रामरक्षां पठेत प्राज्ञ: – मनुष्य (प्राज्ञ पुरुष) रामरक्षा का पाठ करे
पापघ्नीं सर्वकामदाम – इस पापविनाशिनी और सर्वकामप्रदा (रामरक्षा स्तोत्र का)
शिरो में राघवं पातु – मेरे सिर की राघव और
भालं दशरथात्मज: – ललाट की दशरथात्मज रक्षा करे
सर्वव्यापी भगवान रामजी का जानकीजी और लक्ष्मणजी के सहित स्मरण कर मनुष्य इस पापविनाशिनी (सभी पापो का नाश करने वाले) और सर्वकामप्रदा (सभी कामनाओ की पूर्ति करने वाले) रामरक्षा का पाठ करे।
(भगवान का कथन हैं कि) राम, दशरथि, शूर, लक्ष्मणानुचर, बलि, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुत्तम, वेदान्तवेद्य,यज्ञेश,पुराण पुरुषोत्तम, जानकी वल्ल्भ, श्रीमान और अप्रमेयपराक्रम – इन नाम का नित्य प्रति श्रद्धा पूर्वक जप करने से मेरा भक्त अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त करता हैं, इसमें कोई संदेह नहीं हैं।
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम। स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरा:॥25॥
रामं दूर्वादल-श्यामं – जो लोग दूर्वादल के समान श्याम वर्ण,
पद्माक्षं – कमल नयन,
पीतवाससम – पीताम्बरधारी
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न (नामभिर दिव्यै न) – भगवान राम का इन दिव्य नामों से स्तवन करते हैं,
लक्ष्मणजी के पूर्वज, रघुकुल में श्रेष्ठ, सीताजी के स्वामी, अतिसुन्दर, ककुत्स्थ कुलनन्दन, करुणा सागर, गुणनिधान, ब्राह्मणभक्त, परमधार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ पुत्र, श्याम और शांतिमूर्ति, सम्पूर्ण लोको में सुंदर, रघुकुल तिलक, राघव और रावणारी भगवा न राम की मैं वंदना करता /करती हूँ
भर्जनं भवबीजानामर्जनं (भवबीजानाम अर्जनं) – सम्पूर्ण संसार बीजों को भून डालनेवाला,
सुखसम्पदाम – समस्त सुख-सम्पति की प्राप्ति कराने वाला तथा
तर्जनं यमदूतानां – यमदूतों को भयभीत करनेवाला हैं
रामरामेति गर्जनम – “राम-राम” ऐसा घोष करना
“राम-राम” ऐसा घोष करना सम्पूर्ण संसार बीजों को भून डालनेवाला, समस्त सुख-सम्पति की प्राप्ति कराने वाला तथा यमदूतों को भयभीत करनेवाला हैं
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे, रामेणाभिहता निशाचरचमू, रामाय तस्मै नम:। रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोsस्म्यहं, रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर॥37॥
रामो राजमणि: – राजाओं में श्रेष्ठ श्रीरामजी
सदा विजयते – सदा विजय को प्राप्त होते हैं
रामं रमेशं भजे – मैं लक्ष्मीपति भगवान राम का भजन करता हूँ
रामेणाभिहता निशाचरचमू – जिन रामचन्द्रजी ने सम्पूर्ण राक्षस सेना का ध्वंस कर दिया था,
रामाय तस्मै नम: – मैं उनको प्रणाम करता हूँ।
रामान्नास्ति परायणं – राम से बड़ा और कोई आश्रय नहीं हैं।
परतरं रामस्य दासोsस्म्यहं – मैं उन रामचन्द्रजी का दास हूँ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु – मेरा चित्त सदा राम में ही लीन रहें;
मे भो राम मामुद्धर – हे राम! आप मेरा उद्धार कीजिये
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्त्र नाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥38॥
राम रामेति रामेति – (श्री महादेवजी पार्वतीजी से कहते हैं -) मैं सर्वदा ‘राम राम, राम’
रमे रामे मनोरमे – इस प्रकार मनोरम रामनाम में ही रमण करता हूँ
सहस्त्र नाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने – रामनाम विष्णु सहस्त्रनाम के तुल्य हैं
(श्री महादेवजी पार्वतीजी से कहते हैं -) हे सुमुखि! रामनाम विष्णु सहस्त्रनाम के तुल्य हैं। मैं सर्वदा ‘राम-राम, राम ‘इस प्रकार मनोरम रामनाम में ही रमण करता हूँ
इति श्री बुधकौशिक-मुनि-विरचितं श्री राम रक्षास्तोत्रं सम्पुर्णम्।