रहीम के दोहे – १ | Rahim ke Dohe – 1


एकै साधे सब सधै,
सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो,
फूलै फलै अघाय॥


छिमा बड़न को चाहिए,
छोटेन को उतपात।
का रहिमन हरि को घट्यो,
जो भृगु मारी लात॥


जो रहीम उत्‍तम प्रकृति,
का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्‍यापत नहीं,
लपटे रहत भुजंग॥


रहिमन जिह्वा बावरी,
कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही,
जूती खात कपाल॥


राम नाम जान्‍यो नहीं,
जान्‍यो सदा उपाधि।
कहि रहीम तिहिं आपुनो,
जनम गँवायो बादि॥


रहिमन देखि बड़ेन को,
लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई,
कहा करे तलवारि॥


रहिमन धागा प्रेम का,
मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले,
मिले गाँठ परि जाय॥


रहिमन पानी राखिये,
बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै,
मोती, मानुष, चून॥


रहिमन यहि संसार में,
सब सौं मिलिये धाइ।
ना जानैं केहि रूप में,
नारायण मिलि जाइ॥


समय पाय फल होत है,
समय पाय झरि जाय।
सदा रहे नहिं एक सी,
का रहीम पछिताय॥


जो रहीम गति दीप की,
सुत सपूत की सोय।
बड़ो उजेरो तेहि रहे,
गए अँधेरो होय॥


खीरा सिर तें काटिए,
मलियत नमक बनाय।
रहिमन करुए मुखन को,
चहिअत इहै सजाय॥


चाह गई चिंता मिटी,
मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछू न चाहिए,
वे साहन के साह॥


देनहार कोउ और है,
भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरें,
याते नीचे नैन॥


बड़े बड़ाई ना करैं,
बड़ो न बोलैं बोल।
रहिमन हीरा कब कहै,
लाख टका मेरो मोल॥