Maiya Teri Jai Jaikaar – Teri God Mein Sar Hai Maiya – Lyrics in Hindi


मैया तेरी जय जयकार – तेरी गोद में सर है मैया

तेरी गोद में सर है मैया।
अब मुझको क्या डर है मैया॥

तेरी गोद में सर है मैया।
अब मुझको क्या डर है मैया॥

दुनियाँ नज़रें फेरे तो फेरे।
मुझपे तेरी नज़र है मैया॥


तेरी गोद में सर है मैया।
अब मुझको क्या डर है मैया॥

मैया तेरी जय जयकार
मैया तेरी जय जयकार


तेरा दरस यहाँ भी है।
तेरा दरस वहाँ भी है॥

हर दुःख से लड़ने को मैया।
तेरा एक जयकारा काफी है,
काफी है॥

मैया तेरी जय जयकार,
मैया तेरी जय जयकार,
दिल में लगा तेरा दरबार,
मैया तेरी जय जयकार॥


मैं सन्तान तू माता।
तू मेरी जीवन दाता॥

जग में सबसे गहरा मैया।
तेरा और मेरा है नाता,
है नाता॥

तेरी गोद में सर है मैया।
अब मुझको क्या डर है मैया॥

मैया तेरी जय जयकार
मैया तेरी जय जयकार


दुनियाँ नज़रें फेरे तो फेरे।
मुझपे तेरी नज़र है मैया॥

तेरी गोद में सर है मैया।
अब मुझको क्या डर है मैया॥

मैया तेरी जय जयकार
मैया तेरी जय जयकार


Maiya Teri Jai Jaikaar – Teri God Mein Sar Hai Maiya

Arijit Singh


Durga Bhajan



Maiya Teri Jai Jaikaar – Teri God Mein Sar Hai Maiya – Lyrics in English


Maiya Teri Jai Jaikaar – Teri God Mein Sar Hai Maiya

Teri god mein sar hai maiya.
Ab mujh ko kya dar hai maiya.

Teri god mein sar hai maiya.
Ab mujhako kya dar hai maiya.

Duniya nazaren phere to phere.
Mujh pe teri nazar hai maiya.

Teri god mein sar hai maiya.
Ab mujh ko kya dar hai maiya.

Maiya teri jai jaikaar
Maiya teri jai jaikaar

Tera daras yahaan bhee hai.
Tera daras vahaan bhee hai.

Har duhkh se ladane ko maiya.
Tera ek jay kaara kaaphee hai,
kaaphee hai.

Maiya teri jai jaikaar,
Maiya teri jai jaikaar,
dil mein laga tera darabaar,
Maiya teri jai jaikaar.

Main santaan too maata.
Too meree jeevan daata.

Jag mein sabase gahara maiya.
Tera aur mera hai naata,
hai naata.

Maiya teri jai jaikaar
Maiya teri jai jaikaar

Teri god mein sar hai maiya.
Ab mujh ko kya dar hai maiya.

Duniyaan nazaren phere to phere.
Mujh pe teri nazar hai maiya.

Teri god mein sar hai maiya.
Ab mujh ko kya dar hai maiya.

Maiya teri jai jaikaar
Maiya teri jai jaikaar

Teri god mein sar hai maiya.
Ab mujh ko kya dar hai maiya.
Maiya teri jai jaikaar
Maiya teri jai jaikaar


Maiya Teri Jai Jaikaar – Teri God Mein Sar Hai Maiya

Arijit Singh


Durga Bhajan



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Durga Bhajan

अयि गिरिनन्दिनि अर्थसहित – महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र अर्थ सहित

अयि गिरि-नन्दिनि नंदित-मेदिनि
विश्व-विनोदिनि नंदनुते
गिरिवर विंध्य शिरोधि-निवासिनि
विष्णु-विलासिनि जिष्णुनुते।

भगवति हे शितिकण्ठ-कुटुंबिनि
भूरि कुटुंबिनि भूरि कृते
जय जय हे महिषासुर-मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैलसुते॥

अयि गिरिनन्दिनि – हे गिरिपुत्री,
नन्दितमेदिनि– पृथ्वी को आनंदित करने वाली,
विश्वविनोदिनि – संसार का मन मुदित रखने वाली,
नन्दिनुते – नंदी द्वारा नमस्कृत,

गिरिवरविन्ध्यशिरोsधिवासिनि – पर्वतप्रवर विंध्याचल के सबसे ऊंचे शिखर पर निवास करने वाली,
विष्णुविलासिनि – विष्णु को आनंद देने वाली,
जिष्णुनुते – इंद्रदेव द्वारा नमस्कृत

भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि – नीलकंठ महादेव की गृहिणी,
भूरिकुटुम्बिनि – विशाल कुटुंब वाली,
भूरिकृते – विपुल मात्रा में निर्माण करने वाली देवी,

जय जय – तुम्हारी जय हो, जय हो।
हे महिषासुरमर्दिनि – हे महिषासुर का घात करने वाली,
रम्यकपर्दिनि शैलसुते – सुन्दर जटाधरी गिरिजा !


सुरवर-वर्षिणि दुर्धर-धर्षिणि
दुर्मुख-मर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवन-पोषिणि शंकर-तोषिणि
किल्बिष-मोषिणि घोषरते।

दनुज निरोषिणि दितिसुत रोषिणि
दुर्मद शोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैलसुते॥

सुरवरवर्षिणि – हे सुरों पर वरदानों का वर्षंण करने वाली,
दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि – दुर्मुख और दुर्धर नामक दैत्यों का संहार करने वाली,
हर्षरते – सदा हर्षित रहने वाली

त्रिभुवनपोषिणि – तीनों लोकों का पालन-पोषण करने वाली,
शंकरतोषिणि – शिवजी को प्रसन्न रखने वाली,
किल्बिषमोषिणि – कमियों को, दोषों को दूर करने वाली,
घोषरते – हे (नाना प्रकार के आयुधों के) घोष से प्रसन्न होने वालीं,

दनुजनिरोषिणि – दनुजों के रोष को निरोष करने वाली – निःशेष करने वाली, तात्पर्य यह कि दनुजों को ही समाप्त करके उनके रोष (क्रोध) को समाप्त करने वाली,
दितिसुतरोषिणि – दितिपुत्र अर्थात् दैत्यों (माता दिति के पुत्र होने से वे दैत्य कहलाये) पर रोष (क्रोध) करने वाली,
दुर्मदशोषिणि – दुर्मद दैत्यों को, यानि मदोन्मत्त दैत्यों को, भयभीत करके उन्हें सुखाने वाली,
सिन्धुसुते – हे सागर-पुत्री!

जय जय हे महिषासुरमर्दिनी – हे महिषासुर का घात करने वाली,
रम्यकपर्दिनि शैलसुते – सुन्दर जटाधरी गिरिजा! तुम्हारी जय हो, जय हो !


अयि जगदंब मदंब कदंब
वनप्रिय वासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय
श्रृंग निजालय मध्यगते।

मधु मधुरे मधु कैटभ गंजिनि
कैटभ भंजिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैलसुते॥

अयि जगदम्ब मदम्ब – हे जगन्माता, हे मेरी माता!
कदम्ब वनप्रियवासिनि – अपने प्रिय कदम्ब-वृक्ष के वनों में वास व विचरण करने वाली
हासरते – हे हासरते! हासरते अर्थात उल्लासमयी, हास-उल्लास में रत।

शिखरि शिरोमणि तुंगहिमालय श्रृंगनिजालय मध्यगते – ऊंचे हिमाद्रि के मुकुटमणि सदृश सर्वोच्च शिखर के बीचोबीच जिसका गृह (निवासस्थान) है, ऐसी हे शिखर-मंदिर में रहने वाली देवी !

मधुमधुरे – मधु के समान मधुर!
मधुकैटभगंजिनि – मधु-कैटभ को पराभूत करने वाली,
कैटभभंजिनि – कैटभ का संहार करने वाली,
रासरते – कोलाहल में रत रहने वाली,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनि शैलसुते – हे महिषासुरमर्दिनि, हे सुकेशिनी, हे नगेश-नंदिनी ! तुम्हारी जय हो, जय हो !


अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड
वितुण्डित शुण्ड गजाधिपते
रिपु गज गण्ड विदारण चण्ड
पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते।

निज भुज दण्ड निपातित
खण्ड विपातित मुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

अयि शतखणड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड गजाधिपते –
शत्रु सैन्य के उत्तम हाथियों की सूंड काट कर उनके खंड-खंड हुए धड़ों के सौ सौ टुकड़े कर डालने वाली

रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते –
जिनका सिंह शत्रुओं के हाथियों के मुंह नोच कर चीर डालता है,

निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते –
अपनी भुजा में उठाये हुए दण्ड से शत्रुपक्ष के योद्धाओं के मुंड (सिर) काट फेंकने वाली,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनी रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली सुन्दर जटाधरी गिरिजा ! तुम्हारी जय हो, जय हो !


अयि रण दुर्मद शत्रु वधोदित
दुर्धर निर्जर शक्तिभृते
चतुर विचार धुरीण महाशिव
दूतकृत प्रमथाधिपते।

दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति
दानव दूत कृतांतमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

अयि रण दुर्मद शत्रु वधोदित दुर्धर निर्जर शक्तिभृते –
हे युद्ध में उन्मत्त हो जाने वाली, शत्रुओं का वध करने के लिए आविर्भूत होने वाली, शक्ति को धारण करने वाली या शक्ति से सज्जित,

चतुर विचार धुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते –
बुद्धिमानों में अग्रणी भगवान शिव को, भूतनाथ को, दूत बना कर भेजने वाली तथा

दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति दानव दूत कृतान्तमते –
अधम वासना व कुत्सित उद्देश्य से दैत्यराज शुम्भ द्वारा भेजें गये दानव-दूतों का अंत करने वाली,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली सुन्दर जटाधरी गिरिजा! तुम्हारी जय हो, जय हो !


अयि शरणागत वैरि वधूवर
वीर वराभय दायकरे
त्रिभुवन मस्तक शूल विरोधि
शिरोधि कृतामल शूलकरे।

दुमिदुमि तामर दुंदुभिनाद
महो मुखरीकृत तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे –
शरणापन्न शत्रुपत्नियों के योद्धा-पतियों को अभय प्रदान करने वाली,

त्रिभुवनमस्तक शूलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे –
अपने त्रिशूल-विरोधी को, चाहे हे वह त्रिभुवन का स्वामी हो, अपने त्रिशूल से नतमस्तक करने वाली,

दुमिदुमितामर दुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे –
दुन्दुभि से उठते दुमि-दुमि के ताल के लगातार बहते ध्वनि-प्रवाह से दिशाओं को महान रव से भरने वाली,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली, हे सुन्दर जटाधरी गिरिनन्दिनि तुम्हारी जय हो, जय हो !


अयि निज हुँकृति मात्र निराकृत
धूम्र विलोचन धूम्र शते
समर विशोषित शोणित बीज
समुद्भव शोणित बीज लते।

शिव शिव शुंभ निशुंभ
महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते –
अपनी केवल हुंकार मात्र से धूम्रविलोचन (एक दैत्य का नाम) को आकारहीन करके सौ सौ धुंए के कणों में बदल कर रख देने वाली,

समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते –
युद्ध में रक्तबीज (एक दैत्य का नाम) और उसके रक्त की बूँद-बूँद से पैदा होते हुए और बीजों की बेल सदृश दिखने वाले अन्य अनेक रक्तबीजों का संहार करने वाली,

शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते –
शुम्भ-निशुम्भ दैत्यों की शुभ आहुति देकर महाहवन करते हुए भूत-पिशाच आदि को तृप्त करने वाली देवी,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली, हे सुन्दर जटाधरी गिरिजा, तुम्हारी जय हो, जय हो !


धनुरनु संग रणक्षणसंग
परिस्फुर दंग नटत्कटके
कनक पिशंग पृषत्क निषंग
रसद्भट शृंग हतावटुके।

कृत चतुरंग बलक्षिति रंग
घटब्दहुरंग रटब्दटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके –
रणभूमि में, युद्ध के क्षणों में, धनुष थामे हुए जिनके घूमते हुए हाथों की गति-दिशा के अनुरूप जिनके कंकण हाथ में नर्तन करने लगते हैं, ऐसी हे देवी!

कनकपिशंग पृषत्कनिषंग रसद्भटश्रृंग हताबटुके –
रण में गर्जना करते शत्रु योद्धाओं की देहों के साथ मिलाप होने से और उन हतबुद्धि (मूर्खों) को मार देने पर, जिनके स्वर्णिम बाण (दैत्यों के लहू से) लाल हो उठते हैं, ऐसी हे देवी तथा

कृतचतुरंग बलक्षितिरंग घटद्बहुरंग रटद्बटुके –
स्वयं को घेरे खड़ी, बहुरंगी शिरों वाली और गरजते हुए शत्रुओं की चतुरंगिणी सेना को नष्ट कर जिन्होंने विनाश-लीला मचा दी,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
ऐसी हे महिषासुर का घात करने वाली सुन्दर जटाधरी गिरिजा ! तुम्हारी जय हो, जय हो !


जय जय जप्य जयेजय शब्द
परस्तुति तत्पर विश्वनुते
झण झण झिञ्जिमि झिंगकृत नूपुर
सिंजित मोहित भूतपते।

नटित नटार्ध नटी नट नायक
नाटित नाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते –
जय जय की हर्षध्वनि और जयघोष से देवी की स्तुति करने में तत्पर है रहने वाले अखिल विश्व द्वारा वन्दिता,

झणझणझिंझिमि झिंकृत नूपुरशिंजितमोहित भूतपते –
झन-झन झनकते नूपुरों की ध्वनि से (रुनझुन से) भूतनाथ महेश्वर को मुग्ध कर देने वाली देवी, और

नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते –
जहाँ नट-नटी दोनों प्रमुख होते हैं, ऐसी नृत्यनाटिका में नटेश्वर (शिव) के अर्धभाग के रूप में नृत्य करने वाली एवं सुमधुर गान में रत,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली देवी, हे सुन्दर जटाधरी गिरिजा, तुम्हारी जय हो, जय हो !


अयि सुमनः सुमनः सुमनः
सुमनः सुमनोहर कांतियुते
श्रितरजनी रजनी-रजनी
रजनी-रजनी कर वक्त्रवृते।

सुनयन विभ्रमर भ्रमर
भ्रमर-भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते –
सुन्दर मनोहर कांतिमय रूप के साथ साथ सुन्दर मन से संयुत और

श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते –
रात्रि के आश्रय अर्थात् चन्द्रमा जैसी उज्जवल मुख-मंडल की आभा से युक्त हे देवी,

सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते –
काले, मतवाले भंवरों के सदृश, अपितु उनसे भी अधिक गहरे काले और मतवाले-मनोरम तथा चंचल नेत्रों वाली,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली देवी, हे सुन्दर जटाधरी गिरिजा, तुम्हारी जय हो, जय हो।


सहित महाहव मल्लम तल्लिक
मल्लित रल्लक मल्लरते
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक
भिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते।

सितकृत पुल्लिसमुल्ल सितारुण
तल्लज पल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते –
एक विशाल रूप से आयोजित महासत्र (महायज्ञ) की भांति ही रहे घोर युद्ध में, फूल-सी कोमल किन्तु रण-कुशल साहसी स्त्री-योद्धाओं सहित जो संग्राम में रत हैं और

विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते –
भील स्त्रियों ने झींगुरों के झुण्ड की भांति जिन्हें घेर रखा है, जो उत्साह और उल्लास से भरी हुई हैं और

शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते –
जिनके उल्लास की लालिमा से (प्रभातकालीन अरुणिमा की भांति) अतीव सुन्दर-सुकोमल कलियां पूरी तरह खिल खिल उठती हैं, ऐसी हे लावण्यमयी देवी,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली, हे सुन्दर जटाधरी गिरिजा, तुम्हारी जय हो, जय हो !


अविरल गण्ड गलन्मद
मेदुर मत्त मतङ्गज राजपते
त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि
रूप पयोनिधि राजसुते।

अयि सुद तीजन लालसमानस
मोहन मन्मथ राजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते –
कर्ण-प्रदेश या कनपटी से सतत झरते हुए गाढ़े मद की मादकता से मदोन्मत्त हुए हाथी-सी (उत्तेजित), हे गजेश्वरी,

त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते –
हे त्रिलोक की भूषण यानि शोभा, सभी भूत यानि प्राणियों, चाहे वे दिव्य हों या मानव या दानव, की कला का आशय, रूप-सौंदर्य का सागर, हे (पर्वत) राजपुत्री,

अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते –
हे सुन्दर दन्तपंक्ति वाली, सुंदरियों को पाने के लिए मन में लालसा और अभिलाषा उपजाने वाली तथा कामना जगाने वाली, मन को मथने वाले हे कामदेव की पुत्री (के समान),

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली सुन्दर जटाधरी गिरिजा! तुम्हारी जय हो, जय हो !


कमल दलामल कोमल कांति
कलाकलितामल भाललते
सकल विलास कलानिलयक्रम
केलि चलत्कल हंस कुले।

अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल
मौलिमिलद्भकुलालि कुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते –
कमल के फूल की निर्मल पंखुड़ी की सुकुमार, उज्जवल आभा से सुशोभित (कान्तिमती) है भाल-लता जिनकी, ऐसी हे देवी,

सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले –
जिनकी ललित चेष्टाओं में, पग-संचरण, में कला-विन्यास है, जो कला का आवास है, जिनकी चाल-ढाल में राजहंसों की सी सौम्य गरिमा है,

अलिकुलसंकुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले –
जिनकी वेणी में, भ्रमरावली से आवृत कुमुदिनी के फूल और बकुल के भंवरों से घिरे फूल एक साथ गुम्फित हैं,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
ऐसी हे महिषासुर का घात करने वाली, सुन्दर जटाधरी, हे गिरिराज पुत्री, तुम्हारी जय हो, जय हो !


कर मुरली रव वीजित कूजित
लज्जित कोकिल मंजुमते
मिलित पुलिन्द मनोहर गुंजित
रंजितशैल निकुंज गते।

निजगुण भूत महाशबरीगण
सदगुण संभृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते –
जिनकी करगत मुरली से निकल कर बहते स्वर से कोकिल-कूजन लज्जित हो जाता है, ऐसी हे माधुर्यमयी तथा

मिलितपुलिन्द मनोहरगुंजित रंजितशैल निकुंजगते –
जो पर्वतीय जनों द्वारा मिल कर गाये जाने वाले, मिठास भरे, गीतों से गुंजित रंगीन पहाड़ी निकुंजों में विचरण करती हैं, वे और

निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले –
अपने सद्गुणसम्पन्न गणों व वन्य प्रदेश में रहने वाले, शबरी आदि जाति के लोगों के साथ जो पहाड़ी वनों में क्रीड़ा (आमोद-प्रमोद) करती हैं,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
ऐसी हे महिषासुर का घात करने वाली, सुंदर जटाधरी गिरिजा, तुम्हारी जय हो, जय हो !


कटितट पीत दुकूल विचित्र
मयूखतिरस्कृत चंद्र रुचे
प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर
दंशुल सन्नख चंद्र रुचे।

जित कनकाचल मौलिपदोर्जित
निर्भर कुंजर कुंभकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयूखतिरस्कृत चन्द्ररुचे –
जिन रेशमी वस्त्रों से फूटती किरणों के आगे चन्द्रमा की ज्योति कुछ भी नहीं है, ऐसे दुकूल (रेशमी परिधान) से जिनका कटि-प्रदेश आवृत है और

प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे –
जिनके पद-नख चन्द्र-से चमक रहे हैं उस प्रकाश से, जो देवताओं तथा असुरों के मुकुटमणियों से निकलता है, जब वे देवी-चरणों में नमन करने के लिए शीश झुकाते हैं

जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे –
साथ ही जैसे कोई गज (हाथी) सुमेरु पर्वत पर विजय पा कर उत्कट मद (घमंड) से अपना सिर ऊंचा उठाये हो, ऐसे देवी के कुम्भ-से (कलश-से) उन्नत उरोज प्रतीत होते हैं,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
ऐसी हे देवी, हे महिषासुर का घात करने वाली सुन्दर जटाधरी गिरिजा ! तुम्हारी जय हो, जय हो!


विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक
सहस्रकरैकनुते
कृत सुरतारक संगरतारक
संगरतारक सूनुसुते।

सुरथ समाधि समान समाधि
समाधि समाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते –
अपने सहस्र हाथो से देवी ने जिन सहस्र हाथों को अर्थात् सहसों दानवों को विजित किया उनके द्वारा और (देवताओं के) सहस्र हाथों द्वारा वन्दित,

कृतसुरतारक संगतारक संगतारक सूनुसुते –
अपने पुत्र को सुरगणों का तारक (बचाने वाला) बनानेवाली, तारकासुर के साथ युद्ध में,(देवताओं के पक्ष में) युद्ध बचाने वाले पुत्र से पुत्रवती अथवा ऐसे पुत्र की माता एवं

सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते –
उच्चकुलोत्पन्न सुरथ और समाधि द्वारा समान रूप से की हुई तपस्या से प्रसन्न होने वाली देवी,

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली सुन्दर जटाधरी गिरिजा ! तुम्हारी जय हो, जय हो !


पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति
योऽनुदिनं स शिवे
अयि कमले कमलानिलये
कमलानिलयः स कथं न भवेत्।

तव पदमेव परंपदमित्यनुशीलयतो
मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे –
हे सुमंगला, तुम्हारे करुणा के धाम सदृश (के जैसे) चरण-कमल की पूजा जो प्रतिदिन करता है,

अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् –
हे कमलवासिनी, वह कमलानिवास (श्रीमंत) कैसे न बने? अर्थात कमलवासिनी की पूजा करने वाला स्वयं कमलानिवास अर्थात धनाढ्य बन जाता है।

तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे –
तुम्हारे पद ही (केवल) परमपद हैं, ऐसी धारणा के साथ उनका ध्यान करते हुए हे शिवे ! मैं परम पद कैसे न पाउँगा ?

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली सुन्दर जटाधरी गिरिजा ! तुम्हारी जय हो, जय हो !


कनकल सत्कल सिन्धु जलैरनु
सिंचिनुते गुण रंगभुवम
भजति स किं न शचीकुच कुंभ
तटी परिरंभ सुखानुभवम्।

तव चरणं शरणं करवाणि
नतामरवाणि निवासि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

कनकल सत्कल सिन्धु जलैरनु सिंचिनुते गुण रंगभुवम –
स्वर्ण-से चमकते व नदी के बहते मीठे जल से जो तुम्हारे कला और रंग-भवन रुपी मंदिर मे छिड़काव करता है

भजति स किं न शचीकुच कुंभ तटी परिरंभ सुखानुभवम् –
वह क्यों न शची (इन्द्राणी) के कुम्भ-से उन्नत वक्षस्थल से आलिंगित होने वाले (देवराज इंद्र) की सी सुखानुभूति पायेगा?

तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम –
हे वागीश्वरी, तुम्हारे चरण-कमलों की शरण ग्रहण करता हूँ, देवताओं द्वारा वन्दित हे महासरस्वती, तुममें मांगल्य का निवास है।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
ऐसी हे देवी, हे महिषासुर का घात करने वाली सुन्दर जटाधरी गिरिजा ! तुम्हारी जय हो, जय हो !


तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं
सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी
सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।

मम तु मतं शिवनामधने
भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते –
तुम्हारा मुख-चन्द्र, जो निर्मल चंदमा का सदन है, सचमुच ही सभी मल-कल्मष को किनारे पर कर देता है अर्थात् दूर कर देता करता है।

किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते –
इन्द्रपुरी की चंद्रमुखी हो या सुन्दर आनन वाली रूपसी, वह (तुम्हारा मुख-चन्द्र) उससे (अवश्य) विमुख कर देता है।

मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते –
हे शिवनाम के धन से धनाढ्या देवी, मेरा तो मत यह है कि आपकी कृपा से क्या कुछ संपन्न नहीं हो सकता।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली सुन्दर जटाधरी गिरिजा ! तुम्हारी जय हो, जय हो !


अयि मयि दीनदयालुतया
कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि
यथासि तथानुमितासिरते।

यदुचितमत्र भवत्युररि
कुरुतादुरुतापमपा कुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि
रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥

अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे –
दीनों पर सदैव दयालु रहने वाली हे उमा, अब मुझ पर भी कृपा कर ही दो, (मुझ पर भी तुम्हें कृपा करनी ही होगी)।

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते –
हे जगत की जननी जैसे तुम कृपा से युक्त हो वैसे ही धनुष-बाण से भी युत हो, अर्थात् स्नेह व संहार दोनों करती हो।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते –
जो कुछ भी उचित हो यहाँ, वही आप कीजिए, हमारे ताप (और पाप) दूर कीजिए, अर्थात् नष्ट कीजिए।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते –
हे महिषासुर का घात करने वाली सुन्दर जटाधरी गिरिजा ! तुम्हारी जय हो, जय हो !

Durga Bhajans

Mahishasura Mardini Stotra Meaning

Anandmurti Gurumaa

Durga Bhajans

Navdurga – Maa Brahmacharini – (Katha, Mantra, Stuti)


Durga Bhajan

माँ ब्रह्मचारिणी – माँ दुर्गा का दूसरा स्वरूप


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दधाना करपदमाभ्याम्-अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

माँ दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है।

ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और
चारिणी यानी आचरण करने वाली।

इस प्रकार ब्रह्मचारिणी (तप की चारिणी) का अर्थ है, तप का आचरण करने वाली। नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है।

माँ दुर्गा का दूसरा स्वरूप – माँ ब्रह्मचारिणी

माँ ब्रह्मचारिणी कथा

अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं, तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया।

इन्होंने एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं। उपवास के समय खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के विकट कष्ट सहे, इसके बाद में केवल ज़मीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शंकर की आराधना करती रहीं।

कई हज़ार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार रह कर व्रत करती रहीं। पत्तों को भी छोड़ देने के कारण उनका नाम अपर्णा भी पड़ा। इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो गया था।


उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मैना देवी अत्यन्त दुखी हो गयीं। उन्होंने उस कठिन तपस्या विरत करने के लिए उन्हें आवाज़ दी “उमा, अरे नहीं”। तब से देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम उमा पड़ गया था।


उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था। देवता, ॠषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे।

अन्त में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा – हे देवी । आज तक किसी ने इस प्रकार की ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी। तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। भगवान शिव जी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ।

माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरुप

Brahmacharini - Navdurga

माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।

माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना

दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है।

माँ ब्रह्मचारिणी की महिमा

माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अनन्त फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम की वृद्धि होती है। सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्त्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।

Brahmacharini - Maa Durga

माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र:

या देवी सर्वभू‍तेषु
माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम:॥

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है (मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ)।


दधाना करपदमाभ्याम्-अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

ब्रह्मचारिणी स्तुति


जय माँ ब्रह्मचारिणी,
ब्रह्मा को दिया ग्यान।
नवरात्री के दुसरे दिन
सारे करते ध्यान॥

शिव को पाने के लिए
किया है तप भारी।
ॐ नम: शिवाय जाप कर,
शिव की बनी वो प्यारी॥

भक्ति में था कर लिया
कांटे जैसा शरीर।
फलाहार ही ग्रहण कर
सदा रही गंभीर॥

बेलपत्र भी चबाये थे
मन में अटल विश्वास।
जल से भरा कमंडल ही
रखा था अपने पास॥

रूद्राक्ष की माला से
करूँ आपका जाप।
माया विषय में फंस रहा,
सारे काटो पाप॥

नवरात्रों की माँ,
कृपा करदो माँ।
नवरात्रों की माँ,
कृपा करदो माँ।

Navdurga - Maa Brahmacharini
Navdurga – Maa Brahmacharini

जय ब्रह्मचारिणी माँ,
जय ब्रह्मचारिणी माँ॥
जय ब्रह्मचारिणी माँ,
जय ब्रह्मचारिणी माँ॥

Durga Bhajans

Navdurga – Maa Brahmacharini

Anuradha Paudwal

Navdurga – Maa Brahmacharini

Jai Maa Brahmacharini,
Brahma ko diya gyan.
Navaratri ke dusre din
saare karate dhyan.

Shiv ko paane ke liye
kiya hai tap bhaari.
Om Namah Shivaay jaap kar,
Shiv ki bani vo pyaari.

Bhakti mein tha kar liya
kaante jaisa sharir.
Phalaahaar hi grahan kar
sada rahi gambhir.

Belapatra bhi chabaaye the
mann mein atal vishvaas.
Jal se bhara kamandal hee
rakha tha apne paas.

Roodraaksh ki maala se
karu aapka jaap.
Maaya vishaya mein phans raha,
saare kaato paap.

Navraatro ki Maa,
krpa kardo Maa.
Navraatro ki Maa,
krpa kardo Maa.

Navdurga - Maa Brahmacharini
Navdurga – Maa Brahmacharini

Jay Brahmacharini Maa,
Jay Brahmacharini Maa.

Durga Bhajans

Navdurga – Maa Chandraghanta – (Katha, Mantra, Mahima, Stuti)


Durga Bhajan

माँ चन्द्रघण्टा – माँ दुर्गा का तीसरा रूप


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पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुत॥

माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चन्द्रघण्टा है। नवरात्रि में तीसरे दिन देवी के इस रूप का पूजन किया जाता है।

माँ चन्द्रघण्टा की आराधना सदा फलदायी है। इनकी कृपासे साधक के समस्त पाप और बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं।

Navdurga – Maa Chandraghanta

माँ चन्द्रघण्टा का स्वरुप

माँ चंद्रघंटा का स्वरूप परम शान्तिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टेके आकार का अर्धचन्द्र है, इसलिए इन्हें चन्द्रघण्टा देवी कहा जाता है।

Maa Chandraghanta

इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं और दसों हाथों में खड्ग, बाण आदि शस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिये उद्यत रहने की होती है। इनके घण्टे की सी भयानक चण्डध्वनि से अत्याचारी दानव, दैत्य, और राक्षस सदैव डरते रहते हैं।

माँ चन्द्रघण्टा की उपासना

नवरात्रकी दुर्गा उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्त्व है। इस दिन साधकका मन मणिपुर चक्र में प्रविष्ठ होता है।

माँ चन्द्रघन्टा की कृपा से उसे अलौकिक दर्शन होते हैं। विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनायी देती हैं और दिव्य सुगन्धियों का अनुभव होता है। ये क्षण साधकके लिये अत्यन्त सावधान रहने के होते हैं।

माँ चन्द्रघण्टा की महिमा

माँ चन्द्रघण्टा की कृपासे साधक के समस्त पाप और बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं। इनकी आराधना सदा फलदायी है।

चंद्रघंटा देवी की मुद्रा सदैव युद्ध के लिये अभिमुख रहने की होती है, अतः भक्तों के कष्ट का निवारण ये अत्यन्त शीघ्र कर देती हैं। इनका वाहन सिंह है अतः इनका उपासक सिंहकी तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है।

इनके घण्टे की ध्वनि सदा अपने भक्तों की प्रेत-बाधादि से रक्षा करती रहती है। इनका ध्यान करते ही शरणागत की रक्षा के लिये इस घण्टे की ध्वनि निनादित हो उठती है।

Chandraghanta - Navdurga

दुष्टों का दमन और विनाश करने में सदैव तत्पर रहने के बाद भी माँ का स्वरूप दर्शक और आराधक के लिये अत्यन्त सौम्यता एवं शान्ति से परिपूर्ण होता है।


इनकी आराधाना से प्राप्त होनेवाला एक बहुत बड़ा सद्गुण यह भी है कि साधक में वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का भी विकास होता है।

उसके मुख, नेत्र तथा सम्पूर्ण काया में कान्ति-गुण की वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। माँ चन्द्रघण्टा के भक्त और उपासक जहाँ भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शान्ति और सुखका अनुभव करते हैं।

माँ चन्द्रघण्टा का मंत्र:

या देवी सर्वभू‍तेषु
माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम:॥

अर्थ : हे माँ, सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है (मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ) हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।


पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुत॥


साधक को चाहिये कि अपने मन, वचन, कर्म, एवं काया को विहित विधान के अनुसार पूर्णतः परिशुद्ध एवं पवित्र करके माँ चन्द्रघण्टा की उपासना-अराधना में तत्पर रहे। उनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।

उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिये परमकल्याणकारी और सद्गति को देनेवाला है।


माँ चन्द्रघण्टा की स्तुति


नवरात्रि के तीसरे दिन,
चंद्रघंटा का ध्यान।
मस्तक पर है अर्ध चन्द्र,
मंद मंद मुस्कान॥

दस हाथों में अस्त्र शस्त्र
रखे खडग संग बाण।
घंटे के शब्द से
हरती दुष्ट के प्राण॥

सिंह वाहिनी दुर्गा का
चमके स्वर्ण शरीर।
करती विपदा शान्ति
हरे भक्त की पीर॥

मधुर वाणी को बोल कर
सब को देती ग्यान।
जितने देवी देवता
सभी करें सम्मान॥

अपने शांत स्वभाव से
सबका करती ध्यान।
भव सागर में फंसा हूँ मैं,
करो मेरा कल्याण॥

नवरात्रों की माँ,
कृपा कर दो माँ।
नवरात्रों की माँ,
कृपा कर दो माँ।

जय माँ चंद्रघंटा,
जय माँ चंद्रघंटा॥

Navdurga - Maa Chandraghanta
Navdurga – Maa Chandraghanta

नवरात्रि के तीसरे दिन,
चंद्रघंटा का ध्यान।
मस्तक पर है अर्ध चन्द्र,
मंद मंद मुस्कान॥

Durga Bhajans

Navdurga – Maa Chandraghanta

Anuradha Paudwal

Navdurga – Maa Chandraghanta

Navaraatri ke tisare deen,
chandraghanta ka dhyaan.
Mastak par hai ardh chandra,
mand mand muskaan.

Das haathon mein astra shastra
rakhe khadag sang baan.
Ghante ke shabd se
harati dushto ke praan.

Sinh vaahinee durga ka
chamake svarn shareer.
Karatee vipadaa shaanti
hare bhakt kee peer.

Madhur vaanee ko bol kar
sab ko detee gyaan.
Jitane devee devata
sabhee karen sammaan.

Apane shaant svabhaav se
sabaka karatee dhyaan.
Bhav saagar mein phansa hoon main,
karo mera kalyaan.

Navaraatro ki maa,
krpa kar do maa.
Navaraatro ki maa,
krpa kar do maa.

Jay maa chandraghanta,
jay maa chandraghanta.

Navdurga - Maa Chandraghanta
Navdurga – Maa Chandraghanta

Navaraatri ke tisare deen,
chandraghanta ka dhyaan.
Mastak par hai ardh chandra,
mand mand muskaan.

Durga Bhajans

Angana Padharo Maharani, Mori Sharda Bhawani – Lyrics in English


Angana Padharo Maharani, Mori Sharda Bhawani

Angana padharo maharani,
mori Sharda Bhawani
Angana padharo maharani,
mori Sharda Bhawani

Sharda Bhawani,
mori Sharda Bhawani
Sharda Bhawani,
mori Sharda Bhawani

Karado kripa maharani,
mori Sharda Bhawani
Angna padharo maharani,
mori Sharda Bhawani


Oonchi pahadiya pe mandir bano hai.
Mandir mein maiya ko aasan lago hai.
Aasan pe baithi maharani,
mori Sharda Bhawani

Angana padharo maharani,
mori Sharda Bhawani


Rogi ko kaaya,
de nirdhan ko maaya,
Baanjhan pa kirpa,
lalan ghar aaya

Maiya badi varadaani,
mori Sharda Bhawani

Angna padharo maharani,
mori Sharda Bhawani


Mehar mein dhoondhi,
Dongaragadh mein dhoondhi
Kalkatta, Katara, Jaalandhar mein dhoondhi

Vij-raaghavagadh mein dikhaani,
mori Sharda Bhawani

Angana padharo maharani,
mori Sharda Bhawani


Maihar ko dekho,
ya Vijayaraghav-gadh ko
eki dike mori meya ke madh ko

Mahima tumhari nahi jaani,
mori Sharda Bhawani

Angana padharo maharani,
mori Sharda Bhawani


Meya ko bhaar sambhaale re panda
haathon mein jinke Bhawani ko jhanda

Jhanda par baithi maharani,
mori Sharda Bhawani

Angana padharo maharani,
mori Sharda Bhawani


Mahima tumhari bhagat jo bhi bhi
bhagat bhi maiya ke darshan ko aaye

Kar do madhur mori vaani,
ho mori Sharda Bhawani

Angana padharo maharani,
mori Sharda Bhawani


Angana Padharo Maharani, Mori Sharda Bhawani

Manish Agrawal (moni)


Durga Bhajan



Angana Padharo Maharani, Mori Sharda Bhawani – Lyrics in Hindi


अंगना पधारो महारानी, मोरी शारदा भवानी

अंगना पधारो महारानी,
मोरी शारदा भवानी
अंगना पधारो महारानी,
मोरी शारदा भवानी

शारदा भवानी,
मोरी शारदा भवानी
शारदा भवानी,
मोरी शारदा भवानी

करदो कृपा महारानी,
मोरी शारदा भवानी
अंगना पधारो महारानी,
मोरी शारदा भवानी


ऊँची पहड़िया पे मंदिर बनो है।
मंदिर में मैया को आसन लगो है।
आसन पे बैठी महारानी,
मोरी शारदा भवानी॥

अंगना पधारो महारानी,
मोरी शारदा भवानी


रोगी को काया,
दे निर्धन को माया।
बांझन पे किरपा,
ललन घर आया।

मैया बड़ी वरदानी,
मोरी शारदा भवानी॥

अंगना पधारो महारानी,
मोरी शारदा भवानी।


मेंहर में ढूंढी, डोंगरगढ़ में ढूंढी।
कलकत्ता, कटरा, जालंधर में ढूंढी।

विज-राघवगढ़ में दिखानी,
मोरी शारदा भवानी॥

अंगना पधारो महारानी,
मोरी शारदा भवानी


मैहर को देखो,
या विजयराघवगढ़ को
एकै दिखे मोरी मैया के मढ़ को

महिमा तुम्हरी नहीं जानी,
मोरी शारदा भवानी

अंगना पधारो महारानी,
मोरी शारदा भवानी


मैया को भार सम्भाले रे पंडा
हाथो में जिनके भवानी को झंडा।

झंडा पे बैठी महारानी,
मोरी शारदा भवानी॥

अंगना पधारो महारानी,
मोरी शारदा भवानी।


महिमा तुम्हारी भगत जो भी गाए।
भगत भी मैया के दर्शन को आये।

करदो मधुर मोरी वाणी,
हो मोरी शारदा भवानी॥

अंगना पधारो महारानी,
मोरी शारदा भवानी


शारदा भवानी,
मोरी शारदा भवानी
शारदा भवानी,
मोरी शारदा भवानी

करदो कृपा महारानी,
मोरी शारदा भवानी
अंगना पधारो महारानी,
मोरी शारदा भवानी


Angana Padharo Maharani, Mori Sharda Bhawani

Manish Agrawal (moni)


Durga Bhajan



 

Navdurga – Maa Kushmanda – (Katha, Mantra, Mahima, Stuti)


Durga Bhajan

माँ कूष्माण्डा – माँ दुर्गा का चौथा रूप


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सुरासम्पूर्णकलशं रुधिरास्मृतमेव च।
दधानां हस्तपद्‌माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु में॥

माँ दुर्गाजीके चौथे स्वरूपका नाम कूष्माण्डा है। नवरात्र के चौथे दिन माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप ‘कूष्माण्डा’ की पूजा होती है।

जब सृष्टिका अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब देवी कूष्माण्डाने ब्रह्माण्डकी रचना की थी। अत: यही सृष्टिकी आदि-स्वरूपा और आदि शक्ति हैं। इनके पूर्व बह्माण्डका अस्तित्व था ही नहीं।

अपनी मन्द, हलकी हँसीद्वारा ब्रह्माण्डको उत्पन्न करनेके कारण इन्हें कूष्माण्डा देवीके नामसे जाना जाता है।

Kushmanda - Navdurga

देवी कूष्माण्डाका निवास सूर्यमण्डलके भीतरके लोकमें है। सूर्यलोकमें निवास कर सकनेकी क्षमता और शक्ति केवल इन्हींमें है।

इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। कोई भी देवी-देवता इनके तेज और प्रभावकी समता नहीं कर सकते। इनके तेजकी तुलना इन्हींसे की जा सकती है।

देवी के तेज और प्रकाशसे दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्माण्डकी सभी वस्तुओं और प्राणियोंमें अवस्थित तेज इन्हींकी छाया है।

माँ कूष्माण्डा का स्वरुप

Kushmanda - Maa Durga

माँ कूष्माण्डा की आठ भुजाएँ हैं। अत: ये अष्टभुजा देवीके नामसे भी जानी जाती हैं।

इनके सात हाथोंमें क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथमें सभी सिद्धियों और निधियोंको देनेवाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

माँ कूष्माण्डा की उपासना

नवरात्र-पूजनके चौथे दिन कूष्माण्डा देवीके स्वरूपकी ही उपासना की जाती है। इस दिन साधकका मन अनाहत चक्रमें स्थित होता है।

अत: नवरात्रा के चौथे दिन साधक को अत्यन्त पवित्र मनसे कूष्माण्डा देवीके स्वरूपको ध्यानमें रखकर पूजा-उपासनाके कार्यमें लगना चाहिये।

माँ कूष्माण्डा की महिमा

माँ कूष्माण्डाकी उपासनासे भक्तोंके समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी भक्तिसे यश, बल और आरोग्यकी वृद्धि होती है।


यदि मनुष्य सच्चे हृदयसे देवी की शरणागत जाए तो उसे अत्यन्त सुगमतासे (सहज ही) परम पदकी प्राप्ति हो सकती है। माँ कूष्माण्डा थोड़ी सी सेवा और भक्तिसे भी प्रसन्न हो जाती हैं।

हमें चाहिये कि हम शास्त्रों-पुराणोंमें बत्ताए विधानके अनुसार माँ दुर्गाकी उपासना और भक्तिके मार्गपर अग्रसर हों।

साधकको भक्ति-मार्गपर कुछ ही कदम आगे बढ़नेपर माँ की कृपाका सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दुःख-स्वरूप संसार उसके लिये अत्यन्त सुखद और सुगम बन जाता है।

मनुष्यको भवसागरसे पार उतारनेके लिये माँकी उपासना सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माँ कूष्माण्डाकी उपासना मनुष्यको सभी दु:खोसे मुक्त कर उसे सुख, समृद्धि और उन्नतिकी ओर ले जानेवाली है।


अत: अपनी लौकिक और पारलौकिक उन्नति चाहनेवालों को देवी कूष्माण्डाकी उपासनामें सदैव तत्पर रहना चाहिये।

माँ कूष्माण्डा का मंत्र:

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

अर्थ: हे माँ, सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है (मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ)। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।


सुरासम्पूर्णकलशं रुधिरास्मृतमेव च।
दधाना हस्तपद्‌माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु में॥

माँ कूष्माण्डा स्तुति


चौथा जब नवरात्र हो,
कुष्मांडा को ध्याते।
जिसने रचा ब्रह्माण्ड यह,
पूजन है करवाते॥

आद्यशक्ति कहते जिन्हें,
अष्टभुजी है रूप।
इस शक्ति के तेज से
कहीं छाव कही धुप॥

कुम्हड़े की बलि करती है
तांत्रिक से स्वीकार।
पेठे से भी रीझती
सात्विक करे विचार॥

क्रोधित जब हो जाए यह
उल्टा करे व्यवहार।
उसको रखती दूर माँ,
पीड़ा देती अपार॥

सूर्य चन्द्र की रौशनी
यह जग में फैलाए।
शरणागती मैं आया
तू ही राह दिखाए॥

नवरात्रों की माँ
कृपा करदो माँ।
नवरात्रों की माँ
कृपा करदो माँ॥

जय माँ कुष्मांडा मैया।
जय माँ कुष्मांडा मैया॥

Navdurga - Maa Kushmanda
Navdurga – Maa Kushmanda

चौथा जब नवरात्र हो,
कुष्मांडा को ध्याते।
जिसने रचा ब्रह्माण्ड यह,
पूजन है करवाते॥

Durga Bhajans

Navdurga – Maa Kushmanda

Anuradha Paudwal

Navdurga – Maa Kushmanda

Chautha jab navaraatra ho,
kushmaanda ko dhyaate.
Jisane racha brahmaand yah,
poojan hai karavaate.

Aadyashakti kahate jinhe,
ashtabhujee hai roop.
Is shakti ke tej se
kaheen chhaav kahee dhup.

Kumhade ki bali karati hai
taantrik se sweekaar.
Pethe se bhi reejhatee
saatvik kare vichaar.

Krodhit jab ho jaaye yah
ulta kare vyavahaar.
Usako rakhati door maa,
peeda detee apaar.

Surya chandra ki raushani
yah jag mein phailaaye.
Sharanaagatee main aaya
too hee raah dikhaaye.

Navaraatro ki maa
kripa karado maa.
Navaraatron ki maa
kripa karado maa.

Jai maa kushmaanda maiya.
Jai maa kushmaanda maiya.

Navdurga - Maa Kushmanda
Navdurga – Maa Kushmanda

Chautha jab navaraatra ho,
kushmaanda ko dhyaate.
Jisane racha brahmaand yah,
poojan hai karavaate.

Durga Bhajans

Navdurga – Maa Skandamata – (Katha, Mantra, Mahima, Stuti)


Durga Bhajan

माँ स्कंदमाता – माँ दुर्गा का पांचवां रूप


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सिंहासनगता नित्यं पद्‌माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

दुर्गाजीके पाँचवें स्वरूपको स्कंदमाताके नामसे जाना जाता। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। भगवती दुर्गा जी का ममता स्वरूप हैं माँ स्कंदमाता।

नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। माँ अपने भक्त के सारे दोष और पाप दूर कर देती है और समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।

Maa Skandamata

भगवान स्कंद अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कन्दमाता कहते है।

भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस इस पाँचवें स्वरूपको स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।

देवी स्कंदमाता का स्वरूप

Skandmata Navdurga

स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। ये दाहिनी तरफकी ऊपरवाली भुजासे भगवान स्कन्दको (कुमार कार्तिकेय को) गोदमें पकड़े हुए हैं। तथा दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजामें कमल पुष्प है।

बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में (भक्तों को आशीर्वाद देते हुए है) तथा नीचे वाली भुजामें भी कमल पुष्प हैं।

इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है।

माँ स्कंदमाता की उपासना

पांचवें दिन की नवरात्री पूजा में साधक अपने मन को विशुद्ध चक्र में स्थित करते हैं।

इस चक्र में स्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है। वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर होता है। साधकका मन भौतिक विकारों से (काम, क्रोध, मोह आदि विकारों से) मुक्त हो जाता है।

साधक का मन समस्त लौकिक और सांसारिक बंधनों से विमुक्त होकर माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन हो जाता है।

इस समय साधक को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर होना चाहिए। उसे अपनी समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए।

माँ स्कंदमाता की महिमा

माँ स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार सुलभ हो जाता है।

स्कंदमाता की उपासना से स्कंद भगवान (कार्तिकेय भगवान) की उपासना भी हो जाती है। यह विशेषता केवल स्कंदमाता को प्राप्त है, इसलिए साधक को स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

सूर्यमंडल की देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव साधकके चतुर्दिक् (चारो ओर) परिव्याप्त रहता है।

हमें एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए। इस घोर भवसागर के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है।

देवी का मंत्र

Maa Skandmata Mantra (माँ स्कंदमाता का मंत्र)

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ, सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है (मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ)। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।


सिंहासनगता नित्यं पद्‌माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

माँ स्कंदमाता की स्तुति


नवरात्रि की पांचवी
स्कन्दमाता महारानी।
इसका ममता रूप है
ध्याए ग्यानी ध्यानी॥

कार्तिक्ये को गोद ले
करती अनोखा प्यार।
अपनी शक्ति दी उसे
करे रक्त संचार॥

भूरे सिंह पे बैठ कर,
मंद मंद मुस्काए।
कमल का आसन साथ में,
उसपर लिया सजाए॥

आशीर्वाद दे हाथ से,
मन में भरे उमंग।
कीर्तन करता आपका,
चढ़े नाम का रंग॥

जैसे रूठे बालक की,
सुनती आप पुकार।
मुझको भी वो प्यार दो,
मत करना इनकार॥

नवरात्रों की माँ
कृपा कर दो माँ।
नवरात्रों की माँ
कृपा कर दो माँ॥

जय माँ स्कन्द माता।
जय माँ स्कन्द माता॥

Navdurga - Maa Skandamata
Navdurga – Maa Skandamata

नवरात्रि की पांचवी
स्कन्दमाता महारानी।
इसका ममता रूप है
ध्याए ग्यानी ध्यानी॥

Durga Bhajans

Navdurga – Maa Skandamata

Anuradha Paudwal

Navdurga – Maa Skandamata

Navratri ki paanchavi
Skandmata mahaaraani.
Isaka mamataa roop hai
dhyaye gyaani dhyaani.

Kaartikye ko god le
karati anokha pyaar.
Apani shakti di use
kare rakt sanchaar.

Bhoore sinh pe baith kar,
mand mand muskaye.
Kamal ka aasan saath mein,
usapar liya sajaye.

Aashirvaad de haath se,
man mein bhare umang.
Kirtan karataa aapaka,
chadhe naam ka rang.

Jaise roothe baalak ki,
sunati aap pukaar.
Mujh ko bhi vo pyaar do,
mat karana inkaar.

Navaraatro ki maa
kripa kar do maa.
Navaraatro ki maa
kripa kar do maa.

Jay maa skand maata.
Jay maa skand maata.

Navdurga - Maa Skandamata
Navdurga – Maa Skandamata

Navratri ki paanchavi
Skandmata mahaaraani.
Isaka mamataa roop hai
dhyaye gyaani dhyaani.

Durga Bhajans

Sweekar Karo Jagadambe Maa Meri Aarti – Lyrics in English


Sweekar Karo Jagadambe Maa Meri Aarti

Sweekar karo jagadambe maa, meri aarti.
Sweekar karo jagadambe maa, meri aarti.

Bhakti na jaanoo, pal pal tumako pukaaratee,
Sweekar karo jagadambe maa, meri aarti.

Saanso ka dhaaga aasha ki maala,
naino ke deepak mein pyaar maine daala.
Paane ko mamata, paane ko mamata,
teree or nazaren nihaarati.

Sweekar karo jagadambe maa, meri aarti.

Heere na laaye, motee na laaye,
khaali haatho hee dwaar tere aaye.
Jyoti akhand teri, jyoti akhand teree,
sabake hee jeevan sanvaarati .

Sweekar karo jagadambe maa, meri aarti.

Jholee bhar bhar jaate hain baadal,
kam nahin hota hai saagar ka jal.
Sabakee bhare jholee, sabakee bhare jholee,
paar sabhee ko utaaratee.

Sweekar karo jagadambe maa, meri aarti.

Bhakti na jaanoo, pal pal tumako pukaarati.
Sweekar karo jagadambe maa, meri aarti.

Sweekar karo jagadambe maa, meri aarti.

Sweekar Karo Jagadambe Maa Meri Aarti

Alka Yagnik | Kumar Sanu


Durga Bhajan