweet sound of Your flute captivates my heart. Beholding Your divine form, I am completely mesmerized and offer myself in surrender.

In this verse, the singer describes some of the enchanting aspects of Lord Krishna’s appearance, such as the peacock feather on His crown and the melodious tunes of His flute. The devotee expresses their willingness to be enchanted and overwhelmed by His divine presence.

Charano se nikalee Ganga pyaari, Jisane saaree duniya taaree. Main un charano ke darshan paoon.

The beloved river Ganga emanates from Your feet, Lord. You are the one who sustains the entire universe. I yearn to have the blessed opportunity to behold Your lotus feet.

This verse praises Lord Krishna as the source of the holy river Ganga, emphasizing His supreme power and authority as the sustainer of the entire cosmos. The devotee expresses a heartfelt desire to have the darshan (sight) of Krishna’s divine feet, which are considered immensely sacred and purifying.

Daas anaath ke naath aap ho, Duhkh sukh jeevan pyaare saath aap ho. Hari charanon mein sheesh jhukaoon.

You are the Lord of the helpless and the orphan, and You are the companion in both sorrow and joy in life. I humbly bow down at the feet of Lord Hari (another name for Krishna).

In these lines, the devotee expresses their deep faith in Lord Krishna as the protector and caretaker of those who are helpless and have no one else to rely on. They acknowledge that Krishna is their constant companion, supporting them through all the ups and downs of life. The devotee humbly surrenders themselves at the lotus feet of Lord Hari, seeking His blessings and guidance.

Shree Haridas ke pyaare tum ho, Mere mohan jeevan dhan ho. Dekh yugal chhavi bali bali jaoon.

You are the beloved of Shree Haridas (a devotee of Krishna), and You are the true wealth of my life, my beloved. I am completely mesmerized by the divine image of the divine couple (Krishna and Radha), and I am ready to offer my all in devotion.

In these lines, the devotee addresses Lord Krishna as the beloved of His devotee, Shree Haridas. They consider Krishna as the most valuable and cherished treasure of their life. The devotee is captivated by the divine image of Krishna and Radha together (yugal chhavi), symbolizing the divine union of souls. They express their willingness to offer themselves completely in devotion to the divine couple.

Overall, these bhajan lyrics express the devotee’s profound love, surrender, and reverence towards Lord Krishna. The devotee sees Krishna as the compassionate and caring protector in times of need and as the ultimate source of joy and solace in life. Their devotion is heartfelt and genuine, and they find immense joy in singing the aarti of Shree Baanke Bihari, which is a beautiful way to express their devotion and seek spiritual fulfillment.


Krishna Bhajan



Tu Hai Mohan Mera – Lyrics in English


Tu Hai Mohan Mera, Mai Diwana Tera

Tu hai Mohan mera, mai diwana tera
Meri bigadi banaana tera kaam hai

Chhod di apni kashti tere naam par
Ab paar lagaana tera kaam hai

Tu hai Mohan mera, mai diwana tera
Tu hai Mohan mera, mai diwana tera

Maine tujhako bisaara gunahagaar hoon
Kaise mukh ko dikhaau, mai sharmasaar hoon

Jis tarah se vo rijhe vahi raah loon
Aisi raah pe chalaana tera kaam hai

Tu hai Mohan mera, mai diwana tera
Meri bigadi banaana tera kaam hai

Chhin kar dil ko toone kya jaadu kiya
Mera haathon se dil ko bekaabu kiya

Prem virah ki agni jale raat din
Ab lagi ko bujhaana tera kaam hai

Tu hai Mohan mera, mai diwana tera
Meri bigadi banaana tera kaam hai

Tu maalik hai, main hoon pujaari tera
Tu daata hai, main hoon bhikhaari tera

Mast hardam rahoon main teri yaad mein
Aisa jaam pilaana tera kaam hai

Tu hai Mohan mera, mai diwana tera
Meri bigadi banaana tera kaam hai

Hai sabako pata, mainne tujhako vara
Jaan de doongi toone juda jo kiya

Hogi badanaami teri, ye khud jaan lo
Meri laaj bachaana tera kaam hai

Tu hai Mohan mera, mai diwana tera
Meri bigadi banaana tera kaam hai

Hans ke tum chal diye, main roti rahi
Na mud ke sudhi, is abhaagin ki li
Ab aana na aana, tera kaam hai

Tu hai Mohan mera, mai diwana tera
Meri bigadi banaana tera kaam hai

Bada dard hai dil mein tere pyaar ka
Kaise darshan ho pyaare diladaar ka

Teri baanki ada ne hamen ghaayal kiya
Ab dava ko pilaana tera kaam hai

Tu hai Mohan mera, mai diwana tera
Meri bigadi banaana tera kaam hai

Tere charanon mein aakar jhukaaya hai sar
Nahin duniyaan mein koi tere jaisa dar
Charanon se lagaana tera kaam hai

Tu hai Mohan mera, mai diwana tera
Meri bigadi banaana tera kaam hai

Chhod di apni kashti tere naam par
Ab paar lagaana tera kaam hai

Tu hai Mohan mera, mai diwana tera
Meri bigadi banaana tera kaam hai

Tu Hai Mohan Mera, Mai Diwana Tera

Shri Gaurav Krishan Goswami


Krishna Bhajan