Duniya Chale Na Shri Ram Ke Bina – Lyrics in English


Duniya Chale Na Shri Ram Ke Bina

Duniya chale na Shri Ram ke bina,
Ram ji chale na Hanuman ke bina

Duniya chale na Shri Ram ke bina,
Ram ji chale na Hanuman ke bina


Jab se Ramayan padh li hai,
Ek baat maine samajh li hai

Ravan mare na Shri Ram ke bina,
Lanka jale na Hanuman ke bina

Duniya chale na Shri Ram ke bina,
Ramji chale na Hanuman ke bina


Lakshman ka bachana mushkil tha,
Kaun booti laane ke kaabil tha

Laxman bache na Shri Ram ke bina,
Booti mile na Hanuman ke bina

Duniya chale na Shri Ram ke bina,
Ram ji chale na Hanuman ke bina


Sita haran ki kahaani suno,
Bhakto meri jubaani suno

Wapas mile na Shri Ram ke bina,
Pata chale na Hanuman ke bina

Duniya chale na Shri Ram ke bina,
Ram ji chale na Hanuman ke bina


Baithe sinhaasan pe Shri Ram ji,
Charano mein baithe hain Hanuman ji

Mukti mile na Shri Ram ke bina,
Bhakti mile na Hanuman ke bina

Duniya chale na Shri Ram ke bina,
Ram ji chale na Hanuman ke bina


Duniya chale na Shri Ram ke bina,
Ram ji chale na Hanuman ke bina


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Duniya Chale Na Shri Ram Ke Bina


Hanuman Bhajan



Ram Bhajan



What does the bhajan Duniya Chale Na Shri Ram Ke Bina tell us?

Duniya Chale Na Shri Ram Ke Bina” is a devotional Hanuman Bhajan and Ram bhajan.

Devotion to Lord Shree Rama

Duniya Chale Na Shri Ram Ke Bina bhajan emphasizes the belief that without the presence and guidance of Lord Rama, the world cannot function or progress.

The bhajan has become particularly popular among devotees of Lord Rama and is often sung in temples, during religious gatherings, and on special occasions dedicated to Lord Rama, such as Ram Navami, Diwali, etc.

The exact origins and composer of the bhajan may vary, as devotional songs are often passed down through generations and have multiple versions.

Lord Rama – The Source of Wisdom, Happiness, and Salvation

The song’s lyrics convey the message that Lord Rama is the supreme deity and the source of all wisdom, happiness, and salvation.

Duniya Chale Na Shri Ram Ke Bina” has a melodious tune that evokes devotion and reverence towards Lord Rama.

It has been sung and recorded by various artists, both in traditional and contemporary styles.

The bhajan holds deep significance for followers of Lord Rama and serves as a reminder of the divine presence and the importance of devotion in one’s life.

It is cherished for its devotional essence and the feelings of connection and spiritual upliftment it instills in the hearts of devotees.


Hanuman Bhajan



Ram Bhajan



Kailash Ke Nivasi Namo – Lyrics in Hindi with Meanings


कैलाश के निवासी नमो बार बार

कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ, नमो बार बार हूँ
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
आयो शरण तिहारी शम्भू तार तार तू,
भोले तार तार तू, कैलाश के निवासी…


भक्तो को कभी शिव तुने निराश ना किया
माँगा जिन्हें जो चाहा वरदान दे दिया
बड़ा हैं तेरा दायजा, बड़ा दातार तू,
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ…


बखान क्या करू मै राखो के ढेर का
चपटी भभूत में हैं खजाना कुबेर का
हैं गंग धार, मुक्ति द्वार, ओंकार तू
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ….


क्या क्या नहीं दिया, हम क्या प्रमाण दे
बस गए त्रिलोक शम्भू तेरे दान से
ज़हर पिया, जीवन दिया
कितना उदार तू, कितना उदार तू,
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ….


तेरी कृपा बिना न हिलें एक भी अनु
लेते हैं स्वास तेरी दया से कनु कनु
कहे दास एक बार, मुझको निहार तू
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ….


कैलाश के निवासी नमो बार बार हूँ, नमो बार बार हूँ
आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू
आयो शरण तिहारी शम्भू तार तार तू


Kailash Ke Nivasi Namo Bar Bar

Shri Rameshbhai Oza

Shri Narayan Swami


Shiv Bhajan



कैलाश के निवासी नमो बार बार भजन का आध्यात्मिक अर्थ

“कैलाश के निवासी नमो बार बार हूं, नमो बार बार हूं”:
ये पंक्तियाँ कैलाश पर्वत के निवासी भगवान शिव के प्रति अभिनंदन और श्रद्धा की अभिव्यक्ति हैं। भक्त बार-बार विनम्र अभिवादन करता है और भगवान को प्रणाम करता है।

“आयो शरण तिहारी भोले तार तार तू”
पंक्तियाँ भगवान शिव की शरण लेने की भावना को व्यक्त करती हैं, उन्हें उद्धारकर्ता के रूप में संबोधित करती हैं जो रक्षा करता है और मुक्त करता है। भक्त मानते हैं कि भगवान शिव ही उद्धारकर्ता हैं जो उन्हें संकट से बचाते हैं और मोक्ष प्रदान करते हैं।

“भक्तो को कभी शिव तूने निराश ना किया”:
यह श्लोक आश्वस्त करता है कि भगवान शिव ने अपने भक्तों को कभी निराश नहीं किया है। यह दर्शाता है कि भगवान ने हमेशा अपने भक्तों की इच्छाओं और इच्छाओं को पूरा किया है।

“मांगा जिन्हें जो चाहा वरदान दे दिया”:
यहां, यह कहा गया है कि भगवान शिव उनकी इच्छाएं पूरी करते हैं और उन लोगों को आशीर्वाद देते हैं जो उनका दिव्य हस्तक्षेप चाहते हैं। वह अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए जाने जाते हैं।

“बड़ा हैं तेरा दायजा, बड़ा दातार तू”:
ये पंक्तियाँ भगवान शिव की उदारता को उजागर करती हैं। यह दर्शाती है कि वह परम दाता है, जो अपने भक्तों पर प्रचुर आशीर्वाद और उपहारों की वर्षा करता है।

“बखान क्या करूं मैं राखो के ढेर का,
चपटी भभूत में हैं खजाना कुबेर का”:
ये पंक्तियाँ भक्तों की दुविधा को व्यक्त करती हैं कि वे भगवान शिव के असीम आशीर्वाद के बदले में क्या अर्पित कर सकते हैं। इससे पता चलता है कि धन के देवता भगवान कुबेर का खजाना, भक्त द्वारा दिए गए अल्प चढ़ावे में भी मौजूद होता है।

“है गंग धर, मुक्ति द्वार, ओंकार तू”:
यह श्लोक भगवान शिव को दिव्य नदी गंगा (गंग धार) को धारण करने वाले और मुक्ति का प्रवेश द्वार (मुक्ति द्वार) के रूप में स्वीकार करता है। यह उन्हें पवित्र ध्वनि “ओम” (ओंकार) के अवतार के रूप में भी पहचानता है।

“क्या क्या नहीं दिया, हम क्या प्रमाण दे,
बस गए त्रिलोक शम्भू तेरे दान से”:
ये पंक्तियाँ भगवान शिव द्वारा उन्हें दिए गए अनगिनत आशीर्वादों पर भक्त के चिंतन को व्यक्त करती हैं। भक्त विचार करता है कि जो कुछ उन्हें प्राप्त हुआ है, उसके लिए वे क्या साक्ष्य या प्रमाण प्रदान कर सकते हैं। यह इस धारणा पर प्रकाश डालता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड भगवान शिव के दिव्य उपहारों से समृद्ध हुआ है।

“ज़हर पिया, जीवन दिया, कितना उदार तू”:
यहाँ, यह प्रतीकात्मक रूप से व्यक्त किया गया है कि भगवान शिव ने जहर (ज़हर) पी लिया है और जीवन (जीवन) प्रदान किया है। यह भगवान शिव की दिव्य उदारता का प्रतीक है, उनकी असीम करुणा और परोपकार पर जोर देता है।

“तेरी कृपा बिना ना हिले एक भी अनु,
लेते हैं स्वास तेरी दया से कनु कनु”:
ये पंक्तियाँ भक्त की मान्यता को व्यक्त करती हैं कि भगवान शिव की कृपा के बिना एक भी परमाणु नहीं हिलता। यह भक्त की गहरी समझ का प्रतीक है कि उनकी हर सांस भगवान की दया और करुणा से बनी रहती है।

“कहे दास एक बार, मुझको निहार तू”:
यह श्लोक भगवान शिव से भक्त की विनती को व्यक्त करता है, जो उनसे विनम्रतापूर्वक उन पर अपनी दिव्य दृष्टि बरसाने का अनुरोध करता है। यह भक्त की भगवान की कृपा और ध्यान प्राप्त करने की इच्छा को दर्शाता है।

कुल मिलाकर भजन की ये पंक्तियाँ भगवान शिव के प्रति गहरी श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करती हैं। भक्त भगवान से प्राप्त अपार आशीर्वाद को स्वीकार करता है और रक्षक, जीवनदाता और अनुग्रह दाता के रूप में उनकी भूमिका को पहचानते हुए उनकी शरण चाहता है। भक्त भगवान शिव की उदारता और दिव्य गुणों को पहचानकर उनकी शरण लेता है।


Shiv Bhajan



Kailash Ke Nivasi Namo – Lyrics in English with Meanings


Kailash Ke Nivasi Namo Bar Bar Lyrics

Kailash ke nivasi namo bar bar ho, namo bar bar hoon
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu,
Aayo sharan tihaari Shambhu taar taar tu,
Kailash ke nivasi…


Bhakto ko kabhi Shiv tune niraash na kiya
Maanga jinhen jo chaaha vardaan de diya
Bada hain tera daayaja, bada daataar tu,
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Kailash ke nivasi namo bar bar hoon….


Bakhaan kya karoo mai raakho ke dher ka
Chapti bhabhoot mein hain khajaana kuber ka
Hain gang dhaar, mukti dwaar, Omkaar tu
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Kailash ke nivasi namo bar bar hoon….


Kya kya nahin diya, ham kya pramaan de
Bas gaye trilok shambhoo tere daan se
Zahar piya, jivan diya, kitna udaar tu,
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Kailash ke nivasi namo bar bar hoon….


Teri kripa bina na hile ek bhi anu
Lete hain swaas teri daya se kanu kanu
Kahe daas ek baar, mujhako nihaar tu
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Kailash ke nivasi namo bar bar hoon….


Kailash ke nivasi namo bar bar ho,
namo bar bar hoon
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu
Shambhoo taar taar tu, taar taar tu


Kailash Ke Nivasi Namo Bar Bar

Shri Rameshbhai Oza

Shri Narayan Swami


Shiv Bhajan



Kailash Ke Nivasi Namo Bar Bar – Spiritual Meanings

“Kailash ke nivasi namo bar bar ho, namo bar bar hoon”:
This line is a salutation to Lord Shiva, the resident of Mount Kailash. It expresses reverence and devotion, repeatedly offering humble greetings to the Lord.

“Aayo sharan tihaari Bhole taar taar tu”:
The lines convey the act of seeking refuge in Lord Shiva, addressing Him as the one who saves and protects. The devotee acknowledges that Lord Shiva is the savior who rescues them from distress and offers salvation.

“Bhakto ko kabhi Shiv tune niraash na kiya”:
This verse reassures that Lord Shiva has never disappointed or let down His devotees. It signifies that the Lord has always fulfilled the wishes and desires of His devotees.

“Maanga jinhen jo chaaha vardaan de diya”:
Here, it is stated that Lord Shiva grants the wishes and bestows blessings upon those who seek His divine intervention. He is known to fulfill the desires of His devotees.

“Bada hain tera daayaja, bada daataar tu”:
These lines highlight Lord Shiva’s magnanimity and generosity. It signifies that He is the ultimate giver and provider, showering His devotees with abundant blessings and gifts.

“Bakhaan kya karoo mai raakho ke dher ka, Chapti bhabhoot mein hain khajaana kuber ka”:
These lines express the devotee’s dilemma about what they can offer in return to Lord Shiva’s immense blessings. It suggests that the treasures of Lord Kubera, the deity of wealth, are present even in the meager offerings made by the devotee.

“Hain gang dhaar, mukti dwaar, Omkaar tu”:
This verse acknowledges Lord Shiva as the one who holds the divine river Ganga (Gang dhaar) and is the gateway to liberation (mukti dwaar). It also recognizes Him as the embodiment of the sacred sound “Om” (Omkaar).

“Kya kya nahin diya, ham kya pramaan de, Bas gaye trilok shambhoo tere daan se”:
These lines express the devotee’s contemplation on the countless blessings bestowed upon them by Lord Shiva. The devotee ponders what evidence or proof they can provide for all that they have received. It highlights the notion that the entire universe has been enriched by the divine gifts of Lord Shiva.

“Zahar piya, jivan diya, kitna udaar tu”:
Here, it is metaphorically expressed that Lord Shiva has consumed the poison (zahar) and granted life (jivan). It signifies the divine magnanimity and generosity of Lord Shiva, emphasizing His boundless compassion and benevolence.

“Teri kripa bina na hile ek bhi anu, Lete hain swaas teri daya se kanu kanu”:
These lines convey the devotee’s recognition that not even a single atom (anu) moves without the grace (kripa) of Lord Shiva. It signifies the devotee’s deep understanding that every breath they take is sustained by the Lord’s mercy and compassion.

“Kahe daas ek baar, mujhako nihaar tu”:
The verse expresses the devotee’s plea to Lord Shiva, humbly requesting Him to shower His divine glance upon them. It signifies the devotee’s desire to receive the Lord’s grace and attention.

Overall, these lines of the bhajan express deep devotion and gratitude towards Lord Shiva. The devotee acknowledges the immense blessings received from the Lord and seeks His refuge, recognizing His role as the protector, giver of life, and bestower of grace. The devotee seeks refuge in Lord Shiva, recognizing His magnanimity and divine attributes.


Shiv Bhajan



Mera Bhola Damru Bajave Re – Lyrics in Hindi


मेरा भोला डमरू बजावे रे

पार्वती संग बैठे देखो शिव गोरा संग बैठे,
मेरा भोला, डमरू बजावे रे नील कंठ पे बैठे…


तन पे खाल पैगम्बर सोहे गल सर्पो की माला,
जटा में तेरी गंगा बहती चंदा मस्तक साजे,
मेरा भोला, डमरू बजावे रे नील कंठ पे बैठे…


नील कंठ पे जो भी जावे गंगा जल भोले को चढ़ावे,
मुँह माँगा फल शिव से पावे कभी न संकट आवे,
मेरा भोला, डमरू बजावे रे नील कंठ पे बैठे…


भोला ऐसा डमरू बजावे कावड़ियों संग सबको नचावे,
संग संग खुद भी नाचे गावे संग में डमरू बजावे,
मेरा भोला, डमरू बजावे रे नील कंठ पे बैठे…


Mera Bhola Damru Bajave Re

Sanjivan Lekar Aa Jaiyo – Lyrics in Hindi


संजीवन लेकर आ जाइयो

जब तक सूरज उदय ना होए,
संजीवन लेकर आ जाइयो…


ऊंचे पर्वत साधु बैठा जा पहुंचे हनुमान,
जा चरणों में शीश झुकाया और बतलाया अपना नाम,
संजीवन लेकर, आ जाइयो…


कौन तुम्हारे माता-पिता है कहां तुम्हारा नाम,
किसके तो तुम भेजे आए, किसके तो लगा शक्ति बाण,
संजीवन लेकर, आ जाइयो…


अंजनी माता पवन पिता है हनुमत मेरा नाम,
रामचंद्र के भेजे आए, लक्ष्मण के लागा शक्ति बाण,
संजीवन लेकर, आ जाइयो…


आधी रात पहर का तड़का ना पहुंचे हनुमान,
रामचंद्र की चिन्ता बढ गई, अब ना बचेंगे लक्ष्मण प्राण,
संजीवन लेकर, आ जाइयो…


चिड़िया बोली मोरा कुके आ पहुंचे हनुमान,
रामचंद्र की विपदा छूट गई, लक्ष्मण के बच गए प्राण,
संजीवन लेकर, आ जाइयो…

Braj Ke Nandlala Radha Ke Sanvariya – Lyrics in Hindi


बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया

बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया…


मीरा पुकारी जब गिरिधर गोपाला,
ढल गया अमृत में विष का भरा प्याला,
कौन मिटाए उसे, जिसे तू राखे पिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया,
बृज के नंदलाला-राधा के सांवरिया…


जब तेरी गोकुल पे आया दुख भारी,
एक इशारे से सब विपदा टारी,
मुड़ गया गोवर्धन तुने जहाँ मोड़ दिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया,
बृज के नंदलाला…


नैनो में श्याम बसे, मन में बनवारी,
सुध बिसराएगी मुरली की धुन प्यारी,
मन के मधुबन में रास रचाए रसिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया,
बृज के…


बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया,
बृज के…

Aaja Meri Pyari Radhe Bagho Mein Jhule Pade – Lyrics in Hindi


आजा मेरी प्यारी राधे बागों में झूला पड़े

आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला पड़े,
श्याम बुलाये राधा नहीं आये,
आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला पड़े,


कैसे मैं आउ बिंदिया मेरी चमके,
बिंदिया को उतार के माथे टीका लगा के,
आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला पड़े…


कैसे मैं आउ चूड़ी मेरी खनके,
चूड़ी को उतार के हाथ में कंगन डाल के,
आजा मेरी प्यारी राधे बागों में झूला पड़े…


कैसे मैं आऊ सब मोहे जानते,
लम्बा घूँघट डाल के दब्बे दब्बे पाँव से,
आजा मेरी प्यारी राधे……


आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला पड़े,
श्याम बुलाये राधा नहीं आये,
आजा मेरी प्यारी राधे बागो में झूला पड़े


Aaja Meri Pyari Radhe Bagho Mein Jhule Pade

Shiv Rudrashtakam Lyrics with Meaning


श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र – अर्थ सहित – नमामीशमीशान निर्वाणरूपं

तुलसीदास कृत शिव रूद्राष्टक

रुद्राष्टकम = रुद्र + अष्टक। रुद्र अर्थात भगवान शिव और अष्टक अर्थात आठ श्लोकों का समूह। इसलिए, रुद्राष्टकम स्तोत्र यानी भगवान शंकरजी की स्तुति के लिए आठ श्लोक।

तुलसीदासजी ने भगवान् शिव की स्तुति के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। स्वामी तुलसीदासजी के श्री रामचरितमानस के उत्तर कांड में रुद्राष्टकम स्तोत्र का उल्लेख आता है।


रुद्राष्टकम स्तोत्र पढ़ने का लाभ

रुद्राष्टकम स्तोत्र में शिवजी के रूप, गुण और कार्यों का वर्णन किया हुआ है। जो मनुष्य रुद्राष्टकम स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, भोलेनाथ उन से प्रसन्न होते हैं।उस मनुष्य के दुःख दूर हो जाते है और जीवन में सुख शांति आती है।


श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र – नमामीशमीशान निर्वाणरूपं

रुद्राष्टकम स्तोत्र के इस पोस्ट में –

  • पहले स्तोत्र शब्दों के अर्थ और भावार्थ के साथ दिया गया है।
  • बाद में स्तोत्र सिर्फ संस्कृत में और
  • अंत में श्री शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र सिर्फ हिंदी में दिया गया है।

रूद्र के बारें में विस्तार से पढ़ने के लिए

अथर्वशिर उपनिषद में, भगवान् शिव ने देवताओं को रूद्र के बारे में जो बताया था,
और फिर रूद्र के स्वरुप का देवताओं ने किस प्रकार विस्तार से वर्णन किया, और उनकी स्तुति की, वह दिया गया है।

उस वर्णन को पढ़ने के लिए क्लिक करें – रूद्र – भगवान शिव

रुद्राष्टकम स्तोत्र में ओमकार, परब्रह्म, ईशान जैसे शब्द आते है। देवताओं ने, भगवान् रूद्र को, महेश्वर, ओमकार, ईशान, परब्रह्म, प्रणव, अनंत क्यों कहा जाता है, यह बताया था। यह सब रूद्र – भगवान शिव के लेख में दिया गया है।


Rudrashtakam Meaning In Hindi

रुद्राष्टकम स्तोत्र – अर्थ सहित

1.

मोक्षस्वरुप, आकाशरूप, सर्व्यवापी शिवजी को प्रणाम

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्॥1॥

  • नमामीशम् – श्री शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ जो
  • ईशान – ईशान दिशाके ईश्वर
  • निर्वाणरूपं – मोक्षस्वरुप
  • विभुं व्यापकं – सर्व्यवापी
  • ब्रह्मवेदस्वरूपम् – ब्रह्म और वेदस्वरूप है
  • निजं – निजस्वरुप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित)
  • निर्गुणं – गुणों से रहित
  • निर्विकल्पं – भेद रहित
  • निरीहं – इच्छा रहित
  • चिदाकाशम् – चेतन आकाशरूप एवं
  • आकाशवासं – आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले
    • अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले)
  • भजेहम् – हे शिव, आपको मैं भजता हूँ

भावार्थ: –
हे मोक्षस्वरुप, सर्व्यवापी,
ब्रह्म और वेदस्वरूप,
ईशान दिशाके ईश्वर तथा सबके स्वामी श्री शिवजी,
मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

निजस्वरुप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित,
गुणों से रहित, भेद रहित,
इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं
आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दीगम्बर
अर्थात आकाश को भी आच्छादित करने वाले,
आपको मैं भजता हूँ ॥१॥

हे ईशान! मैं मुक्तिस्वरूप, समर्थ, सर्वव्यापक, ब्रह्म, वेदस्वरूप, निजस्वरूपमें स्थित, निर्गुण, निर्विकल्प, निरीह, अनन्त ज्ञानमय और आकाशके समान सर्वत्र व्याप्त प्रभुको प्रणाम करता हूँ॥1॥


2.

ॐ कार शब्द के मूल, निराकार, महाकाल कैलाशपति को नमस्कार

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्॥2॥

  • निराकार – निराकार स्वरुप
  • ओमङ्कारमूलं – ओंकार के मूल
  • तुरीयं – तीनों गुणों से अतीत
  • गिराज्ञान गोतीतमीशं – वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे
  • गिरीशम् – कैलाशपति
  • करालं – विकराल
  • महाकालकालं – महाकाल के काल
  • कृपालं – कृपालु
  • गुणागार – गुणों के धाम
  • संसारपारं – संसार से परे
  • नतोहम् – परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ

भावार्थ: –
कैलाशपति, ओंकार के मूल,
तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत,
वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से पर, कैलाशपति,

विकराल, महाकाल के काल, कृपालु,
गुणों के धाम, संसार से परे,
आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥

जो निराकार हैं, ओंकाररूप आदिकारण हैं, तुरीय हैं, वाणी, बुद्धि और इन्द्रियोंके पथसे परे हैं, कैलासनाथ हैं, विकराल और महाकालके भी काल, कृपाल, गुणोंके आगार और संसारसे तारनेवाले हैं, उन भगवान्‌को मैं नमस्कार करता हूँ॥2॥


3.

सिरपर गंगाजी, ललाटपर चन्द्रमा, गले में सर्पों की माला

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥3॥

  • तुषाराद्रिसंकाश – जो हिमाचल के समान
  • गौरं गभिरं – गौरवर्ण तथा गंभीर हैं
  • मनोभूत कोटि प्रभा – करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है
  • श्री शरीरम् – जिनके श्री शरीर में
  • स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
  • जिनके सिरपर,
  • सुन्दर नदी गंगा जी विराजमान हैं
  • लसद्भालबालेन्दु – जिनके ललाटपर द्वितीय का चन्द्रमा और
  • कण्ठे भुजङ्गा – गले में सर्प सुशोभित हैं

भावार्थ: –
जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं,
जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,

जिनके सिरपर सुन्दर गंगा जी नदी विराजमान हैं,
जिनके ललाटपर द्वितीय का चन्द्रमा और
गले में सर्प सुशोभित हैं ॥३॥

जो हिमालयके समान श्वेतवर्ण, गम्भीर और करोड़ों कामदेवके समान कान्तिमान् शरीरवाले हैं, जिनके मस्तकपर मनोहर गंगाजी लहरा रही हैं, भालदेशमें बालचन्द्रमा सुशोभित होते हैं और गलेमें सर्पोंकी माला शोभा देती है॥3॥


4.

नीलकंठ, प्रसन्नमुख, दयालु, सबके नाथ, शिवजी को प्रणाम

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥

  • चलत्कुण्डलं – जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं
  • भ्रूसुनेत्रं विशालं – सुन्दर भृकुटि और विशाल नेत्र हैं
  • प्रसन्नाननं – जो प्रसन्नमुख
  • नीलकण्ठं – नीलकंठ और
  • दयालम् – दयालु हैं
  • मृगाधीशचर्माम्बरं – सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और
  • मुण्डमालं – मुण्डमाला पहने हैं
  • प्रियं शङ्करं – उन सबके प्यारे और
  • सर्वनाथं – सबके नाथ (कल्याण करने वाले) श्री शंकर जी को
  • भजामि – मैं भजता हूँ

भावार्थ: –
जिनके कानों में, कुण्डल हिल रहे हैं,
सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं,
जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ और दयालु हैं।

सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और
मुण्डमाला पहने हैं,
सबके प्यारे और सबके नाथ,
कल्याण करने वाले,
श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥४॥

जिनके कानोंमें कुण्डल हिल रहे हैं, जिनके नेत्र एवं भृकुटी सुन्दर और विशाल हैं, जिनका मुख प्रसन्न और कण्ठ नील है, जो बड़े ही दयालु हैं, जो बाघकी खालका वस्त्र और मुण्डोंकी माला पहनते हैं, उन सर्वाधीश्वर प्रियतम शिवका मैं भजन करता हूँ॥4॥


5.

अखंड, तेजस्वी, हाथ में त्रिशूलधारी, भवानीपति शिवजी को प्रणाम

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥

  • प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
  • प्रचंड (रुद्ररूप) श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर
  • अखण्डं – अखंड
  • अजं – अजन्मा
  • भानुकोटिप्रकाशं – करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले
  • त्र्यःशूलनिर्मूलनं – तीनों प्रकार के शूलों (दुखों) को निर्मूल करने वाले
  • शूलपाणिं – हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए
  • भजेहं – मैं भजता हूँ
  • भवानीपतिं – भवानी के पति श्री शंकर
  • भावगम्यम् – भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले

भावार्थ: –
प्रचंड (रुद्ररूप) श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर,
अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले,

तीनों प्रकार के शूलों (दुखों) को निर्मूल करने वाले,
हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए,
भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले,
भवानी के पति श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥५॥

जो प्रचण्ड, सर्वश्रेष्ठ, प्रगल्भ, परमेश्वर, पूर्ण, अजन्मा, कोटि सूर्यके समान प्रकाशमान, त्रिभुवनके शूलनाशक और हाथमें त्रिशूल धारण करनेवाले हैं, उन भावगम्य भवानीपतिका मैं भजन करता हूँ॥5॥


6.

कल्याण स्वरुप, दु:ख हरने वाले, भोलेनाथ को नमस्कार

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

  • कलातीत – कलाओं से परे
  • कल्याण – कल्याण स्वरुप
  • कल्पान्तकारी – कल्पका अंत (प्रलय) करने वाले
  • सदा सज्जनानन्ददाता – सज्जनों को सदा आनंद देने वाले
  • पुरारी – त्रिपुर के शत्रु
  • चिदानन्दसंदोह – सच्चिदानन्दघन
  • मोहापहारी – मोहको हराने वाले
  • प्रसीद प्रसीद प्रभो – कामदेव के शत्रु, हे प्रभु, प्रसन्न होइये
  • मन्मथारी – मनको मथ डालने वाले

भावार्थ: –
कलाओं से परे, कल्याण स्वरुप,
कल्पका अंत (प्रलय) करने वाले,
सज्जनों को सदा आनंद देने वाले,
त्रिपुर के शत्रु,

सच्चिदानन्दघन, मोहको हराने वाले,
मनको मथ डालने वाले,
कामदेव के शत्रु,
हे प्रभु प्रसन्न होइये ॥६॥

हे प्रभो! आप कलारहित, कल्याणकारी और कल्पका अन्त करनेवाले हैं। आप सर्वदा सत्पुरुषोंको आनन्द देते हैं, आपने त्रिपुरासुरका नाश किया था, आप मोहनाशक और ज्ञानानन्दघन परमेश्वर हैं, कामदेवके आप शत्रु हैं, आप मुझपर प्रसन्न हों, प्रसन्न हों॥6॥


7.

दु:खों से मुक्ति और सुख, शांति के लिए, शंकरजी के चरणों में प्रणाम

न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

  • न यावद् उमानाथपादारविन्दं – जबतक पार्वती के पति (शिवजी) आपके चरणकमलों को
  • भजन्तीह – मनुष्य नहीं भजते
  • लोके परे वा नराणाम् – तब तक उन्हें इसलोक में या परलोक में
  • न तावत्सुखं शान्ति – न सुख-शान्ति मिलती है और
  • सन्तापनाशं – न उनके तापों का अर्थात दुःखो का नाश होता है
  • प्रसीद प्रभो – प्रभो। प्रसन्न होइये
  • सर्वभूताधिवासं – समस्त जीवों के अन्दर (हृदय में) निवास करनेवाले

भावार्थ: –
जबतक पार्वती के पति (शंकरजी)
आपके चरणकमलों को मनुष्य नहीं भजते,
तबतक उन्हें
न तो इसलोक में ओर
ना ही परलोक में
सुख-शान्ति मिलती है और
न उनके तापों का नाश होता है।

अत: हे समस्त जीवों के अन्दर (हृदय में)
निवास करनेवाले प्रभो, प्रसन्न होइये ॥७॥

मनुष्य जबतक उमाकान्त महादेवजीके चरणारविन्दोंका भजन नहीं करते, उन्हें इहलोक या परलोकमें कभी सुख और शान्तिकी प्राप्ति नहीं होती और न उनका सन्ताप ही दूर होता है। हे समस्त भूतोंके निवासस्थान भगवान् शिव! आप मुझपर प्रसन्न हों॥7॥


8.

हे शंकर, हे शम्भो, मेरी रक्षा कीजिये

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥8॥

  • न जानामि योगं – मैं न तो योग जानता हूँ
  • जपं नैव पूजां – न जप और पूजा ही
  • नतोहं सदा सर्वदा – मैं तो सदा-सर्वदा आपको ही नमस्कार
  • शम्भुतुभ्यम् – हे शम्भो।
  • जराजन्मदुःखौघ – बुढापा (जरा), जन्म-मृत्यु के दुःख समूहों से
  • तातप्यमानं – जलते हुए मुझ दुखी की दुःख में रक्षा कीजिये
  • प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो – हे प्रभु, हे ईश्वर, हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूँ

भावार्थ: –
मैं न तो योग जानता हूँ,
न जप और पूजा ही।
हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा
आपको ही नमस्कार करता हूँ।

हे प्रभु, बुढापा तथा जन्म और मृत्यु के दुःख समूहों से जलते हुए
मुझ दुखी की दुःख में रक्षा कीजिये।
हे ईश्वर, हे शम्भो,
मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥८॥

हे प्रभो! हे शम्भो! हे ईश! मैं योग, जप और पूजा कुछ भी नहीं जानता, हे शम्भो! मैं सदा-सर्वदा आपको नमस्कार करता हूँ। जरा, जन्म और दुःखसमूहसे सन्तप्त होते हुए मुझ दुःखीकी दुःखसे आप रक्षा कीजिये॥8॥



Rudrashtakam Lyrics In English

Nama-misha-mishana
(namaam-isham-ishaana)
Nirvana Roopam
Vibhum Vyapakam
Brahma Veda Swaroopam|

Nijam Nirgunam
Nirvikalpam Niriham
Chidakasha Makasha
(cidaakaasham-aakaasha)
Vasam Bhaje (a)Hum||


Nirakara Monkara
(nirakara-onkara)
Moolam Turiyam
Gira Gnana Gotita
Misham Girisham|
(giraa-jnyaana-go-atiitam-iisham giriisham)

Karalam Mahakala
Kalam Kripaalam
Guna-agaara Samsara
Param Nato Ham||


Tusha Radri-Sankasha
Gauram Gabhiram
Mano-bhuta-Koti
Prabha Shri Sariram|

Sphuran Mauli-Kallolini
Charu-Ganga
Lasad-Bhala-Balendu
Kanthe Bhujanga||

Chalat-kundalam Bhru
Sunetram Visalam
Prasanna-Nanam
Nila-Kantham Dayalam|

Mrga-dhisa Charm-ambaram
Munda-malam
Priyam Sankaram
Sarva-natham Bhajami||


Prachandam Prakrshtam
Pragalbham Paresham
Akhandam Ajam
Bhanukoti-Prakasam|

Trayah-Shula-Nirmulanam
Shool-Panim
Bhaje Ham Bhavani-Patim
Bhava-Gamyam||


Kalatitata-Kalyana
Kalp-anta-Kari
Sada Sajjana-Nanda
Data Purarih|

Chid-ananda-Sandoha
Mohapahari
Prasida Praslda
Prabho Manmatharih||


Na Yavad
Umanatha-Padaravindam
Bhajantiha Loke
Pare-va Naranam|

Na Tavat-Sukham
Shanti-Santapa-Nasham
Praslda Prabho
Sarva Bhuta-Dhivasam||


Na Janami Yogam
Japam Naiva Pujam
Nato-Ham Sada Sarvada
Sambhu Tubhyam|

Jara Janma-Duhkhaugha
Tatapya Manam
Prabho Pahi
Apan-Namamisha Shambho||


Rudrashtakam Lyrics In Hindi

स्तोत्र अर्थ सहित

स्तोत्र सिर्फ हिन्दी में

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोहम्॥2॥


तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥4॥


प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥5॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥


न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥8॥


Rudrashtakam In Hindi

स्तोत्र अर्थ सहित

स्तोत्र सिर्फ संस्कृत में

1.

हे मोक्षस्वरुप, सर्व्यवापी, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशाके ईश्वर तथा सबके स्वामी श्री शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ।

निजस्वरुप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित, गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दीगम्बर अर्थात आकाश को भी आच्छादित करने वाले, आपको मैं भजता हूँ ॥१॥


2.

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत, वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से पर, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे, आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥२॥


3.

जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिरपर सुन्दर गंगा जी नदी विराजमान हैं, जिनके ललाटपर द्वितीय का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित हैं ॥३॥


4.

जिनके कानों में, कुण्डल हिल रहे हैं, सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ और दयालु हैं।

सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और मुण्डमाला पहने हैं, सबके प्यारे और सबके नाथ, कल्याण करने वाले, श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥४॥


5.

प्रचंड (रुद्ररूप) श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों (दुखों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये हुए, भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले, भवानी के पति श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ॥५॥


6.

कलाओं से परे, कल्याण स्वरुप, कल्पका अंत (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोहको हराने वाले, मनको मथ डालने वाले, कामदेव के शत्रु, हे प्रभु प्रसन्न होइये ॥६॥


7.

जबतक पार्वती के पति (शंकरजी) आपके चरणकमलों को मनुष्य नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इसलोक में ओर ना ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और न उनके तापों का नाश होता है।

अत: हे समस्त जीवों के अन्दर (हृदय में) निवास करनेवाले प्रभो, प्रसन्न होइये ॥७॥


8.

मैं न तो योग जानता हूँ, न जप और पूजा ही।

हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आपको ही नमस्कार करता हूँ।

हे प्रभु, बुढापा तथा जन्म और मृत्यु के दुःख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुःख में रक्षा कीजिये।

हे ईश्वर, हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥८॥

Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan


List

Shiv Panchakshar Stotra – with Meaning – Nagendra Haraya Trilochanaya  


श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र को शिवस्वरूप क्यों कहा जाता है?

पंचाक्षर अर्थात पांच अक्षर। श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र, के पाँचों श्लोकों में क्रमशः न, म, शि, वा और य, ये पांच अक्षर आते है। न, म, शि, वा और य अर्थात् नम: शिवाय

प्रत्येक श्लोक की शुरुआत क्रमशः न, म, शि, वा और य अक्षर से होती है,
यानी की पहला श्लोक से, दुसरा से…।

और श्लोक के अंत में उस अक्षर से विदित भगवान् शिव के स्वरुप को,
यानी की अक्षर द्वारा विदित शिव स्वरूप को, अक्षर द्वारा जाने जाने वाले शिवजी के स्वरुप को प्रणाम किया गया है।

शिव पंचाक्षरी स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में भगवान् शिव के स्वरुप का वर्णन किया गया है, जैसे की नागेंद्रहाराय, दिगंबराय, नीलकंठाय आदि, और श्लोक के अंत में भोले बाबा को नमस्कार किया गया है।

इसलिए, यह पंचाक्षर स्तोत्र शिवस्वरूप है।


इस पोस्ट से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण बात

पंचाक्षर स्तोत्र के इस पोस्ट में शिव पंचाक्षरी – हिंदी में अर्थ सहित और अंग्रेजी में अर्थसहित दिया गया है –

  1. प्रत्येक शब्द का हिंदी में अर्थ और पूरे श्लोक का भावार्थ
  2. अंग्रेजी में Panchakshar StotraNagendraharaya Trilochanaya
  3. प्रत्येक इंग्लिश शब्द का इंग्लिश में अर्थ, बाद में
  4. पाठ के लिए स्तोत्र सिर्फ संस्कृत में, और
  5. अंत में श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र सिर्फ हिंदी में दिया गया है।

Shiv Panchakshar Stotra Benefits

शिव पंचाक्षर स्तोत्र के पाठ का लाभ

इस स्तोत्र के अंतिम श्लोक में पंचाक्षर स्तोत्र के पाठ का लाभ बताया है, जैसे की –

जो शिवके समीप, इस पवित्र पंचाक्षर मंत्र का पाठ करता है, वह शिवलोकको प्राप्त होता है और वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है, भगवान् शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है।


शिव पंचाक्षर स्तोत्र के साथ ध्यान

जो भी मनुष्य इस स्तोत्र के पाठ के साथ ध्यान करता है, उसके मन में धीरे धीरे शिवजी का स्वरुप बनने लगता है।

इसलिए इस स्तोत्र के अंतिम श्लोक में कहा गया है की –
जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य ध्यान करता है, वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है, तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है।


Shiv Panchakshar Stotra Meaning In Hindi

पहले श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र के प्रत्येक शब्द का अर्थ दिया गया है।

1. नमः शिवाय का पहला अक्षर “न”

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥

  • नागेंद्रहाराय – हे शंकर, आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं
  • त्रिलोचनाय – हे तीन नेत्रों वाले (त्रिलोचन)
  • भस्मांग रागाय – आप भस्म से अलंकृत है
  • महेश्वराय – महेश्वर है
  • नित्याय – नित्य (अनादि एवं अनंत) है और
  • शुद्धाय – शुद्ध हैं
  • दिगंबराय – अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले दिगम्बर
  • तस्मै न काराय – आपके “” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को
  • नमः शिवायः – हे शिव, नमस्कार है

भावार्थ: –
जिनके कंठ मे साँपोंका हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग है (अनुलेपन) है, दिशाँए ही जिनके वस्त्र हैं, उन अविनाशी महेश्वर “” कार स्वरूप शिवको नमस्कार है।


2. नमः शिवाय का दुसरा अक्षर “म”

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय
नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥

  • मंदाकिनी सलिल – गंगा की धारा द्वारा शोभायमान
  • चंदन चर्चिताय – चन्दन से अलंकृत एवं
  • नंदीश्वर प्रमथनाथ – नन्दीश्वर एवं प्रमथ के स्वामी
  • महेश्वराय – महेश्वर
    • प्रमथ अर्थात शिव के गण अथवा पारिषद
  • मंदारपुष्प – आप सदा मन्दार पर्वत से प्राप्त पुष्पों एवं
  • बहुपुष्प – बहुत से अन्य स्रोतों से प्राप्त पुष्पों द्वारा
  • सुपूजिताय – पुजित है
  • तस्मै म काराय – हे “म” अक्षर धारी
  • नमः शिवाय – शिव आपको नमन है

भावार्थ: –
गंगा की धारा द्वारा जो शोभायमान है, जो चन्दन से अलंकृत है, मन्दार पुष्प तथा अन्यान्य पुष्पों से जिनकी सुंदर पूजा हुई है, उन नन्दी के अधिपति और प्रमथ (प्रमथ अर्थात शिव के गण अथवा पारिषद) के स्वामी, महेश्वर “” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।


3. नमः शिवाय का तीसरा अक्षर “शि”

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय
तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥

  • शिवाय – हे शिव,
  • गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय – माँ गौरी के कमल मुख को सूर्य समान तेज प्रदान करने वाले,
  • दक्षाध्वरनाशकाय – आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था
  • श्री नीलकंठाय – नीलकण्ठ
  • वृषभद्धजाय – हे धर्म ध्वज धारी
  • तस्मै शि काराय – आपके “शि” अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को
  • नमः शिवायः – हे शिव, नमस्कार है

भावार्थ: –
जो कल्याण स्वरूप हैं, पार्वती जी के मुख कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिये जो सूर्य स्वरूप हैं, जो राजा दक्ष के यज्ञका नाश करने वाले हैं, जिनकी ध्वजा मे बैलका चिन्ह है, उन शोभाशाली, श्री नीलकण्ठ “शि” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।


4. नमः शिवाय का चौथा अक्षर “वा”

वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य
मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥

  • वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य – वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि
  • मुनींद्र देवार्चित शेखराय – मुनियों द्वारा एवं देवगणो द्वारा पुजित देवाधिदेव
  • चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय – आपके सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि, तीन नेत्र समान हैं
  • तस्मै व काराय – आपके “” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को
  • नमः शिवायः – हे शिव नमस्कार है

भावार्थ: –
वसिष्ठ, अगस्त्य, और गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषि मुनियोंने तथा इन्द्र आदि देवताओंने जिन देवाधिदेव शंकरजी की पूजा की है। चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र है, उन “” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।


5. नमः शिवाय का पांचवां अक्षर “य”

यक्षस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥

  • यक्षस्वरूपाय – हे यज्ञ स्वरूप,
  • जटाधराय – जटाधारी शिव
  • पिनाकहस्ताय – पिनाक को धारण करने वाले
    • पिनाक अर्थात
    • शिव का धनुष
  • सनातनाय – आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन है
  • दिव्याय देवाय दिगंबराय – हे दिव्य अम्बर धारी शिव
  • तस्मै य काराय – आपके “य” अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को
  • नमः शिवायः – हे शिव, नमस्कार है

भावार्थ: –
जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है, जो जटाधारी हैं, जिनके हाथ मे पिनाक (धनुष) है, जो दिव्य सनातन पुरुष हैं, उन दिगम्बर देव “य” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।

  • दिगम्बर अर्थात अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले

Shiv Panchakshar Stotra Benefits In Hindi

पंचाक्षर मंत्र के पाठ का लाभ

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः
पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति
शिवेन सह मोदते॥

  • पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः – जो कोई शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का
  • पठेत् शिव सन्निधौ – नित्य ध्यान करता है
  • शिवलोकमवाप्नोति – वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है
  • शिवेन सह मोदते – तथा शिव के साथ सुख पुर्वक निवास करता है

भावार्थ: –
जो शिवके समीप, इस पवित्र पंचाक्षर मंत्र का पाठ करता है, वह शिवलोकको प्राप्त होता है और वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है।

॥इति श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥




Shiv Panchakshar Stotra Lyrics In English

Nagendraharaya Trilochanaya
Bhasmangaragaya Mahesvaraya

Nityaya Shuddhaya Digambaraya
Tasmai Na Karaya Namah Shivaya


Mandakini Salila Chandana Charchitaya
Nandishwar Pramathanatha Mahesvaraya

Mandara Pushpa Bahupushpa Supujitaya
Tasmai Ma Karaya Namah Shivaya


Shivaya Gauri Vadanabja Brnda
Suryaya Dakshadhvara Nashakaya

Sri Nilakanthaya Vrshadhvajaya
Tasmai Shi Karaya Namah Shivaya


Vashistha Kumbhodbhava Gautamarya
Munindra Devarchita Shekharaya

Chandrarka Vaishvanara Lochanaya
Tasmai Va Karaya Namah Shivaya


Yagna Svarupaya Jatadharaya
Pinaka Hastaya Sanatanaya

Divyaya Devaya Digambaraya
Tasmai Ya Karaya Namah Shivaya


Panchaksharamidam Punyam
Yah Pathechchiva

Sannidhau Shivalokamavapnoti
Sivena Saha Modate


Shiv Panchakshar Stotra Meaning

Nagendra Haraya Trilochanaya Meaning

First Letter “Na” of Namah Shivay

Nagendraharaya Trilochanaya
Bhasmangaragaya Mahesvaraya|
Nityaya Shuddhaya Digambaraya
Tasmai Na Karaya Namah Shivaya||

  • Nagendraharaya – the king of snakes as garland
  • Trilochanaya – lord with three eyes
  • Bhasmangaragaya – body is smeared with sacred ashes
  • Mahesvaraya – the great Lord,
  • Nityaya Shuddhaya – who is ever pure, eternal
  • Digambaraya – four directions and sky as his clothes
  • Tasmai Na Karaya – who is represented by the syllable “na”
  • Namah Shivaya – salutations to that Lord Shiva

Second Letter “Ma” of Namah Shivay

Mandakini Salila Chandana Charchitaya
Nandishwar Pramathanatha Mahesvaraya|
Mandara Pushpa Bahupushpa Supujitaya
Tasmai Ma Karaya Namah Shivaya||

  • Mandakini Salila – worshipped with water from the Mandakini river
  • Chandana Charchitaya – smeared with sandal paste,
  • Nandishwar – lord of Nandi
  • Pramathanatha – Lord of pramath, ghosts and goblins
  • Mahesvaraya – the great Lord
  • Mandara Pushpa – worshipped with Mandara,
  • Bahupushpa Supujitaya – worshipped with many other flowers,
  • Tasmai Ma Karaya – who is represented by the syllable “ma”
  • Namah Shivaya – salutations to that Lord Shankara

Third Letter “Shi” of Namah Shivay

Shivaya Gauri Vadanabja Brnda
Suryaya Dakshadhvara Nashakaya|
Sri Nilakanthaya Vrshadhvajaya
Tasmai Shi Karaya Namah Shivaya||

  • Shivaya – auspicious
  • Gauri Vadanabja Brnda Suryaya – like the newly risen sun causing the lotus-face of Gauri to blossom,
  • Dakshadhvara Nashakaya – destroyer of the sacrifice of Daksha,
  • Shri Nilakanthaya – blue throat
  • Vrshadhvajaya – has a bull as his emblem,
  • Tasmai Shi Karaya – who is represented by the syllable “shi”
  • Namah Shivaya – Salutations to that Great Lord Shiva, Mahadev

Fourth Letter “Va” of Namah Shivay

Vashistha Kumbhodbhava Gautamarya
Munindra Devarchita Shekharaya|
Chandrarka Vaishvanara Lochanaya
Tasmai Va Karaya Namah Shivaya||

  • Vashistha Kumbhodbhava Gautamarya – worshipped by the great and respected sages like Vasishtha, Agastya and Gautama
  • Munindra – worshipped by the sages and also by the gods
  • Devarchita Shekharaya – the crown of the universe,
  • Chandrarka Vaishvanara Lochanaya – has the moon, sun and fire as his three eyes,
  • Tasmai Va Karaya – who is represented by the syllable “va”
  • Namah Shivaya – Salutations to that Lord Shiva Shankara,

Third Letter “Ya” of Namah Shivay

Yagna Svarupaya Jatadharaya
Pinaka Hastaya Sanatanaya|
Divyaya Devaya Digambaraya
Tasmai Ya Karaya Namah Shivaya||

  • Yagna Swarupaya – embodiment of yagna (sacrifice)
  • Jatadharaya – matted locks,
  • Pinaka Hastaya – trident in hand
    – (pinaka – the bow of Lord Shiva)
  • Sanatanaya – eternal
  • Divyaya Devaya – divine, shining one
  • Digambaraya – four directions and sky as clothes
  • Tasmai Ya Karaya – who is represented by the syllable “ya”
  • Namah Shivaya – Salutations to that Mahadev Lord Shiva

Shiv Panchakshar Stotra Benefits

Panchaksharamidam Punyam
Yah Pathechchiva|
Sannidhau Shivalokamavapnoti
Sivena Saha Modate||

  • Panchaksharamidam Punyam, Yah Pathechchiva – who recites this Panchakshara Stotra near Lord Shiva,
  • Sannidhau Shivalokamavapnoti, Sivena Saha Modate – attain the abode of Shiva – Shivlok, and enjoy bliss.

Shiv Panchakshar Stotra in Sanskrit

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥


मंदाकिनी सलिल
चंदन चर्चिताय
नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥


शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय
तस्मै शि काराय नमः शिवायः॥


वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य
मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥


यक्षस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय
तस्मै काराय नमः शिवायः॥


पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः
पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति
शिवेन सह मोदते॥

॥इति श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥


Nagendra Haraya Trilochanaya In Hindi

Shiv Panchakshar Stotra Meaning in Hindi

जिनके कंठ मे साँपोंका हार है,
जिनके तीन नेत्र हैं,
भस्म ही जिनका अंगराग है (अनुलेपन) है,
दिशाँए ही जिनके वस्त्र हैं,
उन अविनाशी महेश्वर “न” कार स्वरूप शिवको नमस्कार है।

गंगा की धारा द्वारा जो शोभायमान है,
जो चन्दन से अलंकृत है,
मन्दार पुष्प तथा अन्यान्य पुष्पों से जिनकी सुंदर पूजा हुई है,
उन नन्दी के अधिपति और
प्रमथ (प्रमथ अर्थात शिव के गण अथवा पारिषद) के स्वामी,
महेश्वर “म” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।

जो कल्याण स्वरूप हैं,
पार्वती जी के मुख कमल को विकसित (प्रसन्न) करने के लिये जो सूर्य स्वरूप हैं,
जो राजा दक्ष के यज्ञका नाश करने वाले हैं,
जिनकी ध्वजा मे बैलका चिन्ह है,
उन शोभाशाली, श्री नीलकण्ठ “शि” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।

वसिष्ठ, अगस्त्य, और गौतम आदि श्रेष्ठ ऋषि मुनियोंने
तथा इन्द्र आदि देवताओंने जिन देवाधिदेव शंकरजी की पूजा की है।
चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र है,
उन “व” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।

जिन्होंने यक्षरूप धारण किया है,
जो जटाधारी हैं,
जिनके हाथ मे पिनाक (धनुष) है,
जो दिव्य सनातन पुरुष हैं,
उन दिगम्बर देव “य” कार स्वरूप शिव को, नमस्कार है।

दिगम्बर अर्थात अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले

जो शिवके समीप, इस पवित्र पंचाक्षर मंत्र का पाठ करता है,
वह शिवलोकको प्राप्त होता है और
वहां शिवजी के साथ आनन्दित होता है।


Shiv Stotra Mantra Aarti Chalisa Bhajan

List

Aage Bajrangi Nache – Lyrics in Hindi


आगे बजरंगी नाचे

आगे बजरंगी नाचे पीछे भैरव झूम झूम नाचे,
सिंह पे सवार हुई दुर्गा भवानी,
दोनों के बिच सजी मूरत सुहानी,
आगे बजरंगी…


लाल लाल सिंदूर तन में लगाना,
जी बजरंगी बाला,
मन में रखे ना जरा भेद भैरवजी,
तन है जो काला,
काली लंगोटी में भैरव सुहाए,
लाल लंगोटी हनुमान भाए,
आगे बजरंगी…


ऊँची ऊचाई उड़े झूमे कूदे है बजरंगी बाला,
स्वान पे करते सवारी जो,
देखो जी भैरव निराला,
गोल गोल बजरंगी गदा घुमाये,
भैरव के हाथो में मुघधर सुहाए,
आगे बजरंगी…


मैया की मढिया में आगे बिराजे है बजरंगी बाला,
पीछे है भैरव का मंदिर मनोहर जो फल देने वाला,
ध्वजा चढ़ाके लो बजरंग मनाये,
सिन्दूर तेल दियो भैरव चढ़ाये,
आगे बजरंगी…


Aage Bajrangi Nache