Aaj Mangalwar Hai, Mahaveer Ka Vaar Hai – Lyrics in Hindi


आज मंगलवार है, महावीर का वार है

मुखड़ा – स्थाई

[आज मंगलवार है,
महावीर का वार है, यह सच्चा दरबार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे,
उसका बेडा पार है॥] – (स्थाई – मुखड़ा )


अंतरा

चैत्र सुदी पूनम मंगल का, जन्म वीर ने पाया है।
लाल लंगोट गदा हाथ में, सिर पर मुकट सजाया है।
शंकर का अवतार है, महावीर का वार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, उसका बेडा पार है॥

[आज मंगलवार है….]


ब्रह्मा जी से ब्रह्म ज्ञान का, बल भी तुमने पाया है।
राम काज शिवशंकर ने वानर का रूप धारिया है॥
लीला अपरम्पार है, महावीर का वार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, उसका बेडा पार है॥

[आज मंगलवार है….]


बालपन में महावीर ने हरदम ध्यान लगाया है।
श्रम दिया ऋषियों ने तुमको ब्रह्म ध्यान लगाया है।
(Or श्राप दिया ऋषियों ने तुमको, बल का ध्यान भुलाया है।)
राम नाम आधार है, महावीर का वार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, उसका बेडा पार है॥

[आज मंगलवार है….]


राम जन्म हुआ अयोध्या में, कैसा नाच नचाया है।
कहा राम ने लक्ष्मण से, यह वानर मन को भाया है।
राम चरण से प्यार है, महावीर का वार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, उसका बेडा पार है॥

[आज मंगलवार है….]


पंचवटी से माता को जब रावण लेकर आया है।
लंका में जाकर तुमने माता का पता लगाया है।
अक्षय को दिया मार है, महावीर का वार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, उसका बेडा पार है॥

[आज मंगलवार है….]


मेघनाद ने ब्रह्म-पाश में तुमको जो फंसाया है।
ब्रह्म-पाश में फँस करके ब्रह्मा का मान बढाया है।
बजरंगी वाकी मार है, महावीर का वार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, उसका बेडा पार है॥

[आज मंगलवार है….]


लंका जलाई आपने जब रावण भी घबराया है।
श्री राम लखन को आ कर माँ का सन्देश सुनाया है।
सीता शोक अपार है, महावीर का वार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, उसका बेडा पार है॥

[आज मंगलवार है….]


शक्ति बाण लग्यो लक्ष्मण के बूटी लेने धाये हैं।
लाकर बूटी लक्ष्मण जी के तुमने प्राण बचाये हैं।
राम लखन से प्यार है, महावीर का वार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, उसका बेडा पार है॥

[आज मंगलवार है….]


राम चरण में महावीर ने हरदम ध्यान लगाया है।
राम चरण में महावीर ने हरदम ध्यान लगाया है।
सीने में राम दरबार है, महावीर का वार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, उसका बेडा पार है॥

[आज मंगलवार है….]


आज मंगलवार है, महावीर का वार है,
यह सच्चा दरबार है।
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे,
उसका बेडा पार है॥


Aaj Mangalwar Hai Mahaveer Ka Vaar Hai

Hariharan, Gulshan Kumar


Hanuman Bhajan



आज मंगलवार है, महावीर का वार है

जो व्यक्ति सच्चे मन से हनुमानजी की आराधना करता है, उसका बेडा पार हो जाता है। अर्थात्, वह सभी दुखों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

केवल पूजा-पाठ करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे सच्चे मन से करना चाहिए। यदि हम सच्चे मन से पूजा-पाठ करते हैं, तो भगवान हमारी प्रार्थना अवश्य सुनते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं।

हनुमानजी ने हमेशा भगवान राम के चरणों में ध्यान लगाया है। अर्थात्, उन्होंने अपना सर्वस्व भगवान राम को समर्पित कर दिया था।

यदि हमारे हृदय में राम नाम का वास है, तो हमें किसी भी प्रकार का भय नहीं रह जाता है। राम नाम ही हमारा आधार है।

इस प्रकार, इन पंक्तियों से हमें भक्ति, सच्चे मन से पूजा-पाठ करने, भगवान के प्रति समर्पण और राम नाम के महत्व की शिक्षा मिलती है।

इन पंक्तियों के आधार पर, हम अपने जीवन में निम्नलिखित बातों को अपनाने का प्रयास कर सकते हैं:

हम सच्चे मन से ईश्वर की आराधना करें।
हम ईश्वर के प्रति समर्पित रहें।
हम अपने जीवन में राम नाम का जाप करते रहें।
यदि हम इन बातों को अपने जीवन में अपनाएंगे, तो हमें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होगा और हम अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकेंगे।


Hanuman Bhajan



Hanuman Chalisa – with Meaning in Hindi


हनुमान चालीसा – अर्थसहित


दोहा (Doha):

श्री गुरु चरण सरोज रज,
निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु,
जो दायकु फल चार।

  • श्री गुरु चरण सरोज रज – श्री गुरु के चरणों की रज (धूलि) से
  • निज मन मुकुरु सुधारि – अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके
  • बरनऊं रघुवर बिमल जसु – श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं,
  • जो दायकु फल चार – जो चारों फलों को (अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को) देने वाला है।

बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेश विकार।
  • बुद्धिहीन तनु जानिके – आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है
  • सुमिरो पवन-कुमार – हे पवन कुमार! मैं आपका सुमिरन करता हूं।

(हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है।)

  • बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं – मुझे शारीरिक बल, सद्‍बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और
  • हरहु कलेश विकार – मेरे दुखों व दोषों का नाश कर दीजिए।

Chaupai (चौपाई):

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,
जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥1॥
राम दूत अतुलित बलधामा,
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा॥2॥
  • जय हनुमान – श्री हनुमान जी! आपकी जय हो।
  • ज्ञान गुण सागर – आप ज्ञान और गुणों के अथाह सागर हो।
  • जय कपीस– हे कपीश्वर! आपकी जय हो!
  • तिहुं लोक उजागर– तीनों लोकों में (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल लोक में) आपकी कीर्ति है।
  • राम दूत अतुलित बलधामा– हे राम दूत हनुमान, आपके समान दूसरा बलवान नहीं है।
  • अंजनी पुत्र पवन सुत नामा– हे अंजनी पुत्र, हे पवनपुत्र हनुमान, आपकी जय हो!
महावीर विक्रम बजरंगी,
कुमति निवार सुमति के संगी॥3॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा,
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥
  • महावीर विक्रम बजरंगी– हे बजरंग बली! आप महावीर और विशेष पराक्रम वाले है।
  • कुमति निवार– आप कुमति (खराब बुद्धि) को दूर करते है,
  • सुमति के संगी– और अच्छी बुद्धि वालों के साथी और सहायक है।
  • कंचन बरन बिराज सुबेसा– आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों से सुशोभित हैं
  • कानन कुण्डल कुंचित केसा– आप कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से शोभित हैं।

(आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।)

हाथबज्र और ध्वजा विराजे,
कांधे मूंज जनेऊ साजै॥5॥
शंकर सुवन केसरी नंदन,
तेज प्रताप महा जग वंदन॥6॥
  • हाथबज्र और ध्वजा विराजे– आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और
  • कांधे मूंज जनेऊ साजै– कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
  • शंकर सुवन केसरी नंदन– हे शंकर के अवतार! हे केसरी नंदन!
  • तेज प्रताप महा जग वंदन– आपके महान पराक्रम और यश की संसार भर में वन्दना होती है।
विद्यावान गुणी अति चातुर,
राम काज करिबे को आतुर॥7॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया॥8॥
  • विद्यावान गुणी अति चातुर– आप विद्या निधान और गुणवान है। और अत्यन्त कार्य कुशल होकर
  • राम काज करिबे को आतुर– श्री राम के काज करने के लिए आतुर रहते है।

(आप विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम के काज करने के लिए आतुर रहते है।)

  • प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया– आप श्री राम चरित सुनने में आनन्द रस लेते है।
  • राम लखन सीता मन बसिया– श्री राम, सीता और लक्ष्मण आपके हृदय में बसे रहते है।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा,
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥9॥
भीम रूप धरि असुर संहारे,
रामचन्द्र के काज संवारे॥10॥
  • सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा– आपने सूक्ष्म रूप (बहुत छोटा रूप) धारण करके सीता जी को दिखलाया और
  • बिकट रूप धरि– भयंकर रूप धारण करके
  • लंक जरावा– लंका को जलाया।
  • भीम रूप धरि– आपने भीम रूप (विकराल रूप) धारण करके
  • असुर संहारे– राक्षसों को मारा और
  • रामचन्द्र के काज संवारे– श्री रामचन्द्र जी के उद्‍देश्यों को सफल कराया।
लाय सजीवन लखन जियाये,
श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥11॥
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई,
तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12॥
  • लाय सजीवन लखन जियाये– आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया
  • श्री रघुवीर हरषि उर लाये– जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
  • रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई– श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की
  • तुम मम प्रिय भरत सम भाई– और कहा कि तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं,
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥13॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,
सारद सहित अहीसा॥14॥
  • सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।– तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है
  • अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं– यह कहकर श्री राम ने आपको हृदय से लगा लिया।

(श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।)

  • सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा– श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत-कुमार आदि मुनि, ब्रह्मा आदि देवता और
  • नारद, सारद सहित अहीसा– नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।

(सनकादिक ऋषि ब्रह्माजी के चार मानस पुत्र हैं। पुराणों में उनकी विशेष महत्ता है।
ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम चार पुत्रों का सृजन किया था – सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार। ये चारों सनकादिक ऋषि कहलाते हैं।)

जम कुबेर दिगपाल जहां ते,
कबि कोबिद कहि सके कहां ते॥15॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा,
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥16॥
  • जम कुबेर दिगपाल जहां ते– यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक,
  • कबि कोबिद कहि सके कहां ते– कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
  • तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा– आपने सुग्रीव जी पर उपकार किया
  • राम मिलाय राजपद दीन्हा – उन्हें श्रीराम से मिलाया, जिसके कारण वे राजा बने।

(आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा) बने।

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना,
लंकेस्वर भए सब जग जाना॥17॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू,
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18॥
  • तुम्हरो मंत्र विभीषण माना– आपके उपदेश का विभिषण ने पालन किया
  • लंकेस्वर भए सब जग जाना– जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।
  • जुग सहस्त्र जोजन पर भानू– जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुंचने के लिए कई वर्ष लगते है।
  • लील्यो ताहि मधुर फल जानू– उस सूर्य को (जो दो हजार योजन की दूरी पर स्थित है) आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19॥
दुर्गम काज जगत के जेते,
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20॥
  • प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि– आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर
  • जलधि लांघि गये अचरज नाहीं– समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
  • दुर्गम काज जगत के जेते– संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो,
  • सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते– वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।

(संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।)

राम दुआरे तुम रखवारे,
होत न आज्ञा बिनु पैसा रे॥21॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना,
तुम रक्षक काहू को डरना ॥22॥
  • राम दुआरे तुम रखवारे– श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है,
  • होत न आज्ञा बिनु पैसा रे– जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता है।

(अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना श्री राम कृपा दुर्लभ है)

  • सब सुख लहै तुम्हारी सरना– जो भी आपकी शरण में आते है, उस सभी को आनन्द प्राप्त होता है, और
  • तुम रक्षक काहू को डरना– जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।
आपन तेज सम्हारो आपै,
तीनों लोक हांक तें कांपै॥23॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै,
महावीर जब नाम सुनावै॥24॥
  • आपन तेज सम्हारो आपै– आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता,
  • तीनों लोक हांक तें कांपै– आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते है।
  • भूत पिशाच निकट नहिं आवै– वहां भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते।
  • महावीर जब नाम सुनावै– जहां महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है,

(जहां हनुमानजी का नाम सुनाया जाता है, वहां भूत, पिशाच पास नहीं फटक सकते।)

नासै रोग हरै सब पीरा,
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥25॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै,
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26॥
  • नासै रोग हरै सब पीरा– सब रोग चले जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है
  • जपत निरंतर हनुमत बीरा– जब मनुष्य वीर हनुमान जी का निरंतर जप करता है।

(वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।)

  • संकट तें हनुमान छुड़ावै– सब संकटों से हनुमानजी छुड़ाते है।
  • मन क्रम बचन ध्यान जो लावै– जब मनुष्य विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में हनुमानजी का ध्यान रखता है।

(हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते है।)

सब पर राम तपस्वी राजा,
तिनके काज सकल तुम साजा॥27॥
और मनोरथ जो कोइ लावै,
सोई अमित जीवन फल पावै॥28॥
  • सब पर राम तपस्वी राजा– तपस्वी राजा प्रभु श्री राम सबसे श्रेष्ठ है,
  • तिनके काज सकल तुम साजा– उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।
  • और मनोरथ जो कोइ लावै– जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करें
  • सोई अमित जीवन फल पावै– तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।

(जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करें तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।)

चारों जुग परताप तुम्हारा,
है परसिद्ध जगत उजियारा॥29॥
साधु सन्त के तुम रखवारे,
असुर निकंदन राम दुलारे॥30॥
  • चारों जुग परताप तुम्हारा– चारो युगों में (सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में) आपका यश फैला हुआ है,
  • है परसिद्ध जगत उजियारा– जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।
  • साधु सन्त के तुम रखवारे– आप सज्जनों की रक्षा करते है
  • असुर निकंदन राम दुलारे– और हे श्री राम के दुलारे! आप दुष्टों का नाश करते हो।
    • (हे श्री राम के दुलारे! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।)
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता,
अस बर दीन जानकी माता॥31॥
राम रसायन तुम्हरे पासा,
सदा रहो रघुपति के दासा॥32॥
  • अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता– आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते
  • अस बर दीन जानकी माता– ऐसा वरदान आपको माता श्री जानकी से मिला हुआ है,

(आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है।)
आठ सिद्धियां:
1.) अणिमा- जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है।
2.) महिमा- जिसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।
3.) गरिमा- जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।
4.) लघिमा- जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाता है।
5.) प्राप्ति- जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।
6.) प्राकाम्य- जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकता है, आकाश में उड़ सकता है।
7.) ईशित्व- जिससे सब पर शासन का सामर्थ्य हो जाता है।
8.) वशित्व- जिससे दूसरों को वश में किया जाता है।

  • राम रसायन तुम्हरे पासा– आपके पास असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
  • सदा रहो रघुपति के दासा– आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते है।

(आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते है, जिससे आपके पास असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।)

तुम्हरे भजन राम को पावै,
जनम जनम के दुख बिसरावै॥33॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई,
जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥34॥
  • तुम्हरे भजन राम को पावै– आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते है और
  • जनम जनम के दुख बिसरावै– जन्म जन्मांतर के दुख दूर होते है।
  • अन्त काल रघुबर पुर जाई– अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते है और
  • जहां जन्म हरि भक्त कहाई– यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलाएंगे।
और देवता चित न धरई,
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35॥
संकट कटै मिटै सब पीरा,
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36॥
  • और देवता चित न धरई– अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती, जब
  • हनुमत सेई सर्व सुख करई– हनुमान जी की सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है।

(हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।)

  • संकट कटै मिटै सब पीरा– सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।
  • जो सुमिरै हनुमत बलबीरा– जो हनुमानजी का सुमिरन करता रहता है।

(हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।)

जय जय जय हनुमान गोसाईं,
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥37॥
जो सत बार पाठ कर कोई,
छूटहि बंदि महा सुख होई॥38॥
  • जय जय जय हनुमान गोसाईं– हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो!
  • कृपा करहु गुरु देव की नाई– आप मुझ पर श्री गुरुजी के समान कृपा कीजिए।
  • जो सत बार पाठ कर कोई– जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा
  • छूटहि बंदि महा सुख होई– वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परम सुख की प्राप्ति होगी।

(जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा।)

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा,
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा,
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥40॥
  • जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा– जो यह हनुमान चालीसा पढ़ेगा
  • होय सिद्धि साखी गौरीसा– उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी। भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है।

(भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।)

  • तुलसीदास सदा हरि चेरा– हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है।
  • कीजै नाथ हृदय मंह डेरा– इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए।

दोहा (Doha)

पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सूरभूप॥
  • पवन तनय संकट हरन– हे पवन कुमार! हे संकट मोचन (संकट हरने वाले)
  • मंगल मूरति रूप। – आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं।
  • राम लखन सीता सहित– हे बजरंगबली! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित
  • हृदय बसहु सूरभूप॥– मेरे हृदय में निवास कीजिए।

(हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।)

Hanuman Chalisa – Jai Hanuman Gyan Gun Sagar

Hanuman Chalisa – Jai Hanuman Gyan Gun Sagar – Lyrics in Hindi


हनुमान चालीसा – जय हनुमान ज्ञान गुन सागर

दोहा:
श्रीगुरु चरण सरोज रज,
निज मनु मुकुर सुधार।
बरनउ रघुवर बिमल जसु,
जो दायकु फल चार॥

बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि,
हरहु कलेश विकार॥


हनुमान चालीसा

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥


महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुँचित केसा॥


हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जगवंदन॥


विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मनबसिया॥


सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे॥


लाय सजीवन लखन जियाए।
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥
रघुपति कीन्ही बहुत बढाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥


सहस बदन तुम्हरो जस गावै।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥


जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥


तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥


राम दुआरे तुम रखवारे।
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहु को डरना॥


आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तै कापै॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥


नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट ते हनुमान छुडावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥


सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥


चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥


तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥


और देवता चित्त ना धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥


जै जै जै हनुमान गुसाईँ।
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥


जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥


पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप॥



Hanuman Chalisa – Jai Hanuman Gyan Gun Sagar

Hariharan


Hanuman Bhajan



Sunderkand – 01


Sunderkand in Ramayan

सुंदरकाण्ड रामायण और रामचरितमानस का एक सोपान (भाग) है। हनुमानजी की शक्ति और सफलता के लिए सुंदरकाण्ड को याद किया जाता है।

इस सोपान के मुख्य घटनाक्रम है – हनुमानजी का लंका की ओर प्रस्थान, विभीषण से भेंट, सीताजी से भेंट करके उन्हें श्री राम की मुद्रिका देना, अक्षय कुमार का वध, लंका दहन और लंका से वापसी।

महाकाव्य रामायण में सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण रामायण कथा श्रीराम के गुणों और उनके पुरुषार्थ को दर्शाती है। किन्तु सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है, जो सिर्फ हनुमानजी की शक्ति और विजय का कांड है।

Hanuman Kripa

हनुमानजी का सीता शोध के लिए लंका प्रस्थान

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।
सहि दुख कंद मूल फल खाई॥

जाम्बवान के सुहावने वचन सुनकर हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लगे॥
और हनुमानजी ने कहा की हे भाइयो! आप लोग कन्द, मूल व फल खा, दुःख सह कर मेरी राह देखना॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
जब लगि आवौं सीतहि देखी।
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा।
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥

जबतक मै सीताजीको देखकर लौट न आऊँ, क्योंकि कार्य सिद्ध होने पर मन को बड़ा हर्ष होगा॥

ऐसे कह, सबको नमस्कार करके, रामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धरकर, प्रसन्न होकर हनुमानजी लंका जाने के लिए चले॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी।
तरकेउ पवनतनय बल भारी॥

समुद्र के तीर पर एक सुन्दर पहाड़ था। उसपर कूदकर हनुमानजी कौतुकी से चढ़ गए॥
फिर वारंवार रामचन्द्रजी का स्मरण करके, बड़े पराक्रम के साथ हनुमानजी ने गर्जना की॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता।
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।
एही भाँति चलेउ हनुमाना॥

जिस पहाड़ पर हनुमानजी ने पाँव रखे थे, वह पहाड़ तुरंत पाताल के अन्दर चला गया॥
और जैसे श्रीरामचंद्रजी का अमोघ बाण जाता है, ऐसे हनुमानजी वहा से चले॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥

समुद्र ने हनुमानजी को श्रीराम (रघुनाथ) का दूत जानकर मैनाक नाम पर्वत से कहा की हे मैनाक, तू जा, और इनको ठहरा कर श्रम मिटानेवाला हो॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मैनाक पर्वत की हनुमानजी से विनती

सोरठा – Sunderkand

सिन्धुवचन सुनी कान, तुरत उठेउ मैनाक तब।
कपिकहँ कीन्ह प्रणाम, बार बार कर जोरिकै॥

समुद्रके वचन कानो में पड़तेही मैनाक पर्वत वहांसे तुरंत उठा और हनुमानजीके पास आकर वारंवार हाथ जोड़कर उसने हनुमानजीको प्रणाम किया॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

दोहा (Doha – Sunderkand)

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ॥1॥

हनुमानजी ने उसको अपने हाथसे छूकर फिर उसको प्रणाम किया, और कहा की, रामचन्द्रजीका का कार्य किये बिना मुझको विश्राम कहा है? ॥1॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजीकी सुरसा से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जात पवनसुत देवन्ह देखा।
जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता।
पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥

हनुमानजी को जाते देखकर उसके बल और बुद्धि के वैभव को जानने के लिए देवताओं ने नाग माता सुरसा को भेजा।
उस नागमाताने आकर हनुमानजी से यह बात कही॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा।
सुनत बचन कह पवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं।
सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥

आज तो मुझको देवताओं ने यह अच्छा आहार दिया। यह बात सुन हँस कर, हनुमानजी बोले॥
– मैं रामचन्द्रजी का काम करके लौट आऊ और सीताजी की खबर रामचन्द्रजी को सुना दूं॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
तब तव बदन पैठिहउँ आई।
सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना।
ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥

फिर हे माता! मै आकर आपके मुँह में प्रवेश करूंगा। अभी तू मुझे जाने दे। इसमें कुछभी फर्क नहीं पड़ेगा। मै तुझे सत्य कहता हूँ॥
जब उसने किसी उपायसे उनको जाने नहीं दिया, तब हनुमानजी ने कहा कि तू क्यों देरी करती है? तू मुझको नही खा सकती॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।
कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥

सुरसाने अपना मुंह एक योजनभरमें फैलाया। हनुमानजी ने अपना शरीर दो योजन विस्तारवाला किया॥
सुरसा ने अपना मुँह सोलह (१६) योजनमें फैलाया। हनुमानजीने अपना शरीर तुरंत बत्तीस (३२) योजन बड़ा किया॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप देखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥

सुरसा ने जैसा जैसा मुंह फैलाया, हनुमानजीने वैसेही अपना स्वरुप उससे दुगना दिखाया॥
जब सुरसा ने अपना मुंह सौ योजन (चार सौ कोस का) में फैलाया, तब हनुमानजी तुरंत बहुत छोटा स्वरुप धारण कर॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा।
मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥

उसके मुंहमें पैठ कर (घुसकर) झट बाहर चले आए। फिर सुरसा से विदा मांग कर हनुमानजी ने प्रणाम किया॥
उस वक़्त सुरसा ने हनुमानजी से कहा की हे हनुमान! देवताओंने मुझको जिसके लिए भेजा था, वह तेरा बल और बुद्धि का भेद मैंने अच्छी तरह पा लिया है॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

दोहा (Doha – Sunderkand)

राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान ॥2॥

तुम बल और बुद्धि के भण्डार हो, सो श्रीरामचंद्रजी के सब कार्य सिद्ध करोगे। ऐसे आशीर्वाद देकर सुरसा तो अपने घर को चली, और हनुमानजी प्रसन्न होकर लंकाकी ओर चले ॥2॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की छाया पकड़ने वाले राक्षस से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई।
करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं।
जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥

समुद्र के अन्दर एक राक्षस रहता था। सो वह माया करके आकाशचारी पक्षी और जंतुओको पकड़ लिया करता था॥
जो जीवजन्तु आकाश में उड़कर जाता, उसकी परछाई जल में देखकर, परछाई को जल में पकड़ लेता॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई।
एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा।
तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥

परछाई को जल में पकड़ लेता, जिससे वह जिव जंतु फिर वहा से सरक नहीं सकता। इसतरह वह हमेशा आकाशचारी जिवजन्तुओ को खाया करता था॥
उसने वही कपट हनुमानसे किया। हनुमान ने उसका वह छल तुरंत पहचान लिया॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
ताहि मारि मारुतसुत बीरा।
बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥
तहाँ जाइ देखी बन सोभा।
गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥

धीर बुद्धिवाले पवनपुत्र वीर हनुमानजी उसे मारकर समुद्र के पार उतर गए॥
वहा जाकर हनुमानजी वन की शोभा देखते है कि भ्रमर मकरंद के लोभसे गुँजाहट कर रहे है॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी लंका पहुंचे

नाना तरु फल फूल सुहाए।
खग मृग बृंद देखि मन भाए॥
सैल बिसाल देखि एक आगें।
ता पर धाइ चढ़ेउ भय त्यागें॥

अनेक प्रकार के वृक्ष फल और फूलोसे शोभायमान हो रहे है। पक्षी और हिरणोंका झुंड देखकर मन मोहित हुआ जाता है॥
वहा सामने हनुमान एक बड़ा विशाल पर्वत देखकर निर्भय होकर उस पहाड़पर कूदकर चढ़ बैठे॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
उमा न कछु कपि कै अधिकाई।
प्रभु प्रताप जो कालहि खाई॥
गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी।
कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥

महदेव जी कहते है कि हे पार्वती! इसमें हनुमान की कुछ भी अधिकता नहीं है। यह तो केवल एक रामचन्द्रजीके ही प्रताप का प्रभाव है कि जो कालकोभी खा जाता है॥
पर्वत पर चढ़कर हनुमानजी ने लंका को देखा, तो वह ऐसी बड़ी दुर्गम है की जिसके विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
अति उतंग जलनिधि चहु पासा।
कनक कोट कर परम प्रकासा॥

पहले तो वह पुरी बहुत ऊँची, फिर उसके चारो ओर समुद्र की खाई।
उसपर भी सुवर्णके कोटका महाप्रकाश कि जिससे नेत्र चकाचौंध हो जावे॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

लंका का वर्णन

छंद – Sunderkand Lyrics

कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥

उस नगरीका रत्नों से जड़ा हुआ सुवर्ण का कोट अतिव सुन्दर बना हुआ है। चौहटे, दुकाने व सुन्दर गलियों के बहार उस सुन्दर नगरी के अन्दर बनी है॥
जहा हाथी, घोड़े, खच्चर, पैदल व रथोकी गिनती कोई नहीं कर सकता। और जहा महाबली अद्भुत रूपवाले राक्षसोके सेनाके झुंड इतने है की जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥

जहा वन, बाग़, बागीचे, बावडिया, तालाब, कुएँ, बावलिया शोभायमान हो रही है। जहां मनुष्यकन्या, नागकन्या, देवकन्या और गन्धर्वकन्याये विराजमान हो रही है – जिनका रूप देखकर मुनिलोगोका मन मोहित हुआ जाता है॥
कही पर्वत के समान बड़े विशाल देहवाले महाबलिष्ट मल्ल गर्जना करते है और अनेक अखाड़ों में अनेक प्रकारसे भिड रहे है और एक एकको आपस में पटक पटक कर गर्जना कर रहे है॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥

जहा कही विकट शरीर वाले करोडो भट चारो तरफसे नगरकी रक्षा करते है और कही वे राक्षस लोग भैंसे, मनुष्य, गौ, गधे, बकरे और पक्षीयोंको खा रहे है॥
राक्षस लोगो का आचरण बहुत बुरा है। इसीलिए तुलसीदासजी कहते है कि मैंने इनकी कथा बहुत संक्षेपसे कही है। ये महादुष्ट है, परन्तु रामचन्द्रजीके बानरूप पवित्र तीर्थनदीके अन्दर अपना शरीर त्यागकर गति अर्थात मोक्षको प्राप्त होंगे॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

दोहा (Doha – Sunderkand)

पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार ॥3॥

हनुमानजी ने बहुत से रखवालो को देखकर मन में विचार किया की मै छोटा रूप धारण करके नगर में प्रवेश करूँ ॥3॥


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Sunderkand – Audio + Chaupai – 01


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Sunderkand Audio – 1


Listen to Sunderkand Chaupai of this page

Shri Ashvinkumar Pathak (Guruji)
श्री अश्विन कुमार पाठक (गुरूजी)
(Jay Shree Ram Sundarkand Parivar)

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मंगल भवन अमंगल हारी,
द्रवहु सुदसरथ अचर बिहारी॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी का सीता शोध के लिए लंका प्रस्थान

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।
सहि दुख कंद मूल फल खाई॥


जब लगि आवौं सीतहि देखी।
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा।
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥


सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी।
तरकेउ पवनतनय बल भारी॥


जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता।
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।
एही भाँति चलेउ हनुमाना॥


जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मैनाक पर्वत की हनुमानजी से विनती

दोहा (Doha – Sunderkand)

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ॥1॥

हनुमानजीकी सुरसा से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जात पवनसुत देवन्ह देखा।
जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता।
पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥


आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा।
सुनत बचन कह पवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं।
सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥


तब तव बदन पैठिहउँ आई।
सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना।
ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥


जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।
कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥


जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप देखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥


बदन पइठि पुनि बाहेर आवा।
मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान ॥2॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की छाया पकड़ने वाले राक्षस से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई।
करि माया नभु के खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं।
जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥


गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई।
एहि बिधि सदा गगनचर खाई॥
सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा।
तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा॥


ताहि मारि मारुतसुत बीरा।
बारिधि पार गयउ मतिधीरा॥
तहाँ जाइ देखी बन सोभा।
गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी लंका पहुंचे

नाना तरु फल फूल सुहाए।
खग मृग बृंद देखि मन भाए॥
सैल बिसाल देखि एक आगें।
ता पर धाइ चढ़ेउ भय त्यागें॥


उमा न कछु कपि कै अधिकाई।
प्रभु प्रताप जो कालहि खाई॥
गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी।
कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी॥


अति उतंग जलनिधि चहु पासा।
कनक कोट कर परम प्रकासा॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

लंका का वर्णन

छंद – Sunderkand Lyrics

कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥


बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥


करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार।
अति लघु रूप धरों निसि नगर करौं पइसार ॥3॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की लंकिनी से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

मसक समान रूप कपि धरी।
लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी।
सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥


जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा।
मोर अहार जहाँ लगि चोरा॥
मुठिका एक महा कपि हनी।
रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥


पुनि संभारि उठी सो लंका।
जोरि पानि कर बिनय ससंका॥
जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा।
चलत बिरंच कहा मोहि चीन्हा॥


बिकल होसि तैं कपि कें मारे।
तब जानेसु निसिचर संघारे॥
तात मोर अति पुन्य बहूता।
देखेउँ नयन राम कर दूता॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ॥4॥

हनुमानजी का लंका में प्रवेश

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा।
हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई॥


गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही।
राम कृपा करि चितवा जाही॥
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना।
पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की लंका में सीताजी की खोज

मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा।
देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥
गयउ दसानन मंदिर माहीं।
अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥


सयन किएँ देखा कपि तेही।
मंदिर महुँ न दीखि बैदेही॥
भवन एक पुनि दीख सुहावा।
हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ।
नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरष कपिराई ॥5॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की विभीषण से भेंट

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

लंका निसिचर निकर निवासा।
इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा।
तेहीं समय बिभीषनु जागा॥


राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा।
हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥
एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी।
साधु ते होइ न कारज हानी॥


बिप्र रूप धरि बचन सुनाए।
सुनत बिभीषन उठि तहँ आए॥
करि प्रणाम पूँछी कुसलाई।
बिप्र कहहु निज कथा बुझाई॥


की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई।
मोरें हृदय प्रीति अति होई॥
की तुम्ह रामु दीन अनुरागी।
आयहु मोहि करन बड़भागी॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ॥6॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और विभीषण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी।
जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा।
करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥


तामस तनु कछु साधन नाहीं।
प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता।
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥


जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा।
तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥
सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती।
करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥


कहहु कवन मैं परम कुलीना।
कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥
प्रात लेइ जो नाम हमारा।
तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर ॥7॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और विभीषण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जानतहूँ अस स्वामि बिसारी।
फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी॥
एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा।
पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा॥


पुनि सब कथा बिभीषन कही।
जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥
तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता।
देखी चहउँ जानकी माता॥


जुगुति बिभीषन सकल सुनाई।
चलेउ पवनसुत बिदा कराई॥
करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ।
बन असोक सीता रह जहवाँ॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी ने अशोकवन में सीताजी को देखा

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रणामा।
बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥
कृस तनु सीस जटा एक बेनी।
जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन।
परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन ॥8॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

अशोक वाटिका में रावण और सीताजी का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

तरु पल्लव महँ रहा लुकाई।
करइ बिचार करौं का भाई॥
तेहि अवसर रावनु तहँ आवा।
संग नारि बहु किएँ बनावा॥


बहु बिधि खल सीतहि समुझावा।
साम दान भय भेद देखावा॥
कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी।
मंदोदरी आदि सब रानी॥


तव अनुचरीं करउँ पन मोरा।
एक बार बिलोकु मम ओरा॥
तृन धरि ओट कहति बैदेही।
सुमिरि अवधपति परम सनेही॥


सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा।
कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥
अस मन समुझु कहति जानकी।
खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥


सठ सूनें हरि आनेहि मोही।
अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।
परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन ॥9॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

रावण और सीताजी का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सीता तैं मम कृत अपमाना।
कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥
नाहिं त सपदि मानु मम बानी।
सुमुखि होति न त जीवन हानी॥


स्याम सरोज दाम सम सुंदर।
प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥
सो भुज कंठ कि तव असि घोरा।
सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥


चंद्रहास हरु मम परितापं।
रघुपति बिरह अनल संजातं॥
सीतल निसित बहसि बर धारा।
कह सीता हरु मम दुख भारा॥


सुनत बचन पुनि मारन धावा।
मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई।
सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥


मास दिवस महुँ कहा न माना।
तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद ॥10॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

त्रिजटा का स्वप्न

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

त्रिजटा नाम राच्छसी एका।
राम चरन रति निपुन बिबेका॥
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना।
सीतहि सेइ करहु हित अपना॥


सपनें बानर लंका जारी।
जातुधान सेना सब मारी॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा।
मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥


एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई।
लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥
नगर फिरी रघुबीर दोहाई।
तब प्रभु सीता बोलि पठाई॥


यह सपना मैं कहउँ पुकारी।
होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥
तासु बचन सुनि ते सब डरीं।
जनकसुता के चरनन्हि परीं॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥11॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

सीताजी और त्रिजटा का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी।
मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥
तजौं देह करु बेगि उपाई।
दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥


आनि काठ रचु चिता बनाई।
मातु अनल पुनि देहि लगाई॥
सत्य करहि मम प्रीति सयानी।
सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥


श्री राम, जय राम, जय जय राम

त्रिजटा ने सीताजी को सान्तवना दी

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सुनत बचन पद गहि समुझाएसि।
प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी।
अस कहि सो निज भवन सिधारी॥


कह सीता बिधि भा प्रतिकूला।
मिलिहि न पावक मिटिहि न सूला॥
देखिअत प्रगट गगन अंगारा।
अवनि न आवत एकउ तारा॥


पावकमय ससि स्रवत न आगी।
मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका।
सत्य नाम करु हरु मम सोका॥


नूतन किसलय अनल समाना।
देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥
देखि परम बिरहाकुल सीता।
सो छन कपिहि कलप सम बीता॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ ॥12॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमान सीताजी से मिले

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

तब देखी मुद्रिका मनोहर।
राम नाम अंकित अति सुंदर॥
चकित चितव मुदरी पहिचानी।
हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥


जीति को सकइ अजय रघुराई।
माया तें असि रचि नहिं जाई॥
सीता मन बिचार कर नाना।
मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥


रामचंद्र गुन बरनैं लागा।
सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई।
आदिहु तें सब कथा सुनाई॥


श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई।
कही सो प्रगट होति किन भाई॥
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ।
फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ॥


राम दूत मैं मातु जानकी।
सत्य सपथ करुनानिधान की॥
यह मुद्रिका मातु मैं आनी।
दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥


नर बानरहि संग कहु कैसें।
कही कथा भइ संगति जैसें॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

दोहा (Doha – Sunderkand)

कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास
जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास ॥13॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमान ने सीताजी को आश्वासन दिया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी।
सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी॥
बूड़त बिरह जलधि हनुमाना।
भयहु तात मो कहुँ जलजाना॥


अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी।
अनुज सहित सुख भवन खरारी॥
कोमलचित कृपाल रघुराई।
कपि केहि हेतु धरी निठुराई॥


सहज बानि सेवक सुखदायक।
कबहुँक सुरति करत रघुनायक॥
कबहुँ नयन मम सीतल ताता।
होइहहिं निरखि स्याम मृदु गाता॥


बचनु न आव नयन भरे बारी।
अहह नाथ हौं निपट बिसारी॥
देखि परम बिरहाकुल सीता।
बोला कपि मृदु बचन बिनीता॥


मातु कुसल प्रभु अनुज समेता।
तव दुख दुखी सुकृपा निकेता॥
जनि जननी मानह जियँ ऊना।
तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।
अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर ॥14॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमान ने सीताजीको रामचन्द्रजीका सन्देश दिया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

कहेउ राम बियोग तव सीता।
मो कहुँ सकल भए बिपरीता॥
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू।
कालनिसा सम निसि ससि भानू॥


कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा।
बारिद तपत तेल जनु बरिसा॥
जे हित रहे करत तेइ पीरा।
उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा॥


कहेहू तें कछु दुख घटि होई।
काहि कहौं यह जान न कोई॥
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा।
जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥


सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं।
जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं॥
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही।
मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही॥


कह कपि हृदयँ धीर धरु माता।
सुमिरु राम सेवक सुखदाता॥
उर आनहु रघुपति प्रभुताई।
सुनि मम बचन तजहु कदराई॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु ॥15॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

सीताजीके मन में संदेह

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जौं रघुबीर होति सुधि पाई।
करते नहिं बिलंबु रघुराई॥
राम बान रबि उएँ जानकी।
तम बरुथ कहँ जातुधान की॥


अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई।
प्रभु आयुस नहिं राम दोहाई॥
कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥


निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना।
जातुधान अति भट बलवाना॥


मोरें हृदय परम संदेहा।
सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥
कनक भूधराकार सरीरा।
समर भयंकर अतिबल बीरा॥


सीता मन भरोस तब भयऊ।
पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल ॥16॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

सिताजीने हनुमानको आशीर्वाद दिया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

मन संतोष सुनत कपि बानी।
भगति प्रताप तेज बल सानी॥
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना।
होहु तात बल सील निधाना॥


अजर अमर गुननिधि सुत होहू।
करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना।
निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥


बार बार नाएसि पद सीसा।
बोला बचन जोरि कर कीसा॥
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता।
आसिष तव अमोघ बिख्याता॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजीने अशोकवनमें फल खाने की आज्ञा मांगी

सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा।
लागि देखि सुंदर फल रूखा॥
सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी।
परम सुभट रजनीचर भारी॥


तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं।
जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु ॥17॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

अशोक वाटिका विध्वंस और अक्षय कुमार का वध

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा।
फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥
रहे तहाँ बहु भट रखवारे।
कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥


नाथ एक आवा कपि भारी।
तेहिं असोक बाटिका उजारी॥
खाएसि फल अरु बिटप उपारे।
रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥


सुनि रावन पठए भट नाना।
तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥
सब रजनीचर कपि संघारे।
गए पुकारत कछु अधमारे॥


पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा।
चला संग लै सुभट अपारा॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि ॥18॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी का मेघनाद से युद्ध

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

सुनि सुत बध लंकेस रिसाना।
पठएसि मेघनाद बलवाना॥
मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही।
देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥


चला इंद्रजित अतुलित जोधा।
बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥
कपि देखा दारुन भट आवा।
कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥


अति बिसाल तरु एक उपारा।
बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥
रहे महाभट ताके संगा।
गहि गहि कपि मर्दई निज अंगा॥


तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा।
भिरे जुगल मानहुँ गजराजा॥
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई।
ताहि एक छन मुरुछा आई॥


उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया।
जीति न जाइ प्रभंजन जाया॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मेघनादने ब्रम्हास्त्र चलाया

दोहा (Doha – Sunderkand)

ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार ॥19॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

मेघनाद हनुमानजी को बंदी बनाकर रावणकी सभा में ले गया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा।
परतिहुँ बार कटकु संघारा॥
तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ।
नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥


जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥


कपि बंधन सुनि निसिचर धाए।
कौतुक लागि सभाँ सब आए॥
दसमुख सभा दीखि कपि जाई।
कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥


कर जोरें सुर दिसिप बिनीता।
भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥
देखि प्रताप न कपि मन संका।
जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।
सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद ॥20॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और रावण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

कह लंकेस कवन तैं कीसा।
केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही।
देखउँ अति असंक सठ तोही॥


मारे निसिचर केहिं अपराधा।
कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥
सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया।
पाइ जासु बल बिरचति माया॥


जाकें बल बिरंचि हरि ईसा।
पालत सृजत हरत दससीसा॥
जा बल सीस धरत सहसानन।
अंडकोस समेत गिरि कानन॥


धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता।
तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा।
तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥


खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली।
बधे सकल अतुलित बलसाली॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।
तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और रावण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई।
सहसबाहु सन परी लराई॥
समर बालि सन करि जसु पावा।
सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥


खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा।
कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥
सब कें देह परम प्रिय स्वामी।
मारहिं मोहि कुमारग गामी॥


जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे।
तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥
मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा।
कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥


बिनती करउँ जोरि कर रावन।
सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥
देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी।
भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥


जाकें डर अति काल डेराई।
जो सुर असुर चराचर खाई॥
तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै।
मोरे कहें जानकी दीजै॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ॥22॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी और रावण का संवाद

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

राम चरन पंकज उर धरहू।
लंका अचल राजु तुम्ह करहू॥
रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयंका।
तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥


राम नाम बिनु गिरा न सोहा।
देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥
बसन हीन नहिं सोह सुरारी।
सब भूषन भूषित बर नारी॥


राम बिमुख संपति प्रभुताई।
जाइ रही पाई बिनु पाई॥
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं।
बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥


सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी।
बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥
संकर सहस बिष्नु अज तोही।
सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ॥23॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

रावण ने हनुमानजी की पूँछ जलाने का हुक्म दिया

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

जदपि कही कपि अति हित बानी।
भगति बिबेक बिरति नय सानी॥
बोला बिहसि महा अभिमानी।
मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥


मृत्यु निकट आई खल तोही।
लागेसि अधम सिखावन मोही॥
उलटा होइहि कह हनुमाना।
मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥


सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना।
बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥
सुनत निसाचर मारन धाए।
सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥


नाइ सीस करि बिनय बहूता।
नीति बिरोध न मारिअ दूता॥
आन दंड कछु करिअ गोसाँई।
सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥


सुनत बिहसि बोला दसकंधर।
अंग भंग करि पठइअ बंदर॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ।
तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ ॥24॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

राक्षसोंने हनुमानजी की पूँछ में आग लगा दी

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

पूँछहीन बानर तहँ जाइहि।
तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई।
देखउ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥


बचन सुनत कपि मन मुसुकाना।
भइ सहाय सारद मैं जाना॥
जातुधान सुनि रावन बचना।
लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥


रहा न नगर बसन घृत तेला।
बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥
कौतुक कहँ आए पुरबासी।
मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥


बाजहिं ढोल देहिं सब तारी।
नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥
पावक जरत देखि हनुमंता।
भयउ परम लघुरूप तुरंता॥


निबुकि चढ़ेउ कप कनक अटारीं।
भईं सभीत निसाचर नारीं॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास ॥25॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी ने लंका जलाई

चौपाई (Chaupai – Sunderkand)

देह बिसाल परम हरुआई।
मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बिहाला।
झपट लपट बहु कोटि कराला॥


तात मातु हा सुनिअ पुकारा।
एहिं अवसर को हमहि उबारा॥
हम जो कहा यह कपि नहिं होई।
बानर रूप धरें सुर कोई॥


साधु अवग्या कर फलु ऐसा।
जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नगरु निमिष एक माहीं।
एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥


ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा।
जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥
उलटि पलटि लंका सब जारी।
कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥


दोहा (Doha – Sunderkand)

पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता कें आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि ॥26॥

श्री राम, जय राम, जय जय राम

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Mangal Murati Ram Dulare – Lyrics in Hindi


मंगल मुरति राम दुलारे

[मंगल मुरति राम दुलारे,
आन पड़ा अब तेरे द्वारे।
हे बजरंगबली हनुमान,
हे महावीर करो कल्याण॥]


तीनो लोक तेरा उजियारा,
दुखिओं का तूने काज सँवारा।
हे जगवंदन, केसरी नंदन,
कष्ट हरो हे कृपा निधान॥

[मंगल मुरति राम दुलारे….]


तेरे द्वारे जो भी आया,
खाली नहीं कोई लौटाया।
दुर्गम काज बनावन हारे,
मंगलमय दीजो वरदान॥

[मंगल मुरति राम दुलारे….]


तेरा सुमिरन हनुमत वीरा,
नासे रोग हरे सब पीरा।
राम लखन सीता मन बसिया,
शरण पड़े का कीजे ध्यान॥

[मंगल मुरति राम दुलारे….]


मंगल मुरति राम दुलारे,
आन पड़ा अब तेरे द्वारे।
हे बजरंगबली हनुमान,
हे महावीर करो कल्याण॥


Mangal Murati Ram Dulare

Gulshan Kumar, Hariharan

Hari Om Sharan


Hanuman Bhajan



मंगल मुरति राम दुलारे, आन पड़ा अब तेरे द्वारे

भक्ति और विश्वास हमारे जीवन की सबसे बड़ी शक्तियां हैं। जब हम ईश्वर पर भरोसा करते हैं और उनकी आराधना करते हैं, तो वह हमारी सभी समस्याओं को दूर करने में हमारी मदद करते है।

पवनपुत्र हनुमानजी भगवान् राम के प्रिय हैं। वे मंगलकारी हैं, दुखियों का कष्ट दूर करते हैं, कष्ट हरने वाले हैं, कृपा निधान हैं, उनके द्वार पर आने वाले किसी को खाली नहीं लौटाते हैं, दुर्गम काज भी आसान कर देते हैं, और उनके सुमिरन से रोग और पीड़ा दूर हो जाते हैं। हनुमानजी अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

इसलिए हनुमान जी से यह प्रार्थना है कि हमें जीवन में मंगलमय वरदान दें। साथ ही साथ हमें हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए और अपने जीवन में मंगलमय परिवर्तन लाने की कोशिश करनी चाहिए।


Hanuman Bhajan



Hanuman Chalisa in Images – Sachitra


Hanuman Bhajan

हनुमान चालीसा – सचित्र (Hanuman Chalisa in Images)


दोहा:
श्रीगुरु चरण सरोज रज,
निज मनु मुकुर सुधार।
बरनउ रघुवर बिमल जसु,
जो दायकु फल चार॥

मैं अपने मन दर्पण को श्री गुरु जी की चरण धूलि से पवित्र कर, श्री रघुवीर भगवान के यश का गुणगान करता हूं। जिससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि,
हरहु कलेश विकार॥

हे पवन पुत्र, मैं आपका स्मरण करता हूं। आप जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों व दोषों का नाश कीजिए।


हनुमान चालीसा

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

पवनपुत्र वीर हनुमान आपकी जय हो। आप तो ज्ञान और गुणों के समुद्र है। आपकी कीर्ति तो तीनों लोकों में फैली है।


राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥

हे पवनसुत, अंजनिपुत्र, अंजनीनन्दन, श्री राम दूत। आपके समान दुसरा कोई बलवान नहीं है।


महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

हे महावीर बजरंगबली, आप में विशेष पराक्रम हैं। आप अपने भक्तों की दुर्बुद्धि एवं बुरे विचारों को समाप्त करके, उनके ह्रदय में अच्छे ज्ञान एवं विचारों को प्रेरित करने में सहायक है।


कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुँचित केसा॥

आपका रंग कंचन जैसा है, तथा आप सुंदर वस्त्रों से तथा कानों में कुंडल और घुंघराले बालों में शोभायमान है।


हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥

आपके हाथों में वज्र और ध्वजा है, तथा आपके कंधे पर मुंज का जनेऊ शोभायमान है।


शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जगवंदन॥

आप शंकर के अवतार है। सारी संपत्ति आपकी ही तो है, तभी तो आप की उपासना सारा संसार करता है।


विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

आप प्रकांड विद्या निधान और गुणवान हैं। और अत्यंत कार्य कुशल होकर श्री रामजी के कार्य करने के लिए उत्सुक रहते हैं।


प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मनबसिया॥

श्री राम का गुणगान सुनने में आप आनंद रस लेते हैं। भगवान श्री राम, माता सीता व लक्ष्मण सहित आपके हृदय में निवास करते हैं।


सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥

आपने अति छोटा रूप धारण कर माता सीता को दिखाया, तथा भयंकर रूप धारण कर रावण की लंका को जलाया।


भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे॥

आपने विशाल रूप धारण करके राक्षसों का वध किया। भगवान राम के कार्यों में सहयोग देने वाले भी तो आप ही थे।


लाय सजीवन लखन जियाए।
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥

संजीवनी बूटी लाकर आपने लक्ष्मण जी को जीवनदान दिया, अतः श्री राम ने प्रसन्न होकर आपको हृदय से लगा लिया।


रघुपति कीन्ही बहुत बढाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

उस समय श्री रामचंद्र जी ने आपकी बड़ी प्रशंसा की और यहां तक कहा कि जितना मुझे भरत प्रिय है, उतने ही तुम भी मुझे प्रिय हो। मैं तुम्हें भरत के समान अपना भाई मानता हूं।


सहस बदन तुम्हरो जस गावै।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥

श्रीराम ने आपको यह कहकर ह्रदय से लगा लिया कि तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

श्री सनत कुमार, श्री सनातन आदि मुनि, ब्रह्मा आदि देवता, शेषनाग जी सब आप का गुणगान करते हैं।


जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥

यम, कुबेर आदि तथा सब दिशाओं के रक्षक, कवि, विद्वान कोई भी आपके यश का पूर्णतया वर्णन नहीं कर सकते।


तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥


आप ही ने सुग्रीव जी को प्रभु राम से मिलवाया। उनकी (श्री राम जी की) कृपा से उन्हें खोया हुआ राज्य वापस मिला।

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥

आपके परामर्श को विभीषण ने माना, जिसके फलस्वरूप वे लंका के राजा बने। इस को सारा जग जानता है।


जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥

जो सूर्य हजारों योजन की दूरी पर है, जहां तक पहुंचने में हजारों युग लगे, उस सूर्य को आपने मीठा फल समझकर निगल लिया।


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥

आपने श्री रामचंद्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर समुद्र को पार किया, परंतु आपके लिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।


दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम है, वह सभी आपकी कृपा से सहज और सुलभ हो जाते हैं।


राम दुआरे तुम रखवारे।
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥

आप श्री रामचंद्र जी के महल के द्वार के रखवाले हैं। आपकी आज्ञा के बिना जिसमें कोई प्रवेश नहीं कर सकता।


सब सुख लहैं तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहु को डरना॥

आप की शरण में आने वाले व्यक्ति को सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं, और किसी प्रकार का भय नहीं रहता।


आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक तै कापै॥

आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता। आप की गर्जना से तीनों लोग कांप जाते हैं।


भूत पिशाच निकट नहि आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥

हे पवनपुत्र, आपका महावीर नाम सुनते ही भूत प्रेत आदि भाग खड़े होते हैं।


नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

हे वीर हनुमान जी, आपके नाम का निरंतर जप करने से सब रोग नष्ट हो जाते हैं और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।


संकट ते हनुमान छुडावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥

जो व्यक्ति मन-कर्म-वचन से आपका ध्यान करते हैं, उनके सब संकटों को आप दूर कर देते हैं।


सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥

तपस्वी राजा श्री रामचंद्र जी सब में श्रेष्ठ है उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।


और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥

जिस पर आपकी कृपा हो जाए भला वह दुख क्यों पाए। उनके जीवन में तो आनंद ही आनंद है।


चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

आपका यश चारों युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग तथा कलयुग) में विद्यमान हैं। संपूर्ण संसार में आपकी कीर्ति सभी जगह पर प्रकाशमान है। सारा संसार आपका उपासक है।


साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

हे श्री रामचंद्र के प्यारे हनुमान जी, आप साधु संतों तथा सज्जनों के अर्थात धर्म के रक्षक है, तथा दुष्ट जनों का नाश करते हैं।


अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥

हे हनुमान जी, आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिसमें आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां (सब प्रकार की संपत्ति) दे सकते हैं।


राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते है, जिससे आपके पास असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।


तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥

आप का भजन करने वाले भक्तों को भगवान श्री राम जी के दर्शन होते हैं और उनके जन्म जन्मांतर के दु:ख दूर हो जाते हैं।

अंतकाल रघुवरपुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥

आपके जाप के प्रभाव से प्राणी अंत समय में भी रघुनाथ धाम को जाते हैं। यदि मृत्यु लोक में जन्म लेते हैं तो श्री हरि भक्त कहलाते हैं।


और देवता चित्त ना धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥

हे हनुमान जी, आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं, फिर किसी देवता की पूजा करने की आवश्यकता नहीं रहती।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

वीर हनुमान के उपासक सदा सुख पाते हैं, उन्हें कभी कष्ट नहीं होता।


जै जै जै हनुमान गुसाईँ।
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥

हे वीर हनुमान जी, आपकी सदा जय हो, जय हो, जय हो। आप मुझ पर श्री गुरुजी के समान कृपा कीजिए ताकि मैं सदा आपकी उपासना करता रहूं।


जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा।


जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥

भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा, उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।


तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥

हे नाथ हनुमान जी, तुलसीदास सदा ही श्री राम के दास है। इसलिए आप उसके ह्रदय में निवास कीजिए।


पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप॥

हे पवन पुत्र, आप सभी संकटों को हरने वाले हैं, आप मंगल मूरत वाले हैं। मेरी प्रार्थना है कि आप श्री राम, श्री जानकी एवं लक्ष्मण जी सहित सदा मेरे ह्रदय में निवास करें।



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Hanuman Aarti – Aarti Kije Hanuman Lala Ki – Lyrics in Hindi


हनुमान आरती – आरती कीजै हनुमान लला की

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्टदलन रघुनाथ कला की॥

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्टदलन रघुनाथ कला की॥


जाके बल से गिरिवर काँपै।
रोग-दोष निकट न झाँपै॥

अंजनि पुत्र महा बलदाई।
संतन के प्रभु सदा सहाई॥


दे बीरा रघुनाथ पठाये।
लंका जारि सीय सुधि लाये॥

लंका सो कोट समुद्र सी खाई।
जात पवनसुत बार न लाई॥


लंका जारि असुर सँहारे।
सियारामजी के काज सँवारे॥

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।
आनि सजीवन प्रान उबारे॥


पैठि पताल तोरि जम-कारे।
अहिरावन की भुजा उखारे॥

बायें भुजा असुर दल मारे।
दहिने भुजा संतजन तारे॥


सुर नर मुनि आरती उतारे।
जै जै जै हनुमान उचारे॥

कंचन थार कपूर लौ छाई।
आरति करत अंजना माई॥


जो हनुमान जी की आरती गावै।
बसि बैकुण्ठ परमपद पावै॥

आरती कीजै हनुमान लला की।
दुष्टदलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर काँपै।
रोग-दोष निकट न झाँपै॥


Hanuman Aarti – Aarti Kije Hanuman Lala Ki

Hariharan


Hanuman Bhajan



Duniya Chale Na Shri Ram Ke Bina – Lyrics in Hindi


दुनिया चले ना श्री राम के बिना

दुनिया चले ना श्री राम के बिना, राम जी चले ना हनुमान के बिना॥ अर्थात मुक्ति और भक्ति दोनों ही भगवान श्री राम और हनुमान जी की कृपा से ही प्राप्त होती हैं। बिना भगवान श्री राम के मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती है, और बिना हनुमान जी की कृपा के भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती है।


मुखड़ा – स्थाई

[दुनिया चले ना श्री राम के बिना।
राम जी चले ना हनुमान के बिना॥] – (स्थाई – मुखड़ा )


अंतरा

जब से रामायण पढ़ ली है,
एक बात मैंने समझ ली है।

रावण मरे ना श्री राम के बिना,
लंका जले ना हनुमान के बिना॥

[दुनिया चले ना श्री राम के बिना….]


लक्ष्मण का बचना मुश्किल था,
कौन बूटी लाने के काबिल था।

लक्ष्मण बचे ना श्री राम के बिना,
बूटी मिले ना हनुमान के बिना॥

[दुनिया चले ना श्री राम के बिना….]


सीता हरण की कहानी सुनो,
भक्तो मेरी जुबानी सुनो

वापस मिले ना श्री राम के बिना,
पता चले ना हनुमान के बिना॥

[दुनिया चले ना श्री राम के बिना….]


बैठे सिंहासन पे श्री राम जी,
चरणों में बैठे हैं हनुमान जी।

मुक्ति मिले ना श्री राम के बिना,
भक्ति मिले ना हनुमान के बिना॥

[दुनिया चले ना श्री राम के बिना….]


दुनिया चले ना श्री राम के बिना।
राम जी चले ना हनुमान के बिना॥


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Duniya Chale Na Shri Ram Ke Bina Harmonium Notes


Duniya Chale Na Shri Ram Ke Bina


Hanuman Bhajan



Ram Bhajan



दुनिया चले ना श्री राम के बिना

दुनिया श्री राम के बिना नहीं चल सकती है, और श्री राम हनुमान जी के बिना नहीं चल सकते हैं। यानी की ना सिर्फ भगवान् राम की भक्ति जरूरी है बल्कि हनुमानजी की भक्ति भी भक्त के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। वे ही हमारे जीवन का मार्गदर्शन करते हैं और हमें सही राह पर चलने में मदद करते हैं।

रावण का वध भगवान श्री राम के बिना नहीं हो सकता था, और लंका हनुमान जी के बिना नहीं जल सकती थी।

श्री राम ही रावण के अत्याचारों से दुनिया को मुक्त कर सकते थे। और लंका का दहन हनुमान जी के बिना नहीं हो सकता था। हनुमान जी ने ही अपनी पूँछ में आग लगाकर लंका को जलाया था।

भक्ति और विश्वास हमारे जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं। मुक्ति श्री राम के बिना नहीं मिल सकती है, और भक्ति हनुमान जी के बिना नहीं मिल सकती है। अर्थात भगवान श्री राम के बिना हनुमान जी अधूरे हैं और हनुमान जी के बिना भगवान श्री राम भी अधूरे हैं।

भगवान श्री राम सिंहासन पर विराजमान हैं और उनके चरणों में हनुमान जी बैठे हैं। श्री राम ज्ञान और प्रेम का प्रतीक हैं, जबकि हनुमान जी भक्ति, शक्ति और साहस का प्रतीक हैं। हनुमान जी श्री राम के सबसे बड़े भक्त हैं और वे हमेशा उनकी मदद के लिए तत्पर रहते हैं।


Hanuman Bhajan



Ram Bhajan



Aana Pawan Kumar Hamare Hari Kirtan Mein – Lyrics in Hindi


आना पवन कुमार, हमारे हरी कीर्तन में

आना पवन कुमार हमारे हरी कीर्तन में,
आना अंजनी के लाल हमारे हरी कीर्तन में
[आना पवन कुमार हमारे हरी कीर्तन में]


आप भी आना संग में रामजी को लाना,
लाना जनक दुलार हमारे हरी कीर्तन में,
[आना पवन कुमार……]


भरत जी को लाना, लक्ष्मण जी को लाना,
लाना सब परिवार हमारे हरी कीर्तन में,
[आना पवन कुमार……]


कृष्ण जी को लाना और राधा जी को लाना,
लाना लखदातार हमारे हरी कीर्तन में,
[आना पवन कुमार……]


शिव जी को लाना, मैया जी को लाना,
लाना मदन मुरार हमारे हरी कीर्तन में,
[आना पवन कुमार……]


सुमति को लाना, कुमति को हटाना,
करना बेड़ा पार हमारे हरी कीर्तन में,
[आना पवन कुमार……]


कावड़ संघ पे कृपा कर के सुनलो मेरी पुकार,
हमारे हरी कीर्तन में आना,
[आना पवन कुमार……]


आना पवन कुमार हमारे हरी कीर्तन में,
आना अंजनी के लाल हमारे हरी कीर्तन में


Aana Pawan Kumar Hamare Hari Kirtan Me

Lakhbir Singh Lakha


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आना पवन कुमार भजन का आध्यात्मिक महत्व

आना पवन कुमार हमारे हरी कीर्तन में भजन में भक्त हनुमानजी से अपने हरि-कीर्तन में आने की प्रार्थना कर रहा है। और साथ ही साथ, श्री राम, लक्मणजी, शिवजी, माँ पार्वती और अन्य देवताओं को भी साथ लाने की प्रार्थना कर रहा है।

हनुमानजी श्री राम के अनन्य भक्त हैं और उनकी शक्ति और साहस के लिए जाने जाते हैं। भक्त हनुमानजी की उपस्थिति से अपने हरि-कीर्तन में अधिक शक्ति और आध्यात्मिकता आने की उम्मीद करता है।

आना पवन कुमार हमारे हरी कीर्तन में

आना पवन कुमार हमारे हरी कीर्तन में पंक्ति में, भक्त हनुमानजी को “पवन कुमार” और “अंजनी के लाल” कहकर संबोधित करता है। ये दोनों नाम हनुमानजी की शक्ति और साहस का प्रतीक हैं। हनुमानजी वायु के पुत्र हैं और उन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है। इसलिए हनुमानजी को अक्सर “पवन कुमार” कहा जाता है, जिसका अर्थ है पवन पुत्र, वायु के पुत्र।

आप भी आना संग में रामजी को लाना – भक्त हनुमानजी से अपने साथ रामजी को लाने का अनुरोध करता है। रामजी भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें सभी देवताओं में सबसे दयालु और करुणामयी माना जाता है। भक्त रामजी की उपस्थिति से अपने हरि-कीर्तन में अधिक शांति और आनंद आने की उम्मीद करता है।

भजन की पंक्तियाँ भक्ति की शक्ति का वर्णन करती हैं और भक्ति के महत्व को दर्शाती हैं। भक्त हनुमानजी और रामजी जैसे दिव्य शक्तियों का आह्वान करके अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है। भक्ति हमें भगवान के करीब लाती है और हमें उनकी शक्ति और आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करती है।

आप भी आना संग में रामजी को लाना

भक्त हनुमानजी और रामजी को अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शकों के रूप में देख सकता है। वह उनकी उपस्थिति से आध्यात्मिक ज्ञान और मार्गदर्शन प्राप्त करने की उम्मीद कर सकता है।

जब भक्त किसी भक्ति-समारोह में भगवान का ध्यान करते हैं, तो वे भगवान के करीब आते हैं और उनके साथ एक विशेष संबंध बनाते हैं। भक्ति से भगवान प्रसन्न होते हैं, और वे अपने भक्तों को आशीर्वाद और मार्गदर्शन देते हैं।

इसलिए, हम सभी अपने जीवन में आध्यात्मिक मार्गदर्शन और सहायता के लिए भगवान का आह्वान कर सकते हैं। जब हम भगवान की भक्ति करते हैं, तो हम उनके साथ एक गहरे संबंध बनाते हैं, जो हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने और अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुंचने में मदद कर सकता है।


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